मर्म !!! ... आयुर्वेद की "और एक" लोकप्रिय संकल्पना 😇🙃
1.
फर्स्ट इयर पास करने के बाद, मर्म के बारे मे "फिरसे" आजतक, कभी पढा!
"फिरसे" कभी सोचा ?!
2.
मर्मगत व्याधी सुख साध्य नही होता है, प्रॅक्टिस मे ... ऐसे कभी, सद्य प्राण हर मर्म छोड कर, किसी मर्म के बारे मे अनुभव आया??? (अपवाद, जानु गुल्फ आदि संधियों में होने वाले व्रण या शोथ.)
3.
विटप मर्म जो वंक्षण के अंतराल मे होता है ... तो क्या ये मर्म स्त्रियों में भी होता है?
अगर, नही होता है , तो क्या स्त्री शरीर मे मर्म की संख्या 105 होती है?
अगर, विटप यह एक मर्म है, तो वृषण यह मर्म क्यू नही है ??
4.
अगर आवर्त और अपांग ये मर्म है, तो उससे कई ज्यादा गुना डेलिकेट कनीनक यह मर्म क्यूं नही है ??
5.
अगर शिर में 37 मर्म है और दातों की वेदना सर्वाधिक तीव्र असह्य होती है, तो दंत या दंतमूल मर्म क्यूं नही है?
6.
अगर कंठ यह प्राणायतन है, तो कंठ यह मर्म क्यूं नही है?
7.
फुफ्फुस यह मर्म क्यू नही है ?
8.
वृक्क & यकृत् ये मर्म क्यूं नही है?
9.
ॲक्युट पँक्रियाटायटीस यह प्रायः मृत्युकारक हो सकता है, तो पॅन्करियाज् यह मर्म क्यू नही है?
10.
क्या किसी ने, आज तक, एक भी पेशंट, क्षिप्र मर्माघात से आक्षेपक होकर, मृत्यू प्राप्त करता हुआ देखा है?
11.
क्या इन्द्रबस्ति लोहिताक्ष आणि & उर्वी इन मर्माघातों को, किसी पेशंट ने कभी रिपोर्ट किया ...
या
आपने आपके क्लिनिक मे कभी देखा क्या?
12.
कटीकतरुण मर्माघात से पांडू हो गया और हीनरूप शोणितक्षय होकर मर गया !
ऐसा एक भी पेशंट आपने कभी देखा या सुना ?
13.
वाम बृहती मर्म यह हार्ट के एक्झॅक्टली पोस्टेरियर या बेस ऑफ द हार्ट यहां पर आता है ... तो वहा से आघात से "रक्त स्रवण & मरण" यह ठीक है ... किंतु दक्षिण बृहती मर्म से अतिरक्तस्राव होकर मृत्यू प्राप्त होना यह संभव है. ऐसा अनुभव /दर्शन /श्रवण किसी ने किया है?
14.
क्या पार्श्वसंधी मर्म "एक्झॅक्टली" कहां पर है , कोई बता सकता है?
15.
पुरुषों मे स्तनमूल स्तनरोहित इन मर्म का लोकेशन, स्त्रियों के तुलना मे आसानी से निश्चित हो सकता है. किंतु स्त्रियों में इसका लोकेशन आयडेंटिफाय "हो भी" सकता है ?
16.
क्या स्तनरोहित मर्म से रक्तस्राव से और स्तनमूल मर्म से कफ पूर्ण उरस् होकर मरा हुआ, एक भी पेशंट, किसी ने सुना या देखा है, कभी आजतक??
स्पेशली वाम की तुलना मे दक्षिण की और मर्माघात से??
17.
चरकोक्त त्रिमर्म से शिरोमर्म मे तो, 37 मर्म समाविष्ट है!!!
19.
