योगरत्नाकरोक्त 25 अभिनव "रोगघ्न" अग्रे संग्रह द्रव्य
लेखक : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे 9422016871
अग्र्य द्रव्यों का = अग्रे संग्रह का वर्णन चरक सूत्रस्थान 25 श्लोक 40 यज्जः पुरुषीय में उपलब्ध है , जहाँ पर 152 अग्र्य द्रव्यों का वर्णन है, किंतु उसमे "रोगघ्न, ऐसे स्पष्ट रूप से" कुछ ही (3 से 6) द्रव्य है, बाकी सभी तात्त्विक सैद्धांतिक गुणकर्मवाचक है. (अष्टांग संग्रह के अग्रेसंग्रह के अध्याय मे 155 अग्र्य द्रव्यों का वर्णन है)
उससे अधिक स्पष्ट "रोगघ्न द्रव्यों" की सूची , अष्टांगहृदय उत्तर स्थान 40 श्लोक 48 से 58 यहां उपलब्ध है. इसमे 53 अग्र्य द्रव्यों का उल्लेख है, जिसमे प्रायः सभी रोगघ्न हि है, केवल 8 हि रोगघ्न नहीं है. इस प्रकार से इतने रोगों के लिए अग्रद्रव्यों का निर्देश यह वाग्भट का अतुलनीय योगदान है
इसीमे कुछ द्रव्यों का "बदलाव एवं नया समावेश", योग रत्नाकर ग्रंथ के अंत मे प्राप्त होता है... जैसे की
1.
ज्वर = मुस्तापर्पट के साथ *किरात* का उल्लेख हुआ है, यह नया है
2.
श्वास = भारंगी (और औषध शब्द से अगर शुंठी लेंगे तो वह भी) ... यह भी नया है
3.
तृष्ण = (मृद्भृष्ट जल के जगह) संतप्त हेम = सुवर्ण , यह भी नया है
4.
शूल = हिंगु + करंज ... यह नया है
5.
आमवात = (गोमूत्र युक्त)एरंडतैल, यह भी नया है
6.
वातव्याधी = गुग्गुल. यह भी नया है .
चरक मे वात के लिए रास्ना, बस्ति (तथा एरंडमूल) इनका उल्लेख है
अष्टांगहृदय मे वात के लिए लशुन का उल्लेख है
किंतु, योग रत्ना कर ने यहां पर गुगुल का उल्लेख किया है
7.
एक शंका के रूप मे पूछना है कि ...
अपस्मार के लिए ब्राह्मणी का उल्लेख प्राप्त होता है, संहितोक्त.
किन्तु यहां पर ...
अपस्मार = वचा स्पष्ट रूप से और "सह वागथ" ऐसा शब्द है ... तो इसका अर्थ क्या लेना चाहिए🤔⁉️
संभवतः "सह वाग् अथ" ऐसा संधि भेद करके ... वाक् का अर्थ वाणी अर्थात सरस्वती अर्थात ब्राह्मी ऐसा दूर से संबंध संहितोक्त अग्रेसंग्रह के साथ जोड सकते है
8.
अर्दित = माषेण्डरी उल्लेख है, यह भी नया है . किंतु, उसका अर्थ क्या लेंगे? 🤔⁉️
माष समझ सकते है , किंतु एंडरी का अर्थ या तो कोई स्वतंत्र द्रव्य है या माष से बनने वाला कोई कृतान्न है, ऐसे हो सकता है.
माषेण्डरी व एण्डरी इन दोनों शब्दों का संस्कृत डिक्शनरी मे अर्थ प्राप्त नही होता है किसी को अन्य किसी शब्दकोश से प्राप्त हो तो अवश्य विज्ञप्ती करे.
आदरणीय सन्मित्र वैद्य प्रयागजी सेठिया ने निम्न विज्ञप्ति भेजकर अनुग्रह किया है
[अथ माषपिष्टेण्डरी।]
माषस्येण्डरिकां कृत्वा खण्डशः सैन्धवान्विताम्
रन्धयेद्वेसवारेण तैले पक्का वटीसमा ।। १७ ।।
[Idli made from the flour of Bengal-gram]
After preparing an idli from besan (the flour of Bengal-gram), one should cut it in to pieces, mix it with black-salt and cook in the manner of Vadā, along with Vesavara, in oil. (17)
अण्डरी शुक्रदा वृष्या रूक्षा विष्टम्भकारिणी ।
कफवातहरा प्रोक्ता माषपिष्टभवेण्डरी ।। १८।।
Such an idli prepared from the flour of black- gram increases semen quantity, is aphrodisiac, causes.
संहिता में अर्दित के लिए नवनीत खंड ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है
9.
