Tuesday, 5 November 2024

ग्रे की जयंती, गायटन की पुण्यतिथी, हचीसन डेव्हिडसन के जन्मशताब्दी, हरीसन को श्रद्धांजली

 ग्रे की जयंती, गायटन की पुण्यतिथी, हचीसन डेव्हिडसन के जन्मशताब्दी, हरीसन को श्रद्धांजली

जब आप किसी क्षेत्र में कार्य कर रहे होते है, तब आपके सहकर्मियों का व्यवहार भी आपने देखना चाहिए. क्यूकी आपके सहकर्मी अर्थात उसीक्षेत्र में आपके जैसा कार्य करने वाले अन्य व्यक्ती संस्था समूह सिस्टीम ये आपके स्पर्धक competitor होते है. इसलिये ये क्या "कर रहे" है? ये क्या "नही कर रहे" है? इसके अनुसार आपको भी आपका व्यवहार उचित दिशा मे बदलना पडता है. 


जब आप किसी क्षेत्र में अकेले ही सेवादाता (सोल सर्विस प्रोव्हायडर) होते हो अर्थात आपकी मोनोपाॅली होती है, तब आपको इस प्रकार का अपने व्यवहार का निर्धारण आपके स्पर्धकों के व्यवहार के अनुसार बदलने की आवश्यकता नही होती है! 


आज से 150-200 साल पहले भारतीय समाज की आरोग्य व्यवस्था केवल आयुर्वेद के ही अधिकार में थी. तब आयुर्वेद शास्त्र का समाज के प्रति व्यवहार क्या है, इस पर प्रश्न उठाने वाला उसको व्हेरिफाय करने वाला व्हॅलिडेट करने वाला कोई नही था. 


लेकिन आज के काल मे जब 95% से ज्यादा लोग आयुर्वेद की आरोग्य व्यवस्था के बजाय, मॉडर्न मेडिसिन की आरोग्य व्यवस्था पर अवलंबित है, ऐसी स्थिती मे, आयुर्वेदिक चिकित्सा जगत ने ही अपने व्यवहार का उचित रूप मे दिशा परिवर्तन करने के लिए, अपना जो बलवान स्पर्धक है, उस मॉडर्न मेडिसिन के डॉक्टर्स का तथा स्वयं मॉडर्न मेडिसिन इस सिस्टीम का व्यवहार किस प्रकार का है, वो किस प्रकार से व्यवहार "करते है" और किस प्रकार का व्यवहार "टालते है", इसकी तरफ ध्यान देना आवश्यक हो जाता है.


अगर हम ऐसा नही करेंगे, तो यह अव्यवहार या असमंजसता या मूर्खता सिद्ध होगी.


क्या मॉडर्न मेडिसिन के लोगो ने कभी ग्रे की जयंती, गायटन की पुण्यतिथी, हचीसन डेव्हिडसन के जन्मशताब्दी, हरीसन को श्रद्धांजली ... ऐसे कार्यक्रम पूरे विश्व मे कही पर भी आयोजित करते हुए देखा है!? 


हर वर्ष की बात छोड दो , किंतु किसी की सेंटेनरी बर्थडे अर्थात जन्मशताब्दी या 100 वी स्मृतिदिन = पुण्यतिथी यह भी कभी मनाई हुई, पूरे विश्व मे दिखाई नही देती है.


तो क्या ऐसी जयंती पुण्यतिथी शताब्दी न मनाने से, मॉडर्न मेडिसिन के यश में, उनके शास्त्रीय व्यवहार में उनके सामाजिक स्वीकारता में कुछ हानी हुई है ?


अगर ऐसा नही है ... तो हम आयुर्वेद के लोग इस प्रकार के अशास्त्रीय भावनिक व्यवहारों में अपना समय एनर्जी रिसोर्सेस और पैसा क्यू व्यर्थ बर्बाद करते रहते है?? 


क्या इससे आयुर्वेद समाज को आयुर्वेद शास्त्र को या संपूर्ण सामान्य पेशंट वर्ग को कोई लाभ होता है!? 


हमारे स्पर्धकों का व्यवहार देखकर , जैसे हमने हमे क्या करना चाहिए , ये सीखना चाहिए ... उसी के साथ, हमने क्या "नही करना" चाहिए, यह भी सीखना चाहिए.

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