Monday, 24 November 2025

कंसहरीतकी ? क्यूं सोचना 🤔⁉️ च्यवनप्राश!! सिर्फ बेचना 😃

कंसहरीतकी ? क्यूं सोचना 🤔⁉️

च्यवनप्राश!! सिर्फ बेचना 😃

Picture credit Google Gemini AI 

आपने भोजन कर लिया ?

इस प्रश्न के उत्तर में, "गर्मी के मौसम मे स्वेटर पहनना चाहिये" ऐसा सुना... तो आप क्या समझेंगे ! ?


साथ मे जुडा हुआ फोटो, मुझे एक ग्रुप मे चल रही चर्चा पर, किसी ने वैयक्तिक रूप मे, मेसेज के रूप मे भेजा है, मेरे पर्सनल व्हाट्सअप पर, उसका यह स्क्रीन शॉट है


आयर्वूवेद फिल्ड म्हनजे सुमार बुद्धीच्या, टुकार वृत्तीच्या, बेक्कार लोकांची, मोक्कार गर्दी !!!


हिंदी भाषांतर 

आयर्वूवेद का क्षेत्र औसत बुद्धि, आलसी रवैये और आलसी दिमाग वाले लोगों की एक बढती हुई बहुत बडी भीड़ है!!!


English 

The Ayawurveda field is a crazy crowd of people with mediocre intellect, a lazy attitude, and a lazy mind!!!


ऐसा क्यू हुआ होगा ????


आयुर्वेद के क्षेत्र में प्रश्न क्या पूछा है, यही बहुतांश लोगों को समझ मे नही आता है, इसलिये उसके बाद की चर्चा या तो होती नही है & अगर होती भी है तो दिशाहीन भ्रांती के रूप मे भटक जाती है


प्रश्न पूछा आवले का भार = वजन, कितना कर्ष = ग्राम होना चाहिये ?

यदि हरितकी का भार द्विकर्ष और बिभीतक का भार एक कर्ष शास्त्र मे लिखा है, तो इस आधार पर आवले का भारत "कितना ग्राम = कर्ष" होना चाहिये?? 


दूसरा प्रश्न पूछा चवनप्राश की एक समय की सेवन मात्रा कितनी है ??


यह प्रश्न मे पिछले 22 साल से पूछ रहा हूँ 


किसीने कभी भी उत्तर नही दिया 


इस साल अचानक दो चार ग्रुप मे इस पर रिस्पॉन्स प्रतिक्रिया आ गई 


एक सीनियर के ग्रुप में इस पर बडी चर्चा चली 


किंतु चर्चा का विषय यह था की, 

चवनप्राश खाने लायक टेस्टी बनाने के लिए , 

आवले की तुलना मे उसने कितनी गुना शुगर शर्करा डालने चाहिये ???


प्रश्न क्या पूछा है !? ... चर्चा क्या चल रही है ... !?


इस पर हमने आगे के कुछ पॉईंट्स उस सीनियर वैद्य ग्रुप मे रखे ...

जो आपके भी सामने प्रस्तुत कर रहे है

1

न मात्रामात्रमप्यत्र किञ्चिदागमवर्जितम्| 


2

किसी का भी अनुभव या मत कुछ भी हो यदि आप्त प्रमाण सर्वश्रेष्ठ है, तो उसमे जैसे बताया है, वैसे करना चाहिए, यह अंतिम निर्णय है


3

 इसलिये आवला और शर्करा का प्रमाण कितना होना चाहिए, यह वाद ही निराधार है अनावश्यक है निरुपयोगी है 


4

मूल प्रश्न ऐसा है की आवले का वजन/भार कितना होना चाहिए ?

जिस वजन/भार का आवला बाजार मे मिलता है, वह शास्त्रीय अपेक्षित आमलकी फल है क्या ?

और च्यवनप्राश की सेवन मात्रा क्या होनी चाहिये?


5.

अगर वो प्रश्न सुलझ गया तो बाकी कोई प्रश्न रहेगा नही 

उसका टेस्ट क्या आता है 

वो खाने लायक होता है की नही है

👆🏼 

ये प्रश्नही अशास्त्रीय है


6

आयुर्वेद औषधी का प्रायः टेस्ट रुचिकर होता ही नही है. औषधी प्रायः तिक्त कटु कषाय होते है , तो क्या फिर सभी औषधो को टेस्टी बनाने के लिए उसमे मनचाहे बदल करोगे क्या ?

नही !


6A

कंसहरीतकी मे भी हरीतकी फलों की संख्या 100 है और दशमूल क्वाथ का प्रमाण एक कंस है 


6B

वैसे चवनप्राश मे भी आमलकी फलों की संख्या 500 है और शर्करा का प्रमाण अर्ध तुला है 


6C

तो ऐसे फलों की संख्या और अन्य औषध का प्रमाण मान परिभाषा मे , ऐसे अन्य कल्प मे भी हुआ है जो की कंसहरीतकी है ...


6D

लेकिन उसके बारे मे कोई चर्चा वाद प्रश्न संदेह नही होता है , क्यूंकि उसको किसी को "बेचना" नही उसका "व्यापार" नही हो सकता उसको कोई "मार्केट" नही है


6E

कंसहरीतकी का टेस्ट कैसा होता है, उस पर कोई चर्चा नही करेगा, उसको कोई स्मरण मे तक नही लायेगा , क्यूंकि की वह "बेचने की बात" नही है ना!? 😇


7.

जो आप बेच रहे हो वो चवनप्राश नही है, इतना प्रामाणिक रूप से मान्य करो ... 


8.

जो शास्त्र मे लिखा चवनप्राश है, वो हम बनाते नही, ये प्रामाणिक रूप से मान्य करो. 


9.

फिर किसको क्या बेचना है, वो उसका स्वयं का प्रश्न है ... लेकिन उसको शास्त्रोक्त/च्यवनप्राश नाम देकर उसके नाम पर गलत चीजे मत बेचो, इतनी ही नम्र विनंती


10.

चरक कहता है "मात्रा"कालाश्रया युक्तिः ... आमलकी फल संख्या मे 500 है , केवल उस फल का भार कितना होना चाहिए, इसका निर्धारण होना आवश्यक है.

हरीतकी बिभीतक इनके भार कितने होते है, यह शास्त्र मे स्पष्ट रूप से उल्लेखित और उसके आधार पर आवले के फल का वजन पाच ग्रॅम (जादा से ज्यादा सव्वा छह ग्राम) होना चाहिये !!!

इनसे जो बनता है वह चवनप्राश आप अगर नही बना रहे, तो आप चवनप्राश नाम नही दे सकते. चवनप्राश नाम देने के बाद अन्य कुछ भी उसके नाम पर नही बेचना चाहिए


11.

सेवन मात्रा यह दूसरा शास्त्रीय तथा व्यावहारिक दृष्टी से महत्वपूर्ण प्रश्न है. चरक ने जो मात्रा लिखी है वह सब्जेक्टिव्ह है. उसको ऑब्जेक्टिव बनाने का प्रयास शार्ङ्गधर ने किया है जो अवलेह सेवन मात्रा एक पल लिखा है जो 40 ग्रॅम होता है 


12.

इतने दो ही प्रश्न , इस सभी चर्चा का जो मूल आरंभ है , जो मेरे इस विषय से संबंधित पाच लेखों के पोस्ट में है ... links given here👇🏼

के आया मौसम ..."च्यवनप्राश" 🥄🙃😇 का ?! ... 🤔⁉️


https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/11/blog-post_20.html

👆🏼

हिंदी भाषा : च्यवनप्राश निर्मिती : कुछ प्रश्न और संदेह 😇🙃🤔⁉️


https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/11/english-chyavanprasha-formulation.html

👆🏼

English: ChyavanPrasha Formulation : Queries and Doubts


https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/11/blog-post_31.html

👆🏼

हिंदी भाषा : ययाती च्यवन ऋषी च्यवनप्राश अर्थवाद


https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/11/yayaati-chyavana-arthavaada.html

👆🏼

English : Yayati, Chyavana Rushi, Chyavanaprasha & ArthaVaada


https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/11/blog-post_48.html

👆🏼

मराठी : च्यवनप्राश निर्मिती : काही प्रश्न आणि शंका🤔⁉️


https://youtube.com/clip/Ugkx0qR3voYTyn8hKmW_ftAFnPTtfXce8LnF?si=NE-GsXBOkpgmJ9ql

👆🏼

के आया मौसम ... 💞


13.

बाकी चर्चा जो है, वो दिशाहीन है अनावश्यक है निरुपयोगी है प्रयोजन शून्य है


च्यवनप्राश की सेवन मात्रा (one time dose) कितनी है??

🤔⁉️

च्यवनप्राश अवलेह यदि "प्राश" है तो "प्रकर्षेण अशन" = "अशित" इस प्रकार से उसका सेवन होना चाहिए 



यदि "अवलेह" है, तो वह "लीढ" इस प्रकार मे आता है


अशित खादित पीत लीढ 

ऐसे चार प्रकार के अन्न होते है इसमे से "अशित & लीढ" यह दोनो भिन्न प्रकार है, तो च्यवनप्राश "अशित है या लीढ है" ??


च्यवनप्राश की सेवन मात्रा कितनी है?? 🤔⁉️


As per charaka, 

👇🏼

अस्य मात्रां प्रयुञ्जीत योऽपरुन्ध्यान्न भोजनम्|

It should be taken in the dose which does not interfere with the food intake and digestion

👆🏼

This is subjective अर्थात भगवान जाने कितनी मात्रा देना है!?😇🤔⁉️


सोऽवलेहश्च लेहः स्यात्तन्मात्रा स्यात्पलोन्मिता 

👆🏼

अर्थात शार्ङ्गधर के अनुसार मात्रा एक पल = 40 ग्रॅम है


एक समय में, इतनी मात्रा में, कोई वैद्य, च्यवनप्राश देता है क्या ...


और कोई पेशंट, इतनी मात्रा में, एक समय में, च्यवनप्राश खाता है क्या?


⚖️

Eltroxin की मात्रा mcg मे काउंट होती है 

1 milligram (mg) = 1,000 micrograms (mcg).


और च्यवनप्राश की निर्मिति में प्रति वर्ष, पूरे भारत मे, संभवतः प्रायः किलो में या टनों मे अपराध होता रहता है! 😔☹️🤦🏻‍♂️🙆🏻‍♂️

चरक संहिता के सभी 8 स्थानो का उचित नामांतरण

चरक संहिता के आठ (8) स्थानो का नाम तथा तद् अंतर्गत विषय वर्णन सुसंगत नही है

Picture credit Google Gemini AI 

स्वयं चरक ने सूत्रस्थान को श्लोकस्थान ऐसा पर्यायी नाम दिया है वह उचित ही/भी है क्यूंकि, सूत्रस्थान मे मूलभूत सिद्धांत एवं शास्त्र विषय के संक्षिप्त आरंभिक प्राथमिक परिचय के साथ साथ/अलावा/बजाय , अन्य स्थानों के भी कई विषयों का भी "सविस्तर" वर्णन होता है 


निदान इस "शब्द" का रोगज्ञान से किसी भी तरह से, कोई भी, सीधा संबंध नही है, ऐसा विजय रक्षित ने स्पष्ट किया है. Diagnosis शब्द की तरह निदान शब्द स्पष्ट रूप से रोग बोधक नही है. नि यह उपसर्ग और दान यह मूल शब्द या "दा" दीयते यह मूल धातु , इनका स्पष्ट संबंध रोगबोधन से या रोग उत्पादन से नही है. बहोत दूर दूर से जोडतोड करके जुगाड करके निदान शब्द का रोग बोधन से संबंध टीकाकार प्रस्थापित करते है. इसलिये निदान यह शास्त्रीय यौगिक इस प्रकार का शब्द न होकर यह केवल एक रूढ शब्द है

इसलिये उसका भी नामांतरण हेतु स्थान या व्याधिस्थान/रोगस्थान होना चाहिए, जो हमने पहले भी एक अन्य लेख मे लिखा है जिसकी लिंक आगे दी है

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/04/blog-post.html

👆🏼

युगानरूप नवीन संहिता लेखन संकल्प और उसकी भूमिका तथा प्रतिपाद्य विषय एवं विषय विन्यास

विमान स्थान मे सारे इधर उधर के विषय है, पूर्व अध्याय में वर्णित विषय का आगे के अध्याय मे वर्णित विषय से कोई भी संबंध नही है 

इसलिये विद्यमान विमान स्थान का नाम तो विकीर्ण स्थान, विक्षिप्त स्थान या विस्कळीत स्थान होना चाहिए 

और विमान स्थान आठ अंतिम अध्याय में तो , इतने सारे विषय एक साथ जोड दिये है, की वह केवल एक अध्याय मात्र न होकर , एक स्वतंत्र स्थान है ऐसा लगता है, तो केवल विद्यमान चरक विमान स्थान अध्याय आठ , इस अकेले एक अध्याय का ही नाम खिलस्थान रखना चाहिए😇

शारीर स्थान मे शारीर कम और तत्त्वज्ञान अधिक, ऐसा होने के कारण इसको, अल्प शारीर , लघु शारीर , र्‍हस्व शारीर, अंश शारीर ऐसा नाम होना चाहिए 


इंद्रिय स्थान मे जिस विषय का वर्णन है , वैसे ही उस विषय का नाम = अरिष्ट स्थान ऐसे होना चाहिए 


चिकित्सा स्थान मे रोगों के हेतू और लक्षणों का भी वर्णन है , 90% से अधिक अध्यायों में , तो इसका नाम हेत्वौषध या व्याध्यौषध या रोगभेषज स्थान होना चाहिये 


कल्प स्थान = वमन विरेचन द्रव्य वर्णन स्थान 


सिद्धि स्थान का नाम पंचकर्म वर्णन स्थान ऐसे होना चाहिए 


यही उन स्थानों के विषय उनके अनुसार उचित नाम है


कृपया आप इस विषय पर समर्थन या खंडन के रूप मे अपना मत लिखे

Tuesday, 18 November 2025

आयुष् लक्षण : शार्ङ्गधर का लिखा🖊 हुआ आयुष् लक्षण, चरकोक्त आयुष् लक्षण से बेहतर है 👌🏼✅️

आयुष् लक्षण : शार्ङ्गधर का लिखा🖊 हुआ आयुष् लक्षण, चरकोक्त आयुष् लक्षण से बेहतर है 👌🏼✅️

लेखक : copyright © वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे.

एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.

आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक.

