Friday, 12 January 2024

ओज : एक बोझ ... नि'र्दोष' आयुर्वेद Nir'Dosha' Ayurveda भाग : 1 एक ( Part 1 )

*ओज : एक बोझ*

नि'र्दोष' आयुर्वेद Nir'Dosha' Ayurveda ... भाग : 1 एक ( Part 1 )

Copyright कॉपीराइट ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे.

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✨🌟💫

Truth does not mind being questioned, 

but

Lie does not like being challenged.

तन्त्रान्तरे तु ओजःशब्देन रसोऽप्युच्यते,1️⃣ जीवशोणितमप्योजःशब्देनामनन्ति केचित्,2️⃣ ऊष्माणमप्योजःशब्देनापरे वदन्ति।।3️⃣

धातूनां तेजसि4️⃣ रसे तथा जीवितशोणिते। 

श्लेष्मणि प्राकृते5️⃣ वैद्यैरोजःशब्दः प्रकीर्तितः॥ 

बल : सुश्रुतोक्त 6️⃣

पर ओज, अपर ओज : टीकाकार मत 7️⃣


ओज एक ऐसी 'ऑब्जेक्टिव्ह एन्टिटी' है, कि जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण से अर्थात इंद्रिय गम्य ऐसे ...


1. रस , 

2. गंध, 

3. वर्ण 


...एवं च वस्तुनिष्ठ रूप में ऑब्जेक्टिव्ह पॅरामीटर के रूप में, 


4. इसका अंजली प्रमाण, यह भी शास्त्र मे लिखा हुआ है, 


इतना ही नही ... 


5. तो गर्भिणी अवस्था मे आठवे मास मे माता और गर्भस्थ शिशु इनमे अल्टरनेट काल मे स्थानांतरित होता है, ऐसे भी लिखा गया है 

... और तो और , 


6. ओज के क्षय के लक्षण, 

7. ओज के क्षय के हेतु, 

8. इस ओज के वृद्धि के लक्षण और 

9. ओजक्षय की चिकित्सा अर्थात ओजो वृद्धि के उपाय लिखे है. 


10. सुश्रुत ने तो और आगे जाकर, ओज (अर्थात बल के) क्षय के तीन उत्तरोत्तर गंभीर, हानिकारक सोपान बताये है : व्यापद विस्रंस क्षय , बताये है. 


11. फिर इस ओज को सोमात्मक अर्थात उसका महाभौतिक संघटन भी बताया है.


🌟🌟🌟

ऐसी स्थिति होने पर भी, इतना वस्तुनिष्ठ वर्णन ऑब्जेक्टिव्ह डिस्क्रिप्शन उपलब्ध होने के बाद भी ... 

*इस ओज की कोई भी प्रत्यक्ष गम्य परीक्षा / गणना / आयडेंटिफिकेशन, यह आज के अतिसूक्ष्म परीक्षण आकलन दर्शन के काल मे भी 'असंभव है'.*


जो मायक्रोग्राम mcg मे = एक मिलिग्राम के भी हजारवे भाग के गणना योग्य प्रमाण मे, traces amount में, जो शरीर मे उपस्थित है, ऐसे भी शारीरद्रव्यों का , शरीरस्थ भाव पदार्थों का, आयडेंटिफिकेशन , उनका गणन, उनकी वृद्धिक्षय के लक्षण ... और साक्षात उसी द्रव्य का कृतक आर्टिफिशल रूप मे निर्माण करके, उसका गणितीय मात्रा मे कॅल्क्युलेटेड डोस, शरीर मे प्रवेश कराने, पर उन लक्षणों को ठीक करना संभव है, जैसे की थायरॉईड इन्सुलिन विटामिन डी बी ट्वेल्व ...


तो ऐसी स्थिती मे, जो ओज ...

अर्धांजली अर्थात कम से कम 80ml, इतनी बडी मात्रा मे, शरीर मे उपस्थित है, 

जिसका पीत लोहित या घृत समान वर्ण है, 

जिसका लाजा के समान गंध है, 

जिसका मधु के समान रस है ... 

इतना सारा जिसके बारे में, वस्तुनिष्ठ ऑब्जेक्टिव्ह प्रत्यक्ष गम्य लिखा है ... 

वो हमे कभी भी आयडेंटिफाय नही होता है !!! 


और ना हि उसका कृतक रूप मे आर्टिफिशियल रूप मे केमिस्ट्री मे लॅब मे निर्माण भी संभव है.


