गृध्रसी नाशक वटी : सायटिका L5 S1 DEGENERATION लंबार स्पाॅन्डिलाॅसिस सर्व्हायकल स्पाॅन्डिलाॅसिस कटी जानु मन्या स्कंध वेदना में लाभदायक परिणामकारी
लेखक : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे, एम डी आयुर्वेद, एम ए संस्कृत
म्हेत्रेआयुर्वेद 9422016871
आयुर्वेद क्लिनिक @ पुणे (रविवार) & नाशिक (गुरुवार)
MhetreAyurveda@gmail.com
गृध्रसी नाशक वटी
शास्त्रीय ग्रंथ संदर्भ Scientific Classical Reference
गृध्रस्यां क्वाथद्वयम् ।
हिङ्गुपुष्करचूर्णाढ्यं दशमूलशृतं
जयेत् गृध्रसीं
केवलः क्वाथः शेफालीपत्रजः “तथा” (= जयेत् गृध्रसीं)
शार्ङ्धर मध्यम खंड अध्याय 2 श्लोक 86
वस्तुतः ये दो अलग कल्प है
1. दशमूल के क्वाथ में हिंगु और पुष्कर चूर्ण का प्रक्षेप
2. शेफाली अर्थात निर्गुंडी के पत्रके क्वाथ में हिंगु और पुष्कर चूर्ण का प्रक्षेप
किंतु, गृध्रसी नाशक वटी सप्तधा बलाधान टॅबलेट बनाते समय म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA ने इन दोनों कल्प के घटक द्रव्य, एक साथ जोड दिये
अर्थात ,
घटकद्रव्य contents
1. दशमूल
2. निर्गुंडी पत्र
3. हिंगु चूर्ण &
4. पुष्कर चूर्ण
ये समान मात्रा मे लेकर
Process प्रक्रिया
उनको दशमूलक्वाथ, निर्गुंडी पत्र & पुष्करमूल के क्वाथ के 7 बलाधान किये
अर्थात अगर उपरोक्त मूल 4 घटक चूर्ण कुल मिलाकर 1 किलो है …
तो, उसमे 7 किलो दशमूल चूर्ण का जितना क्वाथ बनेगा उतने क्वाथ का
और 7 किलो निर्गुंडी पत्र के चूर्ण का जितना क्वाथ बनेगा उतने क्वाथ
उसमे 7 किलो पुष्कर मूल चूर्ण का जितना क्वाथ बनेगा उतने क्वाथ का
का absorption/adsorption करवाया गया
इसमे 250gms घृत भर्जित हिंगु चूर्ण मिलाया गया
हिंगु चूर्ण प्रक्षेप ही सभी कल्पों होता है , उसकी क्वाथ कल्पना नही बनती है
और फिर उसके 250 के टॅबलेट बनाये गये
उपयोग विधी और मात्रा Dose & Duration
यह टॅबलेट
वेदना की तीव्रता तथा
व्याधी की क्रॉनीसिटी, इनके अनुसार
दो टॅबलेट तीन बार (2 TDS) ,
भोजन से पहले = अपान काल मे = प्राग्भक्त काल मे
या
तीन गोली दो बार (3 BD),
भोजन से पहले = अपान काल मे = प्राग्भक्त कालमें देने से ,
आधे घंटे (30 मिनिट) से लेकर तीन घंटे (3 Hrs) मे वेदनाशमन होता है, ऐसा अनेक पेशंट का अनुभव है
गृध्रसी का उल्लेख वात के नानात्मज 80 विकारों मे है
तथा इसका लक्षण
पार्ष्णिं प्रत्यङ्गुलीनां या कण्डरा मारुतार्दिता।
सक्थ्युत्क्षेपं निगृह्णाति गृध्रसीं तां प्रचक्षते॥
⬆️ वाग्भट
&
स्फिक्पूर्वा कटिपृष्ठोरुजानुजङ्घापदं क्रमात् ।
गृध्रसी स्तम्भरुक्तोदैर्गृह्णाति स्पन्दते मुहुः
⬆️ चरक
इस प्रकार से लिखा है …
जिसे आज सायटिका माना जाता है
किंतु इस वेदना का मूल कारण *नर्व्ह कॉम्प्रेशन* यह होता है …
जिसका क्लिनिकल एक्झामिनेशन
सक्थ्युत्क्षेपं निगृह्णाति इन संस्कृत शब्दों मे अर्थात
एस एल आर टेस्ट SLR TEST के द्वारा किया जा सकता है
परिणामकारकता result yeild
1.
