धन्वंतरी देहत्याग स्थल ... ऐसा एक प्रचार किया जाता है! वैसे भी दिवाली आ रही है ... धन्वंतरी जयंती भी समीप हि है !!!
असद्वादिप्रयुक्तानां वाक्यानां प्रतिषेधनम् ।
आगे पढने से पहले, इस लेख के अंत मे दिया हुआ डिस्क्लेमर अवश्य/निश्चित हि पढे, अगर आवश्यकता लगे तो!
जैसे चरक जयंती यह नागपंचमी के दिन होती है , ऐसा "प्रचार" किया जाता है ... वैसे हि ये धन्वंतरी देहत्याग स्थल भी, बिना सर पैर की बात है !
चरक शेष के अवतार है, शेष एक नाग है ... इसलिये नागपंचमी चरक जयंती है , ऐसा बडा दूर का संबंध लगाया जाता है
वैसेही गुजरात के धनेज नाम के किसी गाव मे धन्वंतरी का देह त्याग स्थल है, इस प्रकार का प्रचार और फिर वहां पर ॲकॅडमिक टूरिझम !! ऐसे तथाकथित "पवित्र" स्थल पर अध्ययन करने का उत्सव / सेलिब्रेशन !!!
गुगल पर देखेंगे तो धनेज नाम के चार-पाच और स्थल दिखाई देते है, उसमे से एक बिहार में और दो तीन उत्तर प्रदेश में है
यूं तो, आयुर्वेद के लोगों को ऐसे इव्हेंटफुल हॅपनिंग सेलिब्रेशन करने मे बडा मजा आता है.
अभी आप संहिताओं का अध्ययन अपने घर मे करो , कॉलेज में करो , ऑनलाइन करो या धन्वंतरी के देह त्याग स्थल पर करो ... उससे क्या फरक पडने वाला है?!
क्या ॲनाटाॅमी की स्टडी ग्रे के देह त्याग स्थल पर, फिजिओलॉजी का स्टडी गायटन के देह त्याग स्थल पर, मेडिसिन का स्टडी हॅरिसन/डेव्हिडसन के देहत्याग स्थल पर, क्लिनिकल मेथड का स्टडी हचिसन के देहत्याग स्थल पर करने से कुछ अलग/विशेष ज्ञान प्राप्त होगा क्या!?!?
ऐसे बे सर पैर के निष्प्रयोजन बातो मे हम समय एनर्जी रिसोर्सेस पैसे क्यूं बरबाद करते है? इससे अच्छा है कि शास्त्र के लिए कुछ और अच्छा काम करे!!!
इतिहासाचे अवजड ओझे
डोक्यावर घेऊन ना नाचा
करा तयाचे पदस्थल आणिक
त्यावर चढूनी भविष्य वाचा
अर्थात
इतिहास का भारी बोझ
इसे सिर पर रखकर ना नाचो
करो उसका पदस्थल और
उस पर चढकर भविष्य पढ़ो
लेकिन ऐसे नही है !
कुछ तो हॅपेनिंग होना चाहिये, इव्हेंटफुल होना चाहिये ! जिसका "मार्केटिंग" किया जा सके, जिस पर "कोलाहल / शोर" मचाया जा सके !!!
अभी धन्वंतरी कौन सा??
जो क्षीरसागर के मंथन से उपर आया हुआ था, अमृत कलश लेकर वह?!
अब जिसके हाथ मे अमृत कलश था, वो धन्वंतरी थोडेही मरेगा??? जिसके हाथ में अमृत है, वो तो अमर है ना!? वह किसलिये देह त्याग करने के लिए धनेज गांव जायेगा!?
या दूसरा धन्वंतरी, जिसको काशीराज दिवोदास कहते है???
अभी काशी जैसी पवित्र नगरी, जहां पर लोग अपने जीवन के अंतिम समय में देह त्याग के लिए, मरने के लिए आते है अपने अंतिम समय मे , ऐसी पवित्र नगरी छोडकर , काशीराज दिवोदास राजा होकर देहत्याग के लिये, उत्तर भारत की काशी से इतनी दूर , पश्चिम समुद्र के तट पर, गुजरात राज्य मे, धनेज नाम के गाव मे जायेगा???
किंतु सोचेगा कौन?
हमारे यहाँ तो किसने कुछ बोलने की देर है .. "जय हो" कहने के लिए उसके पीछे सैकडो लोग खडे रहते है हि!
