Saturday, 26 October 2024

मुस्तादि गण : स्त्री विशिष्ट विकारों में उपयोगी अत्यंत वीर्यवान कल्प!

मुस्तावचाग्निद्विनिशाद्वितिक्ता

भल्लातपाठात्रिफलाविषाख्याः। 

कुष्ठं त्रुटिं हैमवती च योनि ...

स्तन्यामयघ्ना मलपाचनाश्च॥

विशेष रूप से कफ प्रधान या शीतगुणजन्य स्निग्ध गुरु गुणजन्य क्लेद प्रधान पृथ्वी जल प्रधान स्त्री विशिष्ट विकारोमे उपयोगी अत्यंत वीर्यवान कल्प! 



इस कल्प मे भी वचाहरिद्रादि गण के तीन मुख्य कंद द्रव्यों का समावेश है, वचा हरिद्रा व मुस्ता. तथापि यह कल्प/गण संतुलित नहीं है, यह एकांतिक योग या गण है. वचाहरिद्रादि में शुंठी हरिद्रा अभया ऐसे वीर्यवान उष्ण रुक्ष औषधों के साथ हि पृष्णिपर्णी इंद्रयव यष्टी इनका भी समावेश है, किंतु इस मुस्तादि गण में, इस प्रकार से संतुलन नही है, यह एकांतिक उष्ण तीक्ष्ण रूक्ष तिक्त कटु इस प्रकार का कल्प है, इस कारण से यह सर्वथा कफवैपरित्य मे कार्य करता है. रस वीर्य विपाक इनकी सुसंगती के परे जाकर इन द्रव्यों का या इस गण का *जो गामित्व है, वह अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्यूंकी इसी प्रकार के रस वीर्य विपाक होने पर भी अन्य किसी गण मे स्पष्ट रूप से *योनिस्तन्यामयघ्ना* इस प्रकार का उल्लेख प्राप्त नही होता है, यद्यपि स्तन्यामयघ्ना या शब्द वचाहरिद्रादि में है, योनि दोषहर इस प्रकार का वर्णन न्यग्रोधादि रोध्रादि में उपलब्ध है, किंतु योनि व स्तन्य इन दोनों का उल्लेख मात्र इसी गण मे होता है, इस कारण से यह गण स्त्री विशिष्ट विकृतियों के लिए समर्पित है! किंतु, ऊन विकृतियो मे भी, जो विकृतियां कफ प्रधान गुरु स्निग्ध शीत गुण प्रधान क्लेद प्रधान पृथ्वी जल प्रधान इस प्रकार की है , ऐसे विकारो मे , लक्षणों/अवस्थाओं मे मुस्तादी गण या मुस्तादि गण के द्रव्यों का उपयोग अवस्थानुरूप लाभदायक होता है.

उष्ण गुण होने के कारण यह गण कुछ वात जन्य अवस्था में भी उपयोगी होता है, किंतु उसके साथ अपतर्पण या धातुक्षय या प्रक्षोभ ना हो, इसका ध्यान रखना आवश्यक है. 

इसमे से पाठा और मुस्ता स्तन्यशोधन महाकषाय में भी उल्लेखित है, चरक में, पाठा का उल्लेख पुष्यानुग चूर्ण में भी है. किंतु मुस्तादि गण यह पुष्यानुग चूर्ण की तरह एकांतिक स्तंभन नही है. आगे जब रोध्रादिगण और न्यग्रोधादि गणके संबंध मे लिखेंगे, तब पुनश्च इन की समानता का अध्ययन करेंगे.

तथा पाठा का उल्लेख ग्रंथ्यार्तव मे भी आया है, तो ग्रंथि यह भी अवस्था कफ प्रधान और पृथ्वी जल प्रधान ही होती है.

विशेष रूप से इसमे त्रुटी अर्थात सूक्ष्म एला का उल्लेख है, तो जो विस्रगंधात्मक या विस्रगंध प्रधान अवस्थायें, योनि आर्तव इन स्थानो मे होती है, इसमे सूक्ष्म एला यह उपयोगी होती है. एलादि चूर्ण यह भी इसी प्रकार से कार्यकारी होता है. क्लेद द प्रधान दुर्गंध युक्त विस्रगंध युक्त कंडु प्रधान अवस्था में यह लाभदायक परिणाम देता है.

कफ प्रधान जलवत स्राव में त्रिफला कार्यकारी होती है.

पाण्डुरेऽसृग्दरे पिबेत् जलेनाऽऽमलकीबीजं 

... इति चरक!

कफ प्रधान घन स्त्यान कंडु प्रधान स्राव युक्त अवस्था में वचा हरिद्रा भल्लातक इनका उपयोग होता है. 

संरंभ प्रक्षोभ दाह आरकता कंडु विस्रगंध पीतवर्णता रजःप्रवृत्ती के पहले और बाद में ऐसे स्राव होना, इनमें मुस्ता का उपयोग अधिक होता है.

किंतु इतनी अंशांश कल्पना के बजाय, संपूर्ण मुस्तादि गण का प्रयोग किया जाये, तो प्राय सभी कफ प्रधान कफवात प्रधान कफपित्त प्रधान अवस्थामे , स्त्री विशिष्ट विकृति मे मुस्तादि गण अपेक्षित परिणाम अल्पकाल मे देता है.

इसका वैशिष्ट्य यह है कि दो मेन्सेस तक सतत अगर इस गण का सेवन अपानकाल मे किया जाये , तो योनि गत पुनरावर्तक/रिकरिंग कंप्लेंट्स पूर्णतः बंद हो जाती है.

इसका निर्माण करते समय अतिविषा और हैमवती अर्थात श्वेतवचा इनका समावेश म्हेत्रेआयुर्वेद / MhetreAyurveda नहीं करते है, क्यूंकि अतिविषा अत्यंत काॅस्टली है और हैमवती अर्थात श्वेतवचा संदिग्ध और दुर्लभ है.

साथ हि भल्लातक का अंतर्भाव केवल मूल चूर्ण मे करते है, क्वाथ निर्मिती के समय/ भावना देते समय बलाधान के समय भल्लातक का समावेश नही करते है.

चित्रक की भी उपलब्धी उतनी मात्रा मे हर समय नही होती है.

इन कारणो से अतिविषा की जगह मुस्ता द्विगुण मात्रा मे जैसे हम वचाहरिद्रादि गण मे करते है, उसी प्रकार से हैमवती की जगह वचा का प्रमाण द्विगुण करते है.

तेषु तु अलाभतः। युञ्ज्यात्तद्विधमन्यच्च, 

द्रव्यं जह्याद् अयौगिकम्॥

वैसे तो वचाहरिद्रादि गण से हि जैसे स्तन्य दोष नाश यह परिणाम प्राप्त होता है, ऐसेही योनि विकृतियो मे भी उपशम प्राप्त होता है ... तथापि अत्यंत कफ प्रधान क्लेद प्रधान स्थिती मे मुस्तादि गण अधिक कार्यकारी होता है. पेशंट मे अगर संरंभ प्रक्षोभ दाह ऐसे लक्षण ना हो तो वचाहरिद्रादि की तुलना मे मुस्तादि हि अधिक उपकारक है

प्रोलॅक्टिन Prolactin अत्यधिक मात्रा मे बढना, ऐसी स्थिती मे भी मुस्तादि दो मेंसेस तक सतत देने के बाद रिपोर्ट किया जाये तो वह नॉर्मल तक आ जाता है

वृषण व स्तन यह शुक्र के मूलस्थान हे सुश्रुत संहिता मे, तो स्त्री मे शुक्र रूप बीज या बीज रूप शुक्र धातु का विचार करेंगे तो, वृषण व स्तन की जगह योनी और स्तन का विचार होना चाहिये , इस कारण से आज का ओव्हम फर्टिलिटी पीसीओएस ए एम एच, एल एच, एफ एस एच, पी आर एल, प्रोजेस्टेरॉन, इस्ट्रोजेन ... ऐसे हार्मोन से संबंधित विकृतियों में / असंतुलन में , दो से छ (2 to 6) मेंसेस तक मुस्तादि गण का अपान और व्यानोदान (भोजनपूर्व और भोजन पश्चात) दोनों औषधी कालो मे निरंतर प्रयोग करने से, इनके रिपोर्ट भी नॉर्मल आ जाते है और इसमे ओबेसिटी जैसे अन्य कोई साइड इफेक्ट भी नही होते है

*ओव्ह्युलेशन स्टडी = फॉलिक्युलर स्टडी इस मे यदि रप्चर डीले हो रहा है तो , रप्चर होने के लिए मुस्तादि 7धा बलाधान टॅबलेट अपान + व्यानोदान = भोजनपूर्व + भोजनोतर देंगे,  तो दूसरे ही दिन रप्चर हो गया है ऐसा अनुभव प्रायः सभी स्त्री पेशंट मे आता है*

मलपाचन यह स्त्री विशिष्ट स्थिती मे तथा सार्वदेहिक स्थिती मे भी लागू होता है.

मल का एक अर्थ दुष्ट विकृत शोधनार्ह दोष ऐसा भी होता है

तो जहां जहां पर इस प्रकार के दोषों का पाचन होकर उनका स्रोतःस्थित लीनत्व नष्ट करना अभिप्रेत है, ऐसे सभी अवस्था मे , चाहे वह स्त्री विशिष्ट अवयव मे हो या सर्व देह में या किसी अन्य अवयव में हो, वहां पर मुस्तादि गण अपने उष्ण तीक्ष्ण रूक्ष अग्नि वायु प्रधान सामर्थ्य से कार्यकारी होता है

कफज शोथ, पीनस, संधिशोथ, कर्णस्राव, शिरोगौरव, शीतपित्त, स्तन ग्रंथि, विद्रधि, भगंदर, टॉन्सिल्स, वृषण शोथ, PCOS, Fibroids, cyst, सकफ कास, कफज अवरोधज श्वास, नाॅन हीलिंग रिकरिंग वूंड ऐसे कफ प्रधान क्लेद प्रधान पृथ्वी जल प्रधान संचयजन्य उत्सेध accumulation अवरोधजन्य अवस्था मे कार्यकारी होता है. कुछ स्थितियों मे इसका लेप भी उपयोगी होता है

सुश्रुतसंहिता मे मुस्तादि गण का फलश्रुती मे *श्लेष्मनिषूदन* ऐसा स्पष्ट शब्द है, इसका अर्थ है कि, मुस्तादि गण की दोषानुसार कार्यकारिता यह कफ प्रधान स्थितियों में अधिक है, तथा च कफपित्त प्रधान कफवात प्रधान अवस्था मे यह उपयोगी होता है

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वैद्य हृषीकेश म्हेत्रे

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Friday, 25 October 2024

Management of lifestyle disorders other than DM type 2 and obesity.

Management of lifestyle disorders other than DM type 2 and obesity.


A lifestyle disease is any disease that appears to increase in frequency as countries become more industrialized and people live longer, especially if the risk factors include behavioral choices like a sedentary lifestyle or a diet high in unhealthful foods


I consider lifestyle diseases as the diseases which are NOT DUE to any infection or trauma 


Lifestyle diseases include the diseases which are caused by Mithya Aahara Vihara or more specifically asamyak yoga of Aahara and vihara, that is Heena ATI Mithya yoga of Aahara and vihara 


Truly speaking in modern world , accurate or appropriate treatment or drugs for diseases caused by infection and trauma are not available in Ayurveda! 


Ayurveda's potential is to treat Lifestyle disorders which are due to Mithya ATI Heena yoga of Ahara and Vihara 


Out of these, Mithya ATI and Heena, we have discussed about ATI yoga of Aahara and Heena yoga of Vihara which cause the most commonly prevailing diseases diabetes type 2 and obesity.


There are only two types of diseases as per Ayurveda ... those are vriddhi Janya and kshayajanya which are popularly known as apatarpanajanya and Santarpanajanya. Tyese two types are not different from the common sense of hypo and hyper that is increased and decreased status of bodyly contents.


Today we speak a lot about hypothyroidism hypertension anemia hyperlipidemia low vitamin D low vitamin B ... 


so all these are again hypo and hyper that is increase and decrease that is vriddhi and kshaya that is Santarpana and apatharpana that is langhana and brumhana ...


so all the wisdom to understand the diseases is the same, in both modern and Ayurved medicine, except the diseases caused by trauma and infection


As diabetes and obesity are diseases caused by hyper or vriddhi or santarpana, now it is better to consider diseases caused by hypo or appatarpana


The disease caused by decrease in bodily contents or scarcity of their quantitative or qualitative proportion in the body, are generally degenerative diseases.


out of which the most painful diseases are due to degeneration or osteoporosis of bones , that to specially in the spine and knees.


such diseases in chronic condition and in old age frequently require surgery, is which are generally very costly and not well tolerated in that age, but Ayurveda can offer better remedy and lasting results which can for sure avoid such major complicated and costly surgery and their complication and the limitations to the movement caused by such surgery 


MhetreAyurveda has treated more than 2000 cases of L5 S1 degeneration and severe knee degeneration ... average treatment period required to treat such cases is 42 days that is 6 weeks


the worst and the first case was in 2002, the lady aged 72 having all the lumbar vertebrae from L1 to L5 with severe degeneration , SLR test 0 , extreme pain in low back, not able to move or stand or walk, bed ridden, passing her stool and urine in the bed itself... this case was treated by very famous tikta ksheera & tikta ghritam without giving a single Basti, only for 42 days that is 6 weeks to cure it completely at non recurrent means apunarbhava status, for next lifetime, 14 years up to her 86 year age, until she went to heaven.


