Monday, 27 October 2025

त्रिविध आयुर्वेद प्रॅक्टिस : प्रॅक्टिस के तीन कालखंड

त्रिविध आयुर्वेद प्रॅक्टिस


Both the above pictures credit Google Gemini AI 

कृपया लेखके अंत मे दिया हुआ डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) अवश्य पढे

आयुर्वेद के संहिता ग्रंथो मे प्रायः रोग की चिकित्सा स्नेहपान पूर्वक शोधन से ही होती है 

हमने जब ॲडमिशन लिया तब हम कॉलेज मे तो कुछ पढते नही थे , पढाते नही थे , सीखने को मिलता नही था 

इसलिये कॉलेज समाप्ति के बाद शाम साडेपाच ते सात, सटीक ग्रंथ संस्कृत भाषा मे तत्त्वज्ञान थेरी सिद्धांत इसके लिये और ...

फिर सात बजे से, उस समय के जो प्रॅक्टिशनर थे (आयुर्वेद के शुद्ध प्रॅक्टिशनर) उनके डिस्पेन्सिंग मे पुडियां बांधते थे 


उस समय पंचकर्म का उतना व्यवहार नही होता था, वसंत ऋतु मे दस बारा पंचकर्म वमन के , विरेचन का तो इतना कुछ हॅपनिंग नही लगता था

स्काल्प से या जलौका से रक्त मोक्ष हप्ते महिनाभर मे एखाद बार होता था 

और 100ml के सिरिंज से मात्र बस्ती देना और उससे बहुत ही कम फ्रिक्वेन्सी मे कभी कभार एनेमा पाॅट से तथाकथित निरूह बस्ती देना 

साल मे एखाद बार कदर पर अग्नि कर्म देखना 

बाकी तो , "शास्त्र मे जैसे कही लिखा ही नही, ऐसी "हर्बल योग + हर्बो मिनरल योग = "वनस्पतीजन्य चूर्ण या गोलियों को कूटकर की पावडर + उसके साथ रसशास्त्र के धातुओं के भस्म या रत्नों के भस्म या पिष्टी या रसकल्पों के टॅबलेट का चूर्ण" ये सारा मिलाके देते थे. 

इतनी ही प्रॅक्टिस थी 

इसके साथ साथ तो ठंडी के मौसम मे कुछ वैद्य च्यवनप्राश बेचते थे और साल भर कुछ वैद्य शतावरी कल्प बेचते थे 

अभ्यंग तेल और उबटन बेचने का इतना व्यवहार अपना लेबल लगाकर करने का "धंदा" उस समय नही था 

फिर जब हम पीजी करके वापस आये तब तक पंचकर्म का बोलबाला बहुत बढ चुका था 

हमारे यूजी मे पूरे पुणे मे ब्युटी पार्लर की संख्या संभवतः दस से भी कम थी , जब हम 1998 मे वापीस आये, जामनगर से , तब पुणे के हर गली मे ब्युटी पार्लर खुल चुका था ... वैसेही हर गली पर नही , लेकिन जगह जगह पंचकर्म सेंटर दिखने लगे थे. हॉटेल मे मेनू कार्ड होता है वैसे क्लिनिक के बाहर छे फीड बाय चार फिट का बडा बोर्ड और उस पर बहुत सारे लोगों के नाम हमसफर पंचकर्म ट्रीटमेंट करते है वगैरे लिखा हुआ दिखाई देने लगा था.

 पंचकर्म का कस्तुरे साहेब का पुस्तक, प्र ता जोशी, रामदास आव्हाड, थोडा बहुत त्र्यं म गोगटे इनका प्रभाव उसके लिए कारण था 

कुछ लोगों पर सांगली के दातार शास्त्री के पंचभौतिक चिकित्सा का भी प्रभाव था, लेकिन उसमे देखा तो कल्प तो सारे पहले के ही ज्ञात जो या तो संहिता से या रसकल्प से हि थे, और उन की संख्या बीस के आसपास थी

लेकिन जब लोगों को ये पता चला की पुडिया में औषध देकर ज्यादा से ज्यादा , तीन फिगर या चार फिगर इतनाही बिल हो सकता है ... उसके साथ ...

अगर थोडा चकाचक इंटेरियर लाइटिंग & पंचकर्म का इंट्रोडक्शन हो चुका था इसलिये पिंडस्वेद पिषिंचिल के साथ , 45 मिनिट का दाक्षिण्यात्य नाम होने वाले तेलों का "मस्त, स्पा वाला, हॅपनिंग , फील गुड मालिश /मसाज" ऐसा कुछ पॅकेज ऑफर करेंगे , तो पंचकर्म को हम "शो धन = show Dhan" के रूप मे व्यवहार में लाकर पेशंट का बिल तीन चार फिगर की बजाय पाच फिगर तक जा सकता है 

"पंच"कर्म के साथ साथ फिर "चंपी"कर्म भी शुरू हो गये ... जिसमे सबसे लोकप्रिय, आगे जाकर आयुर्वेद का बोधचिन्ह बना , शिरोधारा प्रमुख था ...

और उसके साथ साथ फिर जहा कही संभव हो सके, जहा कोई छिद्र भी नही है , वहा पर लोग बस्ती करने लगे ... जिसमे जानू कटी मन्या हृदय ये सब आ गया.

 पंचकर्म जैसे "शो धन = show Dhan" बना , तो फिर जो जो चीज "धन शो , dhan show" कर सकती है , वो हर चीज , आयुर्वेदिक के नाम पर बेची जाने लगी ... चाहे उसका "सत्य नैतिक संदर्भ अधिष्ठान मूल , आयुर्वेद मे हो, या ना हो"!

और उसका मार्केटिंग इतना "भावनात्मक आकर्षक" पद्धती से किया गया की, ऐसा "शो धन = धन शो" करके आयुर्वेद को नयी आर्थिक उंचाई पर पहुंचाने ने वाली नयी पिढी का उनकी चतुराई का अभिनंदन जितना करे उतना कम है 

फिर तो लोगों ने "कुछ भी नही छोडा" की "आयुर्वेद के नाम पर बेचा जा सके"!!! 

प्रॅक्टिस के तीन कालखंड है 

*इसमे से एक भी प्रॅक्टिस ; आयुर्वेद शास्त्र की शुद्ध प्रॅक्टिस नही है* 

हम जब सीख रहे थे , तब जो खुलेआम मॉडर्न की प्रॅक्टिस कर रहे थे , उनके प्रति मुझे आदर है, क्यूंकी उन्होने स्पष्ट रूप से, स्वयं के लिए और समाज के लिए स्वीकृत किया था, की हम आयुर्वेद का शून्य उपयोग करेंगे और हम 100% मॉडर्न मेडिसिन का ही उपयोग करेंगे 

जो लोग हम जब सीख रहे थे, तब "प्युअर (?) आयुर्वेद की हम प्रॅक्टिस करते है, ऐसा "दावा" कर रहे थे , वे आयुर्वेद के संहिताओ के तत्त्वों से बहुत दूर थे.