9422016871

MhetreAyurveda@gmail.com

www.MhetreAyurveda.com

www.YouTube.com/MhetreAyurved/

Picture credit Google Gemini AI 


शरीरेन्द्रियसत्त्वात्मसंयोगो धारि जीवितम् ।

नित्यगश्चानुबन्धश्च पर्यायैरायुरुच्यते ॥ चरक

इस प्रसिद्ध चरकोक्त आयु लक्षण/definition/परिभाषा की तुलना मे शार्ङ्गधरोक्त आयु परिभाषा अधिक योग्य है.

*शरीरप्राणयोरेवं संयोगादायुरुच्यते*👍🏼

चरकोक्त आयु लक्षण अतिव्याप्त है तथा असंभव है. 

अव्याप्त अतिव्याप्त असंभव ऐसे 3 दोष विरहित, असाधारण धर्म का कथन करने वाला वाक्य, लक्षण कहा जाता है. 

तो इस दृष्टी से, चरकोक्त आयु लक्षण अव्याप्त अतिव्याप्त असंभव ऐसे तीनो दोष से युक्त है 

और वह आयु का असाधारण धर्म कथन नही करता. 


इंद्रिय हमेशा होंगे हि ऐसा नही. अनेक जीव धारियो मे अनेक इंद्रियों की अनुपस्थिती होती है. 

मनुष्य देह मे भी कई बार कुछ इंद्रियों की अनुपस्थिती होती है. 

स्वप्न या सुषुप्ति अवस्था मे इंद्रिय और मन हे दोनो नही होते है. 

इसलिये चरक का आयु लक्षण अतिव्याप्त है.


आत्मा का संयोग यह असंभव स्थिती है. क्योंकि आत्मा विभु है. इसलिये उसका संयोग विभाग, यह संभव नही हो सकता. इस कारण से चरकोक्त आयु लक्षण असंभव है.


चरकोक्त आयु लक्षण अव्याप्त भी है क्योंकि जिस भाव पदार्थ का उल्लेख होना, अत्यंत आवश्यक है, प्राण अर्थात श्वास का उल्लेख, इस लक्षण में नही है. जो कि, अत्यंत योग्य रूप से शार्ङ्गधरोक्त आयु लक्षण में उपलब्ध है. तो यह प्रथम दोष अव्याप्ती यह चरक के लक्षण मे है, प्राण श्वास इस शब्द का उल्लेख नही. 


इंद्रिय और मन ये दोनो अनुपस्थित होकर भी जीवन चल सकता है, इसलिये यह अतिव्याप्त है. कोमा मे कई साल तक बेड पर पडे रहने वाले पेशंट, मन और इंद्रिय दोनो से विरहित होते है, किंतु उन का श्वास अर्थात प्राण शुरू होता है और शरीर वही पडा रहता है, इसलिये कोमा मे होने पर भी उन्हे जिवंत समजा जाता है. जब इस शरीर का श्वास बंद होता है , तो उस कोमा के पेशंट को मृत घोषित करते है. इस प्रकार से मन और आत्मा का उल्लेख चरक के आयु लक्षण मे होना यह अतिव्याप्त दोष चरक के आयु लक्षण मे उपलब्ध है और आत्मा का संयोग विभाग तो होता ही नही है, इसलिये यह असंभव नाम का दोष भी चरक के आयु लक्षण में है.


संपूर्णतः तीन दोषों से विरहित निर्दोष लक्षण शार्ङ्गधर मे उपलब्ध है. *शरीरप्राणयोरेवं संयोगादायुरुच्यते* शरीर के साथ श्वासोंका संयोग बना रहना, यही आयुष्य है. प्राण जब नही होता है , तब आयु नही होती


आयु के इस लक्षण के साथ, और एक लक्षण, यहा पर प्रस्तुत करता हूॅ, कि *जन्म मरणांतराल भावी कालखंडः आयुः* इतनाही लक्षण उचित है. जो अव्याप्त अति व्याप्त असंभव से विरहित है और असाधारण धर्म का कथन करता है. यह लक्षण म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA ने स्वयं लिखा है


शार्ङ्गधरोक्त लक्षण *शरीरप्राणयोरेवं संयोगादायुरुच्यते* यह यद्यपि अव्याप्त अतिव्याप्त असंभव से विरहित है, फिर भी वह असाधारण धर्म का कथन नही करता है.


चरकने आयु के जो पर्याय दिये है, उसमे नित्यग अनुबंध इन पर्यायी शब्दों का पूर्ण चरक संहिता मे फिरसे कभी भी उपयोग नही हुआ है , ऐसे स्वयं चक्रपाणि भी कहते है. तथा धारि यह शब्द केवल एक बार प्रयुक्त हुआ है. अर्थात यह अनवपतित शब्द अकष्टशब्द ऐसे शास्त्र परीक्षा से विपरीत है. क्योंकि यह अपरिचित शब्दों का अप्रसिद्ध शब्दों का अनावश्यक प्रयोग होता है. जैसे की अंतर्वत्नी यह भी एक शब्द चरकने प्रयुक्त किया है.


व्हेंटिलेटर पर रखकर, वस्तुतः मृत आदमी को कुछ दिनो तक आगे भी जिंदा है, ऐसे दिखाया जा सकता है, जैसे की उसका आत्मा कब का चला गया होता है, इंद्रिय मन काम नही कर रहे है या वे भी भी चले गये होते है, फिर भी उसका व्हेंटिलेटर के द्वारा श्वास चालू है और शरीर वहा पडा है , तब तक उसको डेड घोषित नही करते और डिस्चार्ज देकर बिल करके बॉडी हात मे नही देते है. अर्थात इंद्रिय सत्व आत्मा न होने पर भी, केवल प्राण अर्थात श्वास और शरीर इनका संयोग सुरू है, ऐसा व्हेंटिलेटर के द्वारा दिखा कर भी, कुछ दिनो तक आयु है , ऐसा मानकर बिलिंग तो चलता ही रहता है.


इसलिये शार्ङ्गधरोक्त आयु लक्षण *शरीरप्राणयोरेवं संयोगादायुरुच्यते* उचित है, न कि चरकोक्त आयु लक्षण. 


इसीलिए कई शतको पूर्व लिखा हुआ चरक थोडा बाजू को रख के, उसमे से जो कुछ व्यवहार शून्य भाग है, उसको छोड कर, जो लेटेस्ट अपडेटेड आयुर्वेद का व्हर्जन है = आयुर्वेद 3.0 अर्थात अष्टांग हृदय, उसीका ही अनुसरण, अध्यापन & व्यवहार होना चाहिए 

अगर हम क्रेडल वाला डायल वाला फोन आज प्रयोग मे नही लाना चाहते , ना ही हम फिचर फोन बारा बटन वाला प्रयोग करते है, हमे 8 जीबी रॅम वाला स्मार्टफोन चाहिए, तो फिर सदैव पुराना दोषयुक्त ग्रंथ शिरोधार्य मान्य करने के बजाय , जो लेटेस्ट अपडेटेड है, (हां, उसको भी 900 साल हो गये किंतु वही लेटेस्ट अपडेटेड होने के कारण) उसी वाग्भटका अनुसरण और व्यवहार होना उचित है.


अर्थात 900 साल के बाद आज के नये हेतु नये लक्षण इन स्कंधों के लिए, नये औषध स्कंध के साथ, एक नई युगानुरूप संहिता का निर्माण होना, अविर्भाव होना, आज के आयुर्वेद के लिए अत्यंत आवश्यक है


स्वयं अरुण दत्त ने चरकके ही कई दोष, अष्टांगहृदय सूत्रस्थान एक श्लोक क्रमांक एक की टीकामें दिये है. वहा पर वह स्वयं को *वाचाट* ऐसा दूषण लगाकर आगे चरक के कई दोष का विवरण करता है। 


अन्यानि हि तन्त्राणि सदोषाणि। तथा हि। यदेतत्तावद्भगवता चरकमुनिना प्रणीतं तन्त्रं रत्नाकर इव *गान्भीर्यातिशययोगाद्दुर्बोधम्*। 

*तस्यापि सदोषतां प्रकटयन्ति वाचाटाः।*😇


अरुण दत्त को लोग केवल वैय्याकरण या शब्दप्रधान टीकाकार समजते है किंतु अरुण दत्त ने चरक के जो दोष गिनाये है, वे शास्त्रीय है, द्रव्य गुण के है, क्लिनिक के है, इसकी तरफ भी ध्यान देना चाहिए. वरना केवल प्रस्थापित है पॉप्युलर लोकप्रिय हे इसलिये, भेड बकरीयों की तरह, उसी एक प्रस्थापित चीज के पीछे दशकों तक दौडते रहना, यह बुद्धिमत्ता का लक्षण नही है.

लेखक : copyright © वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे.

एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.

आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक.

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Tuesday, 11 November 2025

Height Growth, Hair Problems, Bone Degenerative Diseases, Recurrent Heavy Bleeding & Yashti Laakshaa यष्टी लाक्षा Tablet

यष्टी लाक्षा टॅबलेट / Yashti Laakshaa

For Height Growth

Hair Problems, 

Bone Degenerative Diseases & 

Recurrent Heavy Bleeding

न मात्रामात्रमप्यत्र किञ्चिदागमवर्जितम्| 

Picture credit Google Gemini AI 

यष्टी & लाक्षा

1.

भग्नाधिकार मे उल्लेखित ये मुख्य दो द्रव्य है , जो आभ्यंतर प्रयोग के रूप मे उपयोगी है … 

2.

लाक्षा का सप्तधा बलाधान नही कर सकते, क्यू कि वह एक निर्यास है

3.

लाक्षा संधानकारी अग्रे द्रव्य है … कृमिजा संधाने अष्टांगहृदय उत्तर तंत्र अध्याय 40 श्लोक 48 से 58 

&

4.

यष्टी चरकोक्त महाकषायों मे सर्वाधिक बार रिपीटेड द्रव्य है 

5.

और यष्टी का अग्रेसंग्रह चरक सूत्र 25 मे सबसे दीर्घ = लंबा है … 

6.

मधुकं 1 चक्षुष्य 2 वृष्य 3 केश्य 4 कण्ठ्य 5 वर्ण्य 6 विरजनीय &  रोपणीयानां,

7.

अर्थात यह अस्थिधातुगामी है

और 

8.

यष्टी स्पष्ट रूप मे भग्नाधिकार मे उल्लेखित है

9.

यष्टी & लाक्षा का समप्रमाण मे बनाया हुआ म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA फार्मसी का यष्टी लाक्षा टॅबलेट अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है और केवल बोन डी जनरेशन ऐसे अस्थिक्षयजन्य वेदनाओं में ही नही अपितु

10.

दंतरोग केशपतन खालित्य पालित्य इसमे भी म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA फार्मसी का यष्टी लाक्षा टॅबलेट का प्रयोग पंचतिक्त या यष्टी गुडूची क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स Granules के साथ लाभदायक होता है 

11.

इसका अनुकूल परिणाम हेमंत और शिशिर इन शीत ऋतुओ मे = नोव्हेंबर डिसेंबर जानेवारी फेब्रुवारी = मार्गशीर्ष पौष माघ फाल्गुन इस काल मे सर्वाधिक होने की संभावना रहती है !

12.

मात्र 6 से 12 सप्ताह (= मात्र 1.5 महिने से 3 महिने) के उपचार कालावधी मे इसमे अपेक्षित लाभदायक परिणाम प्राप्त होता है

13.

इसी प्रयोग से, जिस वय में हाईट बढना संभव 📶⏫️⤴️⬆️🔝🔜 है, किंतु फिर भी अपेक्षित हाईट वृद्धी नही हो रही है, ऐसे वय के युवाओं की युवतीयोंकी की हाईट अपेक्षित या उसे भी अधिक बढ सकती है

14.

अर्थात इसमे अस्थिक्षयकारी अस्थिवृद्धीविरोधक ऐसे अम्लरस कटुरस लवणरस के अन्नपदार्थों का, पर्युषित अन्न (अर्थात निशोषित अर्थात बासे स्टेल stale) , मैदा कॉर्नफ्लोअर बेकरी जन्य पदार्थों का तथा तंबाखू मद्य जैसे द्रव्य का सेवन पूर्णतः वर्ज्य होना आवश्यक होता है. साथ ही क्षीरौदन क्षीरघृत इनका अपानकाल में सेवन लाभदायक सिद्ध हो सकता है. 

15.

हाईट बढाने के औषध उपचार के प्रयोग कालावधी मे रनिंग करना जंपिंग करना स्किपिंग रोप का प्रयोग करना सिंगलबार पर लटकना यह प्रकार वर्ज्य करे! 

16.

एवं भी पांव, घुटने, कमर, मणके, व्हर्टेब्रा, लो बॅक, मन्या, इनकी वेदनाओ में तथा सायटिका लंबार स्पॉंडिलाॅसिस सर्वायकल स्पॉंडिलॉसिस स्कंध वेदना फ्रोजन शोल्डर इन सभी अस्थिक्षयजन्य वेदना मे, 

उपरोक्त रनिंग करना जंपिंग करना स्किपिंग रोप का प्रयोग करना सिंगलबार पर लटकना यह प्रकार वर्ज्य करे

तथा बॅडमिंटन टेबल टेनिस लॉन टेनिस क्रिकेट ट्रेकिंग फुटबॉल व्हॉलीबॉल स्टेप चढना उतरना दस किलो से अधिक वजन बोज भार वेट उठाना, यह जितना हो सके उतना बंद रखे

🤔⁉️ क्यूं  ?

हाईट बढना अर्थात फीमर और टीबिया इनकी length बढना. सिंगल बार पर लटकने से हाथ की length बढेगी , तो हाईट नही बढेगी और ना ही सिंगलबार पर लटकने से femur tibia length बढेगी


जम्पिंग इत्यादी व्यायाम करने से फिमर और टीबीया के बोन्स तथा उनकी संधी ऊपर अनावश्यक जर्क प्रेशर आता है और वही पर हाईट बढने के वय मे एपीफायसीस मे मार्जिन गॅप रहता है जिससे हाईट बढना संभव होता है

17.

यष्टी रोपण व शीत है 

18.

लाक्षा संधानकारी है 

19.

इसलिये अति रक्तस्राव मे भी स्तंभन के रूप मे इसका उपयोग होता है , जैसे कि योनिगत, नासागत, गुदगत, कंठगत (oesophagial varices), दीर्घकालीन री करंट पुनरावर्तक अतिप्रमाण रक्तस्राव मे भी यह उपयोगी है

20.

