Monday, 10 November 2025

शास्त्र पढना & तीर्थात्तशास्त्रार्थ & दृष्टकर्मा

शास्त्र पढना & तीर्थात्तशास्त्रार्थ & दृष्टकर्मा

Picture credit Google Gemini AI 

आयुर्वेद के क्षेत्र में प्रायः "पढना लिखना न करते ही" कई लोग आयुर्वेद की प्रॅक्टिस करते है!?🤔⁉️😇 ऐसे कैसे? बीएमएस डिग्री लेते है ? वर्ष भर पढते है!! अंत मे परीक्षा लिखते है !! नहीं, वह "पढना लिखना" नही ... "शास्त्र बिना पढे, शास्त्र बिना लिखे" ही, आयुर्वेद क्षेत्र में प्रायः प्रॅक्टिस करते है. बहुतांश प्रॅक्टिशनर ऐसे होते है, जो उनके विद्यार्थीकालीन समय मे प्रॅक्टिस करने वाले अन्य वैद्य के पास जाकर "देखते" है = दृष्टकर्मा और "देखकर कुछ सीखते" है = तीर्थात्तशास्त्रार्थ और फिर वह जो, उनके विद्यार्थीसमय का प्रॅक्टिशनर होता है, वही उनके लिये "गुरु मार्गदर्शक मेंटाॅर" = तीर्थ होता है. 

क्यूं कि उस विद्यार्थी को स्वयं को "शास्त्र पढना नही आता है" क्यूंकि, आयुर्वेद का मूल शास्त्र तो संस्कृत में है और संस्कृत तो काला अक्षर भैस बराबर !!!

कभी कभी या आजकल के इसमे तो ऐसा भी होता है, कि आज कल के विद्यार्थी, जिस गुरू के पास जाते है या जिस प्रॅक्टिशनर के पास जाते है, उसने भी कभी, आयुर्वेद शास्त्र जो मूल संहिता मे है, उसको पढा हुआ नही होता है!!! उसने भी उसके विद्यार्थी काल के, उस समय की किसी प्रॅक्टिशनर/ गुरु के पास जाकर , "देखकर सिखा" होता है! इसलिये "शास्त्र पढकर सीखना" ये थोडा दुर्लभ चित्र आज के आयुर्वेद प्रॅक्टिस के क्षेत्र में है और आप सबको तो पता है की कॉलेज में जो "सिखाया(?)" जाता है, "पढाया(?)" जाता है या कॉलेज में जो विद्यार्थी जो कुछ "सीखता है / पढता है" उसका प्रॅक्टिस करके अर्थार्जन करने योग्य कुछ मूल्य या क्षमता होती नही है! वैसे वह कभी भी नही ही थी, आज तो निश्चित ही नही है !!


अस्तु!


तो आज आयुर्वेद के जो बडे बडे तोप प्रॅक्टिशनर्स है, वे भी उनकी विद्यार्थी दशा के काल मे, किसी तत्कालीन आयुर्वेद प्रॅक्टिशनर के पास जाकर, वो क्या करता है वह "देखकर", करीब करीब , कॉपी पेस्ट के रूप मे, 90% नकल के रूप मे, जैसे के तैसे बने हुये, डुप्लिकेट, डिट्टो , झेरॉक्स काॅपी के रूप मे, उसी "परंपरागत" (शास्त्रोक्त x) उपचारों को, करते करते, अपना जीवनयापन करते है. इसलिये उसको ये कभी लगता ही नही की, क्या मै सचमुच आयुर्वेद "शास्त्र" की प्रॅक्टिस कर रहा हूँ? उसको ये लगता रहता है की जो मेरे गुरु के पास मैने "देखा" और उसको "देखकर" मैने जो सिखा और सिख कर जो मे आज कर रहा हू, वही आयुर्वेद है !!!


