Wednesday, 26 March 2025

पारद भस्म मृत पारद & melting evaporating boiling point of mercury

पारद भस्म मृत पारद & melting evaporating boiling point of mercury 




You can verify following statements, on google which quotes authentic and reliable websites of pubmed sciencedirect etc

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Hg mercury boiling point 356.7°C


Hg mercury vaporization/volalization 20°C


The freezing point of mercury is −37.6°F, so *it is always evaporating.*


Elemental "mercury evaporates" at a rate of 7 μg/cm2/h "at 20 °C" (Andren and Nriagu, 1979).


Mercury (Hg) is a globally spread pollutant due to characteristics such as "low melting and boiling points"


1

प्रायः सभी रसकल्प मे हम "शुद्धं सूतम्" ऐसा देखते है किंतु, बाकी सभी धातुओं/द्रव्यों का का भस्म = मारण किया हुआ स्वरूप उपयोग मे लाया जाता है. *मृतं सूतं अर्थात पारद का मारण किया हुआ स्वरूप अर्थात पारद का भस्म* ; कभी भी, किसी भी कल्प मे, उल्लेखित या समाविष्ट नही है.

पारद के संदर्भ में केवल शुद्ध किया हुआ पारद ऐसा ही उल्लेख सभी जगह मिलता है


2

लोहानां मारणं श्रेष्ठं सर्वेषां रसभस्मना

वस्तुतः, धातुओं का भस्म निर्माण करणे का सर्वश्रेष्ठ विधी, यह रसभस्म से निर्माण करना यही है, किंतु *रसभस्म असंभव है* = रसभस्म बन ही नही सकता! इसी कारण से धातुभस्म, जो रसभस्म से बने हे, जो सर्वोत्तम संभावना है, यह कभी भी सार्थ सिद्ध नही हो सकते !!!


3

अभी बाकी की जो आप रसकल्प की विधि देखते है, उसमे सबसे सुकर अनायास खल्वी रसायन है, इसमे प्रायः अग्नि का कोई प्रत्यक्ष उपयोग नही होता है. इसके उपर कूपी पक्व और पोट्टली इन कल्पोंका वर्णन मिलता है इन दोनो मे बहुत दीर्घकाल तक और बहुत बडी मात्रा मे अग्नि दिया जाता है.


4

वास्तविक स्थिती यह है कि, पारद का बॉयलिंग पॉईंट और पारद का ईव्हेपोरेटिंग पॉईंट इतना कम तापमान टेंपरेचर है, कि इस कारण से भारत के किसी भी प्रदेश में किसी भी ऋतु मे और दिन के किसी भी क्षण प्रायः 20 डिग्री से अधिक तापमान ही रहता है. ऐसी स्थिती मे पोट्टली और कूपी पक्व तो छोड दीजिए, किंतु खल्वी रसायन मे भी पारद , उस कल्प मे स्थिर नही रह सकता, अदृश्य हो जाता है, और हम पारद के खल्वी रसायन कल्प, सिंदूर , कूपी पक्व और पोट्टली बनाते है ... !!!


5

दूसरा पारद का उत्कलनांक = बॉयलिंग पॉईंट 356.7°C है , अभी कौन सा भी कल्प , जो कूपीपक्व या पोट्टली इस स्वरूप मे बनता है, उसमे टेंपरेचर तो 400 के पार निश्चित ही जाता है, तो ऐसी स्थिती मे पारद उस कल्पसे कबका eveporate होगा! उसकल्प मे बाकी थोडेही रहेगा और फिर पारद का कुछ कार्मुकत्व उस कल्प मे शेष रहेगा यह संभव ही नही !


6.

सारांश सामान्य रूम टेंपरेचर मे भी, केवल 20°C टेंपरेचर मे भी मर्क्युरी निरंतर evaporate = बाष्पीभूत अर्थात gaseous स्टेट में जाता रहता है, तो खल्वी रसायन मे भी पारद की स्थिती बनी नही रह सकती है ...