इन रक्तस्त्रावों में , यष्टी लाक्षा के साथ, यष्टी सारिवा यह भी सप्तधा बलाधान टॅबलेट उपयोगी होती है. विशेषतः क्षोभ शोक स्ट्रेस ऐसे वैचारिक भावनिक बौद्धिक प्रक्षोभक तथा बाह्य वातावरण के उष्ण तीक्ष्ण गुणयुक्त तथा कटु अम्ल लवण उष्णयुक्त आहारजन्य , दाह पाक आभ्यंतर व्रण ऐसे कंप्लेंट मे भी यष्टी सारिवा उपयोगी है

यष्टी सारिवा सप्तधा बलाधान टॅबलेट article blog लेख 

👇🏼

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/07/blog-post_6.html


21.
यह कोई मेरा एकाधिकार या मेरा अपना संशोधन /डिस्कवरी /रिसर्च /पेटंट ऐसा कुछ भी नही है. म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda ने इस टॅबलेट का महाराष्ट्र शासन की औषध निर्माण रजिस्ट्री में विधीपूर्वक रजिस्ट्रेशन किया हुआ है

जिन्हे इस प्रकार की टॅबलेट का अनुभव लेना हो, तो वे स्वयं इस प्रकार का प्रयोग करके देखे. टॅबलेट बनाकर इसका प्रयोग करे. जिन्हे प्रयोग के लिए / अभ्यास की दृष्टि से / शास्त्र अनुभव के रूप मे, इस प्रकार की टॅबलेट का उपयोग करके देखना है, वे हमे संपर्क कर सकते है या अपने यहां स्थानिक स्तर पर स्वयं टॅबलेट का निर्माण करके उसका उपयोग करके इस अनुभव को स्वयं ले सकते है. 

🖊डिस्क्लेमर/Disclaimer : उपरोक्त कल्प क्वाथ योग टॅब्लेट का परिणाम; उसमे सम्मिलित द्रव्यों की क्वालिटी, दी हुई मात्रा, कालावधी, औषधिकाल, ऋतु, पेशंट की अवस्था इत्यादि अनेक घटकों पर निर्भर करता है. 






Degenerative bone disease & Rasona/Lashuna Granules

Degenerative bone disease & Rasona/Lashuna Granules 

प्रभंजनं जयति लशुनः 🧄🧄

Picture credit Google Gemini AI 

"प्रभंजनं जयति लशुनः” का अर्थ है , जो भंजन करने मे प्रकर्षेण = अतिशय समर्थ है = अस्थियों का डीजनरेशन Degenerative bone  जिसके कारण अत्यधिक गति से होता है, शीघ्र गति से, अल्पकाल मे होता है … क्योंकि अस्थि और वात का आश्रयाश्रयी भाव संबंध = परस्पर विरोधी है! वात बढेगा, तो अस्थी घटेगा!!

इसमें लशुन क्षीरपाक Granules ग्रॅन्युल्स दिया जाये तो अधिक कार्मुक होता है 

लशुन भग्नसंधानकारी केश्य और बल्य है अर्थात यह अस्थिधातुगामी और बलदायक है

लशुनो भृशतीक्ष्णोष्णः कटुपाकरसः सरः॥

हृद्यः केश्यो गुरुर्वृष्यः स्निग्धो रोचनदीपनः। 

भग्नसन्धानकृद्बल्यो 

मेरे स्वयं के अनुभव के अनुसार 3000 से भी अधिक रुग्णों मे वेदनाशमन के लिए अत्यंत शीघ्र, अल्पकाल मे लाभदायक परिणामकारक सिद्ध हुआ है 

Degenerative bone disease, most commonly osteoarthritis, is a chronic condition where the protective cartilage in joints breaks down over time, leading to bone-on-bone friction, pain, and stiffness. While it can affect any joint, it frequently impacts the hands, knees, hips, and spine. Symptoms include grinding or creaking, instability, and muscle weakness. 

गृध्रसी = सायटिका का भी मुख्य कारण नर्व्ह कॉम्प्रेशन है 

नर्व्ह कॉम्प्रेशन का मुख्य कारण vertebrae/ disc Degeneration जिसे अस्थि तरुणास्थि क्षय के रूप मे समझ सकते है

और ऐसे डीजनरेटेड अस्थि को भग्नाधिकार के औषधों से अपुनर्भवरूप मे ठीक किया जा सकता है , जो पेशंट हमने आज से 10 15 20 22 साल पहले किये ठीक है, वे आज भी अपने पैरो पर खडे है & वेदना मुक्त स्थिती मे कार्यरत है, वो भी बिना किसी ऑपरेशन सर्जरी के, बिना बेल्ट लगाये, बिना कॉलर लगाये, बिना knee cap / knee brace के

नर्व्ह कॉम्प्रेशन का कारण डिस्क डीजनरेशन है जिसे अस्थि क्षय व भग्नाधिकार के अनुसार विशेष रूप मे तरुणास्थी अधिष्ठान मानकर समजा जा सकता है इसके लिये दो मुख्य औषध है 

*लशुन क्षीरपाक (Granules) & यष्टी लाक्षा

इसके साथ हि चरकसूत्र २८ और वाग्भट सूत्र 11 मे आये हुये तिक्त रस द्रव्य = यष्टी गुडूची ग्रॅन्युल्स Granules or पंचतिक्त ग्रॅन्युल्स Granules के रूप मे दिये जाये तो सहाय्यक उपयोगी होता है, किंतु यह दीर्घकाल देना आवश्यक होता है, जो डीजनरेशन की परिस्थिती, पेशंट का वय /अवस्था , उसके एडिक्शन , उसके व्यवसाय उसके आहार इन सभी पर निर्भर होता है 

जो प्रेझेंटिंग कंप्लेंट, अत्यंत वेदना, चलने मे अक्षमता, यह होती है … उसके लिए लशुन क्षीरपाक (Granules) अत्यंत शीघ्र लाभदायक परिणाम देते है 


🔥यह औषध उष्ण तीष्ण कटुरस युक्त होने के कारण क्षीर & घृत के साथ देना अधिक उचित तथा हितकारक होता है ✅️

चरकोक्त वातहर अग्रे संग्रह ... तैल, बस्ति, रास्ना (& एरंडमूल) इन सभी की तुलना में ... *"वाग्भटोक्त अग्रे संग्रह"*... *"प्रभंजनं जयति लशुनः"* यह *लशुन क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स* के रूप मे Highly Effective, Easily Available, Affordable, palatable, transportable, Fast Result giving होने के कारण *सर्वतोपरी श्रेष्ठ* है

1.

लशुन वैसेभी वातके सभी आवरणों मे श्रेष्ठ द्रव्य है

2.

लशुन भग्नसंधानकारी स्निग्ध बल्य होने के कारण, वातवृद्धिजन्य धातुक्षयजन्य विकारो मे भी श्रेष्ठ है

3.

लशुन; कटुरसमे अपवाद द्रव्य & श्रेष्ठ द्रव्य है, वृष्य है, वातकोपकारी नही है, स्रोतो विवरण अर्थात स्रोतोरोधनाशक है, बंधच्छेदक है ... इसीलिए कटुरस अतियोगजन्य कटी पृष्ठ वेदना (Low back, spine & neck Pain) में उपशमदायक है

4. लशुन स्वयं *रसायन* है

5. इसीलिए लशुन को *महौषध* यह भी नाम है

So, After huge, consistent and ever growing Response to The BOSS VachaaHaridraadi... get ready to Welcome, yet another, Highly Potent Samhitokta Medicine from MhetreAyurveda ... *Lashuna (Rasona) Granules ... प्रभंजनं जयति लशुनः*

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1.

वातहरों में सर्वश्रेष्ठ तो बस्ति है, जिसको देना और पेशंट के लिये लेना, दोनोही समय अपहारक , थेरपिस्ट पर निर्भर , अनेक बार "नॉन ॲफॉर्डेबल" , एक ही बस्ती मे काम न होना, घर छोडकर क्लिनिक तक आना जाना और फिर भी उपशम के गॅरंटी न होना, ऐसा बस्ती के बारे मे ड्रॉबॅक्स या लिमिटेशन्स होते है 

2.

फिर वातहर मे दूसरा सर्वश्रेष्ठ तैल है, जिसकी डिस्पेन्सिबिलिटी और जिसकी ट्रान्सपोर्टिबिलिटी , परिणाम की गॅरंटी इसके बारे मे दुरवस्था है 

3.

तिसरा वातहर सर्वश्रेष्ठ द्रव्य रास्ना है, जिसकी संदिग्धता बहुत अधिक है और वातजन्य संप्राप्ती के जगह, आमजन्य संप्राप्ती मे अधिक उपयोगी है 

4. चौथा वातहर श्रेष्ठ द्रव्य एरंडमूल कहा गया है किंतु उसकी भी उपयोगिता उतनी सिद्ध नही है और उपलब्धता भी दुष्कर है और एरंड तेल तो और भी व्यापत् कारक है ... और एरंड तेल की ट्रान्सपोर्टेबिलिटी दुर्गंध और उसकी टेस्ट ये भी सारा पेशंट के लिये उतना सुकर नही होता है. और वैसे भी ये तीक्ष्ण उष्ण है और उपविष है अर्थात विष सदृश्य है

ऐसी स्थिति मे जिसका उल्लेख चरक मे वातहर अग्रे द्रव्य में नही है, किंतु …

वाग्भट ने जिसे वातहर द्रव्य मे अग्रद्रव्य के रूप मे प्रशस्तीकारक द्रव्य के रूप मे उल्लेख किया है वह है “प्रभंजनं जयति लशुन:” … लशुन/रसोन एक ऐसा द्रव्य है जो हर घर में उपलब्ध है, बारा महिने उपलब्ध है, प्रायः वर्ष मे एखाद महिना छोड दिया तो ॲफोर्डेबल है और इसका उपयोग करना बस्ती/तैल/रास्ना/एरंड मूल की तुलना मे सुकर है और यदि म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA फार्मसी द्वारा निर्मित लशुन क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स दिया जाये, तो ये और भी सुकर और शीघ्र परिणामदायक होता है 

इसकी वेदनाशमन का इफेक्ट बढाने के लिए, पोटेन्सी बढाने के लिए, लशुन के साथ साथ आर्द्रक 🫚 का संमेलन करके, “रसोन🧄 आर्द्रक 🫚 क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स ” बनाया है, जो ये दोनो कटुरस के श्रेष्ठद्रव्य है, पिप्पली को निकाल दिया जाये तो !

पिप्पली को उबालना यह शास्त्र को उतना संमत नही है, पिप्पली अनेक अवलेहो में संपूर्ण अग्निसंस्कार पश्चात के, प्रक्षेप चूर्ण के रूप मे आती है. इसलिये म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA कटुरस के तीन श्रेष्ठ द्रव्य मे से, पिप्पली को हटा कर “रसोन 🧄आर्द्रक 🫚 क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स” बनाया है,

जो वेदनाशामक दुरालभादि या द्रुतविलंबितगो या गृध्रसी नाशक सप्तधा बलाधान टॅबलेट के साथ गरम पानी/दूध मे एक चमचा मिला कर , प्राग्भक्त = भोजनपूर्व = अपान काल मे दिया जाये, तो वेदनाशमन का कार्य प्रायः अतिशय शीघ्र होता है 

⛔️🚫❌️कभी कभी क्षीर का बहुत उद्वेग उत्क्लेश होता है,  क्षीर का पचन नही होता है, कुछ लोगों को छर्दि हृल्लास होता है, कुछ लोगों को ब्लोटिंग होता है, कुछ लोगों को अच्छा दूध नही मिल पाता, कुछ लोगों को दूध लेने से भी ॲसिडिटी गॅस होता है, कुछ लोगों को विरेचन हो जाता है, कुछ लोगों को लॅक्टोज इन्टॉलरन्स होता है, तो जो लोग क्षीरपाक नही ले सकते हो, ❌️🚫⛔️ ...

वे रसोन आर्द्रक के ग्रॅन्युल्स गरम पाणी के साथ ले सकते है 

या उससे भी अधिक अच्छा सतीनज यूष अर्थात सूखे मटर वाटाणा peas का, पानी मे उबाल कर, उनको पक जाने तक, पानी मे उबालना और सूखे मटर वाटाणा peas पक जाने के बाद भी, जो पानी शेष रहे जायेगा वह यूष के रूप मे एक चमचा घृत के साथ और एक चम्मच रसोन आर्द्रक ग्रॅन्युल्स के साथ, यह यूष, एक चम्मच घृत के साथ अपानकाल मे लेना. 

यह जिनको क्षीर का असहत्व है, द्वेष है उनके लिये सतीनज यूष उपयोगी होता है सतीनज यूष का उल्लेख भग्नाधिकार मे सुश्रुत मे हुआ है, वाग्भट मे भी हुआ है


40 वय के पश्चात भग्न साध्य नही है, ऐसे सुश्रुत ने उसके भग्न अध्याय मे लिखा है 

और हम भी देखते है की 40 वय के बाद बाथरूम मे फिसलकर कोई व्यक्ति गिर जाता है , तो उसका सबसे जो दुर्बल अस्थि/संधि है, वह क्लॅविकल नही फ्रॅक्चर होता है , किंतु बल्कि उसका सबसे सामर्थ्यवान सबसे स्ट्रॉंग और सबसे डीप ऐसा जो अस्थि/संधी है वह फीमर हेड टूट जाता है!!! क्यूं कि, फीमर हेड अर्थात जघन यह अस्थिवहस्त्रोत का मूल है , तो वही से यह विकृती शुरू होती है और अगर वही से इसको ठीक करना है , तो ऐसे भग्नकारी वात को, जीतने वाले लशुन का उपयोग करना यह बुद्धिमानी है 


इसलिये फिमर हेड मे जिसकी संप्राप्ती है ऐसे AVN मे भी लशुन क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स Granulesद्रुतविलंबितगो या वेदनाशामक दुरालभादि या गृध्रसी नाशक, इन सप्तधा बलाधान औषधी कल्पों का अच्छा उपयोग होता है ... इसके साथ ही यष्टी लाक्षा टॅबलेट / यष्टी गुडूची ग्रॅन्युल्स / पंचतिक्त ग्रॅन्युल्स इनका भी यथा अवस्था उत्तम लाभ प्राप्त होता है


इसके साथ साथ अस्थि क्षय का सूत्र है उसमे से तिक्तद्रव्य क्षीरपाक के रूप मे यदि पंचतिक्त Granules या यष्टी गुडूची Granules का प्रयोग किया जाये तो ये और भी शीघ्र निश्चित लाभदायक परिणाम देता है, वेदनाशमन के लिए भी और दीर्घकालीन अपुनर्भव यश के लिए भी!

