Monday, 4 December 2023

कल्प'शेखर' भूनिंबादि एवं शाखाकोष्ठगति, छर्दि वेग रोध तथा ॲलर्जी

 कल्प'शेखर' भूनिंबादि एवं शाखाकोष्ठगति, छर्दि वेग रोध तथा ॲलर्जी

लेखक : Copyright © वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. म्हेत्रेआयुर्वेद. MhetreAyurveda

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भूनिंबादि क्वाथ का उल्लेख योगरत्नाकर के अम्लपित्त अधिकार मे आता है. (चरक संहिता मे उल्लेखित ग्रहणी अधिकार का भूनिंबादि चूर्ण एक अलग योग है. उसके द्रव्य अलग है.)

वैसे योगरत्नाकरोक्त भूनिंबादि क्वाथ (अम्लपित्त अधिकार) इस योग के पहले,

शोधन चिकित्सा और शमन चिकित्सा के अनेक योग आते है. 

इसी अम्लपित्त रोग के अधिकार में रसकल्प की सूची में केवल तीन रसकल्प है, जिसमे आयुर्वेद जगत का सर्वाधिक लोकप्रिय सूतशेखर है. सूतशेखर को तो अथाह लोकप्रियता है और अम्लपित्त छोडकर न जाने कितने लक्षण अवस्थाओं में व्याधियों में अधिकारो में और कितने अन्य योगों के साथ सूतशेखर का प्रयोग होता है. सूतशेखर के कई अनाप्त अनधिकृत व्हर्जन भी बाजार मे प्राप्त है. जैसे, रौप्य सुवर्ण सूतशेखर, सुवर्णभस्म के बिना बना हुआ साधा सूतशेखर ... और इसके भी "अच्छे रिझल्ट" लोगों को आते है, ऐसा क्लेम किया जाता है. 

भूनिंबादि क्वाथ योग मे केवल आठ (8) हि वनस्पती द्रव्य है

भूनिंब निंब त्रिफला पटोल वासा अमृता पर्पट मार्कव

 इन द्रव्यों की उपलब्धता की सुनिश्चिती होती है और इनका अगर संयोग देखा जाये, तो वात पित्त कफ तीनो प्रकार के दोष स्थिती मे, विशेष रूप से कफ पित्त प्रधान दोष स्थिती मे, क्लेद प्रधान अवस्था मे, इसका यशस्वी प्रयोग संभव है.

विगत 6 वर्ष मे, 10+ किलो = 40000+ *सप्तधा बलाधान भूनिंबादि टॅबलेट* का प्रयोग करने के बाद यह लेख लिख रहा हू.


जैसे की रसशास्त्र यह आयुर्वेद का भाग हि नही है, इस निर्धारित संकल्पना के साथ हम प्रॅक्टिस करते है और इस कारण से अम्लपित्त के आने वाले पेशंट मे किसका प्रयोग करे, इसका सर्वप्रथम उत्तर भूनिंबादि है.


विशेष रूप से देखा जाये, तो सूतशेखर को मार्कव की हि भावनाये है (जो भूनिंबादि क्वाथ का अंतिम द्रव्य है) और सूतशेखर के बाकी के सारे द्रव्य तो उष्णवीर्य है और वे अम्लपित्त को कैसे शमन करते है, ये मेरे आकलन के परे है.😇

उदरदाह, अम्लिका, कंठदाह, उरोदाह, शिरःशूल, छर्दि से उपशम मिलने वाला शंखशूल, मायग्रेन, छर्दि, उदरशूल, तिक्तास्यता, अम्लास्यता, प्रसेक, हृल्लास ऐसे अम्लपित्त से संबंधित, प्रायः पेशंट के जो प्रेझेंटिंग कंप्लेंट होते है, उसमे इस टॅबलेट का पेशंट की अवस्था एवं बल के अनुसार, दो तीन चार या छ टॅबलेट का, एक बार का डोस, इस मात्रा मे अगर दिन मे, दो तीन या चार बार, भोजनोत्तर, प्रयोग करे तो, कुछ मिनटो से एक घंटे के भीतर तक, सभी लक्षणों में प्रायः उपशम प्राप्त होता हि है.


भूनिंबादि क्वाथ के सभी घटक प्रायः तिक्त रसके है,  इसीलिए वे अम्ल के विरोधी है. अम्ल और तिक्त ये परस्पर विरोधी रस है. (मधुर और कटू तथा लवण और कषाय, ये भी परस्परविरोधी रसों के युगुल है. ऐसा चरक विमान 1 तथा अष्टांग संग्रह सूत्र 23 मे उल्लेखित है)

मार्केट मे भूनिंबादि काढा नाम से जो प्रवाही औषध मिलता है, वह काढा क्वाथ कषाय न होकर, आसव अरिष्ट इस प्रकार का अल्कोहोल स्वरूप अम्ल द्रव पदार्थ है.  अगर काढा के नाम से अल्कोहोल आसव अरिष्ट देंगे, तो अम्ल विपाक बढकर अम्लपित्त वृद्धिंगत हि होता है. क्यूंकि मद्य अम्ल में श्रेष्ठ है

प्रकृत्या मद्यमम्लोष्णमम्लं चोक्तं विपाकतः ।

सर्वेषां मद्यमम्लानाम् उपर्युपरि तिष्ठति ॥

श्रेष्ठमम्लेषु मद्यं च ॥

मद्यस्य अम्लस्वभावस्य

ऐसा चरक संहिता मे लिखा है

इस कारण से काढा स्वरूप मे हि, चरकोक्त पंचविध कषाय कल्पना के अनुसार पेशंट को औषध का लाभ हो, इस दृष्टी से यह सप्तधा बलाधान टॅबलेट बनाये है. ये टॅबलेट एक कप गरम पानी मे 10 मिनिट तक रखेंगे, तो चरकोक्त मात्रा मे क्वाथ हि बनता है. इस विषय मे चूर्ण की मात्रा , क्वाथ की मात्रा और इनका समायोजन ऍडजेस्टमेंट सप्तधा बलाधान टॅबलेट निर्माण मे कैसे होता है, इसका विस्तार से मूलभूत संकल्पना स्वरूप मे वर्णन, इसके पूर्व का प्रकाशित लेख इन्स्टंट पेन किलर शीघ्र वेदनाशमन इस लेख मे अंत मे दिया हुआ है; उसे उत्सुक जिज्ञासू सन्मित्र वैद्य अवश्य पढे. उसकी लिंक यहा पर दी हुई है

https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/10/blog-post.html

शाखा कोष्ठ गति एवं छर्दि वेगरोध:

१. 

कुष्ठ, अम्लपित्त और शीतपित्त का वर्णन योग रत्नाकर में एक दूसरे के बाद हुआ है. एवं च

२. 

वेगरोधके वर्णन मे छर्दि वेग रोध के लक्षण में विसर्प, कुष्ठ कोठ और हृल्लास इनका उल्लेख प्राप्त होता है. तथा

3.

वमन के द्रव्य देखेंगे तो, अम्लपित्त मे पटोल निंब तथा शीतपित्त मे पटोल निंब *और वासा* इनका उल्लेख हुआ है. कोल्हटकर सर का कहना था कि शीतपित्त यह शाखागत क्लेद है , जिसको कोष्ठ मे लाने के लिए, अगर पटोल निंब ये दो समान द्रव्य अलग किये जाये तो, केवल वासा हि ऐसा द्रव्य है, जो शाखा गत क्लेद प्रधान दोषोंको कोष्ठ मे लाने का सामर्थ्य रखता है. 


