Tuesday, 9 July 2024

*कल्पसिद्धौ च वाग्भटः* = अर्थात *औषधे वाग्भटः श्रेष्ठः* = *औषध हि आयुर्वेद है*

*कल्पसिद्धौ च वाग्भटः* = अर्थात 

*औषधे वाग्भटः श्रेष्ठः*


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*औषध हि आयुर्वेद है*

अष्टांग हृदय कल्पस्थान 6 + 

शार्ङ्गधर पूर्व खंड 1 + मध्यम खंड 1 से 9 + 

सुश्रुत चिकित्सा 31 & 

चरक कल्प 12

90+ Lectures !!!

गुरुपौर्णिमा 21 जुलै 2024 रविवार से आरंभ हुआ है ... 

एक ज्ञानयज्ञ = 90 लेक्चर 

सुस्वागतम् 🪔

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*संयोजक : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे, 

एमडी आयुर्वेद संहिता, एमए संस्कृत, 

आयुर्वेद क्लिनिक @ पुणे & नाशिक ...

 9422016871*

त्रिस्कंध आयुर्वेद मे हेतू और लक्षण यह रुग्ण संबंधित है. 

बाकी बचा अंतिम स्कंध = औषध स्कंध, 

यही वैद्य का कर्तृत्व है और 

*औषध हि आयुर्वेद की पहचान / आयडेंटिटी + अस्तित्व + प्रयोजन है*. 

_चरकोक त्रिविध औषध मे से, दैवव्यपाश्रय और सत्त्वावजय यह अन्यक्षेत्रों के तद्विद्य आचार्य का अधिकार है_ 


*आयुर्वेद का अधिकार युक्ती व्यपाश्रय चिकित्सा इतना हि है*

और वह सर्वथैव या बहुतांश रूप मे औषध पर ही निर्भर है , इसलिये ...


*औषध हि आयुर्वेद है*


कर्ता हि करणैर्युक्तः कारणं सर्वकर्मणाम् ॥

चरक संहिता


कर्ता, *योग्य "साधनों" के साथ ही* सभी कर्मों का कारण होता है. आयुर्वेदिक चिकित्सा क्षेत्र में कर्ता भिषक् अर्थात वैद्य है.


इस वैद्य का करण अर्थात साधन = *भेषज अर्थात औषध* है.


वैद्यके द्वारा आयुर्वेद का चिकित्सकीय लाभ पेशंट तक पहुंचाने का *साधन औषध ही है*. 


इस कारण से *औषध ही आयुर्वेद है*, ऐसा कहना अनुचित नही है.


समाज मे भी आयुर्वेद शास्त्र की पहचान = आयडेंटिटी यह वैद्य न होकर , *औषध ही है यह भूलना नही चाहिये* 


संहितोक्त औषध का उपयोग करके रिझल्ट नही आते है(?), इस भ्रम से, अनेक गणमान्य ज्येष्ठ एवं समकालीन यशस्वी लोकप्रिय प्रस्थापित वैद्य भी, आयुर्वेद मे है हि नहीं, ऐसे रसशास्त्र के कल्पों को अगतिक होकर शरण जाते है, और रसशास्त्र भी आयुर्वेद हि है, ऐसा स्वयं का दैन्ययुक्त समाधान false piltiful justification करने का प्रयास करते है.


उसका एकमात्र कारण संहितोक्त औषध, *संहितोक्त मात्रा मे दिये नही जाते*, इतना हि है.


*मात्राकालाश्रया युक्तिः*, सिद्धिर्युक्तौ प्रतिष्ठिता ।


औषध की सिद्धी अर्थात सुनिश्चित यश, यह युक्तीपर निर्भर है और यह युक्ती *औषध की "उचित मात्रा + योग्य औषधी काल अर्थात ड्यूरेशन" इस पर भी निर्भर है. Dose & Duration ✅️


इसी कारण से औषध को *"करण"* कहा गया है.


करणं पुनर्भेषजम् । 

भेषजं नाम तद्यदुपकरणायोपकल्पते भिषजो धातुसाम्याभिनिर्वृत्तौ प्रयतमानस्य 


औषध योजना तथा औषध निर्माण का सर्वमान्य ग्रंथ शार्ङ्गधर है, जो लघुत्रयी मे अपना सन्मानस्थान प्राप्त किया हुआ है.


शार्ङ्गधर के प्रथम अध्याय मे मान परिभाषा तथा,

शार्ङ्गधर के मध्यम खंड के प्रथम 9 अध्याय,

इनमें, मूलभूत आयुर्वेद भैषज्य कल्पना का सविस्तर वर्णन प्राप्त होता है.


इस सभी ज्ञान का *मूलाधार वाग्भट कल्पस्थान अध्याय 6* अर्थात *द्रव्यकल्प* अध्याय है.


इसलिये ...

*कल्पसिद्धौ च वाग्भटः* = *औषधे वाग्भटः श्रेष्ठः*

इस शीर्षक से 90 लेक्चर का ज्ञानयज्ञ गुरुपौर्णिमा से अर्थात 21 जुलै 2024 से आरंभ हुआहै.


इसमे ...

1. वाग्भट कल्पस्थान अध्याय 6 अर्थात द्रव्यकल्प अध्याय तथा 

2. शार्ङ्गधर प्रथम खंड अध्याय 1 और 

3. शारंगधर मध्यमखंड अध्याय 1 से 9 , एवं च 

4. सुश्रुत चिकित्सा 31 और 

5. चरक सिद्धी 12 ...

यहां उल्लेखित 

मान परिभाषा का तथा 

भैषज्य कल्पना के 

मूलभूत सिद्धांतों का प्रकाशन 

सुबोध रूप में किया जायेगा.


वाग्भट कल्पस्थान 6 के साथ हि,

अष्टांग हृदय के अन्य सभी स्थानों पर प्रस्तुत 90+ लेक्चर का फ्री एक्सेस भी इस उपक्रम मे प्राप्त होगा.


इस 90 lectures के ज्ञानयज्ञ मे सम्मिलित होने के पश्चात,

प्रत्येक वैद्य सन्मित्र को...

*संहितोक्त कल्पों से हि,*

_रसशास्त्र के कल्प को शरण गये बिना हि,_

अपने पेशंट को ...

सुरक्षित 

प्रामाणिक 

परिणामकारक 

शीघ्र फलदायी 

अल्पमात्रोपयोगी 

अरुचिविरहित 

सुलभ 

सुकर 

सुवाह्य (carriable पोर्टेबल)

औषध योजना करने का आत्मविश्वास प्राप्त होगा. 


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Saturday, 6 July 2024

सारिवादि/यष्टी+सारिवा Stress, Irritation & Cancer स्ट्रेस अर्थात क्षोभ उद्वेग इरिटेशन ताण तणाव टेन्शन प्रेशर दडपण दबाव ... तथा कॅन्सर

सारिवादि/यष्टी+सारिवा *Stress, Irritation & Cancer स्ट्रेस अर्थात क्षोभ उद्वेग इरिटेशन ताण तणाव टेन्शन प्रेशर दडपण दबाव ... तथा कॅन्सर*


Copyright कॉपीराइट ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. 

एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.

आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक.

9422016871

 

मनुष्य को शरीरस्तर पर या विचार भावना बुद्धी इस स्तर पर या उभयस्तर पर ,

*Stress/स्ट्रेस यह हेतु , क्षोभ = irritation उत्पादक होता है* ...


1.

जैसे की कोई *फिजिकल या मेकॅनिकल = मूर्त स्ट्रेस* होता है ...


दिनभर खडे रहना : कंडक्टर शिक्षक वॉचमन सेल्स काउंटर 

दिनभर बोलते रहना : रिसेप्शन टेलिफोन ऑपरेटर दिनभर बैठे रहना : ड्रायव्हर ऑफिस वर्कर्स स्टुडंट्स इसमे सस्पेंडेड प्रलंबौ पादौ होते है 

किचन मे हॉटेल के शेफ के रूप में या फरनेस के सामने ऐसे सातत्य से *अत्युष्ण स्थान पर काम करना* एअरपोर्ट के आसपास रहना 

रेल की पटरी के आसपास रहना 

हायवे के आसपास रहना 

गॅरेज या सिविल वर्क चलता रहता है ऐसी जगह के पास मे रहना : ध्वनी प्रदूषण एक प्रकार का स्ट्रेस है 


2.

कुछ लोगों को *केमिकल स्ट्रेस* होते है :


जैसे तंबाखू / गुटखा / स्मोकिंग / पोल्युशन वाले ट्रॅफिक मे आवागमन / कार्बन मोनॉक्साईड का सेवन या किसी केमिकल फॅक्टरी मे काम या पेंटिंग का व्यवसाय या प्रिंटिंग का व्यवसाय 


3.

कुछ लोगों को *सायकलॉजिकल इमोशनल सोशल फिनान्शियल अमूर्त स्ट्रेस* होते है


जो ईर्ष्या मत्सर असूया कम्पॅरिझन जलन जेलसी कॉम्पिटिशन डेडलाईन्स वर्क प्रेशर पियर प्रेशर अन्सर्टेनिटी अतिमहत्त्वाकांक्षा न्यूनगंड अतिगंड भयगंड स्वयंको सुपर हिरो सुपरमॅन सुपर वुमन सिद्ध करने की (क्षमता विरहित) इच्छा, स्पर्धा यह सारा भी विविध प्रकार के *अमूर्त स्ट्रेस* देने वाला है 


4.

या किसी किसी को पडोसी या रिश्तेदार या मित्र या एम्प्लॉयर मालिक इन के द्वारा शारीरिक या आर्थिक इस प्रकार का भय शोक दैन्य यह भी; स्ट्रेस के लिए कारणीभूत हो सकता है 


5.

उसे के साथ किसी चीज का न होना/अभाव ... जिसमे वस्तू व्यक्ती रोजगार व्यवसाय इनका विरह या नाश, अपेक्षित या अनपेक्षित अपघात के रूप मे होना ...

यह भी स्ट्रेस का कारण हो सकता है 


6

तो शरीर के किसी भी अवयव स्थान संस्था धातू अर्थात ऑर्गन लोकेशन/एरिया टार्गेट सिस्टीम के ऊपर मूर्त स्वरूप मे फिजिकल केमिकल स्ट्रेस होना या बुद्धी विचार भावना इन पर स्वयं का स्वभाव या परिस्थिती या दोनों का सायकॉलॉजिकल वैचारिक भावनिक बौद्धिक स्ट्रेस होना समाज मे दिखाई देता है 


7

स्ट्रेस मूर्त हो या अमूर्त हो उभय प्रकार का स्ट्रेस मनुष्य को एक प्रकार का क्षोभ = इरिटेशन = चुभन तोद टोचणी बोच पिंचिंग प्रिकिंग पॉईंटिंग इस प्रकार का अनुभव देता है 


8

इसमे से सुबोध समझ की दृष्टि से स्ट्रेस को हम क्षोभ या इरिटेशन निर्माण करने वाला हेतू है, ऐसा समझेंगे 


9

यही क्षोभ और यही इरिटेशन,

स्थानिक या सार्वदेहिक,

निरंतर या अतियोग या मिथ्या योग के प्रमाण में होता रहेगा ...

तो वह रोग का ... विशेषतः वह कॅन्सर का कारण होता है ,

ऐसा मेरा आकलन निरीक्षण और अनुभव है.


Any type of irritation which is Long standing, continuous, large scale, huge quantity ... it can cause/trigger genetic disturbance at local level or all over the tissue, which in turn obviously or eventually may initiate mutation neoplasm malignancy carcinoma...

as per ...

