सारिवादि/यष्टी+सारिवा *Stress, Irritation & Cancer स्ट्रेस अर्थात क्षोभ उद्वेग इरिटेशन ताण तणाव टेन्शन प्रेशर दडपण दबाव ... तथा कॅन्सर*
Copyright कॉपीराइट ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे.
एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.
आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक.
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मनुष्य को शरीरस्तर पर या विचार भावना बुद्धी इस स्तर पर या उभयस्तर पर ,
*Stress/स्ट्रेस यह हेतु , क्षोभ = irritation उत्पादक होता है* ...
1.
जैसे की कोई *फिजिकल या मेकॅनिकल = मूर्त स्ट्रेस* होता है ...
दिनभर खडे रहना : कंडक्टर शिक्षक वॉचमन सेल्स काउंटर
दिनभर बोलते रहना : रिसेप्शन टेलिफोन ऑपरेटर दिनभर बैठे रहना : ड्रायव्हर ऑफिस वर्कर्स स्टुडंट्स इसमे सस्पेंडेड प्रलंबौ पादौ होते है
किचन मे हॉटेल के शेफ के रूप में या फरनेस के सामने ऐसे सातत्य से *अत्युष्ण स्थान पर काम करना* एअरपोर्ट के आसपास रहना
रेल की पटरी के आसपास रहना
हायवे के आसपास रहना
गॅरेज या सिविल वर्क चलता रहता है ऐसी जगह के पास मे रहना : ध्वनी प्रदूषण एक प्रकार का स्ट्रेस है
2.
कुछ लोगों को *केमिकल स्ट्रेस* होते है :
जैसे तंबाखू / गुटखा / स्मोकिंग / पोल्युशन वाले ट्रॅफिक मे आवागमन / कार्बन मोनॉक्साईड का सेवन या किसी केमिकल फॅक्टरी मे काम या पेंटिंग का व्यवसाय या प्रिंटिंग का व्यवसाय
3.
कुछ लोगों को *सायकलॉजिकल इमोशनल सोशल फिनान्शियल अमूर्त स्ट्रेस* होते है
जो ईर्ष्या मत्सर असूया कम्पॅरिझन जलन जेलसी कॉम्पिटिशन डेडलाईन्स वर्क प्रेशर पियर प्रेशर अन्सर्टेनिटी अतिमहत्त्वाकांक्षा न्यूनगंड अतिगंड भयगंड स्वयंको सुपर हिरो सुपरमॅन सुपर वुमन सिद्ध करने की (क्षमता विरहित) इच्छा, स्पर्धा यह सारा भी विविध प्रकार के *अमूर्त स्ट्रेस* देने वाला है
4.
या किसी किसी को पडोसी या रिश्तेदार या मित्र या एम्प्लॉयर मालिक इन के द्वारा शारीरिक या आर्थिक इस प्रकार का भय शोक दैन्य यह भी; स्ट्रेस के लिए कारणीभूत हो सकता है
5.
उसे के साथ किसी चीज का न होना/अभाव ... जिसमे वस्तू व्यक्ती रोजगार व्यवसाय इनका विरह या नाश, अपेक्षित या अनपेक्षित अपघात के रूप मे होना ...
यह भी स्ट्रेस का कारण हो सकता है
6
तो शरीर के किसी भी अवयव स्थान संस्था धातू अर्थात ऑर्गन लोकेशन/एरिया टार्गेट सिस्टीम के ऊपर मूर्त स्वरूप मे फिजिकल केमिकल स्ट्रेस होना या बुद्धी विचार भावना इन पर स्वयं का स्वभाव या परिस्थिती या दोनों का सायकॉलॉजिकल वैचारिक भावनिक बौद्धिक स्ट्रेस होना समाज मे दिखाई देता है
7
स्ट्रेस मूर्त हो या अमूर्त हो उभय प्रकार का स्ट्रेस मनुष्य को एक प्रकार का क्षोभ = इरिटेशन = चुभन तोद टोचणी बोच पिंचिंग प्रिकिंग पॉईंटिंग इस प्रकार का अनुभव देता है
8
इसमे से सुबोध समझ की दृष्टि से स्ट्रेस को हम क्षोभ या इरिटेशन निर्माण करने वाला हेतू है, ऐसा समझेंगे
9
यही क्षोभ और यही इरिटेशन,
स्थानिक या सार्वदेहिक,
निरंतर या अतियोग या मिथ्या योग के प्रमाण में होता रहेगा ...
तो वह रोग का ... विशेषतः वह कॅन्सर का कारण होता है ,
ऐसा मेरा आकलन निरीक्षण और अनुभव है.
Any type of irritation which is Long standing, continuous, large scale, huge quantity ... it can cause/trigger genetic disturbance at local level or all over the tissue, which in turn obviously or eventually may initiate mutation neoplasm malignancy carcinoma...
as per ...
