Friday, 27 September 2024

धातुपाचक : अंधानुकरण और गतानुगतिकता

 धातुपाचक : अंधानुकरण और गतानुगतिकता


उपरोक्त चित्र अंधानुकरण और गतानुगतिकता का है, यह तो सब समझ ही पाते है... किंतु

धातुपाचक तो होते ही नही है ... यह अनेको बार ससंदर्भ सतर्क स्पष्ट करने के बाद भी, विषमज्वर कषाय पंचक को धातुपाचक समझकर व्यवहार करने की भ्रांती नष्ट नही होती है.


अगर हम औषधों को केवल "बेचने" के साथ हि, औषध "सोचने" पर काम करेंगे तो ... linking ourself with scientific thinking, will be surely possible


लेखक ✍🏼 : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे 9422016871


कषायाः शमयन्त्याशु पञ्च पञ्चविधान् *क्रमात्* (~ज्वरान्~) ।

सन्ततं सततान्येद्युस्तृतीयकचतुर्थकान् ॥

चरक👆🏼


पञ्चैते सन्ततादीनां पञ्चानां शमना *क्रमात्* (~मताः।~)

वाग्भट 👆🏼


मूल श्लोक/ चरण लिखते समय "क्रमात्" यह शब्द लिखकर, स्पष्ट रूप से, "अमुक कषाय ... अमुक विषमज्वर के लिए" ऐसा लिख सकते थे, लेकिन ऐसे हुआ नही है 


और तो और ज्वर चिकित्सा वर्णन का क्रम भंग इन श्लोकविन्यास मे हुआ है इसको पुन्हा एक बार सुसंगत सविस्तर संदर्भ और सतर्क प्रस्तुत करते है 


ये ⬆️ मै नही कहता, किताबों 📖📚 में लिखा है, यारो ...


चरकोक्त विषमज्वर कषाय पंचक का किसी भी धातू के साथ निश्चित संबंध नही है, यह हमने विगत दो लेखों मे स्पष्ट कर दिया है ... *चरक संहिता के ही संदर्भों के अनुसार!* 


चरक के विषमज्वर यह धातु मे दोष का प्राबल्य इस संकल्पना पर आधारित है.


इस कारण से संततादी पाच ज्वरों का निश्चित धातु अधिष्ठान वहां पर निर्धारित हि नही है


चरक की निम्नोक्त पंक्तिया देखेंगे, तो ये पता चलता है कि कौन सा भी विषमज्वर, किसी भी धातु मे आश्रित होकर निर्माण हो सकता है.


रक्तधात्वाश्रयः प्रायो दोषः सततकं ज्वरम् 


रक्त = सतत ✅️


अन्येद्युष्कं ज्वरं दोषो रुद्ध्वा मेदोवहाः सिराः ॥


अन्येद्युष्क = मेदस् 🤔 मांस x


दोषोऽस्थिमज्जगः कुर्यात्तृतीयकचतुर्थकौ 


तृतीयक = अस्थिमज्जा 🤔 मेदस् x


अन्येद्युष्कं ज्वरं कुर्यादपि संश्रित्य शोणितम् ॥


अन्येद्युष्क = रक्त 🙃😇🤔 मांस x


मांसस्रोतांस्यनुगतो जनयेत्तु तृतीयकम् ।


तृतीयक = मांस 🤔 मेदस x


संश्रितो मेदसो मार्गं दोषश्चापि चतुर्थकम् 


चतुर्थक = मेदस् 🤔 अस्थिमज्जा x


और तो और चरक संहिता मे हि,


संततज्वर केवल रसधात्वाश्रित न होकर


(संतत = रस ❌️)


संतत द्वादशाश्रयी ज्वर है ✅️


संतत = 12 = 7 धातू + 2 मल + 3 दोष


द्वादशाश्रयी का अर्थ केवल रसके साथ नही, अपितु द्वादश = 7 धातू 2 मल 3 दोषों के साथ जुडा है , ऐसे लेना चाहिए 


यथा धातूंस्तथा मूत्रं पुरीषं चानिलादयः ॥


द्वादशैते समुद्दिष्टाः सन्ततस्याश्रयास्तदा ।


द्वादशेति सप्त धातवस्त्रयो दोषा मूत्रं पुरीषं च।


उपरोक्त संदर्भ से यह पता चलता है की 5 विषमज्वरों का क्रमशः 5 धातुओं से "निश्चित संबंध" चरक संहिता मे उल्लेखित हि नहीं है. तो फिर अमुक धातू के लिए, अमुक धातू पाचक काढा ऐसे हो हि नही सकता, शास्त्रीय दृष्टी से , शास्त्रीय संदर्भ के अनुसार तो! 


जो आज का व्यवहार चल रहा है , यह केवल एक कही सुनी, प्रस्थापित, रूढीजन्य, व्यावसायिक बात है और और इस विषमज्वर का, धातुपाचक का एवं शरीरस्थ धातूओं का कोई भी परस्पर निश्चित शास्त्रीय संबंध कुछ भी नही है ... ❌️🚫⛔️


इस कारण से जो आज प्रस्थापित लोकप्रिय


*किंतु अशास्त्रीय* एवं _मात्र रूढीजन्य_ धातुपाचक(?) व्यवहार मे उपयोग मे लाये जाते है, उन धातुपाचकों का वस्तुतः शास्त्रीय रूप मे, उस उस धातु से कुछ भी निश्चित संबंध है ही नही ... 


अगर हम औषधों को केवल "बेचने" के साथ हि, औषध "सोचने" पर काम करेंगे तो ... linking ourself with scientific thinking, will be surely possible


विषमज्वर कषाय पंचक को धातुपाचक कहकर व्यवहार करना, अत्यंत अशास्त्रीय अनार्ष प्रक्षिप्त असत्य असिद्ध है, यह फिरसे सविस्तर ससंदर्भ सतर्क सुसंगत रूप मे प्रस्तुत करते है. कृपया म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda द्वारा लिखे जाने वाले इस प्रस्तावित proposed लेख की प्रतीक्षा करे. आपके संयम के लिए हार्दिक धन्यवाद


लेखक ✍🏼 : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे 9422016871

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