कल्प'शेखर' भूनिंबादि एवं शाखाकोष्ठगति, छर्दि वेग रोध तथा ॲलर्जी
लेखक : Copyright © वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. म्हेत्रेआयुर्वेद. MhetreAyurveda
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भूनिंबादि क्वाथ का उल्लेख योगरत्नाकर के अम्लपित्त अधिकार मे आता है. (चरक संहिता मे उल्लेखित ग्रहणी अधिकार का भूनिंबादि चूर्ण एक अलग योग है. उसके द्रव्य अलग है.)
वैसे योगरत्नाकरोक्त भूनिंबादि क्वाथ (अम्लपित्त अधिकार) इस योग के पहले,
शोधन चिकित्सा और शमन चिकित्सा के अनेक योग आते है.
इसी अम्लपित्त रोग के अधिकार में रसकल्प की सूची में केवल तीन रसकल्प है, जिसमे आयुर्वेद जगत का सर्वाधिक लोकप्रिय सूतशेखर है. सूतशेखर को तो अथाह लोकप्रियता है और अम्लपित्त छोडकर न जाने कितने लक्षण अवस्थाओं में व्याधियों में अधिकारो में और कितने अन्य योगों के साथ सूतशेखर का प्रयोग होता है. सूतशेखर के कई अनाप्त अनधिकृत व्हर्जन भी बाजार मे प्राप्त है. जैसे, रौप्य सुवर्ण सूतशेखर, सुवर्णभस्म के बिना बना हुआ साधा सूतशेखर ... और इसके भी "अच्छे रिझल्ट" लोगों को आते है, ऐसा क्लेम किया जाता है.
भूनिंबादि क्वाथ योग मे केवल आठ (8) हि वनस्पती द्रव्य है
भूनिंब निंब त्रिफला पटोल वासा अमृता पर्पट मार्कव
इन द्रव्यों की उपलब्धता की सुनिश्चिती होती है और इनका अगर संयोग देखा जाये, तो वात पित्त कफ तीनो प्रकार के दोष स्थिती मे, विशेष रूप से कफ पित्त प्रधान दोष स्थिती मे, क्लेद प्रधान अवस्था मे, इसका यशस्वी प्रयोग संभव है.
विगत 6 वर्ष मे, 10+ किलो = 40000+ *सप्तधा बलाधान भूनिंबादि टॅबलेट* का प्रयोग करने के बाद यह लेख लिख रहा हू.
जैसे की रसशास्त्र यह आयुर्वेद का भाग हि नही है, इस निर्धारित संकल्पना के साथ हम प्रॅक्टिस करते है और इस कारण से अम्लपित्त के आने वाले पेशंट मे किसका प्रयोग करे, इसका सर्वप्रथम उत्तर भूनिंबादि है.
विशेष रूप से देखा जाये, तो सूतशेखर को मार्कव की हि भावनाये है (जो भूनिंबादि क्वाथ का अंतिम द्रव्य है) और सूतशेखर के बाकी के सारे द्रव्य तो उष्णवीर्य है और वे अम्लपित्त को कैसे शमन करते है, ये मेरे आकलन के परे है.😇
उदरदाह, अम्लिका, कंठदाह, उरोदाह, शिरःशूल, छर्दि से उपशम मिलने वाला शंखशूल, मायग्रेन, छर्दि, उदरशूल, तिक्तास्यता, अम्लास्यता, प्रसेक, हृल्लास ऐसे अम्लपित्त से संबंधित, प्रायः पेशंट के जो प्रेझेंटिंग कंप्लेंट होते है, उसमे इस टॅबलेट का पेशंट की अवस्था एवं बल के अनुसार, दो तीन चार या छ टॅबलेट का, एक बार का डोस, इस मात्रा मे अगर दिन मे, दो तीन या चार बार, भोजनोत्तर, प्रयोग करे तो, कुछ मिनटो से एक घंटे के भीतर तक, सभी लक्षणों में प्रायः उपशम प्राप्त होता हि है.