यद्यपि थोडे प्रमाण मे पंचकर्म, उसमे भी वमन सर्वाधिक, मध्यम विरेचन, कभी कभार बस्ती और क्वचित जलौका & अग्निकर्म कर रहे थे ... उसमे शास्त्रीय स्नेह पान मात्रा एवं कालावधी तथा शास्त्रीय स्वेदन पद्धती कालावधी इनका परिपालन उपयोजन नही हो रहा था 

और जो भी पुडी में औषधे थी , ना तो उस का प्रमाण शास्त्रोक्त था, ना ही उसमे एक साथ एकत्र पडने वाले औषधो का संयोग शास्त्र के आधार पर था 

उसमे शास्त्र से बहुत ज्यादा प्रभाव , परंपरा या यदृच्छा इस प्रकार का था 

एक ही पुडी मे रसकल्प और आयुर्वेद भैषज्य कल्पना के कल्प संभवतः "एक समान मात्रा" मे देना, ये कौन से सूत्र सिद्धांत शास्त्र तत्व के आधार पर था , यह पूछने की उस समय हमने हिम्मत नही की 

जब वापस आये एमडी करके, तो खुद का पेट भरना, आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करना, अपने पांव पर खडे रहना... इसमे दस पंधरा साल चले गये !

तब तक बहुतों के प्रॅक्टिस मे मालिश स्वेदन वमन विरेचन के feel good, happening, spa treatment पॅकेजेस , दिवाली पर च्यवनप्राश उबटन अभ्यंग तेल बेचना और साल भर जैसे हो सके वैसे शतावरी कल्प बेचना ... ये शुरू हो चुका था 

और पहले का जो भेळ मिसळ चाट शेवपुरी जैसा , "दो अलग अलग शास्त्र, आयुर्वेद & रसशास्त्र के कल्प, एक साथ , एक ही पुडी मे बांध कर देने का व्यवहार था, वैसे ही चालू था"

लेकिन इसका भयानक तीव्र गती से अधःपतन तब हुआ, जब हर चीज को , शास्त्रीय नीतिमत्ता को दुर्लक्षित करके, आयुर्वेद के नाम पर पेशंट को बेचा जाने लगा !

जिसमे सबसे पहला था ... गर्भसंस्कार , जिसका इंट्रोडक्शन आयुर्वेद के बाहर की किसी व्यक्ति ने किया.

उसके बाद अनेक फ्लेवर के च्यवनप्राश और शतावरी कल्प का प्रचलन मार्केट में हुआ

उसके बाद सुवर्णप्राशन ...

फिर योगा ... फिर नाडी परीक्षा !!!

फिर बीच मे ही एक नया व्यवसाय आ गया की जो हम वॉलेंटरीली जूनियर्स को फ्री विनामूल्य टीका पढाते सीखाते थे ... वो शास्त्रीय गतिविधि, एकदम रेसिडेन्शिअल चार्जेबल पर कहने के लिए नॉन प्रॉफिट निवासी गुरुखूळ मे बदल गया 

और उसके बाद अचानक से पुरस्कार देने वाले सन्मान देने वाले सेमिनार देश मे और विदेशो मे, यह भी एक नया व्यवसाय सुरू हो गया है 

सुवर्ण प्राशन और गर्भसंस्कार के साथ साथ, गुरुखूळ सेमिनार वेबिनार के साथ साथ , कही पर भी की जाने वाली बस्ती विशेषता शिरोबस्ती , विद्ध के नाम पर ॲक्युपंक्चर, इंट्राविनस इंफ्युजन , सिद्ध पद्धती के वर्म को नामांतर करके मर्म थेरेपी के नाम पर , फिर योगा और नाडी को तो दोनो कंधो पर लेकर नाचते रहते ही है 

जो सबसे मुख्य आक्षेपार्ह बात है वो है , की आयुर्वेदिक मूळ भैषज्य कल्पना से जो "आत्यंतिक विसंगत विपरीत विलक्षण विघातक विषस्वरूप" है, ऐसे रसकल्प को धडल्ले से प्रयोग किया जाता है और ऐसे सारे भेळ मिसळ शेवपुरी दहीपुरी चाट स्वरूप के "संमिश्रित hybrid mixopathy adulterated उपचारों" को "आयुर्वेद उपचार के नाम से" अपने ही लोगों द्वारा peer (?dear) review किये गये तथाकथित इंटरनॅशनल जर्नल मे रिसर्च पेपर के नाम से पब्लिश किया जाता है, की जिस आर्टिकल का & जिस भेळ मिसळ रँडमली मिक्स्ड ॲडजुएंट सपोर्टिंग पॅरेलल ट्रॅडिशनल सो कॉल्ड आयुर्वेद थेरपी का प्रोटोकॉल के रूप मे मानव जाती के आरोग्य के लिए आगे जाके शून्य उपयोग है !

दूसरी ओर अकॅडमी लेवल पर तो इतना भयावह अराजक हो चुका है, कि कोई भी किसी भी स्थान पर कितने भी सीट का आयुर्वेद कॉलेज खोल रहा है. और उस कॉलेज में आयुर्वेद का विद्यार्थी , आयुर्वेद का शिक्षक , उसको अटॅच हॉस्पिटल का पेशंट , वहां का कॉलेज का पीजी, ड्रग ट्रायल्स ये सबकुछ हंड्रेड पर्सेंट मिथ्या / फेक on paper / sold हो सकता है और फिर भी रुकता नही है ... ये प्रतिदिन हर राज्य मे एक्सपोनेन्शियल गति से बढता ही जा रहा है !

ये अत्यंत खेदयुक्त आश्चर्य का दुर्व्यवहार और इस पर किसी का नियंत्रण नही है और इसमे होने वाले दुर्व्यवहार पर किसी को आक्षेप नही है , इसको रोकने के लिए किसी की इच्छा & प्रयत्न कुछ भी नही! सभी स्तरो पर ... समाज / पेशंट / ईश्वर / वैद्य / विद्यार्थी / उनके पालक ... इन सभी के लिये अहितकारक है अनिष्ट है विघातक है ... यह विचार तक किसी को नही आता है, दुर्भाग्यपूर्ण है !!!

Hindi Translation:


अस्वीकरण Disclaimer: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार सर्वथा सही, सटीक, पूर्णतया निर्दोष हैं — ऐसा लेखक का कहना नहीं है। यह लेख व्यक्तिगत मत, समझ और आकलन पर आधारित है, इसलिए इसमें कुछ कमियाँ, त्रुटियाँ या अपूर्णताएँ होना संभव है। इस संभावना को स्वीकार करते हुए ही यह लेख लिखा गया है।


English Translation:


Disclaimer: The opinions expressed in this article are not claimed by the author to be absolutely correct, precise, or flawless. This article represents personal understanding, interpretation, and perspective; hence, the possibility of certain shortcomings, gaps, or errors is acknowledged and accepted by the author while writing it.


डिस्क्लेमर Disclaimer : मूळ मराठी डिस्क्लेमर Disclaimer : या लेखात व्यक्त होणारी मतं, ही सर्वथैव योग्य अचूक बरोबर निर्दोष आहेत, असे लिहिणाऱ्याचे म्हणणे नाही. हे लेख म्हणजे वैयक्तिक मत आकलन समजूत असल्यामुळे, याच्यामध्ये काही उणीवा कमतरता दोष असणे शक्य आहे, ही संभावना मान्य व स्वीकार करूनच, हा लेख लिहिला आहे.



Friday, 24 October 2025

चरको निदाने फर्स्टः Its Fascinating !!!

 चरको निदाने फर्स्टः

Its Fascinating !!!


