आयुर्वेद फॉर ग्लोबल हेल्थ
आयुर्वेद में निश्चित ही कुछ अंशतक पोटेन्शिअल सामर्थ्य शक्तिस्थान उपलब्ध है, उन्ही वास्तविक शक्तीस्थानो का पोटेन्शिअल का उचित मर्यादा मे रहकर जनसामान्य के कल्याण के लिए उपयोग करना चाहिए. किंतु आयुर्वेद से *"सब कुछ ठीक हो सकता है"* इस भ्रम मे ना स्वयं रहना चाहिए एवं ना हि जनसामान्य को इस भ्रम में डालना चाहिए
जिस शास्त्र को या जिस शास्त्र के अनुयायीयोंको प्रॅक्टिशनर को लोकल हेल्थ संभालना संभव नही है या जिनको अपने स्वयं के घर के सदस्य का हेल्थ संभालना संभव नही है, 99.99% आयुर्वेद के प्रॅक्टिशनर स्वयं और उनके घर के सदस्य भी आयसीयू आयसीसीयू के द्वारा मॉडर्न मेडिसिन लेते लेते हि, अंत काल में , मृत्युसमय में , स्वर्ग सिधारते है, यह सत्यस्थिती होने के बावजूद, वे आयुर्वेद फाॅर ग्लोबल हेल्थ की बात करते है, ये कितना विसंगत है!?
जिस शास्त्र को शरीर रचना के ज्ञान की भयानक मर्यादायें है, शरीर क्रिया (फंक्शन) की ज्ञान के बारे मे प्रचंड अज्ञान है, जिस शास्त्र में शस्त्रक्रिया के लिए anesthesia देना संभव नही है, जिस शास्त्र को किडनी लिव्हर पॅन्क्रियाज लंग हृदय/हार्ट ब्रेन स्पायनल कॉर्ड गर्भाशय ओवरी इनके ना रचना का ज्ञान है, ना हि इनकी क्रिया (फंक्शन) का ज्ञान है, हार्मोन नाम की चीज होती भी है और होती है तो उसका क्या काम होता है, इसका ज्ञान नही है ... जिस शास्त्र के औषधी निर्माण मे अनेकों प्रकार की मर्यादायें है, अज्ञान है, जिसे शास्त्र मे 1300AD के बाद रसशास्त्र नाम के दूसरे हि विषाक्त / विष स्वरूप / विषैले / घातक केमिकल हेवी मेटॅलिक का औषधों(?) का अशास्त्रीय संकर हुआ है, जिस शास्त्र का मूलाधार होने वाली कई वनस्पतीयों का या तो परिचय ही नही है या पर्याप्त मात्रा मे उपलब्ध ही नही है या उस वनस्पती का जो उपयुक्तांग शास्त्र ने प्रयुक्त करने के लिए कहा है, वह उपयुक्त अंग प्रयुक्त होता ही नही है, जिस शास्त्र को ओव्युलेशन क्या है, फर्टिलिटी पिरियड क्या है, गर्भ का विकास निश्चित रूप से कैसे होता है, यही ज्ञात नही है, जिस शास्त्र के अनुयायी उस शास्त्र मे लिखे हुए औषध उस शास्त्र मे लिखी हुई मात्रा मे तथा कालावधी (ड्यूरेशन) मे कभी देते ही नही है, जिस शास्त्र के अनुयायी उस शास्त्र के औषधो को अन्य किसी शास्त्र की औषधों के साथ बिना डोस प्रोपोर्शन का विचार किये ऐसे ही देते है, जिस शास्त्र मे शास्त्रीय बातों को "सोचने" की बजाय, शास्त्र के नाम कर "बेचने, का व्यापार धंदा दुकान व्यवसाय बिजनेस ट्रेड सेल" इसकी प्रवृत्ती सामान्य रूप से अधिकतम है, ऐसे शास्त्र से, ऐसे शास्त्र के अनुयायीयों से, *"ग्लोबल हेल्थ"* इस प्रकार का उच्चारण भी करना आत्यंतिक विसंगत है. जिस शास्त्र को अपने शास्त्र रूप मे होने वाली मर्यादायें ज्ञात नही है , मान्य नही है , स्वीकार्य नही है ... जिस शास्त्र के अनुयायी , extremist उग्रवादीयों की तरह स्काय स्क्रेपर्स की तरह गगनचुंबी tall किंतु अशास्त्रीय unrealistic unscientific असिद्ध क्लेम करते रहते है, अन्य शास्त्रों की कई बाते नामांतर करके अपने शास्त्र के नाम पर समाज मे चलाते रहते है, जो च्यवनप्राश निर्माण होना तथा उसके लिखित परिणाम सार्थक सिद्ध होना कधी भी संभव हि नही है , उसका सर्वाधिक व्यापार करते है , स्वर्ण प्राशन गर्भसंस्कार नाडी ऐसे आत्यंतिक असिद्ध अशास्त्रीय विधियोंका प्रचलन करते है, शिरोधारा के नाम पर पंचकर्म स्नेहन स्वेदन के नाम पर मसाज मालिश स्पा हेल्थ रिसॉर्ट वेलनेस सेंटर जेसे अशास्त्रीय अवैद्यकीय धंदे चलाते है, सौंदर्यशास्त्र के नाम पर केमिकल कॉस्मेटेस्युटीकल्स मे अत्यल्प पर्सेंटेज मे हर्बल प्रॉडक्ट्स मिलाकर उसको आयुर्वेद सौंदर्यशास्त्र के नाम पर बेचते है और ऐसा सारा शास्त्रीय अनैतिक व्यवहार करते हुए जिनको लज्जा शर्म ऐसी भावनाये नही आती है, ऐसे लोगों से ऐसे शास्त्र से *"ग्लोबल हेल्थ "* की अपेक्षा की घोषणा करना अत्यंत हास्यास्पद तथा निंदनीय है.
आयुर्वेद के लोगो ने नैतिक और प्रामाणिक धरातल पर अपनी वास्तविक मर्यादाओं को जान लेना चाहिये पहचान लेना चाहिए सीख लेना चाहिए मान्य करना चाहिए स्वीकार करना चाहिए गगनचुंबी स्काय स्क्रेपिंग tall अवास्तव अशास्त्रीय क्लेम करना बंद करना चाहिए.
आयुर्वेद में निश्चित ही कुछ अंशतक पोटेन्शिअल सामर्थ्य शक्तिस्थान उपलब्ध है, उन्ही वास्तविक शक्तीस्थानो का पोटेन्शिअल का उचित मर्यादा मे रहकर जनसामान्य के कल्याण के लिए उपयोग करना चाहिए.
किंतु आयुर्वेद से *"सब कुछ ठीक हो सकता है"* इस भ्रम मे ना स्वयं रहना चाहिए ना हि जनसामान्य को इस भ्रम में डालना चाहिए और जहां तक हो सके, वहां तक आयुर्वेद शास्त्र के नाम पर अवैज्ञानिक अशास्त्रीय असत्य असिद्ध असंभव इस प्रकार के च्यवनप्राश उबटन अभ्यंग तेल मसाज मालिश showधन शिरोधारा मानस विकार चिकित्सा गर्भसंस्कार मर्म थेरपी नाडी परीक्षा रसकल्प सुवर्णप्राशन सौंदर्यशास्त्र ऐसे "बाजारू मार्केटिंग धंदा व्यापार व्यवसाय दुकान ट्रेड बेचना" ऐसी छोटी क्षुद्र बातों से स्वयं को दूर रखना चाहिए और ऐसे कीचड मे लोगों को भी खींच कर मलीन नही करना चाहिए
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