मार्केट में उपलब्ध काढा कषाय!? ... क्वाथ? या आसव/अरिष्ट??
लेखक : © वैद्य हृषीकेश म्हेत्रे
आयुर्वेद क्लिनिक्स @ पुणे & नाशिक
9422016871
प्रायः संहितोक्त चिकित्सा देखेंगे, तो चरक संहिता मे प्रत्येक रोग के प्रारंभ मे पहले कुछ स्नेहकल्प है, उसके पश्चात शोधन और उसके पश्चात विविध शमन कल्प आते है.
स्नेह कल्प अर्थात सिद्धतैलघृत बनाने के लिए भी पहले क्वाथ ही बनाना पडता है
या शमनकल्प मे जो भी कल्प आते है वो क्वाथ स्वरूप है या क्वाथ से ही बनते है या क्वाथजन्य कल्प है, क्वाथ डेरिव्हेटिव्हज ही है ... जैसे की लेह गुड अरिष्ट या फिर से सिद्धतैल सिद्धघृत!
*तो मूल स्वरूप मे संहितोक्त चिकित्सा के सभी कल्पोंका भैषज्य कल्पना की दृष्टि से मूलाधार क्वाथ ही है*
पंचविध कषाय कल्पना मे फान्ट और हिम इनका उतना प्रयोग प्रत्यक्ष चिकित्सा व्यवहार मे या संहितोक्त श्लोक मे भी प्राप्त नही होता है
और स्वरस सर्वदा उपलब्ध होता नहीं
*इसलिये पंचविध कषाय कल्पना में "सर्वाधिक प्रयोग होने वाली सामर्थ्यशाली वीर्यवान क्षमतायुक्त कल्पना क्वाथ" ही है*
*क्वाथ निर्मिती के लिए लिये, नैसर्गिक रूप मे उपलब्ध शुष्क द्रव्य, अखंड या भरड (कोअर्स पावडर) या fine वस्त्रगालित चूर्ण स्वरूप मे उपयोगी लाया जा सकता है*
*इसलिये संहितोक्त आयुर्वेदीय चिकित्सा की मूल भैषज्य कल्पना या भैषज्य कल्पना का मूलाधार क्वाथ ही है ... और क्वाथ बनाने का मूलाधार शुष्क चूर्ण (/ उपलब्ध हो तो आर्द्र कल्क) है*🙂
किंतु क्वाथ की स्वयं की सवीर्यता अवधी = शेल्फ लाइफ, अत्यंत अल्पकालीन है. 5-6 घंटे के बाद किये हुए क्वाथ में रस वर्ण गंध की विकृती आती है
इसलिये क्वाथ में जो औषध है, वॉटर एक्स्ट्रॅक्ट के रूप मे, उसको संजोग कर सुरक्षित रखने के लिए, दीर्घकाल तक उपयोग मे ला सके, इसके लिये क्वाथजन्य अन्यकल्प डिझाईन/derive किये गये, जिसमे सिद्ध स्नेह अर्थात तैलघृत, लेह आसव / अरिष्ट ये आते है.
*तो कुल मिलाकर आयुर्वेदिक संहितोक्त चिकित्सा यह क्वाथ के हि डेरिव्हेटिव्हज है.*
*किंतु* ... आज "काढा" नाम से जो कल्प प्रसिद्ध है, व्यवहार मे बहुतर मात्रा में उपयोग मे आते है, उदाहरण के लिए महासुदर्शन महामंजिष्ठादी महारास्नादि ये मार्केट मे उपलब्ध होते समय, यद्यपि उन पर "काढा" यह नाम प्रिंट होता है, किंतु वस्तुस्थिती में, वे आसुत/ संधान/ आसव / अरिष्ट है.
क्वाथ की सेवनमात्रा संहिता मे और शार्ङ्गधर मे 2 पल = 80 or 100ml है और
शार्ङ्गधर मे हि आसव अरिष्ट की सेवन मात्रा एक पल है ...
तो 40 से 100 ml तक यह मात्रा हो गयी.
अगर मार्केट मे उपलब्ध आसव अरिष्ट स्वरूप में उपलब्ध, "काढा" प्रयोग करना है, तो भी उसकी एक समय की देय मात्रा एक पल अर्थात 40ml होती है ... तो जो मार्केट मे उपलब्ध बॉटल है, वह 200/450 ml की आती है, जिसमें केवल 5 या 11.5 डोस बन सकते है.