Both images credits Google Gemini AI 


यद्यपि निदान मे, माधव निदान को अर्थात रोगविनिश्चय इस ग्रंथ को, 

श्रेष्ठ समझा जाता है , 

तथापि, वस्तुतः, आयुर्वेद शास्त्र के , *"निदान"* इस विषय का मूलाधार, 

इस विषय का सैद्धांतिक अधिष्ठान, 

इस विषय का फाउंडेशन ... 

सर्वप्रथम जिसने सुनिश्चित किया, 

दृढमूल किया ... वह आचार्य चरक ही है! 🙏🏼

इसीलिए... *"चरको निदाने फर्स्टः"* यह वचन उचित है 


यद्यपि, *"चरकस्तु चिकित्सिते"* 

ऐसा कहा जाता है, तथापि, 

"रोगम् आदौ परीक्षेत, ततोऽनन्तरम् औषधम्" ऐसे मार्गदर्शन करने वाला चरक ही, 

*"चरको निदाने फर्स्टः

इस सन्मानोक्ति के लिए 

निश्चित ही अत्यंत सुयोग्य है !


चरक संहिता मे निदान का वर्णन, केवल निदान स्थान मे ही है ऐसा नही है.


निदान के सिद्धांतों तथा रोगों के भी निदान का वर्णन सूत्रस्थान मे भी उपलब्ध होता है.


च सू 16 बहुदोष लक्षण, 

च सू 17 शिरोरोग, हृद्रोग, विद्रधि, मधुमेह, 

च सू 18 शोथ & शल्य शालाक्य के व्याधी

च सू 19 संख्या संप्राप्ती सभी रोगों की , 

च सू 20 नानात्मज व्याधी 

वात 80 पित्त 40 कफ 20, 

च सू 21 स्थौल्य कार्श्य, 

च सू 22 लंघन बृंहण के इंडिकेशन 

च सू 23 संतर्पण अपतर्पण जन्य व्याधी 

च सू 24 शोणितज व्याधी मद मूर्च्छा संन्यास 

च सू 26 विरुद्धान्नजन्य व्याधी 

च सू 27 आहार तो सभी व्याधीयों का निदान और चिकित्सा दोनो है 

च सू 28 धातु प्रदोषजन्य विकार 


विमानस्थान मे अलसक विषूचिका जनपदोध्वंस , रोगों के विविध प्रकार , स्रोतोदुष्टी निदान लक्षण चिकित्सा , कृमी निदान चिकित्सा 


शारीर स्थान मे षंढ वंध्य विकृत गर्भजन्य व्याधी 


चिकित्सा स्थान मे निदान स्थान में वर्णित 

8 रोगों के साथ साथ अन्य भी कई रोगों के निदान का वर्णन है


चिकित्सा स्थान मे तो उन रोगों का भी पुनश्च सविस्तर तथा कुछ अलग पद्धती से भी निदान पुनश्च एक वार दिया है, जिनका वर्णन निदान स्थान मे पहले हो चुका है 


सिद्धी स्थान में त्रिमर्मीय मे अनेक रोगों का निदान वर्णन उपलब्ध होता है 


निदानस्थान में सर्वप्रथम पंचनिदान = निदान पंचक इनका वर्णन या ज्ञान होना आवश्यक होता है , जिसमे एक पूर्वरूप भी समाविष्ट है


मृत्यू यह भी एक प्रकार का कालज व्याधी है और मृत्यू के पूर्वरूप को अरिष्ट कहा गया है और अरिष्ट का वर्णन इंद्रिय स्थान मे है 


इस प्रकार से अगर हम देखेंगे, तो निदान का वर्णन चरक के सूत्र से सिद्धी तक सभी स्थानों मे उपलब्ध होता है (अपवाद कल्प स्थान!)


तो ऐसे अत्यंत विस्तृत एवं मूलभूत विषय का चरक से अध्ययन करना, एक यशस्वी चिकित्सक के लिए तथा एक प्रामाणिक आयुर्वेद अभ्यासक के लिए; अत्यंत आवश्यक, महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है 


इसलिये उत्कृष्ट अध्यापक पुरस्कार से (पुणे स्थित वैद्य खडीवाले संस्था द्वारा) सम्मानित तथा 27 वर्षे से Real Pure Only Genuine True आयुर्वेद प्रॅक्टिस = केवल संहितोक्त प्रॅक्टिस यशस्वी रूप से करनेवाले म्हेत्रेआयुर्वेद MHETREAYURVEDA प्रस्तुत कर रहे है, सुबोध सैद्धांतिक एवं रेडी टू यूज, यूजर फ्रेंडली, फ्रेश & हाॅट सर्वह्ड, क्लिनिकल प्रॅक्टिकल 

ऑनलाईन व्याख्यानमाला ...

चरको निदाने फर्स्टः ; It's Fascinating

Online Course Joining Link 

 ऑनलाईन चरक संहिता + चक्रपाणि टीका ... Medium Hindi हिंदी ... joining link👇🏼

https://www.mhetreayurveda.com/charak-evachan/register.php

चरको निदाने फर्स्टः ! 

इस प्रॅक्टिकल व्याख्यानमाला मे चरकोक्त निदान के विषयों को 

अक्षर (literally) से लेकर 

प्रॅक्टिस (Clinical) तक 

और उसके परे भी तत्त्वावबोध रुपी हर्षानंद ... Fascinating = मजा आना चाहिए तक, 

सर्व स्तरों पर निरुपित किया गया है, 

जो एक नवप्रवेशित BAMS प्रथम वर्ष विद्यार्थी से लेकर, 

जिनकी प्रॅक्टिस 30 / 40 साल से भी अधिक है, 

ऐसे अनुभवी वैद्यों के लिए तक, 

अत्यंत स्वागतार्ह तथा उपयोगी है 


चरक = आयुर्वेद व्हर्जन 1.0 

Explored & Explained by 

म्हेत्रेआयुर्वेद = आयुर्वेद व्हर्जन 4.0

Welcome to 

चरको निदाने फर्स्टः ; It's Fascinating


Friday, 17 October 2025

कर्मनित्य =मांसगती= मसल मूव्हमेंट्स =शारीरिक हालचाल =फिजिकल एक्झरसाइज

 कर्मनित्य =मांसगती= मसल मूव्हमेंट्स =शारीरिक हालचाल =फिजिकल एक्झरसाइज




Both the above pictures credit to Google Gemini AI 


Testosterone levels - base line - depleted by 25% over two decades. From hunter gatherer men to urban men of Boston to daily labourers of Mumbai - data is consistent. So does the sperm count - it is declining over last two decades... पुरुषाचे पौरुषत्व दाखवणारे दोन घटक – टेस्टेस्टिरॉन आणि शुक्राणू ची संख्या याच्या पातळीमध्ये सातत्याने घट होत आहे. हे आकडे आदिवासी ते कामगार ते शहरी पुरुष यांच्यात समसमान पद्धतीने आढळली आहे. याचा परिणाम अजून तरी फर्टिलीटी quotients वर तरी दिसला नाही...पण खात्रीने भविष्याबाबत काही सांगता येणार नाही.

दीप्ताग्नयः खराहाराः *"कर्मनित्या"* महोदराः ।

ये नराः प्रति तांश्चिन्त्यं नावश्यं गुरुलाघवम् ॥


कर्मनित्या is the key ... 

कर्म वह भी शारीर कर्म मस्क्युलर मूव्हमेंट श्रम व्यायाम मांसगती is the key to Health.


