कुछ अपरिचित धातुपाचक(?) = विषमज्वर✅️ शामक कषाय पंचक
लेखक : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे 9422016871
1.
धातुपाचक इस नाम से अभी प्रसिद्ध है , ऐसे
चरक चिकित्सा 3 श्लोक क्रमांक 200-203 यहां पर उल्लेखित *विषमज्वर शामक कषाय पंचक* है
👇🏼
कलिङ्गकाः पटोलस्य पत्रं कटुकरोहिणी ॥२००॥
पटोलः सारिवा मुस्तं पाठा कटुकरोहिणी ।
निम्बः पटोलस्त्रिफला मृद्वीका मुस्तवत्सकौ ॥२०१॥
किराततिक्तममृता चन्दनं विश्वभेषजम् ।
गुडूच्यामलकं मुस्तमर्धश्लोकसमापनाः ॥२०२॥
कषायाः शमयन्त्याशु पञ्च पञ्चविधाञ्ज्वरान् ।
सन्ततं सततान्येद्युस्तृतीयकचतुर्थकान् ॥२०३॥
2.
ये क्रमशः /यथासङ्ख्यं /रिस्पेक्टिव्हली, संततादि पाच विषमज्वरों का शमन करते है, ऐसा शिवदास सेन की टीका मे, क्षारपाणि का संदर्भ देकर, लिखा हुआ है
एते पञ्च योगाः सन्ततसततकान्येद्युष्कतृतीयचतुर्थकेषु यथासङ्ख्यं ज्ञेयाः;
(अन्ये तु सर्व एव योगाः सर्वत्रेत्याहुः);
*तत्र यथासङ्ख्यमेव युक्तं* ✅️ ,
सततोल्लेखेन पटोलादियोगस्य, तथा निम्बादेश्चान्येद्युष्कोल्लेखेन, गुडूच्यादेश्च चातुर्थकोल्लेखेन *क्षारपाणौ दृष्टत्वात्* ...
👆🏼 इति शिवदाससेनः !
अकेली चरक संहिता हि आयुर्वेद का संपूर्ण अध्ययन है, ऐसा भ्रम आयुर्वेद जगत मे फैला हुआ होने के कारण, किसी अन्य ग्रंथ मे क्या लिखा है, इसको देखने की कोई आवश्यकता ही नही समजता है.
3.
अष्टांग संग्रह में इन्ही 5 ज्वर कषाय पंचक के बाद,
वाग्भट ने और 5 कषाय लिखे है.
संग्रह में जो ज्वर कषाय पंचक है, उसमे चरकोक्त कषायपंचक की तुलना मे इस प्रकार से साम्य उपलब्ध होता है
पटोलेन्द्रयवारिष्टभद्रमुस्तामृताऽभयाः|
सारिवाद्वितयं पाठा त्रायन्ती कटुरोहिणी|
पटोलारिष्टमृद्वीकाशम्याकात्रिफलावृषम्|
चन्दनोशीरधान्याब्दगुडूचीविश्वभेषजम्|
देवदारूस्थिराशुण्ठीवासाधात्रीहरीतकीः|
पञ्च पञ्चज्वरान् घ्नन्ति योगा मधुसितोत्कटाः||३०||
4.
उसके साथ ही सुश्रुत मे भी उत्तर तंत्र 39 अध्याय मे पाच द्रव्य लिखे है और जिनमें से तीन चार या पाच (3/4/5) द्रव्य के संयोग विषमज्वर नाशक है, ऐसा लिखा है.
त्रिचतुर्भिः पिबेत् क्वाथं पञ्चभिर्वा समन्वितैः ।
मधुकस्य पटोलस्य रोहिण्या मुस्तकस्य च ।।
हरीतक्याश्च सर्वोऽयं त्रिविधो योग इष्यते ।
5.
तो यह जो चरकोक्त विषमज्वर कषाय पंचक, धातुपाचक नाम से एक रूढी के रूप मे, किंतु अशास्त्रीय रूप से, प्रचलित और प्रस्थापित हुए है.
उनको एक सशक्त विकल्प/ ऑप्शन , इन दोनो ग्रंथो मे उपलब्ध होता है
मूल चरक के विषमज्वर कषाय पंचक अर्थात आज के प्रसिद्ध किंतु अशास्त्रीय धातुपाचक है
6.
थोडासा बदलाव वाग्भट/अष्टांग संग्रह में होता है.
जहां चरक में *"गुडूच्यामलकममुस्तम्"* लिखा है वहां वाग्भट ने क्षौद्र=मधु जोड दिया है.
7.
अष्टांग संग्रह में और भी अन्य ज्वर कषाय पंचक उपलब्ध होते है, जो प्रस्थापित धातुपाचकों के विकल्प के रूप में पेशंट पर प्रयोग करके देखना उपयोगी रहेगा
8.
मूल सुश्रुत संहिता उत्तर तंत्र 39 मे,
पाच द्रव्यों को तीन चार या पाच के संयोग मे मिलाकर विषमज्वर नाशनाः ऐसी फलश्रुती बतायी है.