तो ऐसे स्थिती मे यह प्रॅक्टिकल व ॲफाॅर्डेबल नही है. इसलिये पेशंट को वैद्य लोग दो चमचे / चार चमचे "काढा (के नाम पर" मार्केट मे आनेवाला आसव अरिष्ट) लेने के लिए बोलते है, जिसका अपेक्षित परिणाम, शीघ्र काल मे नही हो सकता. क्यूंकी "मात्रा+कालाऽऽश्रया युक्ती" ... तो अपेक्षित परिणाम कहां से आयेगा? 🤔⁉️
दूसरा ...
यह जो *आसव अरिष्ट स्वरूप काढा दिया जाता है, यह मद्य है, जो मे "अम्लों में सर्वश्रेष्ठ" द्रव्य है*, ऐसा चरक संहिता कहती है
सर्वेषां मद्यम् अम्लानाम् उपर्युपरि तिष्ठति ॥
मद्यस्य अम्लस्वभावस्य
श्रेष्ठम् अम्लेषु मद्यं च
तो अगर इतनी अम्लता का वीर्यवान प्रकार प्रतिदिन दिया जाये, तो वह निदान स्वरूप हि होगा, न कि औषध स्वरूप!!!
... तो क्वाथ के द्वारा जो परिणाम शरीर पर लाभदायक रूप मे अनपायी रूप मे आनेवाला है, वह आसव अरिष्ट स्वरूप मे नही आ सकता. आसव अरिष्ट देने की स्थिती बहुत कम बार है , जहा पर कफ का प्राबल्य है, स्रोतो रोध है ... ऐसे स्थिती मे !
लेकिन क्वाथ (fresh prepared) देना , यह प्रायः सभी अवस्था मे मान्य ग्राह्य और निर्दिष्ट है.
तिसरा ...
एक "कषाय" करके दक्षिण भारत की कुछ फार्मसीयों से आता है, जो थोडा डेन्स थिक गाढा सांद्र होता है. शुगर को चारकोल रूप मे कन्वर्ट करके &/or कोई प्रिझर्वेटिव्ह केमिकल मिला कर बनाया जाता है, जिससे की उसमे गंध वर्ण रस विकृती न आये. इसका भी टेस्ट प्रायः बहुत ही विचित्र होता है
तो यह भी योग्य बात नही है, हम क्वाथ के नाम पर कषाय (काढा) के नाम पर "कुछ और ही द्रव्य/कल्प", दे रहे है.
चौथा प्रकार बहुत लोकप्रिय है, कि क्वाथ की रसक्रिया बनाकर उसको और सांद्र गाढा थिक बनाकर, उसको "घनवटी" के रूप मे बेचना. इसमे क्वाथ का प्रायः विदग्ध पाक हो सकता है. प्रायः ये घनवटिया एक दूसरे के साथ चिपक जाती है. कितना भी प्रयास करे, उसमे कुछ अंश तक आर्द्रता humidity जलांश रह जाने के कारण उसमे कई बार फंगस आने की संभावना होती है, अनेक बार ये घनवटिया स्पर्श को मृदू लगती है ... और पुनश्च यह फ्रेश क्वाथ का स्वरूप या उचित पर्याय नही है , यह बात तो स्वतः सिद्ध है
तो ये कुल मिला कर, अभी का जो व्यवहार है यह ॲडजेस्टमेंट स्वरूप मे है.
शास्त्रीय स्वरूप मे नही है. फ्रेश प्रिपेयर अभी तयार किया हुआ क्वाथ देना हि उचित है, किंतु पेशंट के पास इतना समय और इच्छा , सुविधा और यूजर फ्रेंडली स्थिती नही है , कि वह हर समय दिन मे दो या तीन बार आठ गुना या सोला गुना पानी डालकर उसको उबालकर छानकर पी सके.
फ्रेश क्वाथ के बारे मे, अधिक मात्रा होना और अच्छी रुची रस चव टेस्ट न होना... यह भी समस्या होती है
तो ऐसे सभी परिस्थिती मे क्या करना चाहिए ...? 🤔⁉️ ... की जिससे संहितोक्त भैषज्य कल्पना का मूलाधार क्वाथ ही दिया जा सके ...
