"इस बारे" में ना सुनो, क्या कहते है चरक!
इस "नयी पहल" से हो सकता है, बहुत बडा फरक!!
अथ खलु त्रीणि द्रव्याणि नात्युपयुञ्जीताधिकमन्येभ्यो द्रव्येभ्यः; तद्यथा- पिप्पली, क्षारः, लवणमिति ॥
दो तीन दिन पहले क्षार अम्ल लवण, सॉल्ट बेस ॲसिड इस विषय पर एक प्रश्न पूछने वाली पोस्ट भेजी थी. नित्य अनुभव के अनुसार कई ग्रुप्स मे भेजने के बावजूद , इस पर एक भी प्रतिसाद नही आया. वह तो अपेक्षित ही था , उसमे कुछ विशेष नही है.
पूछने का कारण यह था की या क्षार को कुछ क्षण के लिए लवण कह लिजिए, तो लवण को हमारे शास्त्र मे पंचविध कषाय कल्पना की योनी से अलग रखा है.
लवणरसं वर्जयित्वा मधुरादयो रसाः कषायसञ्ज्ञया व्यवह्रियन्ते
लवण छोडकर बाकी पाच रस इन को कषाय योनियां माना गया है.
कषाययोनयः पञ्च रसा लवणवर्जिताः।
क्यूंकि बाकी पाच रसों के द्रव्य का स्वरस कल्क फाण्ट हिम क्वाथ यह बनता है. यह बात अलग है कि, आज के प्रॅक्टिस में स्वरस फाण्ट और हिम इनका, कुछ भी स्थान बाकी नही है. संहितोक्त सारी चिकित्सा चूर्ण एवं क्वाथ पर हि आधारित है. और क्वाथ से ही स्नेह लेह आसव यह संयुक्त कल्पनायें बनती है. किंतु , क्वाथ का शेल्फ लाइफ = सवीर्यता अवधी अत्यंत कम होने के कारण, क्वाथ का भी प्रचलन उतना नही है. सिद्धांतिक तौर पर संहितोक्त चिकित्सा यद्यपि क्वाथ प्रधान है, तथापि क्वाथ बनाने के लिए भी , सर्वप्रथम चूर्ण की ही आवश्यकता होती है. इसलिये व्यवहारतः देखा जाये तो चूर्ण स्वरूप औषध का ही अधिकतम प्रचलन है. या चूर्ण से बनने वाली गुटी वटी टॅबलेट कॅप्सूल का ही प्रचलन अधिक है.
तो लवण का चूर्ण तो बनता ही है या लवण चूर्ण स्वरूपही होता है. इस कारण से, अगर हमारे शास्त्र मे लवण रस की या लवण संयुक्त द्रव्य की महत्ता समझी जाती, जानी जाती, मानी जाती और उचित रूप से उपयोग मे लायी जाती ... तो आज आयुर्वेदीय भैषज्य कल्पना शिखर पर होती!!!
मॉडर्न मेडिसिन मे देखा जाये तो फिफ्टी पर्सेंट से अधिक (>50%) ड्रग यह लवण स्वरूप सॉल्ट स्वरूप होते है
लवण होने के कारण सॉल्ट होने के कारण, जल मे अत्यंत आसानी से विलयनशील होते है और विलयनशील होने के कारण इसका सीधा रक्त मे प्रवेश और संपूर्ण शरीर मे वितरण प्रसरण व्यापकता अनायास संभव होती है.
यह aqueous एक्स्ट्रॅक्ट न होने के कारण उसका प्रिझर्वेशन भी आसानी से होता है और आज के रेफ्रिजरेटर या कोल्ड स्टोरेज कारण लिक्विड स्थिती मे भी लवण का जो द्रावण सोल्युशन रूप मे होता है, उसका भी प्रिझर्वेशन संभव होता है.