इसके साथ, गृध्रसी नाशक सप्तधा बलाधान टॅबलेट / द्रुत विलंबित गो सप्तधा बलाधान टॅबलेट & दुरालभादि वेदनाशामक सप्तधा बलाधान टॅबलेट इनका भी अवस्थानुरूप उपयोग होता है 


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Monday, 10 November 2025

शास्त्र पढना & तीर्थात्तशास्त्रार्थ & दृष्टकर्मा

शास्त्र पढना & तीर्थात्तशास्त्रार्थ & दृष्टकर्मा

Picture credit Google Gemini AI 

आयुर्वेद के क्षेत्र में प्रायः "पढना लिखना न करते ही" कई लोग आयुर्वेद की प्रॅक्टिस करते है!?🤔⁉️😇 ऐसे कैसे? बीएमएस डिग्री लेते है ? वर्ष भर पढते है!! अंत मे परीक्षा लिखते है !! नहीं, वह "पढना लिखना" नही ... "शास्त्र बिना पढे, शास्त्र बिना लिखे" ही, आयुर्वेद क्षेत्र में प्रायः प्रॅक्टिस करते है. बहुतांश प्रॅक्टिशनर ऐसे होते है, जो उनके विद्यार्थीकालीन समय मे प्रॅक्टिस करने वाले अन्य वैद्य के पास जाकर "देखते" है = दृष्टकर्मा और "देखकर कुछ सीखते" है = तीर्थात्तशास्त्रार्थ और फिर वह जो, उनके विद्यार्थीसमय का प्रॅक्टिशनर होता है, वही उनके लिये "गुरु मार्गदर्शक मेंटाॅर" = तीर्थ होता है. 

क्यूं कि उस विद्यार्थी को स्वयं को "शास्त्र पढना नही आता है" क्यूंकि, आयुर्वेद का मूल शास्त्र तो संस्कृत में है और संस्कृत तो काला अक्षर भैस बराबर !!!

कभी कभी या आजकल के इसमे तो ऐसा भी होता है, कि आज कल के विद्यार्थी, जिस गुरू के पास जाते है या जिस प्रॅक्टिशनर के पास जाते है, उसने भी कभी, आयुर्वेद शास्त्र जो मूल संहिता मे है, उसको पढा हुआ नही होता है!!! उसने भी उसके विद्यार्थी काल के, उस समय की किसी प्रॅक्टिशनर/ गुरु के पास जाकर , "देखकर सिखा" होता है! इसलिये "शास्त्र पढकर सीखना" ये थोडा दुर्लभ चित्र आज के आयुर्वेद प्रॅक्टिस के क्षेत्र में है और आप सबको तो पता है की कॉलेज में जो "सिखाया(?)" जाता है, "पढाया(?)" जाता है या कॉलेज में जो विद्यार्थी जो कुछ "सीखता है / पढता है" उसका प्रॅक्टिस करके अर्थार्जन करने योग्य कुछ मूल्य या क्षमता होती नही है! वैसे वह कभी भी नही ही थी, आज तो निश्चित ही नही है !!


अस्तु!


तो आज आयुर्वेद के जो बडे बडे तोप प्रॅक्टिशनर्स है, वे भी उनकी विद्यार्थी दशा के काल मे, किसी तत्कालीन आयुर्वेद प्रॅक्टिशनर के पास जाकर, वो क्या करता है वह "देखकर", करीब करीब , कॉपी पेस्ट के रूप मे, 90% नकल के रूप मे, जैसे के तैसे बने हुये, डुप्लिकेट, डिट्टो , झेरॉक्स काॅपी के रूप मे, उसी "परंपरागत" (शास्त्रोक्त x) उपचारों को, करते करते, अपना जीवनयापन करते है. इसलिये उसको ये कभी लगता ही नही की, क्या मै सचमुच आयुर्वेद "शास्त्र" की प्रॅक्टिस कर रहा हूँ? उसको ये लगता रहता है की जो मेरे गुरु के पास मैने "देखा" और उसको "देखकर" मैने जो सिखा और सिख कर जो मे आज कर रहा हू, वही आयुर्वेद है !!!


इसमे सन्माननीय अपवाद वे है, जो विद्यार्थी दशा में, कॉलेज में डिग्री के लिए पढते समय, आयुर्वेद प्रॅक्टिशनर के बजाय, किसी मॉडर्न मेडिसिन की जीपी (जनरल प्रॅक्टिस) करने वाले डॉक्टर के यहा पर या किसी मॉडर्न मेडिसिन के अन्य बडे हॉस्पिटल मे जाकर, "सीखते" है, वे "जो सीख" रहे है वहा पर, उसको मॉडर्न मेडिसिन के "ओरिजनल इंग्लिश टेक्स्टबुक या रेफरन्स बुक से पढते है" अर्थात उन्हे बीएमएस डिग्री लेकर भी, आगे जो मॉडर्न मेडिसिन की ॲलोपॅथी की प्रॅक्टिस करनी है, उस मॉडर्न मेडिसिन का मूल ज्ञान, जिस ग्रंथ मे, जिस भाषा मे है; उस ग्रंथ को, उस भाषा मे, "पढते है , सीखते है"! ✅️ आत्मसात कर लेते है ✅️✅️ इसलिये उनको थोडा बहुत तो नैतिक अधिकार है, कि हम जो प्रॅक्टिस करते है, उसको हमने कई पेशंट पर , (आयुर्वेद की तुलना मे शतगुना 100 times पेशंट पर) "देखा" है और जो "देखा" है, उसको उसी "मॉडर्न मेडिसिन के मूलशास्त्र के रेफरन्स बुक से उसे शास्त्र की मूल भाषा इंग्लिश में पढा सिखा जाना भी है" ... 


ऐसा आयुर्वेद प्रॅक्टिस के क्षेत्र में नही होता है 


वह आयुर्वेद क्षेत्र मे आगे जाकर जिस प्रकार की प्रॅक्टिस करते है, उसका ज्ञान जिन मूल ग्रंथो मे है, उसे उस की मूल भाषा मे, इन "तथाकथित आयुर्वेद की प्रॅक्टिस" करने वाले लोगो ने, अपने विद्यार्थी दशा में या आगे के जीवन काल मे भी कभी "पढा ही नही होता है", केवल "देखकर सिखा" होता है!!!


तो एक तलहस्त / palmtop मे समा सकेगा, इतने कागज के तुकडे पर, 

दो तीन वनस्पती चूर्ण ,

दो तीन वनस्पतीजन्य संयुक्त कल्प,

दो तीन सिंगल भस्म ,

दो तीन संयुक्त रसकल्प, 

गुग्गुल चूर्ण दो तीन ,

दो तीन वटी-बटी गुटी के चूर्ण ...

ऐसा दस बारा , पाच छह या तीन-चार औषधी को मिलाकर या इन में कुछ/सब को मिलाकर वह पेशंट को दे देता है 

10 में से दो तीन पेशंट को ठीक लगा और सात आठ को नही ठीक लगा तो भी दस में से जो दो तीन पेशंट ठीक हुये है, उनके कारण "धीरे धीरे" या अपने अपने नसीब के अनुसार अपनी अपनी गती के अनुसार प्रॅक्टिस चलती है, बढती है, पनपती है, फलती है, फूलती है ... 


किसी की "बहुत ज्यादा" चलती है ... किसी का तुक्का लग गया तो, वह लोकप्रिय होता है, फिर वह स्टेज पर भाषण देता है, कभी कभी उसे नोशनल या नाशनल गुरु भी घोषित किया जाता है!!! 


लेकिन यह सब , शास्त्र कम और यह सरमिसळ भेसळ भेळ मिक्सोपॅथी सर्वोपॅथी यह अधिक होता है !!!


जैसा शास्त्र मे लिखा है , ऐसा ना तो किसी को निदान होता है, रोग नामक निदान तो बहुत दूर, "दोष की गुणात्मक अवस्था और दूष्य का नाम", इतना तक निदान कई बार नही हो पाता है ... किंतु पेशंट बता रहा है और मॉडर्न मेडिसिन की फाईल मे, जो भी पेपर डायग्नोसीस रेडीमेड मिल रहा है, उसका यथामती वह, जिस गुरु के पास "देखकर सिखा" है, उस "परंपरा (शास्त्र x) के अनुसार, जो भी उसको आकलन होता है, उसकी व्याधीप्रत्यनीक (drug & disease) दो चार से लेकर, दस बारा तक , वनस्पती चूर्ण गुग्गुल गुटी वटी रसकल्प भस्म ... इनका एक भेळ मिश्रण मिसळ बनाकर, तलहस्तमे समा सकेगा इतने कागज की पुडी मे बांध के देता है. इसमे ॲक्च्युअली "चरकस्तु चिकित्सिते", ऐसा उसने कभी सुना होता है , किंतु संस्कृत होने के कारण उसको पढने को नही आता है. उसने कभी चरक सुश्रुत वाग्भट से रोग क्या होता है क्या निदान कैसे होता है निदान के अनुसार चिकित्सा सूत्र क्या होता है चिकित्सा का क्रम क्या होता है. यह उसको मालूम ही नही होता है

उसके "माने" हुए जो गुरुजी है, उनके क्लिनिक में जो जिस चीज पर किया जाता है, यह उसने "देखा" होता है वह "देखकर वो जो सिखा" है, वही आयुर्वेद हे असे समजकर वह आगे करते रहता है ... 


या फिर जैसे जैसे समय बीतता जाता है, वैसे आसपास के लोग जो भी ट्रेंड चलाते है, उसे भी आयुर्वेदिक ही मानकर, उसे अपने क्लिनिक में चलाता रहता है ... उसके साथ मे पंचकर्म की मालिश भी करता है, केरल के न समझनेवाले मल्याळम शब्दों के कल्प भी प्रयोग करता है , फिर रसभस्म भी प्रयोग करता है , फिर सिद्ध के कुछ अटपटे शब्द वाले कल्प भी प्रयोग करता है, फिर आने वाले एम आर लोग जो रेडिमेड प्रोप्रायटरी औषध बताते है वो भी प्रयोग करता है, कभी कभी उसका टार्गेट सेल अचीव करके फॉरेन ट्रीप या किसी सेमिनार में स्टेज पर स्वयं का लेक्चर भी आयोजित करवा लेता है, या फिर पैसा देकर टीव्ही पर लाईव्ह एपिसोड भी चलवाता है. फिर नये नये ट्रेंड के साथ वो ॲक्युपंक्चर को विद्ध के नाम से चलाता है, फिर कपिंग करता है फिर इसी के साथ वो चलते हुए ट्रेन्ड मे, बहती हुई गंगा मे हात धोने के धुन में, गर्भसंस्कार सुवर्णप्राशन नाडीपरीक्षा योगासन च्यवनप्राश अभ्यंग तेल ऐसे भी चीजे "बेचता" रहता है 


तो अधिकतर आयुर्वेद प्रॅक्टिशनर को "लगता तो ये है कि, वे आयुर्वेद की प्रॅक्टिस कर रहे है", लेकिन वस्तुस्थिती मे वह शास्त्रीय एवं नैतिक आयुर्वेद प्रॅक्टिस से कोसो दूर होते है. क्यूकी "शास्त्र पढना लिखना" यह उनको पता ही नही है.


उन्होने तो "देखकर सिखा" होता है, और आयुर्वेद शास्त्र की दृष्टि से तो वही श्रेष्ठ वैद्य का लक्षण है तीर्थशास्त्रार्थ = जिसको "तीर्थ" माना जा सकता है, ऐसे गुरु से शास्त्र की प्राप्ती करो और दुसरा दृष्ट कर्मा अर्थात देख कर सीखो ... इसमे कही लिखा ही नही की अपने "शास्त्र को भी पढना चाहिये"! इसलिये आदर्श वैद्यका गुण का जो पहला गुण है उसके अनुसार सभी प्रॅक्टिशनर उनको उस समय मे जो तीर्थ लगता है वो उनके समकालीन आसपास मे, दूरदराज में या पुणे जैसे आयुर्वेद की प्रख्यात मायानगरी मे आकर, जो भी मिले उसके चरण पकडकर, वो जो कर रहा है वो "देख कर" उसको ही "आयुर्वेद मानकर" उसको "सिख कर", उसी ट्रेंड की प्रॅक्टिस करते है और स्वयंको आयुर्वेद का प्रॅक्टिशनर है, ऐसा मान लेते है... समाधान कर लेते है


और एक बडा सा 12 फूट बाय 6 फुट का बोर्ड लगाकर उस पर पूरा मेन्यू लिख देते है... उसमे फिर आयुर्वेद योग नाडी प्राणिक हीलिंग मानस विकार ... जैसे किसी हॉटेल का मेनू कार्ड होता है, ऐसा पुरा मेनू कार्ड, बोर्ड पर प्रिंट करते है


कभी इन लोगों के मन मे ये नही आता है की हम प्रोफेशनल कोर्स के लोग है, इसमे डॉक्टर इंजिनियर वकील सीए और आर्किटेक्ट , ये 5 लोग आते है ... तो एक बी एम एस डॉक्टर छोडकर, कोई अन्य भी एमबीबीएस डॉक्टर या इंजिनियर वकील सीए आर्किटेक्ट ... इतना बडा बोर्ड या मेनू कार्ड प्रिंट करते है क्या? या आयुर्वेद जैसे प्रॅक्टिस के नाम पर कुछ भी चलाते है बेचते है, ऐसे अन्य प्रोफेशनल कभी करते है क्या ?? 

नही !!

एमबीबीएस डॉक्टर वकील सीए आर्किटेक्ट ये सभी पढना और लिखना दोनो जानते है , वे पढकर लिखकर अपना प्रोफेशन चलाते है ...