इसी श्लोक की डह्लणटीका में इन 5 द्रव्य के तीन चार पाच के संयोग से 16 अलग अलग कल्प बनते है ऐसा लिखा है
9.
अष्टांग हृदय मे भी इन्ही पाच द्रव्यों का उल्लेख हुआ है
पटोलकटुकामुस्ताप्राणदामधुकैः कृताः।
त्रिचतुःपञ्चशः क्वाथा विषमज्वरनाशनाः॥
10.
विषमज्वर नाशक कषाय केवल पाच ही नही हैं अपितु सोला 16 है, ऐसा सुश्रुत का अभिप्राय है
11.
और विषमज्वर भी केवल 5 न होकर ये छ 6 है,
ऐसा सुश्रुत उत्तर तंत्र 39 में दिखाई देता है
12.
प्रसिद्ध संतत सतत अन्येद्युष्क तृतीयक चतुर्थक इन 5 के साथ *प्रलेपक ज्वर* का भी उल्लेख हुआ है.
13.
संतत रस
सतत रक्त
अन्येद्युष्क मांस
तृतीयक मेद
चतुर्थक अस्थिमज्जा
ऐसी सामान्य मान्यता मात्र है, शास्त्रीय वस्तुस्थिती नहीं
14.
किंतु, चरक के विषमज्वर यह धातु मे दोष का प्राबल्य इस संकल्पना पर आधारित है.
इस कारण से संततादी पाच ज्वरों का निश्चित धातु अधिष्ठान वहां पर निर्धारित नही है
15.
चरक की निम्नोक्त पंक्तिया देखेंगे, तो ये पता चलता है कि कौन सा भी विषमज्वर, किसी भी धातु मे आश्रित होकर निर्माण हो सकता है.
रक्तधात्वाश्रयः प्रायो दोषः सततकं ज्वरम्
रक्त सतत
अन्येद्युष्कं ज्वरं दोषो रुद्ध्वा मेदोवहाः सिराः ॥
अन्येद्युष्क मांस मेद
दोषोऽस्थिमज्जगः कुर्यात्तृतीयकचतुर्थकौ
तृतीयक = मेद अस्थि मज्जा
अन्येद्युष्कं ज्वरं कुर्यादपि संश्रित्य शोणितम् ॥
अन्येद्युष्क मांस रक्त
मांसस्रोतांस्यनुगतो जनयेत्तु तृतीयकम् ।
तृतीयक मेद मांस
संश्रितो मेदसो मार्गं दोषश्चापि चतुर्थकम्
चतुर्थक अस्थि मज्जा मेद
उपरोक्त संदर्भ से यह पता चलता है, की 5 विषमज्वरों का, क्रमशः 5 धातुओं से, "निश्चित संबंध", चरक संहिता मे, प्रस्थापित नही है*
16.
सुश्रुत संहिता में 6 विषमज्वरो का, पाच कफ स्थानों के साथ, सुनिश्चित संबंध, निश्चित निर्धारित रूप में, उल्लेखित हुआ है.✅️
सततान्येद्युष्कत्र्याख्यचातुर्थान् सप्रलेपकान् ।
कफस्थानविभागेन यथासङ्ख्यं करोति हि ✅️
आमाशयस्थः सततं करोति ,
उरःस्थो अन्येद्युष्कं,
कण्ठस्थः तृतीयकं,
शिरस्थः चतुर्थकं,
सन्धिस्थः प्रलेपकं,
सर्वेषु कफस्थानेषु व्यवस्थितो दोषः सन्ततं करोतीति ज्ञातव्यम्।
17.
इसमे सततज्वर, जो चरक मे रक्त के साथ जुडा है, ऐसा लोगों को लगता है, वह सुश्रुत मे आमाशय के साथ संलग्न है.
18.
अन्येद्युष्क मांस के साथ जुडा है, ऐसे लोगों को लगता है, वह सुश्रुत मे उरः के साथ जुडा है
19.
जो चरक मे तृतीयक मेद के साथ जुडा है, ऐसे लोगों को भ्रम है, वह सुश्रुत मे कंठ के साथ संलग्न है
20.
चरक में चतुर्थक ज्वर जो अस्थि मज्जा के साथ जुडा है, ऐसे लोगो मे भ्रम है, वह सुश्रुत मे शिरः के साथ संलग्न है...
21.
और छठा विषमज्वर, जिसका चरक मे उल्लेख हि नही है, वह प्रलेपक ज्वर, संधी के साथ संलग्न है.
22.
तो फिर संतत जो रस धातू के साथ संलग्न है, ऐसा लोग मानते है ... (शास्त्रीय सत्य कुछ अलग है), वह संतत ज्वर सुश्रुत मे सभी कफ स्थानो के साथ संलग्न है.
23.
