*निदाने माधवो नष्टः ... निदाने वाग्भटः श्रेष्ठः*
लेखक : Copyright © वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. म्हेत्रेआयुर्वेद. MhetreAyurveda
आयुर्वेद क्लिनिक्स @ पुणे & नाशिक
मोबाईल नंबर 9422016871
MhetreAyurveda@gmail.com
www.MhetreAyurveda.com
www.YouTube.com/MhetreAyurved/
शीर्षक में उल्लेखित पाद का पूर्ण श्लोक सभी को पता है, ज्ञात है ...
निदाने माधवः श्रेष्ठः
सूत्रस्थाने तु वाग्भटः
शारीरे सुश्रुतः श्रेष्ठः
चरकस्तु चिकित्सिते
किंतु इस श्लोक को हमने थोडा परिवर्तित कर दिया है.
निदाने वाग्भटः श्रेष्ठः
सूत्रस्थाने स एव हि
शारीरे च चिकित्सायां
सर्वस्थानेषु वाग्भटः
इस लेखमाला का यह पहला लेख है, जिसमे निदान मे माधव श्रेष्ठ नही है, यह प्रस्तुत करेंगे.
इस लेखमाला के अंतिम भाग में, वाग्भट केवल सूत्र स्थान में ही नही, अपितु वाग्भट हि सर्व स्थानो में श्रेष्ठ है, ऐसे प्रस्तुत करेंगे
लघुत्रयी में, माधव निदान अर्थात रोगविनिश्चय ग्रंथ का समावेश होता है, क्योंकि ऐसी एक मान्यता है, कि *निदान वर्णन मे माधवकर श्रेष्ठ है. किंतु यह एक रूढीजन्य भ्रम है*. इसमे तथ्य की बात नही है. यह सत्य नही है, कि निदान मे माधव श्रेष्ठ है. क्योंकि रोगविनिश्चय ग्रंथ में माधवकर ने 69 अध्याय लिखे, जिसमे से केवल तीन (3) अध्याय उसने स्वयं लिखे है. जो कि अम्लपित्त शीतपित्त और आमवात, ये हि है. बाकी सभी के सभी अध्याय तो, चरक सुश्रुत या अष्टांगहृदय से, जैसे के तैसे कॉपी करके उठाये है. तो केवल तीन रोगों के निदान लेखन पर, पूरे आयुर्वेद के निदान विषय का श्रेष्ठत्व माधव को अर्पित करना उचित नही है.
69 मे से, 3 अध्याय छोडकर, जो अध्याय उसने बृहत्त्रयी से लिये है, वे भी अधिकरण जानकर नही लिये है. जैसे कि ज्वर यह काय चिकित्सा अधिकार का रोग है, तो ज्वर का अध्याय चरक से या अष्टांगहृदय से लेना उचित होता.
चरक का निदान स्थान का ज्वर अध्याय "केवल गद्य होने के कारण" , माधवकरने अपने रोगविनिश्चय ग्रंथ मे ज्वर का अध्याय, चरक से न लेते हुए, प्रत्यक्षतः ज्वर यह का अध्याय सुश्रुत से लिया है, क्यूंकि वह पद्यमय अर्थात श्लोकबद्ध रचना है. अगर पद्य हि चाहिये, तो अष्टांगहृदय से ज्वर का अध्याय ले सकते थे.
वही स्थिती रक्तपित्त के अध्याय की भी है जो रोगविनिश्चय मे तिसरे क्रमांक पर आता है. रक्तपित्त भी वैसे काय चिकित्सा का अधिकार है, तो उसे चरक निदान से, या पद्य हि चाहिये तो, वाग्भट निदान से लेना चाहिये था. किंतु फिरसे वह सुश्रुत से हि लिया गया है ... और सुश्रुत तो शारीर का या शल्य का अधिकारी है, न कि काय चिकित्सा प्रधान ज्वर या रक्तपित्त जैसे रोगों का!
