त्रिविध आयुर्वेद प्रॅक्टिस
Both the above pictures credit Google Gemini AI
आयुर्वेद के संहिता ग्रंथो मे प्रायः रोग की चिकित्सा स्नेहपान पूर्वक शोधन से ही होती है
हमने जब ॲडमिशन लिया तब हम कॉलेज मे तो कुछ पढते नही थे , पढाते नही थे , सीखने को मिलता नही था
इसलिये कॉलेज समाप्ति के बाद शाम साडेपाच ते सात, सटीक ग्रंथ संस्कृत भाषा मे तत्त्वज्ञान थेरी सिद्धांत इसके लिये और ...
फिर सात बजे से, उस समय के जो प्रॅक्टिशनर थे (आयुर्वेद के शुद्ध प्रॅक्टिशनर) उनके डिस्पेन्सिंग मे पुडियां बांधते थे
उस समय पंचकर्म का उतना व्यवहार नही होता था, वसंत ऋतु मे दस बारा पंचकर्म वमन के , विरेचन का तो इतना कुछ हॅपनिंग नही लगता था
स्काल्प से या जलौका से रक्त मोक्ष हप्ते महिनाभर मे एखाद बार होता था
और 100ml के सिरिंज से मात्र बस्ती देना और उससे बहुत ही कम फ्रिक्वेन्सी मे कभी कभार एनेमा पाॅट से तथाकथित निरूह बस्ती देना
साल मे एखाद बार कदर पर अग्नि कर्म देखना
बाकी तो , "शास्त्र मे जैसे कही लिखा ही नही, ऐसी "हर्बल योग + हर्बो मिनरल योग = "वनस्पतीजन्य चूर्ण या गोलियों को कूटकर की पावडर + उसके साथ रसशास्त्र के धातुओं के भस्म या रत्नों के भस्म या पिष्टी या रसकल्पों के टॅबलेट का चूर्ण" ये सारा मिलाके देते थे.
इतनी ही प्रॅक्टिस थी
इसके साथ साथ तो ठंडी के मौसम मे कुछ वैद्य च्यवनप्राश बेचते थे और साल भर कुछ वैद्य शतावरी कल्प बेचते थे
अभ्यंग तेल और उबटन बेचने का इतना व्यवहार अपना लेबल लगाकर करने का "धंदा" उस समय नही था
फिर जब हम पीजी करके वापस आये तब तक पंचकर्म का बोलबाला बहुत बढ चुका था
हमारे यूजी मे पूरे पुणे मे ब्युटी पार्लर की संख्या संभवतः दस से भी कम थी , जब हम 1998 मे वापीस आये, जामनगर से , तब पुणे के हर गली मे ब्युटी पार्लर खुल चुका था ... वैसेही हर गली पर नही , लेकिन जगह जगह पंचकर्म सेंटर दिखने लगे थे. हॉटेल मे मेनू कार्ड होता है वैसे क्लिनिक के बाहर छे फीड बाय चार फिट का बडा बोर्ड और उस पर बहुत सारे लोगों के नाम हमसफर पंचकर्म ट्रीटमेंट करते है वगैरे लिखा हुआ दिखाई देने लगा था.
पंचकर्म का कस्तुरे साहेब का पुस्तक, प्र ता जोशी, रामदास आव्हाड, थोडा बहुत त्र्यं म गोगटे इनका प्रभाव उसके लिए कारण था
कुछ लोगों पर सांगली के दातार शास्त्री के पंचभौतिक चिकित्सा का भी प्रभाव था, लेकिन उसमे देखा तो कल्प तो सारे पहले के ही ज्ञात जो या तो संहिता से या रसकल्प से हि थे, और उन की संख्या बीस के आसपास थी
लेकिन जब लोगों को ये पता चला की पुडिया में औषध देकर ज्यादा से ज्यादा , तीन फिगर या चार फिगर इतनाही बिल हो सकता है ... उसके साथ ...
अगर थोडा चकाचक इंटेरियर लाइटिंग & पंचकर्म का इंट्रोडक्शन हो चुका था इसलिये पिंडस्वेद पिषिंचिल के साथ , 45 मिनिट का दाक्षिण्यात्य नाम होने वाले तेलों का "मस्त, स्पा वाला, हॅपनिंग , फील गुड मालिश /मसाज" ऐसा कुछ पॅकेज ऑफर करेंगे , तो पंचकर्म को हम "शो धन = show Dhan" के रूप मे व्यवहार में लाकर पेशंट का बिल तीन चार फिगर की बजाय पाच फिगर तक जा सकता है
"पंच"कर्म के साथ साथ फिर "चंपी"कर्म भी शुरू हो गये ... जिसमे सबसे लोकप्रिय, आगे जाकर आयुर्वेद का बोधचिन्ह बना , शिरोधारा प्रमुख था ...
