Friday, 14 June 2024

ऑलिगो एस्थिनो स्पर्मिया oligo astheno spermia और द्रुत विलंबित गो सप्तधा बलाधान टॅबलेट

 ऑलिगो एस्थिनो स्पर्मिया oligo astheno spermia और द्रुत विलंबित गो सप्तधा बलाधान टॅबलेट


लेखक : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. 

एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.

आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक.

9422016871

MhetreAyurved@gmail.com


रुके रुके से कदम ... रुक के ... बार बार चले 


इस मोड से जाते है, कुछ सुस्त कदम रस्ते ... कुछ तेज कदम राहे


इस विषय पर संदर्भ तथा तर्क शास्त्रीय सत्य इन उपग्रहित सविस्तर लेख निकट भविष्य मे लिखकर प्रस्तुत करेंगे ...


धिस इज अ ट्रेलर ... अभी पूरा पिक्चर बाकी है


जो सब करते है यारो ... वो हम तुम क्यू करे !

इस *कुछ अलग करने की सोच* मे रहकर,

ये दो केस रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे है


पुरुष पेशंट 1

वय 32

मोटिलिटी 

RLP = Rapid Linear Progression = 00

SLP = Slow Linear Progression = 16

Non progressive 08

Immotile 76


काउंट less than 1 million 


पुरुष पेशंट 2

वय 34

मोटिलिटी 

RLP 16

SLP 07

Non progressive 30

Immotile 47


काउंट 6.8 


Testosterone 165 (low)







ज्वर कषाय पंचक = धातुपाचक / धातुगामित्व !!


वातज ज्वर = दुरालभादि क्वाथ = वेदनाशमन कल्प pain reliever 


कल्पशेखर = भूनिंबादि = अम्लपित्त अधिकार = कोष्ठ शाखा गति = क्लेद / जल+पृथ्वी विकृती मे उपयुक्त


*द्रुत विलंबित गो भवति इच्छया* ऐसी फलश्रुती जिस योग की है ... 

👇🏼

सहचरं सुरदारुं सनागरं 

क्वथितमम्भसि तैलविमिश्रितम्। 

पवनपीडितदेहगतिः पिबन् 

*द्रुतविलम्बितगो भवतीच्छया॥*




यह योग अगर मनुष्य देह में, 

*अपनी इच्छा नुसार , तीव्र गति से, दूर अंतर तक जाने की क्षमता* देने वाला है ...

तो यही परिणाम , यही कार्मुकता, यही लाभ ... 

शरीर के किसी अन्य अवयव में, शरीर के किसी अन्य अंश में, शरीर के किसी धातु में भी मिलना संभव है,

*_ऐसा अभ्युपगम / ॲझम्प्शन/ कन्सिडरेशन/ पॉसिबिलिटी/ प्रोबॅबिलिटी मानकर_* ...

यह योग पुरुष पेशंट को

अपान = भोजनपूर्व = प्राग्भक्त 

और 

भोजनोत्तर = व्यान+उदान = अधोभक्त 

तीनों समय = ब्रेकफास्ट + लंच + डिनर के आरंभ में

ऐसे दिया गया.

इस योग की मात्रा = 

तीन टॅबलेट भोजनपूर्व + तीन टॅबलेट भोजन के बाद ... तीनो भोजनों के समय 

अर्थात दिन में 18 टॅबलेट *द्रुत विलंबित गो सप्ताधा बलाधान 250mg* के इस रूप मे 

यह प्रयोग किया गया 


*One single sperm* with proper motility is sufficient for fertility 

इस शास्त्रीय सत्य के आधार पर यह परिकल्पना की गई है


और अगले तीन महिने में पेशंट की पत्नी को 

अर्थात अपत्यार्थी स्त्री को गर्भधारणा निश्चित हुई 


इस कल्प के व्यतिरिक्त अन्य कोई भी सर्वसाधारण लोकप्रिय प्रस्थापित शुक्रवर्धक वृष्य इस प्रकार के कल्प पेशंट को नही दिये गये थे


स्त्री रुग्णको भी किसी भी प्रकार के प्रस्थापित लोकप्रिय इस प्रकार के विकृती मे दिये जाने वाले कल्प नही दिये गये थे 


दोनो स्त्री रुग्णो में शरीर/यकृत् उष्ण तापमान तथा सामान्य स्तर पर उदर दाह अम्लपित्त हृल्लास छर्दि शिरःशूल यह समस्यायें थी, धार्मिक उपवास करना, पती देर से घर आते है इस कारण से जागरण करना और संतापी स्वभाव होना .. ऐसी स्थिती थी, 

