धार्मिक पर्यटन और आयुर्वेद !
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| घर घर आयुर्वेद हर घर आयुर्वेद Picture credit Google Gemini AI |
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Hindi Translation:
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English Translation:
Disclaimer: The opinions expressed in this article are not claimed by the author to be absolutely correct, precise, or flawless. This article represents personal understanding, interpretation, and perspective; hence, the possibility of certain shortcomings, gaps, or errors is acknowledged and accepted by the author while writing it.
जैसे किसी धार्मिक स्थल पर वहा के विशिष्ट दैवत के भक्ती या लोकप्रियता के कारण वहा पर बहुत सारे लोक दर्शन के लिए जाते है
तो लोगों की संख्या बहुत ज्यादा होने के कारण उस देवालय के आसपास इन लोगों की व्यवस्था केलीये "पूजा विधि के सामान के अलावा/साथ हि" भी अन्य सारी व्यवस्थायें अपने आप पनपने लगती है, जिसमे हॉटेल लॉज अर्थात खाने के रहने की व्यवस्था, बच्चों के लिए खिलोने बेचने की व्यवस्था, देवता के फोटो लॉकेट अंगुठी पेन बेचने की व्यवस्था, फिर ट्रान्सपोर्ट के लिए रिक्षा टॅक्सी बस रेल्वे फ्लाईट इनकी व्यवस्था ... तो उस एक लोकप्रिय दैवत के कारण बहुत सारी भीड और उस भीड की सेवा के लिए बहुत सारे "देवता से प्रत्यक्ष संबंधित नही है", ऐसे कई व्यापार वहा पर बडी मात्रा मे यशस्वी रूप से चलने लगते है.
और इन सभी मे कॉमन बात ये होती है की "वहा का जो भी देवता होता है, वह जीवित नही होता, है वहा पर सदेह अवस्था मे विद्यमान नही होता है"
यद्यपि उस देवता का दर्शन करने के लिए आने वाले जो भी भक्त है, उन्हे उस देवता के बारे मे भक्ती कितनी होती है यह अलग बात है ... उस देवता के लिए curiosity कितनी होती है ये भी अलग बात है ...
किंतु उस देवता के दर्शन के बहाने, घर के बाहर निकल कर कुछ नया अनुभव प्राप्त हो, ऐसा भी विचार आने वाले भीड के मन मे हो सकता है
व्यापारी, जो ... पूजा समान से लेके लॉजिंग हॉटेल ट्रान्सपोर्ट इसमे काम कर रहे है, उनके लिए भी ये अत्यावश्यक नही होता है कि, उनको वहां की जो लोकप्रिय देवता है, उसके बारे मे सब कुछ इत्थंभूत डिटेल में ज्ञान हो
उदाहरण के स्वरूप सार्वजनिक गणेशोत्सव मे सभी जगह पंडाल लगते है. बहुत सारी भीड जमा हो जाती है, आवश्यक नही होता है, कि गणपती दर्शन को आने वाले सभी प्रेक्षक या भक्त कहिये या व्यवस्थापन करने वाले स्थानिक मंडळ या मॅनेजिंग ग्रुप इनमें से भी किसी को, गणपती के बारे मे सारा शास्त्रीय ज्ञान हो यह "आवश्यक और संभव" दोनो नही है .