An old man age 70 + posted for tkr total knee replacement surgery was treated for 6 weeks by tikta ksheera & tikta ghritam lahsuna ksheera Paaka, without giving a single Basti and he was cured to such an extent that he drove his own car for 450 km stretch on highway in one single day from Pune to Kolhapur using efficiently both his legs to operate clutch break and accelerator


Hair loss in is a very sensitive issue for all age group. this can also be treated efficiently by above treatment or with rakta pitta shamaka treatment using yashti Sariva 7 baladhana tablets and nasya ghrutam or dugdh


Azoospermia and asthenozoospermia are to be treated by swadhu & tikta Rasa aushadhi so such cases are treated by Drutavilambitago Kalp which enables the patient to have mobility fast and distant similarly the same fast and distant mobility or motility can be achieved for sperms also


Acne is again a sensitive issue for young boys & girls/ladies which is generally considered as due to hormonal imbalance in growing age from puberty onwards until late 25 age ... but these acne or such type of problems are to be considered as rakta pitta dushti increase of agni ushna guna which can be permanently cured by Nithya mrudu alpa alpa virechana and nasya of ghritam and dugdh, also yashti sariva saptadha baladhana tablets give Apunarbhava that is non recurrent results


Diabetic wound is generally considered as due to complication of diabetes so it should be considered into Santa aur vriddhi Janya being bye Drishti off Prithvi and chalo but such type of bones are generally caused by degeneration of monsoon dhaatu by clay Sach wounds can be treated by dhupan eladi gana and jatyadhikrit to the non recurrent status


Entire treatment modality of Ayurved science is based on DVD upkram and brohana that is upper tarpan that is vriddhi and which is well explained by dividing for mahabhutaj into groups first Prithvi Angel which is Plus vriddhi hyper increase bruhan santarpan and second is Agni and Vayu which is minus show your hypo decrease lingan upper tarpan this is most basic and sufficient understanding of all the diseases diabetes and obesity are due to Prithvi Jal and Santhanam so that treatment is Agni Vayu that is thick the cut to that is VachaaHaridraadi or triphala Abhaya 


Bone degeneration aur shukr Shani aur raktpit Drishti aur hair loss these are due to Agni Vayu that is London so that treatment is Prithvi Jal that is Madhura that is bruhana that is St saribha aur vidar Yadi aur shatavri gokshura and so on


So the basic understanding of Prithvi Jal and santarpanam and Agni Vayu as upper tarpan is the key to successful treatment in terms of the with upkram which will take care of all the increase decrease that is hyper hyper to in non recurrent status and long lasting will be in of the patient treatment is not only drug but it comprise this three important things as aushadh Anna and we are that is we should first understand evaluate and then educate convince correct the Anna and Vihar that is diet food exercise and lifestyle of the patient which altimately is the cause nidhan Hetu for that patient for the given set of presenting complaints that is lakshana skand and then contrary to Hetu skand we should select the drugs that is avsar role of aushad skand is up to or until repairing the disturb condition to normal level but to maintain that normal level for disease free status for the future depends completely on the corrected food habits and disciplined regular consistent exercise

Management of DM type 2 and obesity

 Management of DM type 2 and obesity. 


Diabetes type 2 is not prameha because diagnosis of Prameha as per Ayurveda Samhita depends on prabhut and Avila mutra means mutra quantity is excessive and appearance of mutra is turbid but the quantity being excessive is very subjective obscure and vague statement because in Ayurveda Samhita, there is no reference available of normal quantity of mutra in a day, neither normal frequency of mutra pravritti in a day for a Swastha person. so on which basis, one can decide whether this excessive or not. same applies about turbid avila mutra.


Moreover nowadays, neither diabetes is diagnosed on the basis of symptoms related to urine! Gone those days when diabetes was diagnosed on the basis of polypepsia polyphagia and polyuria. nowadays confirm diagnosis of diabetes depends on blood sugar estimation fasting and PP and more correctly nowadays it is confirmed on the basis of HBA1C. so it is not possible for any Ayurveda doctor in India to diagnose on the basis of comparative excessive quantity as it cannot be decided because the basic normal value or quantity or frequency of mutra in non diseased nirogi Swastha person is not mentioned anywhere in literature.


moreover treatment given for Prameha never manages blood sugar.


Lastly, samprapti of Prameha is to expel out kleda along with mutra via / through Basti ... but diabetes is not confirmed or diagnosed on this mutra urine basis.


Reliable authority corporate pathology Laboratories like Metropolis have already displayed a printed notice in all there sample collection centres that , "they have stopped urine glucose test, as it has no relevance for treatment of diabetes" 


Diagnosis of Prameha on the basis of mutra quantity and its any equation with diabetes is impossible and unnecessary and useless as DMtype 2 is now diagnosed As Sugar in blood which can be easily understood in terms of Ayurveda as Kleda in Rasa and Rakta! 


for my personal understanding I do not consider Rasa as a separate dhaatu, it is neither demonstrable , not dispensable what it is called as Rasa dhaatu. therefore it is better to say that diabetes is raktagatha Kleda. Kleda is mixture of Prithvi and Jala, dominated by jala especially Drava Guna. 


for me Diabetes mellitus is not a disease of sugar ... but it is a disease of inability to use the sugar which is consumed by the person or patient.


it is not important or useful to bring down sugar level by giving medicine! then even though you use medicine to lower or decrease blood sugar for lifetime , still next day patient has to take medicine to manage his sugar.


better treatment for diabetes mellitus is to restore the capacity of sugar management system, which is there innate by birth provided to every living body by nature.


sugar management depends on liver pancreas and muscles. so an attempt to correct their capacity to manage use consume the uptaken sugar through daily meals, is the correct direction to treat a diabetes patient.


We MhetreAyurveda claim that from any number of HBA1C, may it be 12 13 or 14 ... it is many times possible to bring the patient at very normal HBA1C level 5.4, within 100 days and after that we may taper out the ongoing modern medicine within next 98 days and after that we will taper out our ongoing Ayurvedic medicine in next 49 days पादेन अपथ्यम् अभ्यस्तं पादपादेन वा त्यजेत् ... so it is in all 250 days treatment to restore the original by birth innate natural god given capacity of patient's body to manage sugar at normal level ... even after completely stopping medicine from Modern medicine and ayurvedic both.


it can be assured that patient will maintain at 5.4 for next lifetime.


& it is not just a theoretical claim but we have ample data to prove this sentence to be correct to be true to be factual, this is evidence based Ayurveda.


why diabetes occurs? it is due to consistent repeated years together over consuming of Carbohydrates sugar glucose and keeping it "unused" in the body for that much longer period.

how ??? Ati Sampoorana.


dinner is the culprit !!!


nowadays most of the people have sedentary Lifestyle with almost no exercise after 30 + 40 + age.

generally after youth, or after getting married or after getting into job the lifestyle is to wake upx / get up from the bed , sit on the commode, then sit on dining chair for breakfast , then sit on the two wheeler or four wheeler or public transport to reach to college or to office or to work place , then sit there for next 8 hours, then come back in again two wheeler four wheeler public transport sitting on a given seat , then by reaching home sit on sofa and watch your TV or mobile social media or laptop , then sit on dining chair to have your dinner and then sleep lie down flat on your bed for next 6 to 8 hours ... this is a General routine schedule of almost all the A B C class City citizens who are having sedentary Lifestyle, without any exercise and having 30+ or 40+ age who fall pray to Diabetes mellitus.


now in your growing age from 15 to 25, it is necessary to have full three diets/meals, but after 25, especially after 30 + there is no development in your body, so you really do not need 3 full meals. 


breakfast maybe useful for the energy in first half of your daily activities and lunch maybe useful for remaining half day activities as you speak see listen talk Roam walk climb drive ... so in all these activities you may consume the carbohydrates sugar glucose which you have taken into your body through your breakfast and through your lunch ...


but dinner is the culprit !!!


the carbohydrates glucose sugar which is consumed in form of Roti rice fruit milk Bakery ice cream and what not , in the dinner ... remains "unused" , because after that no physical activity is there at all, person just sleeps Lies down flat in his bed for next 6 to 8 hours and he wakes up to take to have to consume a king size breakfast again full of Carbohydrates glucose sugar like poha Upma Idli Dosa or dry fruits or milk ... so the energy or the glucose Carbohydrate sugar or calories which are loaded into the body through the dinner items, "remains unused" for days and weeks and years together ... which eventually converts into fat obesity lipids and one fine day the sugar management system collapses gives up and person gets diagnosed as DM type 2 


so management of diabetes mellitus type 2 is not only drug !!!


But Aushadha, Anna & Vihar upayog Sukha vaha is correct treatment.


there is no formula like "drug and disease"! ... it should not be 


being a doctor / a Vaidya , we should educate the patient in terms of Anna that is food , Vihar that is exercise and lastly aushadh , the drug !!!


we doctors or vaidyas are "health consultants", we are not "medicine sellers". therefore we should not see hunt search look for "drug and disease formula".


we should cultivate a culture of Holistic treatment which includes, 

first : correction in dietary habits,

then : introduction and discipline of necessary and proper exercise and 

lastly : the medicine which will restore the capacity of sugar management system which is and was there until the day of diagnosis of diabetes, from birth innate natural given by God, which should work efficiently for lifetime!!! 


Diabetes mellitus in first few weeks or months tends to eat up the musculature of the patient, so the patient is facing muscle wasting protein loss, having an appearance with lean and thin arms hands legs calves and a tummy full of fat round and heavy and suspended, this is the picture of diabetic patient , after few weeks months and years of diagnose as DM type 2.


so the first line of treatment, is to restore and assure the avoidance of muscle loss, to build up his muscles, to ensure the proper protein consumption in his daily food. 


so breakfast should be full of protein, not artificial proteins, not commercial protein, but food protein homely protein, that is Mudga masura rajamasha means green gram, lentils, cows eye beans and paneer homemade and goat mutton! 


there are many misconcepts about red meat , but goat meat is Sharira dhaatu Samaana and AanabhiShyandhi.


Western people or modern medicine advice this to avoid red meat because they consume lamb beef pork, but in India we generally prefer to eat goat mutton, which is lean and thin which is not obese, which is not fatty, unlike lamb beef and pork.


so goat meat though, it is red meat, it is preferable and safe, as a healthy protein source!!!


poultry chicken is "Industrial flesh" which is generally hormone induced, so it is better to avoid 


and fish which come from sea are full of kshaara, so better to be avoided 


so breakfast should contain good natural homely protein , so there will be Assurance of no muscle wasting and no protein loss anymore.


then in the lunch at Mid Day around 12 noon as far as possible before 1:30 p.m., lunch should have all the ingredients enough only Carbohydrate, ample protein, optimum only fat, sufficient fibre! so one may consume roti fulka bhakri i.e. carbohydrates, long runners Gourds as vegetables for fibre, fat sufficient for Tadka and good quality salad like radish tender 


but better to avoid pressure cooker cooked food items , underground strachy sweeet food items, leafy vegetables and pulpy fluidy items as those contain Kleda Prithvi Jala carbohydrate glucose sugar. 


Tea should be not more than two cups a day 


and ...


as dinner is the culprit !!! ... in the dinner one should eat full stomach up to satiety, no Starving should be there, no malnutrition should be there ... because Starving again causes protein loss muscle wasting, so dinner should be full stomach with full capacity up to satiety ... "but it should not increase energy calories, it should not supply sugar glucose carbohydrate anymore... so what is a good trick, what is a good moral destraction for the body ... to have full stomach meal without uploading unnecessary glucose carbohydrate sugar calories, which are NEVER EVER going to be used, during the night time, as the person will be sleeping laying down flat in his bed for next 6 to 8 hours.


So dinner is the culprit ... therefore dinner should contain bharijit Dhanya = roasted cereals that is laajaa.


yes , The Angre sangraha for chhardi, in ashtanga Hrudaya Uttara sthana adhyaya 40 , Shlok 48 to 58 , Laajaa for Chhardi.


this 3 meal diet design is the first important part of treatment out of 3 pillars of diabetes reversal treatment which includes 1.Anna, 2.Vihara and 3.Aushadha 


next is Vihara ...

Vihara is proper and sufficient exercise, as all the persons are generally lazy giving excuses for exercise, doing procrastinations and unwilling for regular exercise, saying that having "no time". so it should be mandatory to have a walk of 70 minutes in one go, preferably empty stomach in the morning before 9:00 a.m. 


If not possible then before sunset in the evening 


if not possible to go for a walk, then climbing down and up the staircase where they live in multi storey building in a flat 


if not possible to go down and climb up then just climb up on step and get down and climb up again Step Up Step down only one step for 70 minutes 


one may go for work in the lobby or parking or on the terrace or as in the time of Corona all our patients walked in their own house from bedroom to Passage to hall and back to Passage to bedroom !


so there is no alternative or excuse to 70 minutes muscular exercise 


those who cannot walk or stand at all due to there knee or low back pain, they should lie down on their back, in the bed and go for air cycling for 100 times forward and backward 


and after that they should sit in a chair and go for spinal twist spreading their hands horizontally to the maximum and twisting their spine for 270° clock wise and anticlockwise for 100 times 


These two simple exercises are sufficient for all the muscles in the body, below waist & above waist respectively 


daytime sleep must be avoided at any case 


one may take there habitual sleep or nap in sitting position on a sofa or in a chair keeping their legs horizontally on next stool or chair in front of them 


they may lean not more than 120°, but in any case they should not sleep flat in bed or on so far in 180°, even for a minute 


and lastly the thing, that you may be waiting for ... is the "drug" 


the drug that we use very abundantly with full confidence, more than 8 lakh tablets of this drug are used by MhetreAyurveda and their students and their friends and their fellow Vaidyas in Maharashtra and all over Bharata 


the drug is the boss VachaaHaridradi gana from ashtanga Hrudaya sutrasthana 15 ... we use saptadha baladhana tablets of this gana 


the dose is 6 tablets 4 times , if hba1c is above 10 and 6 tablet 3 times , if HB A1 C is below 10 


the tablets are given preferably after meals, that is bhojanottara 


along with VachaaHaridradi, we use trifala Abhaya &/or mustadi for Kleda Nashana. 


you may go through an extensive article on VachaaHaridraadi in our MhetreAyurveda blog, the link is given below 


https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/11/blog-post.html


many things are common about diabetes mellitus type 2 and obesity 


here in obesity the over consumption of food especially having excessive glucose carbohydrate sugar similarly over consumption of such pruthvijala Pradhan food along with fat! this unused energy content or unused Prithvi Jala content gets stored in our body as lipid fat medas, at the most relaxed organ that is tummy vapavhana, as we sit in forward bending position for entire lifetime or most of the time in our daily routine 


so tummy is the most relaxed part of our body where no tension is ever exerted, therefore fat accumulation = medas sanchiti, is always at tummy initially!!! after the tummy, the tyres get increased after the tyres on both sides, fat accumulates on hips, then thighs, then arms, then neck and then all over the body ... therefore the famous shloka is "sphik stana udara lambanam" 


these areas / organs / spaces in our body, are the least stressed , physically no strain no stress is ever exerted on these parts ... the most moving parts wrist hand ankle calf, these ever accumulate fat ... so tension strain on those parts where fat accumulates, should be given during the exercise!!!