इसलिये उन्हे *कल्पशेखर भूनिंबादी सप्तधा बलाधान टॅबलेट* दिये गये थे


इस चिकित्सा कालावधी मे दंपति को विशिष्ट शृंगार स्थिती = सेक्स पोझिशन का अवलंबन करने का उपदेश किया था


प्रेग्नेंसी के पहले के स्पर्म ऍनॅलिसिस के रिपोर्ट और 

स्त्री रुग्णके प्रेग्नेंसी कन्फर्मेशन के रिपोर्ट साथ मे भेजे है.


*यह मात्र दो केसेस का हि अनुभव है*


किंतु ...

जैसे ज्वर कषाय पंचक, उस उस धातुगामित्व से रसादि धातु मे कार्यकारी माना जाता है और वैसा व्यवहार होता है 


या 

इसके पहले भी हमने वातज्वर मे उल्लेखित *दुरालभादि योग यह वेदनाशामक के रूप मे परिणामकारक होता है*, क्योंकि वातज्वर के सभी लक्षण पाद से शिर तक विविध वेदना वर्णन करने वाले है, इस अभ्युपगम से आधारित लिखा था ... जिसका अनुभव आज महाराष्ट्र तथा देशभर के अनेक वैद्य सन्मित्र ले रहे है ...


उसी प्रकार से,

कल्पशेखर भूनिंबादि को भी केवल अम्लपित्त अधिकार तक सीमित न रखते हुए, पित्त की / पृथ्वी जल प्रधान क्लेद की ...

शाखा कोष्ठ गति के विविध मॅनिफेस्टेशन का समर्थ परिणामकारी उपाय, महाराष्ट्र तथा देशभर के अनेक वैद्य सन्मित्र ले रहे है ...


और द बॉस ... VachaaHaridraadi Gana 7dha Balaadhaana Tablets का DM Type 2, PCOS, Obesity एवं अन्य संतर्पणजन्यरोग मे उपयोगिता का सफल अनुभव तो ... आत्मविश्वास के साथ विपुल मात्रा में देशभर के वैद्य सन्मित्र ले हि रहे है


उसी प्रकार से ...

यह *द्रुतबिलंबित गो* नाम का 

वातव्याधि में उल्लेखित,

फलश्रुती को हि शीर्षक बनाकर लिखा हुआ 

यह *सहचर देवदारु नागर* केवल त्रिद्रव्यातमक योग,

जैसे देह की गति को *द्रुत और विलंबित, यथा इच्छा* इस प्रकार का परिणाम लाभ दे सकता है ...

वैसे हि ...

अस्थिनोस्पर्मिया मे स्पर्म की लो मोटिलिटी में ,

स्पर्म को उचित सक्षम गतिमान बनाने मे उपयोगी हो सकता है... ऐसा अभ्युपगम / वैयक्तिक आकलन किया


स्त्री के शरीर मे इजॅक्युलेशन के बाद,

लिक्विफिकेशन के बाद,

पुरुष के स्पर्म संपूर्ण व्हजायनल ट्रॅक्ट में प्रवास करके, फॅलोपियन ट्यूब से होते हुये,

ओव्हम तक जाकर उसको पेनिट्रेट करके,

फर्टिलाइज करने के लिए आवश्यक 

*द्रुत और विलंबित अर्थात फास्ट और डिस्टंट* 

= दूर अंतर तक गतिक्रमण/ मार्गक्रमण या प्रवास करने की क्षमता आने के लिए ,

*आवश्यक मोटिलिटी* इस *द्रुतबिलंबित गो कल्प से प्राप्त हो सकती है*, 

इस ॲझम्प्शन कन्सिडरेशन अभ्युपगम आकलन समझ समजूत पॉसिबिलिटी प्रोबॅबिलिटी के आधार पर यह प्रयोग किया गया है...

और प्रथमदर्शनी सकृत दर्शन यह प्रयोग यशस्वी है, ऐसा लगता है.


अगर यही प्रयोग अनेक वैद्य सन्मित्र करके देखेंगे और उनको भी इस प्रकार का अनुभव आयेगा ...

तो अनेक रुग्णों के जीवन में अपत्य प्राप्ती के नैसर्गिक आनंद को देने का सत्कर्म आयुर्वेद शास्त्र के द्वारा संभव है.


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Copyright कॉपीराइट © लेखक : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. 

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