आयुर्वेद को मेन स्ट्रीम मेडिसिन , फर्स्ट चॉईस मेडिसिन, प्रीमियम मेडिसिन ... ऐसे श्रेणी मे प्रस्थापित करने के लिए सकारात्मक उपाय
साथ हि, आयुर्वेद को होलिस्टिक मेडिसिन बनाने के लिए विधायक उपाय
साथ हि, आधुनिक आयुर्वेद/ आयुर्वेद का आधुनिकीकरण / युगानुरूपसंदर्भ आयुर्वेद के लिये रचनात्मक उपाय
आधुनिक BAMS = Bharateeya "All Medicines" Scholar
Or
आधुनिक BAMS = Bachelor of "All Medicine" Skills
इस लेख को आगे पढने से पहले, इस लेखके अंत मे दिया हुआ, डिस्क्लेमर अवश्य पढे, अगर आवश्यकता लगे तो!
आयुर्वेद पढाने वाली बी ए एम एस नामक डिग्री के अभ्यासक्रम मे अधिकृत रूप से मॉडर्न मेडिसिन का ॲनाटाॅमी फिजिओलॉजी पॅथॉलॉजी ये पढाया हि जाता है
कोई चीज अगर हम छुपकर करते है, तो उसे चोरी कहते है. लेकिन कोई चीज हम खुलेआम जोर जबरदस्ती किसी की ले लेते है, तो उसे डाका कहते है.
तो हमारे बी ए एम एस कोर्स मे, जो मॉडर्न मेडिसिन का पोर्शन पढाया जाता है, वो ऐसेही "खुलेआम और अधिकृत रूप मे"पढाया जाता है.
किंतु, आगे चल कर बहुत सारे बीएएमएस ये मॉडर्न मेडिसिन की प्रॅक्टिस करते है, जो अनधिकृत चोरीछुपे ऐसे "मानी जाती" है, तो उसकी इल्लीगल चोरी बोगस क्वॅक्स ऐसी निंदा की जाती है
अगर इससे बचना है, तो बीएएमएस डिग्री का अर्थ बॅचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिकल सायन्स (या मेडिसिन अँड सर्जरी) की जगह ...
बॅचलर ऑफ "ऑल मेडिसिन" स्किल्स या स्कॉलर ऐसा करना चाहिए
और उसमे अधिकृत रूप से मॉडर्न मेडिसिन का ॲनाटाॅमी फिजिओलॉजी पॅथॉलॉजी के साथ हि, फार्मॅक मेडिसिन सर्जरी ये भी पढना चाहिए...
इसके साथ हि,
आयुर्वेद का सर्वांगीण विकास हो ...
इसलिये *"मूल आयुर्वेद अर्थात बृहत्त्रयी या बृहत् चतुष्टयी (अष्टांग हृदय को मिलाकर), इसमे जो "स्पष्ट रूप से उल्लेखित नही है"* , ऐसे अनेक , आज के व्यवहार मे प्रस्थापित विषयों/स्कील्स का, नवीन BAMS = भारतीय ऑल मेडिसिन स्कॉलर या बॅचलर ऑफ ऑल मेडिसिन स्किल्स, इस कोर्स मे कुछ और नये विषय तथा प्रशिक्षण समाविष्ट करना, छात्रों के लिए और समाज के लिए उपयोगी होगा.
जिसमे जैसे सबको मान्य है स्वीकार्य है और लोकप्रिय है ऐसे सबसे पहले ...
1.
*नाडी!*
*संहिता मे "स्पष्ट रूप से कही पर भी उल्लेख नही है* और जिन वातपित्तकफ की नाडियों के लिए विविध पशुपक्षियों की गती का वर्णन हुआ है, वे "गतियां कभी भी" तीन उंगलियों के "स्पर्श से अनुभूत" नही की जा सकती , क्योंकि "गती यह एक दृश्य नेत्रगम्य विषय" है, न कि स्पर्श गम्य!!!
तथापि नाडी यह हमारी(?) परंपरा धरोहर हेरिटेज होने के कारण, *यदि मूल आयुर्वेद संहिता मे उसका कही पर भी "स्पष्ट रूप से" उल्लेख नही है* , तथापि उसका समावेश नये बीएएमएस कोर्स मे करना अत्यंत आवश्यक और उपयोगी होगा
2.