और उसके साथ साथ फिर जहा कही संभव हो सके, जहा कोई छिद्र भी नही है , वहा पर लोग बस्ती करने लगे ... जिसमे जानू कटी मन्या हृदय ये सब आ गया.
पंचकर्म जैसे "शो धन = show Dhan" बना , तो फिर जो जो चीज "धन शो , dhan show" कर सकती है , वो हर चीज , आयुर्वेदिक के नाम पर बेची जाने लगी ... चाहे उसका "सत्य नैतिक संदर्भ अधिष्ठान मूल , आयुर्वेद मे हो, या ना हो"!
और उसका मार्केटिंग इतना "भावनात्मक आकर्षक" पद्धती से किया गया की, ऐसा "शो धन = धन शो" करके आयुर्वेद को नयी आर्थिक उंचाई पर पहुंचाने ने वाली नयी पिढी का उनकी चतुराई का अभिनंदन जितना करे उतना कम है
फिर तो लोगों ने "कुछ भी नही छोडा" की "आयुर्वेद के नाम पर बेचा जा सके"!!!
प्रॅक्टिस के तीन कालखंड है
*इसमे से एक भी प्रॅक्टिस ; आयुर्वेद शास्त्र की शुद्ध प्रॅक्टिस नही है*
हम जब सीख रहे थे , तब जो खुलेआम मॉडर्न की प्रॅक्टिस कर रहे थे , उनके प्रति मुझे आदर है, क्यूंकी उन्होने स्पष्ट रूप से, स्वयं के लिए और समाज के लिए स्वीकृत किया था, की हम आयुर्वेद का शून्य उपयोग करेंगे और हम 100% मॉडर्न मेडिसिन का ही उपयोग करेंगे
जो लोग हम जब सीख रहे थे, तब "प्युअर (?) आयुर्वेद की हम प्रॅक्टिस करते है, ऐसा "दावा" कर रहे थे , वे आयुर्वेद के संहिताओ के तत्त्वों से बहुत दूर थे.
यद्यपि थोडे प्रमाण मे पंचकर्म, उसमे भी वमन सर्वाधिक, मध्यम विरेचन, कभी कभार बस्ती और क्वचित जलौका & अग्निकर्म कर रहे थे ... उसमे शास्त्रीय स्नेह पान मात्रा एवं कालावधी तथा शास्त्रीय स्वेदन पद्धती कालावधी इनका परिपालन उपयोजन नही हो रहा था
और जो भी पुडी में औषधे थी , ना तो उस का प्रमाण शास्त्रोक्त था, ना ही उसमे एक साथ एकत्र पडने वाले औषधो का संयोग शास्त्र के आधार पर था
उसमे शास्त्र से बहुत ज्यादा प्रभाव , परंपरा या यदृच्छा इस प्रकार का था
एक ही पुडी मे रसकल्प और आयुर्वेद भैषज्य कल्पना के कल्प संभवतः "एक समान मात्रा" मे देना, ये कौन से सूत्र सिद्धांत शास्त्र तत्व के आधार पर था , यह पूछने की उस समय हमने हिम्मत नही की
जब वापस आये एमडी करके, तो खुद का पेट भरना, आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करना, अपने पांव पर खडे रहना... इसमे दस पंधरा साल चले गये !
तब तक बहुतों के प्रॅक्टिस मे मालिश स्वेदन वमन विरेचन के feel good, happening, spa treatment पॅकेजेस , दिवाली पर च्यवनप्राश उबटन अभ्यंग तेल बेचना और साल भर जैसे हो सके वैसे शतावरी कल्प बेचना ... ये शुरू हो चुका था
और पहले का जो भेळ मिसळ चाट शेवपुरी जैसा , "दो अलग अलग शास्त्र, आयुर्वेद & रसशास्त्र के कल्प, एक साथ , एक ही पुडी मे बांध कर देने का व्यवहार था, वैसे ही चालू था"
लेकिन इसका भयानक तीव्र गती से अधःपतन तब हुआ, जब हर चीज को , शास्त्रीय नीतिमत्ता को दुर्लक्षित करके, आयुर्वेद के नाम पर पेशंट को बेचा जाने लगा !
जिसमे सबसे पहला था ... गर्भसंस्कार , जिसका इंट्रोडक्शन आयुर्वेद के बाहर की किसी व्यक्ति ने किया.
उसके बाद अनेक फ्लेवर के च्यवनप्राश और शतावरी कल्प का प्रचलन मार्केट में हुआ
उसके बाद सुवर्णप्राशन ...
फिर योगा ... फिर नाडी परीक्षा !!!
