Thursday, 11 April 2024

युगानरूप नवीन संहिता लेखन संकल्प और उसकी भूमिका तथा प्रतिपाद्य विषय एवं विषय विन्यास

 युगानरूप नवीन संहिता लेखन संकल्प और उसकी भूमिका तथा प्रतिपाद्य विषय एवं विषय विन्यास


प्रतिपाद्य विषय क्या है ?


संहिता ... अद्यतन संहिता ... अपडेटेड & अप टू डेट संहिता ... कंटेम्पररी संहिता ! ✅️


तो इसका विषय विज्ञान , प्राचीन काल की तरह ... सूत्र निदान शरीर चिकित्सा कल्प सिद्धी उत्तर ... ऐसे न होते हुयो; वस्तुतः यह *व्याधि प्रतिकार* का शास्त्र होने के कारण , इसका विषय विज्ञान *चिकित्सा बीज चतुष्टय या चिकित्सा बीज पंचक*, जो सुश्रुत सूत्र स्थान 1 मे उल्लेखित है उसके अनुसार होना उपयोगी सुसंगत और सुबोध है .


ये चिकित्सा बीज चतुष्टय या पंचक क्या है? 


ये है ... पुरुष व्याधी औषध क्रिया & काल 


एवमेतत् पुरुषो व्याधिरौषधं क्रियाकाल इति चतुष्टयं समासेन व्याख्यातम् । 


तत्र पुरुषग्रहणात् तत्सम्भवद्रव्यसमूहो भूतादिरुक्तस्तदङ्गप्रत्यङ्गविकल्पाश्च त्वङ्मांसास्थिसिरास्नायुप्रभृतयः, 


व्याधिग्रहणाद्वातपित्तकफशोणितसन्निपातवैषम्यनिमित्ताः सर्व एव व्याधयो व्याख्याताः, 


औषधग्रहणाद्द्रव्यरसगुणवीर्यविपाकानामादेशः, 


क्रियाग्रहणात् स्नेहादीनि च्छेद्यादीनि च कर्माणि व्याख्यातानि, 


कालग्रहणात् सर्वक्रियाकालानामादेशः ।।


विषय विन्यास 


सूत्रस्थान अनावश्यक हि है 


सूत्रस्थान मे ऐसे विषय का संकलन है, 

जो की स्टुडन्ट के लिए एकदम से आवश्यक नही है 

और सूत्रस्थान मे सभी अधिकरण के विषयों का निष्प्रयोजन एकत्रीकरण हो जाता है.

ऐसे संक्षिप्त या सांकेतिक तथा अप्रासंगिक परिचय से, शास्त्र का आकलन सुगम नही होता है.


सूत्र स्थान के विषय , उस उस स्थान मे , उस उस अधिकरण मे ही शोभा देंगे ...


जैसे की ...


दिनचर्या का वर्णन सुश्रुतने चिकित्सा स्थान में किया. 


ऋतुचर्या का वर्णन उसने आधा अधूरा तो सूत्र में किया किंतु विस्तृत वर्णन उत्तर तंत्र मे हुआ 


वेग धारण इसका वर्णन सुश्रुत ने उदावर्त प्रतिषेध के रूप मे चिकित्सा स्थान में किया , तो वही उचित है


क्यूकी स्वस्थ वृत्त की बाते या तो 

अन आगत आबाध प्रतिषेध है या 

रोग अनुत्पादन है ...

या जैसे हेमाद्री कहता है, वैसे ये ... बहिरंग हेतु अर्थात निदान स्थान का विषय है 


आगे द्रवद्रव्य विज्ञान और अन्नस्वरूप विज्ञान ये आहार के अध्याय या तो चिकित्सा स्थान मे या औषध स्थान मे होना चाहिए या सीधा संकल्पित निघंटु में होना चाहिये 


निद्रा और मैथुन का विषय यह दिनचर्या के अध्याय में हि उचित है , जैसे सुश्रुत ने किया 


महाभूतों का परिचय देने वाला तथा द्रव्य गुण वीर्य विभाग प्रभाव इनका परिचय देने वाला अध्याय तो शारीर मे होना चाहिये, क्योंकि वो शरीर रचना/क्रिया से या सृष्टी के महाभौतिक आकलन से संबंधित है 


रस का अध्याय भी भेषज, चिकित्सा या निदान मे होना चाहिए 


आगे 11, 12 अध्याय में दोष धातुमलविज्ञान और दोषों के पाच प्रकार , रोग मार्ग इत्यादी निदान स्थान का हि विषय है ...