शीतपित्त = शाखा गत अम्लपित्त 

अगर लक्षणों को देखा जाये , तो शीतपित्त एक दृष्टी से, शाखा गत अम्लपित्त है. क्लेदप्रधान दोष संचिती त्वचा से बाहर आने का प्रयास करती है, क्योंकि वहा पर नया मुख तो निर्माण नही हो सकता, जिसके द्वारा वमन हो सके! क्लेद प्रधान उत्क्लिष्ट किंतु तिर्यग्गत शाखा गत दोष बाहर आ जाये, तो हृल्लास यह कोष्ठ का लक्षण, शाखा मे कंडू के रूप मे प्रतीत होता है!

अम्लपित्त = कोष्ठगत शीतपित्त 


वही अम्लपित्त, यह कोष्ठगत शीतपित्त है, जैसे शीतपित्त में कंडू होती है, किंतु आप अपने मुंहमे हात डालकर नीचे आमाशय तक जाकर वहा पर खुजली नही कर सकते, इस कारण से कंडू यह शाखागत लक्षण, कोष्ठ मे हृल्लास के रूप मे प्रतीत होता है !


तो अगर इन तीनो मुद्दों को देखा जाये की 

1. रोगाधिकार का क्रम 

2. शोधोनोपचार के द्रव्य तथा 

3. शाखा गत लक्षण और कोष्ठगत लक्षण जो क्लेदप्रधान दोष की उपस्थिती से निर्माण होते है.

तो भूनिंबादि ऐसे स्थितियों में शीघ्र (fast) एवं दीर्घकालीन(sustainable) उपशम तथा अपुनर्भव (non recurrence) तक का परिणाम देने मे सक्षम है, अर्थात उसकी मात्रा तथा उपचार कालावधी, यह रुग्ण की स्थिती और रोगदोष के बल के साथ हि, देश काल इस पर यह परिणाम लाभ प्राप्त होना निर्भर करता है 


ॲलर्जी :


ॲलर्जी को अँटी हिस्टामिनिक के रूप में उपचार दिये जाते है, तो प्रायः जिनको अस्थमा या ऱ्हाईनायटिस और अर्टिकॅरिया है, उनको अँटी हिस्टामिनिक प्रकार की औषधी दी जाती है. ऐसे कफ पित्त प्रधान क्लेदप्रधान पृथ्वी जल प्रधान अवस्थाओं में, भूनिंबादि, मूलगामी उपचार रूप से दोषशमन करने की क्षमता के कारण एक अपुनर्भवकारी उपशम देने मे सक्षम होता है. आपको अन्य दो तीन चार द्रव्य या कल्पों का संयोग करने की आवश्यकता नही होती है , इतना यह अकेला कल्प स्वयं के सामर्थ्य के कारण उपशम देने मे सक्षम है.


हमे अगर हेतु स्कंध और लक्षण स्कंध का (दोष गुण रस एवं) महाभूत परिभाषा मे उचित रूप से आकलन हो गया है, तो तद्विपरीत औषध स्कंध का आयोजन करना, यह सुकर होता है. इसी कारण से अम्लपित्त शीतपित्त क्लेद प्रधान कफपित्त प्रधान दोषावस्था तथा ॲलर्जी के रूप मे जाने जाने वाले अस्थमा ऱ्हाईनायटिस और अर्टिकॅरिया इन मे भूनिंबादि का सफल प्रयोग अनुभव कर सकते है


साथ हि अम्लपित्तजन्य शाखा गत जो लक्षण है, जिसमे कोठ उदर्द शीतपित्त कंडू विदाह विस्फोट और कुछ त्वचारोग (शुष्क या स्रावी, दोनो प्रकार के, जिसे प्रायः लोग अर्टिकेरिया या फंगल इन्फेक्शन) के रूप मे डायग्नोस करते है, ऐसे लक्षणों मे भी भूनिंबादि का प्रयोग सफल होता है.


उसके साथ अधोग (अम्ल)पित्त के रूप मे, यदि गुदशूल गुददाह पाक कंडू गुदरौक्ष्य कृमि मूत्रदाह...


एवं च ज्वर प्रचिती अंगदाह त्वचादाह तथा नेत्रदाह मुखपाक हस्तपादतलदाह ऐसे सर्वांगगामी लक्षणों में भी भूनिंबादि का सफल प्रयोग हो(सक)ता है.

गर्भिणी छर्दि एवं गर्भिणी हृल्लास में भी भूनिंबादि अत्यंत अल्प समय मे उपशम देता है.


मर्फीज् साइन यह सर्जिकल इंडिकेशन ना हो, तो गाॅल ब्लॅडर स्टोन में भी उपशम होता है. प्रायः तीन महीने के उपचार के बाद, सोनोग्राफी में दिखने वाला 2.7 सेंटीमीटर अर्थात सत्ताईस एम एम (27mm) तक का गाॅल स्टोन भी नष्ट होता है


भूनिंबादि में प्रायः सभी द्रव्य तिक्त रस प्रधान है अर्थात वायु आकाश प्रधान है, इस कारण से शोषणे रूक्षः इस रूप मे, क्लेद प्रधान पृथ्वी जल प्रधान ऐसे भाव पदार्थों का एवं तज्जन्य लक्षणों का उपशम भूनिंबादि से अत्यल्प समय मे होता है.


थोडी अतिशयोक्ती भी मान लेंगे तो चलेगा, किंतु जहा जहा सूतशेखर काम करता है, वहा वहा भूनिंबादि की सप्तधा बलाधान टॅबलेट काम करती है. 

यदि पारद गंधक धत्तूर बचनाग ऐसे विषद्रव्यों के द्वारा आरोग्य(?) की प्राप्ती हो सकती है, 

यदि सुवर्णभस्म बिना डाले भी सादा सूतशेखर से अगर "अच्छे परिणाम" मिलते है(?), ऐसा "क्लेम" किया जा सकता है, 

तो इन आठ अमृत समान औषध द्रव्यों के योग अर्थात भूनिंबादि = *कल्प'शेखर' भूनिंबादि* के सप्तधा बलाधान टॅबलेट द्वारा आपको मनचाहा परिणाम प्राप्त होना निश्चित हि है. 

अल्पमात्रोपयोगी स्यात्

अरुचे: न प्रसंग: स्यात् ।

क्षिप्रम् आरोग्यदायी स्यात्

*सप्तधा भाविता वटी* ।।


आईये, हम सभी मिलकर, "रसशास्त्र विरहित" आयुर्वेद को, संहितोक्त आयुर्वेद को, अपनाये,अंगीकार करे, स्वीकार करे, अवलंब करे, अनुनय करे, प्रसारित करे प्रस्थापित करे.


ये कल्प'शेखर' भूनिंबादि के सप्तधा बलाधान 6 टॅबलेट गरम पाणी के साथ या चाय के साथ या केवल पानी के साथ भी अगर ली जाये , या चबाकर खाकर उस पर पानी पिया जाये, तो भी पेट मे जाकर, कुछ ही समय में , उसका संहिता को जैसे अभिप्रेत है, वैसे क्वाथ बन जायेगा. क्योंकि इन टॅबलेट्स की हार्डनेस और डिसिंटिग्रेशन टाईम उस प्रकार से निश्चित किया हुआ रहता है. और जैसे पहले बताया, वैसे इस प्रकार की सप्तधा बलाधान टॅबलेट का सेवन उचित मात्रा मे करने के बाद, कुछ हि मिनिट से 1 घंटे की कालावधी मे, पेशंट को अम्लपित्त संबंधित लक्षणों के उपशम का अनुभव प्रायः आता है. ऐसा हमे पिछले 6 सालो मे , 10+ किलो = 40000+ टॅबलेट के उपयोग के बाद ज्ञात हुआ है.


