Saturday, 16 November 2024

चतुर्विधा भजन्ते जना आयुर्वेदम् = 1.आर्तो/भक्तो 2.जिज्ञासुः 3.अर्थार्थी 4.ज्ञानी च

चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन।

आर्तो/भक्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च

यह श्रीमद् भगवद्गीता का प्रसिद्ध श्लोक बहुत लोगों को ज्ञात होता है ... 

इसमे आयुर्वेद की दृष्टी से देखा जाये तो आयुर्वेद मे भी यही चार प्रकार दिखाई देते है

1. 

आर्त या भक्त !!

इसमे जिन्होंने अभी अभी BAMS में ॲडमिशन लिया है, या जिनकी प्रॅक्टिस नही है, या नयी नयी है, ऐसे "आर्त" अर्थात परिस्थिती से पीडित या आयुर्वेद शास्त्र की महत्ता का "ओव्हर एस्टिमेशन" किसी से सुनने के कारण जो "भक्त" बने है, ऐसे लोग होते है, जिन्हें आयुर्वेद के प्रति अत्यंत प्रेम होता है, किंतु ज्ञान उतना नही होता है. 

इसलिये आयुर्वेद की प्रति वे श्रद्धालु "भक्त" की तरह जैसे भी, जहां भी, संभव हो सके, वैसे उसकी सेवा करते रहते है और ये "अत्यंत उग्रवादी कट्टर तीक्ष्ण" इस प्रकार के होते है. इनको आयुर्वेद के बारे मे या उनके साहित्य संहिता सिद्धांत तथा आयुर्वेद के समकालीन या पूर्वकालीन तथाकथित गुरु ग्रंथकार लेखक इनके बारे मे कुछ भी "प्रश्न या आक्षेप" पूछा जाये, तो ये अत्यंत क्रोधित हो जाते है और ये वैयक्तिक निंदा दूषण या कलह पर उतर आते है". 

इनको वस्तुतः शास्त्र के संदर्भ मतमतांतर तर्क ऊहापोह इसका वास्तविक धरातल पर, इसका प्रत्यक्ष मे उपयोग, इसके बारे मे कोई विशेष जानकारी नही होती है, किन्तु इनकी निष्ठा या इनकी भक्ती इतनी दृढ या "स्त्यान" होती है , कि ये लोग आयुर्वेद के विषय मे किसी भी प्रकार की "स्क्रुटीनी व्हॅलिडेशन व्हेरिफिकेशन" इस प्रकार की मांग करने वाले या "शंका प्रश्न संदेह आक्षेप" ऐसा पूछने वाले पर "टूट पडते है"... मानो उन्हें ऐसा लगता है कि, प्रश्न पूछने वालों ने इनकी "दोनो किडनीयां मांग ली है."


ये आयुर्वेद के भक्त होने के कारण और आत्यंतिक प्राथमिक स्तर पर इनका आयुर्वेद का ज्ञान होने के कारण, "आर्त = झट से वेदनाग्रस्त अर्थात हर्ट hurt हो जाते है, इनकी भावनायें तुरंत आहत हो जाती है और ये बिलबिला जाते है और ये दूसरों पर शाब्दिक शस्त्र चलाते है". इन्हे तर्क या संदर्भ के आधार पर कोई वाद संवाद प्रत्युत्तर करना तो आता नही, इसलिये सीधा "वैयक्तिक निंदा दूषण कलह" पर उतर आते है 


2.

जिज्ञासू !!

दूसरे ... जिज्ञासू प्रकार के लोग होते है.

ये जहां से मिले वहां से आयुर्वेद के "नाम पर" चलने वाली , "हर चीज" सीखने के लिए उमड पडते हे , दौड पडते है , जी जान लगाते है , पैसा समय रिसोर्स एनर्जी बरबाद करते रहते है ... जहां पर भी वेबिनार सेमिनार लेक्चर फ्री मे हो , पैसा दे कर हो, रजिस्ट्रेशन करके हो, बिना रजिस्ट्रेशन का हो , ये वहां पर लाईन मे लग जाते है, भीड मे घुस जाते है ... उन्हे लगता है की आयुर्वेद का "तिलक लगाने से" वहां पढायी(?) / "बतायी" जाने वाली हर चीज आयुर्वेद हि है. 😇 


ये अत्यंत अंधश्रद्ध लोग होते है और ये "आर्त / भक्त के प्रथम स्तर से थोडा ऊपर" होते है, क्योंकि ये केवल भावना से भरे हुए न होकर, ये कुछ हद तक, कुछ मर्यादा तक, थोडा बहुत प्रयत्न करनेवाले होते है, कृती करने वाले होते है ... किन्तु इनकी "दिशा प्रायः भ्रमित या अनुचित या गलत" होती है !!!


3. 

अर्थार्थी !!!

तीसरे प्रकार के आयुर्वेद के लोग होते हे ... अर्थार्थी !!!