दूसरा अर्थात वैसे हि लोकप्रिय प्रस्थापित ... *योगशास्त्र!! = योगा !!* उन के अपने पाच अलग वायू है, अपनी अलग षट्क्रियांये है, जो योगशास्त्र मन के दोषों के हरण के लिए लिखा है, ऐसे स्पष्ट रूप से चक्रपाणी की टीका के प्रारंभ मे ही लिखा है, उस योगशास्त्र को जोर "जबरदस्ती से" आयुर्वेद का पूरक शास्त्र मानकर बीएएमएस मे अंतर्भूत करना हि चाहिये ... चाहे योगवाले आयुर्वेद को पूरक माने या ना माने !!!
3.
तीसरा जो आयुर्वेद के भैषज्य कल्पना के, सिद्धांतों के अत्यंत विपरीत है... जो 13 वे शतक तक, इस विश्व मे अस्तित्व मे नही था , ऐसे *रसशास्त्र* को बी ए एम एस मे पढाना अत्यंत आवश्यक है ... यद्यपि आयुर्वेद शास्त्र मे शुक्र यह सौम्य है , तथापि जो शिव का वीर्य है ऐसा पारद अत्यंत उष्ण तीक्ष्ण विषतुल्य है. अस्तु!
हमे तो आयुर्वेद का "सर्वांगीण विकास" करना है इसलिये नाडी योग रसशास्त्र इनका अंतर्भाव तो आधुनिक आयुर्वेद अर्थात बी ए एम एस डिग्री मे होना ही चाहिये!!!
4.
इसके साथ ही सिद्धनामक अन्य मेडिकल स्ट्रीम से उनकी "वर्म चिकित्सा", नामांतर करके "मर्म चिकित्सा" कहकर पढाना अत्यंत आवश्यक है, जो की जादू की तरह पेशंट की वेदना का निवारण करता है ... "यद्यपि उसका आयुर्वेदोक्त 107 मर्म से *कुछ भी संबंध नही है*"
5.
उसके बाद *अग्निकर्म* ... यह तो अनिवार्य है हि, "जैसा शास्त्र मे लिखा है, ऐसा न करते हुए", कुछ नये हि विधानों के साथ अग्निकर्म का जो "विकास" हो रहा है, उसका समावेश एवं प्रशिक्षण आधुनिक बी ए एम एस मे अनिवार्य है.
6.
ॲक्युपंक्चर जैसे एक परदेशी, संभवतः चिनी शास्त्र को "विद्ध ऐसा नाम देकर", *हडप करना या adopt करना*, यह तो हमारे लिए अत्यंत गौरव की और नितांत आवश्यकता की बात है, यद्यपि आयुर्वेद शास्त्र में वर्णित "विद्ध व्रण" एक आगंतुक व्रण का प्रकार है और "वेधन" इस कर्म मे द्रव का / रक्त का स्रवण अभिप्रेत है, वेध्याः सिरा बहुविधा मूत्रवृद्धिर्दकोदरम् ।। तथापि "आज का जो विद्ध है", वह अत्यंत चमत्कारी और वेदना निवारण में अत्यंत शीघ्र परिणामकारक होने के कारण , "हमारे मूल शास्त्र मे क्या लिखा है, उसको भुलाकर" हमे ॲक्युपंचर नाम के शास्त्र को "दत्तक विधान करके/गोद लेकर के/ adopt करके "विद्ध नाम के साथ" नये बीएएमएस में अंतर्भूत करना हि चाहिये.
7.
फिर यद्यपि, हमारे शास्त्र मे मूर्धतैल = शिरो अभिषेक = मूर्ध अभिषेक यह लिखा है , तथापि हम उसे *"शिरोधारा"* ऐसा नाम देकर , यह मानसरोग मे अत्यंत उपयोगी है , ऐसा प्रचार/marketing करके, उसका समावेश आधुनिक बीएएमएस कोर्स मे करेंगे और यद्यपि नाम शिरोधारा है, तथापि उसका वास्तविक स्वरूप तो कपालधारा = ललाट धारा हि रहेगा. लेकिन ललाट धारा होने पर भी, वह "शिरोधारा" हि है और मन पर अत्यंत उपयोगी है, ऐसा हि निर्धारण/marketing हम करेंगे.