अभी कल्प'शेखर' भूनिंबादि के सप्तधा बलाधान टॅबलेट , यह कोई मेरा एकाधिकार या मेरा अपना संशोधन /डिस्कवरी /रिसर्च /पेटंट ऐसा कुछ भी नही है, जिन्हे इस प्रकार की सप्तधा बलाधान टॅबलेट का अनुभव लेना हो, तो वे स्वयं इस प्रकार का प्रयोग करके देखे. किंतु इसके केवल चूर्ण के अपेक्षित रिझल्ट नही आते है. आप सप्तधा बलाधान की टॅबलेट बनाकर हि इसका प्रयोग करे. जिन्हे प्रयोग के लिए / अभ्यास की दृष्टि से / शास्त्र अनुभव के रूप मे, इस प्रकार की टॅबलेट का उपयोग करके देखना है, वे हमे संपर्क कर सकते है या अपने यहां स्थानिक स्तर पर स्वयं सप्तधा बलाधान टॅबलेट का निर्माण करके उसका उपयोग करके इस अनुभव को स्वयं ले सकते है. हमने इस भूनिंबादि क्वाथ के सप्तधा बलाधान टॅबलेट का महाराष्ट्र शासन की औषध निर्माण रजिस्ट्री में विधीपूर्वक रजिस्ट्रेशन किया हुआ है


डिस्क्लेमर/Disclaimer : उपरोक्त कल्प क्वाथ योग टॅब्लेट का परिणाम; उसमे सम्मिलित द्रव्यों की क्वालिटी, दी हुई मात्रा, कालावधी, औषधिकाल, ऋतु, पेशंट की अवस्था इत्यादि अनेक घटकों पर निर्भर करता है.

अस्वीकरण/डिस्क्लेमर/Disclaimer : लेखक यह नहीं दर्शाता है कि इस गतिविधि में व्यक्त किए गए विचार सर्वथैव योग्य अचूक बरोबर निर्दोष होते हैं। चूँकि यह लेख एक व्यक्तिगत मत, आकलन एवं समझ है, इसलिए संभव व मान्य है कि, इस लेख में कुछ कमियाँ और दोष हो सकते हैं।

Copyright © वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. म्हेत्रेआयुर्वेद. MhetreAyurveda

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Saturday, 25 November 2023

Get rid of the method of making Ksheerapaaka , if you accept Sugar Kalpa granules

 

Get rid of the method of making Ksheerapaaka , if you accept Sugar Kalpa granules

 

Copyright © Vaidya Hrishikesh Balkrishna Mhetre. MD Ayurveda MA Sanskrit

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Ksheerapaaka is a very effective and productive medicine formulation (Bhaishajyakalpana)

 

1.

In Charaka Samhita Chi.28, Vaatavyaadhi Chikitsa, in the treatment of Hrudayagata Vaata, *Shaaliparnee Ksheerapaaka * is mentioned. 

 

2 *Yashti Kashmari Siddha Ksheerapaaka* is mentioned in Garbha Shosha (IUGR) & Baala Shosha (emaciation). 

 

Ksheerapaaka is used in many other conditions.

 

3.

Even in Asthi Kshaya, there is *Tikta  Ksheerapaaka *.

 

4.

But making Ksheerapaaka is not that easy in practice.

It is time consuming and also a little tedious.

 

If a lesser water evaporates, the milk gets diluted.

 

If evaporation increases, the quantity of milk reduces.

 

So making this proportionate Ksheerapaaka and giving enough time and attention to it, is not that easy.

 

5.

What's more, this medicinal concept (pharmaceutical preparation = Bhaishajyakalpana) of Ksheerapaaka; It is also not possible to market/sell like Aasava Arishta Taila, Ghruta Leha, Tablets like Guggulu… or by adding preservatives, packing, transporting, etc.

 

Ksheerapaaka is the Bhaishajya kalpanaa of using *sadya prayog/instant use/fresh administration* like all other the Panchavidha kashaaya kalpanaa

 

6. The effectiveness of Ksheerapaaka is very impressive. 

 

As I mentioned above, in many heart disease patients who are very weak or having dyspnoea on exertion, Shaaliparnee Ksheerapaaka effect/results are visible in just a week... and immediate relief comes within two to three days. 

 

Despite the LVEF being only twenty percent (20%), an old lady who was short of breath even while walking four steps at the age of eighty (80) years, could walk a hundred meters after just three-four days and After 1.5 month,

she walked one kilometre, and that too faster than her young grand-daughter!!!

 

But the surprising (& factual) thing is that, when 2D ECHO was repeated again, the LVEF was 20% only. No Tall Claims! 🤞

So clinically, rapid improvement can be experienced in many patients of this type with Ksheerapaaka.

 

7. Everyone has experienced the benefits of Tikta Ksheerapaaka in many Asthi-Kshaya patients [such as L5-S1 degeneration, slipped disc, disc bulge, AVN, sciatica, spondylosis, knee degeneration, ACL, osteoarthritis].


This benefit, *even without giving a single Basti*, is observed in one Mandala only i.e. 42 days i.e. 6 weeks.


Such quick results can be obtained from Yashti Guduchi Ksheerapaaka or Panchatikta Ksheerapaaka ,

this is the experience of last twenty-five 25 years and these results are of Apunarbhava i.e. non-recurrence type.

 

In the last twenty-five 25 years, there have been experiences of more than 1800+ such cases,

many of which have had their surgical operations cancelled


and the patients who were cured twenty-two years ago are still fine


and even today those patients, along with others, Keep referring such new patients continuously. 

 

The patient who is lying on the bed, Those whose Apaana kshetra kriyaa (defecation and urination) are going on in bed, with the help of other persons also, can be on their own feet within forty-two (42) days or maximum eighty-four (84) days (6 to 12 weeks).


After walking, he can  climb a two-storey of stairs, & can come down... and starts doing all his daily routines with ease. The experiences of many such patients have been coming to us for many years.

 

8.

And those children who repeatedly/frequently/always have some complaint about their health,

or do not gain weight, are lean & thin, have muscle wasting

and/or foetus having IUGR fetal atrophy,

in such a situation *Yashti Kashmari Ksheerapaaka* gives the expected benefits in a very short period of time. The expected results are visible only in the next sonography done after four or six weeks.

 

9. Not only this, even in such difficult conditions, Guduchi Ksheerapaaka gives very wonderful results.


If in the seventh or eighth month of the pregnancy, the movement of the fetus (quickening) becomes unstable/less/reduces/stops in the womb,

then also *Yashti Saarivaa Kalpa/ Yashti Kashmari Kalp* is effective.


Quickening re-occurs in just 24 hours, then With this, the internal movement of the fetus starts again, many pregnant women have had such experience as our patients.


The mother of one of the pregnant women is herself a gynaecologist who owns a maternity hospital.

 

9A.

In case of intrauterine condition like placental insufficiency, by treating it quickly with a Mrudu yet Veeryavaan drug like Ksheerapaaka, the expected favorable results are achieved, because it is necessary to treat the pregnant woman with such mrudu drug, this is what the Ayurveda Samhitaa say.


See the following Facebook link, search Facebook for BT & AT Reports or search Placental Insufficiency and see MhetreAyurved's post in the posts” tab.

👇🏼

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10. *Yashti Ksheerapaaka* with Laksha or Yashti Laksha tablets are very effective in Bhagna/fracture also.


Along with *Yashti Ksheerapaaka * in Bhagna, *Yashti Guduchi Ksheerapaaka * or *Only Guduchi Ksheerapaaka * or *Panchatikta Ksheerapaaka *, all these prove to be satisfactorily beneficial as per the condition.

 

11. 

But as said before, in such a way, by stopping the fire at the right time,


with proper/exact amount of milk left, all the water evaporates and only the milk containing,


the extract of the medicinal substance remains completely,


this is an artistic, technical and time-consuming process.


There is a skilled but tedious method.