कभी कभी तो यहा तक हो सकता है, की गणपती के प्रतिष्ठापना के लिए लगने वाली पूजा सामग्री क्या है, उसका प्रयोजन क्या है, यह भी ज्ञात नही ... गणपती को समर्पण करते हुए उसके 21 नाम लिये जाते है और नाम का अर्थ ना पता हो , गणपती अथर्वशीर्ष उनको कंठस्थ न हो या गणपती अथर्वशीर्ष उनको कंठस्थ हो तो भी उसमे से सभी शब्दों का अर्थ उनको ज्ञात नही है, इतना ही नही गणपती का जो स्वरूप है जिसमे पाश अंकुश रद & वरद ऐसी वस्तुयें गणपती के चार हातो मे है , तो रद शब्द का अर्थ क्या है ? यह भी उनको ज्ञात हो , ऐसा व्यवस्थापन करने वाले मंडल के सहभागी व्यक्ती या दर्शन के लिये आने वाली भीड इनमे से किसी को भी ज्ञात हो ऐसा आवश्यक और संभव दोनो नही
ऐसे देवता के बारे मे बेसिक या सूक्ष्म, ग्रास या डिटेल, मॅक्रो या मायक्रो ... जानकारी न होना, यह उस देवता का दर्शन करने को आने वाले भक्त /पर्यटक / टुरिस्ट और वहा पर पूजा सामग्री या कुछ अन्य वस्तू बेचने के लिए जो लोग व्यापार कर रहे है, उन सभी मे से एक पर्सेंट तक व्यक्तियों को भी देवता के बारे मे ज्ञान होगा, ऐसी स्थिती प्राया नही होती है. और अगर अपवाद से किसी को ज्ञात होगा भी तो वह नियम ही सिद्ध करेगा जो यहा पर मैने बताया
ठीक ऐसी की ऐसी स्थिती आज आयुर्वेद क्षेत्र में है
आयुर्वेद नाम के पॉप्युलर देवता को लोकप्रिय दैवत को भी , ऐसे ही बडे कौशल से हायपर ओव्हर मेगा मार्केटिंग किया जा रहा है, और इस मार्केट मे जो लाभार्थी है जिने हम कुछ क्षण के लिए पेशंट कहेंगे सरकारी तौर पर तो मेडिकल टुरिझम ऐसाही शब्दप्रयोग होता है, तो पेशंट हो या टुरिस्ट या लाभार्थी हो ... उनको तो आयुर्वेद शास्त्र के बारे मे ज्ञान हो, ऐसी अपेक्षा रख ही नही सकते ...
तो उनकी आयुर्वेद के बारे मे जो भी कल्पना है, उसको हम क्षमा कर देते हे
किंतु जैसे किसी लोकप्रिय धार्मिक पर्यटन स्थल पर पूजा सामग्री के साथ साथ है खाणे पिणे खेलने ट्रान्सपोर्ट इनका व्यापार करणे वाले इन सुविधा को बेचने वाले , जो वहा के लोग है , जिनकी जीवनी लोकप्रिय दैवत पर आधारित है, उनको भी उस दैवत दैवता के बारे मे जानकारी होती है, ऐसा नही होता है. एक पर्सेंट को जानकारी हो जिसे हम अपवाद कह सकते है और इस अपवाद से फिर से जो मे बता रहा हू वही नियम सिद्ध होता है
आयुर्वेद मे भी आयुर्वेद नाम की लोकप्रिय देवता के नाम पर आयुर्वेद की पूजा विधी के रूप मे अगर हम मेडिसिन को मान ले, तो मेडिसिन के साथ साथ ही कई अन्य चीजे भी बेची जाती है,
और इन सभी बेचने वाले व्यापारियों को केवल ट्रेड सेल मार्केट मनी प्रॉफिट क्लाइंट कस्टमर इन्हे बातो से मतलब होता है
धार्मिक स्थल मे जो व्यापारी होते है जैसे उन व्यापारयों को वहा के देवता के बारे मे ज्ञान होना आवश्यक और संभव नही होता है, वैसेही आयुर्वेद क्षेत्र के इन "बेचने वाले व्यापारीयों" को आयुर्वेद का ज्ञान होता ही है, ऐसा आवश्यक और संभव नही होता है, इसी कारण से ये "बेचने वाले व्यापारी" आयुर्वेद के क्षेत्र में "आयुर्वेद के नाम पर कुछ भी" बेचते ही रहते है
जिनका स्पष्ट रूप से आयुर्वेद के मूल संहिता मे कही पर भी संदर्भ उल्लेख वर्णन नही है, निश्चित रूप से नही है, ऐसे ...
योगा बेचा जाता है,
गर्भसंस्कार बेचे जाते है,
रसशास्त्र भस्म रत्न धातू बेचे जाते है ...
