Saturday, 28 September 2024

हमको (मन की शक्ती X) *मन से मुक्ति* देना

हमको मन की शक्ती *मन से मुक्ति* देना 

लेखक✍️🏼 : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे 9422016871


अणुत्वमथ चैकत्वं द्वौ गुणौ मनसः स्मृतौ ॥


सर्वं द्रव्यं पाञ्चभौतिकमस्मिन्नर्थे 


मन एक द्रव्य है और 

आयुर्वेद मे सभी द्रव्य पांचभौतिक होते है 

तो मन भी पांचभौतिक होना चाहिये 

उसका स्पष्ट उल्लेख की, मन कौन से महाभूत प्राधान्य से बनता है, 

ऐसे कही पर लिखा नही है


भौतिकानि चेन्द्रियाण्यायुर्वेदे वर्ण्यन्ते


सभी इंद्रिय भी महाभूतजन्य ही है,

ऐसा भी इंद्रिय के लिए स्पष्ट संदर्भ है 

मन एक इंद्रिय है तो 

फिर से मन महाभूतजन्य होना चाहिये 

पर स्पष्ट संदर्भ नाही


जालान्तरगते भानौ यत्सूक्ष्मं दृश्यते रजः

तस्य त्रिंशत्तमो भागः परमाणुः स कथ्यते ॥ (1/30)

शार्ङ्गधर 👆🏼

तस्य षष्ठतमो भागः परमाणुः स कथ्यते (1/6)

पाठभेद👆🏼

तस्य षष्टितमो भागः परमाणुः स कथ्यते (1/60)

पाठभेद 

👆🏼

त्रसरेणुर्बुधैः प्रोक्तस्त्रिंशता परमाणुभिः (30)

त्रसरेणुस्तु पर्यायनाम्ना वंशी निगद्यते ॥

शार्ङ्गधर 


मन कौन से महाभूत अधिक्य से होता है यह संदर्भ उपलब्ध नही है 

तथापि उसको यदि महाभूतजन्य मान ही लिया जाये, तो ऐसा कह सकते है की महाभूतजन्य औषध और महाभूतजन्य आहार, ये मन तक पहुंचते है 


तभी औषध और आहार का मन पर हितकर अहितकर या वृद्धिक्षयात्मक परिणाम संभव है और फिर मन के रोगों का निदान महाभूतजन्य और मन का औषध भी महाभूतजन्य यह सैद्धांतिक स्तर पर स्वीकार्य होगा


यदि मन महाभूतजन्य है तो भी वह आकाश महाभूत प्रधान नही हो सकता क्यूकी आकाश तो विभू है और मन तो अणु है, तो यह सुसंगत नही होगा


आकाश का एक गुण सूक्ष्म है तो कुछ लोगों के मत से अणु का अर्थ सूक्ष्म लेना चाहिए किंतु अणु यह परादि गुणो मे आनेवाला परिमाण इस गुण का एक प्रकार है 

और सूक्ष्म यह एक स्वतंत्र गुर्वादी मे उल्लेखित गुण है

 इसलिये ये परस्पर पर्याय नही हो सकते 

मूलतः आकाश महाभूत प्रधान द्रव्यों को सूक्ष्म गुण है, ऐसा कहना ही शास्त्रीय दृष्ट्या अनुचित है. जो सूक्ष्म है वो विभू नही हो सकता, जो विभू है वह सूक्ष्म नही हो सकता, क्यूकी सूक्ष्म का विपरीत गुण स्थूल है, जिसे कुछ परिमाण मूर्तीमंतत्व होता है और विभु तो स्थूल से भी अधिक सर्वव्यापी इस प्रकार का द्रव्य होता है, इसलिये सूक्ष्म नही हो सकता और सूक्ष्म विभू नही हो सकता

दुसरा मन चंचल है गतियुक्त है अर्थात उसे चल गुण है. चल यह गतीवाचक शब्द घनपदार्थों के स्थानांतरण के लिए (डिस्प्लेसमेंट ऑफ सॉलिड आयटम्स) उपयोगी होता है यदी वह पदार्थ द्रव है तो उसके गती को स्थानांतरण को सरळ यह संज्ञा होती है इसलिये अगर मन चंचल है चल है तो वो घनपदार्थ स्वरूप होना चाहिये अर्थात मूर्तिमंत होना चाहिये अर्थात परिमाणवंत होना चाहिये और ऐसा है इसलिये उसको अनु यह परिमाण दिया है ऐसा शास्त्रीय संज्ञा और संदर्भ के अनुसार स्वीकार्य होना ही चाहिये


तो मन के परमाणु होने चाहिये, क्योंकि वैशेषिक दर्शन के अनुसार चार महा भूतों के परमाणु होते है और वैसे भी स्वयं चरकाचार्य ने मन का परिमाण, मन का मान, मन का एक गुण, अणु इस रूप मे मन होता है, यह स्पष्ट रूप से लिख दिया है.


आयुर्वेद , वैशेषिक दर्शन को मानता है.

इस कारण से अणु का अर्थ , हमे वैशेषिक दर्शन से प्राप्त होना स्वीकार करना योग्य होगा 


इस संदर्भ के अनुसार, मानवीय नेत्र को, किसी भी अन्य उपकरण के बिना, जो सबसे लघु आकार का सूक्ष्म कण दिखाई दे सकता है ... (द लीस्ट व्हिजिबल पार्टिकल the visible particle) उसको शार्ङ्गधर संहिता मे , वंशी या ध्वंशी ऐसा नाम है (चरक कल्प स्थान बारा मे है). 