लोहित पीत घृत समान वर्ण, मधु रस, लाजगंध 80ml मात्रा ... इतना सारा *प्रत्यक्ष गम्य वर्णन होने पर भी* ओज को जो आयडेंटिफाय नही कर सकते है, वे आयुर्वेद के लोग (= हम सभी) कहते है कि, जो अमूर्त अणु मन है , उस की भी हम चिकित्सा करते हैं 🙄😇🙃🤣😆


दूसरा ...

मधुमेह नाम का एक प्रमेह का प्रकार है, अंतिम है ... जिसमे, इस मधुमेह नाम के प्रकार में , शरीर से मूत्र के साथ , ओज का निष्कासन होता है. 👇🏼

तैः आवृतगतिः वायुः ओज आदाय गच्छति ।

यदा बस्तिं तदा कृच्छ्रो मधुमेहः प्रवर्तते

तो चलो ठीक है भाई , 

आपको शरीर के अंदर संचार्यमाण, सभी धातुओं मे संमीलित, ऐसे ओज का आयडेंटिफिकेशन संभव नही है ...


तो कम से कम, जो मूत्र के साथ, शरीर के बाहर उत्सर्जित हो रहा है, ऐसे मधुमेह के पेशंट के मूत्र में तो, वह ओज आयडेंटिफाय करो ...


अगर, 

आप मधुमेह की चिकित्सा करते हो , 

मधुमेह नाम का निदान लिखते हो, 

मधुमेह पर लेक्चर देते हो, 

मधुमेह पर सेमिनार वेबिनार आयोजित करते हो ... तो,

इतने सारे इससे संबंधित ; वक्ता शिक्षक प्रॅक्टिशनर्स जो भी है, इनमे से, किसी एक ने तो, कम से कम एक पेशंट के मूत्र मे भी तो, *ओज देखा हुआ होना चाहिये ना !?*


और अगर नही देखा है ... तो,

आप शास्त्र के प्रति प्रतारणा वंचना कर रहे हो ...


क्योंकि मूत्र मे ओज को देखे बिना हि,

मधुमेह निदान चिकित्सा लेक्चर सेमिनार होते जा रहे है.


मूत्र में ओज का होना, इसके अलावा, कोई भी अन्य लक्षण शास्त्र में, मधुमेह का उल्लेखित नहीं है,

इसी कारण से, मधुमेह के नाम पर जो भी पठण, लेखन, टीचिंग, निदान, चिकित्सा, सेमिनार, थिसिस, रिसर्च पेपर ये सब चलता है, 

तो ये सब दुर्व्यवहार, शास्त्र विरुद्ध और प्रत्यक्ष प्रमाण विरुद्ध, ऐसे *उभयथा असिद्ध* है ,

क्यूंकि, *'किस्सी ने भी' मूत्र में कभ्भी भी ओज को देखा हि नहीं है.*


तो क्या आपको ऐसे लगता नहीं कि,

उपरोक्त दो मुद्दों के अनुसार ... 

ओज यह एक वाग्वस्तुमात्र अनिर्देश्य तर्क्य कल्पनारम्य असिद्ध भ्रांतीमूलक भ्रामक assumed considered hypothetical fictional fantasy अस्तित्वहीन एंटिटी है???? 

*इसीलिए ओज का आयुर्वेद शास्त्र से निष्कासन कर देना चाहिए* ... 


और तो और, जिसका अर्धांजली प्रमाण बताया, लाजगंध मधुर रस लोहित पीत घृतमान वर्ण बताया , जिसके आपको इतने सारे डेरीवेटीव्ह्स मिलते है कि आश्चर्य लगना चाहिये कि जिस ओज को सोमात्मक कहा है ... उसी को उष्मा भी कहते है, जीवशोणित भी कहते है, धातुओं का तेज भी कहते है ... अरे , उष्मा तेज शोणित ये क्या सोमात्मक भाव पदार्थ है??? ये तो साक्षात अग्निप्रधान है , तो ये ओज = सोमात्मक कैसे हो सकते है??? धातुओं का तेज = धातु सार ऐसे समझा, तो भी ऊष्मा व जीवशोणित के ओजोरूप = सोमात्मक होने का समाधान / justification संभव नहीं है.


कुल मिलाकर 7 संदर्भ ऐसे है, जो अलग अलग एन्टिटिज बताते है , एक हि ओज के नाम पर!!!


