Friday, 9 August 2024

मार्केट में उपलब्ध काढा कषाय!? ... क्वाथ? या आसव/अरिष्ट??

मार्केट में उपलब्ध काढा कषाय!? ... क्वाथ? या आसव/अरिष्ट?? 

लेखक : © वैद्य हृषीकेश म्हेत्रे

आयुर्वेद क्लिनिक्स @ पुणे & नाशिक 

9422016871 


प्रायः संहितोक्त चिकित्सा देखेंगे, तो चरक संहिता मे प्रत्येक रोग के प्रारंभ मे पहले कुछ स्नेहकल्प है, उसके पश्चात शोधन और उसके पश्चात विविध शमन कल्प आते है.


स्नेह कल्प अर्थात सिद्धतैलघृत बनाने के लिए भी पहले क्वाथ ही बनाना पडता है 

या शमनकल्प मे जो भी कल्प आते है वो क्वाथ स्वरूप है या क्वाथ से ही बनते है या क्वाथजन्य कल्प है, क्वाथ डेरिव्हेटिव्हज ही है ... जैसे की लेह गुड अरिष्ट या फिर से सिद्धतैल सिद्धघृत!


*तो मूल स्वरूप मे संहितोक्त चिकित्सा के सभी कल्पोंका भैषज्य कल्पना की दृष्टि से मूलाधार क्वाथ ही है*


पंचविध कषाय कल्पना मे फान्ट और हिम इनका उतना प्रयोग प्रत्यक्ष चिकित्सा व्यवहार मे या संहितोक्त श्लोक मे भी प्राप्त नही होता है 

और स्वरस सर्वदा उपलब्ध होता नहीं 


*इसलिये पंचविध कषाय कल्पना में "सर्वाधिक प्रयोग होने वाली सामर्थ्यशाली वीर्यवान क्षमतायुक्त कल्पना क्वाथ" ही है*


*क्वाथ निर्मिती के लिए लिये, नैसर्गिक रूप मे उपलब्ध शुष्क द्रव्य, अखंड या भरड (कोअर्स पावडर) या fine वस्त्रगालित चूर्ण स्वरूप मे उपयोगी लाया जा सकता है*


*इसलिये संहितोक्त आयुर्वेदीय चिकित्सा की मूल भैषज्य कल्पना या भैषज्य कल्पना का मूलाधार क्वाथ ही है ... और क्वाथ बनाने का मूलाधार शुष्क चूर्ण (/ उपलब्ध हो तो आर्द्र कल्क) है*🙂


किंतु क्वाथ की स्वयं की सवीर्यता अवधी = शेल्फ लाइफ, अत्यंत अल्पकालीन है. 5-6 घंटे के बाद किये हुए क्वाथ में रस वर्ण गंध की विकृती आती है 


इसलिये क्वाथ में जो औषध है, वॉटर एक्स्ट्रॅक्ट के रूप मे, उसको संजोग कर सुरक्षित रखने के लिए, दीर्घकाल तक उपयोग मे ला सके, इसके लिये क्वाथजन्य अन्यकल्प डिझाईन/derive किये गये, जिसमे सिद्ध स्नेह अर्थात तैलघृत, लेह आसव / अरिष्ट ये आते है.


*तो कुल मिलाकर आयुर्वेदिक संहितोक्त चिकित्सा यह क्वाथ के हि डेरिव्हेटिव्हज है.*


*किंतु* ... आज "काढा" नाम से जो कल्प प्रसिद्ध है, व्यवहार मे बहुतर मात्रा में उपयोग मे आते है, उदाहरण के लिए महासुदर्शन महामंजिष्ठादी महारास्नादि ये मार्केट मे उपलब्ध होते समय, यद्यपि उन पर "काढा" यह नाम प्रिंट होता है, किंतु वस्तुस्थिती में, वे आसुत/ संधान/ आसव / अरिष्ट है.

क्वाथ की सेवनमात्रा संहिता मे और शार्ङ्गधर मे 2 पल = 80 or 100ml है और 

शार्ङ्गधर मे हि आसव अरिष्ट की सेवन मात्रा एक पल है ... 

तो 40 से 100 ml तक यह मात्रा हो गयी. 

