*क्षीरपाक बनाने की विधि से छुटकारा, अगर शर्करा कल्प को स्वीकारा*
*Copyright © वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे.
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क्षीरपाक बहुत ही प्रभाव शाली परिणामकारक औषधी कल्पना है.
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शालिपर्णी क्षीरपाक
चरक संहिता मे वातव्याधि के चिकित्सामें हृदयगत वात में *शालिपर्णी क्षीरपाक* तथा
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गर्भ शोष और बाल शोष में *यष्टी काश्मरी सिद्ध क्षीरपाक* इनका उल्लेख आया है.
वैसे भी कई अन्यान्य संदर्भों में क्षीरपाक कल्पना का प्रयोग होता है.
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अस्थिक्षय मे भी *तिक्त क्षीरपाक कल्पना* हि है.
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किंतु क्षीरपाक बनाना , प्रॅक्टिकली उतना सुकर नही होता है.
यह टाईम कन्झ्युमिंग भी है और थोडा टिडियस tidious भी है.
अगर पानी थोडा कम उड जाये , तो दूध डायल्यूट हो जाता है.
बाष्पीभवन अगर ज्यादा हो जाये, तो दूध की मात्रा कम हो जाती है.
तो यह प्रोपाॅर्शनेट क्षीरपाक बनाना और उसके लिए पर्याप्त समय और अवधान देना, इतना सुकर नही है.
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और तो और, क्षीरपाक यह भैषज्य कल्पना; आसव अरिष्ट तैल घृत लेह टॅबलेट गुग्गुल की तरह… या प्रिझर्वेटिव्ह डालकर, पॅक करके, ट्रान्सपोर्ट करके, मार्केट करना, यह भी संभव नही है.
क्षीरपाक यह पंचविध कल्पनाओं जैसी हि *सद्य प्रयोग* करने की कल्पना है.
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क्षीरपाक की परिणामकारकता अत्यंत प्रभावशाली है. जैसे कि, मैंने उपर उल्लेख किया, ऐसे कई हृदयरोग के बलक्षीण पेशंट्स मे इसका, मात्र एक सप्ताह मे हि प्रभाव/परिणाम दिखाई देता है ... और तात्कालिक उपशम तो दो तीन दिन मे ही आ जाता है.
LVEF केवल बीस परसेंट (20%) होने के बावजूद, जो दादीमां अस्सी (80) साल के वय में, चार कदम भी चलते हुए, सांस फूल रही थी, वह मात्र तीन-चार दिन बाद सौ मीटर चल के जा सकती है और डेढ महीने के बाद एक किलोमीटर तक चलती है , वो भी अपनी युवा नाती से भी अधिक गती से!!! किंतु आश्चर्य की बात यह है कि, अगर फिरसे टूडी इको 2D ECHO रिपीट किया जाये, तो एल व्ही इ एफ LVEF जैसे का तैसे, 20% हि दिखाई देता है!!! तो क्लिनिकली शीघ्र इम्प्रूवमेंट, यह क्षीरपाक से इस प्रकार के अनेक पेशंट मे अनुभव की जा सकती है.
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तिक्त क्षीरपाक से कई अस्थिक्षय के पेशंट [जैसे कि एल5एस1 (L5-S1) डीजनरेशन स्लिप डिस्क डिस्क बल्ज AVN सायटिका स्पाॅण्डिलाॅसिस knee degeneration ACL osteoarthritis] में लाभ होता हुआ, सभी ने अनुभव किया होता है. यह लाभ, *बस्ति दिये बिना हि*, मात्र एक मंडल अर्थात 42 दिन अर्थात सप्ताह मे ही प्राप्त होता है. यष्टी गुडूची क्षीरपाक या पंचतिक्त क्षीरपाक से ऐसे शीघ्र परिणाम प्राप्त हो सकते है, ऐसा पिछले पच्चीस वर्षों का अनुभव है और ये परिणाम no recurrence अर्थात अपुनर्भव , इस प्रकार के होते है.
पिछले पच्चीस सालो मे ऐसे 1800+ से ज्यादा केसेस का अनुभव है, जिन मे से कईयों की सर्जिकल ऑपरेशन टल चुके है और जो पेशंट बीस बाईस साल पहले ठीक हुये है, वो आज भी वैसे हि ठीक है और आज भी वो पेशंट, अन्य दूसरे नये पेशंट को निरंतर रेफर करते रहते है.
जो पेशंट बेड पर पडे हुए है , जिनका अपान क्षेत्र का व्यवहार (शौच और मूत्र) बेड पर हि, अन्य व्यक्तियों के सहाय्यता से चल रहा है, वे भी बयालीस (42) दिन या ज्यादा से ज्यादा चौरासी (84) दिन मे (6 to 12 weeks), अपने पांव पर चलकर, एक दो मंजिला स्टेप चढकर उतर कर आते है ... और अपने दैनंदिन सारे व्यवहार सुकरता से पूर्ववत करने लगते है. ऐसे अनेकों पेशंट के अनुभव हमारे पास कई सालों से आ रहे.