 

12. Therefore,

one can get the benefits of this nectar-like (Amruta Samaana) medicine called "Ksheerapaaka ", but it is a difficult method of preparing it ... and


it does not have transportability;

👇🏼

Eliminating these defects, we are writing this article with a new idea,

that the same amount of medicinal extract which is available in 100 ml of milk in Ksheerapaaka


in plain/normal milk,

If sugar kalpa = granules  (like Shatavari kalpa is prepared) of the Aushadhi dravya from which Ksheerapaaka is to be made,


is added in proper quantity (appropriately proportionate quantity of grams or volume),


then the extract of that same Aushadhi dravya will come into the milk,


such arrangements for this purpose, Can be made.

 

13.

This is a pharmaceutical calculation in which,

how much medicinal extract is obtained from Ksheerapaaka (by doing 1:16:16 or 1:8:32 in both the options),


in the same proportion, proper calculation of amount of

Aushadhi dravya : water : sugar ratio;

By

computation/calculation/mathematics,

it has been determined;


That if five grams (5gms) of medicine Kalpa = Sugar Kalpa,


in the form of granules or cubes is mixed in 100ml of milk,


then the same amount of Ksheerapaaka will be obtained along with the Aushadhi Veerya = medicinal extract.

 

14. Today, Shaliparnee, Guduchi, Guduchi Yashti, Shatavari Gokshura, Yashti Sariva, Panchatikta have been made available along with their computerized (computational) proportions.

 

This is not, again, my invention discovery research or patent. 


These Sugar Kalpas have also been registered in Maharashtra FDI by MhetreAyurveda.


In this way, you can also prepare Sugar Kalpa by taking appropriate quantity and by doing computations.

 

By transfer/transformation or transportation of water soluble plant extract "on sugar", 


If it is prepared in the form of granules, it can easily dissolve in cold/warm/hot milk 


and we can quickly get quick  Ksheerapaaka / Instant Ksheerapaaka , 


so that it is convenient for the patient and 


it is also transportable for the vaidya/doctor 


and Besides, it is time-saving 


and economical 


and above all, 

the main ... expected result is beneficial!

 

15. Panchatikta Kalpa, Guduchi Kalpa and Guduchi Yashti Kalpa, these three Kalpa are useful as Tikta Ksheerapaaka .


Tikta Ksheerapaaka is mentioned in Asthi-Kshaya,


also if we look at Bhagna Adhikara, then Madhura Aushadhasiddhaam *Laksha Yutam*, this is how the reference comes.


That is why Guduchi along with Yashti has been included here,


so that Ksheerapaaka of both madhura & tikta Rasas can be obtained here.


And if you want to go further, then *Panchatikta Kalpa* is more useful.


Gives expected results with Yashti Laksha Tablet.

 

16. The use of Panchatikta Kalpa is effective in treating skin diseases along with fractures.


If this innovative formulation named Sugar Kalpa = शर्कराकल्प, is given with milk or warm water, then it will be acceptable for the child, to take any medicine.


Since it is a sugar preparation = शर्कराकल्प = Sharkara Kalpa ,

it can be given with milk or water,


similarly this sugar preparation = शर्कराकल्प = Sharkara Kalpa  can be given with tea and coffee


and by spreading the granules on roti, applying ghee and making a roll.


So it is

बहुकल्पं बहुगुणं सम्पन्नं योग्यमौषधम्॥

... along with this,

it is also economically affordable.

 

If this concept of Sharkara Kalpa gets accepted, followed and used by many people,


then , it is MhetreAyurveda’s resolve to present many more Yoga/ Kalpas in this manner.


In which Vasaguduchyadi, Bhunimbadi, Rasnadi, Rasnapanchaka, Rasnasaptaka, Mahaatiktaka, Mahakalyanaka, Brahmi, Panchagavya, Dadimadi, Naagaradi, Punarnavadi, Punarnavashtaka, Abhayamustatriphalaguduchi, Vachaharidradi Gana, Rodhradi Gana, Argvadhadigana, Mustadi Gana, Surasaadi Gana, Saarivaadi Gana

... all these will soon be present in the service of Ayurveda,

as the

upcoming Sankalpa of Sugar Kalpa = शर्कराकल्प introduction.

 Disclaimer: The author does not represent that the views expressed in this activity are always correct or infallible. Since this article is a personal opinion and understanding, it is possible that there may be some shortcomings, errors and defects in this article.

Get rid of the method of making Ksheerapaaka ,

if you accept Sugar Kalpa


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क्षीरपाक बनाने की विधि से छुटकारा, अगर शर्करा कल्प को स्वीकारा

 *क्षीरपाक बनाने की विधि से छुटकारा, अगर शर्करा कल्प को स्वीकारा*

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एम डी आयुर्वेद एम ए संस्कृत 

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क्षीरपाक बहुत ही प्रभाव शाली परिणामकारक औषधी कल्पना है.

1

शालिपर्णी क्षीरपाक

चरक संहिता मे वातव्याधि के चिकित्सामें हृदयगत वात में *शालिपर्णी क्षीरपाक* तथा 

2

गर्भ शोष और बाल शोष में *यष्टी काश्मरी सिद्ध क्षीरपाक* इनका उल्लेख आया है. 


वैसे भी कई अन्यान्य संदर्भों में क्षीरपाक कल्पना का प्रयोग होता है. 


3.

अस्थिक्षय मे भी *तिक्त क्षीरपाक कल्पना* हि है.


4.

किंतु क्षीरपाक बनाना , प्रॅक्टिकली उतना सुकर नही होता है.

यह टाईम कन्झ्युमिंग भी है और थोडा टिडियस tidious भी है.


अगर पानी थोडा कम उड जाये , तो दूध डायल्यूट हो जाता है. 


बाष्पीभवन अगर ज्यादा हो जाये, तो दूध की मात्रा कम हो जाती है. 


तो यह प्रोपाॅर्शनेट क्षीरपाक बनाना और उसके लिए पर्याप्त समय और अवधान देना, इतना सुकर नही है. 


5.

और तो और, क्षीरपाक यह भैषज्य कल्पना; आसव अरिष्ट तैल घृत लेह टॅबलेट गुग्गुल की तरह… या प्रिझर्वेटिव्ह डालकर, पॅक करके, ट्रान्सपोर्ट करके, मार्केट करना, यह भी संभव नही है.

क्षीरपाक यह पंचविध कल्पनाओं जैसी हि *सद्य प्रयोग* करने की कल्पना है. 


6.

क्षीरपाक की परिणामकारकता अत्यंत प्रभावशाली है. जैसे कि, मैंने उपर उल्लेख किया, ऐसे कई हृदयरोग के बलक्षीण पेशंट्स मे इसका, मात्र एक सप्ताह मे हि प्रभाव/परिणाम दिखाई देता है ... और तात्कालिक उपशम तो दो तीन दिन मे ही आ जाता है. 


LVEF केवल बीस परसेंट (20%) होने के बावजूद, जो दादीमां अस्सी (80) साल के वय में, चार कदम भी चलते हुए, सांस फूल रही थी, वह मात्र तीन-चार दिन बाद सौ मीटर चल के जा सकती है और डेढ महीने के बाद एक किलोमीटर तक चलती है , वो भी अपनी युवा नाती से भी अधिक गती से!!! किंतु आश्चर्य की बात यह है कि, अगर फिरसे टूडी इको 2D ECHO रिपीट किया जाये, तो एल व्ही इ एफ LVEF जैसे का तैसे, 20% हि दिखाई देता है!!! तो क्लिनिकली शीघ्र इम्प्रूवमेंट, यह क्षीरपाक से इस प्रकार के अनेक पेशंट मे अनुभव की जा सकती है.


7.

