आयुष् लक्षण : शार्ङ्गधर का लिखा🖊 हुआ आयुष् लक्षण, चरकोक्त आयुष् लक्षण से बेहतर है 👌🏼✅️
लेखक : copyright © वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे.
एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.
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शरीरेन्द्रियसत्त्वात्मसंयोगो धारि जीवितम् ।
नित्यगश्चानुबन्धश्च पर्यायैरायुरुच्यते ॥ चरक
इस प्रसिद्ध चरकोक्त आयु लक्षण/definition/परिभाषा की तुलना मे शार्ङ्गधरोक्त आयु परिभाषा अधिक योग्य है.
*शरीरप्राणयोरेवं संयोगादायुरुच्यते*👍🏼
चरकोक्त आयु लक्षण अतिव्याप्त है तथा असंभव है.
अव्याप्त अतिव्याप्त असंभव ऐसे 3 दोष विरहित, असाधारण धर्म का कथन करने वाला वाक्य, लक्षण कहा जाता है.
तो इस दृष्टी से, चरकोक्त आयु लक्षण अव्याप्त अतिव्याप्त असंभव ऐसे तीनो दोष से युक्त है
और वह आयु का असाधारण धर्म कथन नही करता.
इंद्रिय हमेशा होंगे हि ऐसा नही. अनेक जीव धारियो मे अनेक इंद्रियों की अनुपस्थिती होती है.
मनुष्य देह मे भी कई बार कुछ इंद्रियों की अनुपस्थिती होती है.
स्वप्न या सुषुप्ति अवस्था मे इंद्रिय और मन हे दोनो नही होते है.
इसलिये चरक का आयु लक्षण अतिव्याप्त है.
आत्मा का संयोग यह असंभव स्थिती है. क्योंकि आत्मा विभु है. इसलिये उसका संयोग विभाग, यह संभव नही हो सकता. इस कारण से चरकोक्त आयु लक्षण असंभव है.
चरकोक्त आयु लक्षण अव्याप्त भी है क्योंकि जिस भाव पदार्थ का उल्लेख होना, अत्यंत आवश्यक है, प्राण अर्थात श्वास का उल्लेख, इस लक्षण में नही है. जो कि, अत्यंत योग्य रूप से शार्ङ्गधरोक्त आयु लक्षण में उपलब्ध है. तो यह प्रथम दोष अव्याप्ती यह चरक के लक्षण मे है, प्राण श्वास इस शब्द का उल्लेख नही.
इंद्रिय और मन ये दोनो अनुपस्थित होकर भी जीवन चल सकता है, इसलिये यह अतिव्याप्त है. कोमा मे कई साल तक बेड पर पडे रहने वाले पेशंट, मन और इंद्रिय दोनो से विरहित होते है, किंतु उन का श्वास अर्थात प्राण शुरू होता है और शरीर वही पडा रहता है, इसलिये कोमा मे होने पर भी उन्हे जिवंत समजा जाता है. जब इस शरीर का श्वास बंद होता है , तो उस कोमा के पेशंट को मृत घोषित करते है. इस प्रकार से मन और आत्मा का उल्लेख चरक के आयु लक्षण मे होना यह अतिव्याप्त दोष चरक के आयु लक्षण मे उपलब्ध है और आत्मा का संयोग विभाग तो होता ही नही है, इसलिये यह असंभव नाम का दोष भी चरक के आयु लक्षण में है.
संपूर्णतः तीन दोषों से विरहित निर्दोष लक्षण शार्ङ्गधर मे उपलब्ध है. *शरीरप्राणयोरेवं संयोगादायुरुच्यते* शरीर के साथ श्वासोंका संयोग बना रहना, यही आयुष्य है. प्राण जब नही होता है , तब आयु नही होती.
आयु के इस लक्षण के साथ, और एक लक्षण, यहा पर प्रस्तुत करता हूॅ, कि *जन्म मरणांतराल भावी कालखंडः आयुः* इतनाही लक्षण उचित है. जो अव्याप्त अति व्याप्त असंभव से विरहित है और असाधारण धर्म का कथन करता है. यह लक्षण म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA ने स्वयं लिखा है
शार्ङ्गधरोक्त लक्षण *शरीरप्राणयोरेवं संयोगादायुरुच्यते* यह यद्यपि अव्याप्त अतिव्याप्त असंभव से विरहित है, फिर भी वह असाधारण धर्म का कथन नही करता है.