आयुर्वेद मे तो पढना लिखना आता ही नही , क्यूकी जो पढना लिखना है , वह संस्कृत भाषा मे है & संस्कृत तो हमे "काला अक्षर , भैस बराबर" ... तो यहां आयुर्वेद मे 99% लोक ये पढे लिखे हुए प्रॅक्टिशनर नहीं, अपितु, ये "देखकर सीखे" हुए है. यहां पर कोई इंजिनियर नही है, ये किसी आसपास के गराज मे टू व्हीलर फोर व्हीलर रिपेरिंग करते हुए देखकर सिख कर अपना अपना गराज जैसे तैसे चलाने वाले लोग है

... तो चल रहा है , वो योग्यही है ! क्यूकी पढे लिखे लोगों से "शास्त्र के बारे में कुछ करने की अपेक्षा" रखी जा सकती है. "शास्त्र पढा लिखा ही नही" ऐसे अनपढ गंवार देहाती ... किसी मदारी और बंदर का खेल देखकर ... जिन्होंने "सिखा" है, उनसे "शास्त्र की सेवा" की अपेक्षा क्या करेंगे? और "शास्त्र की विकास" की अपेक्षा तो, ऐसे अनपढ अशिक्षित लोगों से करना व्यर्थ है"! ... ये तो शास्त्र पर उपजीव्य लोग है! जियो और जीने दो!!


इसके पहले हमने कार्निव्होरस ॲनिमल्स (मृतप्राणिमांसभक्षी पशुपक्षी) इस पर एक आर्टिकल लेख लिखा है, वह पढने योग्य है

जिसकी लिंक आगे दी हुई है


और यही हम विगत 15 20 वर्ष मे देख रहे, क्यूकी यहा पर प्रॅक्टिशनर जो है वो सभी प्रायः बहुतांश, देखकर सीखे हुए , दृष्ट कर्मा & तीर्थशास्त्रार्थ ऐसे है 


यहा पर "शास्त्र पढना लिखना" , ये बात, ना कॉलेज में है , ना प्रत्यक्ष व्यवहार में है. इसी कारण से जिन्होंने आयुर्वेद शास्त्र मूल संहिता ग्रंथ से संस्कृत संदर्भ ग्रंथ से कभी पढा लिखा नही, ऐसे सभी अनपढ गवार देहाती लोगों के हाथ में आज आयुर्वेद शास्त्र चला जाने के कारण, उनको पता ही नही की सच्चा आयुर्वेद क्या है ?!


उनको लगता है की हम ये जो नाडी योग रसशास्त्र विद्ध मर्म गर्भसंस्कार सुवर्ण प्राशन शिरोधारा मसाज मालीश रिसॉर्ट स्पा वेलनेस... इसके साथ पुडी मे बांध के दे रहे है, वही आयुर्वेद की सेवा है. ऐसा करने में जैसे जैसे उनके बाल सफेद हो जाते है, वैसे वैसे सत्कार सन्मान और गुरु का पर मिलता जाता है 

शास्त्र तो कब का मर चुका है 

ये आयुर्वेद शास्त्र का नकाब पहनकर, उसके पीछे आयुर्वेद के नाम पर सारी अशास्त्रीय चीजों की प्रॅक्टिस कई दशकों से हो रही है और ये ऐसेही चलती रहेगी 


जिन्होंने कभी लता मंगेशकर या भीमसेन जोशी को सुना ही नही, ऐसे अरसिक गधों को, आज कल का जो मॅशप कव्हर अनप्लग्ड रास्ते पर थर्माकोल घिसने पर जैसे आवाज आती है ऐसे आवाज वाले गायक सिंगर ही ग्रेट लगते है. क्यूकी सच्चा ग्रेटनेस क्या है वो पता ही नही! उन्हें सच्चे सुर की क्या जानकारी? जिन्होंने कभी सच्चा खरा 24 कॅरेट का सोना देखा ही नही , उनको तो इमिटेशन ज्वेलरी भी तेजस्वी लगने वाली है 


वैसे पढे लिखे लोगों को, जिन्होंने शास्त्र को , शास्त्र की भाषा मे पढा है, उनको पता चलता है की, शास्त्र क्या है ... और पढे लिखे लोग, प्रश्न पूछते है!!! 


अनपढ अशिक्षित देहाती गवार लोक क्या क्वेश्चन पूछेंगे? और शास्त्र पडे हुए लोगो ने पूछा हुआ क्वेश्चन उनको क्या समजेगा? जिन्होंने शास्त्र कभी "पढा लिखा" ही नही, उनको ना क्वेश्चन सूझते है, ना समजते है, ना ही उनका उत्तर देने की उनमें क्षमता है, ना औकात है 


तो सबसे पहले हमने ये डिस्क्रिमिनेट करके स्पष्ट रूप से वर्गीकृत करके मान्य करना चाहिए, की शास्त्र को "पढना लिखना" जिसको आया, वो "प्रश्न पूछेगा" , उसको जिज्ञासा होगी .

जो शास्त्र "पढे बिना", केवल "देखकर सिखा" है, जो भी मिला ऐसे व्यक्ति को तथाकथित गुरु मानकर , तीर्थात्तशास्त्रार्थ का आधा अधूरा अवलंबन करके, एक गॅरेज मे जैसे कोई टू व्हीलर फोर व्हीलर रिपेरिंग सिखता है, वैसे आयुर्वेदबाह्य दो चार कामचलाऊ चीजे सीखकर , तलहस्त पर समा सकेगा इतने कागज मे, जो दो चार से लेके दस बारा तक, वनस्पती चूर्ण संयुक्त कल्प गुटी वटी गुगुल भस्म रसकल्प, इनकी भेळ मिसळ मिक्स्चर बनाकर देता है, ये पैसा कमाते है कुर्वते ते तु वृत्त्यर्थं चिकित्सापण्यविक्रयम् ।

उनसे शास्त्र बोध , शास्त्र सेवा और शास्त्र विकास की अपेक्षा रखना , यह महामूर्खता है. 


और उनकी भी गलती नही है , क्योंकि उनके आदरणीय माता पिता ने बच्चों को, डिग्री प्राप्त करके , पैसा कमाने के दृष्टि से ही, उस कोर्स मे डाला था, तो बेचारे पैसे कमाने के लिए , योग नाडी से लेके गर्भसंस्कार स्वर्ण प्राशन से लेके , रसशास्त्र लेके, साथ मे आयुर्वेद का जरासा तडका लगा कर, या आयुर्वेद शब्द प्रिंट किये हुए हुए, कागज के पॅकेज मे भरकर, कुछ कुछ "बेच रहे है, तो बेचने दो" ... बेचारे है, असहाय्य अगतिक है ... और हमारे देश में 140 करोड की भोलीभाली अनपढ जनता भी है ... तो शास्त्र को बिना पढा लिखा हुआ, अनपढ प्रॅक्टिशनर & उसके सामने करोडो की अनपढ जनता, तो पैसा बनाना तो बहुत आसान है 


लेकिन पढकर लिखकर शास्त्र जानना शास्त्र का विकास करना, शास्त्र के प्रति जिज्ञासा होना, शास्त्र के विषय में प्रश्न पूछना ... इसके लिये एक अलग इयत्ता, अलग कक्षा, अलग category अलग orbit अलग स्तर अलग उंचाई अलग लेवल अलग कपॅसिटी अलग क्षमता ... इसकी आवश्यकता होती है , जो बहुत रेअर दुर्लभ है ... वक्ता दशसहस्त्रेषु, अर्थात ... दस हजार लोगो में कोई एक वक्ता होता है ... किंतु शास्त्रज्ञाता यह तो "शतसहस्रेषु" ... लाखों लोगो मे कोई एखाद शास्त्रज्ञाता होता है


इसलिये वैद्य के चरकोक्त वाग्भटोक्त 4 गुणो मे, जो तीर्थात्तशास्त्रार्थ और दृष्टकर्मा ये गुण है उन के साथ साथ श्रुतशास्त्र = शास्त्रपठित = शिक्षितशास्त्र, यह गुण भी होना आवश्यक है

श्रद्धालु, तीर्थस्थल, आचार्य परीक्षा & आयुर्वेद !

 श्रद्धालु, तीर्थस्थल, आचार्य परीक्षा & आयुर्वेद !

Picture credit Google Gemini AI 


भारत मे सभी तीर्थक्षेत्रो मे विगत वीस तीस सालो मे श्रद्धालु लोगों की संख्या मे भारी वृद्धी हुई है, ये बडी आनंद की बात है!


सबको पता है, सभी तीर्थक्षेत्र में जो श्रद्धालु आते है, उनमे से बहुसंख्य, वहा के दैवत के विषय मे, प्राचीन ग्रंथो मे जो लिखा है, उसके विषय मे प्रायः अज्ञानी होते है!


उदाहरणार्थ भगवद्गीता का श्लोक कंठस्थ होना, विष्णुसहस्त्रनाम कंठस्थ होना, अथर्वशीर्ष कंठस्थ होना, रामरक्षा, शिवमहिम्न या कालभैरवाष्टक कंठस्थ होना, श्री सूक्त पुरुष सूक्त कंठस्थ होना, ऐसा 99% श्रद्धालुओं के बारे मे असंभव होता है! 


ऐसा कुछ अन्य पंथ/संप्रदाय/समूह मे नही होता है, उन्हे उनके पंथ/संप्रदाय/समूह के शीर्ष मार्गदर्शक ग्रंथों के विषय मे आवश्यक प्राथमिक जानकारी निश्चित रूप से होती है, ऐसा अनुभव आता है प्रायः!


इसलिये भक्ती या लोकप्रियता या भीड = क्राऊड पुलिंग पॉप्युलरिटी (crowd pulling popularity) कहते है, वह यह निश्चय नही करती की, ज्ञान की लेव्हल या स्तर कितना है!?


उसी प्रकार से आयुर्वेद मे आज लोकप्रियता भीड संख्या हर जगह दिखाई देती है, किंतु इनमे से 99% लोगों को आयुर्वेद के मूल संहिता के श्लोक ... 

1. ना तो कंठस्थ होते है ,

2. ना ही अगर सामने रखे जाये, तो उसका शुद्ध उच्चारण करके पठण वाचन की भी क्षमता होती है ,

3. ना ही यह संदर्भ कौन से संहिता के कौन से स्थान के कौन से अध्याय मे आया है, यह ज्ञात भी होता है!!! 

यहा के शास्त्र के ग्रंथों का संस्कृत भाषा से स्थानिक या इंग्लिश भाषा मे भाषांतर करके पढा जाता है और वैसी डिमांड / मांग और (ऑफ कोर्स) सप्लाय / धंदा बिझनेस इस क्षेत्र में पूरे जोरों से चलता है

*ऐसा अन्य मेडिकल सायन्स पॅथी फॅकल्टी मे नही होता है, उन्हे उनके मेडिकल सायन्स के मूल ग्रंथ मे क्या विषय है , उसके बारे मे निश्चित रूप से सविस्तर जानकारी होती है प्रायः!*


*मॉडन मेडिसिन के टेक्सबुक या रेफरन्स बुक्स पढते समय कोई भी विद्यार्थी यह डिमांड नही करता , की इंग्लिश पुस्तक का मुझे मेरी स्थानिक भाषा मे भाषांतर करके दे दो , तभी मैं मॉडर्न मेडिसिन पढूंगा ! ऐसी डिमांड कोई भी नही करता है! अथक प्रयास हार्ट/हार्ड एफर्ट्स करके भी इंग्लिश भाषा मे ही मॉडर्न मेडिसिन के टेक्स्टबुक और रेफरन्स बुक दोनो भी पढता है , जी जान लगाकर!*


तो _श्रद्धा भक्ती लोकप्रियता_ & *ज्ञान* इन मे बहुत अंतर होता है !!!


जैसा तीर्थस्थान के यहा पर उमडी हुई भीड मे, जो श्रद्धालु होते है, उनको इस बात का कोई भी "खेद लज्जा या संकोच नही होता है", कि हमे दैवत का जो भी मूलशास्त्र मे संस्कृत मे स्तोत्र है या सभी देवताओं के आराधना का एक मूलाधार ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता है, उसका हमे "एक श्लोक तक ठीक से कंठस्थ भी नही है और सामने रखा जाये तो पढने को भी नही आता है" ... 

"ठीक , वैस्सी ही परिस्थिती exactly same condition" , आयुर्वेद के प्रायः बहुसंख्य प्रॅक्टिशनर की होती है... की, उनको आयुर्वेद की मूल संहिताओ की ही विशेष सविस्तर जानकारी नही होती है, (फिर संहिता ग्रंथों के टीकाकारों का विषय तो बहुत ही दूर रह जाता है!) प्राथमिक स्तर पर तो, कौन सा संदर्भ कौन सा श्लोक कहां पर आया है, यहीज्ञात नही होता है , श्लोक सामने रख दिया जाये तो भी, उसका उच्चारण पठण करना तक उनके लिये संभव नही है ... और इस बात का उनको "खेद लज्जा या संकोच" कतई भी कभी भी नही होता है ... और फिर भी ... जैसे तीर्थस्थलो मे अत्यधिक संख्या मे भीड उमडी हुई रहती है, वैसेही इन प्रॅक्टिशनर के यहां पर, उनके ही जैसे, 1.फ्रेश बीएमएस स्टुडन्ट 2.नवतरुण वैद्य और 3.आशावादी पेशंट ... ऐसे त्रिविध अनपढ अज्ञानी लोगों की भीड उमडी हुई रहती है ... 


नैतिक कर्तव्य के रूप मे मूलशास्त्र का सकल ज्ञान होना, उसके बारे मे चिंतन करना = "सोचना" ... और प्रॉफिटेबल तरीके से, धंदा दुकान चलाना , बनीये/ शॉपकीपर सेल्समन की तरह सामान "बेचना" ... इन मे बहुत अंतर होता है ... 


और इस प्रकार से, केवल पैसा कमाने के लिए, प्रॉफिटेबल सेल ट्रेड के लिए, बीएमएस डिग्री लेकर, हर्बल मेडिसिन के नाम पर, कुछ भी "बेचना" है, तो उससे ज्यादा अच्छा है, कि अपने यौवन के सुवर्णकाल के 2000 दिन, बी एम एस डिग्री करने मे बिताने के बजाय , चाय की टपरी / वडापाव की गाडी या चाट का ठेला, इसमे मेहनत उतने ही दिन करे, तो कई गुना ज्यादा प्रॉफिट मिल सकता है!


तो बीएमएस विद्यार्थी व नव तरुण वैद्य निश्चित रूप से जान ले की, श्रद्धा भक्ती या लोकप्रियता या भीड = क्राऊड पुलिंग पॉप्युलरिटी (crowd pulling popularity), यह, ज्ञान की लेव्हल या स्तर कितना है!? इसका निकष/criterion नही होता है!


और इसीलिए चरक मे आचार्य परीक्षा (= criteria of Teacher/guide/mentor) सविस्तर वर्णित है.

