Monday, 24 March 2025

हिंदी भाषा में : गर्भसंस्कार : मर्यादा और वस्तुस्थिती !!! 😇🤔⁉️🤫🫣🫢🙃🤦‍♂️🤷🙆

 गर्भसंस्कार : मर्यादा और वस्तुस्थिती : हिंदी भाषा में





आयुर्वेद मे गर्भसंस्कार ऐसा "शब्द" ढूंढेंगे ,

तो नही मिलता है.

फिर भी गर्भ पर कुछ गुणांतराधान = अच्छे गुण उपलब्ध हो, इसलिये किये जाने वाले कर्मों को / कर्मकांड को , यदि "संस्कार" कहेंगे , तो ये दो प्रकार के है... 1.गर्भधारणा पूर्व & 2. गर्भधारणा के पश्चात् 


गर्भधारणा के पूर्व : प्रशस्त बीज निर्मिती तथा स्त्री-पुरुष उत्तम संयोग इसके लिये उपचार, आहार एवं इसके साथ हि कुछ मंत्र पूजा होम हवन आदि क्रियाये या कर्मकांड भी बताया गया है.


किसी भी स्थिति में, गर्भधारणा हो गई है या नही, यह एक महिना या 40 दिन तक पता नही चलता है, क्योंकि एक महीने के बाद आने वाली मेंसेस अगर नही आयी, तो क्या गर्भधारणा हो गई है ऐसा संदेह आता है. 40 या 45 दिन बाद में युरीन प्रेग्नंसी टेस्ट पॉझिटिव्ह आने की संभावना होती है. उसके बाद सोनोग्राफी करके फिटल पोल और एफ एच एस (=फिटल हार्ट साऊंड) इनकी निश्चिती के बाद ही गर्भधारणा हुई है, ऐसा मान सकते है.

तो पहला एक या डेढ महिना तो कोई भी संस्कार करना यह संभव नही है, फिर भी गर्भधारणा हो गई है या होगी हि, "ऐसा मानकर", कुछ संस्कार क्रिया उपचार कर सकते है.


सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की, गर्भ को (गर्भिणी को) जो कुछ भी सुनाया जाता है, पढने के लिए, बताया जाता है ... इनका "कुछ भी उपयोग गर्भ को नही हो सकता है".


यद्यपि हमारे पुराण कथी में अष्टावक्र अभिमन्यू मच्छिंद्रनाथ इन्होने गर्भ मे कुछ सुना ऐसा लिखा गया है, वह केवल उस कथा की या उस व्रत की या उस मंत्र की महत्ता बढाने के लिए लिखी हुई "अर्थवादात्मक" प्रशंसा आख्यायिका दंतकथा है, उसका वास्तविकता से सत्य से सार्थकता से कोई संबंध नही है.


एक अत्यंत सामान्य तर्क ऐसा है, की जो शिशु जन्म के बाद हि, स्वयं का श्वास, स्वयं का नेत्र कान नाक त्वचा रसना... ये सारे इंद्रिय और स्वयं की बुद्धी स्वयं का ब्रेन इनका उपयोग करके , ग्रहण करता है ... देखता है सुनता है ...

तो कम से कम, तीन साडेतीन वर्ष के वय तक, जो भी उसने सुना देखा खाया सूंघा स्पर्श किया ... उसमे से "कुछ भी" उसको उसके आगे के जीवन मे स्मरण मे नही रहता है.


हमारी अपने जीवन की सबसे पुरानी अर्लिएस्ट earliest स्मृति, साडेतीन या चार वर्ष वय के बाद की ही होती है.


अगर जन्म के बाद साडेतीन-चार साल तक जो विषय ग्रहण किया है, वो भी अगर हमे स्मरण मे नही रहता है ... तो जब नेत्र कान नाक जिह्वा ये सभी इंद्रिय, विषय से परे है , दूर है, असंयुक्त है और श्वास ले नही रहा है, ऐसे स्थिती मे ... माता ने सुना हुआ देखा हुआ पढा हुआ, कुछ भी गर्भ पर परिणाम करता होगा ... यह केवल श्रद्धा अंधश्रद्धा कल्पना भोलापन assumption consideration supposition imagination fantasy fad है.


इसलिये गर्भसंस्कार के वर्ग मे जाना / न जाना, यह अपना निर्णय विकल्प ऑप्शन होना चाहिए.


किंतु ... मैं गर्भसंस्कार में जाऊंगी, तो मेरा बच्चा आगे जाकर , अत्यंत सुंदर , अत्यंत बुद्धिमान , अत्यंत बलवान, सुपरमॅन ... इस प्रकार का होगा और मेरी प्रसूति, यह फुल टर्म नॉर्मल डिलिव्हरी विदाऊट सिझेरियन विदाऊट कॉम्प्लिकेशन "होगी हि", इसकी कोई भी निश्चित संभावना नही है.


हां अगर कुछ चेंज व्हरायटी हॅपनिंग एंटरटेनमेंट यह चाहिये तो गर्भिणी ने इसके लिए गर्भसंस्कार वर्ग मे जाना ठीक है.


चरक और सुश्रुत मे देखेंगे तो प्राय: "आहार" का हि उल्लेख मिलता है और साथ मे व्यायाम न करे, प्रवास न करे ; ऐसे कुछ विहारात्मक वर्तनात्मक निषेध लिखे है. 


किंतु औषध का उल्लेख नही है प्रायः !!!


आज कल जो गर्भसंस्कार नाम का दो प्रकार का व्यवहार या व्यापार चलता है , उसमे लाभार्थी भी दो प्रकार के है ...

