Monday, 20 November 2023

हिंदी : च्यवनप्राश निर्मिती कुछ प्रश्न एवं संदेह

हिंदी : च्यवनप्राश निर्मिती :
कुछ प्रश्न एवं संदेह 🤔⁉️

Picture credit Google Gemini AI 

Copyright कॉपीराइट ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत. आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक. सर्व अधिकार सुरक्षित म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda 9422016871 www.MhetreAyurveda.com www.YouTube.com/MhetreAyurved/ Mhetreayurveda@gmail.com 

 Disclaimer/अस्वीकरण: लेखक यह नहीं दर्शाता है, कि इस गतिविधि में व्यक्त किए गए विचार हमेशा सही या अचूक होते हैं। चूँकि यह लेख एक व्यक्तिगत राय एवं समझ है, इसलिए संभव है कि इस लेख में कुछ कमियाँ, दोष एवं त्रुटियां हो सकती हैं। 


 बाजार में आ गया है रसीला आंवला. कई आयुर्वेदिक समूह कुछ सौ पांचसौ किलो च्यवनप्राश का उत्पादन करने की तैयारी कर रहे हैं। उसमें अष्टवर्ग जोड़ें या न जोड़ें, मूल / असली रूप उपलब्ध है या नहीं, कीमत की दृष्टि से ॲफाॅर्ड होगा कि नहीं, इस विषय पर विज्ञान से लेकर, व्यवहार तक व्यापक स्तर पर चर्चा चल रही है। 

लेकिन मुझे तो, च्यवनप्राश बनाने की प्रक्रिया और आमलकी की अस्पष्टता/संदिग्धता के विषय में हि कुछ प्रारंभिक संदेह हैं। 🤔⁉️

 वास्तव में, दो बहुत प्रसिद्ध आयुर्वेद औषध: च्यवनप्राश और आमलकी के विषय में कोई भी संदेह रखना, द्रव्यगुण भैषज्यकल्पना और समग्र रूप से आयुर्वेद के विषय में मेरी अज्ञानता को दर्शाता है। यह जानकर भी मैं विशेषज्ञ, अनुभवी, सक्रिय आयुर्वेदज्ञों के सामने निम्नलिखित बातें रखना चाहूंगा। 

 'आमलकी' चरक चिकित्सा 1 और भावप्रकाश निघण्टु इन दोनों ग्रंथों में वर्णित द्वितीय द्रव्य है। 

1. भावप्रकाश में हरीतकी फल का भार 'द्विकर्ष' कहा गया है। 

2. च चि. 1 में, लिखा है एका हरीतकी योज्या, द्वौ च योज्यौ बिभीतकौ / चत्वार्यामलकान्येवं त्रिफला 

3. त्रिफला योग में तीनों पदार्थ समान (भार) मात्रा में होते हैं। क्या इन तीन कथनों से यह कहा जा सकता है? 

 1 हरीतकी = 2 कर्ष = 2 बिभीतक = 4 आमलकी = 2 कर्ष 

 1 बिभीतक = 1 अक्ष = 1 कर्ष (अक्ष = कर्ष, अ हृ क. 6) 

 इससे 1 आमलकी = 1/2 आधा/अर्ध कर्ष ; 

 क्या यह कथन सही है? 

हां ... सही है ✅️ 

 मूलतः, आज पल, कर्ष का समतुल्य मापन/भार, ग्राम gms में कितना होना चाहिए? 

इस संबंध में कई मतभेद हैं. 

फिर भी, 1 पल 40 से 50 ग्राम माना जाता है। 

तो 1 कर्ष 10 से 12.5 ग्राम होता है। 

अर्थात *आमलकी फल भार अर्ध कर्ष = 5 से 6.25 ग्राम* माना जाता है। 

 अर्थात 1 किलो में 200 से 160 फल शामिल होने चाहिए. 

क्या आज हम जो फल खाते हैं या च्यवनप्राश में या अन्य आयुर्वेदीय औषध में प्रयोग में लाते है, क्या वह इस परीक्षा में उत्तीर्ण होता है? 

'संख्या स्याद् गणितम्' या 'ऑब्जेक्टिव न्यूमॅरेटिक्स' के युग में क्या हम आमलकीफल का प्रयोग मन/रूढी से किंतु अशास्त्रीय रूप में कर रहे हैं? 

 च्यवनप्राश में स्पष्ट रूप से 500 आमलकीफल लेने को कहा है। 

फिर, यदि हम, आज उपयोग में आने वाले 500 आमलकीफल को लें, तो उनका कुल वजन 14 से 17 किलोग्राम होता है। शास्त्रोक्त मात्रा में इतना आँवला कोई नहीं लेता। 

आज का व्यवहार प्रायः 500 आमलकीफल = 5 किलोग्राम आंवले, ऐसा होता है। क्या यह एक साहसिक विधान है? 

 वैसे मूलतः 1 आमलकी = 1/2 आधा कर्ष अर्थात 5 से 6.25 ग्राम, यदि यह कथन सत्य है, 

तो 500 आमलकीफल का वजन मात्र 2.5 से 3 किलोग्राम होता है। 

वहीं, आज का आंवला अगर 5 किलो लिया जाए, तो 150 से 175 फल आता है। (1 किलो में 30 से 35 फल के हिसाब से) 

 *तो फिर 'शास्त्रीय च्यवनप्राश' कहां बनता है?* 

*फलों की संख्या या फल राशिभार (कुल वजन) के संदर्भ में, हम किसी भी तरह से, 'आमलकी या च्यवनप्राश' की शास्त्रीयता के निकट नहीं पहुंचते हैं।* 

* यही बात च्यवनप्राश में चीनी/शर्करा की मात्रा के बारे में भी है

 'मत्स्यण्डिका तुलार्धेन' = अर्ध तुला = 100 ÷ 2 = 50 पल = 2000 से 2500 ग्राम = 2 से 2.5 किलो। 

मुझे नहीं लगता कि कोई इतनी कम चीनी डालता है च्यवनप्राश में. 