Instead of cycling walking running jogging swimming or jerky sports like badminton etc, backward bending side bending twisting exercises are more useful for inch loss fat loss loose weight shedding 


 that's why yogasana and Pranayam are useless exercises to manage diabetes and obesity 


both yoga and Pranayam may improve stamina and pulmonary capacity of the person , but they have no role in reducing sugar or fat at all 


so 70 minutes walking or climbing and getting down through stair or Step Up Step down only one step air cycling &/or spinal twist; all these exercises altogether, are useful to use the sugar and the fat by muscles of the patient 


so they will not get accumulated again 


if we reduce fat and sugar by giving medicines, the day we stop the medicines, fat and sugar will be getting accumulated again and again 


So , to get rid of sugar and fat permanently , one should control and educate the food habits , one should make disciplined consistent exercise and the drug which is Agni Vayu Pradhan which is the and tikta and katu that is VachaaHaridraadi gana in case off sugar and Triphala Abhaya that is Sthaulyahara for obesity which is from Ashtanga Hrudaya Sutra 14 , we prepare saptadha baladhan tablets of these drugs.


we have use more than 400000 tablets of trifla Abhaya you can read more about this in given link of our blog

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Tuesday, 22 October 2024

द्रुतविलम्बितगो = शीघ्रगती से और लंबी दूरी तक जाने की क्षमता = Fast and Distant mobility!

द्रुतविलम्बितगो = शीघ्रगती से और लंबी दूरी तक जाने की क्षमता = Fast and Distant mobility!


लेखक : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. 

एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.

आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक.

9422016871

MhetreAyurved@gmail.com


सहचरं सुरदारुं सनागरं 

क्वथितमम्भसि तैलविमिश्रितम्। 

पवनपीडितदेहगतिः पिबन् 

द्रुतविलम्बितगो भवतीच्छया॥


सहचर देवदार और शुंठी इनका क्वाथ बनाकर, उसमे योग्य मात्रा मे तैल संमिश्र करके पान करते है तो,

जिनकी देह गती अर्थात शरीर का चलनवलन वायुसे पीडित हैै , ऐसे रुग्ण भी अपनी "इच्छा के अनुसार, शीघ्रगती से और लंबी दूरी तक जाने मे समर्थ" होते है. Fast and Distant mobility!

रुके रुके से कदम ... रुक के ... बार बार चले 

इस मोड से जाते है, कुछ सुस्त कदम रस्ते ... कुछ तेज कदम राहे

इस प्रकार का योग चरक संहिता और सुश्रुत संहिता मे नही मिलता है 

भावप्रकाश में इन 3 द्रव्यों के गुणधर्म देखेंगे तो भी इनका इतना वात नाशक कर्म लिखा हुआ नही है 

किंतु यही वाग्भटका वैशिष्ट्य है कि, उसने कुछ ऐसे कल्पों का योगदान दिया है, कि जिनकी द्रव्य संख्या कम है ... तथापि परिणामकारकता अधिक है.


इसके पहले भी म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda ने, इसी *द्रुतविलंबितगो* योग का, स्पर्म की शून्य मोटिलिटी / झिरो मोटिलिटी / oligo-astheno-spermia के केसेस मे यशस्वी उपयोग पर लेख प्रस्तुत किया है 

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https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/06/oligo-astheno-spermia.html

साथ ही जैसे द्रुतविलंबितगो यह प्रस्तुत योग वेदनाशमन का कार्य करता है, उसी प्रकार से इसके पहले भी म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda ने वेदनाशामक वातज्वर दुरालाभादि योग इसके संदर्भ मे सविस्तर लिखा है, कि यह इन्स्टंट पेन रिलीफ के रूप मे काम करता है 

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https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/10/blog-post.html

यह योग भी, जिसका नाम वाग्भटने फलश्रुती के रूप में *द्रुतविलंबितगो* इस प्रकार से उल्लेखित किया है, उसी नाम से यह लेख भी लिखा है.


द्रुत अर्थात शीघ्रगती = फास्ट 

विलंबित अर्थात लंबी दूरी तक = डिस्टन्स 

गो अर्थात जाने की क्षमता ="गोइंग कॅपॅसिटी / मोबिलिटी 


तो जिनका शरीर या जिनके शरीर की गती चलनवलन प्रसारण आकुंचन इसकी क्षमता सामर्थ्य शक्ती बल कौशल प्राविण्य , यह वात के कारण पीडित है, क्षीण है, बाधित है ... ऐसे पेशंट मे इन तीन द्रव्यों का क्वाथ, तैल मिश्रित करके दिया जाये, तो यह उस पेशंट को, उस वात पीडित देह गती से, मुक्ती देकर "द्रुत और विलंबित जाने की क्षमता" प्राप्त करके देता है.

यह तो इस श्लोक का शब्दशः अर्थ हुआ ...

किंतु वस्तुस्थिती मे भी ✅️... अगर यह योग सप्तधा बलाधान टॅबलेट के रूप मे या प्रत्यक्ष क्वाथ के रूप मे, उचित मात्रा मे योग्य तैल मिश्रित करके, अपानकाल मे या भोजनोत्तर काल में प्रयुक्त किया जाये, तो उस उस स्थान की या सर्वांग गत पीडा नष्ट होकर, पेशंट 6 से 12 सप्ताह की ट्रीटमेंट के पश्चात, सत्य परिस्थिती मे "द्रुत विलंबित गो = शीघ्रगती से लंबी दूरी तक जाने मे = फास्ट अँड डिस्टन्स मोबिलिटी की क्षमता मे आता है!!! 


संतर्पणजन्य हो या अपतर्पणजन्य हो, धातुक्षयजन्य हो या आवरणजन्य हो ... सभी प्रकार के वातप्रकोप मे यह योग कार्यकारी है ! 


क्योंकि ... 

इसमे देवदार यह स्निग्ध उष्ण और वात शामक तथा भद्रदार्व्यादि गण का आद्यद्रव्य है.

शुंठी विश्वभेषज है, स्निग्ध है, उष्ण है आमवात नाशक है, विबंधनाशक है.

सहचर के नाम मे ही "चर"त्व है अर्थात सुख से चलना, साथ मे चलना ... ऐसा उसका नाम हि है ... 

इस कारण से यह योग सभी प्रकार के वातप्रकोपजन्य देह पीडा मे उपयोगी होता है ... तथा यह योग उसके इसी प्रभाव के कारण "द्रुत विलंबित गो" अर्थात शीघ्रगती से लंबी दूरी तक जाने की क्षमता अर्थात फास्ट अँड डिस्टन्ट मोबिलिटी , इस प्रकार का लाभदायक परिणाम देता है

स्पाइनल व्हर्टेब्रल नी डी जनरेशन मन्यागत तथा कटीगत, जानुगत विकृती , जैसे की सायटिका सर्व्हायकल स्पॉंडिलोसिस डिस्क बल्ज ए व्ही एन ऐसे अस्थि तथा संधिगत विकृती एवं च मसल मांसगत ग्रह स्तंभ शोष शोथ वर्त संकोच जन्य विकृतीयां एवं इनके कारण होने वाली वेदना शूल संकोच प्रसारण अक्षमता स्तंभ ग्रह इनमे यह योग कार्यकारी होता है

जिस दादी माँ कि एस एल आर टेस्ट (<10°) टेन डिग्री तक भी नही थी, बेड रिडन थी, उसमे इस योग की सप्तधा बलाधान टॅबलेट्स प्रयुक्त करने के बाद, 3 महिने के पश्चात दादी मां ने बेडसे उतर कर, अपने बेडरूम से हॉल मे आकर, घर के सामने के दस दस स्टेप उतर कर , एक मंजिल नीचे जाकर , फिरसे उपर आकर , अपने बेडरूम तक आने का व्हिडिओ भेज दिया. पूर्ण क्षमता से चलनवलन में सक्षम हो गई तो, स्वयं नवी मुंबई से म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda के पुणे स्थित पाटील प्लाझा क्लिनिक मे आकर आशीर्वाद दिया और साथ मे अन्य रुग्णभी रेफर करके लेकर आयी !!!

सतत फॉरवर्ड बेंडिंग के रूप मे बैठने वाले टेबल वर्क करने वाले लोगो मे मन्या गत स्कंध गत बाहु गत हस्तगत कूर्पर मणिबंध गत वेदना बाधिर्य गौरव पिपिलिका संचार हस्त उद्धरण अक्षमता भारवहन अक्षमता आदि समस्यायें होती है इनमें यह योग कार्यकारी होता है 

जो लोग लंबी दूरी तक ड्रायव्हिंग करते है, जिन्ह उर्ध्वपृष्ठ मध्य पृष्ठ अधोपृष्ठ बॅक अँड लो बॅक पेन स्टिफनेस स्तंभ ग्रह होता है, ऐसे लोगो मे यह योग उपयोगी होता है 

जो लोग बहुत देर तक खडे रहते है या चलते रहते है या चढते उतरते रहते है, ऐसे वॉचमन गृहिणी शिक्षक मार्केटिंग डिलिव्हरी पर्सन, इन मे कटी सक्थि जानु पिंडिका पादगत वेदना तथा अन्य समस्या होती है, इसमे भी यह योग कार्यकारी होता है 

जो लोग बहुत देर तक सस्पेंडेड लेग्ज कुर्सी पर बैठकर पांव नीचे छोडकर काम करते है और जिन मे अधो कटी प्रदेश में वेदना स्तंभ गौरव आदि समस्या होती है , उनमे भी यह योग कार्यकारी होता है 

और यह योग, *अकेला ही , सिंगल ड्रग के रूप मे कार्यकारी होता है*, इसके साथ आपको अन्य आसवारिष्ट अन्य गुगुल कल्प अन्य रसकल्प अन्य भस्म अन्य कषाय देने की आवश्यकता नही होती है ... तेल के बिना भी यह योग कार्यकारी होता है 

यह सिंगल ड्रग के रूप मे 6 टॅबलेट दिन मे तीन बार या दो बार , पेशंट के वेदना की तीव्रता के अनुसार , उष्णोदक,  चाय या उष्ण दुग्ध या मुद्गयूष... यथा संभव यथा उपलब्ध अनुपान के साथ देने पर, एक दिन से सात दिन मे वेदना मे क्रमशः उपशम लक्षण हानी तथा 15 दिन से 6 सप्ताह या अधिकतम 12 सप्ताह तक की ट्रीटमेंट से संपूर्ण लक्षण उपशम अपुनर्भव रूप मे प्राप्त होता है

क्वाथ बनाना तो हर समय संभव नही होता है, इसलिये क्वाथ की जगह अगर इस द्रुत विलंबित गो योग की सप्तधा बलाधान 6 टॅबलेट तीन बार या दो बार, इस मात्रा मे, वेदना की तीव्रता के अनुसार, तैल संमिश्र करके दे दिया, तो अच्छे अपेक्षित लाभदायक परिणाम प्राप्त होते है. प्रथम दो सप्ताह के पश्चात समाधानकारक उपशम मिलता है. 6 से 12 सप्ताह में प्रायः पेशंट को पूर्ण उपशम मिलता है, जो अपुनर्भव के रूप मे होता है. 

कौनसा तैल उसके साथ मिश्र करे, इसका उत्तर "अन्य लक्षणों के अनुसार" ऐसे दिया जा सकता है. अच्छ तिल तैल, अच्छ एरंड तैल या अन्य कोई योग्य सिद्ध तैल जैसे की बलागुडूच्यादि महामाष ऐसे भी तैल दिये जा सकते है. 

कुछ पेशंट मे अगर पित्त प्रधान लक्षण है और शरद ऋतू है तो ऐसे पेशंट मे तैल की जगह, अच्छ घृत या केर तैल = coconut oil या किसी अन्य सिद्ध घृत का प्रयोग उपकारक होता है. 

सर्वथा तैल मिश्र करना सभी समय संभव या सुविधा जनक नही होता है, तब यह योग केवल उष्णोदक या चाय के साथ भी देने पर परिणाम प्राप्त होते है

यह योग म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda द्वारा सप्तधा बलाधान टॅबलेट के रूप मे, अन्य भी वैद्यों के उपयोग के लिए उपलब्ध कराया गया है. और इसके एक लाख से भी अधिक टॅबलेट उपयोग करने के पश्चात्, म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda के स्वयं के क्लिनिक में तथा जिन वैद्य ने सन्मित्रों ने इस द्रुतविलंबितगो योग का पेशंट पर उपयोग किया है, उनके अनुभव के पश्चात, यह लेख यहां पर प्रसारित कर रहे है


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Saturday, 19 October 2024

चिकुनगुन्या डेंग्यू इत्यादि ज्वर सहित या विरहित या पश्चात होने वाले संधि शूल शोथ ग्रह सकष्ट आकुंचन प्रसारण मे उपयोगी शीघ्र उपशमदायक योग

चिकुनगुन्या डेंग्यू इत्यादि ज्वर सहित या विरहित या पश्चात होने वाले संधि शूल शोथ ग्रह सकष्ट आकुंचन प्रसारण मे उपयोगी शीघ्र उपशमदायक योग


लेखक✍🏼 : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे 9422016871


विगत कुछ दिनो मे, ज्वर के पश्चात या ज्वर के बिना भी, संधिशूल विशेषतः एक्स्ट्रीमिटीज= हात पांव के उंगलियों के संधि तथा मणिबंध गुल्फ; कुछ पेशंट मे जानु कटी अंस मन्या कूर्पर पृष्ठ इन संधियों में भी शूल शोथ आरक्तता स्तंभ ग्रह, संधि के चलनवलन में कष्ट/दुष्करता ... इस प्रकार के लक्षण होते है. कुछ पेशंट मे सुबह के 10 बजे तक इन लक्षण में वृद्धि या अनुपशम होता है और प्रातः 10 के पश्चात लक्षणों में हानी या उपशम होता है. चिकनगुनिया डेंग्यू टायफाॅईड ऐसे रिपोर्ट पॉझिटिव आये हुए रहते है, कुछ में नही रहते है.


लीन दोष धातुगत दोष पुनरावर्तक ज्वर या ज्वर पश्चात विकृति जीर्णज्वर विषमज्वर ऐसे विविध प्रकार का आकलन होता है. जंतुजन्य ज्वर होने के कारण, कुछ वैद्य इसे कीट विष मानकर अगद कल्प से भी उपचार करने का मत रखते है


तो प्रायः यह आमवात के रूप मे जानकर, उस प्रकार के कल्प देने का कुछ वैद्यों मे विधान है, किंतु इसका सुनिश्चित आयुर्वेदिक निदान प्रायः नही हो पाता है. 


प्रायः इसमे रास्ना पंचक रास्ना सप्तक महारास्नादि ऐसे कल्प दिये जाते है.


एक "संभावना मात्र" प्रस्तुत कर रहे है और उस संभावना के अनुसार , अनुभव के आधार पर कल्प लिख रहे है.


विषमज्वरो मे जो चरकोक्त पांच विषमज्वर है, इसमे इस प्रकार का लक्षण या स्थान वैशिष्ट्य वर्णित नही है. सुश्रुत उत्तर तंत्र 39 मे, विषमज्वरो के इन 5 प्रकार के साथ हि, संधि गत दोषों से होने वाला प्रलेपक विषमज्वर उल्लेखित है और अगर उस प्रकार का विचार करके उसके लिए, उल्लेखित सुश्रुतोक्त द्रव्य /योग /कल्प दिये जाते है, तो इसमे शीघ्र तथा दीर्घकालीन उपशम प्राप्त होता है. 