सुश्रुत के इन 37 मे से कुछ सद्य प्राण हर है, हृदय स्वयं सद्यःप्राणहर है, जो बस्ति = ब्लॅडर है वो सद्यः प्राण हर मर्म हो भी सकता है!???
पूरी ब्लॅडर निकाल देने के बाद या बायपास करके युरीन बॅग लगाने के बाद भी पेशंट कई महिनों तक/ सालो तक जिवंत रहता है ... तो क्या बस्ति सचमुच त्रिमर्म या मर्म भी है ??
20
क्या त्रिमर्मो में, शिर हृदय के बाद ... वृक्क या यकृत् या नाभि इसका समावेश होना अधिक उचित होगा !!!
21
ओपन हार्ट सर्जरी हो चुकी है, हृदय ट्रान्सप्लांट हो चुका है , हृदय की रक्तवाहिनी में स्टेन्ट डाले जा चुके है, हृदय की व्हॉल्व बदलने की सर्जरी होती है ... तो क्या फिर भी हृदय सद्य प्राणहर मर्म है?? ... क्या ये मर्म सचमुच मर्म होते भी है???
22.
न खलु मांससिरास्नाय्वस्थिसन्धि "व्यतिरेकेण" अन्यानि मर्माणि भवन्ति, "यस्मान्नोपलभ्यन्ते" ... *इतना दृढ विश्वास होने के बावजूद , इतना स्ट्राँग आत्मविश्वास होने के बावजूद , वाग्भट ने सुश्रुतोक्त पाच मर्म प्रकारों मे धमनी मर्म जोड ही दिया ... तो सुश्रुत को , जो उपलब्ध नही हुआ, ऐसा मर्म वाग्भट को कहा से उपलब्ध हुआ ?*
23.
और, यदि सुश्रुत के पाच मर्म प्रकारो मे, वाग्भट ने धमनी मर्म का नया प्रकार जोडा ...
तो फिर ...
स्रोतो मर्म लोकेट करना संभव नही है क्या?
स्रोत मर्म नाम दे सकते है ... संख्या बढाये बिना, 107 रख कर ही वाग्भट ने उसी मे धमनी मर्म जोड दिये और मर्म के प्रकार के, संख्या & नामों को थोडा ॲड्जस्ट किया ...
ऐसेही ... इन 107 मर्म मे ही और एक प्रकार स्रोतो मर्म जोडकर, कुछ मर्म स्रोतो मर्म, नाम से आयडेंटिफाय करना संभव है क्या ??
24.
अगर है तो कौन से मर्म को स्रोतो मर्म कहना चाहिए???
25.
... ऐसे ही , अगर मांसमर्म अस्थिमर्म है ... तो मज्जा मर्म, रक्त मर्म ... ये भी संभव होने चाहिए !
रस मर्म / त्वक मर्म, शुक्र मर्म ये शरीर मे क्यूं नही प्राप्त हुये/दिखाई दिये ?? ...
26.
इन प्रकारों मे कौनसे मर्म का समावेश हो सकता है?
27.
क्या सचमुच स्थपनी और उत्क्षेप इन मर्म मे शल्य कई दिनों तक वैसे ही रहता है और शल्य को ऐसे स्थिती मे निकाल दिया जाये तो मृत्यू प्राप्त होता है, ऐसा एक भी केस , पूरे विश्व मे किसी ने भी कभी सुना है देखा है अनुभव किया है??
28.
चतुर्विधा यास्तु सिराः शरीरे प्रायेण ता मर्मसु सन्निविष्टाः ।
मर्मो के स्थान पर चतुर्विध सिराओं का सन्निपात होता है !!!
क्या सचमुच संभव है की वातदुष्ट पित्तदुष्ट कफदुष्ट आर दोषों से अजुष्ट = शुद्ध रक्त वहन करने वाली सिरायें , किसी भी एक मर्म के स्थान पर "आयडेंटिफाय कर सके, अलग अलग एनटीटी" = स्वतंत्र शरीर भावके रूप मे?