👇🏼

A.

the intensity of irritation 


तदेव ह्यपथ्यं देशकालसंयोगवीर्यप्रमाणातियोगाद्भूयस्तरमपथ्यं सम्पद्यते 


B.

vulnerability of the victim tissue



शरीराणि चातिस्थूलान्यतिकृशान्यनिविष्टमांसशोणितास्थीनि दुर्बलान्यसात्म्याहारोपचितान्यल्पाहाराण्यल्पसत्त्वानि च भवन्त्यव्याधिसहानि


C.

Their interaction (interaction between irritating agent and vulnerablevictimtissue)


स एव दोषः संसृष्टयोनिर्विरुद्धोपक्रमो गम्भीरानुगतश्चिरस्थितः प्राणायतनसमुत्थो मर्मोपघाती कष्टतमः क्षिप्रकारितमश्च सम्पद्यते ।


10

किसी भी *इरिटेटिंग या क्षोभकारक हेतू के विपरीत चिकित्सा* जो है ...

वह *प्रसादन चिकित्सा* है


और प्रसादन करने की क्षमता पृथ्वी जल, स्निग्ध शीत गुरु सांद्र मधुर मृदू ऐसे *सौम्य गुणयुक्त* उपचारो मे होती है 


इसमे जो सुकर सुलभद्रव्य है उसमे एक अच्छा उपयोग करके देखा जा सकता है ऐसा द्रव्य सारिवा है 


और उससे भी सर्वश्रेष्ठ द्रव्य मधुक अर्थात यष्टी है 


इस संदर्भ में निम्नोक्त दो व्हिडिओ तथा संपूर्ण प्ले लिस्ट श्रवणीय है 


https://youtu.be/NKdUMfoFTJU?si=BlEZy9Y43tPTWHCx


&


https://youtu.be/5byKhnA-m8w?si=-2JfIQ4JfqdjlR2c


*कॅन्सर के निर्मिती का मुख्य कारण हि क्षोभ = इरिटेशन है*,

ऐसा मेरा प्राथमिक आकलन निरीक्षण और अनुभव है.


यद्यपि,

*इरिटेशन या क्षोभ, कॅन्सर का कारण है* ...

ऐसा किसी भी पियर रिव्ह्यू जर्नल रिसर्च पेपर या गुगलवर ढूंढने से डॉक्युमेंटेड के रूप मे लिखा हुआ/ रेकॉर्ड किया हुआ प्राप्त नही होगा ...

तथापि अनेकविध अधिकृत कॅन्सर संबंधित शीर्षस्थ संस्थाओं के वेबसाईट पर कॉझेस ऑफ कॅन्सर causes of cancer इसका अवलोकन करने के बाद , उसका एक Gross Understanding कुल आकलन ; इरिटेशन कॉझेस कॅन्सर Irritation causes Cancer यह विधान हो सकता है


कॅन्सर के लिए किये जाने वाले मुख्य तीन उपचार = सर्जरी केमोथेरपी रेडिएशन ... 

ये तीनों उपचार 

1. स्वयं अपने स्वरूप मे तथा 

2. उपचारों के पश्चात जो परिणाम होते है और 

3. जो कालावधी पेशंट व्यतीत करता है ...

ये सभी तीनो चीजे 1.उपचार, 2.उपचार के परिणाम और 3.उपचार के पश्चात का कालावधी ,

ये तीनो भी फिरसे, इरिटेशन = क्षोभकारक है,

ऐसा मेरा वैयक्तिक मत है 


और ऐसी स्थिती मे जिनको इन 3 उपचार को झेलना है, करना हि है ...

उन पेशंट के संरक्षण की दृष्टि से ...

उनके शरीर के कॅन्सरग्रस्त स्थान अवयव संस्था धातु अर्थात ऑर्गन लोकेशन/एरिया सिस्टीम या टिशू ...

इनकी सुरक्षा की दृष्टि से अगर *इरिटेशन से विपरीत, प्रसादन उपचार* ...जो प्रायः उपरोक्त *सांद्र गुणादि प्रधान* है, जिसमे यष्टी और सारिवा इनका प्रमुख उपयोग, कार्यकारी हो सकता है.


कॅन्सर का एक बार उपचार होने के बाद,

यद्यपि पेट स्कॅन मे उस समय कुछ भी ॲबनाॅर्मल नही दिखाई दे रहा होता है,

तथापि 3/6 महिने या एक वर्ष के बाद फॉलोअप के रूप मे जो पेट स्कॅन किया जाता है ,

उसमे फिरसे या तो रिकरंस या सेकंडरी इस प्रकार का रिपोर्ट आता है,

तो ऐसी भविष्यकालीन संभावना को टालने के लिये, उस उस स्थान का इरिटेशन = क्षोभ का बचाव करना आवश्यक है 


और इस कारण से पुन्हा *प्रसादनकारी सांद्र गुणादियुक्त, यष्टी और सारिवा इनका उपयोग लाभदायक सिद्ध होता है, ऐसा मेरा *अल्पकालीन अनुभव निरीक्षण और आकलन है*


वैसे अष्टांगहृदय सूत्रस्थान 15 में, वाग्भट के गणों के अध्याय में सारिवादि गण मे प्रथम द्रव्य सारिवा और अंतिम द्रव्य यष्टी है ... 

बीच मे के जो सारे द्रव्य है ...

1.

वे प्रायः मिलते नही है या 

2.

उन पर ban में है या 

3.

उनका मार्केट मूल्य बहुत अधिक है या 

4.

मेरे आकलन से वे अनावश्यक है, 

इस कारण से तुलनात्मक दृष्ट्या, जो सुलभ प्राप्त है, उन दो *यष्टीमधु व सारिवा को सप्तधा बलाधान के रूप मे प्रयोग करता हूं*. 

जिनको संभव है, वे सारिवादि गण के सभी द्रव्यों का भी, ऐसी स्थिती मे उपयोग करके, उसके परिणाम का अनुभव प्रस्तुत कर सकते है


किंतु यष्टी और सारिवा इनके कुछ वैशिष्ट्य है.


सारिवा शुक्र व स्तन्य इन दोनों पर हितकारक परिणाम करने वाली है और 

ये दोनो शरीरस्थ भाव नवजीवनकारी है 

और कॅन्सर की संप्राप्ती मे प्रमुख दूष्य तत्तत् धातुगत स्थानगत शुक्र हि है.


इसलिये already कॅन्सर ग्रस्त या कॅन्सर ग्रस्त होने की संभावना होने वाले स्थान अवयव संस्था धातू (organ , location/area, system, tissue) इनका समधातु पारंपर्य बना रहे और कॅन्सर नामक रोग का आक्रमण से उनका संरक्षण होता रहे, इस दृष्टी से एक सुरक्षा कवच के रूप मे, सारिवा निश्चित रूप से उपयोगी हो सकती है.


*मज्जा शुक्र समुत्थानाम् औषधं स्वादु+तिक्तकम्* 

ऐसे उल्लेख आता है 


इसमे स्वादु सांद्र मृदु सौम्य इस दृष्टी से सारिवा एक उत्तम द्रव्य सिद्ध होता है. 


इन्हीं सर्व वैशिष्ट्यों के कारण यष्टीमधु भी,

सारिवा के समान हि तत् तत् धातु का संरक्षण और तत् धातु गत शुक्र का प्रसादन और समधातु पारंपर्य संतानकारी है 


यष्टी यह मधुर द्रव्य मे सर्वश्रेष्ठ द्रव्य है, ऐसा मेरा वैयक्तिक मत है.

यद्यपि अष्टांग संग्रह में ,

जो छ 6 रस स्कंधों के सर्वश्रेष्ठ द्रव्य दिये है, 

उसमे मधुर रसका सर्वश्रेष्ठद्रव्य घृत है.

किंतु घृत यह एक आहार द्रव्य है और उसका ट्रान्सपोर्ट बहुत समस्या कारक तथा उसका सेवन मात्रा भी अधिक है.

इसकी तुलना मे यष्टी यह एक औषधी द्रव्य है, वीर्यवान द्रव्य है, इसकी मात्रा अल्प होते हुए भी परिणामकारक है तथा ट्रान्सपोर्ट के लिए अत्यंत सुविधा जनक है.


यष्टी चरक के महाकषाय में सर्वाधिक बार पुनरावृत्त पुनरुक्त रिपीट उल्लेखित होने वाला द्रव्य है 

तथा 

चरक सूत्र 25/40 श्लोक इसमे जो अग्रेसंग्रह है,

उसमे यष्टीमधु के सामने 7 गुण कर्म का, 7 कार्मुकताओं का उल्लेख है.


साथ ही यष्टीमधु मेध्य रसायनो मे उल्लेखित है.


यष्टी का उल्लेख उरःक्षत तथा भग्न इनमे भी होता है, इसका अर्थ यह है कि, यष्टीमधु रस से लेकर शुक्र तक सभी धातुओं का उत्तम निर्माण, संरक्षण, प्रसादन करने मे सक्षम है.


इस कारण से यष्टीमधुक और सारिवा ये दोनो द्रव्य;

1. कॅन्सर का मुख्य हेतू इरिटेशन, 

2. कॅन्सर के उपचारों का कालावधी, तथा

3. कॅन्सर के उपचारों का पश्चात परिणाम, जो पुन्हा इरिटेशन हि परिणाम देने वाला है ... 

ऐसे, कॅन्सर पूर्व , कॅन्सर उपचार समकालीन और कॅन्सर उपचार पश्चात ... ऐसे त्रिकाल मे यष्टीमधुक और सारिवा इनका शरीर धातु संरक्षण के लिये निश्चित रूप से हितकारक उपयोग सिद्ध हो सकता है


Copyright कॉपीराइट ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. 

एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.

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9422016871





Thursday, 4 July 2024

कुछ अपरिचित धातुपाचक(?) = विषमज्वर✅️ शामक कषाय पंचक

कुछ अपरिचित धातुपाचक(?) = विषमज्वर✅️ शामक कषाय पंचक

लेखक : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे 9422016871 


1.

धातुपाचक इस नाम से अभी प्रसिद्ध है , ऐसे

चरक चिकित्सा 3 श्लोक क्रमांक 200-203 यहां पर उल्लेखित *विषमज्वर शामक कषाय पंचक* है

👇🏼

कलिङ्गकाः पटोलस्य पत्रं कटुकरोहिणी ॥२००॥

पटोलः सारिवा मुस्तं पाठा कटुकरोहिणी ।

निम्बः पटोलस्त्रिफला मृद्वीका मुस्तवत्सकौ ॥२०१॥

किराततिक्तममृता चन्दनं विश्वभेषजम् ।

गुडूच्यामलकं मुस्तमर्धश्लोकसमापनाः ॥२०२॥

कषायाः शमयन्त्याशु पञ्च पञ्चविधाञ्ज्वरान् ।

सन्ततं सततान्येद्युस्तृतीयकचतुर्थकान् ॥२०३॥


2.

ये क्रमशः /यथासङ्ख्यं /रिस्पेक्टिव्हली, संततादि पाच विषमज्वरों का शमन करते है, ऐसा शिवदास सेन की टीका मे, क्षारपाणि का संदर्भ देकर, लिखा हुआ है


एते पञ्च योगाः सन्ततसततकान्येद्युष्कतृतीयचतुर्थकेषु यथासङ्ख्यं ज्ञेयाः; 

(अन्ये तु सर्व एव योगाः सर्वत्रेत्याहुः);

*तत्र यथासङ्ख्यमेव युक्तं* ✅️ , 

सततोल्लेखेन पटोलादियोगस्य, तथा निम्बादेश्चान्येद्युष्कोल्लेखेन, गुडूच्यादेश्च चातुर्थकोल्लेखेन *क्षारपाणौ दृष्टत्वात्* ...

👆🏼 इति शिवदाससेनः !