 5 किलो आमलकीफल में 5 किलो शर्करा मिलाना सामान्य व्यवहार है। 

 शास्त्रोक्त/ग्रन्थोक्त च्यवनप्राश योग कहता है 500 आमलकीफल और 2 से 2.5 किलो शर्करा 

लेकिन सामान्य व्यवहार में प्रायः 5 किलो आंवला और उतनी ही समान मात्रा में शर्करा से हजारों किलो च्यवनप्राश बनाया जाता है. 

शास्त्रोक्त/पाठ्यानुरूप कुछ भी नहीं करना है और लेबल छापते समय शास्त्रोक्त/पाठ्यानुरूप जैसे मोटे/bold टाइप में ही उल्लेख करते है। यह प्रतारणा किस लिए है? 

'रूढिः योगादपि बलीयसी' यही मान्य करना है? 

आधुनिक विज्ञान मॉडर्न मेडिसिन mg में मात्रा/dose निर्धारित करता है और हम किलो/टनों की गणना में अपराध करते हैं!? 

 "अरे, तुम हमारा दिमाग क्यों खा रहे हो? परिणाम/रिजल्ट आ रहे हैं नं?"

 क्या इसका अर्थ, हर जगह उपयोगितावाद के सामने आत्मसमर्पण करना है? 

 'अच्छा, इस प्रश्न का कोई उत्तर, विकल्प है भी? 

या केवल ब्रेन को ड्रिल करते रहना है? 

 अच्छा यह देखो… 

 1. बाजार में एक छोटा सा आंवला मिलता है, उसका वजन कर लेते हैं. सच में! इसका औसत वजन 5 से 6 ग्राम होता है. ... तो क्या आप करेंगे?! ये छोटे आमलकीफल 500 संख्या में और शर्करा 2 से 2.5 किलो लेनी है. 

 2. या सामान्य रूप मे जो आवले मिलते है बाजार में वही 500 आंवले लेकर च्यवनप्राश बनाये किंतु शर्करा 2 से 2.5 किलो ही लेनी है, 5 kg नहीं. 

 3. 500 छोटे आमलकीफल लें और उनका कुल वजन जितना है, उतने ही वजन की जितनी हम वर्तमान में उपयोग करते हैं, वे बडे आंवले ले ले और 2 से 2.5 किलोग्राम हि शर्करा लें. 

 इन 3 विकल्पों में आमलकीफल परिवर्तनशील variable है। 

तो शर्करा की मात्रा स्थिर रखें। 

 आज देश में कुछ हजार किलो च्यवनप्राश *पारंपरिक* पद्धती से बनाया जाता है। 

 उपरोक्त 3 तरीकों से केवल 1 से 5 किलो मात्र हि च्यवनप्राश बनाएं। 

'बिजनेस लॉस' से बचने के लिए बाकी च्यवनप्राश को हमेशा की तरह 'मीठा चॉकलेटी स्वादिष्ट' बनाए. 

 यदि सैकड़ों वैद्यों के हजारों पेशंट पर उपरोक्त 3 प्रकार के च्यवनप्राश के प्रयोग के परिणाम एकत्र किए जाएं, तो अगले वर्ष इसे 'अधिकृत रूप में मानकीकृत करके (Standardized) को जनता के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है। 

 और सेलेबल बाजारू च्यवनप्राश रेसिपी बनाने वालों को 'वैज्ञानिक' आधार पर मजबूती से रोका जा सकता है. 

 हमे विज्ञान के लिए आयुर्वेद के लिये ऐसा करना आवश्यक है.

 'संगच्छध्वं संवदध्वं… 

अंत में 'असद्वादिप्रयुक्तानां वाक्यानां प्रतिषेधनम् एवं 'स्ववाक्यसिद्धि: अपि' हम सभी को तंत्रयुक्ति के इस उद्देश्य को सिद्ध करना होगा। यद्यपि तंत्रयुक्तियां संहिता तथा सिलॅबस दोनो मे सबसे अंत में दी गई है। 

 संभवतः पेशंट्स को अधिक लाभकारी और आर्थिक रूप से अधिक लाभदायक 'योग' मिलेगा। 

च्यवनप्राश के अन्य अस्पष्ट विषयों 🤔⁉️ पर निकट भविष्य मे हि फिर कभी चर्चा करेंगे। 

जैसे सेवनमात्रा, अष्टवर्ग, दशमूल, मत्स्यण्डिका, केसर आदि। 

 आशा है, सभी यशस्वी वैद्य, द्रव्यगुण और भैषज्यकल्प के सभी शिक्षक, च्यवनप्राश बनाने वाले सभी उत्सुक जिज्ञासू नवयुवक छात्र और पूरे देश मे में प्रसिद्ध फार्मेसी, चवनप्राश संबंधित इस प्रस्तुत विषय पर रचनात्मक रूप से सोचेंगे और उचित नैतिक प्रतिसाद (प्रतिक्रिया reaction नहीं, response प्रतिसाद) देंगे। 

 Copyright कॉपीराइट ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत. आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक. 

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 Disclaimer/अस्वीकरण: लेखक यह नहीं दर्शाता है, कि इस गतिविधि में व्यक्त किए गए विचार हमेशा सही या अचूक होते हैं। चूँकि यह लेख एक व्यक्तिगत राय एवं समझ है, इसलिए संभव है कि इस लेख में कुछ कमियाँ, दोष एवं त्रुटियां हो सकती हैं।

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