उदाहरण के तौर पर ...
किसी ने बोल/लिख दिया ज्वर कषाय पंचक यह धातुपाचक है! और उसके भी आगे जाकर, "धातुपाचक के ब्रेड" पर "मीमांसा का बटर" लगा दिया ... भैय्या मेरे, पाणीपुरी के ठेले पर श्रीखंड क्यूं बेच रहे हो!? 😇🙃
अभी जहां पाच विषम ज्वरों का धातु स्थान हि निश्चित/निर्धारित नही है, कौन से भी धातु मे कौनसा भी विषमज्वर हो सकता है, ऐसे स्वयं चरक हि कहता है ... तो उनको शमन करने वाले कषाय पंचक, अमुक धातु का अमुक पाचक है, ऐसे कैसे कहेंगे?!
अभी उस श्लोक मे तो "शमनाः" शब्द है, लेकिन लोगो ने तो "धातुपाचक" कहकर, उसको "प्रस्थापित" करके, उसके टॅबलेट, उसके गुगुल, उसके काढे, उसके आसवारिष्ट, उस पर व्याख्यानमाला, उस पर किसी मासिक का विशेष अंक, पूरी "धातु पाचक संहिता" बना ली !!
कोई "सोचेगा" ही नही!!
या तो कोई भी "सोच"🧐 हि नही रहा है
या
सभी "सो"च 🥱😴 हि रहे है
किसी ने भी कुछ भी बोल दिया कि,
जय हो कहने का !!!
लेकिन उसकी स्क्रुटीनी व्हेरिफिकेशन व्हॅलिडेशन एक्झामिनेशन ... कुछ नही करनेका ... "सोचने" का हि नही ...
"क्योंकि ..."
"सोचने" से ज्यादा "बेचने" मे फायदा है ... यह जानने के बाद, यह समझने के बाद, इस प्रकार के "ॲकॅडमिक टूरिझम" का व्यवसाय चलने लगता है ...
थोडे दिन रुकिये ...
सुश्रुत का भी जन्मस्थल, वाग्भट का भी देह त्याग स्थल मिल जायेगा!!!
सुश्रुत की जयंती भी अभी किसी ने मनायी थी!
वाग्भट की भी जयंती अगले को सालों मे निकलकर आयेगी ... भाई, "बेचना" जो है, "सोचना" थोडी हि है!!!
लेकिन ये भी एक कौशल, है प्राविण्य है ... इस प्रकार का ॲपॅरेंटली "नैतिक" ॲडवर्टाइजमेंट और "बेचने का कौशल" आना भी आवश्यक है.
दुनिया झुकती है , झुकानेवाला चाहिये
कुछ भी बिकता है ... बस् "बेचने वाला" चाहिये
अगर "बेचने" की कला है ...
तो "सोचने" की आवश्यकता हि नही है
जय हो
जय आयुर्वेद
जय धन्वंतरी
Disclaimer: यह लेख वैयक्तिक मत के रूप मे लिखा गया है. इस लेख मे उल्लेखित विषयों के बारे मे अन्य लोगों के मत इससे भिन्न हो सकते है. इस लेख मे लिखे गये मेरे मत, किसी भी अन्य व्यक्ती या संस्था पर बंधनकारक नही है तथा उन्होने मेरे ये मत मान्य करने हि चाहिये, ऐसा मेरा आग्रह नही है. उपरोक्त विषयों के बारे मे जो मेरी समझ, मेरा आकलन, मेरा ज्ञान है, उसके अनुसार उपरोक्त लेख मे विधान लिखे गये है. उन विषयों के बारे मे वस्तुस्थिती और अन्य लोगों के मत, मेरे मत से, मेरे आकलन से, मेरी समझ से, मेरे ज्ञान से अलग हो सकते है.
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प्रणाम गुरुवर्य
ReplyDelete(गुजरात के जूनागढ़ में धणेज गाव मे धन्वंतरी का देह त्याग स्थल है, इस प्रकार का प्रचार और फिर वहां पर ॲकॅडमिक टूरिझम !! ऐसे तथाकथित "पवित्र" स्थल पर अध्ययन करने का उत्सव / सेलिब्रेशन !!!)
क्या आप कभी इस स्थान पर जाकर आए है
उपरोक्त लेख क्या इस स्थान पर जाने के बाद आपका स्वयं का स्वानुभव है
आपके प्रत्युत्तर की प्रतिक्षा में.......🙏🙏