इसमे सन्माननीय अपवाद वे है, जो विद्यार्थी दशा में, कॉलेज में डिग्री के लिए पढते समय, आयुर्वेद प्रॅक्टिशनर के बजाय, किसी मॉडर्न मेडिसिन की जीपी (जनरल प्रॅक्टिस) करने वाले डॉक्टर के यहा पर या किसी मॉडर्न मेडिसिन के अन्य बडे हॉस्पिटल मे जाकर, "सीखते" है, वे "जो सीख" रहे है वहा पर, उसको मॉडर्न मेडिसिन के "ओरिजनल इंग्लिश टेक्स्टबुक या रेफरन्स बुक से पढते है" अर्थात उन्हे बीएमएस डिग्री लेकर भी, आगे जो मॉडर्न मेडिसिन की ॲलोपॅथी की प्रॅक्टिस करनी है, उस मॉडर्न मेडिसिन का मूल ज्ञान, जिस ग्रंथ मे, जिस भाषा मे है; उस ग्रंथ को, उस भाषा मे, "पढते है , सीखते है"! ✅️ आत्मसात कर लेते है ✅️✅️ इसलिये उनको थोडा बहुत तो नैतिक अधिकार है, कि हम जो प्रॅक्टिस करते है, उसको हमने कई पेशंट पर , (आयुर्वेद की तुलना मे शतगुना 100 times पेशंट पर) "देखा" है और जो "देखा" है, उसको उसी "मॉडर्न मेडिसिन के मूलशास्त्र के रेफरन्स बुक से उसे शास्त्र की मूल भाषा इंग्लिश में पढा सिखा जाना भी है" ... 


ऐसा आयुर्वेद प्रॅक्टिस के क्षेत्र में नही होता है 


वह आयुर्वेद क्षेत्र मे आगे जाकर जिस प्रकार की प्रॅक्टिस करते है, उसका ज्ञान जिन मूल ग्रंथो मे है, उसे उस की मूल भाषा मे, इन "तथाकथित आयुर्वेद की प्रॅक्टिस" करने वाले लोगो ने, अपने विद्यार्थी दशा में या आगे के जीवन काल मे भी कभी "पढा ही नही होता है", केवल "देखकर सिखा" होता है!!!


तो एक तलहस्त / palmtop मे समा सकेगा, इतने कागज के तुकडे पर, 

दो तीन वनस्पती चूर्ण ,

दो तीन वनस्पतीजन्य संयुक्त कल्प,

दो तीन सिंगल भस्म ,

दो तीन संयुक्त रसकल्प, 

गुग्गुल चूर्ण दो तीन ,

दो तीन वटी-बटी गुटी के चूर्ण ...

ऐसा दस बारा , पाच छह या तीन-चार औषधी को मिलाकर या इन में कुछ/सब को मिलाकर वह पेशंट को दे देता है 

10 में से दो तीन पेशंट को ठीक लगा और सात आठ को नही ठीक लगा तो भी दस में से जो दो तीन पेशंट ठीक हुये है, उनके कारण "धीरे धीरे" या अपने अपने नसीब के अनुसार अपनी अपनी गती के अनुसार प्रॅक्टिस चलती है, बढती है, पनपती है, फलती है, फूलती है ... 


किसी की "बहुत ज्यादा" चलती है ... किसी का तुक्का लग गया तो, वह लोकप्रिय होता है, फिर वह स्टेज पर भाषण देता है, कभी कभी उसे नोशनल या नाशनल गुरु भी घोषित किया जाता है!!! 


लेकिन यह सब , शास्त्र कम और यह सरमिसळ भेसळ भेळ मिक्सोपॅथी सर्वोपॅथी यह अधिक होता है !!!


जैसा शास्त्र मे लिखा है , ऐसा ना तो किसी को निदान होता है, रोग नामक निदान तो बहुत दूर, "दोष की गुणात्मक अवस्था और दूष्य का नाम", इतना तक निदान कई बार नही हो पाता है ... किंतु पेशंट बता रहा है और मॉडर्न मेडिसिन की फाईल मे, जो भी पेपर डायग्नोसीस रेडीमेड मिल रहा है, उसका यथामती वह, जिस गुरु के पास "देखकर सिखा" है, उस "परंपरा (शास्त्र x) के अनुसार, जो भी उसको आकलन होता है, उसकी व्याधीप्रत्यनीक (drug & disease) दो चार से लेकर, दस बारा तक , वनस्पती चूर्ण गुग्गुल गुटी वटी रसकल्प भस्म ... इनका एक भेळ मिश्रण मिसळ बनाकर, तलहस्तमे समा सकेगा इतने कागज की पुडी मे बांध के देता है. इसमे ॲक्च्युअली "चरकस्तु चिकित्सिते", ऐसा उसने कभी सुना होता है , किंतु संस्कृत होने के कारण उसको पढने को नही आता है. उसने कभी चरक सुश्रुत वाग्भट से रोग क्या होता है क्या निदान कैसे होता है निदान के अनुसार चिकित्सा सूत्र क्या होता है चिकित्सा का क्रम क्या होता है. यह उसको मालूम ही नही होता है

उसके "माने" हुए जो गुरुजी है, उनके क्लिनिक में जो जिस चीज पर किया जाता है, यह उसने "देखा" होता है वह "देखकर वो जो सिखा" है, वही आयुर्वेद हे असे समजकर वह आगे करते रहता है ... 