कर्मनित्या automatically assures दीप्ताग्नयः ... which can easily digest any type खराहार & 


कर्मनित्या also triggers महोदर = larger portion size of food ... 


even though then, there may not be it, as संतुलित सर्व रस अष्ट आहार विधी विशेषायतन इक्वलिब्रियम न्यूट्रियंट or so called balanced perfect & obsessed with nutrients etc.


पिंपळाच रोप कसं 

कुठेही उगवतं

कुठेही उगवतं म्हणून 

त्याचं कसंही निभावतं

मी माझा ✍🏼 चंद्रशेखर गोखले


ज्याची दणकून शारीरिक हालचाल होते 

हात पाय पाठ कंबर मान इथले सर्व सांधे हाड आणि मुख्य म्हणजे स्नायू मसल्स मांस हे संपूर्ण क्षमतेने काम करतात 


त्या माणसाचे प्रायः सर्व धातू आणि अग्नि हे उत्तम स्थितीत असतात 


आजपासून दोन पिढ्यांपूर्वी यांत्रिकीकरण फार कमी होते 


चालणे पळणे सायकलिंग पाणी भरणे पाणी वाहून आणणे सारवणे धुणं भांडी झाड लोट अंथरुणाच्या घड्या घालणे गोधड्या धुणे गुरं सांभाळणे गुरं चारायला नेणे 

स्क्रीन आणि घर याच्या बाहेरचे खेळ बालपणी 99% मुलं खेळत असणे 

खाली उठून बसून स्वयंपाक असणे 

अंग मेहनतीनेच बहुतांश सर्व कामे करणे 

असं असल्याने अग्नि आणि धातू हे उत्तम होते. 


कर्मनित्य = नित्य कर्म शारीरिक कर्मे अपरिहार्य असल्यामुळे, त्याला लागणारी ऊर्जा एनर्जी मिळवण्यासाठी तेवढा दणकट आहार होता 


तेवढी कडकडून 🔥भूक होती, दीप्ताग्नय 


स्क्रीन टाईम टीव्ही मालिका क्रिकेट राजकारण हे नसल्यामुळे नऊ ते सहा अशी सुंदर झोप होती 


त्यामुळे चटणी कांदा भाकरी असं खराहार खाणाऱ्या शेतकऱ्याचंही शरीर दणकट होतं 


शहरात राबणारा गिरणी कामगारही तितकेच शारीरिक कष्ट करत होता 


ऑफिसमध्ये जाऊन टेबलवर बसणारा माणूसही घरापासून ऑफिसपर्यंत सायकलिंग करत होता 


मुलांना घरापासून शाळेपर्यंत चालत पळत जायला यायला लागत होतं 


लिफ्ट नसल्यामुळे जिने चढणे उतरणे होतच होतं 


अनेक ठिकाणी रांगा लावून 

 उभे राहणं यामुळे शरीराला सूर्यप्रकाशाचा स्पर्श होत असे.


 माफक प्रमाणात का होईना पण शेळीचं मांस खाल्लं जात असे


 दूध तूप हे सगळं खरं खरं होतं 


फळं व भाज्या याही अस्सल होत्या 


पण या सगळ्याचं "मूळ" हे अंथरुणावर पडल्या पडल्या झोप लागेल इथपर्यंत एक्झॉस्ट होईपर्यंत, दमणूक होईपर्यंत *शारीरिक हालचाल मांसगती मस्क्युलर मूव्हमेंट्स म्हणजेच कर्म नित्य हेच आरोग्याचं मूळ आहे* 


म्हणून त्या पिढीमध्ये कधीही पीसीओडी इंफर्टिलिटी इम्पोर्टेन्सी इडी पी इ ओबेसिटी थायरॉईड डिप्रेशन फर्स्ट्रेशन असलं काहीही नव्हतं 


त्यामुळे दोन पिढ्यांपूर्वी एकेका दंपतीला चार-पाच ते आठ दहा मुलांपर्यंत प्रजनन क्षमता होती 


आणि इतकी बाळंतपण होऊ नये बाई चाळिशीला थकत नसे


 प्रेग्नेंसीला बेडरेस्ट घेत नसे


 जस्टेश्नल डायबिटीस होत नसे


 पन्नाशीच्या आत सून जावई आल्यामुळे त्याच्या पुढची पिढी ही तितकीच आरोग्य संपन्न राहत होती 


आज कर्मनित्याचे जागा सेडेंटरी/sedentary लाइफस्टाइल = बेड➡️ कमोड➡️ डायनिंग चेअर➡️ वाहनाचे सीट ➡️ऑफिस कॉलेज शाळा येथील बेंच खुर्ची ➡️परत येताना पुन्हा वाहनाचे सीट➡️ सोफा➡️ डायनिंग चेअर ... आणि बेड 

असं संपूर्णपणे बैठे जीवनशैली असल्यामुळे "कर्मशून्य" ... त्यातही सर्व प्रकारच्या मशीन , उभे राहून स्वयंपाक ... आता तर स्वयंपाक न करता ही खाण्याची सोय ... या सगळ्यांमध्ये *"कर्मनित्या" हे आरोग्य मूळ नष्ट होऊन , "कर्म शून्य" हे रोगाचे मूळ कारण, फक्त भारतातच नव्हे तर जगभर दृष्टोत्पत्तीस येत आहे*



नैसर्गिक कर्मनित्य दैनंदिन कर्मनित्या सर्वांगीण कर्मनित्य अशी जीवनशैली हवी 


एसीमध्ये एकेका मसल साठी पुन्हा एकेक मशीन वापरून हार्ट अटॅक येईपर्यंत जिम करणे 


किंवा सायकलिंग, ऊर फुटेपर्यंत मॅरेथॉन मध्ये धावणे एसीएल पीसीएल लिगामेंट टेअर होईपर्यंत बॅडमिंटन खेळणे, हायरॉक्स सारखा राक्षसी प्रकार करणे, अज्ञान आणि हौसे पोटी डोंगर चढायला जाणे ... हे असलं अनियमित नित्य नसलेलं , अवसं पुनवेला करण्याचं कर्म शारीरिक हालचाल मस्क्युलर मुव्हमेंट मांसगती याचा काही उपयोग नाही... त्यांनी फार फार तर हार्ट अटॅक येऊन मरतील 


पण आजपासून दोन पिढ्यांपूर्वी जी नैसर्गिकरित्या दिवसभर सर्वांगीण सर्वकालीन झेपेल इतकी "कर्मनित्यता =शारीरिक हालचाल =मस्क्युलर मूव्हमेंट= मांसगती होत होती, 

*"तशी जीवनशैली परत आली"*

तर आज आपण जितक्या मोठ्या प्रमाणावर हा *"वेलनेस चा बाजार"* बघतोय तो नाहीसा होऊ शकतो 


आणि एक खऱ्या अर्थाने सळसळतं चैतन्यपूर्ण उत्साही आरोग्य संपन्न जीवन ... जे दोन पिढ्यांपूर्वी होतं , आपल्या बालपणी होतं , ते निश्चितपणे पुन्हा दिसू शकेल ... घरची कामं करायची नाहीत आणि जॉगिंग ट्रॅक वर चालायला जायचं, ह्याच्या इतका बावळटपणा जगात दुसरा कुठलाच नाहीये ... स्वतःच्या घरची सर्व कामं करून दुसऱ्या चार घरची धुणी भांडी फरशी करणाऱ्या मोलकरणींची तब्येत "बऱ्याचदा" नीट असते , हे आपण पाहतो अर्थात त्याही आता स्कुटी अॅक्टिवा फ्लॅट मिक्सर अशा यंत्राधीन झाल्यामुळे, त्यांच्यातही ओबेसिटी थायरॉईड पीसीओडी या बाबीत दिसतात. नाही असे नाही