तो यद्यपि संहिता मे लवण को कषाय कल्पना की योनी नही माना है, तथापि आज के मॉडर्न मेडिसिन के 50% से अधिक ड्रग यदि सॉल्ट है लवण है, तो हमने भी यह प्रयास करना चाहिए की, हमारी औषधों को हम लवणस्वरूप मे सॉल्ट स्वरूप मे बना सके, निर्माण कर सके. एक नयी कल्पना का इसमे समावेश अंतर्भाव introduce कर सके या लवण वैसे भी चूर्ण इस मूल भैषज्य कल्पना में ही अंतर्भूत होता है. तो कोई यह शास्त्रबाह्य भैषज्य कल्पना नही होगी. अभी तो जैसे सभी संयुक्त भैषज्य कल्पनाओं का आधार क्वाथ है और क्वाथ का भी मूलाधार चूर्ण है ... वैसे तो सभी भैषज्य कल्पनाओंका मूलाधार चूर्णही होता है और लवण भी चूर्ण स्वरूप मे ही प्राप्त होता है. इस तरह से अत्यंत शास्त्र सुसंगत इस प्रकार की ये लवण कल्पना हमारे शास्त्र के मूल स्वरूप के औषधों को अधिक तीव्र गति से और अधिक परिणामकारक फलदायी रूप मे सिद्ध होगी. वैसे भी साक्षात लवण को सूक्ष्म बंधविध्मापन व्यवायी कहा गया है.
यद्यपी चरकने पिप्पली, क्षार और लवण इनका अत्यधिक प्रयोग नही करना चाहिए, ऐसे चरक विमान 1 मे कहा है , तथापि उसने स्वयं पिपली का प्रयोग बहुत तर मात्र मे पूरी संहिता में यत्रतत्र, तथा सभी अवलेहोंमे और रसायन अधिकार में किया ही है.
क्षार और लवण का यद्यपि आहार के रूप मे अत्यधिक प्रयोग नही करना चाहिए, किंतु क्षार और लवण या सॉल्ट इसकी सूक्ष्म व्यवायी शीघ्र परिणामकारकता अल्पमात्रोपयोगिता, ये सभी शक्तिस्थान देखकर इनका औषध मे तो उचित मात्रा मे प्रयोग करना हि चाहिए.
और वैसे भी अनेको लवण कल्प संहिता मे यत्र तत्र दिखाई देते है जैसे की कल्याणक लवण
औषध चतुष्कके प्रथम अध्याय मे विशिष्ट औषधों का निर्देश करते हुए लवणवर्ग का सविस्तर उल्लेख और वर्णन चरक सूत्र 1 मे प्राप्त होता ही है
कुष्ठ चिकित्सा में *"क्षारतंत्र विदां बलम्"* इस प्रकार का उल्लेख है. इसका अर्थ, इस प्रकार का कोई वैशिष्ट्यपूर्ण औषधी विधान, संभवतः उस समय मे प्रचलित भी था.
सुश्रुत मे भी अनेको रोगों के लिए आभ्यंतर प्रयोग के लिये पानीय क्षार का विधान उपलब्ध होता है
सुश्रुत के वातव्याधी चिकित्सामे अनेक क्षार और लवणोंका उल्लेख प्राप्त होता है
मदात्यय चिकित्सा मे अम्ल के विपरीत क्षार का, चरक मे उल्लेख है और यही श्लोक सुप्रसिद्ध पांचभौतिक चिकित्सा का मूल प्रेरणा आधार है
चरक स्वयं ही कहते है की
उत्पद्येत हि साऽवस्था देशकालबलं प्रति ।
यस्यां कार्यमकार्यं स्यात् कर्म कार्यं च वर्जितम् ॥
अर्थात ऐसा काल आ सकता है, जहाँ करने योग्य कही हुई बात, न करने की अवस्था हो और न करने के लिए कही हुई बात, करने की स्थिति उत्पन्न हो जाये
लवणयुक्त स्नेह को भी संहिताकारों ने सूक्ष्म और व्यवायि कहा है.
अगर हम देखेंगे की, मॉडर्न मेडिसिन के सॉल्ट स्वरूप मे आने वाले सभी औषध का डोस = मात्रा अत्यंत कम होती है, फिर भी उनका परिणाम शीघ्र और बहु कर्मकारी होता है.
चरकने स्वयं ही कहा है की शास्त्र का निर्देश चाहे कुछ भी हो, हमने अपने बुद्धी के अनुसार उचित निर्णय लेना चाहिये ... उस उस उसकाल के अवस्था के सुसंगती के अनुसार!!!
न चैकान्तेन निर्दिष्टेऽप्यर्थेऽभिनिविशेद्बुधः ।
स्वयमप्यत्र वैद्येन तर्क्यं बुद्धिमता भवेत्
तस्मात् सत्यपि निर्देशे कुर्यादूह्य स्वयं धिया ।
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