अकेली चरक संहिता हि आयुर्वेद का संपूर्ण अध्ययन है, ऐसा भ्रम आयुर्वेद जगत मे फैला हुआ होने के कारण, किसी अन्य ग्रंथ मे क्या लिखा है, इसको देखने की कोई आवश्यकता ही नही समजता है.


3.

अष्टांग संग्रह में इन्ही 5 ज्वर कषाय पंचक के बाद, 

वाग्भट ने और 5 कषाय लिखे है.

संग्रह में जो ज्वर कषाय पंचक है, उसमे चरकोक्त कषायपंचक की तुलना मे इस प्रकार से साम्य उपलब्ध होता है 


पटोलेन्द्रयवारिष्टभद्रमुस्तामृताऽभयाः| 

सारिवाद्वितयं पाठा त्रायन्ती कटुरोहिणी

पटोलारिष्टमृद्वीकाशम्याकात्रिफलावृषम्| 

चन्दनोशीरधान्याब्दगुडूचीविश्वभेषजम्

देवदारूस्थिराशुण्ठीवासाधात्रीहरीतकीः| 

पञ्च पञ्चज्वरान् घ्नन्ति योगा मधुसितोत्कटाः||३०|| 


4.

उसके साथ ही सुश्रुत मे भी उत्तर तंत्र 39 अध्याय मे पाच द्रव्य लिखे है और जिनमें से तीन चार या पाच (3/4/5) द्रव्य के संयोग विषमज्वर नाशक है, ऐसा लिखा है.


त्रिचतुर्भिः पिबेत् क्वाथं पञ्चभिर्वा समन्वितैः । 

मधुकस्य पटोलस्य रोहिण्या मुस्तकस्य च ।। 

हरीतक्याश्च सर्वोऽयं त्रिविधो योग इष्यते । 


5.

तो यह जो चरकोक्त विषमज्वर कषाय पंचक, धातुपाचक नाम से एक रूढी के रूप मे, किंतु अशास्त्रीय रूप से, प्रचलित और प्रस्थापित हुए है.


उनको एक सशक्त विकल्प/ ऑप्शन , इन दोनो ग्रंथो मे उपलब्ध होता है


मूल चरक के विषमज्वर कषाय पंचक अर्थात आज के प्रसिद्ध किंतु अशास्त्रीय धातुपाचक है 


6.

थोडासा बदलाव वाग्भट/अष्टांग संग्रह में होता है.

जहां चरक में *"गुडूच्यामलकममुस्तम्"* लिखा है वहां वाग्भट ने क्षौद्र=मधु जोड दिया है.


7.

अष्टांग संग्रह में और भी अन्य ज्वर कषाय पंचक उपलब्ध होते है, जो प्रस्थापित धातुपाचकों के विकल्प के रूप में पेशंट पर प्रयोग करके देखना उपयोगी रहेगा 


8.

मूल सुश्रुत संहिता उत्तर तंत्र 39 मे, 

पाच द्रव्यों को तीन चार या पाच के संयोग मे मिलाकर विषमज्वर नाशनाः ऐसी फलश्रुती बतायी है.

इसी श्लोक की डह्लणटीका में इन 5 द्रव्य के तीन चार पाच के संयोग से 16 अलग अलग कल्प बनते है ऐसा लिखा है 


9.

अष्टांग हृदय मे भी इन्ही पाच द्रव्यों का उल्लेख हुआ है


पटोलकटुकामुस्ताप्राणदामधुकैः कृताः। 

त्रिचतुःपञ्चशः क्वाथा विषमज्वरनाशनाः॥


10.

विषमज्वर नाशक कषाय केवल पाच ही नही हैं अपितु सोला 16 है, ऐसा सुश्रुत का अभिप्राय है


11.

और विषमज्वर भी केवल 5 न होकर ये छ 6 है,

ऐसा सुश्रुत उत्तर तंत्र 39 में दिखाई देता है 


12.

प्रसिद्ध संतत सतत अन्येद्युष्क तृतीयक चतुर्थक इन 5 के साथ *प्रलेपक ज्वर* का भी उल्लेख हुआ है.


13.

संतत रस 

सतत रक्त 

अन्येद्युष्क मांस 

तृतीयक मेद 

चतुर्थक अस्थिमज्जा 

ऐसी सामान्य मान्यता मात्र है, शास्त्रीय वस्तुस्थिती नहीं


14.

किंतु, चरक के विषमज्वर यह धातु मे दोष का प्राबल्य इस संकल्पना पर आधारित है.


इस कारण से संततादी पाच ज्वरों का निश्चित धातु अधिष्ठान वहां पर निर्धारित नही है


15.

चरक की निम्नोक्त पंक्तिया देखेंगे, तो ये पता चलता है कि कौन सा भी विषमज्वर, किसी भी धातु मे आश्रित होकर निर्माण हो सकता है.


रक्तधात्वाश्रयः प्रायो दोषः सततकं ज्वरम् 

रक्त सतत

अन्येद्युष्कं ज्वरं दोषो रुद्ध्वा मेदोवहाः सिराः ॥

अन्येद्युष्क मांस मेद

दोषोऽस्थिमज्जगः कुर्यात्तृतीयकचतुर्थकौ 

तृतीयक  = मेद अस्थि मज्जा 

अन्येद्युष्कं ज्वरं कुर्यादपि संश्रित्य शोणितम् ॥

अन्येद्युष्क मांस रक्त 

मांसस्रोतांस्यनुगतो जनयेत्तु तृतीयकम् ।

तृतीयक मेद मांस 

संश्रितो मेदसो मार्गं दोषश्चापि चतुर्थकम् 

चतुर्थक अस्थि मज्जा मेद

उपरोक्त संदर्भ से यह पता चलता है, की 5 विषमज्वरों का, क्रमशः 5 धातुओं से, "निश्चित संबंध", चरक संहिता मे, प्रस्थापित नही है


16.

सुश्रुत संहिता में 6 विषमज्वरो का, पाच कफ स्थानों के साथ, सुनिश्चित संबंध, निश्चित निर्धारित रूप में, उल्लेखित हुआ है.✅️


सततान्येद्युष्कत्र्याख्यचातुर्थान् सप्रलेपकान् । 

कफस्थानविभागेन यथासङ्ख्यं करोति हि ✅️


आमाशयस्थः सततं करोति , 

उरःस्थो अन्येद्युष्कं, 

कण्ठस्थः तृतीयकं, 

शिरस्थः चतुर्थकं, 

सन्धिस्थः प्रलेपकं, 

सर्वेषु कफस्थानेषु व्यवस्थितो दोषः सन्ततं करोतीति ज्ञातव्यम्। 


17.

इसमे सततज्वर, जो चरक मे रक्त के साथ जुडा है, ऐसा लोगों को लगता है, वह सुश्रुत मे आमाशय के साथ संलग्न है.


18.

अन्येद्युष्क मांस के साथ जुडा है, ऐसे लोगों को लगता है, वह सुश्रुत मे उरः के साथ जुडा है


19.

जो चरक मे तृतीयक मेद के साथ जुडा है, ऐसे लोगों को भ्रम है, वह सुश्रुत मे कंठ के साथ संलग्न है


20.

चरक में चतुर्थक ज्वर जो अस्थि मज्जा के साथ जुडा है, ऐसे लोगो मे भ्रम है, वह सुश्रुत मे शिरः के साथ संलग्न है...


21.

और छठा विषमज्वर, जिसका चरक मे उल्लेख हि नही है, वह प्रलेपक ज्वर, संधी के साथ संलग्न है.


22.

तो फिर संतत जो रस धातू के साथ संलग्न है, ऐसा लोग मानते है ... (शास्त्रीय सत्य कुछ अलग है), वह संतत ज्वर सुश्रुत मे सभी कफ स्थानो के साथ संलग्न है. 


23.

और तो और चरक संहिता मे भी

संततज्वर रसधात्वाश्रित न होकर,

संतत द्वादशाश्रयी ज्वर है

द्वादशाश्रयी का अर्थ केवल रसके साथ नही, 

अपितु द्वादश याने 7 धातू 2 मल 3 दोषों के साथ जुडा है ऐसे लेना चाहिए 


यथा धातूंस्तथा मूत्रं पुरीषं चानिलादयः ॥

द्वादशैते समुद्दिष्टाः सन्ततस्याश्रयास्तदा ।

✅️

द्वादशेति सप्त धातवस्त्रयो दोषा मूत्रं पुरीषं च। 


24.

अभी सुश्रुत के पाच द्रव्य देखेंगे ... उसमे निरीक्षण करेंगे तो ...


प्रथम द्रव्य पटोल, 

चरक के तीन कषाय प्रथम आता है ,

इसलिये पटोल को प्रथम ज्वर के साथ जोड देना चाहिए अर्थात आमाशय, रक्त व सतत के साथ


25.

दूसरा द्रव्य कटुकी ,

चरक के पहले दो कषाय में आता है, 

उसको उरस्, मांस व अन्येद्युष्क के साथ जोड देना चाहिए 


26.

मुस्ता चरक के तृतीय कषाय में है, तो कंठ, मेद व तृतीयक के साथ जोडना चाहिए.  


27.

चौथा द्रव्य प्राणदा अर्थात हरीतकी, 

यह शिरस् , अस्थि व चतुर्थक के साथ जोडना चाहिये.


28.

अंतिम द्रव्य सुश्रुत मे उल्लेखित है, वह मधुक = यष्टी है,

जिसको संधि, मज्जा व प्रलेपक के साथ जोडना चाहिए.

 

29.

और अगर सर्वांग व्यापी कोई लक्षण है, तो सुश्रुतोक्त 5 द्रव्य एक साथ देने चाहिये. और उन्हे रस तथा सभी कफ स्थानों के साथ और संतत ज्वर के साथ जोडना चाहिए


30.

पटोल = आमाशय रक्त सतत

कटुकी = उरस् मांस अन्येद्युष्क

मुस्ता = कंठ मेद तृतीयक

प्राणदा/हरीतकी = शिरस् अस्थि चतुर्थक 

मधुक/यष्टी = संधि मज्जा प्रलेपक 


सभी 5 द्रव्य = रस संतत सभी कफ स्थान 


उपरोक्त 24 से 30 ये 7 विधान एक संभावना है, न कि निश्चित ज्ञान.


31.

सबसे सुनिश्चित रूप मे, अमुक विषमज्वर के लिए अमुक क्वाथ, ऐसा स्पष्ट उल्लेख केवल शार्ङ्गधर मे उपलब्ध है ✅️


गुडूचीधान्यमुस्ताभिश्चन्दनोशीरनागरैः

कृतं क्वाथं पिबेत्क्षौद्रसितायुक्तं ज्वरातुरः तृतीयज्वरनाशाय


देवदारुशिवावासाशालिपर्णीमहौषधैः चातुर्थिकज्वरे


किंतु यह भी केवल तृतीयक और चातुर्थक के लिये है.


बाकी तीन विषमज्वरो के लिए स्पष्ट रूप से विशिष्ट कषाय उल्लेखित नही है, 

अपितु विषमज्वरो मे एकाहिक द्वितीयक ऐसे भी अपरिचित ज्वरों का उल्लेख होता है.


पटोलेन्द्रयवादारुत्रिफलामुस्तगोस्तनैः 

मधुकामृतवासानां क्वाथं क्षौद्रयुतं पिबेत्

सन्तते सतते चैव द्वितीयकतृतीयके 

एकाहिके वा विषमे


32

इस प्रकार से आयुर्वेद के किसी भी संहिता मे,

पाच विषमज्वरो के लिए यथासंख्य पाच कषायों का, 

"एक से एक संगती" इस प्रकार का संबंध 

सुनिश्चित स्पष्ट रूप से उल्लेखित नही है 


33

साथ हि, किसी भी संहिता मे, पाच विषमज्वरों का विशिष्ट धातु के साथ "एक से एक संगती" इस प्रकार का भी संबंध सुनिश्चित स्पष्ट रूप से उल्लेखित नही है 


इस कारण से विषमज्वर शामक कषाय पंचक को धातुपाचक मानना, यह मात्र प्रस्थापित रूढी है, भ्रम है, मिथक है ... यह शास्त्र कदापि नही है.