अगर मार्केट मे उपलब्ध आसव अरिष्ट स्वरूप में उपलब्ध, "काढा" प्रयोग करना है, तो भी उसकी एक समय की देय मात्रा एक पल अर्थात 40ml होती है ... तो जो मार्केट मे उपलब्ध बॉटल है, वह 200/450 ml की आती है, जिसमें केवल 5 या 11.5 डोस बन सकते है.


तो ऐसे स्थिती मे यह प्रॅक्टिकल व ॲफाॅर्डेबल नही है. इसलिये पेशंट को वैद्य लोग दो चमचे / चार चमचे "काढा (के नाम पर" मार्केट मे आनेवाला आसव अरिष्ट) लेने के लिए बोलते है, जिसका अपेक्षित परिणाम, शीघ्र काल मे नही हो सकता. क्यूंकी "मात्रा+कालाऽऽश्रया युक्ती" ... तो अपेक्षित परिणाम कहां से आयेगा? 🤔⁉️


दूसरा ... 

यह जो *आसव अरिष्ट स्वरूप काढा दिया जाता है, यह मद्य है, जो मे "अम्लों में सर्वश्रेष्ठ" द्रव्य है*, ऐसा चरक संहिता कहती है 


सर्वेषां मद्यम् अम्लानाम् उपर्युपरि तिष्ठति ॥


मद्यस्य अम्लस्वभावस्य


श्रेष्ठम् अम्लेषु मद्यं च


तो अगर इतनी अम्लता का वीर्यवान प्रकार प्रतिदिन दिया जाये, तो वह निदान स्वरूप हि होगा, न कि औषध स्वरूप!!!


... तो क्वाथ के द्वारा जो परिणाम शरीर पर लाभदायक रूप मे अनपायी रूप मे आनेवाला है, वह आसव अरिष्ट स्वरूप मे नही आ सकता. आसव अरिष्ट देने की स्थिती बहुत कम बार है , जहा पर कफ का प्राबल्य है, स्रोतो रोध है ... ऐसे स्थिती मे !


लेकिन क्वाथ (fresh prepared) देना , यह प्रायः सभी अवस्था मे मान्य ग्राह्य और निर्दिष्ट है.


तिसरा ...

एक "कषाय" करके दक्षिण भारत की कुछ फार्मसीयों से आता है, जो थोडा डेन्स थिक गाढा सांद्र होता है. शुगर को चारकोल रूप मे कन्वर्ट करके &/or कोई प्रिझर्वेटिव्ह केमिकल मिला कर बनाया जाता है, जिससे की उसमे गंध वर्ण रस विकृती न आये. इसका भी टेस्ट प्रायः बहुत ही विचित्र होता है


तो यह भी योग्य बात नही है, हम क्वाथ के नाम पर कषाय (काढा) के नाम पर "कुछ और ही द्रव्य/कल्प", दे रहे है. 


चौथा प्रकार बहुत लोकप्रिय है, कि क्वाथ की रसक्रिया बनाकर उसको और सांद्र गाढा थिक बनाकर, उसको "घनवटी" के रूप मे बेचना. इसमे क्वाथ का प्रायः विदग्ध पाक हो सकता है. प्रायः ये घनवटिया एक दूसरे के साथ चिपक जाती है. कितना भी प्रयास करे, उसमे कुछ अंश तक आर्द्रता humidity जलांश रह जाने के कारण उसमे कई बार फंगस आने की संभावना होती है, अनेक बार ये घनवटिया स्पर्श को मृदू लगती है ... और पुनश्च यह फ्रेश क्वाथ का स्वरूप या उचित पर्याय नही है , यह बात तो स्वतः सिद्ध है

तो ये कुल मिला कर, अभी का जो व्यवहार है यह ॲडजेस्टमेंट स्वरूप मे है. 

शास्त्रीय स्वरूप मे नही है. फ्रेश प्रिपेयर अभी तयार किया हुआ क्वाथ देना हि उचित है, किंतु पेशंट के पास इतना समय और इच्छा , सुविधा और यूजर फ्रेंडली स्थिती नही है , कि वह हर समय दिन मे दो या तीन बार आठ गुना या सोला गुना पानी डालकर उसको उबालकर छानकर पी सके. 