तिक्त क्षीरपाक से कई अस्थिक्षय के पेशंट [जैसे कि एल5एस1 (L5-S1) डीजनरेशन स्लिप डिस्क डिस्क बल्ज AVN सायटिका स्पाॅण्डिलाॅसिस knee degeneration ACL osteoarthritis] में लाभ होता हुआ, सभी ने अनुभव किया होता है. यह लाभ, *बस्ति दिये बिना हि*, मात्र एक मंडल अर्थात 42 दिन अर्थात सप्ताह मे ही प्राप्त होता है. यष्टी गुडूची क्षीरपाक या पंचतिक्त क्षीरपाक से ऐसे शीघ्र परिणाम प्राप्त हो सकते है, ऐसा पिछले पच्चीस वर्षों का अनुभव है और ये परिणाम no recurrence अर्थात अपुनर्भव , इस प्रकार के होते है.


पिछले पच्चीस सालो मे ऐसे 1800+ से ज्यादा केसेस का अनुभव है, जिन मे से कईयों की सर्जिकल ऑपरेशन टल चुके है और जो पेशंट बीस बाईस साल पहले ठीक हुये है, वो आज भी वैसे हि ठीक है और आज भी वो पेशंट, अन्य दूसरे नये पेशंट को निरंतर रेफर करते रहते है

जो पेशंट बेड पर पडे हुए है , जिनका अपान क्षेत्र का व्यवहार (शौच और मूत्र) बेड पर हि, अन्य व्यक्तियों के सहाय्यता से चल रहा है, वे भी बयालीस (42) दिन या ज्यादा से ज्यादा चौरासी (84) दिन मे (6 to 12 weeks), अपने पांव पर चलकर, एक दो मंजिला स्टेप चढकर उतर कर आते है ... और अपने दैनंदिन सारे व्यवहार सुकरता से पूर्ववत करने लगते है. ऐसे अनेकों पेशंट के अनुभव हमारे पास कई सालों से आ रहे.


8.

तथा जिन बच्चों की स्वास्थ्य की कुछ ना कुछ कंप्लेंट रहती है, या भारवृद्धी नही होती, दुबलापन होता है, मांसक्षय होता है एवं च आय यु जी आर IUGR गर्भ शोष है, ऐसी अवस्था मे *यष्टी काश्मरी क्षीरपाक* अत्यंत अल्पकाल मे अपेक्षित लाभ देता है. चार या छ सप्ताह के बाद की जाने वाली अगली सोनोग्राफी मे ही अपेक्षित रिझल्ट दिखाई देते है.


9.

इतना हि नही, ऐसे दुष्कर अवस्था मे भी गुडूची क्षीरपाक अत्यंत सुखकारक काम करता है. अगर सातवे महिने मे आठवे महिने मे गर्भवती के कुक्षि में गर्भ की मूव्हमेंट quickening स्थिर हो जाये / अल्प/कम/बंद हो जाये, ऐसा माता को प्रतीत हो , तो भी *यष्टी सारिवा कल्प / यष्टी काश्मरी कल्प* मात्र 24 घंटे मे, फिर से गर्भस्थ शिशु की अंतर्गत मूवमेंट को पुन्हा शुरू कर देते है, ऐसा अनुभव कई गर्भिणियों को हमारे पेशंट के रूप मे प्राप्त है. इसमे से एक गर्भिणी की माता स्वयं गायनॅकॉलॉजिस्ट है, जिसका प्रसूती का हॉस्पिटल है!


9A

Placental insufficiency जैसी गर्भाशयांतर्गत स्थिती में भी क्षीरपाक जैसे मृदू किंतु वीर्यवान कल्पना से शीघ्र ट्रीट करके अपेक्षित अनुकूल परिणाम प्राप्त होते है, क्योंकि गर्भिणी यह मृदू औषध से ट्रीट करना आवश्यक है, ऐसे शास्त्र कहता है.


निम्नलिखित फेसबुक लिंक पर देखे , इसके बीटी एटी रिपोर्ट (BT & AT Reports) या प्लेसेंटल इन्सफिशियन्सी (Placental insufficiency) ऐसा फेसबुक सर्च करके posts में MhetreAyurved की पोस्ट देखे

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid0iTj1xCY85Qr2xXnSoTiVywSaArPCxDB9EMiY9RLaJY66Amv2AT1JuLHzuax4272Zl&id=100002080068773&mibextid=lOuIew


10.

भग्न मे भी *यष्टी क्षीरपाक* लाक्षा के साथ या यष्टी लाक्षा टॅबलेट के साथ बहुत परिणामदायक होता है


भग्न मे *यष्टी क्षीरपाक* के साथ हि, *यष्टी गुडूची क्षीरपाक* या *केवल गुडूची क्षीरपाक* या *पंचतिक्त क्षीरपाक* ये सभी यथा अवस्था अत्यंत लाभदायक सिद्ध होते है 


11.

किंतु जैसे पहले कहा, ऐसे उचित मात्रा मे, क्षीर का शेष रहकर, अचूक समय पर हि, अग्नि देना बंद करके, पूरा पानी उड जाये व केवल औषधी द्रव्य के एक्स्ट्रॅक्ट वाला दूध हि पूर्णतः शेष रहे, यह एक कलात्मक, टेक्निकल तथा समय व्ययकारक विधी है. 


12.

इसलिये "क्षीरपाक" इस अमृततुल्य औषधी कल्पना के लाभ तो प्राप्त हो , किंतु उसके लिए जो दुष्कर विधी है और उसमे ट्रान्सपोर्टेबिलिटी नही है; इन दोषों को एलिमिनेट करते हुए, एक नये विचार के साथ यह लेख लिख रहे है, कि जिस प्रमाण मे औषधी का एक्स्ट्रॅक्ट क्षीरपाक मे 100 ml दुग्ध मे आता है, उतने ही प्लेन / सामान्य दूध मे, अगर जिस द्रव्य का क्षीरपाक बनाना है, उसका शर्करा कल्प (जैसे शतावरी कल्प बनता है, वैसे) उचित मात्रा मे (ग्राम या व्हॉल्युम की यथायोग्य proportionate परिमाण मे) मिला दिया जाये, तो उतने हि द्रव्य का एक्स्ट्रॅक्ट दुग्ध मे आयेगा, इसकी व्यवस्था कर सकते है.


13.

यह एक फार्मास्युटिकल कॅल्क्युलेशन है, जिसमे क्षीरपाक से (1:16:16 या 1:8:32 दोनो विकल्पों से करके) कितना औषधी एक्स्ट्रॅक्ट आता है, उसी हिसाब से उसी प्रपोर्शन से, द्रव्य : पानी : शर्करा की मात्रा का उचित गणन/ संगणन / कॉम्प्युटेशन/ कॅल्क्युलेशन /गणित करके, यह निर्धारित किया गया है ; कि 100ml दुग्ध मे अगर पाच ग्राम 5gms का औषधी कल्प, शर्करा कल्प granules या क्यूब के रूप मे उसे मिला दिया जाये, तो उतनी ही क्षीरपाक की प्राप्ती, औषधी वीर्य के साथ, हो जायेगी.


14.

आज इस प्रकार से शालिपर्णी, गुडूची, गुडूची यष्टी, शतावरी गोक्षुर, यष्टी सारिवा, पंचतिक्त इनके संगणकीकृत computational प्रपोर्शन के साथ शर्कराकल्प granules उपलब्ध किये है.

ये कोई, फिर से, मेरी इन्वेंशन डिस्कवरी रिसर्च पेटंट नही है. इन शर्करा कल्पोंका भी महाराष्ट्र एफडीआय में म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda द्वारा रजिस्ट्रेशन किया हुआ है. आप भी इस प्रकार से, उचित मात्रा मे, संगणन करके computation करके, लिए हुये, उचित मात्रा मे शर्करा कल्प का निर्माण कर सकते है. पानी मे विद्राव्य वॉटर सोल्युबल वनस्पती एक्स्ट्रॅक्ट का स्थानांतरण/ ट्रान्सफॉर्मशन या ट्रान्सपोर्टेशन "शर्करा पर" करके, उसको ग्रॅन्युलस के रूप मे , अगर तैयार किया जाये , तो वह आसानी से कोष्ण दुग्ध मे विलयन होकर, हमे शीघ्र क्षीरपाक / इन्स्टंट क्षीरपाक प्राप्त हो सकता है, जिससे की पेशंट को ये सुविधा जनक हो और वैद्य के लिए ये ट्रान्सपोर्टेबल भी हो और इसके साथ ही या सारा समय बचाने वाला तथा इकॉनोमिकल भी है और सर्वतो मुख्य अपेक्षित परिणामकारक लाभदायक भी है!