इस प्रकार से विचार करेंगे, तो हमे... 

1.

चरकोक्त ज्वर कषाय पंचक, जो अभी धातुपाचक नाम से, मात्र रूढी रूप मे, लोकप्रसिद्ध है ... वह एक !


2.

दूसरा, अष्टांग संग्रह मे उल्लेखित ज्वर कषाय पंचक और 


3.

तिसरा सुश्रुतोक्त पाच द्रव्य के या तो सोला संयोग या


4.

सुश्रुतोक्त पाच द्रव्यों का ही पाच ज्वरो के साथ ... 

एक द्रव्य का ... एक ज्वर या कफ स्थान (या धातु से?) सुसंगतीकरण ...

इस प्रकार से कुछ नया दृष्टिकोन प्राप्त हो सकता है.


🙏🏼

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Copyright कॉपीराइट ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. 

एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.

आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक.

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Friday, 14 June 2024

ऑलिगो एस्थिनो स्पर्मिया oligo astheno spermia और द्रुत विलंबित गो सप्तधा बलाधान टॅबलेट

 ऑलिगो एस्थिनो स्पर्मिया oligo astheno spermia और द्रुत विलंबित गो सप्तधा बलाधान टॅबलेट


लेखक : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. 

एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.

आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक.

9422016871

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रुके रुके से कदम ... रुक के ... बार बार चले 


इस मोड से जाते है, कुछ सुस्त कदम रस्ते ... कुछ तेज कदम राहे


इस विषय पर संदर्भ तथा तर्क शास्त्रीय सत्य इन उपग्रहित सविस्तर लेख निकट भविष्य मे लिखकर प्रस्तुत करेंगे ...


धिस इज अ ट्रेलर ... अभी पूरा पिक्चर बाकी है


जो सब करते है यारो ... वो हम तुम क्यू करे !

इस *कुछ अलग करने की सोच* मे रहकर,

ये दो केस रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे है


पुरुष पेशंट 1

वय 32

मोटिलिटी 

RLP = Rapid Linear Progression = 00

SLP = Slow Linear Progression = 16

Non progressive 08

Immotile 76


काउंट less than 1 million 


पुरुष पेशंट 2

वय 34

मोटिलिटी 

RLP 16

SLP 07

Non progressive 30

Immotile 47


काउंट 6.8 


Testosterone 165 (low)







ज्वर कषाय पंचक = धातुपाचक / धातुगामित्व !!


वातज ज्वर = दुरालभादि क्वाथ = वेदनाशमन कल्प pain reliever 


कल्पशेखर = भूनिंबादि = अम्लपित्त अधिकार = कोष्ठ शाखा गति = क्लेद / जल+पृथ्वी विकृती मे उपयुक्त


*द्रुत विलंबित गो भवति इच्छया* ऐसी फलश्रुती जिस योग की है ... 

👇🏼

सहचरं सुरदारुं सनागरं 

क्वथितमम्भसि तैलविमिश्रितम्। 

पवनपीडितदेहगतिः पिबन् 

*द्रुतविलम्बितगो भवतीच्छया॥*




यह योग अगर मनुष्य देह में, 

*अपनी इच्छा नुसार , तीव्र गति से, दूर अंतर तक जाने की क्षमता* देने वाला है ...

तो यही परिणाम , यही कार्मुकता, यही लाभ ... 

शरीर के किसी अन्य अवयव में, शरीर के किसी अन्य अंश में, शरीर के किसी धातु में भी मिलना संभव है,

*_ऐसा अभ्युपगम / ॲझम्प्शन/ कन्सिडरेशन/ पॉसिबिलिटी/ प्रोबॅबिलिटी मानकर_* ...

यह योग पुरुष पेशंट को

अपान = भोजनपूर्व = प्राग्भक्त 

और 

भोजनोत्तर = व्यान+उदान = अधोभक्त 

तीनों समय = ब्रेकफास्ट + लंच + डिनर के आरंभ में

ऐसे दिया गया.

इस योग की मात्रा = 

तीन टॅबलेट भोजनपूर्व + तीन टॅबलेट भोजन के बाद ... तीनो भोजनों के समय 

अर्थात दिन में 18 टॅबलेट *द्रुत विलंबित गो सप्ताधा बलाधान 250mg* के इस रूप मे 

यह प्रयोग किया गया 


*One single sperm* with proper motility is sufficient for fertility 

इस शास्त्रीय सत्य के आधार पर यह परिकल्पना की गई है


और अगले तीन महिने में पेशंट की पत्नी को 

अर्थात अपत्यार्थी स्त्री को गर्भधारणा निश्चित हुई 


इस कल्प के व्यतिरिक्त अन्य कोई भी सर्वसाधारण लोकप्रिय प्रस्थापित शुक्रवर्धक वृष्य इस प्रकार के कल्प पेशंट को नही दिये गये थे


स्त्री रुग्णको भी किसी भी प्रकार के प्रस्थापित लोकप्रिय इस प्रकार के विकृती मे दिये जाने वाले कल्प नही दिये गये थे 


दोनो स्त्री रुग्णो में शरीर/यकृत् उष्ण तापमान तथा सामान्य स्तर पर उदर दाह अम्लपित्त हृल्लास छर्दि शिरःशूल यह समस्यायें थी, धार्मिक उपवास करना, पती देर से घर आते है इस कारण से जागरण करना और संतापी स्वभाव होना .. ऐसी स्थिती थी, 

इसलिये उन्हे *कल्पशेखर भूनिंबादी सप्तधा बलाधान टॅबलेट* दिये गये थे


इस चिकित्सा कालावधी मे दंपति को विशिष्ट शृंगार स्थिती = सेक्स पोझिशन का अवलंबन करने का उपदेश किया था


प्रेग्नेंसी के पहले के स्पर्म ऍनॅलिसिस के रिपोर्ट और 

स्त्री रुग्णके प्रेग्नेंसी कन्फर्मेशन के रिपोर्ट साथ मे भेजे है.


*यह मात्र दो केसेस का हि अनुभव है*


किंतु ...

जैसे ज्वर कषाय पंचक, उस उस धातुगामित्व से रसादि धातु मे कार्यकारी माना जाता है और वैसा व्यवहार होता है 


या 

इसके पहले भी हमने वातज्वर मे उल्लेखित *दुरालभादि योग यह वेदनाशामक के रूप मे परिणामकारक होता है*, क्योंकि वातज्वर के सभी लक्षण पाद से शिर तक विविध वेदना वर्णन करने वाले है, इस अभ्युपगम से आधारित लिखा था ... जिसका अनुभव आज महाराष्ट्र तथा देशभर के अनेक वैद्य सन्मित्र ले रहे है ...


उसी प्रकार से,

कल्पशेखर भूनिंबादि को भी केवल अम्लपित्त अधिकार तक सीमित न रखते हुए, पित्त की / पृथ्वी जल प्रधान क्लेद की ...

शाखा कोष्ठ गति के विविध मॅनिफेस्टेशन का समर्थ परिणामकारी उपाय, महाराष्ट्र तथा देशभर के अनेक वैद्य सन्मित्र ले रहे है ...


और द बॉस ... VachaaHaridraadi Gana 7dha Balaadhaana Tablets का DM Type 2, PCOS, Obesity एवं अन्य संतर्पणजन्यरोग मे उपयोगिता का सफल अनुभव तो ... आत्मविश्वास के साथ विपुल मात्रा में देशभर के वैद्य सन्मित्र ले हि रहे है


उसी प्रकार से ...

यह *द्रुतबिलंबित गो* नाम का 

वातव्याधि में उल्लेखित,

फलश्रुती को हि शीर्षक बनाकर लिखा हुआ 

यह *सहचर देवदारु नागर* केवल त्रिद्रव्यातमक योग,

जैसे देह की गति को *द्रुत और विलंबित, यथा इच्छा* इस प्रकार का परिणाम लाभ दे सकता है ...

वैसे हि ...

अस्थिनोस्पर्मिया मे स्पर्म की लो मोटिलिटी में ,

स्पर्म को उचित सक्षम गतिमान बनाने मे उपयोगी हो सकता है... ऐसा अभ्युपगम / वैयक्तिक आकलन किया


स्त्री के शरीर मे इजॅक्युलेशन के बाद,

लिक्विफिकेशन के बाद,

पुरुष के स्पर्म संपूर्ण व्हजायनल ट्रॅक्ट में प्रवास करके, फॅलोपियन ट्यूब से होते हुये,

ओव्हम तक जाकर उसको पेनिट्रेट करके,

फर्टिलाइज करने के लिए आवश्यक 

*द्रुत और विलंबित अर्थात फास्ट और डिस्टंट* 

= दूर अंतर तक गतिक्रमण/ मार्गक्रमण या प्रवास करने की क्षमता आने के लिए ,

*आवश्यक मोटिलिटी* इस *द्रुतबिलंबित गो कल्प से प्राप्त हो सकती है*, 

इस ॲझम्प्शन कन्सिडरेशन अभ्युपगम आकलन समझ समजूत पॉसिबिलिटी प्रोबॅबिलिटी के आधार पर यह प्रयोग किया गया है...

और प्रथमदर्शनी सकृत दर्शन यह प्रयोग यशस्वी है, ऐसा लगता है.


अगर यही प्रयोग अनेक वैद्य सन्मित्र करके देखेंगे और उनको भी इस प्रकार का अनुभव आयेगा ...

तो अनेक रुग्णों के जीवन में अपत्य प्राप्ती के नैसर्गिक आनंद को देने का सत्कर्म आयुर्वेद शास्त्र के द्वारा संभव है.


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Monday, 3 June 2024

स्थौल्य हर आद्य योग : यही स्थूलस्य भेषजम् : त्रिफला अभया मुस्ता गुडूची

स्थौल्य हर आद्य योग : 

त्रिफळा अभया मुस्ता गुडूची

~न हि स्थूलस्य भेषजम्

सही स्थूलस्य भेषजम्

*यही स्थूलस्य भेषजम्* ✅️

मधुना त्रिफलां लिह्याद्गुडूचीमभयां घनम्

अर्थात त्रिफला गुडूची हरीतकी और मुस्ता इन चार द्रव्यों का यह योग है

अष्टांगहृदय सूत्रस्थान 14 में द्विविधोपक्रमणीय में स्थौल्य चिकित्सा में सबसे आद्य योग है.

अष्टांग संग्रह मे ये योग इसी रूप मे है.

चरक मे इस योग मे *अभया उल्लेखित नही है.*

सुश्रुत मे इस प्रकार का योग उल्लेखित हि नही है.


इस योग को सप्तधा बलाधान टॅबलेट के रूप मे,

6 टॅबलेट दिन मे चार बार या तीन बार, 

इस प्रकार से प्रयोग करने से, 

प्रतिमाह अप टू 10% (per month upto 10%) इंच लाॅस और kg लॉस संभव होता है.


इस इस विधान के कुछ पुष्टीकारक फोटो इस लेख के अंत में (@ the end of this article) देख सकते है

अर्थात 80kg अगर वजन है , 

तो एक महिने मे आठ किलो तक कम हो सकता है

और 40 इंच अगर पेट तोंद टमी बेली है, 

तो 4 इंच तक कम हो सकता है.


और यह सुयोग्य आहार और व्यायाम नियोजन के साथ अगर सेवन किया जाये, 

तो पुन्हा मेदसंचिती या भारवृद्धी नही होती है. 

No recurrence!


