7.

और दूसरा ...

पोट्टली या कूपीपक्व जैसे विधी में, जहां टेंपरेचर बहुत अधिक होता है, वहा तोङवह निश्चित ही 350°C आगे जाता ही होगा ... तो इन दोनो, कूपी पक्व और पोट्टली, विधियों में भी,ङपारद व्हेपर आऊट = बाष्पीभूत = gaseous state मे जाने के कारण, उस कल्प मे भी पारद की उपस्थिती नही बन सकती ...


8.

तो इन दोनो स्थितियों में पारद का अस्तित्व खल्वी रसायन या पोट्टली या कूपी पक्व इनमे शेष रहता होगा ऐसे नही.


9.

किसी भी धातू का या किसी भी द्रव्य का भस्म करते समय = मारणं करते समय, उसको पुट=अग्नि देना आवश्यक होता है और जब अग्नि देंगे तो यह पारद 20°C को ही हवा मे उडने लगेगा और 350°C में तो निश्चित रूप से इसका बाष्पीभवन होगा, तो ऐसी स्थिती मे इस पारद का भस्म होना, यह असंभव है!!!


10.

अब जब पारद का भस्म ही नही बन सकता, तो रस भस्म से, उत्तम धातू भस्म का निर्माण ... लोहानां मारणं श्रेष्ठं सर्वेषां रसभस्मना... यह संभव ही नही है.


इसलिये भस्म की उत्तमता का जो श्लोक है, इसमे से

लोहानां मारणं श्रेष्ठं सर्वेषां रसभस्मना


यह पहला तो कदापि संभव ही नही है 


11.

और दुसरा 

मूलीभिः मध्यमं प्राहुः ... यह,

वनस्पती के पुटों से मारण करने के लिए इतना समय और इतनी अधिक संख्या मे पुट लगते है, तब तक इतना ॲश (ash रक्षा राख) उस मूल धातू भस्म मे समाविष्ट होता है, की उसको औषध कैसे कहेंगे ??? और वनस्पती द्वारा मारण के लिए इतने अधिक संख्या में पुट लगते है, तो उसका काॅस्ट कितना बढेगा ???


12.

तिसरा विकल्प ...

कनिष्ठं गंधकादिभिः

गंधक इत्यादी से मारण जो स्वयं शास्त्र ही कनिष्ठ = 3rd class = अधम = हीन कहता है, तो क्या ऐसी कनिष्ठ 3rd class हीन अधम भस्म का प्रयोग हम अपने पेशंट पर करने के लिए नैतिक रूप से तयार है???


13.

और चौथा ...

अरिलोहेन लोहस्य मारणं दुर्गुणप्रदम्

अरिलोह से भस्म निर्माण तो दुर्गुण प्रद है, ऐसा स्वयं शास्त्र कहता है किंतु शास्त्र मे ही गंधक मनःशिला टंकण हरताळ इनसे ही = अरिलोह से ही भस्म बनाने का विधान लिखा है, तो ये तो आत्माश्रय = स्वस्कंधारोहण न्याय हुआ ... और ये तो दुर्गुण प्रद है ,


14.

... तो ऐसे भस्म निर्माण के चारो विधी ;

1. या तो असंभव है ...

2. या नॉन ॲफाॅर्डेबल है & समय का अत्यंत अपव्यय करने वाले है ...

3. या फिर कनिष्ठ अधम 3rd class हीन है ...

4. या दुर्गुणकारी है ...


अर्थात रुग्णके शरीर के लिए हितकारी नही है !


तो क्या ऐसी स्थिति में भी आप धातुभस्म जन्य कल्प का अपने अन्नदाता पेशंट पर प्रयोग करेंगे ???


15.