29.
एतत्प्रमाणमभिवीक्ष्य वदन्ति तज्ज्ञाः शस्त्रेण कर्मकरणं परिहृत्य कार्यम् ।
पार्श्वाभिघातितमपीह निहन्ति मर्म तस्माद्धि मर्मसदनं परिवर्जनीयम्
या 107 मर्म को अर्धांगुल से चतुरंगुल प्रमाण क्षेत्र मे शस्त्र से बाधित न करे, ऐसा सुश्रुत का आदेश है! किंतु आज की सर्जरी मे इन 107 मर्म का कोई भी विचार दिखाई नही देता है और उन पर धडाधड शस्त्र चला कर भी मर्म भेदके कोई भी लक्षण दिखाई नही देते !!!
ये तो हृदय को भी ट्रान्सप्लांट कर चुके है ... हृदय की ओपन हार्ट सर्जरी कर चुके है , क्रेनियॉटोमी कर चुके है ... तो इसलिये मर्म और उनके मर्माघात के लक्षण, इनकी वास्तविकता संदेहास्पद है!!!
29A.
🤔⁉️
मर्म यह शारीर विषयक महत्वपूर्ण विषय है ,
जिसे शल्य का विषयार्ध कहा जाता है,
ऐसे मर्मों के 5 प्रकारों का वर्णन जैसा सुश्रुत मे है, "वैसे ही" अष्टांग संग्रह में है, जो वाग्भट ने लिखा है. अष्टांग हृदय, जो वाग्भट ने ही लिखा है, उसमे मर्म के प्रकार 5 नही, अपितु अष्टांग हृदय मे, धमनी मर्म, यह "और एक नवीन 6th प्रकार" है, जो सुश्रुत मे उल्लेखित नही है, ऐसे मर्म वर्णन किये है.
किंतु ऐसा करते समय उसने पहले के 5 प्रकार के 107 मर्मों का री_डिस्ट्रीब्यूशन किया है !
ऐसा नही की, 9 धमनी मर्म गिनकर ११६ मर्म बताये!!
साथ ही सुश्रुत के जो पहले पाच प्रकार है उन पाच प्रकारो मे उल्लेखित मर्मोंका भी प्रकारान्तरण = मर्म के प्रकार मे बदलाव किया है.
अष्टांगहृदय कार वाग्भट ने स्रोतस् मूलविवरण नही किया. प्रत्येक स्रोत के मूल नही बतायें. वही अष्टांग संग्रह में 2 क्या तीन-तीन मूल बताये है! (अर्थात वह चरक और सुश्रुत इन दोनों के वर्णन का ॲडिशन है मेल है )
(तो एकही शरीर भाव के वर्णन मे इतना विरुद्ध दृष्टिकोन होने वाले वाग्भट, दो अलग अलग व्यक्ती थे??? या एकही???
अच्छा इतिहास मत पूछो ...
Back to शारीर
अगर सूत्रस्थान मे श्रेष्ठ है ऐसा जिसे कहा जाता है , उस अष्टांग हृदय कार को धमनी मर्म, शरीर मे मिल सकता है, तो संग्रह कार & शारीर में जिसे श्रेष्ठ कहा जाता है उस सुश्रुत को क्यू नही मिला/दिखा???
और अगर सिरा मांस स्नायु अस्थि संधि ऐसे मर्म हो सकते है, धमनी मर्म भी हो सकता है ... तो *स्रोतो मर्म शरीर मे क्यू नही प्राप्त हुआ/दिखाई दिया?*,
रस मर्म / त्वक मर्म, शुक्र मर्म ये शरीर मे क्यूं नही प्राप्त हुये/दिखाई दिये ?? ...
आज डिसेक्शन के इतने अच्छे उपकरण और सुविधाये उपलब्ध है , तो आज ... न्यू रिसर्च/ युगानुरूप संदर्भ इसके अनुसार, शरीर मे "आज, नये से" *स्रोतो मर्म* आयडेंटिफाय किया जाना चाहिए ...