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तथा जिन बच्चों की स्वास्थ्य की कुछ ना कुछ कंप्लेंट रहती है, या भारवृद्धी नही होती, दुबलापन होता है, मांसक्षय होता है एवं च आय यु जी आर IUGR गर्भ शोष है, ऐसी अवस्था मे *यष्टी काश्मरी क्षीरपाक* अत्यंत अल्पकाल मे अपेक्षित लाभ देता है. चार या छ सप्ताह के बाद की जाने वाली अगली सोनोग्राफी मे ही अपेक्षित रिझल्ट दिखाई देते है.
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इतना हि नही, ऐसे दुष्कर अवस्था मे भी गुडूची क्षीरपाक अत्यंत सुखकारक काम करता है. अगर सातवे महिने मे आठवे महिने मे गर्भवती के कुक्षि में गर्भ की मूव्हमेंट quickening स्थिर हो जाये / अल्प/कम/बंद हो जाये, ऐसा माता को प्रतीत हो , तो भी *यष्टी सारिवा कल्प / यष्टी काश्मरी कल्प* मात्र 24 घंटे मे, फिर से गर्भस्थ शिशु की अंतर्गत मूवमेंट को पुन्हा शुरू कर देते है, ऐसा अनुभव कई गर्भिणियों को हमारे पेशंट के रूप मे प्राप्त है. इसमे से एक गर्भिणी की माता स्वयं गायनॅकॉलॉजिस्ट है, जिसका प्रसूती का हॉस्पिटल है!
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Placental insufficiency जैसी गर्भाशयांतर्गत स्थिती में भी क्षीरपाक जैसे मृदू किंतु वीर्यवान कल्पना से शीघ्र ट्रीट करके अपेक्षित अनुकूल परिणाम प्राप्त होते है, क्योंकि गर्भिणी यह मृदू औषध से ट्रीट करना आवश्यक है, ऐसे शास्त्र कहता है.
निम्नलिखित फेसबुक लिंक पर देखे , इसके बीटी एटी रिपोर्ट (BT & AT Reports) या प्लेसेंटल इन्सफिशियन्सी (Placental insufficiency) ऐसा फेसबुक सर्च करके posts में MhetreAyurved की पोस्ट देखे
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid0iTj1xCY85Qr2xXnSoTiVywSaArPCxDB9EMiY9RLaJY66Amv2AT1JuLHzuax4272Zl&id=100002080068773&mibextid=lOuIew
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भग्न मे भी *यष्टी क्षीरपाक* लाक्षा के साथ या यष्टी लाक्षा टॅबलेट के साथ बहुत परिणामदायक होता है
भग्न मे *यष्टी क्षीरपाक* के साथ हि, *यष्टी गुडूची क्षीरपाक* या *केवल गुडूची क्षीरपाक* या *पंचतिक्त क्षीरपाक* ये सभी यथा अवस्था अत्यंत लाभदायक सिद्ध होते है
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किंतु जैसे पहले कहा, ऐसे उचित मात्रा मे, क्षीर का शेष रहकर, अचूक समय पर हि, अग्नि देना बंद करके, पूरा पानी उड जाये व केवल औषधी द्रव्य के एक्स्ट्रॅक्ट वाला दूध हि पूर्णतः शेष रहे, यह एक कलात्मक, टेक्निकल तथा समय व्ययकारक विधी है.
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इसलिये "क्षीरपाक" इस अमृततुल्य औषधी कल्पना के लाभ तो प्राप्त हो , किंतु उसके लिए जो दुष्कर विधी है और उसमे ट्रान्सपोर्टेबिलिटी नही है; इन दोषों को एलिमिनेट करते हुए, एक नये विचार के साथ यह लेख लिख रहे है, कि जिस प्रमाण मे औषधी का एक्स्ट्रॅक्ट क्षीरपाक मे 100 ml दुग्ध मे आता है, उतने ही प्लेन / सामान्य दूध मे, अगर जिस द्रव्य का क्षीरपाक बनाना है, उसका शर्करा कल्प (जैसे शतावरी कल्प बनता है, वैसे) उचित मात्रा मे (ग्राम या व्हॉल्युम की यथायोग्य proportionate परिमाण मे) मिला दिया जाये, तो उतने हि द्रव्य का एक्स्ट्रॅक्ट दुग्ध मे आयेगा, इसकी व्यवस्था कर सकते है.
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यह एक फार्मास्युटिकल कॅल्क्युलेशन है, जिसमे क्षीरपाक से (1:16:16 या 1:8:32 दोनो विकल्पों से करके) कितना औषधी एक्स्ट्रॅक्ट आता है, उसी हिसाब से उसी प्रपोर्शन से, द्रव्य : पानी : शर्करा की मात्रा का उचित गणन/ संगणन / कॉम्प्युटेशन/ कॅल्क्युलेशन /गणित करके, यह निर्धारित किया गया है ; कि 100ml दुग्ध मे अगर पाच ग्राम 5gms का औषधी कल्प, शर्करा कल्प granules या क्यूब के रूप मे उसे मिला दिया जाये, तो उतनी ही क्षीरपाक की प्राप्ती, औषधी वीर्य के साथ, हो जायेगी.