1. पटोलकटुकामुस्ता

2. कटुकामुस्ताप्राणदा (प्राणदा = हरीतकी)

3. मुस्ताप्राणदामधुक (मधुक = यष्टी)

4. पटोलकटुकामुस्ताप्राणदा

5. कटुकामुस्ताप्राणदामधुक

6. पटोलकटुकामुस्ताप्राणदामधुक 

पटोलकटुकामुस्ताप्राणदामधुकैः कृताः। 

त्रिचतुःपञ्चशः क्वाथा विषमज्वरनाशनाः

अष्टांग हृदय चिकित्सा स्थान अध्याय 1 ज्वर चिकित्सा तथा सुश्रुत उत्तरतंत्र 39 मे उल्लेखित है. (इन 5 द्रव्यों के 16 योग बनते है, ऐसे डह्लण टीका मे वर्णित है.) तो इसमे से उदाहरण के तौर पर 6 योग, उनके द्रव्य एवं "पेशंट के अन्य लक्षणों के अनुसार" , योजना करके देखा है और प्रायः उन सभी पेशंट मे शीघ्र तथा दीर्घकालीन या अपुनर्भव उपशम प्राप्त हुआ है. ये 6 योग सप्तधा बलाधान टॅबलेट के रूप मे प्रयुक्त किये है. लक्षण की तीव्रता के अनुसार 6 टॅबलेट दो बार या तीन बार, इस प्रकार से प्रारंभ मे और लक्षण में उपशम के बाद, दो या तीन टॅबलेट दो या तीन बार, इस प्रकार से योजना की है.

इन योगों के बारे मे सविस्तर अधिक जानकारी के लिए इस 👇🏼लिंक का उपयोग करके लेख पढे

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/09/x.html


इन 6 योगों के साथ हि, शीघ्र वेदनाशमन के लिए, वेदनाशमन योग, जो दुरालभादि योग (= दुरालभा अमृता मुस्ता नागर) है, अष्टांगहृदय चिकित्सा स्थान 1 मे, उसके सप्तधा बलाधान टॅबलेट का उपरोक्त विधान से उपयोग लाभदायक होता है.

इस योग के संबंध में सविस्तर जानकारी इस लेख मे उपलब्ध है👇🏼

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विशेषतः, जिन पेशंट को चलने मे कष्ट वेदना असुविधा स्तंभ ग्रह इस प्रकार की कटीसक्थिपादगत समस्या है, उनको द्रुतविलंबितगो (= सहचर सुरदारु शुंठी) अष्टांग हृदय वातव्याधि चिकित्सा मे उल्लेखित योग के सप्तधा बलाधान टॅबलेट का परिणामकारक रूप मे उपयोग होता है, ऐसा अनुभव आता है. इसी योग का नाम हि उसकी फलश्रुती है : द्रुतविलंबितगो = शीघ्र गति से, लंबी दूरी तक जाने की क्षमता इस योग के सेवन से प्राप्त होती है ... फास्ट अँड डिस्टन्ट मोबिलिटी

इसी के साथ गृध्रसी नाशक योग जो शार्ङ्गधर क्वाथ कल्पना अध्यायमे आया है, इसमे "दशमूल हिंगु पुष्कर और निर्गुंडी" ऐसे 4 हि द्रव्य है. इनकी भी सप्तधा बलाधान टॅबलेट, यह शीघ्र वेदना शमन ऐसा परिणाम देती है. 

इसमे दशमूल जो निश्चित रूप से वातशामक और शोथशूलनाशक है. 

पुष्करमूल यह पार्श्वशूल में अग्रे द्रव्य है

हिंगु शूलनाशक है और 

निर्गुंडी तो स्वयं अकेली भी संधि अस्थि गत वेदना नाशन के लिए उपयोगी है.

जो अगतिकता के रूप मे,  रसकल्प मे, वेदनाशमन के लिए उपयोग मे लाया जाता है, और वत्सनाभ की अत्यधिक मात्रा के कारण, जो हानिकारक सिद्ध हो सकता है, ऐसे महावातविध्वंस इस कल्प को "निर्गुंडी की ही भावना है" ... और जितना मुझे आकलन है, उसके अनुसार, रसकल्प में द्रव्य की बजाय, भावना द्रव्य हि परिणामकारक होते है. इसी कारण से सातारा के प्रसिद्ध वैद्य गो आ फडकेजी, सूतशेखर की जगह, सूतशेखर का भावना द्रव्य, मार्कव के स्वरस का छाया शुष्क चूर्ण हि उपयोग मे लाते थे.

इसलिये यह गृध्रसी नाशक योग, जिसमे दशमूल हिंगु  पुष्कर और निर्गुंडी,  ये चारो भी शूलनाशक द्रव्य है, यह योग सप्तधा बलाधान टॅबलेट के रूप मे शीघ्र वेदना निवारण तथा शोथ स्तंभ ग्रह इन लक्षणों का उपशम करने में सक्षम होता है. यह भी योग सप्तधा बलाधान के रूप में म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda द्वारा वैद्यों के प्रयोग के लिए,  पेशंट के हित मे, उपलब्ध किया गया है

इस प्रकार से, उपरोक्त सभी कल्प / योगों के द्वारा की गई चिकित्सा उपचारों के साथ में, केवल लाजा (साळीच्या या ज्वारीच्या) एवं मुद्गयूष तथा मुद्ग/मुद्गदाल जन्य अन्नपदार्थ और कुकर मे न पका हुआ, प्रसृत = मांड निकाला हुआ ओदन या ज्वार की रोटी = भाकरी या गेहू के फुलके तथा फलशाक ऐसा आहार देना उचित होता है. यदि बलहानी है तो दाडिम अंजीर इन फलों का प्रयोग करे, किंतु अम्ल वर्ग, मैदा बेकरी, कुकर के पदार्थ तथा जमीन के नीचे आने वाले अन्नपदार्थ वर्ज्य करे.


हो सके तो सामान्य पानी के बजाय, मुद्गयूष या उष्णोदक और नही हो सके तो, धान्यक जीरक शुंठी सिद्ध जल या क्वथित शीतल = उबालकर ठंडा किया हुआ जल प्रयोग करे

ये उपरोक्त 

सुश्रुतोक्त 6 योगो के टॅबलेट तथा 

वेदनाशमन दुरालभादि योग, 

गृध्रसी नाशक योग और 

द्रुतविलंबितगो ; 

ये सभी सप्तधा बलाधान टॅबलेट के रूप में, म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda द्वारा वैद्यों उपयोग के लिए, पेशंट के हित में, उपलब्ध किये गये है. जो 9422016871 इस नंबर पर संपर्क करके प्राप्त किये जा सकते है, पेशंट पर उपयोग के लिए ... ये सप्तधा बलाधान टॅबलेट महाराष्ट्र शासन एफडीए द्वारा approved है

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Friday, 18 October 2024

नीतिमत्ता कि मालमत्ता? प्रोफेशन कि धंदा? बिझनेस कि प्रॅक्टिस?

लोकांची भावनिक गरज, लोकांची भावना, भावनात्मक मार्केटिंग, मार्केटिंगची भावना, काय "विकलं जाऊ शकतं" , saleability सेलेबिलिटी ... या बाबी लक्षात घेऊन, अनेक "अशास्त्रीय ट्रीटमेंट व टीचिंग उद्योग" सुरु आहेत. अशा उद्योगांना "रेटमेंट आणि चीटिंग" असेही म्हणता येईल


उदाहरणार्थ 

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1.सुवर्णप्राशन


व्हॅक्सिनेशन शी दुरान्वयानेही संबंध आणि तत्सम परिणामकारकता "निश्चितपणे नसलेलं" ... सुवर्णप्राशन !! 

कन्टेन्ट प्रोपोर्शन मात्रा कालावधी फ्रिक्वेन्सी याबाबतीत कसलीही "एक वाक्यता" नसलेली औषधे, या सुवर्ण प्राशन मध्ये वापरली जातात. 

अष्टांग हृदय उत्तर तंत्र 1 च्या शेवटी आलेले सुवर्णप्राशन आणि काश्यप संहितेत (खरंतर, काशयप संहिता नावाचं काहीही अस्तित्वात नाही! त्यातील प्रत्येक अध्यायाच्या शेवटी "वृद्ध जीवकीय तंत्र" असं म्हटलेलं आहे, तरीही "रेटून" काश्यप संहिता असंच म्हणायचं/ छापायचं असा व्यवहार सुरू आहे), तर त्या तथाकथित काश्यप संहितेत कुठेतरी आलेले सुवर्णप्राशनाचे श्लोक आणि त्याची फलश्रुती या दोघांमध्ये (अहृउ1 & वृद्ध जीवकीय तंत्र~काश्यप संहिता) फार मोठा फरक आहे.

अष्टांग हृदयामध्ये हे सुवर्ण प्राशनाचे कल्प एक वर्षभर द्यायला सांगितलेले आहेत निरंतर!!! केवळ महिन्यातून एकदा कुठल्यातरी नक्षत्राच्या दिवशी नव्हे!!!


मात्र, काश्यपातील या सुवर्णप्राशनाची फलश्रुती ही फक्त अर्थवादात्मक आहे, परंतु प्रॅक्टिकली अशक्य अशी आहे. श्रुतधर म्हणजे ऐकलेलं लक्षात ठेवू शकणारा, षण्मासात् मेधावी म्हणजे सहा महिन्यात बुद्धिमान् ... हे महिन्यातून एकदा, मधामध्ये सुवर्णभस्म अंदाज पंचे किंवा अत्यल्प प्रमाणात मिसळून, त्यातले दोन थेंब जिभेवर टाकून साध्य होईल असे शक्य नाही; हे कुठल्याही सर्वसामान्य बुद्धीच्याही माणसाला कळू/पटू /समजू शकते ... तरीही "दाबून रेटून" सुवर्णभस्म नावाखाली, सुवर्णप्राशनाचा "उद्योग व्यापार व्यवसाय धंदा दुकान विक्री सेल" चालू असतो.


ज्या सुवर्णावरती कुठल्याही प्रकारच्या अत्यंत कॉन्सन्ट्रेटेड ॲसिड अल्कली एक्वा रेजिया पारद यापैकी कशाचाही ढिम्म परिणाम होत नाही. त्याचे आम्ही भस्म करतो(?!) आणि "ते तथाकथित भस्म" एक पर्सेंट पेक्षाही (<1%) कमी प्रमाणात मधात मिसळतो आणि त्या सुवर्ण(?कि मध) प्राशना(चाटणा)च्या, "महिन्यातून एकदा दिलेल्या, दोन थेंबांनी", श्रुतधर आणि मेधावी आणि त्याहून अचाट असे आरोग्य लाभ होतील, असे अत्यंत अशास्त्रीय क्लेम करतो, हे नीतिमत्तेत बसत नाही.


प्राशन या शब्दाचा अर्थ प्रकर्षेण अशन म्हणजे जवळपास पूर्ण भोजन इतकी मात्रा असणे, असा होतो. अवलेहांची संहितोक्त मात्र पाहिली तरी ती याच आहारीय प्रमाणात आहे, असे असताना दोन थेंब इतक्या मात्रेला "प्राशन" असं म्हणणं, हे हास्यास्पद आहे. त्याला "प्राशन" तर सोडूनच द्या पण नुसतं "लेहन" सुद्धा न म्हणता, फार फार तर "स्पर्शन व्यंजन तोंडी लावणे" ,असे म्हणता येईल आणि इतक्या अल्पमात्रेतल्या औषधाने फक्त रोगांचे उदीरण किंवा उत्क्लेशच होऊ शकतो, असे शास्त्र सांगते.

ततोऽऽल्पमल्पवीर्यं वा गुरुव्याधौ प्रयोजितम्। 

उदीरयेत्तरां रोगान् 


2. गर्भसंस्कार


दुसरा "लोकप्रिय व फोफावणारा उद्योग" म्हणजे "गर्भसंस्कार"

चरक आणि सुश्रुत यात उल्लेखित गर्भिणी परिचर्येशी अजिबात साम्य/संबंध नसलेला आणि जो आपला अधिकार नाही, त्या मंत्र योग यांच्या आधाराने "सजवलेला" गर्भसंस्कार ... हाही उद्योग याच प्रकारचा आहे 


3. विद्ध 


बाह्योपचारांनी अनेक वेळेला "बरे वाटू शकते" (relief), पण त्याने "बरे होऊ शकत नाही" (cure) ही वस्तुस्थिती असली , तरीही त्याचे मार्केटिंग = आरडाओरडा इतका करायचा , की ते जगातील अंतिम सत्य आणि रामबाण उपाय आणि सर्वश्रेष्ठ उपचार आहे ... असे स्वतःला, विद्यार्थ्यांना आणि पेशंटला भासवायचं!

“What is right is not always popular, and what is popular is not always right.”

गर्दी जमवली की "हे सगळं खरं आहे" असं या तीनही पक्षांना वाटतं म्हणजे स्वतःला, विद्यार्थ्याला आणि पेशंटला सुद्धा!! परंतु गर्दी पॉप्युलरिटी लोकप्रियता ही कधीच शास्त्रीयतेचा आणि गुणवत्तेचा निकष असू शकत नाही.


अग्निकर्माच्या हातात हात घालून, ॲक्युपंक्चर ला वेगळ्या नावाने दत्तक घेऊन, रान माजवलेलं "विद्ध कर्म" हेही याच पठडीतलं आहे! 


सूक्ष्मास्यशल्याभिहतं यदङ्गं त्वाशयाद्विना ।।

उत्तुण्डितं निर्गतं वा तद्विद्धमिति निर्दिशेत् 


वेध्याः सिरा बहुविधा मूत्रवृद्धिर्दकोदरम् ।।


एवढीच माहिती विद्ध याबाबत सुश्रुत संहितेत आहे. परंतु आजचे विद्ध कर्म हे यापासून खूप लांब असंबद्ध आणि वरील सुश्रुतोक्त वर्णनापेक्षा वेगळीच परिणामकारकता एफिकसी / रिझल्ट "अत्यंत अशास्त्रीय पद्धतीने क्लेम" करणारे आहे. या आजच्या मार्केटिंग केलेल्या "विद्ध" या कर्माचा शास्त्रातील वेधन कर्म आणि विद्ध नामक आगंतुक व्रण, यांच्याशी काहीही संबंध नाही


4. वर्म/ मर्म 


१०७ मर्मांशी कसलाही संबंध नसलेली, सिद्ध नावाच्या वेगळ्याच चिकित्सा पद्धतीतील "वर्म" चिकित्सा, ही "मर्म चिकित्सा" या नावाने वापरात आणणे, हाही असाच अशास्त्रीय उद्योग 


5. थेरं कि थेरपी?!