प्रदर = तिरीटक अर्थात लोध्र. यह भी नया समावेश है
10.
अरुचि = लुंग अर्थात मातुलुंग का नया उल्लेख है
11. व्रणे अन्य पुरः ऐसे लिखा है. यह भी नया है
संहिता मे त्रिफला गुग्गल का उल्लेख है
12.
अम्लपित्त रुजा (= ? वेदना या रोग?) = द्राक्षा. यह नया उल्लेख है
13.
मूत्रकृच्छ्र = वरी + कूष्मांड अम्बु, यह भी नया है.
वरी इसका अर्थ शतावरी लेना चाहिये, ऐसा लगता है
साथ में कूष्मांड जल का उल्लेख हुआ है जो वैशिष्ट्यपूर्ण है
और वाग्भट और सुश्रुत में, कूष्मांड को बस्ति शुद्धिकर ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है
साथ में चेतोविकारहारी व उरः संधान कारी यह भी कूष्मांड के लिये उल्लेख संहिता मे प्राप्त है
यहा पर कूष्माड अम्बु = कूष्मांडस्वरस यह मूत्र कृच्छ्र के लिए शतावरी के साथ उल्लेख हुआ है
संहिता मे गोक्षुर, मूत्रकृच्छ्र लिए उल्लेखित है
14.
निद्राक्षय = माहिष क्षीर का नया उल्लेख है संहिता मे केवल क्षीर का उल्लेख है
15.
श्वित्र = बाकुची फल. यह भी नया है
16.
भय = तोषण तुष्टी. यह भी नया है.
17.
अजीर्ण = निद्रा. यह नया उल्लेख है
18.
उर्ध्वजत्रुविकार = नस्य के साथ , तीक्ष्ण = मरिच और औषध = शुंठी लेना चाहिए . यह भी नया है
या तीक्ष्ण औषध = कोई भी तीक्ष्णगुण युक्त अन्य कोई भी औषध ऐसा लेना चाहिये
19.
मूर्च्छा मे शीत विधी यह संक्षिप्त उल्लेख है. संहिता मे अष्टांग हृदय मे शीत अंबु मारुत छाया ऐसा सविस्तर उल्लेख है
20.
अश्मरी = गिरीभिद् ऐसा उल्लेख है. यह भी नया है.
जिसका अर्थ पाषाणभेद लेना चाहिए.
किंतु संहिता ग्रंथो मे बस्तिजेषु गिरिजं अर्थात बस्तिरोग मे गिरिज अर्थात शिलाजतु का उल्लेख है
21.
गुल्म = शिग्रु त्वचा यह नया उल्लेख प्राप्त होता है.
वैसे शिग्रु का उल्लेख विद्रधि में पान भोजन लेपन के लिए अष्टांगहृदय और सुश्रुत मे प्राप्त होता है
22.
हिक्का = जतुरस नस्य यह भी नया है
जतुरस का अर्थ क्या लेना चाहिए ? 🤔⁉️
जतु का अर्थ लाक्षा होता है, ऐसा एक संदर्भ प्राप्त हुआ. किंतु लाक्षा रस का नस्य, यह विधान भी अभिनव है.
23.
भगंदर मे तूर्वीलता है या उर्वीलता है ? यह भी नया है.
किंतु उसका अर्थ क्या है?🤔⁉️
साथ मे , अश्व अस्थिनी ... यह भी नया उल्लेख है उसका अर्थ क्या है ?🤔⁉️
अगर अश्व के अस्थि ऐसा अर्थ लेना है, तो उसका प्रयोग कैसे करे ? 🤔⁉️
24.
वृष्टे रासभलोहितैः ... यह भी नया है किंतु, यह भी समझना थोडा दुष्कर है.
रासभलोहित = गधे का रक्त ऐसा होता है.
लेकिन उसका प्रयोग वृष्टी अर्थात कौन सी अवस्था या रोग मे करना है?? 🤔⁉️
25.
और स्वर गद का अर्थ क्या लेंगे? स्वरभेद लेना है ... तो उसमे पुष्कर मूल का मधु के साथ, यह नया उल्लेख है
वैसे संहिता में पुष्करमूल पार्श्व रुजा के लिए उल्लेखित है
यह योग रत्नाकर मे भी है
तो योग रत्नाकर मे, ऐसे कुछ 25 नये उल्लेखों का मैने प्रस्तुतीकरण किया है , जो चरक मे या उत्तर स्थान अष्टांगहृदय मे उल्लेखित नही है
और जो शंका प्रश्न संदेह है , उनकी भी यहां पर पृच्छा की है.
जिनको संभव है, वे संदेहों का निवारण करे.
जिनको रुची हो, वे इस लेख को पढकर अपना अभिप्राय दे
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