मन एक नित्य द्रव्य है, नित्य द्रव्य मे वृद्धि क्षय नही होता है और वृद्धिक्षय के बिना, संपर्पण अपतर्पण के बिना, लंघन बृंहण के बिना ... आयुर्वेद में अन्य कोई चिकित्सा हि नही है , तथापि "शिरोधारा" के नाम पर , हम "ललाटधारा / कपालधारा" करेंगे और वह मन पर अत्यंत उपयोगी है, ऐसा प्रस्थापित करेंगे हि.
8.
इसके बाद , आने वाली पिढी का जो कल्याण कर सकता है, ऐसे *सुवर्ण प्राशन* का समावेश आधुनिक बीएएमएस कोर्स मे करना हि चाहिये. प्राशन का अर्थ प्र = बडी मात्रा मे = भोजन / आहार मात्रा में औषध का लेना ऐसे होता है, जैसे प्रायः सभी अवलेहों की मात्रा संहिता में लिखी हुई है ... तथापि यहां पर हम "मात्र दो बूंद", वह भी महिने केवल एक हि बार, वह भी बडी मात्रा मधु मे केवल अत्यल्प मात्रा में <1% सुवर्णभस्म मिलाकर उसमे से, मात्र दो हि बूंद देंगे और उन दो बूंदों को हम "प्राशन" यह बडी मात्रा वाले विधान की संज्ञा देंगे.
सुवर्णप्राशन की काश्यप संहिता फलश्रुति मे लिखा है कि *षण्मासात् परमं मेधावी श्रुतधर* = अर्थात केवल छ मास में अत्यंत बुद्धिमान होता है और जो भी सुना है, उसको स्मृति मे रखने की क्षमता आती है ... अभी केवल दो बूंद प्रतिमाह = 6 मास में टोटल 12 बूंद से इतना रिझल्ट आयेगा यह तो कभी भी संभव नही है, यह कोई भी समझ सकता है.
यद्यपि हमे पता है, कि यह सुवर्ण "प्राशन" नही है ... सुवर्ण लेहन भी नही है , ये केवल सुवर्ण "स्पर्शन" या सुवर्ण "भ्रमीकरण" है ... किंतु इसी विधान को "सुवर्णप्राशन के नाम पर प्रस्थापित करना" और आधुनिक बीएएमएस में इस का समावेश होना ही अत्यंत आवश्यक है.
9.
पंचकर्म के पूर्व, स्वेदन कर्म करना है, उसके पहले जो अभ्यंग करना है, वो मात्र स्नेह का तेल का संपूर्ण शरीर की त्वचा पर आलेपन = ऑइल पेंटिंग मात्र , इतना हि अभिप्रेत है ... किंतु तथापि हम थेरपिस्ट के द्वारा 45 मिनिट तक पेशंट के सर्वांग को "मर्दन मसाज मालिश स्पा ट्रीटमेंट फील गुड हॅपनिंग ट्रीटमेंट करवायेंगे"!
पंचकर्म थेरपिस्ट यह एक उपकोर्स आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे अंतर्भूत होना हि चाहिये.
10.
इस के पश्चात्, भविष्य में जन्म वाली पिढी का जो कोटकल्याण करेगा, ऐसे *गर्भसंस्कार* नामक उपक्रम का भी समावेश, आधुनिक बी एम एस कोर्स मे होना हि चाहिए. चरक शारीर 8 व सुश्रुत शारीर 10 मे जो गर्भिणी परिचर्या लिखी है, उसमे से आज सारा कालबाह्य है , उसमे से कुछ भी ना करते हुए, आधुनिक बी ए एम एस मे , यह आधुनिक गर्भसंस्कार, जो हमारा अधिकरण नही है , ऐसे मंत्र और योगा, इनके सप्लीमेंट के साथ , यह कोर्स भी आधुनिक बी ए एम एस मे समाविष्ट होना चाहिए.
11.
इसके साथ साथ, प्राचीन संहिताओ मे जो अध्यापन विधि लिखी है , उसको हटा कर , झटपट इन्स्टंट तुरंत, तीन दिन, सात दिन, दस दिन मे किसी को भी प्राविण्य तक, पारंगत होने तक, सिखाया जा सकता है , ऐसे आज के नये अध्यापन विधियों का ऑनलाइन ऑफलाइन सेमिनार वेबिनार, इस प्रकार का "आयोजन और संचालन" कैसे करे , इसका भी प्रशिक्षण इस आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे अनिवार्य रूप से देना हि चाहिये.