फिर बीच मे ही एक नया व्यवसाय आ गया की जो हम वॉलेंटरीली जूनियर्स को फ्री विनामूल्य टीका पढाते सीखाते थे ... वो शास्त्रीय गतिविधि, एकदम रेसिडेन्शिअल चार्जेबल पर कहने के लिए नॉन प्रॉफिट निवासी गुरुखूळ मे बदल गया
और उसके बाद अचानक से पुरस्कार देने वाले सन्मान देने वाले सेमिनार देश मे और विदेशो मे, यह भी एक नया व्यवसाय सुरू हो गया है
सुवर्ण प्राशन और गर्भसंस्कार के साथ साथ, गुरुखूळ सेमिनार वेबिनार के साथ साथ , कही पर भी की जाने वाली बस्ती विशेषता शिरोबस्ती , विद्ध के नाम पर ॲक्युपंक्चर, इंट्राविनस इंफ्युजन , सिद्ध पद्धती के वर्म को नामांतर करके मर्म थेरेपी के नाम पर , फिर योगा और नाडी को तो दोनो कंधो पर लेकर नाचते रहते ही है
जो सबसे मुख्य आक्षेपार्ह बात है वो है , की आयुर्वेदिक मूळ भैषज्य कल्पना से जो "आत्यंतिक विसंगत विपरीत विलक्षण विघातक विषस्वरूप" है, ऐसे रसकल्प को धडल्ले से प्रयोग किया जाता है और ऐसे सारे भेळ मिसळ शेवपुरी दहीपुरी चाट स्वरूप के "संमिश्रित hybrid mixopathy adulterated उपचारों" को "आयुर्वेद उपचार के नाम से" अपने ही लोगों द्वारा peer (?dear) review किये गये तथाकथित इंटरनॅशनल जर्नल मे रिसर्च पेपर के नाम से पब्लिश किया जाता है, की जिस आर्टिकल का & जिस भेळ मिसळ रँडमली मिक्स्ड ॲडजुएंट सपोर्टिंग पॅरेलल ट्रॅडिशनल सो कॉल्ड आयुर्वेद थेरपी का प्रोटोकॉल के रूप मे मानव जाती के आरोग्य के लिए आगे जाके शून्य उपयोग है !
दूसरी ओर अकॅडमी लेवल पर तो इतना भयावह अराजक हो चुका है, कि कोई भी किसी भी स्थान पर कितने भी सीट का आयुर्वेद कॉलेज खोल रहा है. और उस कॉलेज में आयुर्वेद का विद्यार्थी , आयुर्वेद का शिक्षक , उसको अटॅच हॉस्पिटल का पेशंट , वहां का कॉलेज का पीजी, ड्रग ट्रायल्स ये सबकुछ हंड्रेड पर्सेंट मिथ्या / फेक on paper / sold हो सकता है और फिर भी रुकता नही है ... ये प्रतिदिन हर राज्य मे एक्सपोनेन्शियल गति से बढता ही जा रहा है !
ये अत्यंत खेदयुक्त आश्चर्य का दुर्व्यवहार और इस पर किसी का नियंत्रण नही है और इसमे होने वाले दुर्व्यवहार पर किसी को आक्षेप नही है , इसको रोकने के लिए किसी की इच्छा & प्रयत्न कुछ भी नही! सभी स्तरो पर ... समाज / पेशंट / ईश्वर / वैद्य / विद्यार्थी / उनके पालक ... इन सभी के लिये अहितकारक है अनिष्ट है विघातक है ... यह विचार तक किसी को नही आता है, दुर्भाग्यपूर्ण है !!!
Hindi Translation:
अस्वीकरण Disclaimer: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार सर्वथा सही, सटीक, पूर्णतया निर्दोष हैं — ऐसा लेखक का कहना नहीं है। यह लेख व्यक्तिगत मत, समझ और आकलन पर आधारित है, इसलिए इसमें कुछ कमियाँ, त्रुटियाँ या अपूर्णताएँ होना संभव है। इस संभावना को स्वीकार करते हुए ही यह लेख लिखा गया है।
English Translation:
Disclaimer: The opinions expressed in this article are not claimed by the author to be absolutely correct, precise, or flawless. This article represents personal understanding, interpretation, and perspective; hence, the possibility of certain shortcomings, gaps, or errors is acknowledged and accepted by the author while writing it.
डिस्क्लेमर Disclaimer : मूळ मराठी डिस्क्लेमर Disclaimer : या लेखात व्यक्त होणारी मतं, ही सर्वथैव योग्य अचूक बरोबर निर्दोष आहेत, असे लिहिणाऱ्याचे म्हणणे नाही. हे लेख म्हणजे वैयक्तिक मत आकलन समजूत असल्यामुळे, याच्यामध्ये काही उणीवा कमतरता दोष असणे शक्य आहे, ही संभावना मान्य व स्वीकार करूनच, हा लेख लिहिला आहे.


सत्यवचन
ReplyDeleteVery true Guruvarya, You have not spared any1.
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