1. यह गर्भसंस्कार कैसे करना है , ये वैद्यों को हि सिखाया जाता है और 

2. गर्भसंस्कार प्रत्यक्ष लाभार्थी would be mother ऐसे गर्भिणी या उस दांपत्य को किये जाते है , प्रत्यक्ष कराये जाते है, उसको एक "कर्मकांडात्मक = हॅपनिंग कोर्स"का रूप दिया जाता है. इसमे मंत्र योगा "इनका भी" समावेश होता है.


किंतु वस्तुतः, आयुर्वेद का कार्यक्षेत्र औषध, अन्न और विहार "इतना ही" है.


इसमे से गर्भ विकास या गर्भधारणा से प्रसूती तक का संपूर्ण कालावधी , यह कोई व्याधी विकार रोग आजार डिसीज नही है ... Pregnancy is "not a disease", it is a celebration! तो ऐसी स्थिती मे इसमे औषधोपचारों का उतना महत्त्व या आवश्यकता नही है, जितना की इसमे सबसे महत्वपूर्ण है, गर्भिणी ने लेने का "आहार" है, क्योंकि उसी आहार से उस गर्भिणी का तथा विकसित होने वाले गर्भ का पोषण होता है.

आगे चरक और सुश्रुत मे प्रथम मास से नवम मास तक क्या आहार लेने का उपदेश है, यह दिया हुआ है.


मास : चरक & सुश्रुत 

1 शीत दुग्ध & मधुर शीत द्रव आहार

2 मधुर औषध सिद्ध दूध & मधुर शीत द्रव आहार

3 तूप मध दूध & साठे साळीचा भात दुधासह

4 दूध घुसळून काढलेले लोणी & साठे साळीचा भात+दही or दूध लोणी जांगल मांस व आवडते अन्न

5 वरील प्रकारच्या लोण्याचे तूप & साठे साळीचा भात+दूध or दूध घुसळून काढलेले लोणी

6 वरील प्रकारचे तूप मधुर औषधांनी सिद्ध करून & साठे साळीचा भात+तूप or गोक्षुर सिद्ध तूप किंवा यवागू

7 वरील प्रमाणेच & पृथक्पर्ण्यादि सिद्ध तूप

8 तूप घातलेली दुधात तयार यवागू & स्निग्ध यवागू आणि जांगल मांस रस

9 मधुर औषध सिद्ध तेलाचा अनुवासन आणि योनी पिचू


अगर यही👆🏼 आहार लेना आज कल के किसी भी गर्भिणी को संभव है , तो उसका अभिनंदन करना चाहिए और इस प्रकार का आहार लेने का विधान, अपने क्लायंट को कस्टमर को पेशंट को,जो वैद्य सचमुच बताता है, उसका भी धन्यवाद और अभिनंदन करना चाहिए.


चरक और सुश्रुत मे उल्लेखित आहार को देखने के बाद, मुझे नही लगता है, कि इस प्रकार का आहार "आज" कोई वैद्य सजेस्ट करता होगा और सजेस्ट करने के बाद इस प्रकार का आहार सेवन कोई कस्टमर क्लाएंट पेशंट गर्भिणी प्रत्यक्ष रूप मे करती भी होगी!!!


वैद्यने कभी यह भी सोचना चाहिए, की हम जो गर्भसंस्कार के नाम पर "बेच" रहे है , क्या वह सत्य सिद्ध सार्थक स्थिती मे , उस ग्राहक कस्टमर क्लायंट पेशंट गर्भिणी को अपेक्षित लाभदायक परिणाम दे रहा है , "जितना की" वह उसके लिए समय पैसा एनर्जी रिसोर्सेस लगा रही है ?!


*गर्भाशयातील बाळाला रक्तपुरवठा कमी पडत होता असे सोनोग्राफी मध्ये कळाले. ही एक गंभीर बाब आहे. याला Placental Insufficiency असे म्हणतात. ही केस आयुर्वेद उपचारांनी1 महिना7 दिवसांत बरी झाली. सोबत दोन्ही रिपोर्ट जोडले आहेत. पेशन्ट व त्यांचे कुटुंबीय यांनी ठेवलेला संयम व विश्वास याबद्दल त्यांचे आभार.

https://www.facebook.com/share/p/161VpxC2ou/

Placental Insufficiency:*

Placental insufficiency (also called placental dysfunction or uteroplacental vascular insufficiency) is an uncommon but serious complication of pregnancy. It occurs when the placenta does not develop properly, or is damaged. This blood flow disorder is marked by a reduction in the mother's blood supply.

👆🏼

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Disclaimer/अस्वीकरण: लेखक यह नहीं दर्शाता है, कि इस गतिविधि में व्यक्त किए गए विचार हमेशा सही या अचूक होते हैं। चूँकि यह लेख एक व्यक्तिगत राय एवं समझ है, इसलिए संभव है कि इस लेख में कुछ कमियाँ, दोष एवं त्रुटियां हो सकती हैं। भाषा की दृष्टी से, इस लेखके अंत मे मराठी भाषा में लिखा हुआ/ लिखित डिस्क्लेमर ग्राह्य है




डिस्क्लेमर : या उपक्रमात व्यक्त होणारी मतं, ही सर्वथैव योग्य अचूक बरोबर निर्दोष आहेत असे लिहिणाऱ्याचे म्हणणे नाही. हे लेख म्हणजे वैयक्तिक मत आकलन समजूत असल्यामुळे, याच्यामध्ये काही उणीवा कमतरता दोष असणे शक्य आहे, ही संभावना मान्य व स्वीकार करूनच, हे लेख लिहिले जात आहेत.




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