या फिर जैसे जैसे समय बीतता जाता है, वैसे आसपास के लोग जो भी ट्रेंड चलाते है, उसे भी आयुर्वेदिक ही मानकर, उसे अपने क्लिनिक में चलाता रहता है ... उसके साथ मे पंचकर्म की मालिश भी करता है, केरल के न समझनेवाले मल्याळम शब्दों के कल्प भी प्रयोग करता है , फिर रसभस्म भी प्रयोग करता है , फिर सिद्ध के कुछ अटपटे शब्द वाले कल्प भी प्रयोग करता है, फिर आने वाले एम आर लोग जो रेडिमेड प्रोप्रायटरी औषध बताते है वो भी प्रयोग करता है, कभी कभी उसका टार्गेट सेल अचीव करके फॉरेन ट्रीप या किसी सेमिनार में स्टेज पर स्वयं का लेक्चर भी आयोजित करवा लेता है, या फिर पैसा देकर टीव्ही पर लाईव्ह एपिसोड भी चलवाता है. फिर नये नये ट्रेंड के साथ वो ॲक्युपंक्चर को विद्ध के नाम से चलाता है, फिर कपिंग करता है फिर इसी के साथ वो चलते हुए ट्रेन्ड मे, बहती हुई गंगा मे हात धोने के धुन में, गर्भसंस्कार सुवर्णप्राशन नाडीपरीक्षा योगासन च्यवनप्राश अभ्यंग तेल ऐसे भी चीजे "बेचता" रहता है 


तो अधिकतर आयुर्वेद प्रॅक्टिशनर को "लगता तो ये है कि, वे आयुर्वेद की प्रॅक्टिस कर रहे है", लेकिन वस्तुस्थिती मे वह शास्त्रीय एवं नैतिक आयुर्वेद प्रॅक्टिस से कोसो दूर होते है. क्यूकी "शास्त्र पढना लिखना" यह उनको पता ही नही है.


उन्होने तो "देखकर सिखा" होता है, और आयुर्वेद शास्त्र की दृष्टि से तो वही श्रेष्ठ वैद्य का लक्षण है तीर्थशास्त्रार्थ = जिसको "तीर्थ" माना जा सकता है, ऐसे गुरु से शास्त्र की प्राप्ती करो और दुसरा दृष्ट कर्मा अर्थात देख कर सीखो ... इसमे कही लिखा ही नही की अपने "शास्त्र को भी पढना चाहिये"! इसलिये आदर्श वैद्यका गुण का जो पहला गुण है उसके अनुसार सभी प्रॅक्टिशनर उनको उस समय मे जो तीर्थ लगता है वो उनके समकालीन आसपास मे, दूरदराज में या पुणे जैसे आयुर्वेद की प्रख्यात मायानगरी मे आकर, जो भी मिले उसके चरण पकडकर, वो जो कर रहा है वो "देख कर" उसको ही "आयुर्वेद मानकर" उसको "सिख कर", उसी ट्रेंड की प्रॅक्टिस करते है और स्वयंको आयुर्वेद का प्रॅक्टिशनर है, ऐसा मान लेते है... समाधान कर लेते है


और एक बडा सा 12 फूट बाय 6 फुट का बोर्ड लगाकर उस पर पूरा मेन्यू लिख देते है... उसमे फिर आयुर्वेद योग नाडी प्राणिक हीलिंग मानस विकार ... जैसे किसी हॉटेल का मेनू कार्ड होता है, ऐसा पुरा मेनू कार्ड, बोर्ड पर प्रिंट करते है


कभी इन लोगों के मन मे ये नही आता है की हम प्रोफेशनल कोर्स के लोग है, इसमे डॉक्टर इंजिनियर वकील सीए और आर्किटेक्ट , ये 5 लोग आते है ... तो एक बी एम एस डॉक्टर छोडकर, कोई अन्य भी एमबीबीएस डॉक्टर या इंजिनियर वकील सीए आर्किटेक्ट ... इतना बडा बोर्ड या मेनू कार्ड प्रिंट करते है क्या? या आयुर्वेद जैसे प्रॅक्टिस के नाम पर कुछ भी चलाते है बेचते है, ऐसे अन्य प्रोफेशनल कभी करते है क्या ?? 