एक प्रत्यक्ष गम्य शारीर भाव पदार्थ को इतना blurry hazy cloudy बनाने की आवश्यकता क्या है??


और इसके आगे जाकर, *यन्नाशे नियतं नाशो* ऐसा जिसका निश्चित स्वरूप है, जिसका ऐसे व्यतिरेक महत्त्व बताया गया है, तो वह कौन सी ऐसी वस्तु है कि, जिसके नाश से मृत्यू होती है ... इतनी महत्त्वपूर्ण वस्तु इतनी इफेक्टिव्ह वस्तु, जो जीवन और मृत्यू इनके बीच का भेद है फरक है अंतर है ... उसको ढूंढ नही पाते है ???


गर्भिणी अवस्था मे आठवे मास मे माता और गर्भस्थ शिशु इनमे अल्टरनेट काल मे स्थानांतरित होता है ... किंतु प्रत्यक्ष व्यवहार मे आठवे क्या... छठे सातवे इन मासों भी में जन्म लेने वाले शिशु निश्चित रूप से जीवित रहते हि है.


अगर शरीर भाव प्रत्यक्ष नही है, तो और क्या प्रत्यक्ष हो सकता है??? 


और यदि आज तक, इस ओजकी आयडेंटिटी सिद्ध निश्चित प्रस्थापित न होने से, आयुर्वेद के शिक्षण एवं चिकित्सकीय व्यवहार में कोई भी फरक नही पडता है, तो इसका सुनिश्चित अर्थ यह है की, इस ओज नामक वस्तु का कोई महत्त्व/ उपयोग/ आवश्यकता यथार्थ मे है हि नहीं. व्यवहार में अगर इस ओज का कोई उपयोग होता, तो उसकी आयडेंटिटी निश्चित करना व्यवहार के लिए अत्यावश्यक हो जाता ... लेकिन इतने सदियों से उसकी आयडेंटिटी के बिना हि, केवल कल्पनारम्य वाग्वस्तुमात्र चर्चा से हि, व्यवहार चल रहा है ... इसका सरल व स्पष्ट अर्थ यह है कि, यह ओज केवल आकाशपुष्प है गगनारविंद है स्वरूपासिद्ध है अस्तित्वहीन है


तो कुल मिलाकर, वो जो होता हि नही है, एक ढकोसला है, ये केवल चर्चा का सेमिनार का सिखाने का पढाने का लिखने का विषय है, ये वस्तुस्थिती मे अस्तित्व की चीज है हि नही... तो इसको हम खुले मनसे कब स्वीकार करेंगे??? कब तक फॉल्स नेरेटिव्ह हमे जो हमारे पूर्वजोंने पढाया उसको रटते रहेंगे? ... और आने वाले निरागस इनोसंट जिज्ञासू उत्सुक सक्षम युवा पिढी को भी, हम ऐसेही ये अस्तित्वहीन निरुपयोगी बाते रटाते पढाते मनाते रहेंगे???


क्या यह शास्त्र की प्रतारणा नहीं है? क्या ये स्वयं की प्रति वंचना नही है? क्या आने वाली पिढी की बुद्धी के प्रति दिग्भ्रांति नही है???


अच्छा चलो, आपने किसी पेशंट के हेतु लक्षण ओजक्षय के है ऐसा निदान कर भी लिया, तो क्या ऐसा नया तीर मार लिया?? दोगे क्या आप उसको?? उसको ओजोवर्धक अर्थात क्या दोगे? जीवनीय गण क्षीर मांसरस इत्यादि दोगे. अर्थात क्या दोगे, संतर्पण = जलमहाभूत पृथ्वी महाभूत = अग्नि वायु आकाश को कम करोगे , अपतर्पण को रोकोगे ... तो भौमापम् और इतरत् ... पृथ्वी जल और अग्नि वायु आकाश इनके परे आप गये हि कहां? ... तो ओज कहने का उपयोग हि क्या है , प्रयोजन क्या है , उद्देश्य क्या है , फल क्या है??? कुछ भी नही है !!!


वातवृद्धी कहो, बलक्षय कहो, कफक्षय कहो, अपतर्पण कहो, अग्नि वायु आकाश की वृद्धि कहो ... सारा कुल मिला के एक हि है ना???


अब और आगे देखिये ...

विष्णुसहस्रनाम मे विष्णू के हजार नाम है,

वैसे है ये ओज ... 