यह टॅबलेट, *औषध अन्न विहार* इस संपूर्ण चिकित्सा उपक्रम का एक भाग है.

इन टॅबलेट के कारण मेदःक्षय होता है, ऐसा हमारा विधान नही है.

क्यू कि अगर हम टॅबलेट से मेदःक्षय करेंगे, तो जिस दिन टॅबलेट बंद ... उस दिन से फिर से मेदःसंचिती होगी.


इन टॅबलेट के सेवन का उद्देश, उस चिकित्सा उपक्रम का एक भाग है, 

जिससे कि आपके शरीर मे संचित मेद, आप अपने स्वयं की हालचाल व्यायाम मूव्हमेंट एनर्जी ऊर्जा शक्ती सामर्थ्य बल के लिये, स्वयं उपयोग मे लायेंगे, 

तो उसकी पुन्हा संचिती होने का संभव,

संपूर्णतः नष्ट हो जायेगा.


इस टॅबलेट के प्रयोग के समय, 

किसी भी प्रकार का उपवास अनशन अल्पाशन 

या

दिन मे दो बार हि खाओ, 

हर दो घंटे के बाद खाते रहो, 

ऐसा "अनैसर्गिक" कुछ भी आवश्यक नही होता है.


संपूर्ण सौहित्य तक (upto satiety) अर्थात पेटभर खाकर भी, मेद संचिती (inches) और भारवृद्धी(kg) इनमे अप टू टेन पर्सेंट (upto 10%) कम करना संभव होता है.


*डिनर इस द कल कल्प्रिट Dinner is the culprit.*


डिनर मे, हम जो भी पृथ्वी जल कार्बोहायड्रेट शुगर ग्लुकोज ऐसे संतर्पण करने वाले, अन्नपदार्थ रोटी चपाती भाकरी चावल = ज्वार बाजरा गेहू चावल बटाटा साबुदाणा दूध दुग्धजन्य पदार्थ फल ये लेते है और इन पदार्थों के सेवन के बाद किसी भी प्रकार का व्यायाम किये बिना हि (या उस संतर्पणकारी पृथ्वी जल प्रधान पदार्थ का ऊर्जा के लिए उपयोग किये बिना हि),

हम अगले छे सात आठ घंटे के लिए, 

बेड पर, किसी भी मूव्हमेंट के बिना, 

निश्चल निष्क्रिय पडे रहते है ... 


और सुबह उठकर फिर किंग साइज नाश्ता करते है.

रात को छे से आठ घंटे बेड पर लेटे, पडे रहना / सोना 

सुबह उठकर कमोड पर बैठना 

वहा से उठकर डायनिंग टेबल पर नाष्टे के लिए बैठना 

वहा से उठकर स्कूल या ऑफिस के लिए टू व्हीलर फोर व्हीलर रिक्षा बस की सीट पर बैठना 

फिर स्कूल ऑफिस जाकर वहा के बेंच या चेहर पर बैठना 

फिरसे वापस घर आते समय  टू व्हीलर फोर व्हीलर रिक्षा बस की सीट पर बैठना 

घर आकर सोफा पर बैठना 

फिर खाना खाने के लिए डायनिंग चेअर पर बैठना 

और फिर से जाकर बेड पर अगले छे से आठ घंटे के लिए लेटे रहना / सो जाना 

ऐसी बैठी हुई / सेडेन्टरी ... बिना हालचाल व्यायाम एक्झरसाइज एक्झर्शन की हि ... बहुत सारे लोगों की जीवनी आजकल है

मुंह दिया है इसलिये खाते रहना है ... ठूसना है.

तो प्रतिदिन, ये रोज रात्री को डिनर के समय, अतिसंंतर्पणकारी ठूंसना इस प्रकार से,

जो पृथ्वी जल प्रधान अन्नपदार्थ का सेवन होता है,

इसी कारण से स्थौल्य अनावश्यक मेदःसंचिती भारवृद्धी ॲसिडिटी अम्लपित्त अग्निमान्द्य शोथ पीनस श्वास डिस्निया ऑन एक्झर्शन कंडू कुष्ठ त्वचारोग तथा डायबिटीस टाईप टू ये संतर्पणजन्य व्याधी निर्माण होते है.


इसी कारण से, अगर डिनर मे पूर्ण सौहित्य तक, 

लघूनां नाऽतितृप्तता, इस प्रकार का भोजन किया जाए, 

तो *क्षुधा का शमन तो होता है,

किंतु शरीर मे नये से*, जिसका उपयोग हो न सके, इस प्रकार का पृथ्वी जल प्रधान कफ पित्तकारी मेदोवृद्धिकर गुरु द्रव स्निग्ध गुणवर्धक संतर्पणकारी भाव पदार्थों का वर्धन संचय *नही होता है.*

अभी इसलिये, डिनर मे ,

किस प्रकार का आहार नियोजन करना उचित होगा, 

ये त्रिफला गुडूची हरीतकी और मुस्ता, इन चार द्रव्यों के योग, के कार्मुकता के बाद देखते है.

जैसे आहार में अनशन उपोषण उपवास अल्पाहार की आवश्यकता नही है, 

वैसेही व्यायाम का अतियोग साहस अतिरेक भी आवश्यक नही है. 

केवल संपूर्ण शरीर के सभी मसल्स एक साथ गती में रहे , काम करे. इस प्रकार का सर्वांग सुंदर व्यायाम जो कम से कम सब लोग कर सकते है वो है चंक्रमण = चलना 60_70 मिनिट तक, 


या मुंह से सांस लेने की क्षमता तक सूर्यनमस्कार करना , ये काफी होता है. 

Spinal Twist & Air Cycling 

स्पाइनल ट्विस्ट और एअर सायकलिंग ये दोनो मिलाकर शरीर के सर्व मसल्स का पर्याप्त मात्र मी व्यायाम करवाते है 

ये दोनो मिलके एक अत्यंत आसान किसी भी को भी करने के लिए योग्य और सुविधा जनक इस प्रकार का व्यायाम योग है 

स्पायनल ट्विस्ट में कमर के उपर के संपूर्ण मसल्स का व्यायाम होता है और 

एअर सायकलिंग मे कमर के नीचे के सभी मसल्स का व्यायाम होता है 

इसलिये ये दोनो मिलकर एक अत्यंत परिणामकारक सर्वांग सुंदर व्यायाम है 

इन दोनों के सौ सो सेटिंग ये दिन मे पूरे करना चाहिए 

दस दस के दस सेटिंग करे या पच्चीस के चार सेटिंग करे या 30 के तीन सेटिंग करे 

ऐसे करने से फायनल ट्विस्ट और एअर सायकलिंग के द्वारा एक महीने में 10% किलोग्राम तथा इंचेस कम करना संभव है


जिम मे जाना रनिंग करना जॉगिंग करना वजन उठाना स्विमिंग करना योगा करना ... इससे मेदःसंचिती कम नही हो सकती. 


🏊‍♂️🏊‍♀️🏊 स्विमिंग मे तो पानी आपको उपर फ्लोट float करता है, बायोन्स Buoyancy, or upthrust होता है, तो स्विमिंग से कभी भी स्थौल्य कम नही हो सकता. 

हां, उससे आपकी पल्मोनरी स्टॅमिना कपॅसिटी बढ सकती है. मसल की जो वहा पर हालचाल होती है मूव्हमेंट होती है, वो बायोन्स के कारण आपका मेदःक्षय नही करती है.


यही बात 🚴🏼‍♂️🚵‍♂️🚵‍♀️🚵🚴‍♀️🚴 सायकलिंग की भी है, मेदःसंचिती प्रायः पेट पर सीट पर होती है ... और सायकलिंग करते समय, सीट और पेट यह स्थिर रूप मे अचलरूप मे गतिहीन रूप मे रहते है ... 


और जहां पर मेदःसंचिती उतनी नही होती है, वे थाईज घुटने ॲन्कल और काफ (पिंडिका) मसल अनावश्यक हि काम करते है. वहां का प्रोटीन लॉस मसल वेस्टिंग होता है ... 


ये तो, चोर को छोडकर संन्यासी को फांसी, इस तरह का न्याय हुआ.


मेदःसंचिती तो पेट और सीट पर है और व्यायाम तो आपके पांव पिंडिका कर रहे. उस स्थान पर अगर ताण है टेन्शन है जोर पडेगा, तो हि मेद वहां से हटेगा. 


हम जिंदगीभर फॉरवर्ड बेंडिंग के रूप मे बैठे है, इस कारण से पेट tummy तोंद (रेक्टस ॲब्डाॅमिनस) यह सर्वाधिक शिथिल स्थान है, जहां पर किसी भी प्रकार का ताण टेन्शन जोर नही पडता है, यह मोस्ट रिलॅक्स जगह है शरीर मे , जहां अनायास हि मेद संचिती होती है और वहा पर मेदः संचिती होना, उसी कारण से स्वाभाविक भी है.


कुछ लोग कहते है की, स्थौल्य में पेट तोंद बेली टमी पर मेद इसलिये जमा होता है, क्योंकि मेदोवह स्रोतस का स्थान मूल वपावहन और वृक्क है. 

इसलिए वपावहन पर मेदःसंचय होता है. 

किंतु यह कितना खोखला और आधारहीन शास्त्रीय संदर्भ है, इसका थोडा भी चिंतन कोई करता नही है. 


अगर मेदोवह स्रोतस् का स्थान वपावहन है, तो वृक्क भी है ना ... 

क्या किसी को आपने देखा है कि, वो चल रहा है और उसके पीठ पीछे एल वन (L1) के लेवल पर किडनीयों के स्थान पर, मेद के दो बडे बडे गोले दिख रहे है. 

नही देखा ना!? 

तो ये मेदोवह स्रोत के मूलस्थान का इससे कोई संबंध नही है. 


शरीर का सर्वाधिक रिलॅक्स स्थान, जिस पर किसी भी प्रकार का कष्ट/जोर/ताण/टेन्शन नही पडता है, ऐसे फॉरवर्ड बेंडिंग के कारण, मेद संचिती यह तोंद टमी पेट पर इस रूप मे होती है, तो फॉरवर्ड बेंडिंग की बजाय, बॅकवर्ड बेंडिंग हो साईड बेंडिंग हो, स्पायनल ट्विस्ट हो, इस प्रकार के उस मेद स्थान पर जोर कष्ट ताण टेन्शन पडे, ऐसे व्यायाम प्रकार करने चाहिए, जिसमे ... 


1.

सूर्यनमस्कार श्रेष्ठ है.


2.

उस के साथ साथ, स्थानिक मेदःक्षय करने के लिए उपयोगी, एअर सायकलिंग = पीठ केबल सोकर, अपने कटी से नीचे का जो देह है, उन पांवों को /सक्थियोंको हवा मे उठाकर, हवा मे हि, तीन बार आगे, तीन बार पीछे, सायकलिंग करना है. ये air cycling है.

जो आदमी पाच छे सात किलोमीटर चल सकता है , जो आदमी तीस किलोमीटर सायकलिंग कर सकता है, वो दस पंधरा मिनिट भी एअर सायकल नही कर सकता. 


निसर्गतः मनुष्य के लिए चलना स्वाभाविक है.


सायकलिंग मे तो आराम ही होता है, शरीर का कटी के उपर का भाग स्थिर रहता है, हाथ हॅण्डल पर स्थिर रहते है और अकारणही जहा मेदः संचिती नही है, ऐसे पांव घुटने काफ मसल ये कष्ट करते रहते है,


तो सायकलिंग जैसा भारक्षय वेटलाॅस के लिये अत्यंत विसंगत व्यायाम दूसरा कोई नही है. 


इसी के साथ रनिंग जॉगिंग जम्पिंग झुंबा बॅडमिंटन क्रिकेट ये सारे जर्क देने वाले झटका देने वाले collision friction करने वाले व्यायाम है.


