Degenerative bone disease & Rasona/Lashuna Granules
प्रभंजनं जयति लशुनः 🧄🧄
"प्रभंजनं जयति लशुनः” का अर्थ है , जो भंजन करने मे प्रकर्षेण = अतिशय समर्थ है = अस्थियों का डीजनरेशन Degenerative bone जिसके कारण अत्यधिक गति से होता है, शीघ्र गति से, अल्पकाल मे होता है … क्योंकि अस्थि और वात का आश्रयाश्रयी भाव संबंध = परस्पर विरोधी है! वात बढेगा, तो अस्थी घटेगा!!
इसमें लशुन क्षीरपाक Granules ग्रॅन्युल्स दिया जाये तो अधिक कार्मुक होता है
लशुन भग्नसंधानकारी केश्य और बल्य है अर्थात यह अस्थिधातुगामी और बलदायक है
लशुनो भृशतीक्ष्णोष्णः कटुपाकरसः सरः॥
हृद्यः केश्यो गुरुर्वृष्यः स्निग्धो रोचनदीपनः।
भग्नसन्धानकृद्बल्यो
मेरे स्वयं के अनुभव के अनुसार 3000 से भी अधिक रुग्णों मे वेदनाशमन के लिए अत्यंत शीघ्र, अल्पकाल मे लाभदायक परिणामकारक सिद्ध हुआ है
Degenerative bone disease, most commonly osteoarthritis, is a chronic condition where the protective cartilage in joints breaks down over time, leading to bone-on-bone friction, pain, and stiffness. While it can affect any joint, it frequently impacts the hands, knees, hips, and spine. Symptoms include grinding or creaking, instability, and muscle weakness.
गृध्रसी = सायटिका का भी मुख्य कारण नर्व्ह कॉम्प्रेशन है
नर्व्ह कॉम्प्रेशन का मुख्य कारण vertebrae/ disc Degeneration जिसे अस्थि तरुणास्थि क्षय के रूप मे समझ सकते है
और ऐसे डीजनरेटेड अस्थि को भग्नाधिकार के औषधों से अपुनर्भवरूप मे ठीक किया जा सकता है , जो पेशंट हमने आज से 10 15 20 22 साल पहले किये ठीक है, वे आज भी अपने पैरो पर खडे है & वेदना मुक्त स्थिती मे कार्यरत है, वो भी बिना किसी ऑपरेशन सर्जरी के, बिना बेल्ट लगाये, बिना कॉलर लगाये, बिना knee cap / knee brace के
नर्व्ह कॉम्प्रेशन का कारण डिस्क डीजनरेशन है जिसे अस्थि क्षय व भग्नाधिकार के अनुसार विशेष रूप मे तरुणास्थी अधिष्ठान मानकर समजा जा सकता है इसके लिये दो मुख्य औषध है
*लशुन क्षीरपाक (Granules) & यष्टी लाक्षा*
इसके साथ हि चरकसूत्र २८ और वाग्भट सूत्र 11 मे आये हुये तिक्त रस द्रव्य = यष्टी गुडूची ग्रॅन्युल्स Granules or पंचतिक्त ग्रॅन्युल्स Granules के रूप मे दिये जाये तो सहाय्यक उपयोगी होता है, किंतु यह दीर्घकाल देना आवश्यक होता है, जो डीजनरेशन की परिस्थिती, पेशंट का वय /अवस्था , उसके एडिक्शन , उसके व्यवसाय उसके आहार इन सभी पर निर्भर होता है
जो प्रेझेंटिंग कंप्लेंट, अत्यंत वेदना, चलने मे अक्षमता, यह होती है … उसके लिए लशुन क्षीरपाक (Granules) अत्यंत शीघ्र लाभदायक परिणाम देते है
🔥यह औषध उष्ण तीष्ण कटुरस युक्त होने के कारण क्षीर & घृत के साथ देना अधिक उचित तथा हितकारक होता है ✅️
चरकोक्त वातहर अग्रे संग्रह ... तैल, बस्ति, रास्ना (& एरंडमूल) इन सभी की तुलना में ... *"वाग्भटोक्त अग्रे संग्रह"*... *"प्रभंजनं जयति लशुनः"* यह *लशुन क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स* के रूप मे Highly Effective, Easily Available, Affordable, palatable, transportable, Fast Result giving होने के कारण *सर्वतोपरी श्रेष्ठ* है
1.