या प्राकृत दोष धातू मल विज्ञान शारीर/पुरुष स्थान का विषय है 


और अध्याय 13 से आगे पूरा का पूरा विषय चिकित्सा का है... इसमे दोषोपक्रमणीय, द्विविध उपक्रमणीय, 


फिर गणोंका अध्याय = निघंटु


और सोलवे अध्याय से आगे पंचकर्म शल्यशालाक्य इनके उपक्रम तो चिकित्सा या क्रियास्थान का विषय है


इस दृष्टी से सूत्र स्थान तो स्वतंत्र अस्तित्व के पात्र हि नही है


इसलिये आद्य स्थान = पुरुष स्थान अर्थात शरीर रचना और शरीर क्रिया का स्थान ... जो की आज एमबीबीएस के फील्ड मे ॲनाटाॅमी और फिजिओलॉजी के रूप में प्रथम वर्ष मे पढाया जाता है, वही नैसर्गिक भी है और वही सुश्रुत का शास्त्रज्ञान का निर्देश भी है 


*पुरुष स्थान* अर्थात शरीर का प्राकृत स्वरूप = रचना और क्रिया के रूप मे ज्ञात होने के बाद ...


उसका बिगडना उसकी विकृती अर्थात *व्याधीस्थान* जिसे हमने रोगस्थान कहा है 


इसमे रोगी परीक्षा, रोगी परीक्षा , रुग्ण संवेद्य / वैद्य संवेद्य लक्षण के साथ हि *साधनसंवेद्य लक्षण* ... जिसमे हिमॅटोलॉजी बायोकेमिस्ट्री हिस्टोपॅथोलॉजी इमेजिंग टेक्निक्स एमआरआय सोनोग्राफी पेट स्कॅन एक्स-रे बहुत सारे प्रकार की स्कोपी ये सारी बाते आनी चाहिये 


परीक्षणों के बाद व्याधीयों का नैदानिक वर्णन होना चाहिये 


व्याधि = निदान स्थान के बाद निसर्गतः / स्वाभाविक रूप से, औषध = भेषज स्थान आना चाहिये 


क्रम परिवर्तित कर देते है, तो व्याधी स्थान के बाद, क्रिया स्थान अर्थात चिकित्सा स्थान आयेगा, उसके पश्चात औषध भेषज स्थान आयेगा


और जो भी बाते बची है वो काल स्थान... इसमे तत्कालीन/ सर्वकालिक/ समकालीन/ कंटेम्पररी/ हिस्टोरिकल/ फ्युचरिस्टिक ... काल संबंधी बाते 


या परिशिष्ट के रूप मे इस काल स्थान मे बाकी सारे विषय का विज्ञान हो सकता है 


विमान स्थान फिरसे एक व्यर्थ स्थान है, वहा के आठ अध्याय मे उल्लेखित विषय यत्र तत्र उपरोक्त स्थानो मे निश्चित रूप से संमिलित किये जा सकते है


वही स्थिती कल्प+सिद्धी स्थान की है ये दोनो स्थान औषध या क्रिया इस स्थान मे समाविष्ट हो सकते है


इंद्रिय स्थान की भी आवश्यकता नही है 

वह साध्यासाध्य उपद्रव अरिष्ट की बात है, व्याधी के नैदानिक वर्णन के अंत मे या परीक्षण विधी के प्रकरण मे आना योग्य है 


उत्तर-तंत्र की भी आवश्यकता नही है, क्योंकि उसमे काय चिकित्सा मे *न आने वाली* व्याधियों के बारेमे आप एक साथ लिखने वाले है, तो अगर यह संहिता आरंभिक स्वरूप में *काय चिकित्सा को ही मर्यादित करके लिखने का उद्देश निश्चित करती है*, तो उत्तर तंत्र का सद्भाव बनता हि नही है


