Wednesday, 26 February 2025

चरकोक्त प्रसिद्ध श्लोक का योग्य अर्थ : ओषधीर्नामरूपाभ्यां जानते ह्यजपा वने । अविपाश्चैव गोपाश्च ये चान्ये वनवासिनः ॥

ओषधीर्नामरूपाभ्यां जानते ह्यजपा वने ।

अविपाश्चैव गोपाश्च ये चान्ये वनवासिनः ॥१२०॥

न नामज्ञानमात्रेण रूपज्ञानेन वा पुनः ।

ओषधीनां परां प्राप्तिं कश्चिद्वेदितुमर्हति ॥१२१॥

यो१गवित्त्वप्यरूपज्ञस्तासां तत्त्वविदुच्यते ।

किं पुनर्यो विजानीयादोषधीः सर्वथा भिषक् ॥१२२॥


उपरोक्त श्लोकों का अर्थ आयुर्वेद के कुछ विद्वान् (?) ऐसा बताते है की, ओषधीयों का ज्ञान चरवाह , गोपालक या अन्य वनवासी लोगो से लेना चाहिए ... किंतु इन श्लोकों का अर्थ ऐसा है "ही" नही.


ओषधीयों को नाम से और रूप से अजपा अविपा अर्थात अजा या अवि का पालन करने वाले अर्थात भेड बकरी मेंढी शिप लॅम्ब का पालन करने वाले (जिसको हम मराठी मे मेंढपाळ धनगर ऐसा भी कहते है), तथा गोपा अर्थात गो = गाय का पालन करने वाले, एवं च, ये च अन्य वनवासिनः अर्थात इन दोनों को छोडकर जो अन्य कोई वन मे जंगल = अरण्य मे रहने वाले लोग है, ये सभी औषधियों को नाम से &/or रूप से जानते है. 

👆🏼

इस श्लोक मे "इनसे जानना चाहिए" ऐसा कही भी नही लिखा है , ना ही अभिप्रेत है.


आगे के श्लोक मे लिखा है की ...

केवल नाम ज्ञान से या रूप ज्ञान से ओषधीयों की उत्तम जानकारी कोई पा नही सकता 


और अंतिम श्लोक मे लिखा है कि ...

जिसे ओषधीयों के योग का ज्ञान है, उसे चाहे ओषधी के रूप का या नाम का या नाम और रूप का ज्ञान नही हो, फिर भी उसे औषधियों का तत्त्ववित् = तत्त्व जानने वाला कहा जाता है 

और फिर अगर कोई ओषधी को नामरूप और गुण इन तीनो से भी जानता हो, तो उसकी तो बात ही क्या है ऐसा गौरवोद्गार चरक ने किया है


ओषधी से जो बनता है वह औषधी! ओष अर्थात तेज वीर्य शक्ती सामर्थ्य बल ओष = उषा, जो प्रत्यक्ष तेज अग्नि सूर्य के पूर्व हमे दिखाई देता है! ऐसे ओष अर्थात तेज या वीर्य या सामर्थ्य का ... धी अर्थात भंडार संचय अधिष्ठान साठा जिसमे है वह ओषधी और इन ओषध से जो कल्प डेरीवेटीव्ह तज्जन्य उत्पादन बनता है , वह औषधी!!!

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