अर्श जो कि शल्य अधिकार का रोग है, जिसका वर्णन सुश्रुत से हि लेना चाहिये था, किंतु फिरसे सुश्रुत का अध्याय अर्श का "गद्यरूप मे होने के कारण", माधवकर ने रोगविनिश्चय मे अर्श का अध्याय वाग्भट से लिया हुआ है. ऐसे हि प्रायः अधिकार को छोड कर अध्यायों का स्वीकार या ग्रहण किया गया है.
जिसे रोगों के अधिकार के अनुसार अध्यायों का ग्रहण करना चाहिये, (न कि केवल पद्य/श्लोक बद्ध है, इसलिये ग्रहण करना है) यह तक पता नही, उस माधव को *निदाने श्रेष्ठः* कैसे कह सकते है?🤔❓️
अगर माधवकर ने स्वयं लिखे हुए, तीन रोगों के निदान का विचार करे, तो वे भी अशास्त्रीय हि है.
पहला आमवात !
इसकी साध्याऽसाध्यता देखिये.
एकदोषानुगः साध्यो, द्विदोषो याप्य उच्यते |
सर्वदेहचरः शोथः स कृच्छ्रः सान्निपातिकः ||
तो इसमें एक दोषजन्य साध्य है. ये तो सुख साध्य के निकषों के अनुसार (क्रायटेरियानुसार) हमे ज्ञातही है, उसमे कुछ नया नही बताया है.
द्विदोषो याप्य उच्यते , ऐसा कहा है. इस का अर्थ होता है, कि दो दोषों से जनित आमवात "याप्य अर्थात असाध्य" होता है🙄 याप्य यह असाध्य का एक प्रकार है और दूसरा प्रकार जैसे कि सब जानते है, वह प्रत्याख्येय है.
और आश्चर्य की बात है, कि सान्निपातिक अर्थात त्रिदोषजन्य आमवात को कृच्छ्रसाध्य लिखा है अर्थात वह "साध्य है", क्योंकि साध्य के दो प्रकार है सुख साध्य और कृच्छ्रसाध्य.
तो ये सामान्य आयुर्वेदिक सिद्धांत के विरुद्ध है, कि एक दोष जन्य साध्य है, यह ठीक है ... किंतु त्रिदोषजन्य सन्निपातजन्य साध्य है, कृच्छ्र क्यू न हो, किंतु साध्य तो है!!!
और द्विदोषजन्य, जो दोष की संख्या 2 है , अर्थात 3 से कम है, वह याप्य अर्थात असाध्य है!!! 😇🙃
दूसरा, अम्लपित्त निदान माधव ने लिखा !!!
जिसमे वस्तुतः रोग का वर्णन हि नहीं है. अगर आप अम्लपित्त का प्रथम श्लोक देखेंगे, तो जहा पर अम्लपित्त का लक्षण/definition इस श्लोक मे दिया है, वह पर्याप्त नहीं है. वह रोग की परिभाषा नही बताता है. ना हि उसमे दूष्य है , ना हि उसमे स्थान है , ना हि दोषों का प्रकोप है ...
उसने लिखा है
... विदग्धम् ।
पित्तं स्वहेतूपचितं पुरा यत्
तद् अम्लपित्तं प्रवदन्ति सन्तः ॥
इसमे कही पर भी दोष दुष्ट होकर, प्रकुपित होकर, उनका प्रसर होकर, किसी स्थान में संश्रय करके, रोग की व्यक्ती करते है ... ऐसा संप्राप्ति का प्रवास नही दिखता है. अर्थात दोषदुष्टि, संचार, स्थान संश्रय और रोग की निर्वृत्ति यह नहीं दिखता. या तो आप सुश्रुतोक्त षट् क्रिया काल के अनुसार देखे या वाग्भटोक्त संप्राप्ति लक्षण के अनुसार देखे ... अम्लपित्त का माधव करने लिखा हुआ लक्षण/स्वरूप/definition इन दोनो निकषों को पूर्ण नही करता है.