प्रायः 40 के पहले के वय के पेशंट मे , (age <40 years)
6 सप्ताह से 3 महिने तक के उपचार कालावधी मे यह अपुनर्भव रूप मे उपशम प्राप्त करता है
2.
40 के पश्चात (age 40+) तथा
मेनोपॉज की अवस्था की महिलाये तथा
अति स्थौल्य / अतिकार्श्य
स्पोर्ट्स शूज पहने बिना कठिन भूमि पर चलना/खडे रहना
कटी से संबंधित व्यवसाय = देर तक खडा रहना : वाॅचमन सिक्युरिटी शिक्षक लॅब टेक्निशियन सेल्समन, ड्रायव्हिंग करना, भारी बोझ उठक पटकन करना , सेडेंटरी जॉब , बहुत ज्यादा स्टेप चढना उतरना डिलिवहरी पर्सन, विशेषता बाईक पर दाहीनी टांग घुमाकर बैठना उतरना,
अति अम्ल अति लवण और अतिकटु पदार्थों का सेवन करना !
लवण रस खालित्य पालित्य करता है अर्थात अस्थि का क्षरण करता है
इसलिये चायनीज नूडल्स बेकरी पदार्थ फरसाण नमकीन चीज बटर आचार उपर से आहार मे नमक लेना इस आहार को बंद करना चाहिए
अम्लरस ॲसिड होने के कारण कॅल्शियम को डिजनरेट करता है
इसीलिए सेब सफरचंद एप्पल संत्रा मोसंबी निंबू अचार कोल्ड्रिंक विनेगार साउथ इंडियन फर्मेंटेड पदार्थ टोमॅटो सॉस केचप दही छास इनका अति सेवन या नियमित सेवन वर्ज करना चाहिये
भावप्रकाश मे अम्लातिसेवन से अस्थि क्षय का उल्लेख हुआ है
कटुरस के अतियोग मे कटीपृष्ठ व्यथा इसका उल्लेख है अष्टांगहृदय सूत्र 10
इसलिये अत्यंत मसालेदार चटणी मिरची युक्त मांसाहार या व्हेज पदार्थों का सेवन शेजवान चाट के सभी पदार्थ इनका सेवन नही करना चाहिए
इसी कारण से तंबाखू का किसी भी रूप मे सेवन पूर्णतः और तुरंत उस दिन से बंद करना चाहिए इसमे बिडी सिगारेट स्मोकिंग गुटखा पान मसाला तंबाखू खाना मिस्त्री लगाना तंबाखू की टूथपेस्ट लगाना तपकीर नाक मे सूंघना
और साथ ही ऑफिस मे या घर मे अपने आसपास की व्यक्ती द्वारा स्मोकिंग होते रहना , यह भी विशेष रूप मे अस्थियों के क्षीणता का कारण है
मूल संप्राप्ति
एल फाईव्ह एस वन डी जनरेशन L5 S1 DEGENERATION अर्थात व्हर्टिब्रल डीजनरेशन के विविध प्रकार का हेतू होता है जो आगे चल कर डेसीकेशन डिस्क बल्ज आदि रूप मे मॅनिफेस्ट होता है, जो गृध्रसी का मुख्य हेतू है
वही बात विश्वाची की है जिसमे C 7 6 5 इस उलटे क्रम से मन्या के व्हर्टेब्रा का डी जनरेशन होता है,
इसीलिए यह गृध्रसी नाशक टॅबलेट,
सायटिका, लंबार स्पॉंडिलॉसिस, लो बॅक पेन, सेक्रो इलियाक इन्फलामेशन, L5 S1 डी जनरेशन, मसल्स स्पॅम ऐसे पेल्विक गर्डल से रिलेटेड वेदना विकृती के साथ साथ ही,
अप्पर बॅक या शोल्डर गर्डल से रिलेटेड फ्रोजन शोल्डर, सर्वाइकल स्पॉंडिलॉसिस, C 5 6 7 डी जनरेशन, मन्या स्तंभ, कॉलर या बेल्ट लगाने की आवश्यकता होना, कमर से पांव तक झुनझुनाहट भारीपन या बधिरता / बाधिर्य ऐसे सभी
कटी जानु और मन्या स्कंध वेदनाओ मे यह टॅबलेट अपेक्षा से भी शीघ्र वेदनाशमन का लाभदायक परिणाम देती है
पार्ष्णिं प्रत्यङ्गुलीनां या कण्डरा मारुतार्दिता।