अर्थात इनको "आयुर्वेद शास्त्र से कुछ भी लेना देना नही होता है", किंतु आयुर्वेद का "लेबल लगाकर" जो भी कुछ "बेच सकते" है, ये हर चीज "बेचने" पर आमादा होते है. इन्हें आयुर्वेद शास्त्र से, उसकी सत्यापना से, उसकी प्रगती से, उसकी नैतिकता से, कोई संबंध नही होता है ... किंतु आयुर्वेद का "टायटल लेबल चिपका कर" कोई भी चीज "बेचना" इन के लिए "योग्य , उपयोगी & फायदेमंद" होता है, इसलिये आयुर्वेद के "नाम पर" च्यवनप्राश उबटन अभ्यंग तेल दिवाली किट मेकप किट रबर कॅथेटर स्टीमबाॅक्स शिरोधारा यंत्र स्पा ट्रीटमेंट मालिश मसाज रिसॉर्ट हेल्थ टुरिझम ॲकॅडमिक टुरिझम सेमिनार वेबिनार ऑनलाईन कोर्स सुवर्णप्राशन काॅस्मेटिक्स गर्भसंस्कार किसी भी रोग की अवयव की सिस्टम की स्वयंघोषित सुपर स्पेशालिटी नाडी रसशास्त्र योग मंत्र वर्म मर्म मुद्रा जिव्हा थेरपी आसन प्राणायाम विविध प्रकार के स्वनिर्मित किट... ऐसा जो चाहे , जो मन मे आये , ऐसा कुछ भी ... "यू नेम इट, दे हॅव इट" ... इस तरह से ये "बेचते" रहते है, क्योंकि इनका नाम ही "अर्थार्थी" है. 


इनको आयुर्वेद के "नाम पर पैसा बनाना है" , इसलिये ये ऑन पेपर स्टुडन्ट "बेचते" है, ऑन पेपर लेक्चरर प्रोफेसर रीडर "बेचते" है, ऑन पेपर एमडी "बेचते" है, ऑन पेपर पीजी, ऑन पेपर थिसिस "बेचते" है, ऑन पेपर कॉलेज "बेचते" है ... हो सके तो ये लोग ऑन पेपर पूरी यूनिवर्सिटी भी "बेच" डालेंगे !!!


तो अर्थकारण के लिए पैसा मार्केट बाजार धंदा दुकान व्यवसाय ट्रेडिंग सेल, ऐसे बनियागिरी करने के लिए, "किसी भी चीज को" ये आयुर्वेद के "नाम पर" आराम से , आसानी से , बडी मात्रा मे, देश मे , परदेश मे, विदेश मे ... हो सके तो चांद पर भी "बेच" पायेंगे !!!


4. 

ज्ञानी !!!

और सबसे अंत मे होते है ... ज्ञानी !!! 

जिनको आयुर्वेद का वास्तविक ज्ञान = आयुर्वेद के शक्तिस्थान तथा आयुर्वेद की मर्यादा ... उसका भी वास्तविक ज्ञान होता है !!! 


ये लोग सत्यवचनी कटुवचनी प्रामाणिक नीतिमत्तापूर्ण होते है.


ऐसे लोग आयुर्वेद मे प्रायः दुर्लभ होते है और अगर होते है तो ये शांत होते है, अगर वे शांत नही होते है, तो उनको डरा धमका कर या अपमानित करके, निंदा करके शांत कराया जाता है! 


अगर ये ज्ञानी लोक कुछ बोलते है, तो ये प्रायः बहुसंख्य आयुर्वेद के लाभार्थियों के शत्रू होते है, अप्रिय होते है !!!

इन्हे प्रायः निंदा का भागी बनना पडता है.

इन्हें सोशल मीडिया पर बहिष्कृत किया जाता है, 

इन्हें ग्रुप पर गालिया दी जाती है, इन्हे ग्रुप से निकाल दिया जाता है ... ऐसे इनको आयसोलेट किया जाता है!!!


किन्तु, यही लोग है की जो सत्य मे शास्त्र के प्रति वास्तविक ज्ञान अपने पास संजोये हुए रहते है.

ये कभी भी अनैतिक अवास्तव असिद्ध असत्य टाॅल क्लेम नही करते है. 


इन्हे आयुर्वेद के पोटेन्शिअल का शक्तिस्थान का योग्य स्वरूप मे ज्ञान होता है और साथ ही आयुर्वेद की मर्यादा का आयुर्वेद के लिमिटेशन्स का भी ज्ञान और मान्यता = स्वीकार दोनो होता है.


इस तरह से श्रीमद्भगवद्गीता मे श्री भगवान् श्रीकृष्ण ने जो चार प्रकार के लोग बताये है, ठीक ... वैसे के वैसे, आयुर्वेद मे भी ... 

1.

आर्त, तडपने वाले तडपाने वाले ! अर्थात भक्त ! प्रायः अंधभक्त

2.

अर्थार्थी = पैसा बनाने वाले !!

3.

जिज्ञासू अर्थात क्या है, सत्य है या नहीं, इसकी परीक्षा किये बिना हि ... सीखने वाले पढने वाले भोला बनने वाले शिष्य बनने वाले अनुयायी बननेवाले भेड बकरीयों की तरह एक दूसरे के पीछे बिना सोचे समझे लाईन मे चलने वाले भीड बढाने वाले ...

4.

और अंत में अत्यंत दुर्लभ स्तर पर, अत्यंत दुर्लभ मात्रा में, किंतु आयुर्वेद के अन्य लाभार्थीयों के लिए प्रतिकूल शत्रू स्वरूप अप्रिय ऐसे कुछ "ज्ञानी लोग भी" इस शास्त्र मे होते है !!!


श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

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