1.
और उसमे "काढा के नाम पर" आसव अरिष्ट या,
2.
दक्षिण भारत फार्मसी के तथाकथित कषाय का,
3.
या ॲड्जस्टमेंट स्वरूप, प्रायः विदग्ध पाकी डार्क ब्राऊन या कृष्णवर्ण का घनवटी स्वरूप कल्प प्रयोग न करना पडे ...
4.
और जितनी मात्रा मे कहा गया है , उतनीही शास्त्रीय मात्रा मे क्वाथ पेशंट को देना,
वैद्य के लिए संभव हो सके !!!
स्वरस के अभाव मे अग्नि सिद्ध कषाय का वर्णन शार्ङ्गधर मे आता है. ऐसेही क्वाथ की अभाव मे ... जल मेंअवतरित, जल मे प्रविष्ट, गतरसत्व की स्थिती मे आया हुआ, औषध का वॉटर एक्स्ट्रॅक्ट ... अगर उसी क्वाथ के मूल(original/basic/ prime) चूर्ण मे absorb /adsorb /mount / स्थापित किया जाये और एक बार नही ... अपितु तीन बार, सात बार, 21 बार किया जाये ... तो उसी चूर्ण की क्षमता सामर्थ्य वीर्य बल वृद्धी होती जाती है. इसलिये सप्तधा बलाधान उसी चूर्ण का करेंगे... तो क्वाथ की जो देय मात्रा है, वह एक सप्तमांश (1/7) हो जायेगी और हम टॅबलेट के रूप मे चूर्ण को देंगे तो टॅबलेट की / गुटीवटी की / चूर्ण की मात्रा दस ग्राम = एक कर्ष है ... तो यह भी साध्य होता है...
क्योंकि अगर 7 बलाधान करेंगे तो 10÷7 = 1.5 ग्राम अर्थात 250mg की 6 टेबलेट्स ... यह शास्त्रोक्त संहितोक्त मात्रा पेशंट को लेना निश्चित रूप से संभव सुकर होने के कारण उसका साथ मे ले जाना portable, अरुची न होना, अल्प एवं योग्य उचित संहितोक्त मात्रा में औषध देने के कारण क्षिप्र अपेक्षित परिणाम लाभ से आरोग्य प्राप्ती होना ... यह सब एक साथ सुकर संभव सत्य सार्थक सिद्ध हो सकता है.
अल्पमात्रोपयोगी स्यात्
अरुचे: न प्रसंग: स्यात् ।
क्षिप्रम् आरोग्यदायी स्यात्
*सप्तधा भाविता वटी* ।।
✅️ ✅️ ✅️
250mg की 6 सप्तधा बलाधान टॅबलेट्स , एक कप अर्थात 100ml उष्ण जल / गरम पानी मे डेढ दो मिनिट (90 to 120 सेकंद) के लिए रखी जाये, तो उसका डिस्-इंटिग्रेशन टाईम व हार्डनेस अत्यल्प होने के कारण, दो मिनिट के बाद उसका 80 to 100 ml साक्षात् क्वाथही बनता है और अगर यह एक कप मे 6 टॅबलेट डालने की बजाय, 6 टॅबलेट एक कप गरम पाणी के साथ निगल ली जाये, या पीसकर ली जाये, तो शरीर के अंदर हि उसका क्वाथ बनेगा