सक्थ्युत्क्षेपं निगृह्णाति गृध्रसीं तां प्रचक्षते॥५४॥
तलं प्रत्यङ्गुलीनां या कण्डरा बाहुपृष्ठतः|
बाहुचेष्टापहरणी विश्वाची नाम सा स्मृता||३१||
खल्ली तु पादजङ्घोरुकरमूलावमोटनी ॥
विश्वाची गृध्रसी चोक्ता खल्ली तीव्ररुजान्विते।
विश्वाची + गृध्रसी = खल्ली
इन दोनो रोगों मे पार्ष्णि तथा बाहुपृष्ठ शब्द से यहा की वेदना कंधे से लेकर हाथ की उंगली तक तथा कटी से लेकर पार्ष्णि पीछे के भाग से पादांगुली तक के प्रदेश मे POSTERIORLY होती है, यह आकलन होता है
साथ ही “सक्थि उत्क्षेपं निगृह्णाति” यह शब्द एक्झॅक्टली एस एल आर टेस्ट SLR TEST का ही उदाहरण है !
सक्थि (= अर्थात संपूर्ण पांव) उत्क्षेपण अर्थात उपर उठाना , निगृह्णाति अर्थात असमर्थ होना , उपर उठने न देना, जकडकर खींच के रखना
बाहुचेष्टापहरणी यह शब्द भी अगर हम SLR की तरह हात के लिए BHRT Both Hand Raise TEST, यह नयी टेस्ट डिझाईन करे …
की दोनो हस्ततल / हात नमस्कार की तरह जोडकर, छाती / स्टर्नम के पास रख कर, उनको धीरे धीरे, एक दूसरे से जुडे हुए स्थिती मे, हनु नासा कपाल ऐसे उपर उठाते उठाते, पर्वतासन की तरह, अगर शिर के उपर अंत तक ले जा सके, जब की आपके दोनो क्युबायटल फोसा, आपके कान को टच हो जाये, तो यह नॉर्मल परीक्षण होगा… एसएलआर की तरह हात के लिये BHRT
और यह जितना नीचे याने छाती से ऊपर ले जाते समय, हनु या नासा तक ही वेदना होने लगे … निगृह्णाति = ग्रह = उपर उठाने मे अक्षम होने लगे तो उतने सर्व्हायकल व्हर्टेब्रे का डी जनरेशन या विकृती समजना चाहिए …
इस प्रकार का क्लिनिकल टेस्ट किसी मॉडर्न मेडिसिन बुक मे या गूगल पर नही मिलेगा किंतु, यह मैने MhetreAyurveda ने ट्रीट किये हुए 3000 से भी अधिक केसेस मे किया हुआ निरीक्षण है
प्रस्तुत, गृध्रसी नाशक टॅबलेट मे
दशमूल स्वयं वातशामक = वेदनाशामक है
दशमूल सिद्धक्षीर का उल्लेख सद्यः शूल निवारण के रूप मे वातरक्त मे आता है
पुष्कर पार्श्वरुजा का अग्रद्रव्य है अर्थात पर्शुकाओं का अंत पृष्ठ में जहां पर होता है, उन Thoracic vertebrae प्रदेश में होता है इसमे पुष्कर यह वेदनाशमन के रूप मे उपयोग है
कोष्ठ प्रदेश में होने वाले अर्थात नाभी के आसपास के प्रदेश मे होने वाले अर्थात लंबार प्रदेश मे होने वाले शूल के लिये उपयोगी है यह तो सर्वज्ञात है
और निर्गुंडी को तो एक *सुपर औषध* के रूप में मानना चाहिए …
क्यू की जब भी आयुर्वेद मे वेदनाशमन की बात आती है तो योगराज या सिंहनाद के साथ साथ सबसे पहले चॉईस होता है महा वात विध्वंस, जिस मे कार्यकारी द्रव्य देखा जाये, तो उसको निर्गुंडी की ही भावनायें हैं, बाकी साडेचार भाग बचनाग/वत्सनाभ जिस कल्प मे है! ऐसे अत्यंत विष स्वरूप वत्सनाभ के कारण होने वाले हायपोटेन्शन के कारण शॉक मे जाकर modern medicine के hospital में ICU में Admit होने का अनुभव कुछ प्रसिद्ध वैद्योंको स्वयं को है!