ये 35 40 45 50 की वय मे अच्छा व्यायाम नही है.


सूर्यनमस्कार, स्पाइनल ट्विस्ट एवं एअर सायकलिंग हि सर्वाधिक लाभदायक परिणामकारक व्यायाम है.


इसके साथ ही अगर साठ-सत्तर मिनिट तक प्रति दिन एक ही समय मे चलने का व्यायाम करे तो और भी लाभ होता है.


यह जो प्रस्तुत योग है, 

*त्रिफला गुडूची हरितकी और मुस्ता* यह अत्यंत संतुलित योग है, 

जिसमे त्रिफला और हरितकी ये विरेचक है, 

मुस्ता ग्राही है तथा 

गुडूची और मुस्ता दोनो शमनद्रव्य है. 


संतर्पणजन्य विकारोंका सर्वार्थसिद्धिसाधक सर्वोत्तम योग जो कि वचाहरिद्रादि है, उसमें इस प्रस्तुत योग मे से दो द्रव्य सम्मिलित है जैसे की अभया व मुस्ता.


इसी के साथ हरितकी उष्ण है. 

गुडूची समशीतोष्ण है.

त्रिफला समशीतोष्ण है, रसायन है. 

और मुस्ता शीत वीर्य है.


सर्वाधिक उपयोगीद्रव्य है हरितकी. 

स्थौल्य का चिकित्सा सूत्र है 👇🏼

*वातघ्नानि अन्नपानानि श्लेष्ममेदोहराणि* च ... ✅️


अर्थात वात को तथा कफ को कम करे ऐसे, औषध या आहार या दोनो. 


कफ को जो कम करता है वो मेद को कम करेगा हि, क्यूंकि दोनों का महाभौतिक संघटन एक समान है. 


पृथ्वी जल प्रधान गुरु स्निग्ध द्रव प्रधान को जो कम कर सकता है, ऐसा द्रव्य स्थौल्यहर निश्चित रूप से हो सकता है. 

दीपन व मेदःशोषक होना, यह भी आवश्यक है, इसलिये इस पर चिकित्सा करने वाला द्रव्य रूक्ष उष्ण होना आवश्यक है. 


और ये सारे के सारे क्रायटेरिया निकष सार्थक होते है, अभया = हरीतकी के विषय में. 


अष्टांगहृदय उत्तर स्थान 40 श्लोक नंबर 48-58 में अग्रे द्रव्य लिखे गये है. 

वाग्भट के द्वारा, *अनिलकफ अर्थात वातकफ मे सर्वश्रेष्ठ द्रव्य अभया* इस तरहसे उल्लेखित है 


और आश्चर्य की बात है, कि इस चार घटक द्रव्य योग मे त्रिफला गुडूची मुस्ता इनका उल्लेख चरक में भी है ...

किंतु, *अभया का नही है. 


किंतु वाग्भट ने *अभया अनिल कफे* इस रूप मे वातकफजन्य रोग मे अभया अग्रद्रव्य है, यह उल्लेख किया है, यही वाग्भट का श्रेष्ठत्व है* 💪🏻🙏🏼


जितना सु परिणाम वचाहरिद्रादि गणका मेदःकफ तथा मेदसाऽऽवृत वात आढ्यवात अर्थात स्थौल्य के लिए लाभकारी होता है.


उसी प्रकार से , उसी योग/गण मे थोडा अधिक स्पेसिफिकेशन किया जाये , तो यह *अभया मुस्ता गुडूची त्रिफला* यह योग अधिक पिन पॉईंट लक्ष्यगामी टारगेट ओरिएंटेड इस तरह से काम करता है.



स्थौल्य का पेशंट जो प्रायः सुकुमार होता है, उसके लिए यह योग सही होता है, सुसह्य होता है, पीडाकारक त्रासदायक नही होता है.


प्रायः जितने इंच, शरीर की दीर्घता / हाईट है, उतने kg शरीर का भार होना चाहिए, ऐसा *मेरा 33 साल के पेशंट को देखने के बाद मत हुआ है* 

Those many kgs, as many inches!!!✅️


अर्थात किसी की हाईट पाच फूट पाच इंच (5'5") है, तो उसका सामान्य वजन 60+5=65 किलो होना चाहिए. 


अगर वह लो/स्माॅल फ्रेम शरीर का है तो पाच किलो कम अर्थात 65-5 = 60 किलो तक होना चाहिए , 


अगर वह लार्ज फ्रेम शरीर का है, तो उसका वजन पाच किलो जादा अर्थात 65+5= 70 किलो तक होना चाहिये.


तो जितने इंच, उतने kg +/- 5 इस फॉर्मुला के साथ काम करेंगे ... Those many kgs (+ 5 / - 5), as many inches!!!✅️

तो स्थौल्य को कितने दिनो मे कम कर सकते है, इसका एक एस्टिमेट पेशंट को देना संभव होता है.


जितने इंच , उतने kg, ये रिलेशन या संबंध कैसे प्राप्त हुआ? इसका आधार क्या है ? इसका रेफरन्स क्या है? 


तो इसका उत्तर है , की जितने इंच उतने kg, इसका कोई रेफरन्स नही है, किसी research में नही पढा है, ना हि ये बी एम आय से संबंधित है, ना हि किसी इंटरनॅशनल स्टॅंडर्ड से संबंधित है. 


जिस क्षेत्र field मे, मैं काम करता हूं, इस भारत के महाराष्ट्र के प्रायः पश्चिम महाराष्ट्र के क्षेत्र में , मैने पिछले 35 साल मे जितने पेशंट देखे और उन पेशंट के साथ आने वाले उनके मित्र कुटुंबीय रिश्तेदार देखे, सामान्य रूप से मै लोगों को देखता रहता हूं, तो मेरा ये अनुभव/निरीक्षण हुआ है, की ...


*जितने इंच, उतने kg* यह नॉर्मल देहभार body weight है, हमारे यहाँ का !!! 


थोडा बहुत कम ज्यादा ... यह पंजाब की ओर अधिक तथा दक्षिण भारत की ओर कम हो सकता है. 


हर शास्त्रीय समीकरण रिलेशन के लिए अगर हम मॉडर्न के निरीक्षणों पर हि निर्भर रहेंगे, तो हम हमारे यहा का रिजनल ट्रॉपिकल निरीक्षण कब करेंगे ? 


हमारा नॉर्मल/स्टॅंडर्ड उनके लिए abnormal सकता है , उनका नॉर्मल हमारे लिए abनॉर्मल हो सकता है ... यह भी संभावना हमने देखनी चाहिए.


स्थौल्य के विषय मे चरक ने लिखा है, कि मेद से आवृत होने के कारण वात कोष्ठ मे प्रकुपित होता है और वह अग्नि को बढाता है , इसलिये और आहार की इच्छा होती है ... वगैरे !!


मुझे संप्राप्ति मान्य नही है ,

ना हि वह मेरे समझ मे आती है. 


मेरा स्थौल्य संप्राप्ती का आकलन थोडा अलग है, कि ... 


अगर किसी व्यक्ति का वजन 80-90 किलो है और उसकी हाईट पाच फूट पाच इंच (5'5") है, 

तो उसका सामान्य वजन नॉर्मल देह भार 65 किलो होना चाहिये था, 


तो इस समय *यह व्यक्ती 15 से 25 किलो वजन लोड भार अपने शरीर पर ढो रहा है carry भारवहन कर रहा है*. 


मसल जॉइंट्स पर सामान्य से जितना एक्स्ट्रा लोड होगा , उतना उसको वहन करने के लिए अधिक एनर्जी की आवश्यकता होगी, उतनी ही अधिक क्षुधा उसको लगेगी , उतनाही अधिक आहार वह खायेगा ... 


अधिक आहार खायेगा तो, फिर से जो अनावश्यक लोड है पच्चीस किलो का , उसमे और एक दो किलो बढेगा ... फिर बढे हुए उस लोड के लिए और अधिक एनर्जी की आवश्यकता, और अधिक क्षुधा, और अधिक आहार ... 


ये दुष्टचक्र है vicious सर्कल है ... 


इसको हमे तोडना है.


जो मेद का संचय , मेद का अनावश्यक लोड / भारवहन उसका शरीर कर रहा है,

उसके व्यायाम के लिए दैनंदिन हालचाल मूवमेंट के लिए एनर्जी मिलनी चाहिये.


इसलिए पहले अनावश्यक इनपुट बंद करना चाहिए ...


और अनावश्यक इनपुट है , जैसे पहिले स्पष्ट किया कि ... *डिनर इस द कल्प्रिट* ...


20-25 की वय मे हमारे शरीर की वृद्धी बंद हो जाती है... 

सर्वांगीण विकास पूर्ण शरीर निर्मिती हो गई होती है. 


उसके आगे अगर हम डिनर मे पृथ्वीजल संतर्पण आहार लेते रहेंगे 

और उसका उपयोग करने जितना हमारा शारीरिक व्यायाम हालचाल मूव्हमेंट अगर नही है , 

तो उसका रूपांतरण धीरे धीरे, शोथ पीनस स्थौल्य कोलेस्टेरॉल क्लेद कंडू त्वचारोग प्रसेक हृल्लास अग्निमान्द्य अम्लपित्त तथा डायबिटीस टाईप टू ... 

इन मे होता चला जाता है. 


इस कारण से, पहले डिनर का मेनू बदलना चाहिए.


खाली पेट नही रहना चाहिए.


अगर उसको starving / empty stomach करेंगे,

तो उसके शरीर की एनर्जी की आपूर्ति के लिए जो विकृत अनावश्यक मेदस संचिती है, उसका उपयोग न होते हुये, 

उसका मसल वेस्टिंग प्रोटीन लॉस होता है. 


इस कारण से खाली पेट नही रखना है, स्टार्विंग starving नही करना है. 


उसको भर पेट भोजन/खाना खिलाना है, लेकिन उस डिनर के आहार का मेन्यू बदलना है. 


उसको हमेशा की तरह दाल चावल रोटी सब्जी खाने की अनुमती न देकर, 


उसको भर्जित, आकाश महाभूत प्रधान धान्य अर्थात लाजा का सेवन करवाना चाहिए. 


लाजा उन भाव पदार्थ को क्षीण कर सकती है, जो क्लेदप्रधान है, द्रव प्रधान है, शिथिल है, पृथ्वी जल प्रधान है. यही मेद का भी स्वरूप है. 


अगर लाजा छर्दि का अग्रे द्रव्य है (अ हृ उ 40/48-58) अर्थात लाजा, द्रवप्रधान, पृथ्वीजल प्रधान, दलदल चिखल कीचड mud = क्लेद का शोषण करने मे सक्षम है, 


क्यूंकि लाजा स्वयं आकाश महाभूत प्रधान है और अगर लाजा के गुणधर्म देखे जाये, तो वह लाजा ...


लाजास्तृट्छर्द्यतीसारमेह- *मेदःकफच्छिदः* ॥ 

कासपित्तोपशमना दीपना लघवो हिमाः। 


इसलिए डिनर का मेन्यू लाजा हि होना चाहिए और फिर से क्षुधा की अनुभूती हो, तो फिर से लाजा हि खाना चाहिए, ऐसे डिनर के समय तीन-चार बार भी भूक लगे तो, फिर से लाजा खाते रहना चाहिए. 


12 घंटे मे अगर 24 बार भी भूक लगे, तो लाजा का ही सेवन करने का संयम और निर्धार होना चाहिए.


रिझल्ट चाहिये , तो प्रयत्न भी करना आवश्यक है.


सब कुछ टॅबलेट से हि होगा, ऐसे हो ही नही सकता! 


औषध अन्न और विहार यही चिकित्सा की त्रिसूत्री है.


थोडी मेहनत आपको भी करनी पडेगी ...