30.
हां ... संख्यात्मक प्रश्न एम सी क्यू चर्चा मनोरंजन एंटरटेनमेंट सेमिनार वेबिनार लेक्चर इनके लिये, ये मर्म विषय बहुत ही अच्छा, विस्तृत और अनेक विकल्प वाला है ... इसमे कोई शंका नही है
31.
एक मर्म चिकित्सा नाम का प्रचार आज कल चल रहा है , वस्तुतः वह सिद्ध चिकित्सा पद्धती से "वर्म"चिकित्सा को "चुरा कर लाया गया है" और उसका नाम बदलकर मर्म चिकित्सा रखा है ... जिसका आयुर्वेद मे उल्लेखित मर्म शारीर से कुछ भी संबंध नही है !!
ऐसे चोरी चकारी तो अभी चल हि रही है.
जैसे ॲक्युपंक्चर को "चुराकर विद्ध कहना",
संहिता मे जैसे नही है , ऐसे अग्नि कर्म करना , जो diathermy के रूप मे है ...
तो सिद्ध मे जो वर्म है उनकी संख्या तथा प्रकार आयुर्वेदोक्त मर्म से भिन्न है! इसलिये मर्म चिकित्सा नाम पर मार्केटिंग या प्रॅक्टिस करना, यह अनैतिक है चोरी है और समाज के प्रति प्रतारणा है
32.
जैसे कायचिकित्सा मे बस्ति को अर्ध चिकित्सा कहा गया है वैसे ही
मर्म को *"शल्य का विषय अर्ध"* कहा गया है.
मूल प्रश्न यह है की सुश्रुत संहिता मे पूरी संहिता मिलाकर ऐसे कितनी सर्जरीज है???
और जो भी सर्जरीज है उसमे ऐसी कितनी रिस्की है महत्वपूर्ण है लाईफ सेविंग है ???
33.
शल्य के साथ साथ स्मरण हो जाता है शालाक्य का. शालाक्य का अर्थ है की शलाकाओं से उपचार करना.
शलाकायाः कर्म शालाक्यं, तत्प्रधानं तन्त्रमपि शालाक्यम्।
अष्टाविंशतिः शलाकाः
सुश्रुत सूत्र अध्याय साथ मे शलाकाओं का जो वर्णन संख्या और उनका प्रयोजन ॲप्लिकेशन इसका वर्णन सुश्रुत सूत्र 7 मे होता है , वहा पर सर्जरी के दृष्टि से एक भी उपयोग शालाक्य के क्षेत्र में शलाका का नही बताया है
28 शलाका का कम से कम, एक एक भी उपयोग प्रयोग कही पर किया है, ऐसे मिनिमम 28 तो रेफरन्स मिलने चाहिये ना ? अगर पूरे शालाक्य के 26 अध्याय में दो तीन भी प्रयोग शलाका के नही मिलते है, तो उसको "शालाक्य" कहने का प्रयोजन उद्देश अर्थ सुसंगती शास्त्रीयता है कहा???
ओज स्रोत मन आत्मा आवरण धात्वग्नि रसधातु दोषों के पाच प्रकार कला त्वचा सारता अंजलीप्रमाण अंगुली प्रमाण प्रकृती परीक्षण नाडी परीक्षण, रसकल्प प्रयोग करने वाले अम्लक्षार मे उलझी पंचभूत चिकित्सा ... इन सभी आयुर्वेदोक्त लोकप्रिय कल्पनाओं के समान ही ... *"मर्म"* यह भी एक अस्तित्वहीन असिद्ध कल्पनारम्य वाग्वस्तुमात्र आकाशपुष्प गगनारविंद आश्रयासिद्ध संकल्पना है ... वास्तविक तथ्य सत्य सार्थक कुछ भी नहीं!
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