15.

पंचतिक्त कल्प, गुडूची कल्प और गुडूची यष्टी कल्प यह तीनो कल्प तिक्तक्षीरपाक के रूप मे उपयोगी है. तिक्तक्षीरपाक अस्थिक्षमे उल्लेखित है, साथ हि अगर हम भग्न अधिकार देखेंगे, तो मधुर औषधसिद्धं *लाक्षा युतम्*, इस तरह से संदर्भ आता है. इसलिये यष्टी के साथ गुडूची को यहां पर समाविष्ट किया है, जिससे की मधुर और तिक्त दोनो रसों का क्षीरपाक यहां पर प्राप्त हो सके. और भी अगर आगे जाना है, तो *पंचतिक्त कल्प* अधिक उपयोगी होता है. मन्या कटी जानु शूल, तथा अस्थिक्षयात्मक संप्राप्ति के ए सी एल ACL, एव्हीएन, ऑस्टिओ अर्थराइटिस, सायटिका, एल फाईव्ह एस वन डीजनरेशन L5-S1, लंबर &/or सर्वाइकल स्पोंडीलोसिस... इन सभी मे इन तीनों में से कोई भी एक क्षीरपाक यष्टी लाक्षा टॅबलेट के साथ अपेक्षित परिणाम देता है.


16.

पंचतिक्त कल्प का उपयोग अस्थिभग्न के साथ साथ, त्वचारोगो मे भी कार्यकारी है! यह शर्करा कल्प नाम की अभिनव कल्पना अगर दुग्ध के साथ या गरम पानी के साथ दी जाये, तो किसी भी औषध को बालक के लिए लेना सुग्राह्य होगा. यह शर्करा कल्प होने के कारण, जैसे दुग्ध या पानी के साथ दे सकते है, वैसे हि इस शर्कराकल्प भेषज को चाय कॉफी के साथ तथा रोटी पर ग्रॅन्यूल्स फैला कर, घी लगाकर रोल बनाकर भी दे सकते है. तो इसकी "*बहुकल्पना* बहुगुणता संपन्नता और योग्यता", इसके साथ साथ हि इकॉनाॅमिकली अफोर्डेबल है.


अगर यह शर्करा कल्प की संकल्पना, बहुत सारे लोगोंने अनुकरण की, अनुसरण की, उपयोग में लायी तो ... और भी कई योगो के शर्कराकल्प Granules, इस प्रकार से प्रस्तुत करने का संकल्प है. जिसमे वासागुडूच्यादि, भूनिंबादि, रास्नादि, रास्नापंचक, रास्नासप्तक, महातिक्तक, महाकल्याणक, ब्राह्मी, पंचगव्य, दाडिमादि, नागरादि, पुनर्नवादि, पुनर्नवाष्टक, अभयामुस्तात्रिफलागुडूची, वचाहरिद्रादि गण, रोध्रादि गण, आरग्वधादिगण, मुस्तादि गण, सुरसादि गण, सारिवादि गण ... ये सारे आगामी संकल्पित शर्करा कल्प आयुर्वेद के सेवा मे शीघ्र हि उपस्थित होंगे

*Copyright © वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. एम डी आयुर्वेद एम ए संस्कृत 

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Monday, 20 November 2023

English Chyavanprasha Formulation Doubts and Queries

English Chyavanprasha Formulation Doubts and Queries 
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 Disclaimer: The author does not represent that the views expressed in this activity are always correct or infallible. Since this article is a personal opinion and understanding, it is possible that there may be some shortcomings, errors and defects in this article. 

 Juicy amla has arrived in the market. Many Ayurvedic groups are preparing to produce a few hundred kilos of Chyawanprash. 

Discussions are going on in such a wide range from science to practice, whether to add Ashtavarga or not, whether the original is available or not. 

 But I have some preliminary doubts about the formulation/preparation of Chyavanprash and the ambiguity of Amlaki

 In fact, to have any doubts about the two very famous Ayurvedic medicines Chyavanprash and Amlaki is to show my ignorance of Dravyaguna  Bhaishajyakalpana and Ayurveda as a whole. 

 Even though Knowing this, still I would like to present the following points to expert, experienced, active Ayurvedics.

 'Amalki' is the second drug mentioned/described in both, Charak Chikitsa 1 and Bhavprakash Nighantu. 

 1. In Bhavprakash, the weight of Haritakiphala is said to be 'Dvikarsha'. 

 2. Charaka Chi. 1, Here it reads 
'eka haritaki yojya, dvau cha yojyau bibhitkau / chatvaryamalkanyevam triphala'. 

 3. In Triphala Yoga, all the three substances are in equal proportion by volume/weight. 

 Can it be said from these three statements? 

 1 Haritaki = 2 Karsh = 2 Bibhitaka = 4 Amlaki = 2 Karsh 

 1 Bibhitaka = 1 Aksha = 1 Karsha (Aksha = Karsha, A.Hr. Kalpa. 6) 

 From this, 1 amlaki = 1/2 half karsha ; Is this statement correct? ... 

 yes, it is correct. 

 Basically, what should be the equivalent measurements of Pala, Karsha today in grams? There are many differences in this regard. Still 1 pala is considered to be 40 to 50 grams. So 1 karsh is 10 to 12.5 grams. 

 Therefore *half karsha is meant to be 5 to 6.25 gm*. 

 That means 200 to 160 Amalaki fruits should be there in 1 kg. 

 Does the fruit we use today pass this test? 

In the era of 'Samkhya Syad Ganitam' or 'Objective Numeratics', are we using Amalakifala, just by assumption / custom? 

 Chyawanprasha clearly says to take 500 Amalkee falas. 

Then if we take 500 Amalkiphals in use today, their total weight is 14 to 17 kg. 

No one takes that much amla for a given scriptural amount to prepare Chyavanprasha. 

 Today's practice is usually 500 amalkee phalas means 5 kg. 

 Is this a bold statement? 

 Well basically, 1 Amlaki = 1/2 half a karsha' ie 5 to 6.25 grams.

 if the statement is true, then The weight of 500 Amalkiphal is only 2.5 to 3 kg. 

 And on the other hand, today's amla, if 5 kg is taken, it comes to 150 to 175 fruits Only, not 500. (According to 30 to 35 fruits in 1 kg) 

 *Then where does 'classical Chyavanprasha' gets prepared?

 *In no way do we come close to the literalness of 'Amlaki or Chyavanprasha' in terms of fruit numbers (numbers) or phala rashi bhaara (total weight).

 * The same thing about the amount of sugar in Chyawanprasha. 

'Matsyandika Tulardhen' is the original reference. 

 Ardha Tulaa = 100 ÷ 2 = 50 Pala = 2000 to 2500 grams = 2 to 2.5 kg. 

 I don't think anyone is adding so little sugar. 

 It is common practice to add 5 kg of sugar to 5 kg of Amalkiphal.

 Shastrokta/Granthokta Chyavanprash Yoga says 500 Amalkeefala and 2 to 2.5 kg of sugar ...

but But in normal practice, thousands of kilos of Chyawanprash is made everywhere with 5 kilos of amla and the same amount of sugar. 