या फिर 

श्याम तेरे कितने नाम 


या फिर 

जैसे हमने गाना नीचे लिखा है कि, 

प्रेमी आशिक़ आवारा

पागल मजनू दीवाना

मुहोब्बत ने ये नाम हमको दिए हैं

तुम्हे जो पसंद हो अजी फर्माना ...


ऐसी हि स्थिती है इस ओज की


क्या है... धातु का तेज भी है , प्राकृत कफ भी है , बल भी है, जीवशोणित भी है ... 


अरे वा!! कुछ तो एक बताओ यार ... 


और इतना सारा बताने पर भी आपको दिखाने को नही आता है, डेमोन्स्ट्रेट करने को नही आता है ...


तो क्या फायदा ऐसे वाग्वस्तुमात्र मात्र चीजों के व्याख्यान का ???


निकाल दो यार , हटा दो ...

बच्चों की बुद्धि पर का बोझ कम हो जाएगा ... सिलॅबस के पॉइंट कम हो जायेंगे!!! 


ये ओज वगैरा सारी, हवा में कही हुई बाते, कही सुनी चीजे, कपोल कल्पित है ये सब ... 


इतने सारे अनिर्देश्य वाग्वस्तुमात्र कल्पनारम्य चीजों की आवश्यकता हि क्या है??? 


जो सदियों से हम ढो रहे है, उसको सर से उतारकर फेक दो !!! 


कोई आवश्यकता नही ओज को मानने की!!!


ना तो पढने की पढाने की लिखने की, ना तो वह निदान चिकित्सा का भाग है, और ना ही शास्त्र के किसी उपयोग का !!! 


सोचकर देखिये तो इस दिशा में, एक बार ...


हां, ऐसा हो सकता है कि, इस लेख की भाषा... आपकी भावना भक्ति को, आपके कोमल मन को, नाजूक हृदय को, आघात करे व्यथित करे, आप इमोशनली हर्ट हो जाये, आपकी श्रद्धा भंग हो जाये!!! यार, शास्त्र मे भक्ति श्रद्धा इन बातों का क्या उपयोग है ???


आईये, सत्य को स्वीकारते है ...

और असत्य को नाकारते है !!!


चलिये, ओज के बाद ... मन योग नाडी षट्क्रियाकाल आवरण स्रोतस मर्म रसशास्त्र; इन सभी को भी आयुर्वेद से निष्कासित करना है ...


आज ये पहले ओज को निष्कासित कर दो ... 

*ओज के बोझ* को भूमी पर पटक दो ... 

तो धीरे धीरे, *निर्दोष आयुर्वेद Nir'Dosha' Ayurveda* इस स्थिति तक पहुंचेंगे ...


अनिर्देश्य तर्क्य वाग्वस्तुमात्र अनुमेय

अभ्युपगम असिद्ध कालबाह्य असत् असत्य कल्पनारम्य अनुपयोगि ... जैसे कि,

स्रोतस् रसशास्त्र नाडीपरीक्षा आत्मा योग मन 

मर्म आवरण ओज ... ऐसे और भी बुद्धिप्रामाण्यविरहित विषय है, ऐसे सभी कश्मल अर्थात् दोषों को शास्त्र से निष्कासित करना आवश्यक है ... 

इन दोषों को = कमतरताओं को, ड्रॉबॅक्स को ...शास्त्र से निष्कासित करना आवश्यक है.

इस दृष्टी से, 'दोष' शब्द का 'भावार्थ/लौकिकार्थ' जानना चाहिये ...


और तो और, अगर 'दोष' शब्द का 'शास्त्रीय आयुर्वेदीय परिभाषा में = स्वसंज्ञा' अर्थ ले, तो भी आयुर्वेद में *दोष अर्थात वात पित्त कफ*, इनको भी निष्कासित करना चाहिए.

👆🏼 यह वाक्य अतीव अविश्वसनीय लगेगा कि, मैं ये क्या पढ रहा हूं?🤔😇🙄🙃 


अगर आयुर्वेद में पारिभाषिक दोष अर्थात वात पित्त कफ भी नही होंगे, तो आयुर्वेद कहा से रहेगा?


किंतु जैसे उपर कहा की, आयुर्वेद में आवरण स्रोतस मर्म ऐसे अनेक उपयोगी वाग्वस्तुमात्र दोष = ड्रॉबॅक्स कमतरता है, इस भावार्थ/लौकिकार्थ से भी...