इसमे शब्द आता है ... "उपचितम्".
इस "उपचित" शब्द मे दो भाग है ... उप और चित. चित का अर्थ होता है, चय जिसका "हो गया है" happened completed already.
... पास्टपार्टिसिपल ऑफ (past participle of) चय/चिञ्.
उप का अर्थ होता है, समीप नजीक नददीक करीब पास ... यांनी उप का अर्थ उस अंतिम स्थिती तक नही पहुंचा है , उसके "थोडा पहले" है. Runner Up.
जैसे कि, उपप्राचार्य, अर्थात प्राचार्य नहीं, प्राचार्य से थोडा कम!
उपराष्ट्रपती, अर्थात राष्ट्रपती नहीं, राष्ट्रपती से थोडा कम.
वैसे उपचित का अर्थ उस चय अवस्था से अभी कम है, पूर्वस्थिती में है. अभी जो विदग्धपित्त चय अवस्था से भी कम की स्थिती मे हो, वह प्रकोप प्रसर स्थानसंश्रय ऐसी अवस्थाओ को पार करके, रोग की निर्मिती/निर्वृत्ति/व्यक्ति, अम्लपित्त के रूप मे कब करेगा, कैसे करेगा ? 🤔⁉️ अर्थात उपचित अवस्था के पित्त को अगर अम्लपित्त कहना है, तो वो केवल एक किसी अन्य रोग का आरंभ है, स्वयं आविष्कृततम रोग है हि नही.
यही बात शीतपित्त के बारे मे भी है. शीतपित्त का भी प्रथम श्लोक प्रदुष्ट कफवात ये पित्त के साथ मिलकर अंतर्बाह्य विसर्पण प्रसरण करते है, इतना हि लिखा है. लेकिन किसी दूष्य का या विशिष्ट स्थान का उल्लेख नही हुआ है. इसकी कही पर साध्याऽसाध्यता भी नहीं दी है.
संभवतः अत्यंत विद्वान टीकाकार विजयरक्षित ने माधवकर के रोगविनिश्चय पर टीका लिखी, इस कारण से भी, रोगविनिश्चय को मान्यता मिली होगी.
अगर ठीक से देखा जाये, तो विजयरक्षित की व्युत्पन्न टीका, केवल प्रथम अध्यायमे हि सविस्तर रूप मे उपलब्ध है. बाकी के आगे के अध्यायों मे उतना सविस्तर, वैशिष्ट्यपूर्ण, वैविध्यपूर्ण या विशेष विवरण उपलब्ध नही होता है.
अगर प्रथम अध्याय की ही विशेषता लिखी जाये, तो प्रथम अध्याय का 90% (प्रतिशत) श्लोकग्रहण अष्टांग हृदय निदान स्थान प्रथम अध्याय सर्व रोग निदान से है, जो वाग्भट के श्लोक है ...
और आश्चर्य की बात यह है कि पूर्वरूप की टीकामे विजय रक्षित यह संभवतः भूल जाता है कि, वह टीका किस पर लिख रहा है!? माधवकर की प्रशंसा करने की जगह, वह पूर्वरूप का श्लोक ... प्राग्रूपं येन लक्ष्यते॥ उत्पित्सुरामयो ... यह जिसने मूल रूप मे लिखा है, उस श्रीमद् वाग्भटाचार्य को हि "परमकुशल" इस विशेषण शब्द से संबोधित करता है, न कि माधवकर को. इससे भी यही निश्चित रूप से प्रतीत होता है, कि विजय रक्षित भी, उस समय, अष्टांग हृदय के श्लोक पर हि टीका लिख रहा है, न कि माधवकर के रोगविनिश्चय पर!!!