याच बरोबरीने मुद्रा थेरपी, जिव्हा थेरपी... असली बरीच काही "अशास्त्रीय थेरं" ... याच मार्गाने जाणारी 


6. अभ्यंग मसाज मालिश


पंचकर्मा पूर्वी , "नुसता अभ्यंग (oil painting)" करायला सांगितलेला असताना, थेरपिस्ट कडून स्पा पद्धतीने मसाज मालिश हॅपनिंग ट्रीटमेंट = कर्मकांड अशा स्वरूपात "पंचकर्म = showधन" करण्याचे कौशल्य, हा अशाच प्रकारचा "निव्वळ अर्थार्जनाचा" अशास्त्रीय उद्योग आहे.


7. हृद्बस्ति जानुबस्ति कटिबस्ति मन्याबस्ति


ज्या तेलाचा अब्साॅर्प्शन रेट अत्यंत कमी आहे (परसेंटेज वाईज)... त्या तेलाला पिठाची पाळी करून कुठेही धारण करून/ओतून, त्याला त्या त्या "अवयवाचा बस्ती" असं नाव देणे, हाही असाच एक "सुपीक डोक्यातून" आलेला कुटीर उद्योग.


त्वचा पेक्टोरॅलिस मेजर मायनर बरगड्या लंग पेरिकार्डियम (+ स्त्रियांच्या बाबतीत स्तन) या सगळ्यांना "क्रॉस करून" तेल, "हृद्बस्ति" या अशास्त्रीय उपचारामध्ये, हृदयापर्यंत जाईल, ही "वैज्ञानिक अंधश्रद्धा आणि व्यावसायिक चलाखी" आहे. 


हाच प्रकार थोड्या फार फरकाने , जानु बस्ति कटिबस्ति मन्याबस्ति याबाबत आहे


8. स्पा, रिसॉर्ट = वेलनेस सेंटर 


हीच बाब आयुर्वेद रिसॉर्ट नामक आणखी एका कुटीर उद्योगाची आहे. हे आयुर्वेद रिसॉर्ट किंवा तथाकथित वेलनेस सेंटर हे प्रायः हर्बल स्पा ट्रीटमेंटसाठी चालवले जातात. तीन चार दिवसांकरता पर्यटन, चेंज, व्हरायटी, ब्रेक फ्रॉम रुटीन या अर्थी आलेल्या हौशा नवशा गवश्या लोकांना, आयुर्वेदाची "तथाकथित दिनचर्या व झटपट पंचकर्म" पॅकेज असे करून, फील गुड हॅपनिंग ट्रीटमेंट असे कर्म"कांड" करून, काहीजण "पैसे मिळवतात" हे निश्चित ... पण त्यामुळे शास्त्र पोहोचायला खरंच उपयोग होतो का , याचे उत्तर स्वतःलाच द्यावे.


मुळात पूर्वीच्या काळाप्रमाणे आता दिनचर्या ऋतुचर्या कधीच असू शकणार नाही, हे सत्य स्वीकारून ... बदललेल्या हेतुस्कंधासाठी आणि तज्जन्य (त्या हेतुं मधून) बदललेल्या लक्षणां साठी ... म्हणजेच बदललेले आहार विहार विचार जीवनशैली प्रवासाची साधने वातावरण या सर्व "बदलत्या हेतुस्कंधाचा आणि शास्त्रात अनुक्त असलेल्या तज्जन्य नवीन लक्षणांचा / रोगांचा" विचार करून, त्यासाठी "नवीन औषधस्कंध" लिहिणे , तो उपयोगात आणणे, हे शास्त्र अनुयायांचे खरे काम असताना ...

आपण पुन्हा "बॅक टू पास्ट" असे करत, तत्कालीन वातावरण निर्मिती, "तीन-चार दिवसा करता" करून, तो इतिहास , ती भूतकालीन ग्लोरी(?)/स्टोरी "विकण्याचा" प्रयत्न करतो.

त्याने प्रत्यक्ष शास्त्र आणि पेशंट आणि समाज यांच्या जीवनामध्ये कोणताही आमूलाग्र आणि परिणामकारक बदल होणे अशक्य आहे ...

हं, पण निश्चितपणे त्यातून उत्तम "व्यवसाय दुकान धंदा अर्थार्जन" हे साध्य करू शकतो, यात काही शंका नाही


एखादे हॉस्पिटल, जिथे पेशंट आयपीडीला ऍडमिट करण्याची व्यवस्था आहे, तिथे नर्सिंग स्टाफ, पथ्य आहार देऊ शकणारं किचन , आवश्यक ती मुख्य कर्मे आणि उपकर्मे करू शकणारे परिचारक आणि हॉस्पिटलच्या स्वामी असलेल्या वैद्याचे किंवा त्याच्या सहाय्यकांचे 24 तास तेथे उपस्थित असणे, अशा प्रकारे आयुर्वेदाचे शास्त्रीय प्रस्थापन समाजात होणे, हे निश्चितच स्वागतार्ह अभिनंदनीय व अनेक ठिकाणी होणे आवश्यक असलेले असे काम आहे... परंतु रिसॉर्ट स्पा अशा प्रकारची तथाकथित वेलनेस सेंटर आश्रम चालवणे, हा प्रासंगिक = तात्पुरता असा नाट्यमय उद्योग आहे ... "निव्वळ अर्थार्जनासाठी" !! त्याने रोग निवारण आणि स्वास्थ्य संरक्षण , ही आयुर्वेदाची शास्त्रीय प्रयोजने साध्य होत नाहीत 


9. गुरुकुल 


चरक जयंती, धन्वन्तरीचे देहत्यागस्थान ... असले शेंडा बुडखा नसलेले, बिनबुडाचे "भावनिक" प्रचार करून, त्याचे "शैक्षणिक पर्यटन = ॲकॅडमिक टुरिझम" अशा प्रकारचे तीन पाच सात दिवसाचे टुरिझम कोर्सेस किंवा इव्हेंट सेलिब्रेट करणे, हाही एक "नवीन उद्योग आता जम धरू" लागला आहे, अशा प्रकारांची खरंच विद्यार्थी व शास्त्र यांना आवश्यकता आणि उपयोगिता आहे का, याचाही विचार वैद्यसमूहाने (समष्टि) किंवा वैद्य व्यष्टीने स्वतःपुरता तरी करायला हवा!


याच पद्धतीने ...

विद्यार्थ्यांसाठी तीन दिवसाचे, सात दिवसाचे, दहा दिवसाचे, तीस दिवसाचे "निवासी गुरुकुल (गुरु"खूळ"?)" चालवणे, हाही असाच प्रकार आहे.

असं कुठं एक दिवस , तीन दिवस , दहा दिवस , 30 दिवस... शास्त्रात सांगितलेल्या दिनचर्येचं "जमेल तसं, जमेल तितकं" अनुनय आचरण पालन करून , त्यातच "योगा" घुसडून ... एखाद्या वाटीत जोरदार नळ सोडावा आणि त्या वाटीत पाणी साठत तर नाहीच, पण भरपूर पाणी वाहून तर जावे, अशा पद्धतीने त्या एक दोन तीन सात दहा तीस दिवसात एखाद्या संहितेचा अख्खं स्थान किंवा अख्खी संहिताच "संपवून" टाकायची, अशाने ज्ञानप्राप्ती होणे खरंच शक्य आहे का??? 

यथा वाऽऽक्लेद्य मृत्पिण्डमासिक्तं त्वरया जलम् ।

स्रवति 

👆🏼असं चरक संहिता सुद्धा म्हणते.


या 3 ते 30 दिवसांच्या निवासी गुरुकुलने एक इव्हेंट साजरी झाली, आपण काहीतरी अभ्यासाचं शिकवलं/ शिकलं, अशी एक "उत्सवी भावना = सेलिब्रेशनची कृतकृत्यता" येते आणि त्याचबरोबर "ना नफा ना तोटा या तत्त्वावर किंवा काही पर्सेंटेजमध्ये अर्थार्जनही होते", त्या व्यक्तीला किंवा त्या समूहाला किंवा संस्थेला !


हाच प्रकार थोडाफार ऑनलाइन कोर्स यामध्येही होतो. असं खरंच, "एक तीन पाच सात दहा दिवसात, इन्स्टंट झटपट फास्ट तुरंत" , एखादी शास्त्रीय बाब शिकून त्यात कौशल्य प्राविण्य हे तर सोडूनच देऊ, पण परिचय मात्र तरी मिळवणे, शक्य अभिप्रेत आणि शास्त्रीय आहे का ???


त्या त्या विषयाला, त्या त्या स्थानाला, त्या त्या संहितेला, त्या त्या अध्यायाला ... त्याला आवश्यक असलेला "पुरेसा" वेळ देऊन , त्याचं चिंतन मनन अध्ययन अध्यापन होणं, हे समर्थनीय आणि स्वागतार्ह आहे.


अभ्यास ही "शीलनं सतत क्रिया" असं करण्याची बाब असताना , असे शॉर्ट टर्म कोर्सेस ऑफलाइन किंवा ऑनलाईन आयोजित करणे आणि त्यातून अर्थार्जन हा प्रमुख उद्देश किंवा प्रसिद्धी हा त्यातला दुसरा गौण उद्देश असतो ... पण यातून लाभार्थ्यांना खरंच काही मिळतं का ???


ब्रॅडमनने क्रिकेटमध्ये कसोटी मध्ये 29 सेंचुरी केल्या. त्याचा विक्रम कित्येक दशकांनंतर सुनील गावस्कर यांनी मोडला आणि आता मात्र क्रिकेटमध्ये आठवड्याला एक नवीन अचाट अफाट विक्रम होतो !!!


त्याचं कारण असं की ब्रॅडमनच्या काळात आणि गावस्करच्या काळात जे क्रिकेट खेळलं जायचं, त्याची आयोजन फ्रिक्वेन्सी ही कधीतरी वर्षातून एक दोन वेळेला इतकीच असायची ... आता मात्र जवळपास प्रत्येक दिवशी कुठल्यातरी स्वरूपात क्रिकेट खेळले जातंच आणि ते हौशी amature असं न राहता , ते प्रोफेशनल व्यावसायिक धंदा करियर ग्लॅमरस ग्लोरीयस "अर्थार्जनाचे साधन", या अर्थी चालवलेला "व्यापार" असल्या कारणाने त्यात रोजच अफाट आणि अचाट विक्रम होणं, हे साहजिक आणि शक्य असतं !!!


तोच प्रकार सध्या आयुर्वेदाच्या शैक्षणिक क्षेत्रात होऊ घातलेला आहे. पूर्वीच्या काळी आयुर्वेद कॉलेजेस ची संख्या ही हाताच्या बोटावर मोजणे इतकी होती. आज अशी परिस्थिती आहे की, अगदी तालुक्यात/ रिमोट दुर्गम ग्रामीण भागात घाटात माळरानावर कुठेही, शंभर सीटचं कॉलेज किंवा एका मोठ्या शहरात सात ते दहा आयुर्वेद कॉलेज अशी परिस्थिती असेल, तर विद्यार्थी स्टुडन्ट म्हणवणाऱ्या लाभार्थी "गिऱ्हाईकांची" संख्या ही प्रचंड उपलब्ध असणार आहे ... त्यामुळे त्याची "एन्कॅशमेंट" करताना या प्रकारचे "शॉर्ट टर्म संधिसाधू ऑपॉर्च्युनिस्टिक कोर्सेस उगवणार" यात काही नवल नाही.


10. आयुर्वेद कॉलेज


मुळात ज्या गतीने कॉलेजेस ची संख्या वाढते आहे आणि प्रत्येक कॉलेजमध्ये 60 ते 100 सीट परवानगी दिली जाते आहे, इतक्या कॉलेजेस आणि इतक्या सीट्स ची आयुर्वेद क्षेत्राला खरोखरच आवश्यकता आहे का ?

मुळात ज्यांच्याकडून या प्रकारची कॉलेजं स्थापन केली जात आहेत, त्यांच्याकडून तशा कॉलेजच्या प्रस्थापनेसाठी आवश्यक असणारी स्टाफ व पेशंट यांची उपलब्धता प्रत्यक्ष वास्तविक परिस्थितीत होणे शक्य आहे का? की केवळ फी मिळावी, अशा उद्देशाने हा "शैक्षणिक उद्योग = एज्युकेशनल इंडस्ट्री" चालवली जात आहे ? ... 

की या क्षेत्रामध्ये तुलनेने परवानगी मिळणे सोपे आहे, एमबीबीएस कॉलेज काढण्याच्या तुलनेत ... म्हणून फक्त ही कॉलेजेस मशरूम सारखी सगळीकडे पटपट उगवत आहेत!? 

याला वैद्य समूह वैद्य समाज वैद्य कम्युनिटी वैद्य संघटना म्हणून जागरूकपणे आपण काही विरोध करणार आहोत , की त्याच्याशी माझा काय संबंध, असे म्हणून त्याकडे डोळे झाक करणार आहोत?? 

की आपल्यातल्याच काही एमडी असलेल्या लोकांची रोजगाराची व्यवस्था होते, म्हणून अशा प्रकारच्या भरमसाठ वेगाने नव्याने उघडत असणाऱ्या कॉलेजेसला आपण सपोर्ट करणार आहोत?! वाहत्या गंगेत हात धुवून घेणार आहोत?! हे भविष्यात कालांतराने शास्त्राला मारक ठरेल , असे वाटत नाही का?! 

अशा प्रकारे कॉलेजेसना सरसकट परवानगी देण्याऱ्या शिखर संस्थांना व तत्रस्थ अधिकाऱ्यांना या क्षेत्रातील जागरूक सदस्य प्रॅक्टिशनर लाभार्थी हितसंबंधी म्हणून काही दबाव आणणार आहोत, प्रश्न विचारणार आहोत की दुर्लक्ष करणार आहोत?


किमान, अशा प्रकारच्या या सगळ्या वृत्तींमध्ये, अशा प्रकारच्या व्यापारांमध्ये आपण सहभागी असावं का, याबाबतही आपल्या पुरता विचार करणे, निश्चितपणे आवश्यक आहे.


परंतु तसे होत नसेल, तर ते व्यवसाय धंदा व्यापार दुकान देवघेव सेल या मार्गाकडे जाते आणि ते शास्त्र या अर्थाने अध्यापक टीचर आणि अध्येता स्टुडन्ट दोघांनाही हितकर असे निश्चितपणे नाही.


