गंधक रसायन
✍🏼 वैद्य हृषीकेश म्हेत्रे
आयुर्वेद क्लिनिक्स @ पुणे & नाशिक
9422016871
अथ गन्धक रसायनम्
शुद्धो बलिर्गोपयसा विभाव्य ततश्चतुर्जातगुडूचिकाभिः ।
पथ्याऽक्षधात्र्यौषधभृङ्गराजैर्भाव्योऽष्टवारं पृथगार्द्रकेण ॥
शुद्धे सितां योजय तुल्यभागां रसायनं गन्धकराजसंज्ञम् ।
कर्षोन्मितं सेवितमेति मर्त्यो वीर्यं च पुष्टिं दृढदेहवह्निम् ॥
यह गंधक रसायन नाम का कल्प ,
योग रत्नाकर नाम के ग्रंथ मे ,
सबसे अंतिम प्रकरण रसायन अधिकार में
सेकंड लास्ट = उपान्त्य कल्प के रूप मे वर्णित है.
किंतु व्यवहार में इसका प्रयोग न जाने किस किस रोग मे करते है??
यह कल्प प्रायः त्वचारोग और व्रण इसमे उपयोग मे देने की प्रथा है
अगर इस कल्प के घटकों का विचार किया जाये तो उसमे मूल घटक केवल एक मात्र है वह है, गंधक !
जिसे शुद्ध करके लेने के लिए कहा है, शुद्ध बली इस शब्द से
इस कल्प मे या इस घटक द्रव्य को भावना हि भावनायें है.
1.
पहली हि भावना गो दुग्ध की है. अगर गंध की शुद्धी हि घृतमे या दुग्धमे होती है, तो फिर से गोदुग्ध की हि भावना देने का प्रयोजन ही क्या है?
2.
अगला प्रश्न यह है कि गो दुग्ध की भावना देने के बाद इसमे जो स्नेह तथा लॅक्टोज/ शर्करा / माधुर्य का समावेश होगा, उससे फंगस निर्माण होगा ... आर्द्रता बनी रहना ... ह्युमिडिटी न जाना ... जलांश का पूर्णतः शोष न होना, यह दोष निर्माण हो सकते है
3.
गो दुग्ध की भावना के पश्चात इसमे चतुर्जात गुडूची त्रिफला शुंठी मार्कव एवं फिरसे आर्द्रक स्वरस की आठ भावनायें ...
मूलश्लोक मे "भाव्यो अष्टवारं" ऐसा शब्द है, तो यह आठ भावना पहले के दुग्ध से लेकर मार्कव तक के सभी द्रव्यों के लिए है
या
आगे आने वाले प्रथम इस एकमात्र आर्द्रक स्वरस के लिये है ,
इसमे मत मतांतर है
4.
चतुर्जात एक सुगंधी द्रव्य है और ये प्रायः अवलेहोंमें प्रक्षेप के रूप मे या चूर्ण कल्प के रूप मे हि प्रयोग हुआ है. इसका क्वाथ बनाने का विधान संहिता मे नही है. तथापि चतुर्जात जैसे सुगंधी द्रव्य के क्वाथ की भावना देने का विधान यहां पर आश्चर्यचकित करने वाला है. इसमे भी केसर जैसे सुगंधी द्रव्य का क्वाथ बनाना समझने से परे है.
आगे गुडूची त्रिफला के बाद औषध अर्थात शुंठी का और अंत मे फिर से आर्द्रक की भावना का उल्लेख है! अभी एक बार शुंठी के भावना दी है तो फिर से आर्द्रक की भावना का क्या अर्थ या प्रयोजन या उपयोग / उद्देश रह जाता है???
आज तो हम भावना देने के लिए मोटोराइज्ड रोटेटर और संतुलित नियंत्रित टेंपरेचर के ड्रायर का प्रयोग करते है ... उस काल में इतनी भावनाये, फंगस लगे बिना कैसे देते होंगे, यह एक संदेह की ही बात है.
5
तो ठीक है, इतनी भावनाये दे भी दी और फिर से मूल घटकद्रव्य गंधक का चूर्ण शुष्क रूप मे पुनः प्राप्त हो भी गया, ऐसा मान के चलते है तो ...
उसमे अब समान मात्रा मे शर्करा को मिलाना है.