सर्वमन्यत् परित्यज्य शरीरमनुपालयेत् ।


तदभावे हि भावानां सर्वाभावः शरीरिणाम् 


साहसं वर्जयेत् कर्म रक्षञ्जीवितमात्मनः ।


जीवन् हि पुरुषस्त्विष्टं कर्मणः फलमश्नुते



http://mhetreayurved.blogspot.com/2024/12/ban-marathon.html



के आया मौसम मॅरेथॉन का


आता पुढच्या महिन्यापासून दर रविवारी सकाळी सकाळी कुठल्या ना कुठल्या शहरात अनेक हौशे नवशे गवशे फी भरून पैसे भरून रस्त्यावर पर्पजलेस निष्प्रयोजन पळत सुटतील ... वाहतुकीचे तीन तेरा, ट्रॅफिक जॅम आणि संताप ... या सगळ्यांना रस्त्यावर वाकडं तिकडं पळायची परवानगी देणे ऐवजी, एखाद्या बंदिस्त ग्राउंड वर स्टेडियम मध्ये सोडा आणि तिथं आतल्या आत काय जितकं पळायचंय तितकं पळा ... 42 किलोमीटर कशाला ... 420 किलोमीटर पळा दिवसभर ...



काहीही खा! कसंही खा! कितीही खा! कधीही खा! मजा करा !! ऐश करा !!! 🙃😇😃

👇🏼

https://mhetreayurved.blogspot.com/2025/01/blog-post_23.html

Tuesday, 14 October 2025

धार्मिक पर्यटन और आयुर्वेद

धार्मिक पर्यटन और आयुर्वेद !

घर घर आयुर्वेद हर घर आयुर्वेद
Picture credit Google Gemini AI

डिस्क्लेमर Disclaimer : या लेखात व्यक्त होणारी मतं, ही सर्वथैव योग्य अचूक बरोबर निर्दोष आहेत, असे लिहिणाऱ्याचे म्हणणे नाही. हे लेख म्हणजे वैयक्तिक मत आकलन समजूत असल्यामुळे, याच्यामध्ये काही उणीवा कमतरता दोष असणे शक्य आहे, ही संभावना मान्य व स्वीकार करूनच, हा लेख लिहिला आहे.


Hindi Translation:

अस्वीकरण Disclaimer: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार सर्वथा सही, सटीक, पूर्णतया निर्दोष हैं — ऐसा लेखक का कहना नहीं है। यह लेख व्यक्तिगत मत, समझ और आकलन पर आधारित है, इसलिए इसमें कुछ कमियाँ, त्रुटियाँ या अपूर्णताएँ होना संभव है। इस संभावना को स्वीकार करते हुए ही यह लेख लिखा गया है।

English Translation:

Disclaimer: The opinions expressed in this article are not claimed by the author to be absolutely correct, precise, or flawless. This article represents personal understanding, interpretation, and perspective; hence, the possibility of certain shortcomings, gaps, or errors is acknowledged and accepted by the author while writing it.

जैसे किसी धार्मिक स्थल पर वहा के विशिष्ट दैवत के भक्ती या लोकप्रियता के कारण वहा पर बहुत सारे लोक दर्शन के लिए जाते है 

तो लोगों की संख्या बहुत ज्यादा होने के कारण उस देवालय के आसपास इन लोगों की व्यवस्था केलीये "पूजा विधि के सामान के अलावा/साथ हि" भी अन्य सारी व्यवस्थायें अपने आप पनपने लगती है, जिसमे हॉटेल लॉज अर्थात खाने के रहने की व्यवस्था, बच्चों के लिए खिलोने बेचने की व्यवस्था, देवता के फोटो लॉकेट अंगुठी पेन बेचने की व्यवस्था, फिर ट्रान्सपोर्ट के लिए रिक्षा टॅक्सी बस रेल्वे फ्लाईट इनकी व्यवस्था ... तो उस एक लोकप्रिय दैवत के कारण बहुत सारी भीड और उस भीड की सेवा के लिए बहुत सारे "देवता से प्रत्यक्ष संबंधित नही है", ऐसे कई व्यापार वहा पर बडी मात्रा मे यशस्वी रूप से चलने लगते है. 

और इन सभी मे कॉमन बात ये होती है की "वहा का जो भी देवता होता है, वह जीवित नही होता, है वहा पर सदेह अवस्था मे विद्यमान नही होता है"


यद्यपि उस देवता का दर्शन करने के लिए आने वाले जो भी भक्त है, उन्हे उस देवता के बारे मे भक्ती कितनी होती है यह अलग बात है ... उस देवता के लिए curiosity कितनी होती है ये भी अलग बात है ...


किंतु उस देवता के दर्शन के बहाने, घर के बाहर निकल कर कुछ नया अनुभव प्राप्त हो, ऐसा भी विचार आने वाले भीड के मन मे हो सकता है 


व्यापारी, जो ... पूजा समान से लेके लॉजिंग हॉटेल ट्रान्सपोर्ट इसमे काम कर रहे है, उनके लिए भी ये अत्यावश्यक नही होता है कि, उनको वहां की जो लोकप्रिय देवता है, उसके बारे मे सब कुछ इत्थंभूत डिटेल में ज्ञान हो 


उदाहरण के स्वरूप सार्वजनिक गणेशोत्सव मे सभी जगह पंडाल लगते है. बहुत सारी भीड जमा हो जाती है, आवश्यक नही होता है, कि गणपती दर्शन को आने वाले सभी प्रेक्षक या भक्त कहिये या व्यवस्थापन करने वाले स्थानिक मंडळ या मॅनेजिंग ग्रुप इनमें से भी किसी को, गणपती के बारे मे सारा शास्त्रीय ज्ञान हो यह "आवश्यक और संभव" दोनो नही है .


कभी कभी तो यहा तक हो सकता है, की गणपती के प्रतिष्ठापना के लिए लगने वाली पूजा सामग्री क्या है, उसका प्रयोजन क्या है, यह भी ज्ञात नही ... गणपती को समर्पण करते हुए उसके 21 नाम लिये जाते है और नाम का अर्थ ना पता हो , गणपती अथर्वशीर्ष उनको कंठस्थ न हो या गणपती अथर्वशीर्ष उनको कंठस्थ हो तो भी उसमे से सभी शब्दों का अर्थ उनको ज्ञात नही है, इतना ही नही गणपती का जो स्वरूप है जिसमे पाश अंकुश रद & वरद ऐसी वस्तुयें गणपती के चार हातो मे है , तो रद शब्द का अर्थ क्या है ? यह भी उनको ज्ञात हो , ऐसा व्यवस्थापन करने वाले मंडल के सहभागी व्यक्ती या दर्शन के लिये आने वाली भीड इनमे से किसी को भी ज्ञात हो ऐसा आवश्यक और संभव दोनो नही