भूमिका और संकल्प


🪷🙏🏼💫🪔✨

✍🏼📖

अनिर्देश्यं च तर्क्यं च वाग्वस्तुं वाऽनुमेयं वा

कालबाह्यम् असिद्धं यत् अभ्युपगमम् यत् असत् 

अधिकरणवर्ज्यं यत् असत्यं वाऽनुपयोगि च

स्रोतांसि च रसं नाडीम् आत्मयोगमनांसि च 

मर्मम् आवरणम् ओजं यच्च्यान्यत् बुद्धिरुज्झितम्

इदृशं कश्मलं सर्वं शोधनीयं हि शास्त्रतः

हेतवोऽभिनवा दृष्टा लक्षणानि नवानि च 

तस्माद् औषधस्कंधोऽपि कर्तव्योऽद्यतनस्तथा

सुबोधा सरला सिद्धा ह्यायुर्वेदस्य संहिता

युगानुरूपसंदर्भा "क्रियते" नूतनाऽधुना

शक्यते चेत् जीवनेऽस्मिन् पुनर्जन्मनि ह्यन्यथा

मदर्थे यद्यशक्यं स्यात् भवत्वन्योऽपि वा युवा


अनिर्देश्य तर्क्य वाग्वस्तुमात्र अनुमेय

अभ्युपगम असिद्ध कालबाह्य असत्

अधिकरणबाह्य असत्यं अनुपयोगि ... जैसे कि,

स्रोतस् रसशास्त्र नाडीपरीक्षा आत्मा योग मन 

मर्म आवरण ओज, ऐसे और भी बुद्धिप्रामाण्यविरहित विषय है, ऐसे सभी कश्मल अर्थात् दोषों को शास्त्र से निष्कासित करना आवश्यक है.

नया हेतु स्कंध सभी ओर दिखाई दे रहा है , तद् अनुसार कार्यकारणभावजन्य नवीन लक्षण स्कंध भी दिखाई दे रहे है, इसलिये उनके अनुसार तद्विपरीत

औषधस्कंध भी अद्यतन अर्थात अपडेटेड करना आवश्यक है.

सुबोध सरल सिद्ध (proof evidence) ऐसी आयुर्वेद संहिता , युगानुरूपसंदर्भ के अनुसार, अब नए से , निर्माण करना आवश्यक है.


अगर यह नवीन संहिता निर्माण का सत्कार्य इस जीवन में संभव हो सका, तो ठीक है ... न हो सका तो, अगले जन्म मे हि सही ... संपूर्ण हो हि सकेगा.


और मेरे इस वैयक्तिक शुभ संकल्प के अनुसार , अगर मेरी उतनी क्षमता या मेरा अपना जीवन , आयुर्वेद की युगानुरूप नवीन संहिता निर्माण के लिये, पर्याप्त नही है; तो युगानरूप नवीन संहिता का निर्माण किसी अन्य सक्षम युवक के द्वारा, भविष्य में अवश्य होगा हि, यह मेरा दृढ विश्वास है


उपरोक्त श्लोक वैद्य हृषीकेश म्हेत्रे द्वारा स्वयं रचित है और उन श्लोकों मे तथा उसके हिंदी एवं इंग्लिश भाषांतर मे व्यक्त किये गये मत, यह मेरे अपने वैयक्तिक है.


Non demonstrable , imaginary, just for the sake of discussion or mention, inferrable, considered assumed, unproved, outdated, non existing, out of Ayurveda scope, false, useless subjects ... like Aatma, manas srotas, marma, rasashaastra, naadee pareekshaa, yoga, aavarana, ojas etc ... and many other such irrational fictitious subjects should be discarded out of Ayurveda Shaastra.


New HetuSkandha, hence obviously New LakshanaSkandha should be included and accordingly *new aushdhaskandha* must be created.


A new ... Easily understandable, simple (uncomplicated = non goodha) straight (nothing left / hidden to be read so called "between the lines") proven ... samhitaa of Ayurveda which as per the current times , contemporary... is to be created newly, this is need of the hour.


*for me , personally, if this happens to be impossible, due lack of my capacity, in this life ... then may be it will be possible in next birth , if it exists ... & if not at all possible for me ... then some other capable youth will, for sure, create a new Samhitaa forAyurveda*


The shlokas written above are composed by the Hrishikesh Mhetre himself originally.

The statements exhibited in these shlokas are personal opinion only.


*ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्त्यवज्ञाम्*


*जानन्ति ते किमपि तान्प्रति नैष यत्नः।*


उत्पत्स्यते तु मम कोऽपि समानधर्मा


कालो ह्ययं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी ॥

👆🏼

भवभूति


*मर्त्यैरसर्वविदुरैर्विहिते क्व नाम ग्रन्थेऽस्ति दोषविरहः सुचिरन्तनेऽपि||*

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विजयरक्षित


Copyright ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे.

एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.

MhetreAyurveda 

आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक.

9422016871


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