Tuesday, 4 November 2025

गृध्रसी नाशक वटी : सायटिका L5 S1 DEGENERATION लंबार स्पाॅन्डिलाॅसिस सर्व्हायकल स्पाॅन्डिलाॅसिस कटी जानु मन्या स्कंध वेदना में लाभदायक परिणामकारी

गृध्रसी नाशक वटी : सायटिका L5 S1 DEGENERATION लंबार स्पाॅन्डिलाॅसिस सर्व्हायकल स्पाॅन्डिलाॅसिस कटी जानु मन्या स्कंध वेदना में लाभदायक परिणामकारी

लेखक : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे, एम डी आयुर्वेद, एम ए संस्कृत 

म्हेत्रेआयुर्वेद 9422016871

आयुर्वेद क्लिनिक @ पुणे (रविवार) & नाशिक (गुरुवार)

MhetreAyurveda@gmail.com 





गृध्रसी नाशक वटी

शास्त्रीय ग्रंथ संदर्भ Scientific Classical Reference 

गृध्रस्यां क्वाथद्वयम् ।

हिङ्गुपुष्करचूर्णाढ्यं दशमूलशृतं 

जयेत् गृध्रसीं 

केवलः क्वाथः शेफालीपत्रजः “तथा” (= जयेत् गृध्रसीं)

शार्ङ्धर मध्यम खंड अध्याय 2 श्लोक 86


वस्तुतः ये दो अलग कल्प है 

1. दशमूल के क्वाथ में हिंगु और पुष्कर चूर्ण का प्रक्षेप 

2. शेफाली अर्थात निर्गुंडी के पत्रके क्वाथ में हिंगु और पुष्कर चूर्ण का प्रक्षेप 


किंतु, गृध्रसी नाशक वटी सप्तधा बलाधान टॅबलेट बनाते समय म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA ने इन दोनों कल्प के घटक द्रव्य, एक साथ जोड दिये 

अर्थात , 


घटकद्रव्य contents 

1. दशमूल 

2. निर्गुंडी पत्र 

3. हिंगु चूर्ण & 

4. पुष्कर चूर्ण 

ये समान मात्रा मे लेकर 


Process प्रक्रिया 


उनको दशमूलक्वाथ, निर्गुंडी पत्र & पुष्करमूल के क्वाथ के 7 बलाधान किये 

अर्थात अगर उपरोक्त मूल 4 घटक चूर्ण कुल मिलाकर 1 किलो है …

तो, उसमे 7 किलो दशमूल चूर्ण का जितना क्वाथ बनेगा उतने क्वाथ का 

और 7 किलो निर्गुंडी पत्र के चूर्ण का जितना क्वाथ बनेगा उतने क्वाथ 

उसमे 7 किलो पुष्कर मूल चूर्ण का जितना क्वाथ बनेगा उतने क्वाथ का 

का absorption/adsorption करवाया गया 

इसमे 250gms घृत भर्जित हिंगु चूर्ण मिलाया गया

हिंगु चूर्ण प्रक्षेप ही सभी कल्पों होता है , उसकी क्वाथ कल्पना नही बनती है

और फिर उसके 250 के टॅबलेट बनाये गये


उपयोग विधी और मात्रा Dose & Duration


यह टॅबलेट 

वेदना की तीव्रता तथा 

व्याधी की क्रॉनीसिटी, इनके अनुसार 


दो टॅबलेट तीन बार (2 TDS) , 

भोजन से पहले = अपान काल मे = प्राग्भक्त काल मे 

या 

तीन गोली दो बार (3 BD),

भोजन से पहले = अपान काल मे = प्राग्भक्त कालमें देने से , 

आधे घंटे (30 मिनिट) से लेकर तीन घंटे (3 Hrs) मे वेदनाशमन होता है, ऐसा अनेक पेशंट का अनुभव है


गृध्रसी का उल्लेख वात के नानात्मज 80 विकारों मे है 

तथा इसका लक्षण 

पार्ष्णिं प्रत्यङ्गुलीनां या कण्डरा मारुतार्दिता। 

सक्थ्युत्क्षेपं निगृह्णाति गृध्रसीं तां प्रचक्षते॥

⬆️ वाग्भट 

&

स्फिक्पूर्वा कटिपृष्ठोरुजानुजङ्घापदं क्रमात् ।

गृध्रसी स्तम्भरुक्तोदैर्गृह्णाति स्पन्दते मुहुः 

⬆️ चरक


इस प्रकार से लिखा है …

जिसे आज सायटिका माना जाता है 

किंतु इस वेदना का मूल कारण *नर्व्ह कॉम्प्रेशन* यह होता है …


जिसका क्लिनिकल एक्झामिनेशन 

सक्थ्युत्क्षेपं निगृह्णाति इन संस्कृत शब्दों मे अर्थात 

एस एल आर टेस्ट SLR TEST के द्वारा किया जा सकता है 

परिणामकारकता result yeild 

1.

प्रायः 40 के पहले के वय के पेशंट मे , (age <40 years)

6 सप्ताह से 3 महिने तक के उपचार कालावधी मे यह अपुनर्भव रूप मे उपशम प्राप्त करता है 

2.

40 के पश्चात (age 40+) तथा 

मेनोपॉज की अवस्था की महिलाये तथा 

अति स्थौल्य / अतिकार्श्य 

स्पोर्ट्स शूज पहने बिना कठिन भूमि पर चलना/खडे रहना

कटी से संबंधित व्यवसाय = देर तक खडा रहना : वाॅचमन सिक्युरिटी शिक्षक लॅब टेक्निशियन सेल्समन, ड्रायव्हिंग करना, भारी बोझ उठक पटकन करना , सेडेंटरी जॉब , बहुत ज्यादा स्टेप चढना उतरना डिलिवहरी पर्सन, विशेषता बाईक पर दाहीनी टांग घुमाकर बैठना उतरना, 

अति अम्ल अति लवण और अतिकटु पदार्थों का सेवन करना !

लवण रस खालित्य पालित्य करता है अर्थात अस्थि का क्षरण करता है 

इसलिये चायनीज नूडल्स बेकरी पदार्थ फरसाण नमकीन चीज बटर आचार उपर से आहार मे नमक लेना इस आहार को बंद करना चाहिए

अम्लरस ॲसिड होने के कारण कॅल्शियम को डिजनरेट करता है 

इसीलिए सेब सफरचंद एप्पल संत्रा मोसंबी निंबू अचार कोल्ड्रिंक विनेगार साउथ इंडियन फर्मेंटेड पदार्थ टोमॅटो सॉस केचप दही छास इनका अति सेवन या नियमित सेवन वर्ज करना चाहिये

भावप्रकाश मे अम्लातिसेवन से अस्थि क्षय का उल्लेख हुआ है 

कटुरस के अतियोग मे कटीपृष्ठ व्यथा इसका उल्लेख है अष्टांगहृदय सूत्र 10

इसलिये अत्यंत मसालेदार चटणी मिरची युक्त मांसाहार या व्हेज पदार्थों का सेवन शेजवान चाट के सभी पदार्थ इनका सेवन नही करना चाहिए

इसी कारण से तंबाखू का किसी भी रूप मे सेवन पूर्णतः और तुरंत उस दिन से बंद करना चाहिए इसमे बिडी सिगारेट स्मोकिंग गुटखा पान मसाला तंबाखू खाना मिस्त्री लगाना तंबाखू की टूथपेस्ट लगाना तपकीर नाक मे सूंघना 

और साथ ही ऑफिस मे या घर मे अपने आसपास की व्यक्ती द्वारा स्मोकिंग होते रहना , यह भी विशेष रूप मे अस्थियों के क्षीणता का कारण है 

मूल संप्राप्ति

एल फाईव्ह एस वन डी जनरेशन L5 S1 DEGENERATION अर्थात व्हर्टिब्रल डीजनरेशन के विविध प्रकार का हेतू होता है जो आगे चल कर डेसीकेशन डिस्क बल्ज आदि रूप मे मॅनिफेस्ट होता है, जो गृध्रसी का मुख्य हेतू है 


वही बात विश्वाची की है जिसमे C 7 6 5 इस उलटे क्रम से मन्या के व्हर्टेब्रा का डी जनरेशन होता है, 

इसीलिए यह गृध्रसी नाशक टॅबलेट

सायटिका, लंबार स्पॉंडिलॉसिस, लो बॅक पेन, सेक्रो इलियाक इन्फलामेशन, L5 S1 डी जनरेशन, मसल्स स्पॅम ऐसे पेल्विक गर्डल से रिलेटेड वेदना विकृती के साथ साथ ही, 

अप्पर बॅक या शोल्डर गर्डल से रिलेटेड फ्रोजन शोल्डर, सर्वाइकल स्पॉंडिलॉसिस, C 5 6 7 डी जनरेशन, मन्या स्तंभ, कॉलर या बेल्ट लगाने की आवश्यकता होना, कमर से पांव तक झुनझुनाहट भारीपन या बधिरता / बाधिर्य ऐसे सभी 

कटी जानु और मन्या स्कंध वेदनाओ मे यह टॅबलेट अपेक्षा से भी शीघ्र वेदनाशमन का लाभदायक परिणाम देती है


पार्ष्णिं प्रत्यङ्गुलीनां या कण्डरा मारुतार्दिता। 

सक्थ्युत्क्षेपं निगृह्णाति गृध्रसीं तां प्रचक्षते॥५४॥


तलं प्रत्यङ्गुलीनां या कण्डरा बाहुपृष्ठतः| 

बाहुचेष्टापहरणी विश्वाची नाम सा स्मृता||३१|| 


खल्ली तु पादजङ्घोरुकरमूलावमोटनी ॥


विश्वाची गृध्रसी चोक्ता खल्ली तीव्ररुजान्विते।


विश्वाची + गृध्रसी = खल्ली


इन दोनो रोगों मे पार्ष्णि तथा बाहुपृष्ठ शब्द से यहा की वेदना कंधे से लेकर हाथ की उंगली तक तथा कटी से लेकर पार्ष्णि पीछे के भाग से पादांगुली तक के प्रदेश मे POSTERIORLY होती है, यह आकलन होता है


साथ ही “सक्थि उत्क्षेपं निगृह्णाति” यह शब्द एक्झॅक्टली एस एल आर टेस्ट SLR TEST का ही उदाहरण है !


सक्थि (= अर्थात संपूर्ण पांव) उत्क्षेपण अर्थात उपर उठाना , निगृह्णाति अर्थात असमर्थ होना , उपर उठने न देना, जकडकर खींच के रखना 

बाहुचेष्टापहरणी यह शब्द भी अगर हम SLR की तरह हात के लिए BHRT Both Hand Raise TEST, यह नयी टेस्ट डिझाईन करे …

की दोनो हस्ततल / हात नमस्कार की तरह जोडकर, छाती / स्टर्नम के पास रख कर, उनको धीरे धीरे, एक दूसरे से जुडे हुए स्थिती मे, हनु नासा कपाल ऐसे उपर उठाते उठाते, पर्वतासन की तरह, अगर शिर के उपर अंत तक ले जा सके, जब की आपके दोनो क्युबायटल फोसा, आपके कान को टच हो जाये, तो यह नॉर्मल परीक्षण होगा… एसएलआर की तरह हात के लिये BHRT

और यह जितना नीचे याने छाती से ऊपर ले जाते समय, हनु या नासा तक ही वेदना होने लगे … निगृह्णाति = ग्रह = उपर उठाने मे अक्षम होने लगे तो उतने सर्व्हायकल व्हर्टेब्रे का डी जनरेशन या विकृती समजना चाहिए …

इस प्रकार का क्लिनिकल टेस्ट किसी मॉडर्न मेडिसिन बुक मे या गूगल पर नही मिलेगा किंतु, यह मैने MhetreAyurveda ने ट्रीट किये हुए 3000 से भी अधिक केसेस मे किया हुआ निरीक्षण है 

प्रस्तुत, गृध्रसी नाशक टॅबलेट मे 

दशमूल स्वयं वातशामक = वेदनाशामक है 

दशमूल सिद्धक्षीर का उल्लेख सद्यः शूल निवारण के रूप मे वातरक्त मे आता है 

पुष्कर पार्श्वरुजा का अग्रद्रव्य है अर्थात पर्शुकाओं का अंत पृष्ठ में जहां पर होता है, उन Thoracic vertebrae प्रदेश में होता है इसमे पुष्कर यह वेदनाशमन के रूप मे उपयोग है 

कोष्ठ प्रदेश में होने वाले अर्थात नाभी के आसपास के प्रदेश मे होने वाले अर्थात लंबार प्रदेश मे होने वाले शूल के लिये उपयोगी है यह तो सर्वज्ञात है 

और निर्गुंडी को तो एक *सुपर औषध* के रूप में मानना चाहिए …

क्यू की जब भी आयुर्वेद मे वेदनाशमन की बात आती है तो योगराज या सिंहनाद के साथ साथ सबसे पहले चॉईस होता है महा वात विध्वंस, जिस मे कार्यकारी द्रव्य देखा जाये, तो उसको निर्गुंडी की ही भावनायें हैं, बाकी साडेचार भाग बचनाग/वत्सनाभ जिस कल्प मे है! ऐसे अत्यंत विष स्वरूप वत्सनाभ के कारण होने वाले हायपोटेन्शन के कारण शॉक मे जाकर modern medicine के hospital में ICU में Admit होने का अनुभव कुछ प्रसिद्ध वैद्योंको स्वयं को है! 

ऐसे कल्प को उपयोग करने की बजाय, जो उसका भावना द्रव्य है, जो निरापद है और शीघ्र उपशमकारी है, उस भावना द्रव्य “अर्थात निर्गुंडी का ही इसमे प्रमुख घटक” के रूप मे समावेश है , जो वातशामक = वेदनाशामक है!