ऐसे देवता के बारे मे बेसिक या सूक्ष्म, ग्रास या डिटेल, मॅक्रो या मायक्रो ... जानकारी न होना, यह उस देवता का दर्शन करने को आने वाले भक्त /पर्यटक / टुरिस्ट और वहा पर पूजा सामग्री या कुछ अन्य वस्तू बेचने के लिए जो लोग व्यापार कर रहे है, उन सभी मे से एक पर्सेंट तक व्यक्तियों को भी देवता के बारे मे ज्ञान होगा, ऐसी स्थिती प्राया नही होती है. और अगर अपवाद से किसी को ज्ञात होगा भी तो वह नियम ही सिद्ध करेगा जो यहा पर मैने बताया 


ठीक ऐसी की ऐसी स्थिती आज आयुर्वेद क्षेत्र में है


आयुर्वेद नाम के पॉप्युलर देवता को लोकप्रिय दैवत को भी , ऐसे ही बडे कौशल से हायपर ओव्हर मेगा मार्केटिंग किया जा रहा है, और इस मार्केट मे जो लाभार्थी है जिने हम कुछ क्षण के लिए पेशंट कहेंगे सरकारी तौर पर तो मेडिकल टुरिझम ऐसाही शब्दप्रयोग होता है, तो पेशंट हो या टुरिस्ट या लाभार्थी हो ... उनको तो आयुर्वेद शास्त्र के बारे मे ज्ञान हो, ऐसी अपेक्षा रख ही नही सकते ...

तो उनकी आयुर्वेद के बारे मे जो भी कल्पना है, उसको हम क्षमा कर देते हे 


किंतु जैसे किसी लोकप्रिय धार्मिक पर्यटन स्थल पर पूजा सामग्री के साथ साथ है खाणे पिणे खेलने ट्रान्सपोर्ट इनका व्यापार करणे वाले इन सुविधा को बेचने वाले , जो वहा के लोग है , जिनकी जीवनी लोकप्रिय दैवत पर आधारित है, उनको भी उस दैवत दैवता के बारे मे जानकारी होती है, ऐसा नही होता है. एक पर्सेंट को जानकारी हो जिसे हम अपवाद कह सकते है और इस अपवाद से फिर से जो मे बता रहा हू वही नियम सिद्ध होता है 


आयुर्वेद मे भी आयुर्वेद नाम की लोकप्रिय देवता के नाम पर आयुर्वेद की पूजा विधी के रूप मे अगर हम मेडिसिन को मान ले, तो मेडिसिन के साथ साथ ही कई अन्य चीजे भी बेची जाती है, 

और इन सभी बेचने वाले व्यापारियों को केवल ट्रेड सेल मार्केट मनी प्रॉफिट क्लाइंट कस्टमर इन्हे बातो से मतलब होता है 


धार्मिक स्थल मे जो व्यापारी होते है जैसे उन व्यापारयों को वहा के देवता के बारे मे ज्ञान होना आवश्यक और संभव नही होता है, वैसेही आयुर्वेद क्षेत्र के इन "बेचने वाले व्यापारीयों" को आयुर्वेद का ज्ञान होता ही है, ऐसा आवश्यक और संभव नही होता है, इसी कारण से ये "बेचने वाले व्यापारी" आयुर्वेद के क्षेत्र में "आयुर्वेद के नाम पर कुछ भी" बेचते ही रहते है



जिनका स्पष्ट रूप से आयुर्वेद के मूल संहिता मे कही पर भी संदर्भ उल्लेख वर्णन नही है, निश्चित रूप से नही है, ऐसे ... 

योगा बेचा जाता है, 

गर्भसंस्कार बेचे जाते है, 

रसशास्त्र भस्म रत्न धातू बेचे जाते है ... 


जैसे अन्य धार्मिक स्थलों पर खिलौने बेचते है बच्चों के लिए, 

ऐसे आयुर्वेद मे सुवर्णप्राशन संस्कार बेचा जाता है 


फिर जैसे बाजार में सीजनल फल फूल बेचे जाते है, 

ऐसेही आयुर्वेद मे सीजनल = दिवाली पर उटणं उबटन स्क्रब अभ्यंग तेल च्यवनप्राश साबुन शाम्पू (जो आयुर्वेद मे है ही नही), सौंदर्यप्रसाधन मेकअप किट, गाल की और बाल के उपचार के किट , 


फिर आयुर्वेद मे कही बताई नही ऐसी मालिश मसाज स्पा फील गुड हॅपेनिंग वेलनेस ट्रीटमेंट , 


कही पर स्पष्ट रूप से उल्लेख नही है ऐसे शिरोधारा जो मानसरोग के लिये है ऐसा बताया जाता है , 


ऐसा कोई रेफरन्स ही नही है फिर भी, ऐसे कई बस्ती , जो गुद की बजाय, हृदय मन्या कटी जानू यहा पर किये जाते है , 


जैसे कई साल पहले से , कुछ लोग आज बीएमएस डिग्री लेकर मॉडर्न मेडिसिन ऍलोपॅथिक प्रॅक्टिस करते है और उसको अपना अधिकार समजते है, उसके लिए कानूनी लडाई लडते है ... 

ऐसे अभी नया दौर आया है की 

जिसमे "आयुर्वेद के नाम पर" ... 

कुछ भी और किसी भी थेरपी को बेचा जाता है ... 

विद्ध के नाम से ॲक्युपंचर बेचा जा रहा है, 

कायरो प्रॅक्टिक तक को भी घुसेड रहे है, 

कुछ लोग प्राणीक हीलिंग को भी बेच रहे है, 

फिर सिद्ध नाम की सिस्टीम से वर्म को लेकर मर्म थेरपी नाम से घुसेड रहे है , 

आय व्ही इनफ्युजन इसको भी आयुर्वेद के नाम पर बेचे जा रहे है ... 

फिर ये सब कैसे बखुबी करना है, इसके ऑनलाईन ऑफलाइन कोर्स भी बेच रहे है , 

ये कोर्स कितना अधिकृत है , उसको कौन प्रमाणित कर रहा है, उसका रजिस्ट्रेशन क्या है , 

इससे सीखने सिखाने वाले = बेचने खरीदने वाले, किस्सी को कुछ भी लेना देना नही है 


और इस मार्केट मे ऐसे ही व्यापारीयों की भीड बढती ही चली जाये ... 

इसलिये हर शहर, हर गली, हर नुक्कड, हर जंगल, हर खेत, हर पहाड, हर पर्वत ... खोला जा रहा है ...

हो सके तो कुछ दिन के बाद "हर घर" में कॉलेज खोला जायेगा ... 

एक एक गाव मे तीन-तीन आयुर्वेद कॉलेज है आज की स्थिति मे ... 

पहले तो एक आयुर्वेद कॉलेज मे एक बॅच मे 35 या 60 विद्यार्थियों के ऍडमिशन की अनुमती दी जाती थी ... 

अब तो 100 क्या ... 200 🙄😳 सीट एक बॅच मे, इतनी परमिशन दी जाने लगी है ... 


आप देखेंगे की कुछ ही दिनो मे रास्ते पर किसी को भी पत्थर मारेंगे, तो पक्का बीएमएस आदमी को ही लगेगा, इतने बीएमएस लोक रास्ते पर चलते है, नजर आयेंगे ... 

जैसे भारत के सभी प्रसिद्ध पर्यटन स्थलो पर अनकंट्रोल्ड भीड होती है, ऐसे ही बी एम एस लोगो की भीड हर शहर मे हर रास्ते पर दिखाई देगी ... जय हो ... जय आयुर्वेद ... घरघर आयुर्वेद !!!