ऐसे कल्प को उपयोग करने की बजाय, जो उसका भावना द्रव्य है, जो निरापद है और शीघ्र उपशमकारी है, उस भावना द्रव्य “अर्थात निर्गुंडी का ही इसमे प्रमुख घटक” के रूप मे समावेश है , जो वातशामक = वेदनाशामक है!
और पुष्कर सर्वाइकल थोरॅसिक शूल का विशेष रूप से शूल नाशक है , ऐसा अग्रेसंग्रह अष्टांग हृदय उत्तर तंत्र अध्याय 40 श्लोक 48-58 मे उपलब्ध है पार्श्व शूले पुष्करजा जटा
तथा
हिंगु लंबार एरिया के शूल का विशेष रूप से नाशक है, क्यूंकी आध्मान गॅस मलअवरोध से पक्वाशय कुक्षिक्षेत्र में जो वात का उदावर्त/अवरोध होता है , उसके दबाव के कारण भी मसल्स स्पॅझम होकर लंबार प्रदेश से कटी जानु की और शूल हो सकता है, जो वातानुलोमनसे उपशम प्राप्त करता है
यह देखते हुए, गृध्रसी नाशक टॅबलेट सैंद्धांतिक रूप से और
मेरे स्वयं के अनुभव के अनुसार 3000 से भी अधिक रुग्णों मे वेदनाशमन के लिए अत्यंत शीघ्र, अल्पकाल मे लाभदायक परिणामकारक सिद्ध हुई है
इसके साथ अगर लशुन क्षीरपाक दिया जाये तो और अधिक कार्मुक होता है
गृध्रसी = सायटिका का मुख्य कारण नर्व्ह कॉम्प्रेशन है
नर्व्ह कॉम्प्रेशन का मुख्य कारण vertebrae/ disc Degeneration जिसे अस्थि तरुणास्थि क्षय के रूप मे समझ सकते है
और ऐसे डीजनरेटेड अस्थि को भग्नाधिकार के औषधों से अपुनर्भवरूप मे ठीक किया जा सकता है , जो पेशंट हमने आज से 10 15 20 22 साल पहले किये ठीक है, वे आज भी अपने पैरो पर खडे है & वेदना मुक्त स्थिती मे कार्यरत है, वो भी बिना किसी ऑपरेशन सर्जरी के, बिना बेल्ट लगाये कॉलर लगाये, बिना knee cap knee brace में
नर्व्ह कॉम्प्रेशन का कारण डिस्क डीजनरेशन है जिसे अस्थि क्षय व भग्नाधिकार के अनुसार विशेष रूप मे तरुणास्थी अधिष्ठान मानकर समजा जा सकता है इसके लिये दो मुख्य औषध है
*लशुन क्षीरपाक & यष्टी लाक्षा*
इसके साथ हि चरकसूत्र २८ और वाग्भट सूत्र 11 मे आये हुये पंचतिक्त क्षीर/घृत सहाय्यक उपयोगी होता है, किंतु यह दीर्घकाल देना आवश्यक होता है, जो डीजनरेशन की परिस्थिती, पेशंट का वय /अवस्था , उसके एडिक्शन , उसके व्यवसाय उसके आहार इन सभी पर निर्भर होता है
जो प्रेझेंटिंग कंप्लेंट, अत्यंत वेदना, चलने मे अक्षमता, यह होती है … उसके लिए गृध्रसी नाशक टॅबलेट अत्यंत शीघ्र लाभदायक परिणाम देती है
उसके साथ द्रुत विलंबित गो और दुरालभादि वेदनाशामक टॅबलेट भी उपयोगी होती है
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वातहरों में सर्वश्रेष्ठ बस्ति है जिसको देना और पेशंट के लिये लेना, दोनोही समय अपहरक , थेरपीस्ट पर अवलंबून , अनेक बार नॉन ॲफॉर्डेबल , एक ही बस्ती मे काम न होना, घर छोडकर क्लिनिक तक आना जाना और फिर भी उपशम के गॅरंटी न होना, ऐसा बस्ती के बारे मे होता है