इसका पर्याय नाम त्रसरेणु है,

एक त्रसरेणु जो है, यह तीन द्व्यणुकों से बनता है और एक द्व्यणुक यह दो अणुओंसे बनता है 


इसका अर्थ यह होता है कि,

मनुष्य के सामान्य नेत्र/दृष्टी से,

किसी भी अन्य उपकरण (इन्स्ट्रुमेंट) अर्थात चष्मा मायक्रोस्कोप इनकी सहाय्यता के बिना,

जो सूक्ष्मतम दृश्य कण देख सकती है ...

उसका छठा भाग (1/6) , अणु कहा जाता है ...

इसमे दो पाठ भेद है षष्ठतमो की जगह ...

शार्ङ्गधर मे त्रिंशत्तमो (1/30) तींसवा भाग) 

और किसी अन्य पाठभेद मे षष्टीतमो (बलदेव उपाध्याय : भारतीय तत्त्वज्ञान) अर्थात साठवा भाग (1/60) ...


तो इसका अर्थ यह हुआ की अगर हाय पॉवर मायक्रोस्कोप का उपयोग किया जाये, तो सामान्य नेत्र से दृश्यमान सबसे सूक्ष्म कणका यदि साठवा , 30 वा या छठा भाग , हम निश्चित रूप से आज देख सकते है ... अर्थात जो मन कभी अति+इंद्रिय था (अर्थात जिस मन का कभी रस टेस्ट गंध स्मेल शब्द साऊंड स्पर्श टच और सबसे महत्वपूर्ण रूप आकार रंग वर्ण शेप साइज कलर यह इंद्रिय ग्राह्य नही था) ... वह मन, अगर उसका प्रमाण अणु है , तो मायक्रोस्कोप के द्वारा वह दिखना हि चाहिए आज के काल मे !!!


चलो यह मान्य नही है, ऐसा होता है, तो 

अगर सामान्य नेत्र से, किसी उपकरण के बिना, दिखाई देने वाला सूक्ष्म तम कण उसका अगर छठा, 30 वा या साठवा भाग ... अणु है तो ...

अगर छ 6, तीस 30 या साठ 60 व्यक्ती एक साथ आ जाये , तो उस समय हमे उन सबका मिलके, मन सामान्य नेत्र से दृश्यमान होना ही चाहिये !!!

होता है या नही होता है ? आप सभी जानते है !!!


तो , मन नही होता है ...

मन नाम का द्रव्य अस्तित्व मे ही नही होता है !!!


मन तक आयुर्वेद पहुंचता है की नही ?

मन आयुर्वेद का विषय है की नही? 

मन आयुर्वेद का अधिकरण है की नही? 

मन पर आहार का सु/दुष्परिणाम होता है की नही? 

मन की औषध से चिकित्सा होती है की नही? 

इन सभी प्रश्नों का उत्तर तो निश्चित रूप से , "नही , नही, नही", यही है ...!!!


श्रीमद्भगवद् गीता में आहार का त्रिविध गुणों के अनुसार वर्णन उपलब्ध है ... तो लोग कहते है कि ये सात्त्विक राजस आहार का वर्णन है ... किंतु ठीक से पढेंगे तो श्लोक का अंतिम शब्द है सात्विकप्रियाः राजसप्रियाः ... तो आहार सात्विक नही है , आहार राजस नही है, ये "सात्विक राजस लोगो को किस प्रकार का आहार प्रिय है, उस आहार का वर्णन" है! तो संस्कृत भाषा को ठीक से पढ़े. संदर्भ को तोड मरोडकर अपनी सुविधा के लिए उपयोग ना करे


उसके आगे जाकर, 

अगर इस मन का प्रमाण अणु है 

और वह सामान्य नेत्र से दिखने वाले सूक्ष्मतम कणका छठा, 30 वा साठवा भाग है और तब भी, फिर भी वह मन मायक्रोस्कोप से नही दिखाई देता है ...

तो मन नाम का द्रव्य अस्तित्व मे ही नही होता है 


बहुत सारे लोगो ने, बहुत सारे संदर्भ में, बहुत सारे ग्रंथो मे, बहुत दीर्घकाल से किसी चीज का अस्तित्व है ... ऐसा कहा गया है , *"इसलिये"* वह अस्तित्व मे होता है, ऐसे नही होता है.


कभी तो अज्ञान के तिमिर से बाहर आईये ...

और , मन का अपने बुद्धी से वमन करके उसको फ्लश कीजिए

मन और आयुर्वेद इस विषय पर प्रकाशित यह व्हिडिओ अवश्य देखे 👇🏼

https://youtu.be/aV3t6yyrgi0?si=8O2qsyKpxw77NOcI






✍️🏼

वैद्य हृषीकेश म्हेत्रे

एमडी आयुर्वेद एम ए संस्कृत

आयुर्वेद क्लिनिक्स @ पुणे & नाशिक 


9422016871


www.YouTube.com/MhetreAyurved/


www.MhetreAyurveda.com 

No comments:

Post a Comment