👇🏼
A.
the intensity of irritation
तदेव ह्यपथ्यं देशकालसंयोगवीर्यप्रमाणातियोगाद्भूयस्तरमपथ्यं सम्पद्यते
B.
vulnerability of the victim tissue
शरीराणि चातिस्थूलान्यतिकृशान्यनिविष्टमांसशोणितास्थीनि दुर्बलान्यसात्म्याहारोपचितान्यल्पाहाराण्यल्पसत्त्वानि च भवन्त्यव्याधिसहानि
&
C.
Their interaction (interaction between irritating agent and vulnerablevictimtissue)
स एव दोषः संसृष्टयोनिर्विरुद्धोपक्रमो गम्भीरानुगतश्चिरस्थितः प्राणायतनसमुत्थो मर्मोपघाती कष्टतमः क्षिप्रकारितमश्च सम्पद्यते ।
10
किसी भी *इरिटेटिंग या क्षोभकारक हेतू के विपरीत चिकित्सा* जो है ...
वह *प्रसादन चिकित्सा* है
और प्रसादन करने की क्षमता पृथ्वी जल, स्निग्ध शीत गुरु सांद्र मधुर मृदू ऐसे *सौम्य गुणयुक्त* उपचारो मे होती है
इसमे जो सुकर सुलभद्रव्य है उसमे एक अच्छा उपयोग करके देखा जा सकता है ऐसा द्रव्य सारिवा है
और उससे भी सर्वश्रेष्ठ द्रव्य मधुक अर्थात यष्टी है
इस संदर्भ में निम्नोक्त दो व्हिडिओ तथा संपूर्ण प्ले लिस्ट श्रवणीय है
https://youtu.be/NKdUMfoFTJU?si=BlEZy9Y43tPTWHCx
&
https://youtu.be/5byKhnA-m8w?si=-2JfIQ4JfqdjlR2c
*कॅन्सर के निर्मिती का मुख्य कारण हि क्षोभ = इरिटेशन है*,
ऐसा मेरा प्राथमिक आकलन निरीक्षण और अनुभव है.
यद्यपि,
*इरिटेशन या क्षोभ, कॅन्सर का कारण है* ...
ऐसा किसी भी पियर रिव्ह्यू जर्नल रिसर्च पेपर या गुगलवर ढूंढने से डॉक्युमेंटेड के रूप मे लिखा हुआ/ रेकॉर्ड किया हुआ प्राप्त नही होगा ...
तथापि अनेकविध अधिकृत कॅन्सर संबंधित शीर्षस्थ संस्थाओं के वेबसाईट पर कॉझेस ऑफ कॅन्सर causes of cancer इसका अवलोकन करने के बाद , उसका एक Gross Understanding कुल आकलन ; इरिटेशन कॉझेस कॅन्सर Irritation causes Cancer यह विधान हो सकता है
कॅन्सर के लिए किये जाने वाले मुख्य तीन उपचार = सर्जरी केमोथेरपी रेडिएशन ...
ये तीनों उपचार
1. स्वयं अपने स्वरूप मे तथा
2. उपचारों के पश्चात जो परिणाम होते है और
3. जो कालावधी पेशंट व्यतीत करता है ...
ये सभी तीनो चीजे 1.उपचार, 2.उपचार के परिणाम और 3.उपचार के पश्चात का कालावधी ,
ये तीनो भी फिरसे, इरिटेशन = क्षोभकारक है,
ऐसा मेरा वैयक्तिक मत है
और ऐसी स्थिती मे जिनको इन 3 उपचार को झेलना है, करना हि है ...
उन पेशंट के संरक्षण की दृष्टि से ...
उनके शरीर के कॅन्सरग्रस्त स्थान अवयव संस्था धातु अर्थात ऑर्गन लोकेशन/एरिया सिस्टीम या टिशू ...
इनकी सुरक्षा की दृष्टि से अगर *इरिटेशन से विपरीत, प्रसादन उपचार* ...जो प्रायः उपरोक्त *सांद्र गुणादि प्रधान* है, जिसमे यष्टी और सारिवा इनका प्रमुख उपयोग, कार्यकारी हो सकता है.
कॅन्सर का एक बार उपचार होने के बाद,
यद्यपि पेट स्कॅन मे उस समय कुछ भी ॲबनाॅर्मल नही दिखाई दे रहा होता है,
तथापि 3/6 महिने या एक वर्ष के बाद फॉलोअप के रूप मे जो पेट स्कॅन किया जाता है ,
उसमे फिरसे या तो रिकरंस या सेकंडरी इस प्रकार का रिपोर्ट आता है,
तो ऐसी भविष्यकालीन संभावना को टालने के लिये, उस उस स्थान का इरिटेशन = क्षोभ का बचाव करना आवश्यक है
और इस कारण से पुन्हा *प्रसादनकारी सांद्र गुणादियुक्त, यष्टी और सारिवा इनका उपयोग लाभदायक सिद्ध होता है, ऐसा मेरा *अल्पकालीन अनुभव निरीक्षण और आकलन है*
वैसे अष्टांगहृदय सूत्रस्थान 15 में, वाग्भट के गणों के अध्याय में सारिवादि गण मे प्रथम द्रव्य सारिवा और अंतिम द्रव्य यष्टी है ...