Friday, 3 October 2025

आयुर्वेद प्रॅक्टिस, क्रिकेट🏏 आणि लॉन टेनिस 🎾 !!!

 आयुर्वेद प्रॅक्टिस, क्रिकेट🏏 आणि लॉन टेनिस 🎾 !!!

Picture credit Google Gemini AI


डिस्क्लेमर : या लेखात व्यक्त होणारी मतं, ही सर्वथैव योग्य अचूक बरोबर निर्दोष आहेत, असे लिहिणाऱ्याचे म्हणणे नाही. हे लेख म्हणजे वैयक्तिक मत आकलन समजूत असल्यामुळे, याच्यामध्ये काही उणीवा कमतरता दोष असणे शक्य आहे, ही संभावना मान्य व स्वीकार करूनच, हा लेख लिहिला आहे.

फेडरर नदाल पेक्षा स्टेफी ग्राफ मारिया शारापोव्हा "पहायला" आवडते असे सांगणारे अनेक... पण लॉन टेनिस हा खेळ प्रत्यक्ष खेळलेली लोकं भारतात विरळा, कदाचित 0.0001%!


क्रिकेट हा भारतातला सर्वाधिक लोकप्रिय खेळ! पण हा खेळ "पाहणारे म्हणजे प्रेक्षक" जास्त! प्रत्यक्ष "खेळणारे फार कमी" !! बहुतेक सगळ्यांनी लहानपणी कधीतरी क्रिकेट(?) खेळलेलं असतं!!! पण जितके लोक "क्रिकेट" खेळतात, त्यातल्या 99 टक्के लोकांनी, खरं पाहता, "क्रिकेट" ऐवजी "बॅट बॉल" खेळलेलं असतं🏏! 


म्हणजे काय? साधी कुठलीतरी बॅट आणि प्रायः लॉन टेनिस मध्ये वापरतात तशा साॅफ्ट/मऊ 🎾 किंवा रबरी बाॅलने हा खेळ खेळलेला असतो ... काही अति उत्साही लोकांनी तर प्लास्टिक बॉल, अंडर हॅन्ड, हाफ पीच असेही "क्रिकेट(?) नव्हे तर, बॅट बॉल" खेळलेले असते!!!🤣


क्रिकेट खेळणे म्हणजे खऱ्याखुऱ्या भव्य ग्राउंड वर, खास तयार केलेल्या 22 यार्ड पीचवर, लेदर बॉल किंवा सीझन बॉल (please Google) म्हणतात तो वापरून क्रिकेट खेळणे ... असा क्रिकेट खेळण्याचा प्रत्यक्ष अनुभव असलेली लोकं अत्यंत विरळा! हे "असलं अस्सल क्रिकेट" आपण फक्त टीव्हीवर किंवा ऑनलाईन, लाईव्ह टेलिकास्ट मॅच म्हणून "बघत" असतो!


त्यात पुन्हा हेल्मेट पॅड गार्ड ग्लोव्ह्ज या सगळ्या सहित, प्रोफेशनल क्रिकेट बॅट वापरून, खेळलेले तर अत्यंत दुर्लभ!!!


आयुर्वेदाची प्रॅक्टिस म्हणजे "खरोखर क्रिकेट" खेळणे म्हणजे किमान खरीखुरी बॅट आणि लेदर/सीझन बॉल हे दोन कंटेंट तरी अस्सल असणं आवश्यक!


लेदर किंवा सीजन बाॅलने, क्रिकेट खेळण्यासाठी, "धाडस आणि क्षमता , दोन्हीही" आवश्यक असते! त्या तुलनेत, क्षमता आणि धाडस याची आवश्यकता, "त्यांना अजिबातच नसते", ... की जे लोक, लॉन टेनिसचा मऊ किंवा साधा रबरी बॉल वापरून, क्रिकेट नव्हे तर, साधं "बॅट बॉल" खेळतात ...!


आयुर्वेदाची खरीखुरी शास्त्रीय सत्याधिष्ठित प्रॅक्टिस करण्यासाठी तशीच "क्षमता आणि धाडस", हे दोन्ही आवश्यक असतं ... जसं, क्रिकेट हे सीझन / लेदर बॉल वर खेळण्यासाठी लागते, तसं!!!


बाकी आयुर्वेदाच्या "नावाखाली" काहीही वापरून त्याला आयुर्वेद नाव देणे, याला धाडस, क्षमता आणि मुख्य म्हणजे अक्कल तर ; अजिबात लागत नाही... त्यासाठी फक्त लोकांना गंडवण्याची, दिशाभूल करण्याची आणि चलाखीने मार्केटिंग करण्याची "जुजबी कुवत" असली तरी पुरेशी असते! जसं, लॉन टेनिसचा मऊ किंवा साधा रबरी बॉल वापरून, साधं बॅट बॉल खेळतात ... तसं!!!


खऱ्या खऱ्या आयुर्वेदामध्ये, औषध हे पंचविध कषाय कल्पना (क्वाथ काढा , चूर्ण) & संयुक्त कल्पना (= सिद्धघृत सिद्धता अवलेह आसव अरिष्ट गुटी वटी) या स्वरूपात आणि योग्य त्या "शास्त्रीय मात्रेत scientific dose" द्यायचं असतं !!!


आयुर्वेदाच्या नावाखाली जी पुड्या बांधण्याची प्रॅक्टिस चालते! काही जण , त्याच्यामध्ये तळहाताच्या एक चतुर्थांश आकाराचे कागदात, काही आयुर्वेद संहितात लिहिलेली आणि बाकी सगळी रसशास्त्र नावाच्या एका वेगळ्याच शास्त्रात लिहिलेली औषधं, "सरमिसळ" करून, "पुडी" म्हणून बांधून देतात.


अशा पद्धतीने दोन वेगळ्या वेगळ्या स्वतंत्र परस्पर पूरक नसलेल्या परस्परावलंबी नसलेल्या शास्त्रातली औषध एकत्र करून एकाच पुडीत बांधून द्यावीत, असं आयुर्वेद शास्त्राच्या संहितांमध्ये कुठेही लिहिलेलं नाही आणि त्या पुडीत "जास्तीत जास्त" जितकी मावते/ बांधता येते/ देता येते ... इतकी कमी मात्रा आयुर्वेद संहितातल्या कुठल्याही औषधाची नाही!!!


एवढ्याशा कागदामध्ये आयुर्वेदातील संहितातील कोणतेच औषध, शास्त्रीय मात्रेमध्ये बांधणे, शक्य नसते! अगदी पुडीत बांधण्याजोग्या चूर्ण ची मात्रा सुद्धा शास्त्रात 1 कर्ष = दहा ग्रॅम इतकी दिलेली आहे आणि दहा ग्रॅम चूर्ण बसू शकेल, एवढी पुडी कोणाच्याही प्रॅक्टिस मध्ये बांधली जात नसते.

 

पंचविध कषाय कल्पना म्हणजे पाणी हे माध्यम म्हणून वापरून तयार केलेले औषध ... उदाहरणार्थ क्वाथ म्हणजे कषाय म्हणजे काढा ... कोणतीही नैसर्गिक वनस्पती पाण्यात उकळली की त्याचा औषधी अंश पाण्यात उतरतो, ज्याला मेडिसिनल वॉटर एक्सट्रॅक्ट असं म्हणतात. 


