Saturday, 19 October 2024

चिकुनगुन्या डेंग्यू इत्यादि ज्वर सहित या विरहित या पश्चात होने वाले संधि शूल शोथ ग्रह सकष्ट आकुंचन प्रसारण मे उपयोगी शीघ्र उपशमदायक योग

चिकुनगुन्या डेंग्यू इत्यादि ज्वर सहित या विरहित या पश्चात होने वाले संधि शूल शोथ ग्रह सकष्ट आकुंचन प्रसारण मे उपयोगी शीघ्र उपशमदायक योग


लेखक✍🏼 : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे 9422016871


विगत कुछ दिनो मे, ज्वर के पश्चात या ज्वर के बिना भी, संधिशूल विशेषतः एक्स्ट्रीमिटीज= हात पांव के उंगलियों के संधि तथा मणिबंध गुल्फ; कुछ पेशंट मे जानु कटी अंस मन्या कूर्पर पृष्ठ इन संधियों में भी शूल शोथ आरक्तता स्तंभ ग्रह, संधि के चलनवलन में कष्ट/दुष्करता ... इस प्रकार के लक्षण होते है. कुछ पेशंट मे सुबह के 10 बजे तक इन लक्षण में वृद्धि या अनुपशम होता है और प्रातः 10 के पश्चात लक्षणों में हानी या उपशम होता है. चिकनगुनिया डेंग्यू टायफाॅईड ऐसे रिपोर्ट पॉझिटिव आये हुए रहते है, कुछ में नही रहते है.


लीन दोष धातुगत दोष पुनरावर्तक ज्वर या ज्वर पश्चात विकृति जीर्णज्वर विषमज्वर ऐसे विविध प्रकार का आकलन होता है. जंतुजन्य ज्वर होने के कारण, कुछ वैद्य इसे कीट विष मानकर अगद कल्प से भी उपचार करने का मत रखते है


तो प्रायः यह आमवात के रूप मे जानकर, उस प्रकार के कल्प देने का कुछ वैद्यों मे विधान है, किंतु इसका सुनिश्चित आयुर्वेदिक निदान प्रायः नही हो पाता है. 


प्रायः इसमे रास्ना पंचक रास्ना सप्तक महारास्नादि ऐसे कल्प दिये जाते है.


एक "संभावना मात्र" प्रस्तुत कर रहे है और उस संभावना के अनुसार , अनुभव के आधार पर कल्प लिख रहे है.


विषमज्वरो मे जो चरकोक्त पांच विषमज्वर है, इसमे इस प्रकार का लक्षण या स्थान वैशिष्ट्य वर्णित नही है. सुश्रुत उत्तर तंत्र 39 मे, विषमज्वरो के इन 5 प्रकार के साथ हि, संधि गत दोषों से होने वाला प्रलेपक विषमज्वर उल्लेखित है और अगर उस प्रकार का विचार करके उसके लिए, उल्लेखित सुश्रुतोक्त द्रव्य /योग /कल्प दिये जाते है, तो इसमे शीघ्र तथा दीर्घकालीन उपशम प्राप्त होता है. 

1. पटोलकटुकामुस्ता

2. कटुकामुस्ताप्राणदा (प्राणदा = हरीतकी)

3. मुस्ताप्राणदामधुक (मधुक = यष्टी)

4. पटोलकटुकामुस्ताप्राणदा

5. कटुकामुस्ताप्राणदामधुक

6. पटोलकटुकामुस्ताप्राणदामधुक 

पटोलकटुकामुस्ताप्राणदामधुकैः कृताः। 

त्रिचतुःपञ्चशः क्वाथा विषमज्वरनाशनाः

अष्टांग हृदय चिकित्सा स्थान अध्याय 1 ज्वर चिकित्सा तथा सुश्रुत उत्तरतंत्र 39 मे उल्लेखित है. (इन 5 द्रव्यों के 16 योग बनते है, ऐसे डह्लण टीका मे वर्णित है.) तो इसमे से उदाहरण के तौर पर 6 योग, उनके द्रव्य एवं "पेशंट के अन्य लक्षणों के अनुसार" , योजना करके देखा है और प्रायः उन सभी पेशंट मे शीघ्र तथा दीर्घकालीन या अपुनर्भव उपशम प्राप्त हुआ है. ये 6 योग सप्तधा बलाधान टॅबलेट के रूप मे प्रयुक्त किये है. लक्षण की तीव्रता के अनुसार 6 टॅबलेट दो बार या तीन बार, इस प्रकार से प्रारंभ मे और लक्षण में उपशम के बाद, दो या तीन टॅबलेट दो या तीन बार, इस प्रकार से योजना की है.

इन योगों के बारे मे सविस्तर अधिक जानकारी के लिए इस 👇🏼लिंक का उपयोग करके लेख पढे

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/09/x.html


इन 6 योगों के साथ हि, शीघ्र वेदनाशमन के लिए, वेदनाशमन योग, जो दुरालभादि योग (= दुरालभा अमृता मुस्ता नागर) है, अष्टांगहृदय चिकित्सा स्थान 1 मे, उसके सप्तधा बलाधान टॅबलेट का उपरोक्त विधान से उपयोग लाभदायक होता है.

