Monday, 20 November 2023

हिंदी : ययाति च्यवन अर्थवाद च्यवनप्राश

ययाति च्यवन अर्थवाद च्यवनप्राश Copyright कॉपीराइट ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत. आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक. सर्व अधिकार सुरक्षित म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda 9422016871 www.MhetreAyurveda.com www.YouTube.com/MhetreAyurved/ Mhetreayurveda@gmail.com Disclaimer/अस्वीकरण: लेखक यह नहीं दर्शाता है, कि इस गतिविधि में व्यक्त किए गए विचार हमेशा सही या अचूक होते हैं। चूँकि यह लेख एक व्यक्तिगत राय एवं समझ है, इसलिए संभव है कि इस लेख में कुछ कमियाँ, दोष एवं त्रुटियां हो सकती हैं। चरकसंहिता मे चवनप्राश के फलश्रुती मे लिखा है आईये इस पर कुछ विचार विमर्श करते है 1. बालानां चाङ्गवर्धनः 2. अस्य प्रयोगाच्च्यवनः सुवृद्धोऽभूत् पुनर्युवा ययाति के पिता नहुष. नहुष के पिता आयुष और आयुष का गुरु च्यवन ऋषी. अगर सुवृद्ध च्यवन ऋषी, अश्विनी कुमार का च्यवनप्राश खाकर, पुन्हा युवा बन गया ... तो च्यवन के शिष्य आयुष और उसका पोता ययाति पुन्हा तरुण बनने के लिये , अपना वृद्धत्व , अपने पुत्र पूरु के साथ क्यूं एक्स्चेंज करता है ??? अगर वृद्धत्व को टालकर, पुन्हा युवा बनना च्यवनप्राश खाने से संभव होता और च्यवन हमारे लिए जैसे आज आख्यायिका है, कोई पौराणिक व्यक्ति है ... वैसे ययाति के लिए नही था. ययाती के दादा/ पितामह, च्यवन के साक्षात शिष्य थे अर्थात अगर सुवृद्ध च्यवन फिरसे युवा बन गया होता, अश्विनी कुमार का च्यवनप्राश खाकर, तो ययाति को भी वह इस प्रकार से पुन्हा युवा बना सकता था. ययाती को अपने पुत्र के साथ यौवन और वार्धक्य इनका एक्स्चेंज करने की आवश्यकता हि नही होती. इस कारण से, ये जो हमे बताया जाता है की अश्विनी कुमार के च्यवनप्राश को खाकर, जो बहुत बूढा च्यवन था, वह फिरसे युवा बन गया, यह केवल दंतकथा/ आख्यायिका/ कहने सुनने की बात/ वाग्वस्तुमात्र है, *जिसे शास्त्रीय परिभाषा मे अर्थवाद कहते है, इतना ही है... निंदा-प्राशस्त्य-परं वाक्यम् अर्थवादः* ... ये प्रायः अतिशयोक्तिपूर्ण पूर्ण होता है, जिसे आज हम ॲडव्हर्टाइज कहते है. च्यवनप्राश खाकर सुवृद्ध च्यवन फिरसे युवा हो गया, यह वास्तविकता न होकर, केवल उस कल्प की महत्ता बताने के लिए, लिखा हुआ *अर्थवादात्मक* प्रसंग है, जैसे शार्ङ्गधर संहिता पे हस्तीदंत मषी का प्रयोग लेपात् पाणितलेष्वपि = हात के तलवे पर भी बालों को उगा सकता है, ऐसा *अशक्य विधान* किया गया है, जो *वास्तविकता न होकर, अर्थवाद होता है*, जैसे चरक के वाजीकरण के लोगो की फलश्रुती में, "शतं नारीणां भुङ्क्ते" = सौ नारियों को संभोग कर सकता है, जो किसी भी मनुष्य के लिए अत्यंत अशक्यप्राय है, किंतु ऐसा विधान लिखने का अर्थ, *कल्प की महत्ता बढाने के लिए, अर्थ वादात्मक विधान करना, इतना हि होता है, ये वास्तविक नही होता है. ठीक वही बात, च्यवनप्राश खाने से, सुवृद्ध च्यवन फिरसे युवा हो गया, इस बारे मे जाननी चाहिए, ये वास्तविकता न होकर, केवल एक आख्यायिका है और शास्त्रीय