संहितोक्त फ्रेश प्रीपेअर्ड क्वाथ बनाने के लिए, वैसे भी शुष्क चूर्ण को पानी मे उबालना पडता है... ऐसे उबालकर बनाये हुये क्वाथ को अगर, 7 बार या 7 गुना उसी क्वाथ के चूर्ण में "पुनः प्रवेशित किया जाये, re-insert re-enter re-inject" तो यह सप्तधा बलाधान चूर्ण/टॅबलेट्स जिस समय 100एम एल उष्णोदक गरम पाणी मे, मात्र 1.5 gms डाल दिया जायेगा, तो उसी क्षण उसका संहितोक्त स्वरूप मे फ्रेश प्रीपेअर्ड क्वाथ बनेगा ... क्योंकि उस सप्तधा बलाधान चूर्ण मे, सात गुना क्वाथ *"पूर्व प्रविष्ट Pre Installed"* है, जो गरम पाणी / उष्णोदक के संपर्क से , उसी जल मे पुनः अवतरित हो जायेगा, गत रसत्व हो जायेगा, वॉटर एक्सट्रॅक्ट सहित, क्वाथ कल्पना के रूप मे उपलब्ध हो जायेगा. (क्यूंकी इस सप्तधा बलाधान चूर्ण का तथा तज्जन्य गुटी वटी टॅबलेट का हार्डनेस व डिस्-इंटिग्रेशन टाईम अत्यल्प होता है!) तो यह सप्तधा बलाधान संकल्पना, रेडिमिक्स, रेडी टू यूज, यूजर फ्रेंडली कल्प है, जो ट्रान्सपोर्टेबल अरुची-विरहित अल्पमात्रोपयोगी क्षिप्र आरोग्यदायी ऐसे सर्वगुणसंपन्न रूप मे सभी के लिये सुलभ उपलब्ध है
*मात्रा+कालाऽऽश्रया युक्ती* को आचरण मे लाते हुए, संहितोक्त मात्रा देने के कारण , उसमे अपेक्षित परिणाम निश्चित रूप से प्राप्त होता है ...
मैने बनाया है इसलिए, सप्तधा बलाधान टॅबलेट के मार्केटिंग के लिये नही लिख रहा हूं.
इस प्रकार के टॅबलेट बनाना केवल मेरे लिये ही संभव है, ऐसा नही है ! मेरा पेटंट नहीं है यह. तो यह जो विचार संकल्पना आपके सामने रखी ,
वह चरक कल्प स्थान 12 श्लोक क्रमांक 47 का आचरण उपयोजन अनुष्ठान है
भूयश्चैषां बलाधानं कार्यं स्वरसभावनैः ।
सुभावितं ह्यल्पमपि द्रव्यं स्याद्बहुकर्मकृत् ॥
स्वरसैस्तुल्यवीर्यैर्वा तस्माद्द्रव्याणि भावयेत् ।
👆🏼चरक कल्पस्थान 12 श्लोक क्रमांक 47
इसका साक्षात् आचरण करके जो आत्मविश्वास आता है , उसके कारण किसी अन्य शास्त्र के, ( जो हमारे आयुर्वेद भैषज्य कल्पना के सिद्धांत के अत्यंत विपरीत और भयानक है, ऐसे) स्वधर्म त्याग कर, अन्य पंथ के, अन्य शास्त्र के बजाय... अगर हमारे ही शास्त्र के, संहितोक्त कल्पों को, संहितोक्त मात्रा मे देने का, यह सुकर नया विधान, आचरण मे लायेंगे , तो उसी सप्तधा बलाधान वटी को, हम आत्मविश्वास के साथ, पेशंट पर प्रयोग करके, अपेक्षित परिणाम प्राप्त करके, उसको आरोग्य का वरदान दिला सकते है!
और एक... यूजर फ्रेंडली, रेडी टू यूज, रेडी मिक्स संकल्पना
लेह को अगर और घन बना दिया जाये, तो वो कल्प/खंड अर्थात ग्रॅन्युल्स (शतावरीकल्प जैसे) निर्माण हो सकता है. आज कुछ कंपनी का कूष्मांड अवलेह ग्रॅन्युल्स के स्वरूप मे आता है.
म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda ने भी ऐसे अनेक शर्करा कल्प ग्रॅन्यूल्स की, एफडीए अप्रूव (FDA Approved) करके, वैद्यों के उपयोग के लिए वितरण व्यवस्था उपलब्ध की है ...
जैसे की ...