फ्रेश क्वाथ के बारे मे, अधिक मात्रा होना और अच्छी रुची रस चव टेस्ट न होना... यह भी समस्या होती है 


तो ऐसे सभी परिस्थिती मे क्या करना चाहिए ...? 🤔⁉️ ... की जिससे संहितोक्त भैषज्य कल्पना का मूलाधार क्वाथ ही दिया जा सके ...

1.

और उसमे "काढा के नाम पर" आसव अरिष्ट या,

2.

दक्षिण भारत फार्मसी के तथाकथित कषाय का,

3.

या ॲड्जस्टमेंट स्वरूप, प्रायः विदग्ध पाकी डार्क ब्राऊन या कृष्णवर्ण का घनवटी स्वरूप कल्प प्रयोग न करना पडे ...

4.

और जितनी मात्रा मे कहा गया है , उतनीही शास्त्रीय मात्रा मे क्वाथ पेशंट को देना, 

वैद्य के लिए संभव हो सके !!!


स्वरस के अभाव मे अग्नि सिद्ध कषाय का वर्णन शार्ङ्गधर मे आता है. ऐसेही क्वाथ की अभाव मे ... जल मेंअवतरित, जल मे प्रविष्ट, गतरसत्व की स्थिती मे आया हुआ, औषध का वॉटर एक्स्ट्रॅक्ट ... अगर उसी क्वाथ के मूल(original/basic/ prime) चूर्ण मे absorb /adsorb /mount / स्थापित किया जाये और एक बार नही ... अपितु तीन बार, सात बार, 21 बार किया जाये ... तो उसी चूर्ण की क्षमता सामर्थ्य वीर्य बल वृद्धी होती जाती है. इसलिये सप्तधा बलाधान उसी चूर्ण का करेंगे... तो क्वाथ की जो देय मात्रा है, वह एक सप्तमांश (1/7) हो जायेगी और हम टॅबलेट के रूप मे चूर्ण को देंगे तो टॅबलेट की / गुटीवटी की / चूर्ण की मात्रा दस ग्राम = एक कर्ष है ... तो यह भी साध्य होता है...


क्योंकि अगर 7 बलाधान करेंगे तो 10÷7 = 1.5 ग्राम अर्थात 250mg की 6 टेबलेट्स ... यह शास्त्रोक्त संहितोक्त मात्रा पेशंट को लेना निश्चित रूप से संभव सुकर होने के कारण उसका साथ मे ले जाना portable, अरुची न होना, अल्प एवं योग्य उचित संहितोक्त मात्रा में औषध देने के कारण क्षिप्र अपेक्षित परिणाम लाभ से आरोग्य प्राप्ती होना ... यह सब एक साथ सुकर संभव सत्य सार्थक सिद्ध हो सकता है.

अल्पमात्रोपयोगी स्यात्

अरुचे: न प्रसंग: स्यात् ।

क्षिप्रम् आरोग्यदायी स्यात्

*सप्तधा भाविता वटी* ।। 

✅️ ✅️ ✅️


250mg की 6 सप्तधा बलाधान टॅबलेट्स , एक कप अर्थात 100ml उष्ण जल / गरम पानी मे डेढ दो मिनिट (90 to 120 सेकंद) के लिए रखी जाये, तो उसका डिस्-इंटिग्रेशन टाईम व हार्डनेस अत्यल्प होने के कारण, दो मिनिट के बाद उसका 80 to 100 ml साक्षात् क्वाथही बनता है और अगर यह एक कप मे 6 टॅबलेट डालने की बजाय, 6 टॅबलेट एक कप गरम पाणी के साथ निगल ली जाये, या पीसकर ली जाये, तो शरीर के अंदर हि उसका क्वाथ बनेगा 