"सोपद्रवारिष्ट" इस प्रकार का विशेषण रोगविनिश्चय की भूमिका मे लिखा हुआ है, कि मै रोगों का वर्णन उपद्रव और अरिष्ट के साथ लिखूंगा, ऐसी प्रतिज्ञा माधवकर करता है, किंतु 69 मे से 10% रोगों के विवरण मे भी, उपद्रव या अरिष्टों या दोनों का वर्णन उपलब्ध नही होता है.
तो इस प्रकार से अगर...
1.
स्वयं के लिखे हुए तीन रोगों के निदान में दोष है ...
2.
और बाकी 66 अध्याय भी, अगर अन्य ग्रंथ से अधिकार को देखे बिना, केवल पद्यात्मक या श्लोकात्मक विवरण उपलब्ध है, इस कारण से ग्रहण किये है,
3.
प्रतिज्ञा करके भी उपद्रव या अरिष्ट इनका वर्णन सर्व अध्यायों में उपलब्ध नही है,
तो ऐसी स्थिती मे माधवकर को निदान विषय का श्रेष्ठत्व देना अनुचित है.
इस लेखमाला के अंतिम लेख मे *निदान मे वाग्भट हि कैसे श्रेष्ठ है*, अपितु केवल निदान स्थान हि नहीं बल्कि, निदान शारीर चिकित्सा तथा बाकी भी सभी स्थानों के विषय विवरण में, वाग्भट हि श्रेष्ठ है, इस प्रकार की सिद्धी की जायेगी.
इस लेखका उद्देश्य यह है, कि आयुर्वेद के विषयों का अध्ययन उचित रूप मे हो. योग्य संदर्भ का अध्ययन करने से हि शास्त्र का आकलन यशःप्रद हो सकता है.
अन्यथा; ड्रग & डिसीज , परंपरागत नुस्खे टोटके फार्मुले पर चलने वाली, औषध बेचने का धंदा स्वरूप drug sale & trade bussiness type) चिकित्सा व्यवहार हि प्रचलित होती है.
या फिर आयुर्वेद के संहिताग्रंथों को छोडकर तथा आयुर्वेद की भैषज्य कल्पना से अत्यंत विसंगत रसकल्प को शरण जाने की अगतिकता असहाय्यता प्रायः सभी जगह दिखाई देती है.
लेखक:
Copyright © वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. म्हेत्रेआयुर्वेद. MhetreAyurveda
आयुर्वेद क्लिनिक्स @ पुणे & नाशिक
मोबाईल नंबर 9422016871
MhetreAyurveda@gmail.com
www.MhetreAyurveda.com
www.YouTube.com/MhetreAyurved/
_(Disclaimer/अस्वीकरण: लेखक यह नहीं दर्शाता है, कि इस गतिविधि में व्यक्त किए गए विचार हमेशा सही या अचूक होते हैं। चूँकि यह लेख एक व्यक्तिगत राय एवं समझ है, इसलिए संभव है कि इस लेख में कुछ कमियाँ, दोष एवं त्रुटियां हो सकती हैं। भाषा की दृष्टी से, इस लेखके अंत मे मराठी भाषा में लिखा हुआ/ लिखित डिस्क्लेमर ग्राह्य है)_
डिस्क्लेमर : या उपक्रमात व्यक्त होणारी मतं, ही सर्वथैव योग्य अचूक बरोबर निर्दोष आहेत असे लिहिणाऱ्याचे म्हणणे नाही. हे लेख म्हणजे वैयक्तिक मत आकलन समजूत असल्यामुळे, याच्यामध्ये काही उणीवा कमतरता दोष असणे शक्य आहे, ही संभावना मान्य व स्वीकार करूनच, हे लेख लिहिले जात आहेत.
Disclaimer: The author does not represent that the views expressed in this activity are always correct or infallible. Since this article is a personal opinion and understanding, it is possible that there may be some shortcomings, errors and defects in this article.
Thank you sir.. for you deep researches about samhita, I think you are real samhita Tikakar of 21 century.✌️✌️
ReplyDelete