और पुष्कर सर्वाइकल थोरॅसिक शूल का विशेष रूप से शूल नाशक है , ऐसा अग्रेसंग्रह अष्टांग हृदय उत्तर तंत्र अध्याय 40 श्लोक 48-58 मे उपलब्ध है पार्श्व शूले पुष्करजा जटा

तथा 

हिंगु लंबार एरिया के शूल का विशेष रूप से नाशक है, क्यूंकी आध्मान गॅस मलअवरोध से पक्वाशय कुक्षिक्षेत्र में जो वात का उदावर्त/अवरोध होता है , उसके दबाव के कारण भी मसल्स स्पॅझम होकर लंबार प्रदेश से कटी जानु की और शूल हो सकता है, जो वातानुलोमनसे उपशम प्राप्त करता है

यह देखते हुए, गृध्रसी नाशक टॅबलेट सैंद्धांतिक रूप से और 

मेरे स्वयं के अनुभव के अनुसार 3000 से भी अधिक रुग्णों मे वेदनाशमन के लिए अत्यंत शीघ्र, अल्पकाल मे लाभदायक परिणामकारक सिद्ध हुई है 

इसके साथ अगर लशुन क्षीरपाक दिया जाये तो और अधिक कार्मुक होता है 

गृध्रसी = सायटिका का मुख्य कारण नर्व्ह कॉम्प्रेशन है 

नर्व्ह कॉम्प्रेशन का मुख्य कारण vertebrae/ disc Degeneration जिसे अस्थि तरुणास्थि क्षय के रूप मे समझ सकते है

और ऐसे डीजनरेटेड अस्थि को भग्नाधिकार के औषधों से अपुनर्भवरूप मे ठीक किया जा सकता है , जो पेशंट हमने आज से 10 15 20 22 साल पहले किये ठीक है, वे आज भी अपने पैरो पर खडे है & वेदना मुक्त स्थिती मे कार्यरत है, वो भी बिना किसी ऑपरेशन सर्जरी के, बिना बेल्ट लगाये कॉलर लगाये, बिना knee cap knee brace में

नर्व्ह कॉम्प्रेशन का कारण डिस्क डीजनरेशन है जिसे अस्थि क्षयभग्नाधिकार के अनुसार विशेष रूप मे तरुणास्थी अधिष्ठान मानकर समजा जा सकता है इसके लिये दो मुख्य औषध है 

*लशुन क्षीरपाक & यष्टी लाक्षा

इसके साथ हि चरकसूत्र २८ और वाग्भट सूत्र 11 मे आये हुये पंचतिक्त क्षीर/घृत सहाय्यक उपयोगी होता है, किंतु यह दीर्घकाल देना आवश्यक होता है, जो डीजनरेशन की परिस्थिती, पेशंट का वय /अवस्था , उसके एडिक्शन , उसके व्यवसाय उसके आहार इन सभी पर निर्भर होता है 

जो प्रेझेंटिंग कंप्लेंट, अत्यंत वेदना, चलने मे अक्षमता, यह होती है … उसके लिए गृध्रसी नाशक टॅबलेट अत्यंत शीघ्र लाभदायक परिणाम देती है 

उसके साथ द्रुत विलंबित गो और दुरालभादि वेदनाशामक टॅबलेट भी उपयोगी होती है 

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वातहरों में सर्वश्रेष्ठ बस्ति है जिसको देना और पेशंट के लिये लेना, दोनोही समय अपहरक , थेरपीस्ट पर अवलंबून , अनेक बार नॉन ॲफॉर्डेबल , एक ही बस्ती मे काम न होना, घर छोडकर क्लिनिक तक आना जाना और फिर भी उपशम के गॅरंटी न होना, ऐसा बस्ती के बारे मे होता है 

फिर वातहर मे दूसरा सर्वश्रेष्ठ तैल है, जिसकी डिस्पेन्सिबिलिटी और जिसकी ट्रान्सफर्टीबिलिटी ,परिणाम की गॅरंटी इसके बारे मे दुरवस्था है 

तिसरा वातहर सर्वश्रेष्ठ द्रव्य रास्ना है, जिसकी संदिग्धता बहुत अधिक है और वातजन्य संप्राप्ती के जगह, आमजन्य संप्राप्ती मे अधिक उपयोगी है 

चौथा वातहर श्रेष्ठ द्रव्य एरंडमूल कहा गया है किंतु उसकी भी उपयोगिता उतनी सिद्ध नही है और उपलब्धता भी दुष्कर है और एरंड तेल तो और भी व्यापत् कारक है ... और एरंड तेल की ट्रान्सपोर्टेबिलिटी दुर्गंध और उसकी टेस्ट ये भी सारा पेशंट के लिये उतना सुकर नही होता है

ऐसी स्थिति मे जिसका उल्लेख चरक मे वातहर अग्रे द्रव्य में नही है, किंतु …

वाग्भट ने जिसे वातहर द्रव्य मे अग्रद्रव्य के रूप मे प्रशस्तीकारक द्रव्य के रूप मे उल्लेख किया है वह है “प्रभंजनं जयति लशुन:” … लशुन एक ऐसा द्रव्य है जो हर घर में उपलब्ध है, बारा महिने उपलब्ध है, प्रायः वर्ष मे एखाद महिना छोड दिया तो ॲफोर्डेबल है और इसका उपयोग करना बस्ती/तैल/रास्ना/एरंड मूल की तुलना मे सुकर है और यदि म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA फार्मसी द्वारा निर्मित लसूण क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स दिया जाये, तो ये और भी सुकर और शीघ्र परिणामदायक होता है इसकी वेदना शमन का इफेक्ट बढाने के लिए, पोटेन्सी बढाने के लिए, लशुन के साथ साथ आर्द्रक का संमेलन करके, “रसोन आर्द्रक क्षीरपाक” बनाया है, जो ये दोनो कटुरस के श्रेष्ठद्रव्य है, पिप्पली को निकाल दिया जाये तो !

पिप्पली को उबालना यह शास्त्र को उतना संमत नही है, पिप्पली अनेक अवलेहो में संपूर्ण अग्निसंस्कार पश्चात के प्रक्षेप चूर्ण के रूप मे आती है. इसलिये म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA कटुरस के तीन श्रेष्ठ द्रव्य मे से, पिप्पली को हटा कर “रसोन आर्द्रक क्षीरपाक ग्रॅन्युल्स” बनाया है, जो वेदनाशामक दुरालभादि या द्रुतविलंबितगो या प्रस्तुत गृध्रसी नाशक वटी के साथ गरम पानी/दूध मे एक चमचा मिला कर , प्राग्भक्त = भोजनपूर्व = अपान काल मे दिया जाये, तो वेदनाशमन का कार्य प्रायः अतिशय शीघ्र होता है 


प्रभंजनं जयति लशुन” का अर्थ है , जो भंजन करने मे प्रकर्षेण = अतिशय समर्थ है = अस्थियों का डीजनरेशन जिसके कारण तेज गति से होता है, शीघ्र गति से, अल्पकाल मे होता है … क्योंकि अस्थि और वात का आश्रयाश्रयी भाव संबंध = परस्पर विरोधी है! वात बढेगा, तो अस्थी घटेगा!! 


कभी कभी क्षीर का बहुत उद्वेग उत्कलेश होता है,  क्षीर का पचन नही होता है कुछ लोगों को छर्दि हृल्लास होता है, कुछ लोगों को ब्लोटिंग होता है ळ, कुछ लोगों को अच्छा दूध नही मिल पाता, कुछ लोगों को दूध लेने से भी ॲसिडिटी गॅस होता है, कुछ लोगों को विरेचन हो जाता है, कुछ लोगों को लॅक्टोज इन्टॉलरन्स होता है, तो जो लोग क्षीरपाक नही ले सकते हो, वे रसोन आर्द्रक के ग्रॅन्युल्स गरम पाणी के साथ ले सकते है 

या उससे भी अधिक अच्छा सतीनज यूष अर्थात सूखे मटर वाटाणा peas का, पानी मे उबाल कर, उनको पक जाने तक, पानी मे उबालना और सूखे मटर वाटाणा peas पक जाने के बाद भी, जो पानी शेष रहे जायेगा वह यूष के रूप मे एक चमचा घृत के साथ और एक चम्मच रसोन आर्द्रक ग्रॅन्युल्स के साथ, 7 या 14 लसुन की कलियां डालकर ही सूखे मटर वाटाणा peas उबालना पकाना और यह यूष, एक चम्मच घृत के साथ अपानकाल मे लेना. 

यह जिनको क्षीर का असहत्व है, द्वेष है उनके लिये उपयोगी होता है सतीनज यूष का उल्लेख भग्नाधिकार मे सुश्रुत मे हुआ है, वाग्भट मे भी हुआ है


इसलिये 40 वय के पश्चात भग्न साध्य नही है, ऐसे सुश्रुत ने उसके भग्न अध्याय मे लिखा है 


और हम भी देखते है की 40 वय के बाद बाथरूम मे फिसलकर कोई व्यक्ति गिर जाता है , तो उसका सबसे जो दुर्बल अस्थि/संधि है, वह क्लॅविकल नही फ्रॅक्चर होता है , किंतु बल्कि उसका सबसे सामर्थ्यवान सबसे स्ट्रॉंग और सबसे डीप ऐसा जो अस्थि/संधी है वह फीमर हेड टूट जाता है!!! क्यूं कि, फीमर हेड अर्थात जघन यह अस्थिवहस्त्रोत का मूल है , तो वही से यह विकृती शुरू होती है और अगर वही से इसको ठीक करना है , तो ऐसे भग्नकारी वात को, जीतने वाले लशुन का उपयोग करना या बुद्धिमानी है 


इसलिये फिमर हेड मे जिसकी संप्राप्ती है ऐसे AVN मे भी लशुन क्षीरपाक, द्रुतविलंबितगो या वेदनाशामक दुरालभादि या प्रस्तुत गृध्रसी नाशक, इन सप्तधा बलाधान औषधी कल्पों का अच्छा उपयोग होता है 


इसके साथ साथ अस्थि क्षय का सूत्र है उसमे से तिक्तद्रव्य क्षीरपाक के रूप मे यदि पंचतिक्त या यष्टी गुडूची का प्रयोग किया जाये तो ये और भी शीघ्र निश्चित लाभदायक परिणाम देता है, वेदनाशमन के लिए भी और दीर्घकालीन अपुनर्भव यश के लिए भी!

यष्टी लाक्षा टॅबलेट from MhetreAyurveda 

यष्टी और लाक्षा

भग्नाधिकार मे उल्लेखित ये मुख्य दो द्रव्य है , जो आभ्यंतर प्रयोग के रूप मे उपयोगी है … 

लाक्षा का सप्तधा बलाधान नही कर सकते, क्यू कि वह एक निर्यास है

लाक्षा संधानकारी अग्रे द्रव्य हैकृमिजा संधाने अष्टांगहृदय उत्तर तंत्र अध्याय 40 श्लोक 48 से 58 

&

यष्टी चरकोक्त महाकषायों मे सर्वाधिक बार रिपीटेड द्रव्य है 

और यष्टी का अग्रेसंग्रह चरक सूत्र 25 मे सबसे लंबा है … 

मधुकं चक्षुष्यवृष्यकेश्यकण्ठ्यवर्ण्यविरजनीयरोपणीयानां,


और 


यष्टी स्पष्ट रूप मे भग्नाधिकार मे उल्लेखित है


यष्टी & लाक्षा का समप्रमाण मे बनाया हुआ म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA फार्मसी का यष्टी लाक्षा टॅबलेट अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है और केवल डी जनरेशन ऐसे अस्थिक्षयजन्य वेदनाओं में ही नही अपितु, दंतरोग केशपतन खालित्य पालित्य इसमे भी यष्टी & लाक्षा का प्रयोग पंचतिक्त या यष्टी गुडूची क्षीरपाक के साथ लाभदायक होता है 

इसका अनुकूल परिणाम हेमंत और शिशिर इन ऋतुओ मे = नोव्हेंबर डिसेंबर जानेवारी फेब्रुवारी = मार्गशीर्ष पौष माघ फाल्गुन इस काल मे सर्वाधिक होने की संभावना रहती है !

मात्र 6 से 12 सप्ताह (= मात्र 1.5 महिने से 3 महिने) के उपचार कालावधी मे इसमे अपेक्षित लाभदायक परिणाम प्राप्त होता है

इसी प्रयोग से, जिस वय में हाईट बढना संभव है, किंतु फिर भी अपेक्षित हाईट वृद्धी नही हो रही है, ऐसे वय के युवाओं की युवतीयोंकी की हाईट अपेक्षित या उसे भी अधिक बढ सकती है

अर्थात इसमे अस्थिक्षयकारी अस्थिवृद्धीविरोधक ऐसे अम्लरस कटुरस लवणरस के अन्नपदार्थों का, पर्युषित अन्न (अर्थात निशोषित अर्थात बासे स्टेल stale) , मैदा कॉर्नफ्लोअर बेकरी जन्य पदार्थों का तथा तंबाखू मद्य जैसे द्रव्य का सेवन पूर्णतः वर्ज्य होना आवश्यक होता है. साथ ही क्षीरौदन क्षीरघृत इनका अपानकाल में सेवन लाभदायक सिद्ध हो सकता है. 

हाईट बढाने के औषध उपचार के प्रयोग कालावधी मे रनिंग करना जंपिंग करना स्किपिंग रोप का प्रयोग करना सिंगलबार पर लटकना यह प्रकार वर्ज्य करे! 

एवं भी पांव, घुटने, कमर, मणके, वरटेब्रा, लो बॅक, मन्या, इनकी वेदनाओ में तथा सायटिका लंबार स्पॉंडिलसिस सर्वायकल स्पॉंडिलॉसिस स्कंध वेदना फ्रोजन शोल्डर इन सभी अस्थिक्षयजन्य वेदना मे, उपरोक्त रनिंग करना जंपिंग करना स्किपिंग रोप का प्रयोग करना सिंगलबार पर लटकना यह प्रकार वर्ज्य करे! तथा बॅडमिंटन टेबल टेनिस लॉन टेनिस क्रिकेट ट्रेकिंग फुटबॉल व्हॉलीबॉल स्टेप चढना उतरना दस किलो से अधिक वजन बोज भार वेट उठाना, यह जितना हो सके उतना बंद रखे


यष्टी रोपण व शीत है 

लाक्षा संधानकारी है 

इसलिये अति रक्तस्राव मे भी स्तंभन के रूप मे इसका उपयोग होता है , जैसे कि योनिगत, नासागत, गुदगत, कंठगत (oesophagial varices), दीर्घकालीन री करंट पुनरावर्तक अतिप्रमाण रक्तस्राव मे भी यह उपयोगी है

इन रक्तस्त्रावों में , यष्टी लाक्षा के साथ, यष्टी सारिवा यह भी सप्तधा बलाधान टॅबलेट उपयोगी होती है. विशेषतः क्षोभ शोक स्ट्रेस ऐसे वैचारिक भावनिक बौद्धिक प्रक्षोभक तथा बाह्य वातावरण के उष्ण तीक्ष्ण गुणयुक्त तथा कटु अम्ल लवण उष्णयुक्त आहारजन्य , दाह पाक आभ्यंतर व्रण ऐसे कंप्लेंट मे भी यष्टी सारिवा उपयोगी है

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/07/blog-post_6.html



Monday, 27 October 2025

त्रिविध आयुर्वेद प्रॅक्टिस : प्रॅक्टिस के तीन कालखंड

त्रिविध आयुर्वेद प्रॅक्टिस


Both the above pictures credit Google Gemini AI 

कृपया लेखके अंत मे दिया हुआ डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) अवश्य पढे

आयुर्वेद के संहिता ग्रंथो मे प्रायः रोग की चिकित्सा स्नेहपान पूर्वक शोधन से ही होती है 

हमने जब ॲडमिशन लिया तब हम कॉलेज मे तो कुछ पढते नही थे , पढाते नही थे , सीखने को मिलता नही था 

इसलिये कॉलेज समाप्ति के बाद शाम साडेपाच ते सात, सटीक ग्रंथ संस्कृत भाषा मे तत्त्वज्ञान थेरी सिद्धांत इसके लिये और ...