यह पेशंट को समझाना चाहिये / कन्व्हिन्स करना चाहिए


धीरे धीरे 8-15 दिनो के बाद, बार-बार भूक लगना बंद होता है और एक विशिष्ट लाजा राशी से, उसके डिनर की क्षुधा की आपूर्ति , समाधान पूर्वक हो जाती है. 

फिर भी लाजा खाने से किसी को भूक का शमन होता ही नही है तो उसे कम से कम यह पालन करने की विधा बतानी चाहिए की, 

रात्री भोजन मे डिनर मे कार्बोहायड्रेट शुगर ग्लुकोज कफ मेद जल पृथ्वीकलेद बढाने वाले आहार पदार्थों को वर्ज करे ...

अर्थात गेहू चावल बाजरा अर्थात रोटी चावल भाकरी, मैदा बेकरी के पदार्थ फल फ्रूट ज्यूस मिल्क मिल्क प्रॉडक्ट्स मिल्क शेक बटाटा साबुदाणा ... ऐसे कार्बोहायड्रेट बढाने वाले अन्नपदार्थ वर्ज्य रखे.


भरपेट लाजा दो या तीन बार खाने के बाद भी, अगर भूक लगे ..

तो उस समय मूग मसूर चवळी से बना हुआ कोई व्यंजन बनाकर खाना चाहिए जैसे की धिरडे डोसे चीला उसळ इत्यादी ...

जो स्थौल्य की , मेद की, डायबेटीस टाईप टू की, शोथ की, अम्लपित्त की, संतर्पण की संप्राप्ती है, उत्पादन कारण है, उसको हम बंद करते है, उस संतान परंपरा को हम खंडित करते है ... 


निष्क्रिय, बिना हालचाल, बेड पर पडे रहने के बाद, जब उठेंगे तो एक घंटा या 70 मिनिट चल कर आना है ... और उसके बाद प्रोटीन युक्त बलमांस वर्धक शिंबी धान्य युक्त मधुर कषाय रस प्रधान रूक्ष आहार लेना है.


शिंबी वर्ग का सेवन करना है. 

शिंबी वर्ग मे सबसे श्रेष्ठ है मुद्ग और मसूर. 

इसी के साथ अलसांद्र राजमा (चवळी) है, जो स्तन्यकर अर्थात एक जीव का संपूर्ण पोषण करने की क्षमता रखते है ...

उस राजमा अर्थात अलसांद्र चवळी इसका भी उपयोग करना चाहिए. 


पनीर (fat + lactose) व मटन (वसा, कोलेस्टेरॉल) में, प्रोटीन होता है, किंतु वह अत्यंत गुरु और संतर्पणकारी होने से उनका सेवन उपयोगी नही है.


चिकन अंडी मच्छी ये तो और भी वर्ज्य है, 

क्योंकि चिकन और अंडे आज हार्मोन का इंजेक्शन देकर हि आते है 

और सी फूड या मत्स्य मे अत्यधिक क्षार तथा पोल्युट कंटेंट होने के कारण, शरीर मे जल की संचिती होकर और क्लेद प्रधानता द्रव प्रधानता संतर्पण प्रधानता होती है.


इस कारण से शिंबी वर्ग (मूग मसूर चवळी) का सेवन करना और अपने प्रोटीन लॉस को बचाना मसल वेस्टिंग को बचाना, बल बनाये रखना संभव होता है.


नाश्ता में शिंबी धान्य का बलमांसवर्धक आहार लेने के बाद, 

जब आधा दिन बीत जाये, 

तो मध्याह्न के समय दोपहर एक (1pm) से पहले,

संपूर्ण भोजन करना चाहिए, 

जिसमे दाल चावल सब्जी रोटी = ग्लुकोज प्रोटीन फायबर फॅट = शूक धान्य शमी धान्य शाक इनका संतुलित समावेश होना चाहिये. 


उसने इसलिये दोपहर का भोजन अगर ग्लुकोज युक्त कार्बोहायड्रेट युक्त शुगर युक्त पृथ्वी जल युक्त संतर्पणकारी हो , तो भी दिन भर के उसके शारीरिक क्रियाओं के कारण हालचाल के कारण मूव्हमेंट के कारण, उसका उपयोग हो जाता है , उसका अनावश्यक शरीर मे संचय नही होता है. 


इसी के साथ साथ, दिन मे सोना यह संतर्पणकारी विहार है, वह बंद करना चाहिए. 


अगर दिन मे सोना अनिवार्य है, सात्म्य है, आदत है ... तो बैठकर सोना चाहिए. 

आसीन प्रचलायितम् ... जैसे हम कार मे, एसटी बस मे प्रवास करते समय, बैठकर सोते है = शरीर के कटी के उपर का भाग, भूमी समांतर नही होने देना है अर्थात 180° में नही सोना है ... 120° या 135° डिग्री ने सोना. 


सोफा पर या कुर्सी पर बैठकर, पीछे दीवार को सर लगाकर/सटाकर/रखकर , सामने कोई दूसरी कुर्सी टिपॉय स्टूल रखकर, उस पर भूमी समांतर होरायझोंटल पाव रखने है और ऐसे आप चाहे जितना एक या दो घंटा भी सो सकते है ... किंतु 15 मिनिट भी बेड पर लेटकर, सोना नहीं. 


इस प्रकार से, अगर हम *आहार, विहार और औषध का प्रयोग* करे तो निश्चित रूप से, 

*एक महिने मे अप टू टेन पर्सेंट (upto 10% per month) 

या 

केवल 14 दिनो मे अप टू 5% होता है*. 

✅️


Kg लॉस &/or इंच लॉस दोनों संभव होता है. 


Kg लॉस होते समय , शरीर के मेद के साथ साथ मांसक्षय का भी भय/संभव रहता है. 


मेदक्षय हि हुआ है, ये सुनिश्चित करने के लिए, कन्फर्म करने के लिए, चिकित्सा के उपचार के पूर्व BT (BeforeTreatment) तोंद की तीन जगह पर सर्कमफरंस तथा वेस्ट सीट थाईज आर्म्स चेस्ट ब्रेस्ट इन के भी सरकम्फरन्स इंच या सेंटीमीटर मे लिखके रखने चाहिये और हर 15 दिन बाद / महिने बाद इन इंचेस को भी गिनना चाहिए. 


तो ऑब्जेक्टिव्हली कितना इंच लाॅस हुआ, कितना मेदःक्षय हुआ ये पता चलता है. 


वरना पेशंट का वर्तन ऐसे होता है, कि इंच नही गिनते. बताते है की पुराने कपडे आने लगे है, नये कपडे ढीले हो गये है, साईज डबल एक्सेल से मिडियम तक आयी है. पर ये सब्जेक्टिव्ह असेसमेंट है. थोडासा पेशंट को एज्युकेट करके, डिसिप्लिन लगाके, बिफोर ट्रीटमेंट (BT) ... ड्युरिंग ट्रीटमेंट और आफ्टर ट्रीटमेंट (AT) ... इंच काउंटिंग ऑफ द सर्कमफरन्स ॲट बेली टमी सीट वेस्ट आर्म चेस्ट ब्रेस्ट यहां के करके रखने चाहिये. 


और *ये इंच काउंटिंग पेशंट के पास ही रहना चाहिए*. वैद्य ने इसे अपने पास केस पेपर में रजिस्टर नही करना चाहिए. क्योंकि वह हर एक पेशंट की अपनी वैयक्तिक प्रायव्हसी है. वैद्यने केवल बीटी BT के इंचेस मे एटी AT के समय कितना अंतर पडा है, उतनाही लिखना चाहिए.


विशेषतः स्त्री रुग्ण (female patient) का शरीर के इंचेस का काउंटिंग अपने केस पेपर पर नोट करना यह नैतिकता के विरुद्ध है. पेशंट की कन्सेंट होने के बावजूद भी, किसी भी पेशंट का, विशेषतः स्त्री रुग्ण का बीटी एटी का उनके फोटोज नही लेने चाहिये. ये नैतिकता से पूर्णतः विरुद्ध है. अनावश्यक है. 


इंचेस काउंटिंग मे कितना फरक पडा है, इतना फरक ही ऍक्च्युली रिझल्ट है ... उसका ही केस पेपर मे रजिस्ट्रेशन करना चाहिए. चिकित्सा के यश को सोशल मिडिया पर डिस्प्ले करने के धुन मे मोहमे, हम नैतिकता के मूल्य को अवमानित करने पर आमादा होने की संभावना होती है. 


तो इस प्रकार से, *औषध अन्न और विहार का संतुलित और सामूहिक उपयोग, स्थौल्य से आपको निश्चित रूप से मुक्ती दे सकता है*✅️


शास्त्र मे देह भार का कोई प्रमाण संख्या मे नही दिया है. देह दीर्घता अंगुली प्रमाण के रूप मे दी है. किंतु, देह भार का मापन नही किया है. उस जमाने मे तुला भार कर्ष इत्यादी परिमाण उपलब्ध थे, फिर भी देह भार कितना होना चाहिये, इसे स्पष्ट रूप से कही पर भी उल्लेखित नही है. किंतु अंगुली प्रमाण का उल्लेख है, इसलिये टमी तोंद पेट इनका अंगुली प्रमाण शास्त्र मे लिखा हुआ है और वास्तविक पेशंट मे कितना है, इसका अंतर बिफोर ट्रीटमेंट आफ्टर ट्रीटमेंट लिखकर रखना उचित होता है. उसी प्रकार से सक्थि कटि नितंब बाहु उर इनका भी अंगुली प्रमाण, यह प्रति व्यक्ती चेंज हो सकता है. इसलिये एक नंबर सर्व स्वीकृत अधिक योग्य होता है, ऑब्जेक्टिव्ह असेसमेंट के लिये.


तो ...

1.

अभया मुस्ता गुडूची त्रिफला यह सप्तधा बलाधान टॅबलेट दिन मे तीन या चार बार ...उसके साथ


2. 

ब्रेकफास्ट मे शिंबी वर्ग 


3.

लंच मे संपूर्ण भोजन दाल चावल सब्जी रोटी और ...


4.

रात्री भोजन मे केवल लाजा ... क्यूंकि डिनर इस द कल्प्रिट. 


साथ ही ...


5.दिन मे नही सोना 


6.

70 मिनिट तक सामान्य गती मे चलना 


7. सूर्यनमस्कार 


8. एअर सायकलिंग air cycling 


9. स्पायनल ट्विस्ट Spinal twist 

ये व्यायाम करना ...


आहार, विहार और औषधात्मक चिकित्सासे स्थौल्य पर विजय प्राप्त हो सकता है.


न हि स्थूलस्य भेषजम् ऐसा यद्यपि वाग्भट ने कहा है, 

तथापि मैं स्वयं वाग्भटीय म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda यह डंके की चोट पर स्पष्ट रूप से जोर देकर कहता हूं कि, 

*यही स्थूलस्य भेषजम् ... सही स्थूलस्य भेषजम्*. 

इस का अर्थ केवल दिया हुआ अभया त्रिफला मुस्ता गुडूची सप्तधा बलाधान 6 टॅबलेट 4 बार , इतना हि पर्याप्त नहीं है. We do not endorse any Drug & Disease Policy. औषध के साथ साथ, संतुलित आवश्यक आहार और विहार इनका भी उतनाही महत्व है, यह जानना चाहिए.