फिर वातहर मे दूसरा सर्वश्रेष्ठ तैल है, जिसकी डिस्पेन्सिबिलिटी और जिसकी ट्रान्सफर्टीबिलिटी ,परिणाम की गॅरंटी इसके बारे मे दुरवस्था है
तिसरा वातहर सर्वश्रेष्ठ द्रव्य रास्ना है, जिसकी संदिग्धता बहुत अधिक है और वातजन्य संप्राप्ती के जगह, आमजन्य संप्राप्ती मे अधिक उपयोगी है
चौथा वातहर श्रेष्ठ द्रव्य एरंडमूल कहा गया है किंतु उसकी भी उपयोगिता उतनी सिद्ध नही है और उपलब्धता भी दुष्कर है और एरंड तेल तो और भी व्यापत् कारक है ... और एरंड तेल की ट्रान्सपोर्टेबिलिटी दुर्गंध और उसकी टेस्ट ये भी सारा पेशंट के लिये उतना सुकर नही होता है
ऐसी स्थिति मे जिसका उल्लेख चरक मे वातहर अग्रे द्रव्य में नही है, किंतु …
वाग्भट ने जिसे वातहर द्रव्य मे अग्रद्रव्य के रूप मे प्रशस्तीकारक द्रव्य के रूप मे उल्लेख किया है वह है “प्रभंजनं जयति लशुन:” … लशुन एक ऐसा द्रव्य है जो हर घर में उपलब्ध है, बारा महिने उपलब्ध है, प्रायः वर्ष मे एखाद महिना छोड दिया तो ॲफोर्डेबल है और इसका उपयोग करना बस्ती/तैल/रास्ना/एरंड मूल की तुलना मे सुकर है और यदि म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA फार्मसी द्वारा निर्मित लसूण क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स दिया जाये, तो ये और भी सुकर और शीघ्र परिणामदायक होता है इसकी वेदना शमन का इफेक्ट बढाने के लिए, पोटेन्सी बढाने के लिए, लशुन के साथ साथ आर्द्रक का संमेलन करके, “रसोन आर्द्रक क्षीरपाक” बनाया है, जो ये दोनो कटुरस के श्रेष्ठद्रव्य है, पिप्पली को निकाल दिया जाये तो !
पिप्पली को उबालना यह शास्त्र को उतना संमत नही है, पिप्पली अनेक अवलेहो में संपूर्ण अग्निसंस्कार पश्चात के प्रक्षेप चूर्ण के रूप मे आती है. इसलिये म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA कटुरस के तीन श्रेष्ठ द्रव्य मे से, पिप्पली को हटा कर “रसोन आर्द्रक क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स” बनाया है, जो वेदनाशामक दुरालभादि या द्रुतविलंबितगो या प्रस्तुत गृध्रसी नाशक वटी के साथ गरम पानी/दूध मे एक चमचा मिला कर , प्राग्भक्त = भोजनपूर्व = अपान काल मे दिया जाये, तो वेदनाशमन का कार्य प्रायः अतिशय शीघ्र होता है
“प्रभंजनं जयति लशुन” का अर्थ है , जो भंजन करने मे प्रकर्षेण = अतिशय समर्थ है = अस्थियों का डीजनरेशन जिसके कारण तेज गति से होता है, शीघ्र गति से, अल्पकाल मे होता है … क्योंकि अस्थि और वात का आश्रयाश्रयी भाव संबंध = परस्पर विरोधी है! वात बढेगा, तो अस्थी घटेगा!!