चरकने आयु के जो पर्याय दिये है, उसमे नित्यग अनुबंध इन पर्यायी शब्दों का पूर्ण चरक संहिता मे फिरसे कभी भी उपयोग नही हुआ है , ऐसे स्वयं चक्रपाणि भी कहते है. तथा धारि यह शब्द केवल एक बार प्रयुक्त हुआ है. अर्थात यह अनवपतित शब्द अकष्टशब्द ऐसे शास्त्र परीक्षा से विपरीत है. क्योंकि यह अपरिचित शब्दों का अप्रसिद्ध शब्दों का अनावश्यक प्रयोग होता है. जैसे की अंतर्वत्नी यह भी एक शब्द चरकने प्रयुक्त किया है.
व्हेंटिलेटर पर रखकर, वस्तुतः मृत आदमी को कुछ दिनो तक आगे भी जिंदा है, ऐसे दिखाया जा सकता है, जैसे की उसका आत्मा कब का चला गया होता है, इंद्रिय मन काम नही कर रहे है या वे भी भी चले गये होते है, फिर भी उसका व्हेंटिलेटर के द्वारा श्वास चालू है और शरीर वहा पडा है , तब तक उसको डेड घोषित नही करते और डिस्चार्ज देकर बिल करके बॉडी हात मे नही देते है. अर्थात इंद्रिय सत्व आत्मा न होने पर भी, केवल प्राण अर्थात श्वास और शरीर इनका संयोग सुरू है, ऐसा व्हेंटिलेटर के द्वारा दिखा कर भी, कुछ दिनो तक आयु है , ऐसा मानकर बिलिंग तो चलता ही रहता है.
इसलिये शार्ङ्गधरोक्त आयु लक्षण *शरीरप्राणयोरेवं संयोगादायुरुच्यते* उचित है, न कि चरकोक्त आयु लक्षण.
इसीलिए कई शतको पूर्व लिखा हुआ चरक थोडा बाजू को रख के, उसमे से जो कुछ व्यवहार शून्य भाग है, उसको छोड कर, जो लेटेस्ट अपडेटेड आयुर्वेद का व्हर्जन है = आयुर्वेद 3.0 अर्थात अष्टांग हृदय, उसीका ही अनुसरण, अध्यापन & व्यवहार होना चाहिए
अगर हम क्रेडल वाला डायल वाला फोन आज प्रयोग मे नही लाना चाहते , ना ही हम फिचर फोन बारा बटन वाला प्रयोग करते है, हमे 8 जीबी रॅम वाला स्मार्टफोन चाहिए, तो फिर सदैव पुराना दोषयुक्त ग्रंथ शिरोधार्य मान्य करने के बजाय , जो लेटेस्ट अपडेटेड है, (हां, उसको भी 900 साल हो गये किंतु वही लेटेस्ट अपडेटेड होने के कारण) उसी वाग्भटका अनुसरण और व्यवहार होना उचित है.
अर्थात 900 साल के बाद आज के नये हेतु नये लक्षण इन स्कंधों के लिए, नये औषध स्कंध के साथ, एक नई युगानुरूप संहिता का निर्माण होना, अविर्भाव होना, आज के आयुर्वेद के लिए अत्यंत आवश्यक है.
स्वयं अरुण दत्त ने चरकके ही कई दोष, अष्टांगहृदय सूत्रस्थान एक श्लोक क्रमांक एक की टीकामें दिये है. वहा पर वह स्वयं को *वाचाट* ऐसा दूषण लगाकर आगे चरक के कई दोष का विवरण करता है।
अन्यानि हि तन्त्राणि सदोषाणि। तथा हि। यदेतत्तावद्भगवता चरकमुनिना प्रणीतं तन्त्रं रत्नाकर इव *गान्भीर्यातिशययोगाद्दुर्बोधम्*।
*तस्यापि सदोषतां प्रकटयन्ति वाचाटाः।*😇
अरुण दत्त को लोग केवल वैय्याकरण या शब्दप्रधान टीकाकार समजते है किंतु अरुण दत्त ने चरक के जो दोष गिनाये है, वे शास्त्रीय है, द्रव्य गुण के है, क्लिनिक के है, इसकी तरफ भी ध्यान देना चाहिए. वरना केवल प्रस्थापित है पॉप्युलर लोकप्रिय हे इसलिये, भेड बकरीयों की तरह, उसी एक प्रस्थापित चीज के पीछे दशकों तक दौडते रहना, यह बुद्धिमत्ता का लक्षण नही है.
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