इस योग के संबंध में सविस्तर जानकारी इस लेख मे उपलब्ध है👇🏼

https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/10/blog-post.html


विशेषतः, जिन पेशंट को चलने मे कष्ट वेदना असुविधा स्तंभ ग्रह इस प्रकार की कटीसक्थिपादगत समस्या है, उनको द्रुतविलंबितगो (= सहचर सुरदारु शुंठी) अष्टांग हृदय वातव्याधि चिकित्सा मे उल्लेखित योग के सप्तधा बलाधान टॅबलेट का परिणामकारक रूप मे उपयोग होता है, ऐसा अनुभव आता है. इसी योग का नाम हि उसकी फलश्रुती है : द्रुतविलंबितगो = शीघ्र गति से, लंबी दूरी तक जाने की क्षमता इस योग के सेवन से प्राप्त होती है ... फास्ट अँड डिस्टन्ट मोबिलिटी

इसी के साथ गृध्रसी नाशक योग जो शार्ङ्गधर क्वाथ कल्पना अध्यायमे आया है, इसमे "दशमूल हिंगु पुष्कर और निर्गुंडी" ऐसे 4 हि द्रव्य है. इनकी भी सप्तधा बलाधान टॅबलेट, यह शीघ्र वेदना शमन ऐसा परिणाम देती है. 

इसमे दशमूल जो निश्चित रूप से वातशामक और शोथशूलनाशक है. 

पुष्करमूल यह पार्श्वशूल में अग्रे द्रव्य है

हिंगु शूलनाशक है और 

निर्गुंडी तो स्वयं अकेली भी संधि अस्थि गत वेदना नाशन के लिए उपयोगी है.

जो अगतिकता के रूप मे,  रसकल्प मे, वेदनाशमन के लिए उपयोग मे लाया जाता है, और वत्सनाभ की अत्यधिक मात्रा के कारण, जो हानिकारक सिद्ध हो सकता है, ऐसे महावातविध्वंस इस कल्प को "निर्गुंडी की ही भावना है" ... और जितना मुझे आकलन है, उसके अनुसार, रसकल्प में द्रव्य की बजाय, भावना द्रव्य हि परिणामकारक होते है. इसी कारण से सातारा के प्रसिद्ध वैद्य गो आ फडकेजी, सूतशेखर की जगह, सूतशेखर का भावना द्रव्य, मार्कव के स्वरस का छाया शुष्क चूर्ण हि उपयोग मे लाते थे.

इसलिये यह गृध्रसी नाशक योग, जिसमे दशमूल हिंगु  पुष्कर और निर्गुंडी,  ये चारो भी शूलनाशक द्रव्य है, यह योग सप्तधा बलाधान टॅबलेट के रूप मे शीघ्र वेदना निवारण तथा शोथ स्तंभ ग्रह इन लक्षणों का उपशम करने में सक्षम होता है. यह भी योग सप्तधा बलाधान के रूप में म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda द्वारा वैद्यों के प्रयोग के लिए,  पेशंट के हित मे, उपलब्ध किया गया है

इस प्रकार से, उपरोक्त सभी कल्प / योगों के द्वारा की गई चिकित्सा उपचारों के साथ में, केवल लाजा (साळीच्या या ज्वारीच्या) एवं मुद्गयूष तथा मुद्ग/मुद्गदाल जन्य अन्नपदार्थ और कुकर मे न पका हुआ, प्रसृत = मांड निकाला हुआ ओदन या ज्वार की रोटी = भाकरी या गेहू के फुलके तथा फलशाक ऐसा आहार देना उचित होता है. यदि बलहानी है तो दाडिम अंजीर इन फलों का प्रयोग करे, किंतु अम्ल वर्ग, मैदा बेकरी, कुकर के पदार्थ तथा जमीन के नीचे आने वाले अन्नपदार्थ वर्ज्य करे.


हो सके तो सामान्य पानी के बजाय, मुद्गयूष या उष्णोदक और नही हो सके तो, धान्यक जीरक शुंठी सिद्ध जल या क्वथित शीतल = उबालकर ठंडा किया हुआ जल प्रयोग करे

ये उपरोक्त 

सुश्रुतोक्त 6 योगो के टॅबलेट तथा 

वेदनाशमन दुरालभादि योग, 

गृध्रसी नाशक योग और 

द्रुतविलंबितगो ; 

ये सभी सप्तधा बलाधान टॅबलेट के रूप में, म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda द्वारा वैद्यों उपयोग के लिए, पेशंट के हित में, उपलब्ध किये गये है. जो 9422016871 इस नंबर पर संपर्क करके प्राप्त किये जा सकते है, पेशंट पर उपयोग के लिए ... ये सप्तधा बलाधान टॅबलेट महाराष्ट्र शासन एफडीए द्वारा approved है

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