कभी कभी क्षीर का बहुत उद्वेग उत्कलेश होता है, क्षीर का पचन नही होता है कुछ लोगों को छर्दि हृल्लास होता है, कुछ लोगों को ब्लोटिंग होता है ळ, कुछ लोगों को अच्छा दूध नही मिल पाता, कुछ लोगों को दूध लेने से भी ॲसिडिटी गॅस होता है, कुछ लोगों को विरेचन हो जाता है, कुछ लोगों को लॅक्टोज इन्टॉलरन्स होता है, तो जो लोग क्षीरपाक नही ले सकते हो, वे रसोन आर्द्रक के ग्रॅन्युल्स गरम पाणी के साथ ले सकते है
या उससे भी अधिक अच्छा सतीनज यूष अर्थात सूखे मटर वाटाणा peas का, पानी मे उबाल कर, उनको पक जाने तक, पानी मे उबालना और सूखे मटर वाटाणा peas पक जाने के बाद भी, जो पानी शेष रहे जायेगा वह यूष के रूप मे एक चमचा घृत के साथ और एक चम्मच रसोन आर्द्रक ग्रॅन्युल्स के साथ, 7 या 14 लसुन की कलियां डालकर ही सूखे मटर वाटाणा peas उबालना पकाना और यह यूष, एक चम्मच घृत के साथ अपानकाल मे लेना.
यह जिनको क्षीर का असहत्व है, द्वेष है उनके लिये उपयोगी होता है सतीनज यूष का उल्लेख भग्नाधिकार मे सुश्रुत मे हुआ है, वाग्भट मे भी हुआ है
इसलिये 40 वय के पश्चात भग्न साध्य नही है, ऐसे सुश्रुत ने उसके भग्न अध्याय मे लिखा है
और हम भी देखते है की 40 वय के बाद बाथरूम मे फिसलकर कोई व्यक्ति गिर जाता है , तो उसका सबसे जो दुर्बल अस्थि/संधि है, वह क्लॅविकल नही फ्रॅक्चर होता है , किंतु बल्कि उसका सबसे सामर्थ्यवान सबसे स्ट्रॉंग और सबसे डीप ऐसा जो अस्थि/संधी है वह फीमर हेड टूट जाता है!!! क्यूं कि, फीमर हेड अर्थात जघन यह अस्थिवहस्त्रोत का मूल है , तो वही से यह विकृती शुरू होती है और अगर वही से इसको ठीक करना है , तो ऐसे भग्नकारी वात को, जीतने वाले लशुन का उपयोग करना या बुद्धिमानी है
इसलिये फिमर हेड मे जिसकी संप्राप्ती है ऐसे AVN मे भी लशुन क्षीरपाक, द्रुतविलंबितगो या वेदनाशामक दुरालभादि या प्रस्तुत गृध्रसी नाशक, इन सप्तधा बलाधान औषधी कल्पों का अच्छा उपयोग होता है
इसके साथ साथ अस्थि क्षय का सूत्र है उसमे से तिक्तद्रव्य क्षीरपाक के रूप मे यदि पंचतिक्त या यष्टी गुडूची का प्रयोग किया जाये तो ये और भी शीघ्र निश्चित लाभदायक परिणाम देता है, वेदनाशमन के लिए भी और दीर्घकालीन अपुनर्भव यश के लिए भी!
यष्टी लाक्षा टॅबलेट from MhetreAyurveda
यष्टी और लाक्षा
भग्नाधिकार मे उल्लेखित ये मुख्य दो द्रव्य है , जो आभ्यंतर प्रयोग के रूप मे उपयोगी है …
लाक्षा का सप्तधा बलाधान नही कर सकते, क्यू कि वह एक निर्यास है
लाक्षा संधानकारी अग्रे द्रव्य है … कृमिजा संधाने अष्टांगहृदय उत्तर तंत्र अध्याय 40 श्लोक 48 से 58
&
यष्टी चरकोक्त महाकषायों मे सर्वाधिक बार रिपीटेड द्रव्य है
और यष्टी का अग्रेसंग्रह चरक सूत्र 25 मे सबसे लंबा है …
मधुकं चक्षुष्यवृष्यकेश्यकण्ठ्यवर्ण्यविरजनीयरोपणीयानां,
और
यष्टी स्पष्ट रूप मे भग्नाधिकार मे उल्लेखित है
यष्टी & लाक्षा का समप्रमाण मे बनाया हुआ म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA फार्मसी का यष्टी लाक्षा टॅबलेट अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है और केवल डी जनरेशन ऐसे अस्थिक्षयजन्य वेदनाओं में ही नही अपितु, दंतरोग केशपतन खालित्य पालित्य इसमे भी यष्टी & लाक्षा का प्रयोग पंचतिक्त या यष्टी गुडूची क्षीरपाक के साथ लाभदायक होता है
इसका अनुकूल परिणाम हेमंत और शिशिर इन ऋतुओ मे = नोव्हेंबर डिसेंबर जानेवारी फेब्रुवारी = मार्गशीर्ष पौष माघ फाल्गुन इस काल मे सर्वाधिक होने की संभावना रहती है !