इसके संदर्भ मे एक विस्तृत लेख पहले लिखा हुआ है उसकी लिंक साथ मे दी है 

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/01/blog-post.html

जिज्ञासू और पेशंट हितकारी पेशंट हितदर्शी वैद्य विद्यार्थी सन्मित्रों ने उपरोक्त चारो बातों का अंतर्मुख होकर विचार करके और दिया हुआ धातु भस्म संदर्भ का आर्टिकल पढके स्वयं निर्णय लेना चाहिए


16.

सारांश :

पारद के किसी भी कल्प मे पारद का अस्तित्व होता है , यही बात असंभव है, वास्तविक धरातल पर असत्य है. इसीलिए हवा मे बाते मत कीजिए. धैर्य से सत्य का स्पष्ट रूप से स्वीकार करे!


17.

20 डिग्री से अधिक तापमान में ही पारद बाष्पीभूत evaporate होता रहता है. ऐसी स्थिती मे पोट्टली और कूपी पक्व तो छोड दीजिए, किंतु खल्वी रसायन मे भी पारद , उस कल्प मे स्थिर नही रह सकता, अदृश्य हो जाता है, और हम पारद के खल्वी रसायन कल्प, सिंदूर , कूपी पक्व और पोट्टली बनाते है ... !!!

ये सारा बुद्धीभ्रम है ये सारा अज्ञान है ये सारा अवास्तविक कल्पनारम्य और दिशाहीन प्रयास है ... जो धन समय ऊर्जा और संसाधन का निष्प्रयोजन व्यय है, इट इज शीअर वेस्टेज ऑफ टाईम मनी एनर्जी अँड रिसोर्सेस


18.

सत्यपि निर्देशे कुर्याद् ऊह्यं स्वयं धिया

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यद्यपि शास्त्र मे निर्देश हे तथापि उस विषय के संदर्भ मे अपनी बुद्धी से स्वयं भी चिंतन विश्लेषण करना चाहिए


न चैकान्तेन निर्दिष्टेऽप्यर्थेऽभिनिविशेद्बुधः 

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केवल पूर्व संस्कार के कारण या ब्रेन वॉशिंग के कारण, जो लिखकर रखा है वही योग्य है; ऐसा एकांतिक एक्स्ट्रीम अभिनवेश हट्टा ग्रह दुराग्रह; कोई भी "बुद्धिमान" व्यक्ती ना रखे


स्वयमप्यत्र वैद्येन तर्क्यं बुद्धिमता भवेत् 

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बुद्धिमान वैद्य ने स्वयं इस विषय मे अपना तर्कपूर्वक विचार करना चाहिए


विना तर्केण या सिद्धिर्यदृच्छासिद्धिरेव सा 

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बिना तर्क (=सोच विचार) के जो यश प्राप्त होता है, वह केवल एक यदृच्छा = कोइन्सिडन्स फ्लुक संयोग अंदाजा होता है, सिद्धी नही ... शुअर शाॅट सक्सेस नही !!!


Disclaimer/अस्वीकरण: लेखक यह नहीं दर्शाता है, कि इस गतिविधि में व्यक्त किए गए विचार हमेशा सही या अचूक होते हैं। चूँकि यह लेख एक व्यक्तिगत राय एवं समझ है, इसलिए संभव है कि इस लेख में कुछ कमियाँ, दोष एवं त्रुटियां हो सकती हैं। भाषा की दृष्टी से, इस लेखके अंत मे मराठी भाषा में लिखा हुआ/ लिखित डिस्क्लेमर ग्राह्य है

डिस्क्लेमर : या उपक्रमात व्यक्त होणारी मतं, ही सर्वथैव योग्य अचूक बरोबर निर्दोष आहेत असे लिहिणाऱ्याचे म्हणणे नाही. हे लेख म्हणजे वैयक्तिक मत आकलन समजूत असल्यामुळे, याच्यामध्ये काही उणीवा कमतरता दोष असणे शक्य आहे, ही संभावना मान्य व स्वीकार करूनच, हे लेख लिहिले जात आहेत.

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