भूनिंबादि क्वाथ के सभी घटक प्रायः तिक्त रसके है, इसीलिए वे अम्ल के विरोधी है. अम्ल और तिक्त ये परस्पर विरोधी रस है. (मधुर और कटू तथा लवण और कषाय, ये भी परस्परविरोधी रसों के युगुल है. ऐसा चरक विमान 1 तथा अष्टांग संग्रह सूत्र 23 मे उल्लेखित है)
मार्केट मे भूनिंबादि काढा नाम से जो प्रवाही औषध मिलता है, वह काढा क्वाथ कषाय न होकर, आसव अरिष्ट इस प्रकार का अल्कोहोल स्वरूप अम्ल द्रव पदार्थ है. अगर काढा के नाम से अल्कोहोल आसव अरिष्ट देंगे, तो अम्ल विपाक बढकर अम्लपित्त वृद्धिंगत हि होता है. क्यूंकि मद्य अम्ल में श्रेष्ठ है
प्रकृत्या मद्यमम्लोष्णमम्लं चोक्तं विपाकतः ।
सर्वेषां मद्यमम्लानाम् उपर्युपरि तिष्ठति ॥
श्रेष्ठमम्लेषु मद्यं च ॥
मद्यस्य अम्लस्वभावस्य
ऐसा चरक संहिता मे लिखा है
इस कारण से काढा स्वरूप मे हि, चरकोक्त पंचविध कषाय कल्पना के अनुसार पेशंट को औषध का लाभ हो, इस दृष्टी से यह सप्तधा बलाधान टॅबलेट बनाये है. ये टॅबलेट एक कप गरम पानी मे 10 मिनिट तक रखेंगे, तो चरकोक्त मात्रा मे क्वाथ हि बनता है. इस विषय मे चूर्ण की मात्रा , क्वाथ की मात्रा और इनका समायोजन ऍडजेस्टमेंट सप्तधा बलाधान टॅबलेट निर्माण मे कैसे होता है, इसका विस्तार से मूलभूत संकल्पना स्वरूप मे वर्णन, इसके पूर्व का प्रकाशित लेख इन्स्टंट पेन किलर शीघ्र वेदनाशमन इस लेख मे अंत मे दिया हुआ है; उसे उत्सुक जिज्ञासू सन्मित्र वैद्य अवश्य पढे. उसकी लिंक यहा पर दी हुई है
https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/10/blog-post.html
शाखा कोष्ठ गति एवं छर्दि वेगरोध:
१.
कुष्ठ, अम्लपित्त और शीतपित्त का वर्णन योग रत्नाकर में एक दूसरे के बाद हुआ है. एवं च
२.
वेगरोधके वर्णन मे छर्दि वेग रोध के लक्षण में विसर्प, कुष्ठ कोठ और हृल्लास इनका उल्लेख प्राप्त होता है. तथा
3.
वमन के द्रव्य देखेंगे तो, अम्लपित्त मे पटोल निंब तथा शीतपित्त मे पटोल निंब *और वासा* इनका उल्लेख हुआ है. कोल्हटकर सर का कहना था कि शीतपित्त यह शाखागत क्लेद है , जिसको कोष्ठ मे लाने के लिए, अगर पटोल निंब ये दो समान द्रव्य अलग किये जाये तो, केवल वासा हि ऐसा द्रव्य है, जो शाखा गत क्लेद प्रधान दोषोंको कोष्ठ मे लाने का सामर्थ्य रखता है.
शीतपित्त = शाखा गत अम्लपित्त
अगर लक्षणों को देखा जाये , तो शीतपित्त एक दृष्टी से, शाखा गत अम्लपित्त है. क्लेदप्रधान दोष संचिती त्वचा से बाहर आने का प्रयास करती है, क्योंकि वहा पर नया मुख तो निर्माण नही हो सकता, जिसके द्वारा वमन हो सके! क्लेद प्रधान उत्क्लिष्ट किंतु तिर्यग्गत शाखा गत दोष बाहर आ जाये, तो हृल्लास यह कोष्ठ का लक्षण, शाखा मे कंडू के रूप मे प्रतीत होता है!
अम्लपित्त = कोष्ठगत शीतपित्त
वही अम्लपित्त, यह कोष्ठगत शीतपित्त है, जैसे शीतपित्त में कंडू होती है, किंतु आप अपने मुंहमे हात डालकर नीचे आमाशय तक जाकर वहा पर खुजली नही कर सकते, इस कारण से कंडू यह शाखागत लक्षण, कोष्ठ मे हृल्लास के रूप मे प्रतीत होता है !