लशुन वैसेभी वातके सभी आवरणों मे श्रेष्ठ द्रव्य है
2.
लशुन भग्नसंधानकारी स्निग्ध बल्य होने के कारण, वातवृद्धिजन्य धातुक्षयजन्य विकारो मे भी श्रेष्ठ है
3.
लशुन; कटुरसमे अपवाद द्रव्य & श्रेष्ठ द्रव्य है, वृष्य है, वातकोपकारी नही है, स्रोतो विवरण अर्थात स्रोतोरोधनाशक है, बंधच्छेदक है ... इसीलिए कटुरस अतियोगजन्य कटी पृष्ठ वेदना (Low back, spine & neck Pain) में उपशमदायक है
4. लशुन स्वयं *रसायन* है
5. इसीलिए लशुन को *महौषध* यह भी नाम है
So, After huge, consistent and ever growing Response to The BOSS VachaaHaridraadi... get ready to Welcome, yet another, Highly Potent Samhitokta Medicine from MhetreAyurveda ... *Lashuna (Rasona) Granules ... प्रभंजनं जयति लशुनः*
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1.
वातहरों में सर्वश्रेष्ठ तो बस्ति है, जिसको देना और पेशंट के लिये लेना, दोनोही समय अपहारक , थेरपिस्ट पर निर्भर , अनेक बार "नॉन ॲफॉर्डेबल" , एक ही बस्ती मे काम न होना, घर छोडकर क्लिनिक तक आना जाना और फिर भी उपशम के गॅरंटी न होना, ऐसा बस्ती के बारे मे ड्रॉबॅक्स या लिमिटेशन्स होते है
2.
फिर वातहर मे दूसरा सर्वश्रेष्ठ तैल है, जिसकी डिस्पेन्सिबिलिटी और जिसकी ट्रान्सपोर्टिबिलिटी , परिणाम की गॅरंटी इसके बारे मे दुरवस्था है
3.
तिसरा वातहर सर्वश्रेष्ठ द्रव्य रास्ना है, जिसकी संदिग्धता बहुत अधिक है और वातजन्य संप्राप्ती के जगह, आमजन्य संप्राप्ती मे अधिक उपयोगी है
4. चौथा वातहर श्रेष्ठ द्रव्य एरंडमूल कहा गया है किंतु उसकी भी उपयोगिता उतनी सिद्ध नही है और उपलब्धता भी दुष्कर है और एरंड तेल तो और भी व्यापत् कारक है ... और एरंड तेल की ट्रान्सपोर्टेबिलिटी दुर्गंध और उसकी टेस्ट ये भी सारा पेशंट के लिये उतना सुकर नही होता है. और वैसे भी ये तीक्ष्ण उष्ण है और उपविष है अर्थात विष सदृश्य है
ऐसी स्थिति मे जिसका उल्लेख चरक मे वातहर अग्रे द्रव्य में नही है, किंतु …
वाग्भट ने जिसे वातहर द्रव्य मे अग्रद्रव्य के रूप मे प्रशस्तीकारक द्रव्य के रूप मे उल्लेख किया है वह है “प्रभंजनं जयति लशुन:” … लशुन/रसोन एक ऐसा द्रव्य है जो हर घर में उपलब्ध है, बारा महिने उपलब्ध है, प्रायः वर्ष मे एखाद महिना छोड दिया तो ॲफोर्डेबल है और इसका उपयोग करना बस्ती/तैल/रास्ना/एरंड मूल की तुलना मे सुकर है और यदि म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA फार्मसी द्वारा निर्मित लशुन क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स दिया जाये, तो ये और भी सुकर और शीघ्र परिणामदायक होता है
इसकी वेदनाशमन का इफेक्ट बढाने के लिए, पोटेन्सी बढाने के लिए, लशुन के साथ साथ आर्द्रक 🫚 का संमेलन करके, “रसोन🧄 आर्द्रक 🫚 क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स ” बनाया है, जो ये दोनो कटुरस के श्रेष्ठद्रव्य है, पिप्पली को निकाल दिया जाये तो !