तसं रसशास्त्र या आयुर्वेदा पेक्षा वेगळ्या असलेल्या औषध पद्धतीमधील बहुतांश कंटेंट = धातू किंवा खनिज किंवा रत्न हे पाण्यात उकळले तर त्यांचा कोणताही मेडिसिन एक्सट्रॅक्ट = औषधी अंश पाण्यात येऊ शकत नाही. 


त्यामुळे त्यांच्या पंचविध कषाय कल्पना तयार होत नाहीत. त्यामुळे मुळातच ती आयुर्वेदीय औषधे नसतातच! 


रसशास्त्र हे एक स्वतंत्र औषध शास्त्र आहे. 


जसे नैसर्गिक वनस्पती अशीच घटक द्रव्य असली, तरी सुद्धा ... सिद्ध युनानी सोवारिग्पा ही तीन स्वतंत्र औषधी शास्त्रे, आयुर्वेदापेक्षा वेगळी , इंडियन सिस्टीम ऑफ मेडिसिन या आयुष् नावाच्या मंत्रालयाच्या अखात्यारीत येतात. 


तसेच आयुर्वेदातही काही खनिज द्रव्य, वनस्पतींच्या तुलनेत अत्यल्प प्रमाणात, क्वचित उल्लेख केलेली आहेत. तीच खनिज द्रव्ये बहुतांश आणि प्राधान्याने, मोठ्या प्रमाणात रसशास्त्र नावाच्या, आयुर्वेदापेक्षा वेगळ्या, औषध शास्त्रात वापरली जातात. 


त्यामुळे सीजन लेदर बाॅलने 22 यार्ड पीचवर जे खेळलं जातं त्याला "क्रिकेट" म्हणतात ... लॉन टेनिस रबरी बॉल वापरून किंवा चक्क साधा प्लास्टिकचा बॉल वापरून, अंडर हॅन्ड , हाफ पिच यामध्ये जो "बॅट बॉल" खेळला जातो ... त्याला क्रिकेटच्या "नावाखाली" चाललेलं मनोरंजन/समजूत, असं फार फार तर म्हणता येतं! 


ते खरं खरं क्रिकेट नसतं, एवढं कळण्या एवढी बुद्धी सर्वसामान्य माणसांनाही असते !!!


त्यामुळे सावध राहा ... अस्सल आणि अस्सल च्या नावाखाली दुसरंच काहीतरी गळ्यात मारलं जाणं, याच्यामध्ये फार फरक असतो! 


त्यात आयुर्वेदाच्या नावाखाली, खरंतर मूलतः ॲक्युपंक्चर असलेलं असं विद्ध नावाचा एक प्रकार सर्रास चालतो! 


त्याचबरोबर सिद्ध या औषध शास्त्रातील वर्म या प्रकाराला मर्म थेरपी नाव देऊन , तेही आयुर्वेदाच्या नावाखाली खपवलं जातं ... 


याचप्रमाणे कायरोप्रॅक्टिक, गाल और बाल की सुंदरता के उपाय, याला सुद्धा आयुर्वेदाच्या नावाखाली विकलं जातं!


पंचकर्म ही निश्चितपणे आयुर्वेद शास्त्रात वर्णिलेली आहेत, परंतु आज "पंचकर्म" या "नावाखाली" जे मसाज मालिश स्पा वेलनेस हॅपेनिंग थेरपी & शिरोधारा कटी बस्ती हृद् बस्ती मन्या बस्ती जानु बस्ती हे चालतं, त्याचं प्रत्यक्ष वर्णन उल्लेख, शास्त्रीय उपचार या अर्थी, आयुर्वेदीय संहिता ग्रंथांमध्ये कुठेही उपलब्ध नाहीत.


उभ्या आयुष्यात एकदाही क्रिकेट न खेळता सुद्धा, फक्त क्रिकेट विषयी चर्चा लेख समालोचन, असं थेरॉटिकल करिअर सुद्धा, आपण क्रिकेटमध्ये काही जणांचं असतं, असं पाहिलेलं आहे ... त्यातील प्रसिद्ध नावं, क्रिकेट विषयी ज्यांना थोडं फार कळतं, त्यांना माहित असतातच! 


तसंच आयुर्वेद शास्त्रात / क्षेत्रात सुद्धा, एकही पेशंट कधीही आयुष्यात न तपासता, कसलाही क्लिनिकल म्हणजे प्रॅक्टिकल अनुभव नसताना सुद्धा, फक्त स्टेजवर उभे राहून, समोर जमलेल्या/ जमवलेल्या 10, 20 ते 100, 200 ते 1000, 2000 अशा कितीही श्रोत्यांसमोर प्रेक्षकांसमोर विविध गोष्टींवरती विषयांवरती, लोकप्रिय प्रसिद्ध , राष्ट्रीय स्तरावरचे तज्ञ म्हणवून घेऊन, पेड किंवा अनपेड (पैसे घेऊन किंवा फुकट) , "शिकवतो / ट्रेनिंग देतो" या नावाखाली, फक्त भाषण ठोकणारे सुद्धा, ऑफलाइन ऑनलाईन, अनेक लोक या क्षेत्रात आहेत.


या सगळ्यापासून सावध रहा ... आयुर्वेदाच्या "नावाखाली" हे जे विकलं जातं, हे सगळं म्हणजे जसं खरोखर क्रिकेट खेळत असताना ... बाजूला चिअर गर्ल्स नाचत असतात किंवा स्टेडियम मध्ये नुसतेच बसलेले प्रेक्षक दहा नंबरची निळ्या कलरची तेंडुलकर लिहिलेली जर्सी टी-शर्ट घालून उगीचच आरडा ओरडा करत असतात. हा प्रत्यक्ष क्रिकेट या खेळाचा भाग नसतो. क्रिकेटच्या अनुषंगाने चाललेले अन्य उद्योग असतात की जे क्रिकेट या खेळाला पूरक कॉम्प्लिमेंटरी असे नसून, ते क्रिकेट या खेळावर उपजीव्य म्हणजे अवलंबून म्हणजे डिपेंडंट असे असतात ... तसंच आयुर्वेदाच्या "नावाखाली" आयुर्वेदातील औषधे सोडून, तिसरंच काहीतरी खपवलं जाणं, गळ्यात मारलं जाणं, मार्केटिंग केलं जाणं, विकलं जाणं ... यापासून ... 

सर्वसामान्य जनतेने, 

bams कोर्सला नवीन प्रवेश घेतलेल्या विद्यार्थ्यांनी,

त्यांच्या आशावादी पालकांनी आणि ...

आयुर्वेदाचे उपचार घेऊ इच्छिणाऱ्या प्रत्यक्षात रोगग्रस्त असलेल्या सर्व पेशंटनी ... 

याबाबत योग्य ती सावधानता बाळगावी !!! जनहितासाठी प्रसारित !!!


डिस्क्लेमर : या लेखात व्यक्त होणारी मतं, ही सर्वथैव योग्य अचूक बरोबर निर्दोष आहेत, असे लिहिणाऱ्याचे म्हणणे नाही. हे लेख म्हणजे वैयक्तिक मत आकलन समजूत असल्यामुळे, याच्यामध्ये काही उणीवा कमतरता दोष असणे शक्य आहे, ही संभावना मान्य व स्वीकार करूनच, हे लेख लिहिले जात आहेत.