12.
फिर जैसे पुनर्वसु ने अग्निवेशादि शिष्योंको, धन्वंतरि ने सुश्रुतादि शिष्यों को "गुरुकुल" के रूप मे आयुर्वेद का ज्ञान दिया था, ऐसे हि इस मॉडर्न एक्स्ट्रीमली सोफिस्टिकेटेड आयुर्वेद का, अर्थात आधुनिक बी ए एम एस कोर्स का रूपांतर, अल्पकालीन मध्यमकालीन दीर्घकालीन, एक दिन तीन दिन सात दिन दस दिन 30 दिन के "निवासी गुरुकुल मे करने का भी विधान कैसे संचालित करे" इसका भी प्रशिक्षण आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे होना हि चाहिये
13
इसी के साथ साथ, चरक की जयंती , धन्वंतरी का देह त्याग स्थल ऐसे ऐतिहासिक पौराणिक दृष्टी से महत्वपूर्ण दिनों एवं स्थानों का "ॲकॅडमिक पर्यटन=टुरिझम" के रूप मे उपयोग करके, "ऐसे दिनों पर और ऐसे स्थानों पर आधुनिक आयुर्वेद के बी ए एम एस कोर्स के अध्ययन-अध्यापन की विधा कैसे हो" इसका भी प्रशिक्षण आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे देना चाहिए
13A
इसी प्रकार से दिवाली जैसे पारंपारिक त्योहारों पर "आयुर्वेद के नाम पर" तेल उबटन साबुन , "ऐसे जो औषध नही है, ऐसे चीजों को कैसे बेचा जाये" इस का भी प्रशिक्षण इस नये बी ए एम एस कोर्स मे देना चाहिए. क्योंकि हम सारे आधुनिक बीएएमएस कोर्स करने वाले वैद्य थोडीही है?! हम तो मेडिसिन सेलर्स है. हम हेल्थ कन्सल्टंट है, ये तो हमने भूल ही जाना चाहिए
13B
और तो और कोई त्योहार हो ना हो फिर भी, लोगों के आरोग्य की सुरक्षा के लिये आवश्यक है, ऐसे "बता कर" या "प्रचार करके, माईंड सेट करके, मार्केटिंग करके" ; च्यवनप्राश, शतावरी कल्प, आवले का मुरब्बा ऐसे, जो औषध है उन को, पेशंट को आवश्यकता हो न हो, लेकिन "फिर भी, कैसे बेचा जा सकता है" इस का भी प्रशिक्षण नये बी एम एस कोर्स मे दिया जाना चाहिए.
13 C
वैसे भी आयुर्वेद औषध की दुकान खोलने के लिए किसी परमिशन लायसन डिग्री की आवश्यकता नही होती है. कोई भी सामान्य व्यक्ती , केवल शॉप ॲक्ट लायसन के द्वारा आयुर्वेद औषध बेचने की दुकान खोल सकता है. इसलिये नये बी ए एम एस कोर्स मे ऍडमिशन देने के लिए सायन्स या नीट ऐसे एंट्रन्स एक्झाम का निकष न रखते हुए, आर्ट्स और कॉमर्स ऐसे लोगों को भी प्रवेश देना चाहिए ... क्यूकी आखिर अंत में जाकर औषध ही तो बेचना है ... किराणा दुकान ग्रॉसरी शॉप की तरह!!! तो केवल सायन्स वाले हि हि क्यूं ? आर्ट्स व कॉमर्स वालों को भी इस आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे ॲडमिशन देने मे क्या दिक्कत है!!??
14.
इसी के साथ , पोलुशन से केमिकल से हायब्रिडायझेशन फर्टीलायझर से भरे हुए, अन्न आहार वातावरण इनसे, मात्र दो या तीन दिन दूर रहकर , जैसे तीन चार हजार साल पहले , जो दिनचर्या हुआ करती थी, उसका 2-3 दिन यथाशक्य अनुभव करके, संपूर्ण आरोग्य की प्राप्ती कैसे हो सकती है , यह समझने के लिए, "रिसॉर्ट = आयुर्वेद आश्रम = वेलनेस सेंटर, इन की स्थापना & संचालन कैसे करे" इसका भी प्रशिक्षण आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे अनिवार्य रूप से देना चाहिए
वहां पर, केवल दो तीन या सात दिन निकालकर, उस रिसॉर्ट से बाहर आने के बाद, हमे बाकी का पूरा 99.99% जीवन पेस्टिसाइड फर्टीलायझर हायब्रीड पोल्युशन केमिकल इसी मे अनिवार्य रूप से जीना है , तथापि स्पा व रिसॉर्ट में मात्र 3 या 7 दिन का निवास, संपूर्ण जीवन की आरोग्य सुरक्षा के लिये अत्यंत आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है , इस कारण से इस प्रकार के "रिसॉर्ट की स्थापना व्यवस्थापन संचालन कैसे करते है", इसका भी है ट्रेनिंग बी ए एम एस कोर्स मे देना अत्यावश्यक है.