11. पादाभ्यंग : काश्याच्या वाटीने पायाला तेल चोळणे


अनेक स्तर असलेल्या, तळपायाच्या जाडजूड त्वचेतून काहीही आत शोषले जाऊ शकत नसताना, त्याला काशाच्या वाटीचं/थाळीचं मशीनचं अभ्यंग यंत्र फिरवणं, हाही त्यातलाच एक "रोजगार निर्मितीचा" प्रकार


12. शिरोधारा


शिरोधारा ही कुठल्या इंडिकेशन साठी किती वेळ करायला सांगितलेली आहे , याबाबत कुठलेही मार्गदर्शन संदर्भ उपलब्ध नसताना ...

शिर, अधिपती मर्म, शिरातील पंच संधी सीवनी सीमंत मर्म यांच्या ऐवजी ... स्थपनी आवर्त या मर्मांच्या आसमंतात, कपालधारा भालधारा "ललाट"धारा करून, त्याला "शिरोधारा" असं गोंडस नाव देऊन, "प्रचंड मार्केटिंग" करणे आणि त्याचा "मानसिक आजारांवरील उपचारांसाठी परिणामकारकता" असा "गवगवा" करणे , ही सुद्धा "शुअर शॉट मनी देणारी, एक फील गुड & हॅपनिंग ट्रीटमेंट" आहे


13. वमन बस्ति पंचकर्म शोधन


अगदी खरोखर शास्त्रात सांगितले तसा 16 पट / आठपट पाणी घालून, एक चतुर्थांश आटवून , "काढा न करता", औषध उकळलेल्या, रंग बदललेल्या, गरम पाण्याने, वमन आणि निरूह करणे, अशा अनेक "अशास्त्रीय अनैतिक" परंतु "व्यावसायिक दृष्ट्या, अत्यंत यशस्वी" बाबी "बिनदिक्कतपणे" निरंतरपणे, बरेच जण करतातच की!! 


बाकी स्नेहपान, बाह्य स्नेहन, अभ्यंग मसाज, स्वेदन & प्रत्यक्षात वमन विरेचन अनुवासन निरूह उत्तर बस्ति यात चालणारे अशास्त्रीय उद्योग, याविषयी स्वतंत्र लेख लिहायला हवा!!!


त्याने काय फरक पडतो ? त्याला काय होतंय ? सबकुछ चलता/बिकता है, थियरी सांगू नका, सिद्धांत सांगू नका, प्रॅक्टिकल बघा, व्यवहाराला महत्त्व द्या रिझल्ट येतात ना ?? पेशंटला समाधान आहे नं!? अशा अनेक प्रकारच्या "जस्टीफिकेशनच्या" मागे दडून किंवा त्यांना पुढे करून, त्या शिल्डच्या आधारे ... हे सगळं "रेटून" चालू आहे , याबद्दल कुणालाच काहीच गैर/आक्षेपार्ह वाटत नाही, हे खरोखरच आश्चर्याचे आहे!!! 

स्व सहाय्य, परस्पर सहकार्य आणि थेरपीस्ट वरची डिपेंडन्सी

पूर्वीही एकदा थेरपीस्ट या विषयावरती काही मुद्दे मांडले होते.

पुन्हा एकदा त्याची संक्षिप्त उजळणी करतो .

मुळात हा थेरपीस्ट का गरजेचा वाटतो?

थेरपीस्टचे मुख्य काम काय असते?

जर पेशंटला सर्वांगाला तेल लावणे, हेच त्याचे सगळ्यात मुख्य काम असेल तर, थेरपीस्ट ज्या प्रकारे "पाऊण तास त्याला मसाज मालिश फील गुड स्पा ट्रीटमेंट हॅपनिंग ट्रीटमेंट करून पेशंटच्या सर्वांगाला तेल लावतो" ... 

तसं करणं शास्त्राला अभिप्रेत आहे का ??

अभ्यंग याचा अर्थ मसाज मालिश मर्दन असा होतच नाही. स्वेदनाच्यापूर्वी, संपूर्ण शरीराला, केवळ "ऑइल पेंटिंग" होणे पुरेसे आहे ... ते पेशंट स्वतःही करू शकतो ... पाठीचा काही भाग वगळता. पेशंटच्या सोबत आलेला त्याचा समलिंगी/विश्वासू नातेवाईकही ते काम करू शकतो किंवा दोन मिनिटं काढली तर आपण स्वतःही ते काम करू शकतो, समलिंगी पेशंटच्या बाबतीत. 

भिंत रंगवणारे पेंटर वापरतात, तो स्पंजचा फोम चा रोलर पेंटिंग ब्रश वापरला किंवा फूट पट्टीला किंवा एखाद्या हातभर लांबीच्या वेळूच्या काठीला फोम किंवा सुती फडके किंवा एखादा कापडाचा बोळा गुंडाळला तर त्यानेही तेल लावणे शक्य होते , जिथे पाठीला हात पुरत नाही तिथे सुद्धा स्वतःच स्वतःला तेल लावता येणे शक्य असते. थेरपीस्ट वरती अवलंबून राहायचंच नाही, असं ठरवलं तर काहीही अशक्य नाही. अशा परिस्थितीत "पाऊण तास त्याला मसाज मालिश फील गुड स्पा ट्रीटमेंट हॅपनिंग ट्रीटमेंट आपण का करावी"??? आणि fancy fad fantacy साठी थेरपीस्टवर अवलंबून का राहावे??? 

बाकी जी कर्मे आहेत ती थेरपीस्ट ने करावीत, असे नाही ना??? जसे की तर्पण नस्य, बस्ती देणे, जलौका लावणे, व्रण कर्म करणे, अग्नि कर्म करणे याबाबी थेरपीस्टने कराव्यात ... असे "बहुधा अभिप्रेत नसावे ... *तर्पण नस्य, बस्ती देणे, जलौका लावणे, व्रण कर्म करणे, अग्नि कर्म करणे, ही सर्व कर्मे, स्वतः वैद्यानेच करणे, शास्त्रालाही अभिप्रेत आणि पेशंटसाठीही योग्य आणि आवश्यक आहे*"

थेरपीस्टमुळे काही शास्त्रबाह्य लोकांच्या हातात नको त्या महत्त्वाच्या गोष्टी पोहोचत असतील, 

त्यांचे अवमूल्यन होत असेल ...

आणि आपली डिपेंडन्सी अवलंबिता अशा बेभरवशाच्या लोकांवर वाढत असेल 

आणि त्या पोटी पेशंटची असुविधा होत असेल ...

तर ...

जे आपले नव्याने प्रॅक्टिस करणारे ज्युनिअर मित्र स्टुडन्ट आहेत, त्यांच्याकडे अशा प्रकारची कर्मे करण्यासाठी पेशंट पाठवणे, हे अधिक सोयीचे विश्वासाचे आणि परिणामकारक होऊ शकते. 

जिथे आवश्यक/शक्य असेल, तिथे यासाठी त्याकर्माच्या सेवा मूल्याचे परसेंटेज वाईज , योग्य त्या प्रपोर्शनमध्ये विभाजन सुद्धा, एकमेकांच्या समजुतीने , शक्य आहे 

थेरपीस्ट ला मुंहमांगे चार्जेस देऊन, त्याची वाट बघून, त्याच्या लहरी सांभाळण्यापेक्षा...

हे परस्पर सहकार्य अधिक उपकारक होऊ शकते

सगळीच कर्मे "मीच, माझ्याच क्लिनिकमध्ये करणार" हा अट्टाहास कशासाठी हवा ???

सहकारी तत्त्वावर, त्या त्या परिसरात राहणाऱ्या पाच दहा पंधरा वीस वैद्यांनी ठरवले की, आपल्यापैकीच अमुक वैद्याकडेच अमुक कर्मासाठी "सर्वांनी पेशंट पाठवायचा" ... तर एकमेकां साह्य करू, या धोरणाने सर्व पेशंट आणि सर्वच वैद्य यांचे हित सुरक्षितपणे निश्चितच साधले जाऊ शकते


Thursday, 17 October 2024

धन्वंतरी देहत्याग स्थल

धन्वंतरी देहत्याग स्थल ... ऐसा एक प्रचार किया जाता है! वैसे भी दिवाली आ रही है ... धन्वंतरी जयंती भी समीप हि है !!!

असद्वादिप्रयुक्तानां वाक्यानां प्रतिषेधनम् । 

आगे पढने से पहले, इस लेख के अंत मे दिया हुआ डिस्क्लेमर अवश्य/निश्चित हि पढे, अगर आवश्यकता लगे तो!

जैसे चरक जयंती यह नागपंचमी के दिन होती है , ऐसा "प्रचार" किया जाता है ... वैसे हि ये धन्वंतरी देहत्याग स्थल भी, बिना सर पैर की बात है !

चरक शेष के अवतार है, शेष एक नाग है ... इसलिये नागपंचमी चरक जयंती है , ऐसा बडा दूर का संबंध लगाया जाता है 

वैसेही गुजरात के धनेज नाम के किसी गाव मे धन्वंतरी का देह त्याग स्थल है, इस प्रकार का प्रचार और फिर वहां पर ॲकॅडमिक टूरिझम !! ऐसे तथाकथित "पवित्र" स्थल पर अध्ययन करने का उत्सव / सेलिब्रेशन !!!

गुगल पर देखेंगे तो धनेज नाम के चार-पाच और स्थल दिखाई देते है, उसमे से एक बिहार में और दो तीन उत्तर प्रदेश में है

यूं तो, आयुर्वेद के लोगों को ऐसे इव्हेंटफुल हॅपनिंग सेलिब्रेशन करने मे बडा मजा आता है.

अभी आप संहिताओं का अध्ययन अपने घर मे करो , कॉलेज में करो , ऑनलाइन करो या धन्वंतरी के देह त्याग स्थल पर करो ... उससे क्या फरक पडने वाला है?! 

क्या ॲनाटाॅमी की स्टडी ग्रे के देह त्याग स्थल पर, फिजिओलॉजी का स्टडी गायटन के देह त्याग स्थल पर, मेडिसिन का स्टडी हॅरिसन/डेव्हिडसन के देहत्याग स्थल पर, क्लिनिकल मेथड का स्टडी हचिसन के देहत्याग स्थल पर करने से कुछ अलग/विशेष ज्ञान प्राप्त होगा क्या!?!?

ऐसे बे सर पैर के निष्प्रयोजन बातो मे हम समय एनर्जी रिसोर्सेस पैसे क्यूं बरबाद करते है? इससे अच्छा है कि शास्त्र के लिए कुछ और अच्छा काम करे!!!

इतिहासाचे अवजड ओझे

डोक्यावर घेऊन ना नाचा 

करा तयाचे पदस्थल आणिक

त्यावर चढूनी भविष्य वाचा

अर्थात 

इतिहास का भारी बोझ

इसे सिर पर रखकर ना नाचो

करो उसका पदस्थल और

उस पर चढकर भविष्य पढ़ो

लेकिन ऐसे नही है !

कुछ तो हॅपेनिंग होना चाहिये, इव्हेंटफुल होना चाहिये ! जिसका "मार्केटिंग" किया जा सके, जिस पर "कोलाहल / शोर" मचाया जा सके !!!

अभी धन्वंतरी कौन सा?? 

जो क्षीरसागर के मंथन से उपर आया हुआ था, अमृत कलश लेकर वह?! 

अब जिसके हाथ मे अमृत कलश था, वो धन्वंतरी थोडेही मरेगा??? जिसके हाथ में अमृत है, वो तो अमर है ना!? वह किसलिये देह त्याग करने के लिए धनेज गांव जायेगा!? 

या दूसरा धन्वंतरी, जिसको काशीराज दिवोदास कहते है???

अभी काशी जैसी पवित्र नगरी, जहां पर लोग अपने जीवन के अंतिम समय में देह त्याग के लिए, मरने के लिए आते है अपने अंतिम समय मे , ऐसी पवित्र नगरी छोडकर , काशीराज दिवोदास राजा होकर देहत्याग के लिये, उत्तर भारत की काशी से इतनी दूर , पश्चिम समुद्र के तट पर, गुजरात राज्य मे, धनेज नाम के गाव मे जायेगा???

किंतु सोचेगा कौन?

हमारे यहाँ तो किसने कुछ बोलने की देर है .. "जय हो" कहने के लिए उसके पीछे सैकडो लोग खडे रहते है हि!

उदाहरण के तौर पर ...

किसी ने बोल/लिख दिया ज्वर कषाय पंचक यह धातुपाचक है! और उसके भी आगे जाकर, "धातुपाचक के ब्रेड" पर "मीमांसा का बटर" लगा दिया ... भैय्या मेरे, पाणीपुरी के ठेले पर श्रीखंड क्यूं बेच रहे हो!? 😇🙃 

अभी जहां पाच विषम ज्वरों का धातु स्थान हि निश्चित/निर्धारित नही है, कौन से भी धातु मे कौनसा भी विषमज्वर हो सकता है, ऐसे स्वयं चरक हि कहता है ... तो उनको शमन करने वाले कषाय पंचक, अमुक धातु का अमुक पाचक है, ऐसे कैसे कहेंगे?! 

अभी उस श्लोक मे तो "शमनाः" शब्द है, लेकिन लोगो ने तो "धातुपाचक" कहकर, उसको "प्रस्थापित" करके, उसके टॅबलेट, उसके गुगुल, उसके काढे, उसके आसवारिष्ट, उस पर व्याख्यानमाला, उस पर किसी मासिक का विशेष अंक, पूरी "धातु पाचक संहिता" बना ली !!

कोई "सोचेगा" ही नही!! 

या तो कोई भी "सोच"🧐 हि नही रहा है 

या 

सभी "सो"च 🥱😴 हि रहे है

किसी ने भी कुछ भी बोल दिया कि, 

जय हो कहने का !!!

लेकिन उसकी स्क्रुटीनी व्हेरिफिकेशन व्हॅलिडेशन एक्झामिनेशन ... कुछ नही करनेका ... "सोचने" का हि नही ...

"क्योंकि ..."

"सोचने" से ज्यादा "बेचने" मे फायदा है ... यह जानने के बाद, यह समझने के बाद, इस प्रकार के "ॲकॅडमिक टूरिझम" का व्यवसाय चलने लगता है ...

थोडे दिन रुकिये ...

सुश्रुत का भी जन्मस्थल, वाग्भट का भी देह त्याग स्थल मिल जायेगा!!! 

सुश्रुत की जयंती भी अभी किसी ने मनायी थी!

वाग्भट की भी जयंती अगले को सालों मे निकलकर आयेगी ... भाई, "बेचना" जो है, "सोचना" थोडी हि है!!!

लेकिन ये भी एक कौशल, है प्राविण्य है ... इस प्रकार का ॲपॅरेंटली "नैतिक" ॲडवर्टाइजमेंट और "बेचने का कौशल" आना भी आवश्यक है.