मात्र 6 से 12 सप्ताह (= मात्र 1.5 महिने से 3 महिने) के उपचार कालावधी मे इसमे अपेक्षित लाभदायक परिणाम प्राप्त होता है
इसी प्रयोग से, जिस वय में हाईट बढना संभव है, किंतु फिर भी अपेक्षित हाईट वृद्धी नही हो रही है, ऐसे वय के युवाओं की युवतीयोंकी की हाईट अपेक्षित या उसे भी अधिक बढ सकती है
अर्थात इसमे अस्थिक्षयकारी अस्थिवृद्धीविरोधक ऐसे अम्लरस कटुरस लवणरस के अन्नपदार्थों का, पर्युषित अन्न (अर्थात निशोषित अर्थात बासे स्टेल stale) , मैदा कॉर्नफ्लोअर बेकरी जन्य पदार्थों का तथा तंबाखू मद्य जैसे द्रव्य का सेवन पूर्णतः वर्ज्य होना आवश्यक होता है. साथ ही क्षीरौदन क्षीरघृत इनका अपानकाल में सेवन लाभदायक सिद्ध हो सकता है.
हाईट बढाने के औषध उपचार के प्रयोग कालावधी मे रनिंग करना जंपिंग करना स्किपिंग रोप का प्रयोग करना सिंगलबार पर लटकना यह प्रकार वर्ज्य करे!
एवं भी पांव, घुटने, कमर, मणके, वरटेब्रा, लो बॅक, मन्या, इनकी वेदनाओ में तथा सायटिका लंबार स्पॉंडिलसिस सर्वायकल स्पॉंडिलॉसिस स्कंध वेदना फ्रोजन शोल्डर इन सभी अस्थिक्षयजन्य वेदना मे, उपरोक्त रनिंग करना जंपिंग करना स्किपिंग रोप का प्रयोग करना सिंगलबार पर लटकना यह प्रकार वर्ज्य करे! तथा बॅडमिंटन टेबल टेनिस लॉन टेनिस क्रिकेट ट्रेकिंग फुटबॉल व्हॉलीबॉल स्टेप चढना उतरना दस किलो से अधिक वजन बोज भार वेट उठाना, यह जितना हो सके उतना बंद रखे
यष्टी रोपण व शीत है
लाक्षा संधानकारी है
इसलिये अति रक्तस्राव मे भी स्तंभन के रूप मे इसका उपयोग होता है , जैसे कि योनिगत, नासागत, गुदगत, कंठगत (oesophagial varices), दीर्घकालीन री करंट पुनरावर्तक अतिप्रमाण रक्तस्राव मे भी यह उपयोगी है
इन रक्तस्त्रावों में , यष्टी लाक्षा के साथ, यष्टी सारिवा यह भी सप्तधा बलाधान टॅबलेट उपयोगी होती है. विशेषतः क्षोभ शोक स्ट्रेस ऐसे वैचारिक भावनिक बौद्धिक प्रक्षोभक तथा बाह्य वातावरण के उष्ण तीक्ष्ण गुणयुक्त तथा कटु अम्ल लवण उष्णयुक्त आहारजन्य , दाह पाक आभ्यंतर व्रण ऐसे कंप्लेंट मे भी यष्टी सारिवा उपयोगी है
https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/07/blog-post_6.html



Namaste sir
ReplyDeleteSir शेफाली तो पारिजात, हारश्रृङ्गार को कहते हे