15.
भारत की नरनारियां पहिले कभी सुंदर थी ही नही... अभी अभी तो सौंदर्य क्या है, उसके क्रायटेरिया क्या है, उसके लिए उपचार क्या होने चाहिए ... इसका संशोधन हुआ है और इसमे रिसर्च के अनुसार और विश्व मे मान्य निकषों के अनुसार जो cosmetology = सौंदर्यशास्त्र की नयी शाखा उभरकर आयी है, उस सौंदर्यशास्त्र को आयुर्वेद के साचे मे डालकर/ढालकर, एक आयुर्वेद सौंदर्यशास्त्र नाम का, अर्थात गालों को और बालों को रंगने का, जितना भी बाह्योपचार हो सकता है, उसके लिए उपयुक्त, न जाने कितने प्राॅडक्ट्स "बेचने की व्यवस्था" हो सकती है !!! इस नये करिअर का, सौंदर्य शास्त्र के विधान का तथा इन नये सौंदर्य प्रॉडक्ट्स का, जिसे आधुनिक भाषा मे, आयुर्वेदिक कॉस्मेटोस्युटिकल्स कहा जाता है, ऐसे सारे बातों का पुरस्कार प्रसार प्रचार आणि का प्रशिक्षण आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे अंतर्भूत होना हि चाहिये!
सौंदर्यशास्त्र को हमारे भारत की कई युनिव्हर्सिटी, हमारे शिखर शैक्षणिक संस्थान कितना प्रोत्साहन, पुरस्कार तथा स्टेज पर अवसर निरंतर रूप से दे हि रहे है और इससे हमारे सारे अध्यापक वैद्य और विद्यार्थी गण प्रेरित हो रहे और उनके जीवन मे ये सारा उनके लिये अत्यंत उपयोगी होने वाला है.
16.
साधनं न त्वसाध्यानां व्याधीनामुपदिश्यते ।
👆🏼च सू 1/63 !
फिर भी ...आत्ययिक, असाध्य, याप्य, मॉडर्न डायग्नोसिस के अनुसार गंभीर ... ऐसे चमत्कारिक विलक्षण रोगों की चिकित्सा(? Try/attempt to treat) करना, यह एक ग्लॅमरस , भीड खींचने वाला crowd pulling उपक्रम आयुर्वेद में आजकल यहां वहां दिखाई दे रहा है, लोकप्रिय भी हो रहा है
अनेक नामवंत टायकून आयकॉन आयडॉल, ऐसे अति यशस्वी गुरुपदस्थ, ऐसे आयुर्वेद वैद्य भी अचानक झट से यकायक व्हाया आयसीयू आयसीसीयु स्वर्ग सिधार गये तथा अन्य भी सर्वसामान्य अतिसामान्य क्षुद्रातिक्षुद्र वैद्य भी एवं जनसामान्य के विषय में भी 99.99% शक्यता यही है कि वे भी व्हाया आयसीयु आयसीसीयु स्वर्ग जायेंगे, ऐसा हर बार बार बार कई बार होकर भी, आयुर्वेद में आत्ययिक चिकित्सा = इमर्जन्सी ट्रीटमेंट का कथाकथन = स्टोरी टेलिंग का उपक्रम सभी जगह चलता रहता है , ऐसे तथाकथित यशस्वी रामबाण आत्ययिक चिकित्सा = शुअर शॉट इमर्जन्सी ट्रीटमेंट का भी समावेश आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे करना हि चाहिए
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आज कल के विद्यार्थी उपरोक्त सभी नाडी योग से लेकर सौंदर्यशास्त्र आत्ययिक चिकित्सा तक, ये उपक्रम सीखने के लिए यहा वहा भटकते रहते है, उनको यह अधिकृत रूप से बी ए एम एस कोर्स मे ही सीखने को मिले , तो आने वाली पिढी का और समाज का निश्चित हि कल्याण होगा
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और तो और , भारत राष्ट्र को संपूर्ण स्वस्थ बनाने के लिए , जैसे घर घर आयुर्वेद , यह घोषणा दी है ... वैसे हि हर घर मे बीएएमएस , यह भी कार्य होना चाहिए! इसलिये आज जैसे दूर दराज के, रिमोट ग्रामीण क्षेत्र में तथा तालुका स्तर के गाव मे भी, बी ए एम एस कॉलेज खुल रहे है, हर काॅलेज को 100, 100 सीट दी जा रही है ... वैसे हर गल्ली नुक्कड रास्ते में बी ए एम एस कॉलेज खोलना चाहिए और हर घर के हर व्यक्ती को बीएएमएस होने का अवसर निर्माण करना चाहिए... जिससे की पढाने वाले , पढने वाले , पीजी करने वाले; सभी की रोजगार की व्यवस्था हो सके ...