दुनिया झुकती है , झुकानेवाला चाहिये 

कुछ भी बिकता है ... बस् "बेचने वाला" चाहिये 

अगर "बेचने" की कला है ...

तो "सोचने" की आवश्यकता हि नही है 

जय हो 

जय आयुर्वेद

जय धन्वंतरी


Disclaimer: यह लेख वैयक्तिक मत के रूप मे लिखा गया है. इस लेख मे उल्लेखित विषयों के बारे मे अन्य लोगों के मत इससे भिन्न हो सकते है. इस लेख मे लिखे गये मेरे मत, किसी भी अन्य व्यक्ती या संस्था पर बंधनकारक नही है तथा उन्होने मेरे ये मत मान्य करने हि चाहिये, ऐसा मेरा आग्रह नही है. उपरोक्त विषयों के बारे मे जो मेरी समझ, मेरा आकलन, मेरा ज्ञान है, उसके अनुसार उपरोक्त लेख मे विधान लिखे गये है. उन विषयों के बारे मे वस्तुस्थिती और अन्य लोगों के मत, मेरे मत से, मेरे आकलन से, मेरी समझ से, मेरे ज्ञान से अलग हो सकते है.

यह लेख मैने केवल मेरे वैयक्तिक ब्लॉग पर लिखा है. यह लेख सार्वजनिक रूप मे किसी भी व्हाट्सअप ग्रुप पर या अन्य सोशल मीडिया पर प्रसृत नही किया है. किंतु इस लेख का परिचय तथा इस लेख की / इस ब्लॉग की ऑनलाईन लिंक, व्हाट्सअप तथा अन्य सोशल मीडिया पर प्रसृत की गई है. किंतु उस लिंक का उपयोग करके यह लेख पढना है या नही पढना है, यह वाचक का अपना स्वयं का विकल्प तथा निर्णय है. किसी को भी यह लेख या इस लेख की लिंक व्यक्तिगत रूप मे नही भेजी गई है, इसलिये कोई भी इसे व्यक्तिगत रूप मे न ले.

Wednesday, 16 October 2024

आयुर्वेद को "मेन स्ट्रीम मेडिसिन", ऐसे श्रेणी मे प्रस्थापित करने के लिए उपाय = आधुनिक BAMS

आयुर्वेद को मेन स्ट्रीम मेडिसिन , फर्स्ट चॉईस मेडिसिन, प्रीमियम मेडिसिन ... ऐसे श्रेणी मे प्रस्थापित करने के लिए सकारात्मक उपाय 

साथ हि, आयुर्वेद को होलिस्टिक मेडिसिन बनाने के लिए विधायक उपाय 

साथ हि, आधुनिक आयुर्वेद/ आयुर्वेद का आधुनिकीकरण / युगानुरूपसंदर्भ आयुर्वेद के लिये रचनात्मक उपाय

आधुनिक BAMS = Bharateeya "All Medicines" Scholar 

Or

आधुनिक BAMS = Bachelor of "All Medicine" Skills

इस लेख को आगे पढने से पहले, इस लेखके अंत मे दिया हुआ, डिस्क्लेमर अवश्य पढे, अगर आवश्यकता लगे तो! 

आयुर्वेद पढाने वाली बी ए एम एस नामक डिग्री के अभ्यासक्रम मे अधिकृत रूप से मॉडर्न मेडिसिन का ॲनाटाॅमी फिजिओलॉजी पॅथॉलॉजी ये पढाया हि जाता है 

कोई चीज अगर हम छुपकर करते है, तो उसे चोरी कहते है. लेकिन कोई चीज हम खुलेआम जोर जबरदस्ती किसी की ले लेते है, तो उसे डाका कहते है. 

तो हमारे बी ए एम एस कोर्स मे, जो मॉडर्न मेडिसिन का पोर्शन पढाया जाता है, वो ऐसेही "खुलेआम और अधिकृत रूप मे"पढाया जाता है. 

किंतु, आगे चल कर बहुत सारे बीएएमएस ये मॉडर्न मेडिसिन की प्रॅक्टिस करते है, जो अनधिकृत चोरीछुपे ऐसे "मानी जाती" है, तो उसकी इल्लीगल चोरी बोगस क्वॅक्स ऐसी निंदा की जाती है

अगर इससे बचना है, तो बीएएमएस डिग्री का अर्थ बॅचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिकल सायन्स (या मेडिसिन अँड सर्जरी) की जगह ...

बॅचलर ऑफ "ऑल मेडिसिन" स्किल्स या स्कॉलर ऐसा करना चाहिए 

और उसमे अधिकृत रूप से मॉडर्न मेडिसिन का ॲनाटाॅमी फिजिओलॉजी पॅथॉलॉजी के साथ हि, फार्मॅक मेडिसिन सर्जरी ये भी पढना चाहिए...

इसके साथ हि,

आयुर्वेद का सर्वांगीण विकास हो ...

इसलिये *"मूल आयुर्वेद अर्थात बृहत्त्रयी या बृहत् चतुष्टयी (अष्टांग हृदय को मिलाकर), इसमे जो "स्पष्ट रूप से उल्लेखित नही है"* , ऐसे अनेक , आज के व्यवहार मे प्रस्थापित विषयों/स्कील्स का, नवीन BAMS = भारतीय ऑल मेडिसिन स्कॉलर या बॅचलर ऑफ ऑल मेडिसिन स्किल्स, इस कोर्स मे कुछ और नये विषय तथा प्रशिक्षण समाविष्ट करना, छात्रों के लिए और समाज के लिए उपयोगी होगा.

जिसमे जैसे सबको मान्य है स्वीकार्य है और लोकप्रिय है ऐसे सबसे पहले ...

1.

*नाडी!*

*संहिता मे "स्पष्ट रूप से कही पर भी उल्लेख नही है* और जिन वातपित्तकफ की नाडियों के लिए विविध पशुपक्षियों की गती का वर्णन हुआ है, वे "गतियां कभी भी" तीन उंगलियों के "स्पर्श से अनुभूत" नही की जा सकती , क्योंकि "गती यह एक दृश्य नेत्रगम्य विषय" है, न कि स्पर्श गम्य!!!

तथापि नाडी यह हमारी(?) परंपरा धरोहर हेरिटेज होने के कारण, *यदि मूल आयुर्वेद संहिता मे उसका कही पर भी "स्पष्ट रूप से" उल्लेख नही है* , तथापि उसका समावेश नये बीएएमएस कोर्स मे करना अत्यंत आवश्यक और उपयोगी होगा 

2.

दूसरा अर्थात वैसे हि लोकप्रिय प्रस्थापित ... *योगशास्त्र!! = योगा !!* उन के अपने पाच अलग वायू है, अपनी अलग षट्क्रियांये है, जो योगशास्त्र मन के दोषों के हरण के लिए लिखा है, ऐसे स्पष्ट रूप से चक्रपाणी की टीका के प्रारंभ मे ही लिखा है, उस योगशास्त्र को जोर "जबरदस्ती से" आयुर्वेद का पूरक शास्त्र मानकर बीएएमएस मे अंतर्भूत करना हि चाहिये ... चाहे योगवाले आयुर्वेद को पूरक माने या ना माने !!!


3.

तीसरा जो आयुर्वेद के भैषज्य कल्पना के, सिद्धांतों के अत्यंत विपरीत है... जो 13 वे शतक तक, इस विश्व मे अस्तित्व मे नही था , ऐसे *रसशास्त्र* को बी ए एम एस मे पढाना अत्यंत आवश्यक है ... यद्यपि आयुर्वेद शास्त्र मे शुक्र यह सौम्य है , तथापि जो शिव का वीर्य है ऐसा पारद अत्यंत उष्ण तीक्ष्ण विषतुल्य है. अस्तु!

हमे तो आयुर्वेद का "सर्वांगीण विकास" करना है इसलिये नाडी योग रसशास्त्र इनका अंतर्भाव तो आधुनिक आयुर्वेद अर्थात बी ए एम एस डिग्री मे होना ही चाहिये!!! 


4.

इसके साथ ही सिद्धनामक अन्य मेडिकल स्ट्रीम से उनकी "वर्म चिकित्सा", नामांतर करके "मर्म चिकित्सा" कहकर पढाना अत्यंत आवश्यक है, जो की जादू की तरह पेशंट की वेदना का निवारण करता है ... "यद्यपि उसका आयुर्वेदोक्त 107 मर्म से *कुछ भी संबंध नही है*"


5.

उसके बाद *अग्निकर्म* ... यह तो अनिवार्य है हि, "जैसा शास्त्र मे लिखा है, ऐसा न करते हुए", कुछ नये हि विधानों के साथ अग्निकर्म का जो "विकास" हो रहा है, उसका समावेश एवं प्रशिक्षण आधुनिक बी ए एम एस मे अनिवार्य है.

6.

ॲक्युपंक्चर जैसे एक परदेशी, संभवतः चिनी शास्त्र को "विद्ध ऐसा नाम देकर", *हडप करना या adopt करना*, यह तो हमारे लिए अत्यंत गौरव की और नितांत आवश्यकता की बात है, यद्यपि आयुर्वेद शास्त्र में वर्णित "विद्ध व्रण" एक आगंतुक व्रण का प्रकार है और "वेधन" इस कर्म मे द्रव का / रक्त का स्रवण अभिप्रेत है, वेध्याः सिरा बहुविधा मूत्रवृद्धिर्दकोदरम् ।। तथापि "आज का जो विद्ध है", वह अत्यंत चमत्कारी और वेदना निवारण में अत्यंत शीघ्र परिणामकारक होने के कारण , "हमारे मूल शास्त्र मे क्या लिखा है, उसको भुलाकर" हमे ॲक्युपंचर नाम के शास्त्र को "दत्तक विधान करके/गोद लेकर के/ adopt करके "विद्ध नाम के साथ" नये बीएएमएस में अंतर्भूत करना हि चाहिये. 

7.

फिर यद्यपि, हमारे शास्त्र मे मूर्धतैल = शिरो अभिषेक = मूर्ध अभिषेक यह लिखा है , तथापि हम उसे *"शिरोधारा"* ऐसा नाम देकर , यह मानसरोग मे अत्यंत उपयोगी है , ऐसा प्रचार/marketing करके, उसका समावेश आधुनिक बीएएमएस कोर्स मे करेंगे और यद्यपि नाम शिरोधारा है, तथापि उसका वास्तविक स्वरूप तो कपालधारा = ललाट धारा हि रहेगा. लेकिन ललाट धारा होने पर भी, वह "शिरोधारा" हि है और मन पर अत्यंत उपयोगी है, ऐसा हि निर्धारण/marketing हम करेंगे.

मन एक नित्य द्रव्य है, नित्य द्रव्य मे वृद्धि क्षय नही होता है और वृद्धिक्षय के बिना, संपर्पण अपतर्पण के बिना, लंघन बृंहण के बिना ... आयुर्वेद में अन्य कोई चिकित्सा हि नही है , तथापि "शिरोधारा" के नाम पर , हम "ललाटधारा / कपालधारा" करेंगे और वह मन पर अत्यंत उपयोगी है, ऐसा प्रस्थापित करेंगे हि

8.

इसके बाद , आने वाली पिढी का जो कल्याण कर सकता है, ऐसे *सुवर्ण प्राशन* का समावेश आधुनिक बीएएमएस कोर्स मे करना हि चाहिये. प्राशन का अर्थ प्र = बडी मात्रा मे = भोजन / आहार मात्रा में औषध का लेना ऐसे होता है, जैसे प्रायः सभी अवलेहों की मात्रा संहिता में लिखी हुई है ... तथापि यहां पर हम "मात्र दो बूंद", वह भी महिने केवल एक हि बार, वह भी बडी मात्रा मधु मे केवल अत्यल्प मात्रा में <1% सुवर्णभस्म मिलाकर उसमे से, मात्र दो हि बूंद देंगे और उन दो बूंदों को हम "प्राशन" यह बडी मात्रा वाले विधान की संज्ञा देंगे. 

सुवर्णप्राशन की काश्यप संहिता फलश्रुति मे लिखा है कि *षण्मासात् परमं मेधावी श्रुतधर* = अर्थात केवल छ मास में अत्यंत बुद्धिमान होता है और जो भी सुना है, उसको स्मृति मे रखने की क्षमता आती है ... अभी केवल दो बूंद प्रतिमाह = 6 मास में टोटल 12 बूंद से इतना रिझल्ट आयेगा यह तो कभी भी संभव नही है, यह कोई भी समझ सकता है

यद्यपि हमे पता है, कि यह सुवर्ण "प्राशन" नही है ... सुवर्ण लेहन भी नही है , ये केवल सुवर्ण "स्पर्शन" या सुवर्ण "भ्रमीकरण" है ... किंतु इसी विधान को "सुवर्णप्राशन के नाम पर प्रस्थापित करना" और आधुनिक बीएएमएस में इस का समावेश होना ही अत्यंत आवश्यक है.

9.

पंचकर्म के पूर्व, स्वेदन कर्म करना है, उसके पहले जो अभ्यंग करना है, वो मात्र स्नेह का तेल का संपूर्ण शरीर की त्वचा पर आलेपन = ऑइल पेंटिंग मात्र , इतना हि अभिप्रेत है ... किंतु तथापि हम थेरपिस्ट के द्वारा 45 मिनिट तक पेशंट के सर्वांग को "मर्दन मसाज मालिश स्पा ट्रीटमेंट फील गुड हॅपनिंग ट्रीटमेंट करवायेंगे"!

पंचकर्म थेरपिस्ट यह एक उपकोर्स आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे अंतर्भूत होना हि चाहिये. 

10.

इस के पश्चात्, भविष्य में जन्म वाली पिढी का जो कोटकल्याण करेगा, ऐसे *गर्भसंस्कार* नामक उपक्रम का भी समावेश, आधुनिक बी एम एस कोर्स मे होना हि चाहिए. चरक शारीर 8 व सुश्रुत शारीर 10 मे जो गर्भिणी परिचर्या लिखी है, उसमे से आज सारा कालबाह्य है , उसमे से कुछ भी ना करते हुए, आधुनिक बी ए एम एस मे , यह आधुनिक गर्भसंस्कार, जो हमारा अधिकरण नही है , ऐसे मंत्र और योगा, इनके सप्लीमेंट के साथ , यह कोर्स भी आधुनिक बी ए एम एस मे समाविष्ट होना चाहिए.

11.

इसके साथ साथ, प्राचीन संहिताओ मे जो अध्यापन विधि लिखी है , उसको हटा कर , झटपट इन्स्टंट तुरंत, तीन दिन, सात दिन, दस दिन मे किसी को भी प्राविण्य तक, पारंगत होने तक, सिखाया जा सकता है , ऐसे आज के नये अध्यापन विधियों का ऑनलाइन ऑफलाइन सेमिनार वेबिनार, इस प्रकार का "आयोजन और संचालन" कैसे करे , इसका भी प्रशिक्षण इस आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे अनिवार्य रूप से देना हि चाहिये. 