जैसे अन्य धार्मिक स्थलों पर खिलौने बेचते है बच्चों के लिए,
ऐसे आयुर्वेद मे सुवर्णप्राशन संस्कार बेचा जाता है
फिर जैसे बाजार में सीजनल फल फूल बेचे जाते है,
ऐसेही आयुर्वेद मे सीजनल = दिवाली पर उटणं उबटन स्क्रब अभ्यंग तेल च्यवनप्राश साबुन शाम्पू (जो आयुर्वेद मे है ही नही), सौंदर्यप्रसाधन मेकअप किट, गाल की और बाल के उपचार के किट ,
फिर आयुर्वेद मे कही बताई नही ऐसी मालिश मसाज स्पा फील गुड हॅपेनिंग वेलनेस ट्रीटमेंट ,
कही पर स्पष्ट रूप से उल्लेख नही है ऐसे शिरोधारा जो मानसरोग के लिये है ऐसा बताया जाता है ,
ऐसा कोई रेफरन्स ही नही है फिर भी, ऐसे कई बस्ती , जो गुद की बजाय, हृदय मन्या कटी जानू यहा पर किये जाते है ,
जैसे कई साल पहले से , कुछ लोग आज बीएमएस डिग्री लेकर मॉडर्न मेडिसिन ऍलोपॅथिक प्रॅक्टिस करते है और उसको अपना अधिकार समजते है, उसके लिए कानूनी लडाई लडते है ...
ऐसे अभी नया दौर आया है की
जिसमे "आयुर्वेद के नाम पर" ...
कुछ भी और किसी भी थेरपी को बेचा जाता है ...
विद्ध के नाम से ॲक्युपंचर बेचा जा रहा है,
कायरो प्रॅक्टिक तक को भी घुसेड रहे है,
कुछ लोग प्राणीक हीलिंग को भी बेच रहे है,
फिर सिद्ध नाम की सिस्टीम से वर्म को लेकर मर्म थेरपी नाम से घुसेड रहे है ,
आय व्ही इनफ्युजन इसको भी आयुर्वेद के नाम पर बेचे जा रहे है ...
फिर ये सब कैसे बखुबी करना है, इसके ऑनलाईन ऑफलाइन कोर्स भी बेच रहे है ,
ये कोर्स कितना अधिकृत है , उसको कौन प्रमाणित कर रहा है, उसका रजिस्ट्रेशन क्या है ,
इससे सीखने सिखाने वाले = बेचने खरीदने वाले, किस्सी को कुछ भी लेना देना नही है
और इस मार्केट मे ऐसे ही व्यापारीयों की भीड बढती ही चली जाये ...
इसलिये हर शहर, हर गली, हर नुक्कड, हर जंगल, हर खेत, हर पहाड, हर पर्वत ... खोला जा रहा है ...
हो सके तो कुछ दिन के बाद "हर घर" में कॉलेज खोला जायेगा ...
एक एक गाव मे तीन-तीन आयुर्वेद कॉलेज है आज की स्थिति मे ...
पहले तो एक आयुर्वेद कॉलेज मे एक बॅच मे 35 या 60 विद्यार्थियों के ऍडमिशन की अनुमती दी जाती थी ...
अब तो 100 क्या ... 200 🙄😳 सीट एक बॅच मे, इतनी परमिशन दी जाने लगी है ...
आप देखेंगे की कुछ ही दिनो मे रास्ते पर किसी को भी पत्थर मारेंगे, तो पक्का बीएमएस आदमी को ही लगेगा, इतने बीएमएस लोक रास्ते पर चलते है, नजर आयेंगे ...
जैसे भारत के सभी प्रसिद्ध पर्यटन स्थलो पर अनकंट्रोल्ड भीड होती है, ऐसे ही बी एम एस लोगो की भीड हर शहर मे हर रास्ते पर दिखाई देगी ... जय हो ... जय आयुर्वेद ... घरघर आयुर्वेद !!!

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