1. शालिपर्णी कल्प :
हृदयगत वात के लिए,
LVEF बढाने मे उपयोगी,
कुछ मर्यादा तक एन्जोप्लास्टी और बायपास प्रलंबित करने के लिए या निरस्त करने के लिए उपयोगी
2. शतावरी गोक्षुर कल्प :
मूत्रगत दाह पित्त रक्त अग्नी के लिये
3 कूष्मांडकल्प :
बस्तिगत विकृती
वात पित्त शमन
बृंहण
वृष्य
चेतोविकार : मानसिक बौद्धिक भावनिक वैचारिक स्वास्थ्य के लिए उपयोगी
और उरःसंधान के लिए
4. यष्टी गुडूची कल्प
अस्थि संधान, अस्थिक्षय जानू मन्या कटी मणके व्हर्टेब्रा शूल डीजनरेशन सायटिका डिस्क बल्ज स्पाॅण्डिलाॅसिस लिगामेंट टेअर दंतक्षयजन्य विकृती संधी शोथ जॉईंट इफ्युजन केशवृद्धी मेध्य
5. पंचतिक्त कल्प
त्वचारोग और अस्थिक्षय जन्य उपरोक्त अवस्था मे उपयोगी
6. गुडूची कल्प
अस्थिक्षय जन्य उपरोक्त अवस्था, व्हेरिकोज व्हेन्स AVN DVT व केशवर्धन मेध्य उपयोगी
7. यष्टी काश्मरी कल्प :
गर्भ वृद्धी बालक वृद्धि आययूजीआर IUGR बालकोंका कुपोषण इसमे उपयोगी AMH क्षयमे उपयोगी
8. दूर्वाकल्प :
दाह पित्त मे उपयोगी
9. यष्टी सारिवा कल्प :
संक्षोभ irritation उद्वेग उपयोगी,
कॅन्सर के केमोथेरपी रेडिएशन सर्जरी के पश्चात धातू बल की पुनःप्राप्ती के लिये उपयोगी
कॅन्सर के सर्जरी केमोथेरेपी रेडिएशन इन उपचार पूर्व, उपचार समकालीन तथा उपचार पश्चात अवस्था मे इस कल्प के उपयोग के सविस्तर ज्ञान के लिये इस 👇🏼 लिंक का उपयोग करे
https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/07/blog-post_6.html
10. रसोन आर्द्रक कल्प :
सभी प्रकार के वातकफजन्य तथा पीनस शिरोरोग गौरव सायनुसाईटिस ओटायटिस कान मे आवाज आना कान मे पूय/pus होना कर्णकण्डू टॉन्सिल्स ॲडेनॉइड्स ॲलर्जीक ह्रायनायटिस हृल्लास नाॅशिया ॲनोरेक्झिया श्वास कास कफ पूर्ण उर क्षुधानाश में उपयोगी
https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/11/blog-post_25.html
वैद्य हृषीकेश म्हेत्रे
आयुर्वेद क्लिनिक्स @ पुणे & नाशिक
9422016871
www.YouTube.com/MhetreAyurved/
Articles about a few medicines that we manufacture
👇🏼
पूर्वप्रकाशित
अन्य लेखों की
ऑनलाईन लिंक👇🏼
✍️🏼
The BOSS !! VachaaHaridraadi Gana 7dha Balaadhaana Tablets
👇🏼
https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/11/blog-post.html
👆🏼
वचाहरिद्रादि गण सप्तधा बलाधान टॅबलेट : डायबेटिस टाईप टू तथा अन्य भी संतर्पणजन्य रोगों का सर्वार्थसिद्धिसाधक सर्वोत्तम औषध
✍️🏼
कल्प'शेखर' भूनिंबादि एवं शाखाकोष्ठगति, छर्दि वेग रोध तथा ॲलर्जी
👇🏼
https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/12/blog-post.html
✍️🏼
वेदनाशामक आयुर्वेदीय पेन रिलिव्हर टॅबलेट : झटपट रिझल्ट, इन्स्टंट परिणाम
👇🏼
https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/10/blog-post.html
✍️🏼
स्थौल्यहर आद्ययोग : यही स्थूलस्य भेषजम् : त्रिफळा अभया मुस्ता गुडूची
👇🏼
https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/06/blog-post.html
✍️🏼
क्षीरपाक बनाने की विधि से छुटकारा, अगर शर्करा कल्प को स्वीकारा
👇🏼
https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/11/blog-post_25.html
✍️🏼
ऑलिगो एस्थिनो स्पर्मिया oligo astheno spermia और द्रुत विलंबित गो सप्तधा बलाधान टॅबलेट
👇🏼
https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/06/oligo-astheno-spermia.html
✍️🏼
All articles on our MhetreAyurveda blog
👇🏼
https://mhetreayurved.blogspot.com/