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आज इस प्रकार से शालिपर्णी, गुडूची, गुडूची यष्टी, शतावरी गोक्षुर, यष्टी सारिवा, पंचतिक्त इनके संगणकीकृत computational प्रपोर्शन के साथ शर्कराकल्प granules उपलब्ध किये है.
ये कोई, फिर से, मेरी इन्वेंशन डिस्कवरी रिसर्च पेटंट नही है. इन शर्करा कल्पोंका भी महाराष्ट्र एफडीआय में म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda द्वारा रजिस्ट्रेशन किया हुआ है. आप भी इस प्रकार से, उचित मात्रा मे, संगणन करके computation करके, लिए हुये, उचित मात्रा मे शर्करा कल्प का निर्माण कर सकते है. पानी मे विद्राव्य वॉटर सोल्युबल वनस्पती एक्स्ट्रॅक्ट का स्थानांतरण/ ट्रान्सफॉर्मशन या ट्रान्सपोर्टेशन "शर्करा पर" करके, उसको ग्रॅन्युलस के रूप मे , अगर तैयार किया जाये , तो वह आसानी से कोष्ण दुग्ध मे विलयन होकर, हमे शीघ्र क्षीरपाक / इन्स्टंट क्षीरपाक प्राप्त हो सकता है, जिससे की पेशंट को ये सुविधा जनक हो और वैद्य के लिए ये ट्रान्सपोर्टेबल भी हो और इसके साथ ही या सारा समय बचाने वाला तथा इकॉनोमिकल भी है और सर्वतो मुख्य अपेक्षित परिणामकारक लाभदायक भी है!
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पंचतिक्त कल्प, गुडूची कल्प और गुडूची यष्टी कल्प यह तीनो कल्प तिक्तक्षीरपाक के रूप मे उपयोगी है. तिक्तक्षीरपाक अस्थिक्षमे उल्लेखित है, साथ हि अगर हम भग्न अधिकार देखेंगे, तो मधुर औषधसिद्धं *लाक्षा युतम्*, इस तरह से संदर्भ आता है. इसलिये यष्टी के साथ गुडूची को यहां पर समाविष्ट किया है, जिससे की मधुर और तिक्त दोनो रसों का क्षीरपाक यहां पर प्राप्त हो सके. और भी अगर आगे जाना है, तो *पंचतिक्त कल्प* अधिक उपयोगी होता है. मन्या कटी जानु शूल, तथा अस्थिक्षयात्मक संप्राप्ति के ए सी एल ACL, एव्हीएन, ऑस्टिओ अर्थराइटिस, सायटिका, एल फाईव्ह एस वन डीजनरेशन L5-S1, लंबर &/or सर्वाइकल स्पोंडीलोसिस... इन सभी मे इन तीनों में से कोई भी एक क्षीरपाक यष्टी लाक्षा टॅबलेट के साथ अपेक्षित परिणाम देता है.
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पंचतिक्त कल्प का उपयोग अस्थिभग्न के साथ साथ, त्वचारोगो मे भी कार्यकारी है! यह शर्करा कल्प नाम की अभिनव कल्पना अगर दुग्ध के साथ या गरम पानी के साथ दी जाये, तो किसी भी औषध को बालक के लिए लेना सुग्राह्य होगा. यह शर्करा कल्प होने के कारण, जैसे दुग्ध या पानी के साथ दे सकते है, वैसे हि इस शर्कराकल्प भेषज को चाय कॉफी के साथ तथा रोटी पर ग्रॅन्यूल्स फैला कर, घी लगाकर रोल बनाकर भी दे सकते है. तो इसकी "*बहुकल्पना* बहुगुणता संपन्नता और योग्यता", इसके साथ साथ हि इकॉनाॅमिकली अफोर्डेबल है.
अगर यह शर्करा कल्प की संकल्पना, बहुत सारे लोगोंने अनुकरण की, अनुसरण की, उपयोग में लायी तो ... और भी कई योगो के शर्कराकल्प Granules, इस प्रकार से प्रस्तुत करने का संकल्प है. जिसमे वासागुडूच्यादि, भूनिंबादि, रास्नादि, रास्नापंचक, रास्नासप्तक, महातिक्तक, महाकल्याणक, ब्राह्मी, पंचगव्य, दाडिमादि, नागरादि, पुनर्नवादि, पुनर्नवाष्टक, अभयामुस्तात्रिफलागुडूची, वचाहरिद्रादि गण, रोध्रादि गण, आरग्वधादिगण, मुस्तादि गण, सुरसादि गण, सारिवादि गण ... ये सारे आगामी संकल्पित शर्करा कल्प आयुर्वेद के सेवा मे शीघ्र हि उपस्थित होंगे
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Sir, but what about diabetic patients, Most of them are diabetic and how can we incorporate sharkara kalpana to them?
ReplyDeleteTime consuming but always prefer authentic medicines
ReplyDelete👌🏻🙏🏻👍🏻
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