तो अगर इन तीनो मुद्दों को देखा जाये की
1. रोगाधिकार का क्रम
2. शोधोनोपचार के द्रव्य तथा
3. शाखा गत लक्षण और कोष्ठगत लक्षण जो क्लेदप्रधान दोष की उपस्थिती से निर्माण होते है.
तो भूनिंबादि ऐसे स्थितियों में शीघ्र (fast) एवं दीर्घकालीन(sustainable) उपशम तथा अपुनर्भव (non recurrence) तक का परिणाम देने मे सक्षम है, अर्थात उसकी मात्रा तथा उपचार कालावधी, यह रुग्ण की स्थिती और रोगदोष के बल के साथ हि, देश काल इस पर यह परिणाम लाभ प्राप्त होना निर्भर करता है
ॲलर्जी :
ॲलर्जी को अँटी हिस्टामिनिक के रूप में उपचार दिये जाते है, तो प्रायः जिनको अस्थमा या ऱ्हाईनायटिस और अर्टिकॅरिया है, उनको अँटी हिस्टामिनिक प्रकार की औषधी दी जाती है. ऐसे कफ पित्त प्रधान क्लेदप्रधान पृथ्वी जल प्रधान अवस्थाओं में, भूनिंबादि, मूलगामी उपचार रूप से दोषशमन करने की क्षमता के कारण एक अपुनर्भवकारी उपशम देने मे सक्षम होता है. आपको अन्य दो तीन चार द्रव्य या कल्पों का संयोग करने की आवश्यकता नही होती है , इतना यह अकेला कल्प स्वयं के सामर्थ्य के कारण उपशम देने मे सक्षम है.
हमे अगर हेतु स्कंध और लक्षण स्कंध का (दोष गुण रस एवं) महाभूत परिभाषा मे उचित रूप से आकलन हो गया है, तो तद्विपरीत औषध स्कंध का आयोजन करना, यह सुकर होता है. इसी कारण से अम्लपित्त शीतपित्त क्लेद प्रधान कफपित्त प्रधान दोषावस्था तथा ॲलर्जी के रूप मे जाने जाने वाले अस्थमा ऱ्हाईनायटिस और अर्टिकॅरिया इन मे भूनिंबादि का सफल प्रयोग अनुभव कर सकते है
साथ हि अम्लपित्तजन्य शाखा गत जो लक्षण है, जिसमे कोठ उदर्द शीतपित्त कंडू विदाह विस्फोट और कुछ त्वचारोग (शुष्क या स्रावी, दोनो प्रकार के, जिसे प्रायः लोग अर्टिकेरिया या फंगल इन्फेक्शन) के रूप मे डायग्नोस करते है, ऐसे लक्षणों मे भी भूनिंबादि का प्रयोग सफल होता है.
उसके साथ अधोग (अम्ल)पित्त के रूप मे, यदि गुदशूल गुददाह पाक कंडू गुदरौक्ष्य कृमि मूत्रदाह...
एवं च ज्वर प्रचिती अंगदाह त्वचादाह तथा नेत्रदाह मुखपाक हस्तपादतलदाह ऐसे सर्वांगगामी लक्षणों में भी भूनिंबादि का सफल प्रयोग हो(सक)ता है.
गर्भिणी छर्दि एवं गर्भिणी हृल्लास में भी भूनिंबादि अत्यंत अल्प समय मे उपशम देता है.
मर्फीज् साइन यह सर्जिकल इंडिकेशन ना हो, तो गाॅल ब्लॅडर स्टोन में भी उपशम होता है. प्रायः तीन महीने के उपचार के बाद, सोनोग्राफी में दिखने वाला 2.7 सेंटीमीटर अर्थात सत्ताईस एम एम (27mm) तक का गाॅल स्टोन भी नष्ट होता है
भूनिंबादि में प्रायः सभी द्रव्य तिक्त रस प्रधान है अर्थात वायु आकाश प्रधान है, इस कारण से शोषणे रूक्षः इस रूप मे, क्लेद प्रधान पृथ्वी जल प्रधान ऐसे भाव पदार्थों का एवं तज्जन्य लक्षणों का उपशम भूनिंबादि से अत्यल्प समय मे होता है.
थोडी अतिशयोक्ती भी मान लेंगे तो चलेगा, किंतु जहा जहा सूतशेखर काम करता है, वहा वहा भूनिंबादि की सप्तधा बलाधान टॅबलेट काम करती है.