*औषधान्नविहाराणाम् उपयोगं सुखावहम्॥ विद्याद्*









Disclaimer डिस्क्लेमर अस्वीकरण :
औषध + अन्न + विहाराणाम् उपयोगं सुखावहम्॥
औषध के साथ ही, योग्य आहार नियोजन और नियमित व्यायाम इनकी भी चिकित्सा साफल्य के लिए अत्यंत आवश्यकता होती है.
यह लेख किसी भी ड्रग अँड डिसीज इस प्रकार की विधा की पुष्टी नहीं करता है.
इसीलिए म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda द्वारा प्रसृत सप्तधा बलाधान टॅबलेट का किसी भी व्याधी मे आत्मविश्वासपूर्वक प्रयोग करते समय, उस व्याधी के लिए आवश्यक आहार नियोजन (=पथ्यपालन + अपथ्य त्याग) तथा उस व्याधी के लिए आवश्यक व्यायाम + विहार + जीवनशैली में बदलाव इनका भी चिकित्सा के साफल्य मे उपयोग निश्चित रूप से रहता है.
केवल म्हेत्रे आयुर्वेद MhetreAyurveda द्वारा प्रसृत सप्तधा बलाधान टॅबलेट देने से ही व्याधी मे उपशम या चिकित्सामे यश प्राप्त होगा ऐसे नही है. उसके लिये उस व्याधी के अनुसार उचित आहार व विहार का मार्गदर्शन, पेशंट को करना, यह वैद्य के लिए आवश्यक है.




Friday, 10 May 2024

Why 56/112 tablets packing? Why not 30/60/120 tablets packing?

Why 56/112 tablets packing? 😇

Why not 30/60/120 tablets packing? 🤔⁉️

आज मार्केट में उपलब्ध सभी फार्मेसी के टॅबलेट्स के पॅक यह प्रायः 30 , 60 या 120 टेबलेट के होते हैं ...

किंतु MhetreAyurveda ने यह निश्चित किया है कि, टॅबलेट पॅकिंग 56 और 112 ऐसे दो प्रकार का होगा

क्योंकि प्रायः वैद्य/ आयुर्वेदिक प्रॅक्टिशनर डाॅक्टर पेशंट को औषध देते समय; एक सप्ताह, दो सप्ताह या चार सप्ताह की देते हैं.

तो दिन में दो बार दो टॅबलेट दिए ... 2BD के Dose में या दोनों भोजनों के पहले (अपान = प्राग्भक्त) या दोनों भोजनों के बाद (अधोभक्त = व्यान+उदान) ... तो एक सप्ताह में 28 तथा 2 सप्ताह में 56 टॅबलेट की आवश्यकता पड़ेगी और एक महीने के लिए 112 टॅबलेट की आवश्यकता होगी.

मॉडर्न मेडिसिन में प्रायः औषध का कोर्स 5 या 10 दिन का होता है, इसलिए उनके स्ट्रिप्स यह 10 15 20 इस तरह से 5 गुना = 5 मल्टीपल्स इस प्रकार के होते हैं ...

तो उनका ही अनुकरण करते हुए हमारे क्षेत्र में भी टैबलेट की संख्या छोटे पॅक में 30 / 60 या 120 होती है.

किंतु साप्ताहिक औषध सेवन के विधि में यह संख्या 5 मल्टीपल्स की बजाय 7 के मल्टीपल्स में होना उचित है.

क्योंकि हमारा शास्त्र सप्ताह की परिभाषा में औषध कालावधी का विधान बताता है ...

जैसे की अति प्रसिद्ध लोकप्रिय दो औषधियां सूतशेखर और आरोग्यवर्धिनी इनका सेवन कालावधी 42 दिन है अर्थात एक मंडल अर्थात 6 सप्ताह है ...

वैसे हि बृहत्त्रयी में अष्टांग संग्रह में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि *सप्ताहेन गुण अलाभे क्रियाम् अन्याम् प्रयोजयेत्* तो एक सप्ताह तक औषध देना यह आयुर्वेदोक्त औषध का उचित विधान है 

इसी प्रकार से 7 धातुओं तक औषध पहुंचने के लिए, प्रति धातु के लिए एक सप्ताह ... इस प्रकार का गणन करेंगे, तो भी अंतिम धातु तक पहुंचाने के लिए 6 सप्ताह की आवश्यकता है ... तो इस प्रकार से साप्ताहिक गणना के विधान के अनुसार हि औषध का पॅक वितरित करना उचित है

इस कारण से प्रतिदिन 2 या 4 इस प्रकार का गणना करेंगे तो, दो सप्ताह के लिए 56 और एक मास (4 सप्ताह) के लिए 112 टॅबलेट्स... प्रतिदिन 4 टैबलेट के अनुसार पर्याप्त है.

अगर यह 30/60/120 की संख्या में पैकिंग करेंगे, तो अगले फॉलो पर पेशंट के पास दो चार आठ (2/4/8) टॅबलेट ऐसे हि बच जाते हैं, कि जिनका क्या करें , ऐसा प्रश्न निर्माण होता है.

इस कारण से मॉडर्न का 5 मल्टीपल्स का अनुकरण करने के स्थान पर, आयुर्वेद शास्त्रोक्त साप्ताहिक औषधि विधान का अनुसरण करते हुए, 5 की मल्टीपल्स के गणन से,  30 60 या 120 टॅबलेट का पॅक वितरित करने की जगह, 7 के मल्टीपल्स में... 56 और 112 टॅबलेट का पॅक वितरित करना शास्त्रदृष्ट्या उचित है ✅️

जिन्हें स्वयं गिनकर के पेशट  को औषध डिस्पेंस करना है,  उनके लिए बल्क पैक अर्थात 250mg के 1000 टेबलेट्स = 250 ग्राम का पैक उपलब्ध है.

Friday, 12 April 2024

नवीन संहिता निर्माण का मार्गदर्शक सूत्र

 यथा स्यादुपयोगाय तथा तदुपदेक्ष्यते। 

यह वाग्भटका वाक्य नवीन संहिता निर्माण का मार्गदर्शक सूत्र होना चाहिए .


जो आयुर्वेद के अधिकरण के परे है, ऐसे विषयोंको इसमे संमिलित हि नही करना चाहिए ...

और तो और ऐसे विषयों को पढाना हि नही चाहिये


दर्शनशास्त्र और प्रमाण इनको पढाने की क्या आवश्यकता है ?

जो "युगानुरूप संदर्भ" के रूप मे , उस समय वाग्भट ने संहिता लिखी ... उसमे भी कहां सृष्टी / दर्शन / प्रमाण इनका वर्णन किया है ???


अकेला अष्टांगहृदय,  संपूर्ण रूप से आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवसाय यशस्वी पद्धती से करने के लिए सक्षम और पर्याप्त है. दक्षिण भारत में सदियों से अष्टांग हृदय आधारित ही चिकित्सा हो रही है.


और भी, वैसे सुश्रुत मे कहां पर आपको प्रमाण का वर्णन मिलता है ?

तो क्यूं पढते है हम बिना कारण उसको ?

अच्छा, सृष्टी शरीर ... सृष्टी क्यू पढानी है ??


उसमें हम क्या घटाने बढाने वाले है? उसमे क्या वृद्धी क्षय हो सकता है? जो महाभूत के उपर की सृष्टी का वर्णन होता है, उसका हम से लेना देना हि क्या है?


तो क्यों ऐसे व्यर्थ चीजों को पढाना है? और पुस्तक मे उनके प्रकरण बढाने है ??


ये जो पदार्थ विज्ञान नाम के विषय के रूप मे बच्चों के दिमाग का दही बनाया जाता है... अध्यापकों के लिए विनाकारण शिरःशूल निर्माण होता है ... ऐसे विषय को बंद हि कर देना चाहिए.


पूरे पदार्थ विज्ञान मे जो महाभूत गुण कर्म वर्णन है, वह अष्टांगहृदय के सूत्र 9 नववे अध्याय मे जितना आया है, उतना पर्याप्त है.


बिना कारण हि वो इंद्रियार्थ संनिकर्ष , अनुमान के प्रकार हेत्वाभास ... क्या पढाने की आवश्यकता है?

नैयायिकों का सांख्य का वैशेषिक का सृष्टी की तरफ देखने का नजरिया क्या है, इससे मुझे क्या लेना देना?? 


आयुर्वेद तो सृष्टी की तरफ पंचमहाभूतों की नजरो से देखता है और पंचमहाभूतों के परे आयुर्वेद का ना तो अधिकार है, ना हि क्षमता है और जितना महाभूतों की बारे मे जानना आवश्यक है, उतना चरक सुश्रुत वाग्भट के संहिताओं मे पर्याप्त रूप से लिखा हुआ है


तंत्र युक्ती उसकाल के ग्रंथरचना के शैली के संदर्भ मे लिखी हुई बाते है 

आपके विचार करने के विविध पद्धतियों को विविध तंत्रयुक्तियों का लेबलिंग नामकरण किया गया है 


आज टेबल एक्सेल शीट पाय चार्ट बार चार्ट फ्लो चार्ट पिक्चर डायग्रॅम फिगर यही नयी तंत्रयुक्तियां है.


ग्रंथ लिखने के लिये आज आपको दृष्टांत / निदर्शन इनकी क्या आवश्यकता है? जहां चित्र प्रिंट हो सकता है, वहां पर उपमा बताने वाले दृष्टांत नाम के तंत्रयुक्ति की आवश्यकता हि क्या है ??


उसी प्रकार से ग्रंथ लेखन शैली को बताने वाले ताच्छील्य कल्पना तंत्रदोष इन सारे अनावश्यक बातों को त्याग देना चाहिए.


चरक विमान आठ मे उल्लेखित तंत्र गुणों का विचार किया जाये तो व सारे तंत्र गुण आज के आयुर्वेद को लागूही नही होते है यशस्वी धीर पुरुष सेवितम यह वाक्य आयुर्वेद के संहिता या प्रॅक्टिस या तंत्र को नही अभी तो आज के मॉडर्न के पुस्तकं को प्रॅक्टिस को ही लागू होता है यह सूर्यप्रकाश जितनी सत्य बात है


वैसे भी पदार्थविज्ञान तंत्रयुक्ती इत्यादी बाते दुर्बोध है एक बार बी ए एम एस परीक्षा पास होने के बाद 99% लोक उसको भूल जाते है और अपने जीवन मे उसका कभी भी किसी भी प्रकार से उपयोग किये बिना हि उनका आगे का अध्यापन या प्रॅक्टिस ऐसा जो भी करिअर है , वो यशस्वी एवं निर्विघ्न रूप से चलता रहता है.

इसी से पता चलता है की तंत्रयुक्ती आदि बाते अनावश्यक है, क्योंकि उनके उपयोग के बिना भी व्यवहार सुचारू रूप से चलता है.


इसलिये अष्टांग हृदय मे ऐसी बातो का एक शब्द से भी उल्लेख नही है


आज जिस प्रकार से मॉडर्न का हायेस्ट लेव्हल का रेफरन्स बुक डेव्हिडसन हॅरीसन हर कुछ सालों के बाद  अपडेट होता रहता है, उसी प्रकार से सुबोध स्पष्ट गद्य में अगर लिखेंगे तो ... किसी भी तंत्रयुक्ति की आवश्यकता हि नही है ...

रीडिंग बिटवीन द लाईन्स संकेतार्थ गूढार्थ लीनार्थ लेशोक्त अनुक्त अव्यक्त तर्क्य ध्यानचक्षु ज्ञानचक्षु योगजसंनिकर्ष ऐसी अमानवीय बातों को रखना हि नही है.


किसी भी सामान्य स्टुडन्ट को वह वाक्य पढने के बाद उसकी आकलन क्षमता के अनुसार सुबोध सुगमरूप से विषय समझ मे आना चाहिए ऐसी संहिता लिखने की आज के काल की आवश्यकता है need of the hour 


हम अगर वही फिरसे अतिविस्तार गूढ ऐसा कुछ लिखने वाले है , तो पिष्टपेषण है ये !!!

ये तो पुराने संहिताओ से भी दुर्बोध दुर्गम और अस्वीकार्य हो जायेगा और निष्प्रयोजन होगा