😇🤔⁉️
अभी जितने भी लोगो ने सितोपलादि तालीसादि समशर्कर ताप्यादि ऐसे शर्करायुक्त चूर्णकल्प का प्रयोग किया है, उनको ज्ञात है, कि 15 दिन से लेके 3 महिने के कालावधी मे, शर्करा की उपस्थिती के कारण, उस कल्प का संघटन /कन्सिस्टन्सी /परिस्थिती बहुत हि बिगड जाती है ... उनके चाहे टॅबलेट बना लो, उसकी भी स्थिति बदल हो जाती है, तो ऐसे स्थिती मे गंधक जैसे द्रव्य मे इतनी भावनायें देने के बाद ,
जिसमे एक भावना दुग्ध की भी है ,
उसमे अगर इतनी बडी मात्रा मे (50% मात्रा मे) शर्करा संमिश्र करेंगे ,
तो न जाने क्या हाल होगा ??
आज जो गंधक रसायन नाम की टिकडी वटी टॅबलेट बाजार मे मिलती है ,
उसमे न जाने ये किस प्रकार से मॅनेज किया जाता है!? ॲड्जस्ट किया जाता है!?
इसके भावना द्रव्य और अत्यधिक मात्रा मे शर्करा का संयोग , उसके बारे मे आने वाले संदेह और समस्यायें है.
इससे तो अधिक अच्छा यह है कि इसमे से गंधक एवं शर्करा इन दोनों घटकद्रव्यों को छोडकर, निकाल कर, हटाकर,
जो भावना द्रव्य है, उनमें से चतुर्जात को छोडकर, बाकी भावना द्रव्यों को एक साथ मिलाकर , उन भावना द्रव्यों के चूर्ण को, उन्हीं भावना द्रव्यों के क्वाथ की , भावना दे दी जाये, चाहे वो एक तीन पाच सात या जैसे इस कल्प मे कहा है ऐसे आठ भावनाये दी जाये ... और चतुर्जात का प्रक्षेप अंत मे मिलाया जाये , तो यह एक उचित कल्प संयोजन होगा!!!✅️
6.
इसके पश्चात इसका फलश्रुती का अवलोकन करेंगे.
सर्वप्रथम कुष्ठ और कंडु का उल्लेख हुआ है.
जिसमे इतनी बडी मात्रा मे शर्करा हो, ऐसा कल्प कुष्ठ और कंडु को शमन करेगा , यह आत्यंतिक दुष्कर है!
और तो और , गंधक को जितने द्रव्यों की भावना है, उसमे से 90% उष्णवीर्य के है ... अर्थात वे रक्त का प्रसादन नही करेंगे, वे तो रक्त का प्रक्षोभ करेंगे
ऐसे स्थिती मे उससे कंडू कुष्ठ का शमन होगा. यह दुष्कर है
कुष्ठ और कंडु के लिए जो कारणीभूत मूल हेतु है ... वह क्लिन्नता है , आर्द्रता है ... यह मानकर महातिक्तक घृत मे अत्यंत रूक्ष ऐसे आमलकी स्वरस का प्रमाण घृत से भी द्विगुण मात्रा मे आया हुआ है ...
कल्पकी संयोजना इस प्रकार से शास्त्रीय गुण सिद्धांत पर आधारित होती है,
ऐसे स्थिती मे जिस कल्प में इतने उष्णद्रव्य हो, क्लेदकारक दुग्ध हो, आत्यंतिक क्लेदकारक मधुर रसयुक्त शर्करा का प्रमाण फिफ्टी पर्सेंट (50%) हो , उससे कंडु और कुष्ठ का निवारण होगा ...
या व्रण मे रोपण होगा ...
यह शास्त्र से अत्यंत विरुद्ध है.
जो भी इसका प्रयोग हमारे प्रायः अनेक कॉलेजेस की ओपीडी मे होता है या जो भी प्रॅक्टेशनल्स उनके प्रायव्हेट ओपीडी मे इसका उपयोग करते है, कि किसी भी व्रण मे और किसी भी त्वचारोग मे गंधक रसायन लिखा जाता है, यह एक रूढी या भ्रम मात्र है ...
या फिर ... हां, कुछ सल्फर युक्त ड्रग्स स्किन डिसीज में दिये जाते है, इस का आधार लेकर अगर त्वचारोग = कुष्ठ / कंडू इस रूप में इसका प्रयोग होता होगा, तो "इस प्रकार से" उपयोग करने वाले धन्य है. 😇
7.
यह गंधक रसायन नाम का कल्प ,
योग रत्नाकर नाम के ग्रंथ मे ,
सबसे अंतिम प्रकरण रसायन अधिकार मे सेकंड लास्ट = उपान्त्य कल्प के रूप मे वर्णित है.
और व्यावहारिक प्रयोग न जाने किस किस रोग मे करते है??
8.
अतिसार ग्रहणी ज्वर मेह और वातव्याधी ऐसे सभी अलग अलग दोषों से जनित होने वाले विविध रोग, एकही कल्प नष्ट करता है,
यह एक शास्त्रीय विसंगती है
9.