बीच मे के जो सारे द्रव्य है ...
1.
वे प्रायः मिलते नही है या
2.
उन पर ban में है या
3.
उनका मार्केट मूल्य बहुत अधिक है या
4.
मेरे आकलन से वे अनावश्यक है,
इस कारण से तुलनात्मक दृष्ट्या, जो सुलभ प्राप्त है, उन दो *यष्टीमधु व सारिवा को सप्तधा बलाधान के रूप मे प्रयोग करता हूं*.
जिनको संभव है, वे सारिवादि गण के सभी द्रव्यों का भी, ऐसी स्थिती मे उपयोग करके, उसके परिणाम का अनुभव प्रस्तुत कर सकते है
किंतु यष्टी और सारिवा इनके कुछ वैशिष्ट्य है.
सारिवा शुक्र व स्तन्य इन दोनों पर हितकारक परिणाम करने वाली है और
ये दोनो शरीरस्थ भाव नवजीवनकारी है
और कॅन्सर की संप्राप्ती मे प्रमुख दूष्य तत्तत् धातुगत स्थानगत शुक्र हि है.
इसलिये already कॅन्सर ग्रस्त या कॅन्सर ग्रस्त होने की संभावना होने वाले स्थान अवयव संस्था धातू (organ , location/area, system, tissue) इनका समधातु पारंपर्य बना रहे और कॅन्सर नामक रोग का आक्रमण से उनका संरक्षण होता रहे, इस दृष्टी से एक सुरक्षा कवच के रूप मे, सारिवा निश्चित रूप से उपयोगी हो सकती है.
*मज्जा शुक्र समुत्थानाम् औषधं स्वादु+तिक्तकम्*
ऐसे उल्लेख आता है
इसमे स्वादु सांद्र मृदु सौम्य इस दृष्टी से सारिवा एक उत्तम द्रव्य सिद्ध होता है.
इन्हीं सर्व वैशिष्ट्यों के कारण यष्टीमधु भी,
सारिवा के समान हि तत् तत् धातु का संरक्षण और तत् धातु गत शुक्र का प्रसादन और समधातु पारंपर्य संतानकारी है
यष्टी यह मधुर द्रव्य मे सर्वश्रेष्ठ द्रव्य है, ऐसा मेरा वैयक्तिक मत है.
यद्यपि अष्टांग संग्रह में ,
जो छ 6 रस स्कंधों के सर्वश्रेष्ठ द्रव्य दिये है,
उसमे मधुर रसका सर्वश्रेष्ठद्रव्य घृत है.
किंतु घृत यह एक आहार द्रव्य है और उसका ट्रान्सपोर्ट बहुत समस्या कारक तथा उसका सेवन मात्रा भी अधिक है.
इसकी तुलना मे यष्टी यह एक औषधी द्रव्य है, वीर्यवान द्रव्य है, इसकी मात्रा अल्प होते हुए भी परिणामकारक है तथा ट्रान्सपोर्ट के लिए अत्यंत सुविधा जनक है.
यष्टी चरक के महाकषाय में सर्वाधिक बार पुनरावृत्त पुनरुक्त रिपीट उल्लेखित होने वाला द्रव्य है
तथा
चरक सूत्र 25/40 श्लोक इसमे जो अग्रेसंग्रह है,
उसमे यष्टीमधु के सामने 7 गुण कर्म का, 7 कार्मुकताओं का उल्लेख है.
साथ ही यष्टीमधु मेध्य रसायनो मे उल्लेखित है.
यष्टी का उल्लेख उरःक्षत तथा भग्न इनमे भी होता है, इसका अर्थ यह है कि, यष्टीमधु रस से लेकर शुक्र तक सभी धातुओं का उत्तम निर्माण, संरक्षण, प्रसादन करने मे सक्षम है.
इस कारण से यष्टीमधुक और सारिवा ये दोनो द्रव्य;
1. कॅन्सर का मुख्य हेतू इरिटेशन,
2. कॅन्सर के उपचारों का कालावधी, तथा
3. कॅन्सर के उपचारों का पश्चात परिणाम, जो पुन्हा इरिटेशन हि परिणाम देने वाला है ...
ऐसे, कॅन्सर पूर्व , कॅन्सर उपचार समकालीन और कॅन्सर उपचार पश्चात ... ऐसे त्रिकाल मे यष्टीमधुक और सारिवा इनका शरीर धातु संरक्षण के लिये निश्चित रूप से हितकारक उपयोग सिद्ध हो सकता है
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एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.
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