पिप्पली को उबालना यह शास्त्र को उतना संमत नही है, पिप्पली अनेक अवलेहो में संपूर्ण अग्निसंस्कार पश्चात के, प्रक्षेप चूर्ण के रूप मे आती है. इसलिये म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA कटुरस के तीन श्रेष्ठ द्रव्य मे से, पिप्पली को हटा कर “रसोन 🧄आर्द्रक 🫚 क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स” बनाया है,
जो वेदनाशामक दुरालभादि या द्रुतविलंबितगो या गृध्रसी नाशक सप्तधा बलाधान टॅबलेट के साथ गरम पानी/दूध मे एक चमचा मिला कर , प्राग्भक्त = भोजनपूर्व = अपान काल मे दिया जाये, तो वेदनाशमन का कार्य प्रायः अतिशय शीघ्र होता है
⛔️🚫❌️कभी कभी क्षीर का बहुत उद्वेग उत्क्लेश होता है, क्षीर का पचन नही होता है, कुछ लोगों को छर्दि हृल्लास होता है, कुछ लोगों को ब्लोटिंग होता है, कुछ लोगों को अच्छा दूध नही मिल पाता, कुछ लोगों को दूध लेने से भी ॲसिडिटी गॅस होता है, कुछ लोगों को विरेचन हो जाता है, कुछ लोगों को लॅक्टोज इन्टॉलरन्स होता है, तो जो लोग क्षीरपाक नही ले सकते हो, ❌️🚫⛔️ ...
वे रसोन आर्द्रक के ग्रॅन्युल्स गरम पाणी के साथ ले सकते है
या उससे भी अधिक अच्छा सतीनज यूष अर्थात सूखे मटर वाटाणा peas का, पानी मे उबाल कर, उनको पक जाने तक, पानी मे उबालना और सूखे मटर वाटाणा peas पक जाने के बाद भी, जो पानी शेष रहे जायेगा वह यूष के रूप मे एक चमचा घृत के साथ और एक चम्मच रसोन आर्द्रक ग्रॅन्युल्स के साथ, यह यूष, एक चम्मच घृत के साथ अपानकाल मे लेना.
यह जिनको क्षीर का असहत्व है, द्वेष है उनके लिये सतीनज यूष उपयोगी होता है सतीनज यूष का उल्लेख भग्नाधिकार मे सुश्रुत मे हुआ है, वाग्भट मे भी हुआ है
40 वय के पश्चात भग्न साध्य नही है, ऐसे सुश्रुत ने उसके भग्न अध्याय मे लिखा है
और हम भी देखते है की 40 वय के बाद बाथरूम मे फिसलकर कोई व्यक्ति गिर जाता है , तो उसका सबसे जो दुर्बल अस्थि/संधि है, वह क्लॅविकल नही फ्रॅक्चर होता है , किंतु बल्कि उसका सबसे सामर्थ्यवान सबसे स्ट्रॉंग और सबसे डीप ऐसा जो अस्थि/संधी है वह फीमर हेड टूट जाता है!!! क्यूं कि, फीमर हेड अर्थात जघन यह अस्थिवहस्त्रोत का मूल है , तो वही से यह विकृती शुरू होती है और अगर वही से इसको ठीक करना है , तो ऐसे भग्नकारी वात को, जीतने वाले लशुन का उपयोग करना यह बुद्धिमानी है
इसलिये फिमर हेड मे जिसकी संप्राप्ती है ऐसे AVN मे भी लशुन क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स Granules, द्रुतविलंबितगो या वेदनाशामक दुरालभादि या गृध्रसी नाशक, इन सप्तधा बलाधान औषधी कल्पों का अच्छा उपयोग होता है ... इसके साथ ही यष्टी लाक्षा टॅबलेट / यष्टी गुडूची ग्रॅन्युल्स / पंचतिक्त ग्रॅन्युल्स इनका भी यथा अवस्था उत्तम लाभ प्राप्त होता है
इसके साथ साथ अस्थि क्षय का सूत्र है उसमे से तिक्तद्रव्य क्षीरपाक के रूप मे यदि पंचतिक्त Granules या यष्टी गुडूची Granules का प्रयोग किया जाये तो ये और भी शीघ्र निश्चित लाभदायक परिणाम देता है, वेदनाशमन के लिए भी और दीर्घकालीन अपुनर्भव यश के लिए भी!
इसके साथ, गृध्रसी नाशक सप्तधा बलाधान टॅबलेट / द्रुत विलंबित गो सप्तधा बलाधान टॅबलेट & दुरालभादि वेदनाशामक सप्तधा बलाधान टॅबलेट इनका भी अवस्थानुरूप उपयोग होता है
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