 No one is preparing as scriptural / textual / Samhitaa ...

and still, while printing the label, mention in bold type such as scriptural / textual / Shaastrokta … !!!😇🙃

 What/why is this fraud for?🤔⁉️ 

 'Rudhiryogadapi Baliyasi' … ok. This is accepted. 

but on other hand modern science/ modern medicine Determines the dose in mg milligrams and aren't we committing offense/crime in the calculation of kilos & tonnes !? 

 "Oh why are you drilling our brain? Aren't the results coming?" 

 Does that mean to surrender to utilitarianism everywhere? 

 'Well, any answer, alternative to this question of authentication of amalaki and proportion of sharkara? 

Why just drill thebrain unduly? 

 Well, look at this… 

 1. A small amla is available in the market, let's weigh it. 
Oh, really! Its average weight is 5 to 6 grams. ... 
So will you prepare Chyavanprasha using these?! 

 These small Amalkiphal are to be taken 500 in number as per samhitaa and sugar is 2 to 2.5 kg. 

 2. use market available 500 regular big Amlaki phalas, but sugar is only 2 to 2.5 kg… not 5kg. 

 3. Take 500 small amlakee phalas. Weigh those. Take market available regular big Amlaki phalas as that same weight 500 small Amalkiphalas. and take 2 to 2.5 kg of sugar. 

 Amalkiphal is variable in these 3 alternatives. So let's keep the amount of sugar constant. 

 Today, a few thousand kilos of Chyawanprash is “manufactured” in *traditional (not scientific … not samhitokta)* manner in Entire Bharata. 

 Let us Just make 1 to 5 kg of Chyawanprasha in the above suggested 3 ways. 

 To avoid 'business loss' the rest of the Chyawanprasha should be made 'sweet chocolaty delicious' as usual. 

 If the results of using the above 3 types of Chyawanprash on thousands of patients of hundreds of vaidyas are collected, next year it will be 'officially' standardized and can be presented to the public. 

 And those who make abrupt Chyavanprash recipes can be firmly stopped on 'scientific' basis.

Should we do this for science? 

 Let us come together for the cause of Ayurveda.

'Sangachchadhvam samvadhvam ... 
 'asadvadipryuktanam vakyananam pratishedhanam’ 
and 
'svavakyasiddhi: api ...

We all have to prove the purpose of Tantrayukti. 
Even though the Tantrayukti is given at the very end of both the syllabus and the Samhitaa. 

 'Perhaps the patients will get a more beneficial and financially more affordable 'Yoga'. 

 Some time again in near future let us discuss about other ambiguous matters in Chyawanprasha... Like maatra/dose, Ashtavarga, Dashamul, Matsyandika, Kesar etc. 

 Hopefully, all the successful Vaidyas, all the teachers of Dravyaguna and Bhaishajyakalpa, all the amateur students who prepare Chyavanprasha and the famous pharmacy all over bharata will think constructively and give 'Ethical response' (not reaction, but response) to this proposal. 

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हिंदी : ययाति च्यवन अर्थवाद च्यवनप्राश

