संहिताकार एवं टीकाकारों के जयंती स्मृतिदिन पुण्यतिथी जन्मस्थल देहत्यागस्थल , इनका संहिता और टीकाओं में स्पष्ट संदर्भ
अभी इसी बात का दुसरा पहलू यह भी है की चलो छोड दीजिए की हमारा स्पर्धक हमारा समकालीन सहकर्मी हमारा कॉम्पिटिटर क्या कर रहा है, क्या नही कर रहा है, हम नही देखना चाहते ...
क्यूकी मॉडर्न मेडिसिन का औषध का सिद्धांत तथा वितरण (= प्रिन्सिपल्स & प्रॅक्टिस) यह आयुर्वेद से बहुत ही भिन्न = विलक्षण है ...!
किंतु यदि हम हमारा हि इतिहास देखेंगे, तो "प्रायः सभी" संहिताकारों ने एवं टीकाकारों ने प्रतिसंस्कर्ताओं ने , अपना संक्षिप्त या विस्तृत परिचय दिया है!
उन्होंने कभी अपने स्थान का या राजा का या पिता का या बडे भाई का या आराध्य देवताओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है
किंतु, क्या किसी संहिता मे या किसी संहिता के किसी टीकाकार ने, आज तक कभी यह रेफरन्स दिया है, यह संदर्भ दिया है, यह कथन किया है, कि हमने धन्वंतरी की , चरक की , सुश्रुत की , वाग्भट की जयंती / पुण्यतिथी / जन्मशताब्दी ... अमुक "तिथी" पर अमुक "मास" मे मनानी चाहिए या अमुक "स्थान" पर चरकने, सुश्रुतने, वाग्भट ने, धन्वंतरीने, जन्म लिया था या देह त्याग किया था ... जहां पर जाकर हमने उस मंगल पवित्र दिन पर या उस मंगल पवित्र स्थल पर अध्ययन करना चाहिए !!!
आज हमे अमुक स्थान पर या अमुक दिन पर अमुक व्यक्ती की जयंती या देहत्याग हुआ था ... "यह नये से" पता चल रहा है ... किंतु क्या हम यह मान्य करेंगे की, हमारी तुलना मे, हमसे पहले जो 100 150 300 500 1000 वर्ष पूर्व, भूतकाल मे टीकाकार एवं संहिताकार थे , उनको इस प्रकार की तिथी और स्थल के बारे मे "अधिक निश्चित जानकारी" होगी , की कहां पर चरक सुश्रुत वाग्भट धन्वंतरि पुनर्वसु आत्रेय अग्निवेश इनका जन्मस्थल देहत्यागस्थल और कौन से दिन पर जन्म या मृत्यु हुआ होगा ... और ऐसी शक्यता होने पर भी , कही पर भी , एक भी संदर्भ , किसी भी संहिता मे किसी भी प्राचीन या अर्वाचीन टीकामे नही मिलता है, की अमुक एक संहिताकार या अमुक एक टीकाकार का जन्म या मृत्यु का तिथी या स्थल यह है या यह था , ऐसा संदर्भ हमारे संहिता और टीका मे कही पर भी नही है ...
तो इसका यह स्पष्ट अर्थ होता है कि, इस प्रकार के भावनिक समारंभों का हमारे शास्त्र मे कोई उपयोग आवश्यकता उद्देश प्रयोजन संकेत रीती रूढी परंपरा है ही नही ...
तो इस प्रकार की अगर रुढी रीती परंपरा हमारे संहिताकारों ने टीकाकारों ने उनके ग्रंथो मे कही पर भी नही लिखी है ,
तो हम क्यू ऐसे अशास्त्रीय अबौद्धिक रुढी संकेतों को "नये से" स्थापित करने का निरुद्देश निष्प्रयोजन, प्रारंभ या प्रयास कर रहे है?!
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