नही !!

एमबीबीएस डॉक्टर वकील सीए आर्किटेक्ट ये सभी पढना और लिखना दोनो जानते है , वे पढकर लिखकर अपना प्रोफेशन चलाते है ...

आयुर्वेद मे तो पढना लिखना आता ही नही , क्यूकी जो पढना लिखना है , वह संस्कृत भाषा मे है & संस्कृत तो हमे "काला अक्षर , भैस बराबर" ... तो यहां आयुर्वेद मे 99% लोक ये पढे लिखे हुए प्रॅक्टिशनर नहीं, अपितु, ये "देखकर सीखे" हुए है. यहां पर कोई इंजिनियर नही है, ये किसी आसपास के गराज मे टू व्हीलर फोर व्हीलर रिपेरिंग करते हुए देखकर सिख कर अपना अपना गराज जैसे तैसे चलाने वाले लोग है

... तो चल रहा है , वो योग्यही है ! क्यूकी पढे लिखे लोगों से "शास्त्र के बारे में कुछ करने की अपेक्षा" रखी जा सकती है. "शास्त्र पढा लिखा ही नही" ऐसे अनपढ गंवार देहाती ... किसी मदारी और बंदर का खेल देखकर ... जिन्होंने "सिखा" है, उनसे "शास्त्र की सेवा" की अपेक्षा क्या करेंगे? और "शास्त्र की विकास" की अपेक्षा तो, ऐसे अनपढ अशिक्षित लोगों से करना व्यर्थ है"! ... ये तो शास्त्र पर उपजीव्य लोग है! जियो और जीने दो!!


इसके पहले हमने कार्निव्होरस ॲनिमल्स (मृतप्राणिमांसभक्षी पशुपक्षी) इस पर एक आर्टिकल लेख लिखा है, वह पढने योग्य है

जिसकी लिंक आगे दी हुई है


और यही हम विगत 15 20 वर्ष मे देख रहे, क्यूकी यहा पर प्रॅक्टिशनर जो है वो सभी प्रायः बहुतांश, देखकर सीखे हुए , दृष्ट कर्मा & तीर्थशास्त्रार्थ ऐसे है 


यहा पर "शास्त्र पढना लिखना" , ये बात, ना कॉलेज में है , ना प्रत्यक्ष व्यवहार में है. इसी कारण से जिन्होंने आयुर्वेद शास्त्र मूल संहिता ग्रंथ से संस्कृत संदर्भ ग्रंथ से कभी पढा लिखा नही, ऐसे सभी अनपढ गवार देहाती लोगों के हाथ में आज आयुर्वेद शास्त्र चला जाने के कारण, उनको पता ही नही की सच्चा आयुर्वेद क्या है ?!


उनको लगता है की हम ये जो नाडी योग रसशास्त्र विद्ध मर्म गर्भसंस्कार सुवर्ण प्राशन शिरोधारा मसाज मालीश रिसॉर्ट स्पा वेलनेस... इसके साथ पुडी मे बांध के दे रहे है, वही आयुर्वेद की सेवा है. ऐसा करने में जैसे जैसे उनके बाल सफेद हो जाते है, वैसे वैसे सत्कार सन्मान और गुरु का पर मिलता जाता है 

शास्त्र तो कब का मर चुका है 

ये आयुर्वेद शास्त्र का नकाब पहनकर, उसके पीछे आयुर्वेद के नाम पर सारी अशास्त्रीय चीजों की प्रॅक्टिस कई दशकों से हो रही है और ये ऐसेही चलती रहेगी 


जिन्होंने कभी लता मंगेशकर या भीमसेन जोशी को सुना ही नही, ऐसे अरसिक गधों को, आज कल का जो मॅशप कव्हर अनप्लग्ड रास्ते पर थर्माकोल घिसने पर जैसे आवाज आती है ऐसे आवाज वाले गायक सिंगर ही ग्रेट लगते है. क्यूकी सच्चा ग्रेटनेस क्या है वो पता ही नही! उन्हें सच्चे सुर की क्या जानकारी? जिन्होंने कभी सच्चा खरा 24 कॅरेट का सोना देखा ही नही , उनको तो इमिटेशन ज्वेलरी भी तेजस्वी लगने वाली है 


वैसे पढे लिखे लोगों को, जिन्होंने शास्त्र को , शास्त्र की भाषा मे पढा है, उनको पता चलता है की, शास्त्र क्या है ... और पढे लिखे लोग, प्रश्न पूछते है!!! 