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तो यह आधुनिक बीएएमएस कोर्स किस प्रकार से अत्यंत अपडेटेड अद्ययावत और लोककल्याणकारी सिद्ध होगा, इस पर तुरंत ही निर्णय करके, इसकी कार्यवाही कर देनी चाहिये और इसके लिये सभी वैद्य सभी विद्यार्थी उनके समूह उनकी संघटनाये आयुर्वेदिक के सेलेब्रिटी आयुर्वेद की शिखर संस्थाये इन सभी ने एक साथ मिलकर प्रयत्न करना अत्यंत आवश्यक है
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इस प्रकार से, इस लेख में , नाडी से लेकर सौंदर्यशास्त्र तथा इमर्जन्सी ट्रीटमेंट तक, सारे नये उपक्रमों का समावेश, आयुर्वेद के आधुनिकीकरण के लिए, नये बी ए एम एस कोर्स मे होना अत्यावश्यक अनिवार्य व अत्यंत उपयोगी है, यह सविस्तर प्रस्तुत किया है.
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ये देखकर, इस प्रस्ताव का सभी वैद्योने विद्यार्थियोंने अध्यापकोंने फार्मसीयोंने आयुर्वेद की संघटनाओं ने, बडे जोर से सपोर्ट करना चाहिए, पुरस्कार करना चाहिए, ताकि आयुर्वेद का जो संहिता मे लिखा हुआ प्राचीन जो कि "कालबाह्य" स्वरूप है, वह नष्ट होकर एक अत्यंत स्वर्णिम उज्ज्वल तेजस्वी सोफिस्टिकेटेड आधुनिक अद्ययावत अपडेटेड "प्रॉफिटेबल मार्केटेबल सेलेबल" इस प्रकार का नवीनतम आयुर्वेद, हमे और आनेवाले पिढियों को उपयोग करने के लिए, अधिकृत रूप से उपलब्ध होगा , उस पर कोई भी ... ये इल्लीगल है, आपको अलाउड नही है, आप बोगस है , ट्रॅडिशनल है, पॅरेलल है , सेकंडरी है ... ऐसे कोई भी आपकी निंदा नही करेगा !!!
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उलटा जो नया BAMS कोर्स होगा, जो भारतीय ऑल मेडिसिन स्कॉलर या बॅचलर ऑफ ऑल मेडिसिन स्किल्स , ऐसे अत्यंत भूषणावह एवं गौरवान्वित करने वाले उपाधि से संबंधित होगा.
23
ऐसी सर्व समावेशक विधा का हम सभी लोग पुरस्कार करे, क्यों की चरक भी कहते है, "कृत्स्नो हि लोको बुद्धिमताम् आचार्यः"! ...
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सिद्धांत के आधार पर मात्र "सोचने" की बजाय, "आयुर्वेदशास्त्र के नाम पर" हम क्या क्या "बेचने" का व्यापार कर सकते है, इसका हमे अधिक विचार करना चाहिए.
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चलो, बह रही है ~ज्ञान ❌️~ *धन ✅️* की गंगा ... हम उसमे हाथ धो लेंगे ... और सिर्फ हाथ हि क्यों, पूरा डुबकी लगाकर कर स्नान हि कर लेते है
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