और वैसेही पारिभाषिक अर्थ से, जिसे दोष कहा जाता है ... ये वात पित्त कफ, ये भी ऐसे ही अनिर्देश्य तर्क्य assumed अभ्युपगम कन्सिडरेशन कल्पनारम्य fictional फॅन्टसी भ्रांतीरूप वाग्वस्तुमात्र हि एन्टीटीज है. 


पारिभाषिक/स्वसंज्ञा (terminologically) एवं भावार्थ/लौकिकार्थ ... इन दोनो दृष्टियों से आयुर्वेद को निर्दोष = दोष रहित करना आवश्यक है.


यह इस काल की, समय की आवश्यकता (need of the time) है.


इसी भूमिका से, *नि'र्दोष' आयुर्वेद Nir'Dosha' Ayurveda'* नामक, अनेक लेखों की सिरीज प्रस्तुत करने जा रहे है. इसमे से यह पहला हि लेख आर्टिकल जिसका टायटल शीर्षक *ओज का बोझ* है, इसे प्रस्तुत किया है.


और एक दिन , वात पित्त कफ इन अनिर्देश्य वाग्वस्तुमात्र असिद्ध अस्तित्वहीन कल्पनारम्य धारणाओं को भी आयुर्वेदिक से निरस्त करेंगे ...


वेलकम टू निर्दोष आयुर्वेद Nir'Dosha' Ayurveda!!!

नि'र्दोष' आयुर्वेद में आपका स्वागत है !!!


आवश्यकता है, तो केवल साहस की, बुद्धीप्रामाण्यवाद से सत्य को देखने की , सारासार विचार की, धैर्य की, आक्रमकता की ... हां में हां मत मिलाईये ... सीधी बात, नो बकवास ... जस्ट सिंप्लिकेट इट, डू नॉट कॉम्प्लिकेट इट एनी मोअर प्लीज!!!


श्रीकृष्णाsर्पणमस्तु 🪷🙏🏼🪔


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सांगा ~मुकुंद~ *ओज* कुणी हो पाहिले ? 😬

सांगा मुकुंद कुणी हा पाहिला


https://youtu.be/l16JVtJ5mX0


मधुमेहीच्या मूत्रात कुणालाही ओज दिसले नाही पण लोक मधुमेह ट्रीट करतात 


बालकातले ओज फिरताना कोणालाही दिसले नाही पण सहा महिन्याची बाळंही जगतात😬😬😬

अहो रुपम् अहो ध्वनी 😇🙃😆🤣 ज्या ओजाचा गंध वर्ण रस दिलाय ते इंद्रियगम्य असायला हवं पण ओज सापडत नाही 🤔❓😬


आणि जे मायक्रोग्राम मध्ये असतं त्या थायरॉईडच्या गोळ्या तयार होऊ शकतात 


पण जर तुमचं *ओज* डिटेक्टेबल नाही डिस्पेन्सेबल नाही तर

काय त्याच्यावर चर्चा करून काय उपयोग आहे? Purposeless futile


बोलाची कढी 

बोलाचाच भात 

🍚

जेवा पोटभर


केवढं मोठं ~ओज~ ओझं 

कितना बडा ~ओज~ बोझ

अर्धांजली म्हणजे सुमारे 80मिलि ओज कुठं आहे काय आहे ते सापडत नाही ...


आणि अमूर्त अणु मनाची चिकित्सा करतात म्हणे हे ...

🙆🏻‍♂️🤦🏻‍♂️


अतिशय असिद्ध अवास्तव कल्पना नुसत्या ...

पण ते

*ओझं / ओज* टाकून द्यायला कुण्णीही तयार नाही


✨🌟💫


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धातूनां तेजसि4️⃣ रसे तथा जीवितशोणिते। श्लेष्मणि प्राकृते5️⃣ वैद्यैरोजःशब्दः प्रकीर्तितः॥" इति। 


बल : सुश्रुतोक्त 6️⃣

पर ओज, अपर ओज : टीकाकार मत 7️⃣


एक काहीतरी नक्की सांगा की राव

🤔❓😇


ओज जर सोमात्मक आहे... तर ते उष्मा किंवा शोणित कसं काय असू शकेल⁉️🙃


श्याम तेरे कितने नाम


विष्णुसहस्रनाम


प्रेमी आशिक़ आवारा

पागल मजनू दीवाना

मुहोब्बत ने ये नाम हमको दिए हैं

तुम्हें जो पसंद हो अजी फरमाना

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