संहितोक्त फ्रेश प्रीपेअर्ड क्वाथ बनाने के लिए, वैसे भी शुष्क चूर्ण को पानी मे उबालना पडता है... ऐसे उबालकर बनाये हुये क्वाथ को अगर, 7 बार या 7 गुना उसी क्वाथ के चूर्ण में "पुनः प्रवेशित किया जाये, re-insert re-enter re-inject" तो यह सप्तधा बलाधान चूर्ण/टॅबलेट्स जिस समय 100एम एल उष्णोदक गरम पाणी मे, मात्र 1.5 gms डाल दिया जायेगा, तो उसी क्षण उसका संहितोक्त स्वरूप मे फ्रेश प्रीपेअर्ड क्वाथ बनेगा ... क्योंकि उस सप्तधा बलाधान चूर्ण मे, सात गुना क्वाथ *"पूर्व प्रविष्ट Pre Installed"* है, जो गरम पाणी / उष्णोदक के संपर्क से , उसी जल मे पुनः अवतरित हो जायेगा, गत रसत्व हो जायेगा, वॉटर एक्सट्रॅक्ट सहित, क्वाथ कल्पना के रूप मे उपलब्ध हो जायेगा. (क्यूंकी इस सप्तधा बलाधान चूर्ण का तथा तज्जन्य गुटी वटी टॅबलेट का हार्डनेस व डिस्-इंटिग्रेशन टाईम अत्यल्प होता है!) तो यह सप्तधा बलाधान संकल्पना, रेडिमिक्स, रेडी टू यूज, यूजर फ्रेंडली कल्प है, जो ट्रान्सपोर्टेबल अरुची-विरहित अल्पमात्रोपयोगी क्षिप्र आरोग्यदायी ऐसे सर्वगुणसंपन्न रूप मे सभी के लिये सुलभ उपलब्ध है


*मात्रा+कालाऽऽश्रया युक्ती* को आचरण मे लाते हुए, संहितोक्त मात्रा देने के कारण , उसमे अपेक्षित परिणाम निश्चित रूप से प्राप्त होता है ...

मैने बनाया है इसलिए, सप्तधा बलाधान टॅबलेट के मार्केटिंग के लिये नही लिख रहा हूं.

इस प्रकार के टॅबलेट बनाना केवल मेरे लिये ही संभव है, ऐसा नही है ! मेरा पेटंट नहीं है यह. तो यह जो विचार संकल्पना आपके सामने रखी ,

वह चरक कल्प स्थान 12 श्लोक क्रमांक 47 का आचरण उपयोजन अनुष्ठान है 


भूयश्चैषां बलाधानं कार्यं स्वरसभावनैः ।

सुभावितं ह्यल्पमपि द्रव्यं स्याद्बहुकर्मकृत् ॥

स्वरसैस्तुल्यवीर्यैर्वा तस्माद्द्रव्याणि भावयेत् ।

👆🏼चरक कल्पस्थान 12 श्लोक क्रमांक 47


इसका साक्षात् आचरण करके जो आत्मविश्वास आता है , उसके कारण किसी अन्य शास्त्र के, ( जो हमारे आयुर्वेद भैषज्य कल्पना के सिद्धांत के अत्यंत विपरीत और भयानक है, ऐसे) स्वधर्म त्याग कर, अन्य पंथ के, अन्य शास्त्र के बजाय... अगर हमारे ही शास्त्र के, संहितोक्त कल्पों को, संहितोक्त मात्रा मे देने का, यह सुकर नया विधान, आचरण मे लायेंगे , तो उसी सप्तधा बलाधान वटी को, हम आत्मविश्वास के साथ, पेशंट पर प्रयोग करके, अपेक्षित परिणाम प्राप्त करके, उसको आरोग्य का वरदान दिला सकते है!

और एक... यूजर फ्रेंडली, रेडी टू यूज, रेडी मिक्स संकल्पना

लेह को अगर और घन बना दिया जाये, तो वो कल्प/खंड अर्थात ग्रॅन्युल्स (शतावरीकल्प जैसे) निर्माण हो सकता है. आज कुछ कंपनी का कूष्मांड अवलेह ग्रॅन्युल्स के स्वरूप मे आता है.


म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda ने भी ऐसे अनेक शर्करा कल्प ग्रॅन्यूल्स की, एफडीए अप्रूव (FDA Approved) करके, वैद्यों के उपयोग के लिए वितरण व्यवस्था उपलब्ध की है ...

जैसे की ...