ययाति च्यवन अर्थवाद च्यवनप्राश Copyright कॉपीराइट ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत. आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक. सर्व अधिकार सुरक्षित म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda 9422016871 www.MhetreAyurveda.com www.YouTube.com/MhetreAyurved/ Mhetreayurveda@gmail.com Disclaimer/अस्वीकरण: लेखक यह नहीं दर्शाता है, कि इस गतिविधि में व्यक्त किए गए विचार हमेशा सही या अचूक होते हैं। चूँकि यह लेख एक व्यक्तिगत राय एवं समझ है, इसलिए संभव है कि इस लेख में कुछ कमियाँ, दोष एवं त्रुटियां हो सकती हैं। चरकसंहिता मे चवनप्राश के फलश्रुती मे लिखा है आईये इस पर कुछ विचार विमर्श करते है 1. बालानां चाङ्गवर्धनः 2. अस्य प्रयोगाच्च्यवनः सुवृद्धोऽभूत् पुनर्युवा ययाति के पिता नहुष. नहुष के पिता आयुष और आयुष का गुरु च्यवन ऋषी. अगर सुवृद्ध च्यवन ऋषी, अश्विनी कुमार का च्यवनप्राश खाकर, पुन्हा युवा बन गया ... तो च्यवन के शिष्य आयुष और उसका पोता ययाति पुन्हा तरुण बनने के लिये , अपना वृद्धत्व , अपने पुत्र पूरु के साथ क्यूं एक्स्चेंज करता है ??? अगर वृद्धत्व को टालकर, पुन्हा युवा बनना च्यवनप्राश खाने से संभव होता और च्यवन हमारे लिए जैसे आज आख्यायिका है, कोई पौराणिक व्यक्ति है ... वैसे ययाति के लिए नही था. ययाती के दादा/ पितामह, च्यवन के साक्षात शिष्य थे अर्थात अगर सुवृद्ध च्यवन फिरसे युवा बन गया होता, अश्विनी कुमार का च्यवनप्राश खाकर, तो ययाति को भी वह इस प्रकार से पुन्हा युवा बना सकता था. ययाती को अपने पुत्र के साथ यौवन और वार्धक्य इनका एक्स्चेंज करने की आवश्यकता हि नही होती. इस कारण से, ये जो हमे बताया जाता है की अश्विनी कुमार के च्यवनप्राश को खाकर, जो बहुत बूढा च्यवन था, वह फिरसे युवा बन गया, यह केवल दंतकथा/ आख्यायिका/ कहने सुनने की बात/ वाग्वस्तुमात्र है, *जिसे शास्त्रीय परिभाषा मे अर्थवाद कहते है, इतना ही है... निंदा-प्राशस्त्य-परं वाक्यम् अर्थवादः* ... ये प्रायः अतिशयोक्तिपूर्ण पूर्ण होता है, जिसे आज हम ॲडव्हर्टाइज कहते है. च्यवनप्राश खाकर सुवृद्ध च्यवन फिरसे युवा हो गया, यह वास्तविकता न होकर, केवल उस कल्प की महत्ता बताने के लिए, लिखा हुआ *अर्थवादात्मक* प्रसंग है, जैसे शार्ङ्गधर संहिता पे हस्तीदंत मषी का प्रयोग लेपात् पाणितलेष्वपि = हात के तलवे पर भी बालों को उगा सकता है, ऐसा *अशक्य विधान* किया गया है, जो *वास्तविकता न होकर, अर्थवाद होता है*, जैसे चरक के वाजीकरण के लोगो की फलश्रुती में, "शतं नारीणां भुङ्क्ते" = सौ नारियों को संभोग कर सकता है, जो किसी भी मनुष्य के लिए अत्यंत अशक्यप्राय है, किंतु ऐसा विधान लिखने का अर्थ, *कल्प की महत्ता बढाने के लिए, अर्थ वादात्मक विधान करना, इतना हि होता है, ये वास्तविक नही होता है. ठीक वही बात, च्यवनप्राश खाने से, सुवृद्ध च्यवन फिरसे युवा हो गया, इस बारे मे जाननी चाहिए, ये वास्तविकता न होकर, केवल एक आख्यायिका है और शास्त्रीय परिभाषा मे अर्थवाद ही है* फिर दूसरी बात ... च्यवनप्राश खाकर, च्यवन ऋषी जो सुवृद्ध था, बहुत बूढा हुआ था, वो फिरसे युवा हो गया ... *अगर ये कहानी वास्तविक है, सत्य है* ... तो इसका दूसरा अर्थ होता है, कि आज जो हम च्यवनप्राश बना रहे है ... उसके या तो कंटेंट्स गलत है या उसकी मात्रा एवं कालावधी (dose & duration) जो हम देते है, वो गलत है. मात्राकालाश्रया युक्तिः, सिद्धिर्युक्तौ प्रतिष्ठिता 👆🏼 अगर ये दोनो सही है ... कंटेंट और मात्रा, जो आज हम दे रहे है ... तो फिर च्यवन की कहानी जो सुवृद्ध से पुनः युवा बन गया ... ये सत्य नही हो सकती! क्यूकी फिर जो च्यवन को अनुभव आया, वह ययाती को भी आना चाहिए था, क्यूंकि च्यवन और ययाती के जीवित होने का काल, एक दूसरे से बहुत हि निकट है. और चक्रवर्ती राजा होने के कारण ययाति के लिये, इस प्रकार के उपाय को प्राप्त करना, दुर्लभ नही हो सकता था. इन दो मे से एक विकल्प को स्वीकार करना चाहिए कि ... 1. हमारे पूर्वजों के सामर्थ्य पर दृढ विश्वास रखकर, हमारी परंपराओं को सत्य मानकर, हमे मानना चाहिए है कि, सचमुच अश्विनी कुमार से बनाया गया च्यवनप्राश खाकर, च्यवन जो सुवृद्ध हो गया था, वह पुन्हा युवा हो गया... तो, हमे दूसरा विकल्प मान्य करना पडेगा कि जो च्यवनप्राश हम आज बना रहे है, या तो उसके कंटेंट्स या फिर उसकी मात्रा हमसे उचित रूप मे नही दी जा रही है, वो गलत हो रहा है क्यूंकि, जो लिखा है कि च्यवनप्राश को खाकर सुवृद्ध व्यक्ती पुन्हा युवा बन सकता है, ऐसा तो अनुभव आज किसी को भी नही आता है. या फिर च्यवनप्राश की फलश्रुती मे लिखा है. अगर , *गर्भ शुष्क हो रहा है (IUGR) या बालक शुष्क हो रहा है, तो "यष्टी काश्मरी सिद्ध क्षीरपाक से/ शर्कराकल्प(granules)" से, उसे ठीक किया जा सकता है, जो हम हमारी प्रॅक्टिस मे अनेक बार देख चुके है.* इसी प्रकार से, *अंगवर्धनः*, यह जो च्यवनप्राश की फलश्रुती है, ये सत्य प्रतीत होती हुयी अगर किसी ने च्यवनप्राश देकर किसी पेशंट में देखा है, तो सुवृद्ध को पुन्हा युवा बनाना भी संभव होगा. लेकिन मेरे 35 साल के आयुर्वेदिक क्षेत्र के अनुभव में, किसी भी बालक को या किसी भी कृश को फिर से बृंहित / स्थूल होते हुए, 'अंगवर्धन' होते हुये, *केवल च्यवनप्राश खाकर*, ऐसा परिणाम होते हुए कभी नही देखा. क्या आपने से किसी ने देखा है अकेले चवनप्राश का हि उपयोग करके किसी बालक का अंगवर्धन होते हुए?! यदि च्यवनप्राश खाकर, कृश बालक (या गर्भ इन-) की जो शुष्कता है, या वृद्धि में मंदता IUGR है, वह हमे ठीक होता हुआ, दिखाई देता है, तो सुवृद्ध से पुनर्युवा होना भी संभव होना हि चाहिये. किन्तु वैसे व्यवहार में, प्रॅक्टिस में, ये दोनो भी नही होता है. *इसलिए ये दो विकल्प है*, की या तो 1. हमारा च्यवनप्राश का आज का कंटेंट और मात्रा गलत है या फिर 2. अश्विन कुमार का च्यवनप्राश खाकर , सुवृद्ध च्यवन का फिर से युवा होना वास्तविक नही है. अगर, च्यवनप्राश खाकर सुवृद्ध से पुनर्युवा होना यह बात वास्तविक नही है, तो च्यवनप्राश आज केवल एक व्यवहार / विक्री की वस्तु , saleble item मार्केटिंग की चीज बन कर रही है और हम आयुर्वेदिक के वैद्य मेडिसिन के व्यापारी/ बनिया नही है ... तो वास्तविकता को स्वीकार कीजिए और च्यवनप्राश का त्याग कीजिए. मैं आप्त प्रमाण के विरोध मे नही हूं ... किंतु, न शास्त्र मात्र शरणः , न च अनालोचित आगमः ... इसके बीच में सुवर्ण मध्य हमे सिद्ध करना, आना हि चाहिए ... अनुयायात् प्रतिपदं सर्वधर्मेषु मध्यमाम् ... टेलिव्हिजन पर ॲडव्हर्टाईज देखते है कि, उठा उठा दिवाळी आली ... मोती स्नानाची वेळ झाली ... तो केवल मोती साबण को बेचने के लिए दिवाली नही होती है. वैसे हि उठा उठा दिवाळी आली च्यवनप्राश बनवण्याची वेळ झाली केवल च्यवनप्राश को बेचने के लिए, इस प्रकार की कहानिया, हम पिढी दर पिढी बताते आ रहे है, वो कही तो रुकना चाहिए. सत्य के प्रकाश को स्वीकार करे और भ्रम के अंधःकार का नाश करे ... इस शुभ दीपावली पर तमसो मा ज्योतिर्गमय ... इस विषय पर मेरा एक मराठी/हिंदी/English तीनों भाषाओं मे लिखा हुआ पूर्व प्रकाशित लेख है, साथ मे इसकी लिंक दि हुई है उत्सुक एवं जिज्ञासू सन्मित्र वैद्य इसे अवश्य पढे. जिसमे आज के च्यवनप्राश के जो मुख्य कंटेंट है, आमलकी एवं मत्स्यण्डिका = शर्करा, वे कैसे गलत है और आज के च्यवनप्राश की पेशंट को सजेस्ट की जाने वाली मात्रा कैसे गलत है, ये स्पष्ट किया हुआ है. उत्सुक और जिज्ञासू वैद्य उसे अवश्य पढे और उसके अनुसार अपने प्रॅक्टिस मे उचित स्वरूप का बदलाव लाये. जैसे दिवाली पर अनेक वैद्य सुगंधी तेल अभ्यंग तैल केश्यतैल उद्वर्तन / उबटन बेचते है या पुष्य नक्षत्र पर स्वर्णप्राशन बेचते है या पूरे साल भर शतावरी कल्प बेचते है ... वैसे हि थंडी के मौसम मे च्यवनप्राश बेचते है .. ऐसे औषध *बेचने वाले बनिया* मत बनो. पेशंट का स्वास्थ्य बनाने वाले, रोग का नाश करने वाले, सक्षम वैद्य है हम! बाजार मे खडे रहकर, पैसा कमाने वाले बनिया व्यापारी ट्रेडर्स नही है, इस वास्तविकता का हमेशा स्वयं के मन मे जागर रखे!!!🙏🏼 पेशंट हमारा ग्राहक कस्टमर क्लायंट नही है, सुश्रुताचार्य कहते है वैसे, पेशंट हमारा पुत्र भी नही है. पेशंट हमारे लिए हमारा अन्नदाता अर्थात ईश्वर भगवान है ... तो उस पेशंट रुपी भगवान की प्रति हमारा आचरण/ व्यवहार यह अत्यंत शुचियुक्त और प्रामाणिक होना चाहिए. इसलिये उसे औषध बेचिये नहीं, उसके स्वास्थ्यरक्षण और रोगनाशन के लिए कन्सल्टिंग फिजिशियन अर्थात प्राणाभिसर वैद्य बने🪔 Copyright कॉपीराइट ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत. आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक. सर्व अधिकार सुरक्षित म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda 9422016871 www.MhetreAyurveda.com www.YouTube.com/MhetreAyurved/ Mhetreayurveda@gmail.com Disclaimer/अस्वीकरण: लेखक यह नहीं दर्शाता है, कि इस गतिविधि में व्यक्त किए गए विचार हमेशा सही या अचूक होते हैं। चूँकि यह लेख एक व्यक्तिगत राय एवं समझ है, इसलिए संभव है कि इस लेख में कुछ कमियाँ, दोष एवं त्रुटियां हो सकती हैं।