फिर सात बजे से, उस समय के जो प्रॅक्टिशनर थे (आयुर्वेद के शुद्ध प्रॅक्टिशनर) उनके डिस्पेन्सिंग मे पुडियां बांधते थे 


उस समय पंचकर्म का उतना व्यवहार नही होता था, वसंत ऋतु मे दस बारा पंचकर्म वमन के , विरेचन का तो इतना कुछ हॅपनिंग नही लगता था

स्काल्प से या जलौका से रक्त मोक्ष हप्ते महिनाभर मे एखाद बार होता था 

और 100ml के सिरिंज से मात्र बस्ती देना और उससे बहुत ही कम फ्रिक्वेन्सी मे कभी कभार एनेमा पाॅट से तथाकथित निरूह बस्ती देना 

साल मे एखाद बार कदर पर अग्नि कर्म देखना 

बाकी तो , "शास्त्र मे जैसे कही लिखा ही नही, ऐसी "हर्बल योग + हर्बो मिनरल योग = "वनस्पतीजन्य चूर्ण या गोलियों को कूटकर की पावडर + उसके साथ रसशास्त्र के धातुओं के भस्म या रत्नों के भस्म या पिष्टी या रसकल्पों के टॅबलेट का चूर्ण" ये सारा मिलाके देते थे. 

इतनी ही प्रॅक्टिस थी 

इसके साथ साथ तो ठंडी के मौसम मे कुछ वैद्य च्यवनप्राश बेचते थे और साल भर कुछ वैद्य शतावरी कल्प बेचते थे 

अभ्यंग तेल और उबटन बेचने का इतना व्यवहार अपना लेबल लगाकर करने का "धंदा" उस समय नही था 

फिर जब हम पीजी करके वापस आये तब तक पंचकर्म का बोलबाला बहुत बढ चुका था 

हमारे यूजी मे पूरे पुणे मे ब्युटी पार्लर की संख्या संभवतः दस से भी कम थी , जब हम 1998 मे वापीस आये, जामनगर से , तब पुणे के हर गली मे ब्युटी पार्लर खुल चुका था ... वैसेही हर गली पर नही , लेकिन जगह जगह पंचकर्म सेंटर दिखने लगे थे. हॉटेल मे मेनू कार्ड होता है वैसे क्लिनिक के बाहर छे फीड बाय चार फिट का बडा बोर्ड और उस पर बहुत सारे लोगों के नाम हमसफर पंचकर्म ट्रीटमेंट करते है वगैरे लिखा हुआ दिखाई देने लगा था.

 पंचकर्म का कस्तुरे साहेब का पुस्तक, प्र ता जोशी, रामदास आव्हाड, थोडा बहुत त्र्यं म गोगटे इनका प्रभाव उसके लिए कारण था 

कुछ लोगों पर सांगली के दातार शास्त्री के पंचभौतिक चिकित्सा का भी प्रभाव था, लेकिन उसमे देखा तो कल्प तो सारे पहले के ही ज्ञात जो या तो संहिता से या रसकल्प से हि थे, और उन की संख्या बीस के आसपास थी

लेकिन जब लोगों को ये पता चला की पुडिया में औषध देकर ज्यादा से ज्यादा , तीन फिगर या चार फिगर इतनाही बिल हो सकता है ... उसके साथ ...

अगर थोडा चकाचक इंटेरियर लाइटिंग & पंचकर्म का इंट्रोडक्शन हो चुका था इसलिये पिंडस्वेद पिषिंचिल के साथ , 45 मिनिट का दाक्षिण्यात्य नाम होने वाले तेलों का "मस्त, स्पा वाला, हॅपनिंग , फील गुड मालिश /मसाज" ऐसा कुछ पॅकेज ऑफर करेंगे , तो पंचकर्म को हम "शो धन = show Dhan" के रूप मे व्यवहार में लाकर पेशंट का बिल तीन चार फिगर की बजाय पाच फिगर तक जा सकता है 

"पंच"कर्म के साथ साथ फिर "चंपी"कर्म भी शुरू हो गये ... जिसमे सबसे लोकप्रिय, आगे जाकर आयुर्वेद का बोधचिन्ह बना , शिरोधारा प्रमुख था ...

और उसके साथ साथ फिर जहा कही संभव हो सके, जहा कोई छिद्र भी नही है , वहा पर लोग बस्ती करने लगे ... जिसमे जानू कटी मन्या हृदय ये सब आ गया.

 पंचकर्म जैसे "शो धन = show Dhan" बना , तो फिर जो जो चीज "धन शो , dhan show" कर सकती है , वो हर चीज , आयुर्वेदिक के नाम पर बेची जाने लगी ... चाहे उसका "सत्य नैतिक संदर्भ अधिष्ठान मूल , आयुर्वेद मे हो, या ना हो"!

और उसका मार्केटिंग इतना "भावनात्मक आकर्षक" पद्धती से किया गया की, ऐसा "शो धन = धन शो" करके आयुर्वेद को नयी आर्थिक उंचाई पर पहुंचाने ने वाली नयी पिढी का उनकी चतुराई का अभिनंदन जितना करे उतना कम है 

फिर तो लोगों ने "कुछ भी नही छोडा" की "आयुर्वेद के नाम पर बेचा जा सके"!!! 

प्रॅक्टिस के तीन कालखंड है 

*इसमे से एक भी प्रॅक्टिस ; आयुर्वेद शास्त्र की शुद्ध प्रॅक्टिस नही है* 

हम जब सीख रहे थे , तब जो खुलेआम मॉडर्न की प्रॅक्टिस कर रहे थे , उनके प्रति मुझे आदर है, क्यूंकी उन्होने स्पष्ट रूप से, स्वयं के लिए और समाज के लिए स्वीकृत किया था, की हम आयुर्वेद का शून्य उपयोग करेंगे और हम 100% मॉडर्न मेडिसिन का ही उपयोग करेंगे 

जो लोग हम जब सीख रहे थे, तब "प्युअर (?) आयुर्वेद की हम प्रॅक्टिस करते है, ऐसा "दावा" कर रहे थे , वे आयुर्वेद के संहिताओ के तत्त्वों से बहुत दूर थे.

यद्यपि थोडे प्रमाण मे पंचकर्म, उसमे भी वमन सर्वाधिक, मध्यम विरेचन, कभी कभार बस्ती और क्वचित जलौका & अग्निकर्म कर रहे थे ... उसमे शास्त्रीय स्नेह पान मात्रा एवं कालावधी तथा शास्त्रीय स्वेदन पद्धती कालावधी इनका परिपालन उपयोजन नही हो रहा था 

और जो भी पुडी में औषधे थी , ना तो उस का प्रमाण शास्त्रोक्त था, ना ही उसमे एक साथ एकत्र पडने वाले औषधो का संयोग शास्त्र के आधार पर था 

उसमे शास्त्र से बहुत ज्यादा प्रभाव , परंपरा या यदृच्छा इस प्रकार का था 

एक ही पुडी मे रसकल्प और आयुर्वेद भैषज्य कल्पना के कल्प संभवतः "एक समान मात्रा" मे देना, ये कौन से सूत्र सिद्धांत शास्त्र तत्व के आधार पर था , यह पूछने की उस समय हमने हिम्मत नही की 

जब वापस आये एमडी करके, तो खुद का पेट भरना, आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करना, अपने पांव पर खडे रहना... इसमे दस पंधरा साल चले गये !

तब तक बहुतों के प्रॅक्टिस मे मालिश स्वेदन वमन विरेचन के feel good, happening, spa treatment पॅकेजेस , दिवाली पर च्यवनप्राश उबटन अभ्यंग तेल बेचना और साल भर जैसे हो सके वैसे शतावरी कल्प बेचना ... ये शुरू हो चुका था 

और पहले का जो भेळ मिसळ चाट शेवपुरी जैसा , "दो अलग अलग शास्त्र, आयुर्वेद & रसशास्त्र के कल्प, एक साथ , एक ही पुडी मे बांध कर देने का व्यवहार था, वैसे ही चालू था"

लेकिन इसका भयानक तीव्र गती से अधःपतन तब हुआ, जब हर चीज को , शास्त्रीय नीतिमत्ता को दुर्लक्षित करके, आयुर्वेद के नाम पर पेशंट को बेचा जाने लगा !

जिसमे सबसे पहला था ... गर्भसंस्कार , जिसका इंट्रोडक्शन आयुर्वेद के बाहर की किसी व्यक्ति ने किया.

उसके बाद अनेक फ्लेवर के च्यवनप्राश और शतावरी कल्प का प्रचलन मार्केट में हुआ

उसके बाद सुवर्णप्राशन ...

फिर योगा ... फिर नाडी परीक्षा !!!

फिर बीच मे ही एक नया व्यवसाय आ गया की जो हम वॉलेंटरीली जूनियर्स को फ्री विनामूल्य टीका पढाते सीखाते थे ... वो शास्त्रीय गतिविधि, एकदम रेसिडेन्शिअल चार्जेबल पर कहने के लिए नॉन प्रॉफिट निवासी गुरुखूळ मे बदल गया 

और उसके बाद अचानक से पुरस्कार देने वाले सन्मान देने वाले सेमिनार देश मे और विदेशो मे, यह भी एक नया व्यवसाय सुरू हो गया है 

सुवर्ण प्राशन और गर्भसंस्कार के साथ साथ, गुरुखूळ सेमिनार वेबिनार के साथ साथ , कही पर भी की जाने वाली बस्ती विशेषता शिरोबस्ती , विद्ध के नाम पर ॲक्युपंक्चर, इंट्राविनस इंफ्युजन , सिद्ध पद्धती के वर्म को नामांतर करके मर्म थेरेपी के नाम पर , फिर योगा और नाडी को तो दोनो कंधो पर लेकर नाचते रहते ही है 

जो सबसे मुख्य आक्षेपार्ह बात है वो है , की आयुर्वेदिक मूळ भैषज्य कल्पना से जो "आत्यंतिक विसंगत विपरीत विलक्षण विघातक विषस्वरूप" है, ऐसे रसकल्प को धडल्ले से प्रयोग किया जाता है और ऐसे सारे भेळ मिसळ शेवपुरी दहीपुरी चाट स्वरूप के "संमिश्रित hybrid mixopathy adulterated उपचारों" को "आयुर्वेद उपचार के नाम से" अपने ही लोगों द्वारा peer (?dear) review किये गये तथाकथित इंटरनॅशनल जर्नल मे रिसर्च पेपर के नाम से पब्लिश किया जाता है, की जिस आर्टिकल का & जिस भेळ मिसळ रँडमली मिक्स्ड ॲडजुएंट सपोर्टिंग पॅरेलल ट्रॅडिशनल सो कॉल्ड आयुर्वेद थेरपी का प्रोटोकॉल के रूप मे मानव जाती के आरोग्य के लिए आगे जाके शून्य उपयोग है !

दूसरी ओर अकॅडमी लेवल पर तो इतना भयावह अराजक हो चुका है, कि कोई भी किसी भी स्थान पर कितने भी सीट का आयुर्वेद कॉलेज खोल रहा है. और उस कॉलेज में आयुर्वेद का विद्यार्थी , आयुर्वेद का शिक्षक , उसको अटॅच हॉस्पिटल का पेशंट , वहां का कॉलेज का पीजी, ड्रग ट्रायल्स ये सबकुछ हंड्रेड पर्सेंट मिथ्या / फेक on paper / sold हो सकता है और फिर भी रुकता नही है ... ये प्रतिदिन हर राज्य मे एक्सपोनेन्शियल गति से बढता ही जा रहा है !

ये अत्यंत खेदयुक्त आश्चर्य का दुर्व्यवहार और इस पर किसी का नियंत्रण नही है और इसमे होने वाले दुर्व्यवहार पर किसी को आक्षेप नही है , इसको रोकने के लिए किसी की इच्छा & प्रयत्न कुछ भी नही! सभी स्तरो पर ... समाज / पेशंट / ईश्वर / वैद्य / विद्यार्थी / उनके पालक ... इन सभी के लिये अहितकारक है अनिष्ट है विघातक है ... यह विचार तक किसी को नही आता है, दुर्भाग्यपूर्ण है !!!

Hindi Translation:


अस्वीकरण Disclaimer: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार सर्वथा सही, सटीक, पूर्णतया निर्दोष हैं — ऐसा लेखक का कहना नहीं है। यह लेख व्यक्तिगत मत, समझ और आकलन पर आधारित है, इसलिए इसमें कुछ कमियाँ, त्रुटियाँ या अपूर्णताएँ होना संभव है। इस संभावना को स्वीकार करते हुए ही यह लेख लिखा गया है।


English Translation:


Disclaimer: The opinions expressed in this article are not claimed by the author to be absolutely correct, precise, or flawless. This article represents personal understanding, interpretation, and perspective; hence, the possibility of certain shortcomings, gaps, or errors is acknowledged and accepted by the author while writing it.


डिस्क्लेमर Disclaimer : मूळ मराठी डिस्क्लेमर Disclaimer : या लेखात व्यक्त होणारी मतं, ही सर्वथैव योग्य अचूक बरोबर निर्दोष आहेत, असे लिहिणाऱ्याचे म्हणणे नाही. हे लेख म्हणजे वैयक्तिक मत आकलन समजूत असल्यामुळे, याच्यामध्ये काही उणीवा कमतरता दोष असणे शक्य आहे, ही संभावना मान्य व स्वीकार करूनच, हा लेख लिहिला आहे.