परिभाषा मे अर्थवाद ही है* फिर दूसरी बात ... च्यवनप्राश खाकर, च्यवन ऋषी जो सुवृद्ध था, बहुत बूढा हुआ था, वो फिरसे युवा हो गया ... *अगर ये कहानी वास्तविक है, सत्य है* ... तो इसका दूसरा अर्थ होता है, कि आज जो हम च्यवनप्राश बना रहे है ... उसके या तो कंटेंट्स गलत है या उसकी मात्रा एवं कालावधी (dose & duration) जो हम देते है, वो गलत है. मात्राकालाश्रया युक्तिः, सिद्धिर्युक्तौ प्रतिष्ठिता 👆🏼 अगर ये दोनो सही है ... कंटेंट और मात्रा, जो आज हम दे रहे है ... तो फिर च्यवन की कहानी जो सुवृद्ध से पुनः युवा बन गया ... ये सत्य नही हो सकती! क्यूकी फिर जो च्यवन को अनुभव आया, वह ययाती को भी आना चाहिए था, क्यूंकि च्यवन और ययाती के जीवित होने का काल, एक दूसरे से बहुत हि निकट है. और चक्रवर्ती राजा होने के कारण ययाति के लिये, इस प्रकार के उपाय को प्राप्त करना, दुर्लभ नही हो सकता था. इन दो मे से एक विकल्प को स्वीकार करना चाहिए कि ... 1. हमारे पूर्वजों के सामर्थ्य पर दृढ विश्वास रखकर, हमारी परंपराओं को सत्य मानकर, हमे मानना चाहिए है कि, सचमुच अश्विनी कुमार से बनाया गया च्यवनप्राश खाकर, च्यवन जो सुवृद्ध हो गया था, वह पुन्हा युवा हो गया... तो, हमे दूसरा विकल्प मान्य करना पडेगा कि जो च्यवनप्राश हम आज बना रहे है, या तो उसके कंटेंट्स या फिर उसकी मात्रा हमसे उचित रूप मे नही दी जा रही है, वो गलत हो रहा है क्यूंकि, जो लिखा है कि च्यवनप्राश को खाकर सुवृद्ध व्यक्ती पुन्हा युवा बन सकता है, ऐसा तो अनुभव आज किसी को भी नही आता है. या फिर च्यवनप्राश की फलश्रुती मे लिखा है. अगर , *गर्भ शुष्क हो रहा है (IUGR) या बालक शुष्क हो रहा है, तो "यष्टी काश्मरी सिद्ध क्षीरपाक से/ शर्कराकल्प(granules)" से, उसे ठीक किया जा सकता है, जो हम हमारी प्रॅक्टिस मे अनेक बार देख चुके है.* इसी प्रकार से, *अंगवर्धनः*, यह जो च्यवनप्राश की फलश्रुती है, ये सत्य प्रतीत होती हुयी अगर किसी ने च्यवनप्राश देकर किसी पेशंट में देखा है, तो सुवृद्ध को पुन्हा युवा बनाना भी संभव होगा. लेकिन मेरे 35 साल के आयुर्वेदिक क्षेत्र के अनुभव में, किसी भी बालक को या किसी भी कृश को फिर से बृंहित / स्थूल होते हुए, 'अंगवर्धन' होते हुये, *केवल च्यवनप्राश खाकर*, ऐसा परिणाम होते हुए कभी नही देखा. क्या आपने से किसी ने देखा है अकेले चवनप्राश का हि उपयोग करके किसी बालक का अंगवर्धन होते हुए?! यदि च्यवनप्राश खाकर, कृश बालक (या गर्भ इन-) की जो शुष्कता है, या वृद्धि में मंदता IUGR है, वह हमे ठीक होता हुआ, दिखाई देता है, तो सुवृद्ध से पुनर्युवा होना भी संभव होना हि चाहिये. किन्तु वैसे व्यवहार में, प्रॅक्टिस में, ये दोनो भी नही होता है. *इसलिए ये दो विकल्प है*, की या तो 1. हमारा च्यवनप्राश का आज का कंटेंट और मात्रा गलत है या फिर 2. अश्विन कुमार का च्यवनप्राश खाकर , सुवृद्ध च्यवन का फिर से युवा होना वास्तविक नही है. अगर, च्यवनप्राश खाकर सुवृद्ध से पुनर्युवा होना यह बात वास्तविक नही है, तो च्यवनप्राश आज केवल एक व्यवहार / विक्री की वस्तु , saleble item