प्रजाकर सोमरोग मुष्कवृद्धी ऐसे स्त्री और पुरुष दोनों के प्रजनन संस्था से संबंधित रोग एकही कल्प ठीक कर सकता है ,
यह भी शास्त्रीय दृष्ट्या अत्यंत विलक्षण है
10.
और इस श्लोक मे ,
अगर इस कल्प का 6 मास तक भक्षण किया जाय तो ये अत्यंत कृष्ण केशकारी है , ऐसी फलश्रुती लिखी है और जिसकी मात्रा एक कर्ष अर्थात दस ग्राम है ...
क्या पूरे भारत वर्ष मे, पिछले 100 या 1000 वर्षों मे भी, आजतक किसी को, एकमात्र गंधक रसायन कल्प का 1 कर्ष इतनी मात्रा मे, उपयोग करके, 6 मास इतने कालावधी मे, इस "अत्यंत कृष्ण केशकारी" फलश्रुती की अनुभव/सार्थकता/प्रचिती आयी भी है???
11.
गंधक रसायन का मूल सेवन प्रमाण एक कर्ष अर्थात दस ग्रॅम है !!!
क्या पूरे भारत वर्ष मे, आज तक, किसी ने दस ग्राम इतनी मात्रा मे, गंधक रसायन का प्रयोग, एक भी पेशंट मे , एक बार भी करके देखा भी है, कभी किसी ने??!! 🤔⁉️
12.
इसके बाद तो अत्यंत चमत्कारी और अशक्य प्राय फलश्रुती लिखी है, की मृत सदृश नरों को भी दीर्घ आयुष्य को प्राप्ति करवाता है, देवों के जैसी कांती इससे प्राप्त होती है
और इस गंधक रसायन के प्रयोग के बाद,
सुवर्ण युक्त पारद "भस्म" देना है 😇🙃🧐🤔
और सभी को पता है की "पारद भस्म" नाम की चीज है, वह तो आश्रयासिद्ध आकाश पुष्प गगनारविंद, पुरुष शरीर मे गर्भाशय, इस तरह से "अशक्य असंभव एक कल्पनारम्य इमॅजिनरी मात्र" है ... तो कुछ भी लिखो ... क्या फरक पडता है !?!?
जो होना ही नही है, उसके लिए क्या ... कुछ भी फलश्रुती लिखेंगे, तो क्या फरक पडता है??? बंधी मुठ्ठी लाख की , खुली तो प्यारे खाक की!! (याला मराठीत, झाकली मूठ सव्वा लाखाची ... असं म्हणतात)
13.
इसके पश्चात, अंतिम परिच्छेद मे, अंतिम श्लोक समूह मे, फल श्रुती मे फिरसे पहले ही उल्लेख के हुए लाभों का या रोगों का पुनरुचार किया गया है!!!
इतने डायव्हर्स/विभिन्न रोगों में, इस प्रकार का एक हि कल्प उपशम देता होगा, यह विश्वास करने योग्य नही है, ये केवल लिखने की, कहने सुनने की बात है, वाग्वस्तुमात्र है, ये अर्थवादात्मक प्रशंसा है ... इसका वास्तविक धरातल से कोई संबंध नही है.
14.
तो सारांश के रूप में ...
पहली बात ये ध्यान मे रखनी होगी कि,
1. इसका अधिकार रसायन है
2. दूसरा ... इसमे दुग्ध की भावना है
3. तीसरा ... इसमे शर्करा का प्रमाण अत्याधिक है
4. चौथा ... यह गंधक जैसा अत्यंत उष्णवीर्य मुख्य घटक है
6. पाचवा ... इसमे भावना द्रव्य के बहुतांश द्रव्य यह उष्णवीर्य के है !!!
इसलिये ...
यह व्रण या कुष्ठ त्वचारोग इसमे "उपयोग न करने का" कल्प है ...
केवल रूढी परंपरा लोकप्रियता इसके आधार पर अंधानुकरण ना करे
कुछ नया सोचे , जो शास्त्र मे लिखा है ... संहिता मे लिखा है ... रोगाधिकार मे लिखा है ... जो दोष रस गुण महाभूत इनके वैपरीत्य पर / सिद्धांत पर कार्य करता है ...
ऐसे सुसंगत द्रव्यों का / कल्पोंका अपने प्रॅक्टिस मे चयन/उपयोजन करे ...
बहुत सारे लोग करते है, गुरुजी करते है, ये करता है, वो करता है ... इसलिये किसी का गतानुगतिक रूप से अंधानुगमन ना करे
अपने स्वयं की बुद्धि से चिंतन आकलन निर्णय और आचरण करने का प्रयास करे ✅️
सत्यम वच्मि ॥ ऋतं वच्मि ॥
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