Friday, 12 April 2024

नवीन संहिता निर्माण का मार्गदर्शक सूत्र

 यथा स्यादुपयोगाय तथा तदुपदेक्ष्यते। 

यह वाग्भटका वाक्य नवीन संहिता निर्माण का मार्गदर्शक सूत्र होना चाहिए .


जो आयुर्वेद के अधिकरण के परे है, ऐसे विषयोंको इसमे संमिलित हि नही करना चाहिए ...

और तो और ऐसे विषयों को पढाना हि नही चाहिये


दर्शनशास्त्र और प्रमाण इनको पढाने की क्या आवश्यकता है ?

जो "युगानुरूप संदर्भ" के रूप मे , उस समय वाग्भट ने संहिता लिखी ... उसमे भी कहां सृष्टी / दर्शन / प्रमाण इनका वर्णन किया है ???


अकेला अष्टांगहृदय,  संपूर्ण रूप से आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवसाय यशस्वी पद्धती से करने के लिए सक्षम और पर्याप्त है. दक्षिण भारत में सदियों से अष्टांग हृदय आधारित ही चिकित्सा हो रही है.


और भी, वैसे सुश्रुत मे कहां पर आपको प्रमाण का वर्णन मिलता है ?

तो क्यूं पढते है हम बिना कारण उसको ?

अच्छा, सृष्टी शरीर ... सृष्टी क्यू पढानी है ??


उसमें हम क्या घटाने बढाने वाले है? उसमे क्या वृद्धी क्षय हो सकता है? जो महाभूत के उपर की सृष्टी का वर्णन होता है, उसका हम से लेना देना हि क्या है?


तो क्यों ऐसे व्यर्थ चीजों को पढाना है? और पुस्तक मे उनके प्रकरण बढाने है ??


ये जो पदार्थ विज्ञान नाम के विषय के रूप मे बच्चों के दिमाग का दही बनाया जाता है... अध्यापकों के लिए विनाकारण शिरःशूल निर्माण होता है ... ऐसे विषय को बंद हि कर देना चाहिए.


पूरे पदार्थ विज्ञान मे जो महाभूत गुण कर्म वर्णन है, वह अष्टांगहृदय के सूत्र 9 नववे अध्याय मे जितना आया है, उतना पर्याप्त है.


बिना कारण हि वो इंद्रियार्थ संनिकर्ष , अनुमान के प्रकार हेत्वाभास ... क्या पढाने की आवश्यकता है?

नैयायिकों का सांख्य का वैशेषिक का सृष्टी की तरफ देखने का नजरिया क्या है, इससे मुझे क्या लेना देना?? 


आयुर्वेद तो सृष्टी की तरफ पंचमहाभूतों की नजरो से देखता है और पंचमहाभूतों के परे आयुर्वेद का ना तो अधिकार है, ना हि क्षमता है और जितना महाभूतों की बारे मे जानना आवश्यक है, उतना चरक सुश्रुत वाग्भट के संहिताओं मे पर्याप्त रूप से लिखा हुआ है


तंत्र युक्ती उसकाल के ग्रंथरचना के शैली के संदर्भ मे लिखी हुई बाते है 

आपके विचार करने के विविध पद्धतियों को विविध तंत्रयुक्तियों का लेबलिंग नामकरण किया गया है 


आज टेबल एक्सेल शीट पाय चार्ट बार चार्ट फ्लो चार्ट पिक्चर डायग्रॅम फिगर यही नयी तंत्रयुक्तियां है.


ग्रंथ लिखने के लिये आज आपको दृष्टांत / निदर्शन इनकी क्या आवश्यकता है? जहां चित्र प्रिंट हो सकता है, वहां पर उपमा बताने वाले दृष्टांत नाम के तंत्रयुक्ति की आवश्यकता हि क्या है ??


उसी प्रकार से ग्रंथ लेखन शैली को बताने वाले ताच्छील्य कल्पना तंत्रदोष इन सारे अनावश्यक बातों को त्याग देना चाहिए.


चरक विमान आठ मे उल्लेखित तंत्र गुणों का विचार किया जाये तो व सारे तंत्र गुण आज के आयुर्वेद को लागूही नही होते है यशस्वी धीर पुरुष सेवितम यह वाक्य आयुर्वेद के संहिता या प्रॅक्टिस या तंत्र को नही अभी तो आज के मॉडर्न के पुस्तकं को प्रॅक्टिस को ही लागू होता है यह सूर्यप्रकाश जितनी सत्य बात है


वैसे भी पदार्थविज्ञान तंत्रयुक्ती इत्यादी बाते दुर्बोध है एक बार बी ए एम एस परीक्षा पास होने के बाद 99% लोक उसको भूल जाते है और अपने जीवन मे उसका कभी भी किसी भी प्रकार से उपयोग किये बिना हि उनका आगे का अध्यापन या प्रॅक्टिस ऐसा जो भी करिअर है , वो यशस्वी एवं निर्विघ्न रूप से चलता रहता है.

इसी से पता चलता है की तंत्रयुक्ती आदि बाते अनावश्यक है, क्योंकि उनके उपयोग के बिना भी व्यवहार सुचारू रूप से चलता है.


इसलिये अष्टांग हृदय मे ऐसी बातो का एक शब्द से भी उल्लेख नही है


आज जिस प्रकार से मॉडर्न का हायेस्ट लेव्हल का रेफरन्स बुक डेव्हिडसन हॅरीसन हर कुछ सालों के बाद  अपडेट होता रहता है, उसी प्रकार से सुबोध स्पष्ट गद्य में अगर लिखेंगे तो ... किसी भी तंत्रयुक्ति की आवश्यकता हि नही है ...

रीडिंग बिटवीन द लाईन्स संकेतार्थ गूढार्थ लीनार्थ लेशोक्त अनुक्त अव्यक्त तर्क्य ध्यानचक्षु ज्ञानचक्षु योगजसंनिकर्ष ऐसी अमानवीय बातों को रखना हि नही है.


किसी भी सामान्य स्टुडन्ट को वह वाक्य पढने के बाद उसकी आकलन क्षमता के अनुसार सुबोध सुगमरूप से विषय समझ मे आना चाहिए ऐसी संहिता लिखने की आज के काल की आवश्यकता है need of the hour 


हम अगर वही फिरसे अतिविस्तार गूढ ऐसा कुछ लिखने वाले है , तो पिष्टपेषण है ये !!!

ये तो पुराने संहिताओ से भी दुर्बोध दुर्गम और अस्वीकार्य हो जायेगा और निष्प्रयोजन होगा

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