12.

फिर जैसे पुनर्वसु ने अग्निवेशादि शिष्योंको, धन्वंतरि ने सुश्रुतादि शिष्यों को "गुरुकुल" के रूप मे आयुर्वेद का ज्ञान दिया था, ऐसे हि इस मॉडर्न एक्स्ट्रीमली सोफिस्टिकेटेड आयुर्वेद का, अर्थात आधुनिक बी ए एम एस कोर्स का रूपांतर, अल्पकालीन मध्यमकालीन दीर्घकालीन, एक दिन तीन दिन सात दिन दस दिन 30 दिन के "निवासी गुरुकुल मे करने का भी विधान कैसे संचालित करे" इसका भी प्रशिक्षण आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे होना हि चाहिये 

13

इसी के साथ साथ, चरक की जयंती , धन्वंतरी का देह त्याग स्थल ऐसे ऐतिहासिक पौराणिक दृष्टी से महत्वपूर्ण दिनों एवं स्थानों का "ॲकॅडमिक पर्यटन=टुरिझम" के रूप मे उपयोग करके, "ऐसे दिनों पर और ऐसे स्थानों पर आधुनिक आयुर्वेद के बी ए एम एस कोर्स के अध्ययन-अध्यापन की विधा कैसे हो" इसका भी प्रशिक्षण आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे देना चाहिए

13A

इसी प्रकार से दिवाली जैसे पारंपारिक त्योहारों पर "आयुर्वेद के नाम पर" तेल उबटन साबुन , "ऐसे जो औषध नही है, ऐसे चीजों को कैसे बेचा जाये" इस का भी प्रशिक्षण इस नये बी ए एम एस कोर्स मे देना चाहिए. क्योंकि हम सारे आधुनिक बीएएमएस कोर्स करने वाले वैद्य थोडीही है?! हम तो मेडिसिन सेलर्स है. हम हेल्थ कन्सल्टंट है, ये तो हमने भूल ही जाना चाहिए

13B

और तो और कोई त्योहार हो ना हो फिर भी, लोगों के आरोग्य की सुरक्षा के लिये आवश्यक है, ऐसे "बता कर" या "प्रचार करके, माईंड सेट करके, मार्केटिंग करके" ; च्यवनप्राश, शतावरी कल्प, आवले का मुरब्बा ऐसे, जो औषध है उन को, पेशंट को आवश्यकता हो न हो, लेकिन "फिर भी, कैसे बेचा जा सकता है" इस का भी प्रशिक्षण नये बी एम एस कोर्स मे दिया जाना चाहिए. 

13 C

वैसे भी आयुर्वेद औषध की दुकान खोलने के लिए किसी परमिशन लायसन डिग्री की आवश्यकता नही होती है. कोई भी सामान्य व्यक्ती , केवल शॉप ॲक्ट लायसन के द्वारा आयुर्वेद औषध बेचने की दुकान खोल सकता है. इसलिये नये बी ए एम एस कोर्स मे ऍडमिशन देने के लिए सायन्स या नीट ऐसे एंट्रन्स एक्झाम का निकष न रखते हुए, आर्ट्स और कॉमर्स ऐसे लोगों को भी प्रवेश देना चाहिए ... क्यूकी आखिर अंत में जाकर औषध ही तो बेचना है ... किराणा दुकान ग्रॉसरी शॉप की तरह!!! तो केवल सायन्स वाले हि हि क्यूं ? आर्ट्स व कॉमर्स वालों को भी इस आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे ॲडमिशन देने मे क्या दिक्कत है!!??

14.

इसी के साथ , पोलुशन से केमिकल से हायब्रिडायझेशन फर्टीलायझर से भरे हुए, अन्न आहार वातावरण इनसे, मात्र दो या तीन दिन दूर रहकर , जैसे तीन चार हजार साल पहले , जो दिनचर्या हुआ करती थी, उसका 2-3 दिन यथाशक्य अनुभव करके, संपूर्ण आरोग्य की प्राप्ती कैसे हो सकती है , यह समझने के लिए, "रिसॉर्ट = आयुर्वेद आश्रम = वेलनेस सेंटर, इन की स्थापना & संचालन कैसे करे" इसका भी प्रशिक्षण आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे अनिवार्य रूप से देना चाहिए 

वहां पर, केवल दो तीन या सात दिन निकालकर, उस रिसॉर्ट से बाहर आने के बाद, हमे बाकी का पूरा 99.99% जीवन पेस्टिसाइड फर्टीलायझर हायब्रीड पोल्युशन केमिकल इसी मे अनिवार्य रूप से जीना है , तथापि स्पा व रिसॉर्ट में मात्र 3 या 7 दिन का निवास, संपूर्ण जीवन की आरोग्य सुरक्षा के लिये अत्यंत आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है , इस कारण से इस प्रकार के "रिसॉर्ट की स्थापना व्यवस्थापन संचालन कैसे करते है", इसका भी है ट्रेनिंग बी ए एम एस कोर्स मे देना अत्यावश्यक है.

15.

भारत की नरनारियां पहिले कभी सुंदर थी ही नही... अभी अभी तो सौंदर्य क्या है, उसके क्रायटेरिया क्या है, उसके लिए उपचार क्या होने चाहिए ... इसका संशोधन हुआ है और इसमे रिसर्च के अनुसार और विश्व मे मान्य निकषों के अनुसार जो cosmetology = सौंदर्यशास्त्र की नयी शाखा उभरकर आयी है, उस सौंदर्यशास्त्र को आयुर्वेद के साचे मे डालकर/ढालकर, एक आयुर्वेद सौंदर्यशास्त्र नाम का, अर्थात गालों को और बालों को रंगने का, जितना भी बाह्योपचार हो सकता है, उसके लिए उपयुक्त, न जाने कितने प्राॅडक्ट्स "बेचने की व्यवस्था" हो सकती है !!! इस नये करिअर का, सौंदर्य शास्त्र के विधान का तथा इन नये सौंदर्य प्रॉडक्ट्स का, जिसे आधुनिक भाषा मे, आयुर्वेदिक कॉस्मेटोस्युटिकल्स कहा जाता है, ऐसे सारे बातों का पुरस्कार प्रसार प्रचार आणि का प्रशिक्षण आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे अंतर्भूत होना हि चाहिये!

सौंदर्यशास्त्र को हमारे भारत की कई युनिव्हर्सिटी, हमारे शिखर शैक्षणिक संस्थान कितना प्रोत्साहन, पुरस्कार तथा स्टेज पर अवसर निरंतर रूप से दे हि रहे है और इससे हमारे सारे अध्यापक वैद्य और विद्यार्थी गण प्रेरित हो रहे और उनके जीवन मे ये सारा उनके लिये अत्यंत उपयोगी होने वाला है.

16.

साधनं न त्वसाध्यानां व्याधीनामुपदिश्यते ।

👆🏼च सू 1/63 ! 

फिर भी ...आत्ययिक, असाध्य, याप्य, मॉडर्न डायग्नोसिस के अनुसार गंभीर ... ऐसे चमत्कारिक विलक्षण रोगों की चिकित्सा(? Try/attempt to treat) करना, यह एक ग्लॅमरस , भीड खींचने वाला crowd pulling उपक्रम आयुर्वेद में आजकल यहां वहां दिखाई दे रहा है, लोकप्रिय भी हो रहा है

अनेक नामवंत टायकून आयकॉन आयडॉल, ऐसे अति यशस्वी गुरुपदस्थ, ऐसे आयुर्वेद वैद्य भी अचानक झट से यकायक व्हाया आयसीयू आयसीसीयु स्वर्ग सिधार गये तथा अन्य भी सर्वसामान्य अतिसामान्य क्षुद्रातिक्षुद्र वैद्य भी एवं जनसामान्य के विषय में भी 99.99% शक्यता यही है कि वे भी व्हाया आयसीयु आयसीसीयु स्वर्ग जायेंगे, ऐसा हर बार बार बार कई बार होकर भी, आयुर्वेद में आत्ययिक चिकित्सा = इमर्जन्सी ट्रीटमेंट का कथाकथन = स्टोरी टेलिंग का उपक्रम सभी जगह चलता रहता है , ऐसे तथाकथित यशस्वी रामबाण आत्ययिक चिकित्सा = शुअर शॉट इमर्जन्सी ट्रीटमेंट का भी समावेश आधुनिक बी ए एम एस कोर्स मे करना हि चाहिए

17

आज कल के विद्यार्थी उपरोक्त सभी नाडी योग से लेकर सौंदर्यशास्त्र आत्ययिक चिकित्सा तक, ये उपक्रम सीखने के लिए यहा वहा भटकते रहते है, उनको यह अधिकृत रूप से बी ए एम एस कोर्स मे ही सीखने को मिले , तो आने वाली पिढी का और समाज का निश्चित हि कल्याण होगा 

18

और तो और , भारत राष्ट्र को संपूर्ण स्वस्थ बनाने के लिए , जैसे घर घर आयुर्वेद , यह घोषणा दी है ... वैसे हि हर घर मे बीएएमएस , यह भी कार्य होना चाहिए! इसलिये आज जैसे दूर दराज के, रिमोट ग्रामीण क्षेत्र में तथा तालुका स्तर के गाव मे भी, बी ए एम एस कॉलेज खुल रहे है, हर काॅलेज को 100, 100 सीट दी जा रही है ... वैसे हर गल्ली नुक्कड रास्ते में बी ए एम एस कॉलेज खोलना चाहिए और हर घर के हर व्यक्ती को बीएएमएस होने का अवसर निर्माण करना चाहिए... जिससे की पढाने वाले , पढने वाले , पीजी करने वाले; सभी की रोजगार की व्यवस्था हो सके ... 

19

तो यह आधुनिक बीएएमएस कोर्स किस प्रकार से अत्यंत अपडेटेड अद्ययावत और लोककल्याणकारी सिद्ध होगा, इस पर तुरंत ही निर्णय करके, इसकी कार्यवाही कर देनी चाहिये और इसके लिये सभी वैद्य सभी विद्यार्थी उनके समूह उनकी संघटनाये आयुर्वेदिक के सेलेब्रिटी आयुर्वेद की शिखर संस्थाये इन सभी ने एक साथ मिलकर प्रयत्न करना अत्यंत आवश्यक है

20

इस प्रकार से,  इस लेख में , नाडी से लेकर सौंदर्यशास्त्र तथा इमर्जन्सी ट्रीटमेंट तक, सारे नये उपक्रमों का समावेश, आयुर्वेद के आधुनिकीकरण के लिए, नये बी ए एम एस कोर्स मे होना अत्यावश्यक अनिवार्य व अत्यंत उपयोगी है, यह सविस्तर प्रस्तुत किया है.

21

ये देखकर, इस प्रस्ताव का सभी वैद्योने विद्यार्थियोंने अध्यापकोंने फार्मसीयोंने आयुर्वेद की संघटनाओं ने, बडे जोर से सपोर्ट करना चाहिए, पुरस्कार करना चाहिए, ताकि आयुर्वेद का जो संहिता मे लिखा हुआ प्राचीन जो कि "कालबाह्य" स्वरूप है, वह नष्ट होकर एक अत्यंत स्वर्णिम उज्ज्वल तेजस्वी सोफिस्टिकेटेड आधुनिक अद्ययावत अपडेटेड "प्रॉफिटेबल मार्केटेबल सेलेबल" इस प्रकार का नवीनतम आयुर्वेद, हमे और आनेवाले पिढियों को उपयोग करने के लिए, अधिकृत रूप से उपलब्ध होगा , उस पर कोई भी ... ये इल्लीगल है, आपको अलाउड नही है, आप बोगस है , ट्रॅडिशनल है, पॅरेलल है , सेकंडरी है ... ऐसे कोई भी आपकी निंदा नही करेगा !!!

22

उलटा जो नया BAMS कोर्स होगा, जो भारतीय ऑल मेडिसिन स्कॉलर या बॅचलर ऑफ ऑल मेडिसिन स्किल्स , ऐसे अत्यंत भूषणावह एवं गौरवान्वित करने वाले उपाधि से संबंधित होगा.

23

ऐसी सर्व समावेशक विधा का हम सभी लोग पुरस्कार करे, क्यों की चरक भी कहते है, "कृत्स्नो हि लोको बुद्धिमताम् आचार्यः"! ... 

24

सिद्धांत के आधार पर मात्र "सोचने" की बजाय, "आयुर्वेदशास्त्र के नाम पर" हम क्या क्या "बेचने" का व्यापार कर सकते है, इसका हमे अधिक विचार करना चाहिए. 

25

चलो, बह रही है ~ज्ञान ❌️~ *धन ✅️* की गंगा ... हम उसमे हाथ धो लेंगे ... और सिर्फ हाथ हि क्यों, पूरा डुबकी लगाकर कर स्नान हि कर लेते है

Disclaimer: यह लेख वैयक्तिक मत के रूप मे लिखा गया है. इस लेख मे उल्लेखित विषयों के बारे मे अन्य लोगों के मत इससे भिन्न हो सकते है. इस लेख मे लिखे गये मेरे मत, किसी भी अन्य व्यक्ती या संस्था पर बंधनकारक नही है, तथा उन्होने मेरे ये मत मान्य करने हि चाहिये, ऐसा मेरा आग्रह नही है. उपरोक्त विषयों के बारे मे जो मेरी समझ, मेरा आकलन, मेरा ज्ञान है, उसके अनुसार उपरोक्त लेख मे विधान लिखे गये है. उन विषयों के बारे मे वस्तुस्थिती और अन्य लोगों के मत, मेरे मत से, मेरे आकलन से, मेरी समझ से, मेरे ज्ञान से अलग हो सकते है.

यह लेख मैने केवल मेरे वैयक्तिक ब्लॉग पर लिखा है. यह लेख सार्वजनिक रूप मे किसी भी व्हाट्सअप ग्रुप पर या अन्य सोशल मीडिया पर प्रसृत नही किया है. किंतु इस लेख का संक्षिप्त परिचय तथा इस लेख की / इस ब्लॉग की ऑनलाईन लिंक, व्हाट्सअप तथा अन्य सोशल मीडिया पर प्रसृत  की गई है. किंतु उस लिंक का उपयोग करके यह लेख पढना है या नही पढना है, यह वाचक का अपना स्वयं का विकल्प तथा निर्णय है. किसी को भी यह लेख या इस लेख की लिंक व्यक्तिगत रूप मे नही भेजी गई है, इसलिये कोई भी इसे व्यक्तिगत रूप मे न ले.