मार्केटिंग की चीज बन कर रही है और हम आयुर्वेदिक के वैद्य मेडिसिन के व्यापारी/ बनिया नही है ... तो वास्तविकता को स्वीकार कीजिए और च्यवनप्राश का त्याग कीजिए. मैं आप्त प्रमाण के विरोध मे नही हूं ... किंतु, न शास्त्र मात्र शरणः , न च अनालोचित आगमः ... इसके बीच में सुवर्ण मध्य हमे सिद्ध करना, आना हि चाहिए ... अनुयायात् प्रतिपदं सर्वधर्मेषु मध्यमाम् ... टेलिव्हिजन पर ॲडव्हर्टाईज देखते है कि, उठा उठा दिवाळी आली ... मोती स्नानाची वेळ झाली ... तो केवल मोती साबण को बेचने के लिए दिवाली नही होती है. वैसे हि उठा उठा दिवाळी आली च्यवनप्राश बनवण्याची वेळ झाली केवल च्यवनप्राश को बेचने के लिए, इस प्रकार की कहानिया, हम पिढी दर पिढी बताते आ रहे है, वो कही तो रुकना चाहिए. सत्य के प्रकाश को स्वीकार करे और भ्रम के अंधःकार का नाश करे ... इस शुभ दीपावली पर तमसो मा ज्योतिर्गमय ... इस विषय पर मेरा एक मराठी/हिंदी/English तीनों भाषाओं मे लिखा हुआ पूर्व प्रकाशित लेख है, साथ मे इसकी लिंक दि हुई है उत्सुक एवं जिज्ञासू सन्मित्र वैद्य इसे अवश्य पढे. जिसमे आज के च्यवनप्राश के जो मुख्य कंटेंट है, आमलकी एवं मत्स्यण्डिका = शर्करा, वे कैसे गलत है और आज के च्यवनप्राश की पेशंट को सजेस्ट की जाने वाली मात्रा कैसे गलत है, ये स्पष्ट किया हुआ है. उत्सुक और जिज्ञासू वैद्य उसे अवश्य पढे और उसके अनुसार अपने प्रॅक्टिस मे उचित स्वरूप का बदलाव लाये. जैसे दिवाली पर अनेक वैद्य सुगंधी तेल अभ्यंग तैल केश्यतैल उद्वर्तन / उबटन बेचते है या पुष्य नक्षत्र पर स्वर्णप्राशन बेचते है या पूरे साल भर शतावरी कल्प बेचते है ... वैसे हि थंडी के मौसम मे च्यवनप्राश बेचते है .. ऐसे औषध *बेचने वाले बनिया* मत बनो. पेशंट का स्वास्थ्य बनाने वाले, रोग का नाश करने वाले, सक्षम वैद्य है हम! बाजार मे खडे रहकर, पैसा कमाने वाले बनिया व्यापारी ट्रेडर्स नही है, इस वास्तविकता का हमेशा स्वयं के मन मे जागर रखे!!!🙏🏼 पेशंट हमारा ग्राहक कस्टमर क्लायंट नही है, सुश्रुताचार्य कहते है वैसे, पेशंट हमारा पुत्र भी नही है. पेशंट हमारे लिए हमारा अन्नदाता अर्थात ईश्वर भगवान है ... तो उस पेशंट रुपी भगवान की प्रति हमारा आचरण/ व्यवहार यह अत्यंत शुचियुक्त और प्रामाणिक होना चाहिए. इसलिये उसे औषध बेचिये नहीं, उसके स्वास्थ्यरक्षण और रोगनाशन के लिए कन्सल्टिंग फिजिशियन अर्थात प्राणाभिसर वैद्य बने🪔 Copyright कॉपीराइट ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत. आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक. सर्व अधिकार सुरक्षित म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda 9422016871 www.MhetreAyurveda.com www.YouTube.com/MhetreAyurved/ Mhetreayurveda@gmail.com Disclaimer/अस्वीकरण: लेखक यह नहीं दर्शाता है, कि इस गतिविधि में व्यक्त किए गए विचार हमेशा सही या अचूक होते हैं। चूँकि यह लेख एक व्यक्तिगत राय एवं समझ है, इसलिए संभव है कि इस लेख में कुछ कमियाँ, दोष एवं त्रुटियां हो सकती हैं।

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