1. शालिपर्णी कल्प

हृदयगत वात के लिए, 

LVEF बढाने मे उपयोगी, 

कुछ मर्यादा तक एन्जोप्लास्टी और बायपास प्रलंबित करने के लिए या निरस्त करने के लिए उपयोगी 

2. शतावरी गोक्षुर कल्प

मूत्रगत दाह पित्त रक्त अग्नी के लिये 

3 कूष्मांडकल्प

बस्तिगत विकृती 

वात पित्त शमन 

बृंहण 

वृष्य 

चेतोविकार : मानसिक बौद्धिक भावनिक वैचारिक स्वास्थ्य के लिए उपयोगी

और उरःसंधान के लिए 

4. यष्टी गुडूची कल्प 

अस्थि संधान, अस्थिक्षय जानू मन्या कटी मणके व्हर्टेब्रा शूल डीजनरेशन सायटिका डिस्क बल्ज स्पाॅण्डिलाॅसिस लिगामेंट टेअर दंतक्षयजन्य विकृती संधी शोथ जॉईंट इफ्युजन केशवृद्धी मेध्य

5. पंचतिक्त कल्प 

त्वचारोग और अस्थिक्षय जन्य उपरोक्त अवस्था मे उपयोगी 

6. गुडूची कल्प 

अस्थिक्षय जन्य उपरोक्त अवस्था, व्हेरिकोज व्हेन्स AVN DVT व केशवर्धन मेध्य उपयोगी 

7. यष्टी काश्मरी कल्प

गर्भ वृद्धी बालक वृद्धि आययूजीआर IUGR बालकोंका कुपोषण इसमे उपयोगी AMH क्षयमे उपयोगी

8. दूर्वाकल्प

दाह पित्त मे उपयोगी 

9. यष्टी सारिवा कल्प

संक्षोभ irritation उद्वेग उपयोगी, 

कॅन्सर के केमोथेरपी रेडिएशन सर्जरी के पश्चात धातू बल की पुनःप्राप्ती के लिये उपयोगी 

कॅन्सर के सर्जरी केमोथेरेपी रेडिएशन इन उपचार पूर्व, उपचार समकालीन तथा उपचार पश्चात अवस्था मे इस कल्प के उपयोग के सविस्तर ज्ञान के लिये इस 👇🏼 लिंक का उपयोग करे

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/07/blog-post_6.html

10. रसोन आर्द्रक कल्प : 

सभी प्रकार के वातकफजन्य तथा पीनस शिरोरोग गौरव सायनुसाईटिस ओटायटिस कान मे आवाज आना कान मे पूय/pus होना कर्णकण्डू टॉन्सिल्स ॲडेनॉइड्स ॲलर्जीक ह्रायनायटिस हृल्लास नाॅशिया ॲनोरेक्झिया श्वास कास कफ पूर्ण उर क्षुधानाश में उपयोगी


https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/11/blog-post_25.html


वैद्य हृषीकेश म्हेत्रे

आयुर्वेद क्लिनिक्स @ पुणे & नाशिक 

9422016871 

www.YouTube.com/MhetreAyurved/

www.MhetreAyurveda.com 


Articles about a few medicines that we manufacture

👇🏼

पूर्वप्रकाशित 

अन्य लेखों की 

ऑनलाईन लिंक👇🏼


✍️🏼


The BOSS !! VachaaHaridraadi Gana 7dha Balaadhaana Tablets 

👇🏼

https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/11/blog-post.html

👆🏼

वचाहरिद्रादि गण सप्तधा बलाधान टॅबलेट : डायबेटिस टाईप टू तथा अन्य भी संतर्पणजन्य रोगों का सर्वार्थसिद्धिसाधक सर्वोत्तम औषध


✍️🏼


कल्प'शेखर' भूनिंबादि एवं शाखाकोष्ठगति, छर्दि वेग रोध तथा ॲलर्जी

👇🏼

https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/12/blog-post.html


✍️🏼


वेदनाशामक आयुर्वेदीय पेन रिलिव्हर टॅबलेट : झटपट रिझल्ट, इन्स्टंट परिणाम

👇🏼

https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/10/blog-post.html


✍️🏼


स्थौल्यहर आद्ययोग : यही स्थूलस्य भेषजम् : त्रिफळा अभया मुस्ता गुडूची

👇🏼

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/06/blog-post.html


✍️🏼


क्षीरपाक बनाने की विधि से छुटकारा, अगर शर्करा कल्प को स्वीकारा

👇🏼


https://mhetreayurved.blogspot.com/2023/11/blog-post_25.html


✍️🏼


ऑलिगो एस्थिनो स्पर्मिया oligo astheno spermia और द्रुत विलंबित गो सप्तधा बलाधान टॅबलेट

👇🏼

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/06/oligo-astheno-spermia.html


✍️🏼

All articles on our MhetreAyurveda blog

👇🏼

https://mhetreayurved.blogspot.com/



Monday, 5 August 2024

New Samhitaa... Yugaanuroopa Samhitaa

 New Samhitaa... Yugaanuroopa Samhitaa 


Whatever is not demonstrable & Whatever is not dispensible ~should~ *MUST* be discarded ... not even be mentioned to avoid the possibility of confusion 


Non demonstrable...