यदि पारद गंधक धत्तूर बचनाग ऐसे विषद्रव्यों के द्वारा आरोग्य(?) की प्राप्ती हो सकती है,
यदि सुवर्णभस्म बिना डाले भी सादा सूतशेखर से अगर "अच्छे परिणाम" मिलते है(?), ऐसा "क्लेम" किया जा सकता है,
तो इन आठ अमृत समान औषध द्रव्यों के योग अर्थात भूनिंबादि = *कल्प'शेखर' भूनिंबादि* के सप्तधा बलाधान टॅबलेट द्वारा आपको मनचाहा परिणाम प्राप्त होना निश्चित हि है.
अल्पमात्रोपयोगी स्यात्
अरुचे: न प्रसंग: स्यात् ।
क्षिप्रम् आरोग्यदायी स्यात्
*सप्तधा भाविता वटी* ।।
आईये, हम सभी मिलकर, "रसशास्त्र विरहित" आयुर्वेद को, संहितोक्त आयुर्वेद को, अपनाये,अंगीकार करे, स्वीकार करे, अवलंब करे, अनुनय करे, प्रसारित करे प्रस्थापित करे.
ये कल्प'शेखर' भूनिंबादि के सप्तधा बलाधान 6 टॅबलेट गरम पाणी के साथ या चाय के साथ या केवल पानी के साथ भी अगर ली जाये , या चबाकर खाकर उस पर पानी पिया जाये, तो भी पेट मे जाकर, कुछ ही समय में , उसका संहिता को जैसे अभिप्रेत है, वैसे क्वाथ बन जायेगा. क्योंकि इन टॅबलेट्स की हार्डनेस और डिसिंटिग्रेशन टाईम उस प्रकार से निश्चित किया हुआ रहता है. और जैसे पहले बताया, वैसे इस प्रकार की सप्तधा बलाधान टॅबलेट का सेवन उचित मात्रा मे करने के बाद, कुछ हि मिनिट से 1 घंटे की कालावधी मे, पेशंट को अम्लपित्त संबंधित लक्षणों के उपशम का अनुभव प्रायः आता है. ऐसा हमे पिछले 6 सालो मे , 10+ किलो = 40000+ टॅबलेट के उपयोग के बाद ज्ञात हुआ है.
अभी कल्प'शेखर' भूनिंबादि के सप्तधा बलाधान टॅबलेट , यह कोई मेरा एकाधिकार या मेरा अपना संशोधन /डिस्कवरी /रिसर्च /पेटंट ऐसा कुछ भी नही है, जिन्हे इस प्रकार की सप्तधा बलाधान टॅबलेट का अनुभव लेना हो, तो वे स्वयं इस प्रकार का प्रयोग करके देखे. किंतु इसके केवल चूर्ण के अपेक्षित रिझल्ट नही आते है. आप सप्तधा बलाधान की टॅबलेट बनाकर हि इसका प्रयोग करे. जिन्हे प्रयोग के लिए / अभ्यास की दृष्टि से / शास्त्र अनुभव के रूप मे, इस प्रकार की टॅबलेट का उपयोग करके देखना है, वे हमे संपर्क कर सकते है या अपने यहां स्थानिक स्तर पर स्वयं सप्तधा बलाधान टॅबलेट का निर्माण करके उसका उपयोग करके इस अनुभव को स्वयं ले सकते है. हमने इस भूनिंबादि क्वाथ के सप्तधा बलाधान टॅबलेट का महाराष्ट्र शासन की औषध निर्माण रजिस्ट्री में विधीपूर्वक रजिस्ट्रेशन किया हुआ है
डिस्क्लेमर/Disclaimer : उपरोक्त कल्प क्वाथ योग टॅब्लेट का परिणाम; उसमे सम्मिलित द्रव्यों की क्वालिटी, दी हुई मात्रा, कालावधी, औषधिकाल, ऋतु, पेशंट की अवस्था इत्यादि अनेक घटकों पर निर्भर करता है.
अस्वीकरण/डिस्क्लेमर/Disclaimer : लेखक यह नहीं दर्शाता है कि इस गतिविधि में व्यक्त किए गए विचार सर्वथैव योग्य अचूक बरोबर निर्दोष होते हैं। चूँकि यह लेख एक व्यक्तिगत मत, आकलन एवं समझ है, इसलिए संभव व मान्य है कि, इस लेख में कुछ कमियाँ और दोष हो सकते हैं।
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