अनपढ अशिक्षित देहाती गवार लोक क्या क्वेश्चन पूछेंगे? और शास्त्र पडे हुए लोगो ने पूछा हुआ क्वेश्चन उनको क्या समजेगा? जिन्होंने शास्त्र कभी "पढा लिखा" ही नही, उनको ना क्वेश्चन सूझते है, ना समजते है, ना ही उनका उत्तर देने की उनमें क्षमता है, ना औकात है 


तो सबसे पहले हमने ये डिस्क्रिमिनेट करके स्पष्ट रूप से वर्गीकृत करके मान्य करना चाहिए, की शास्त्र को "पढना लिखना" जिसको आया, वो "प्रश्न पूछेगा" , उसको जिज्ञासा होगी .

जो शास्त्र "पढे बिना", केवल "देखकर सिखा" है, जो भी मिला ऐसे व्यक्ति को तथाकथित गुरु मानकर , तीर्थात्तशास्त्रार्थ का आधा अधूरा अवलंबन करके, एक गॅरेज मे जैसे कोई टू व्हीलर फोर व्हीलर रिपेरिंग सिखता है, वैसे आयुर्वेदबाह्य दो चार कामचलाऊ चीजे सीखकर , तलहस्त पर समा सकेगा इतने कागज मे, जो दो चार से लेके दस बारा तक, वनस्पती चूर्ण संयुक्त कल्प गुटी वटी गुगुल भस्म रसकल्प, इनकी भेळ मिसळ मिक्स्चर बनाकर देता है, ये पैसा कमाते है कुर्वते ते तु वृत्त्यर्थं चिकित्सापण्यविक्रयम् ।

उनसे शास्त्र बोध , शास्त्र सेवा और शास्त्र विकास की अपेक्षा रखना , यह महामूर्खता है. 


और उनकी भी गलती नही है , क्योंकि उनके आदरणीय माता पिता ने बच्चों को, डिग्री प्राप्त करके , पैसा कमाने के दृष्टि से ही, उस कोर्स मे डाला था, तो बेचारे पैसे कमाने के लिए , योग नाडी से लेके गर्भसंस्कार स्वर्ण प्राशन से लेके , रसशास्त्र लेके, साथ मे आयुर्वेद का जरासा तडका लगा कर, या आयुर्वेद शब्द प्रिंट किये हुए हुए, कागज के पॅकेज मे भरकर, कुछ कुछ "बेच रहे है, तो बेचने दो" ... बेचारे है, असहाय्य अगतिक है ... और हमारे देश में 140 करोड की भोलीभाली अनपढ जनता भी है ... तो शास्त्र को बिना पढा लिखा हुआ, अनपढ प्रॅक्टिशनर & उसके सामने करोडो की अनपढ जनता, तो पैसा बनाना तो बहुत आसान है 


लेकिन पढकर लिखकर शास्त्र जानना शास्त्र का विकास करना, शास्त्र के प्रति जिज्ञासा होना, शास्त्र के विषय में प्रश्न पूछना ... इसके लिये एक अलग इयत्ता, अलग कक्षा, अलग category अलग orbit अलग स्तर अलग उंचाई अलग लेवल अलग कपॅसिटी अलग क्षमता ... इसकी आवश्यकता होती है , जो बहुत रेअर दुर्लभ है ... वक्ता दशसहस्त्रेषु, अर्थात ... दस हजार लोगो में कोई एक वक्ता होता है ... किंतु शास्त्रज्ञाता यह तो "शतसहस्रेषु" ... लाखों लोगो मे कोई एखाद शास्त्रज्ञाता होता है


इसलिये वैद्य के चरकोक्त वाग्भटोक्त 4 गुणो मे, जो तीर्थात्तशास्त्रार्थ और दृष्टकर्मा ये गुण है उन के साथ साथ श्रुतशास्त्र = शास्त्रपठित = शिक्षितशास्त्र, यह गुण भी होना आवश्यक है

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