Atma, manas, ojas, dhatvagni, aam, srotas, rasa dhatu ... kloma and many more


Non dispensible... vaataa pitta kapha & their 5 types, aakaasha 


Adhikarana baahya out of scope of Ayurveda...

Aatma manas yoga rasashastra naadeepareekshaa


Irrelevant sthanas ... sootra vimaana indriya kalpa & siddha ... contents of these sthanas should be placed in Purusha/Shaareera, Vyadhi/Roga or Aushadha/Chikitsa Sthaanam as per the reference to/of subject 


Only 3 sthanas necessary

Purusha, Vyadhi and Aushadha.


Purusha/Shaareera : anatomy & physiology / rachana & kriya there is nothing about physiology/kriya in shaareera sthaana (except few referencesin ch shaa 6 and A Hr Shaa 3)


ROGA sthaana should be as per vruddhi and kshaya of 4 mahabhootas respectively excluding aakaasha ... Roga sthaana should include/identify/evaluate new anukta diseases as per this criterion 


Aushadha Sthaanam

It shoul be in concurrence with Roga Sthaana 


Traditional jvara raktapitta or jvara atisaara order should be changed. Because most of the Rogas described in Ayurveda are lakshanas ... not actually diseases.


तस्योपयोगोऽभिहितश्चिकित्सां प्रति सर्वदा । 

भूतेभ्यो हि परं यस्मान्नास्ति चिन्ता चिकित्सिते ।।१३।। 


Reminding this as basic decoding system, all the NEW Anukta Hetu & Lakshana Skandha should be derived in Roga Sthaanam


& accordingly, for these changed new hetuskandha and new lakshana skandha ...

*New Aushadha Skandha Should be designed*... by discussing and including many new formulae from current era successful Vaidya like Mahadevan Jamadagni Tapankumar Bendale


Though charaka is said great in chikitsita ... today no one follows his chikitsa sootra jvara in real practice ... it is true about all the diseases.


Charaka's chikitsa generally begins with snehapana shodhana ... which is seldom followed by the majority of current era practitioners. 

All are generally giving random/self-designed combo of single herb+samhitokta kalpa+bhasma+multicontent rasakalpa ... all mixed/put together in a paper pack (pudi) ... that too generally hand dispensed without identical exactly similar dose in each pudi. No measurement. No protocol. No SOP. Everyone has its own meri marji ... no discipline/no guidelines for dose and duration


So nothing from previous Chikitsaa sthaana is followed actually in real practice 


Hence new Aushadha/chikitsa Sthaanam as per the CONTENTS of Roga Sthaanam is to be written according to yuganurupa sandarbha and NEED


Things which really exist ~should~ *MUST* be included newly 

Pancreas thyroid hormones ovaries prostate , pakvaashaya is not only below naabhi ... but it surrounds nabhi from all 3 sides except from below brain nervous system ~यकृत~ liver 4 chambers of heart ~हृदय~ ...and true functions of these all


Even though we create new Samhita, still all previously existing Samhitaa will be existing and remain accessible FOR EVER & For Everyone, in future also


So let conceive and deliver really NEW... not just refurbished 


IF Nothing from previous existing Samhitas is to be kept away, and all contents of previous Samhitaa is to COMPILED only ... then far more smarter job is done by Vaagbhata as his time tested AshtanagaHrudayam. It is Enough & Sufficient.


Ayurveda bhaishajya kalpana has base of kvaatha ... all the kalpas are derivatives of kvaatha.


Bhaishajya kalpana of rasashastra is COMPLETELY different and entirely MISMATCHING with kvaatha based Ayurveda bhaishajya kalpana 


Hence, Rasashastra must be identified as a separate independent non-Ayurveda medicine system as that of other currently identified so called ISMs


Much more to say ...


But this is enough to indicate the direction in which NEW Samhita should be...


And New Samhita, if it is for students and practitioners of current time, then New Samhita must be written in PROSE AND ENGLISH LANGUAGE