और तो और चरक संहिता मे भी
संततज्वर रसधात्वाश्रित न होकर,
संतत द्वादशाश्रयी ज्वर है
द्वादशाश्रयी का अर्थ केवल रसके साथ नही,
अपितु द्वादश याने 7 धातू 2 मल 3 दोषों के साथ जुडा है ऐसे लेना चाहिए
यथा धातूंस्तथा मूत्रं पुरीषं चानिलादयः ॥
द्वादशैते समुद्दिष्टाः सन्ततस्याश्रयास्तदा ।
✅️
द्वादशेति सप्त धातवस्त्रयो दोषा मूत्रं पुरीषं च।
24.
अभी सुश्रुत के पाच द्रव्य देखेंगे ... उसमे निरीक्षण करेंगे तो ...
प्रथम द्रव्य पटोल,
चरक के तीन कषाय प्रथम आता है ,
इसलिये पटोल को प्रथम ज्वर के साथ जोड देना चाहिए अर्थात आमाशय, रक्त व सतत के साथ
25.
दूसरा द्रव्य कटुकी ,
चरक के पहले दो कषाय में आता है,
उसको उरस्, मांस व अन्येद्युष्क के साथ जोड देना चाहिए
26.
मुस्ता चरक के तृतीय कषाय में है, तो कंठ, मेद व तृतीयक के साथ जोडना चाहिए.
27.
चौथा द्रव्य प्राणदा अर्थात हरीतकी,
यह शिरस् , अस्थि व चतुर्थक के साथ जोडना चाहिये.
28.
अंतिम द्रव्य सुश्रुत मे उल्लेखित है, वह मधुक = यष्टी है,
जिसको संधि, मज्जा व प्रलेपक के साथ जोडना चाहिए.
29.
और अगर सर्वांग व्यापी कोई लक्षण है, तो सुश्रुतोक्त 5 द्रव्य एक साथ देने चाहिये. और उन्हे रस तथा सभी कफ स्थानों के साथ और संतत ज्वर के साथ जोडना चाहिए
30.
पटोल = आमाशय रक्त सतत
कटुकी = उरस् मांस अन्येद्युष्क
मुस्ता = कंठ मेद तृतीयक
प्राणदा/हरीतकी = शिरस् अस्थि चतुर्थक
मधुक/यष्टी = संधि मज्जा प्रलेपक
सभी 5 द्रव्य = रस संतत सभी कफ स्थान
उपरोक्त 24 से 30 ये 7 विधान एक संभावना है, न कि निश्चित ज्ञान.
31.
सबसे सुनिश्चित रूप मे, अमुक विषमज्वर के लिए अमुक क्वाथ, ऐसा स्पष्ट उल्लेख केवल शार्ङ्गधर मे उपलब्ध है ✅️
गुडूचीधान्यमुस्ताभिश्चन्दनोशीरनागरैः
कृतं क्वाथं पिबेत्क्षौद्रसितायुक्तं ज्वरातुरः तृतीयज्वरनाशाय
देवदारुशिवावासाशालिपर्णीमहौषधैः चातुर्थिकज्वरे
किंतु यह भी केवल तृतीयक और चातुर्थक के लिये है.
बाकी तीन विषमज्वरो के लिए स्पष्ट रूप से विशिष्ट कषाय उल्लेखित नही है,
अपितु विषमज्वरो मे एकाहिक द्वितीयक ऐसे भी अपरिचित ज्वरों का उल्लेख होता है.
पटोलेन्द्रयवादारुत्रिफलामुस्तगोस्तनैः
मधुकामृतवासानां क्वाथं क्षौद्रयुतं पिबेत्
सन्तते सतते चैव द्वितीयकतृतीयके
एकाहिके वा विषमे
32
इस प्रकार से आयुर्वेद के किसी भी संहिता मे,
पाच विषमज्वरो के लिए यथासंख्य पाच कषायों का,
"एक से एक संगती" इस प्रकार का संबंध
सुनिश्चित स्पष्ट रूप से उल्लेखित नही है
33
साथ हि, किसी भी संहिता मे, पाच विषमज्वरों का विशिष्ट धातु के साथ "एक से एक संगती" इस प्रकार का भी संबंध सुनिश्चित स्पष्ट रूप से उल्लेखित नही है
इस कारण से विषमज्वर शामक कषाय पंचक को धातुपाचक मानना, यह मात्र प्रस्थापित रूढी है, भ्रम है, मिथक है ... यह शास्त्र कदापि नही है.
इस प्रकार से विचार करेंगे, तो हमे...
1.
चरकोक्त ज्वर कषाय पंचक, जो अभी धातुपाचक नाम से, मात्र रूढी रूप मे, लोकप्रसिद्ध है ... वह एक !
2.
दूसरा, अष्टांग संग्रह मे उल्लेखित ज्वर कषाय पंचक और
3.
तिसरा सुश्रुतोक्त पाच द्रव्य के या तो सोला संयोग या
4.
सुश्रुतोक्त पाच द्रव्यों का ही पाच ज्वरो के साथ ...
एक द्रव्य का ... एक ज्वर या कफ स्थान (या धातु से?) सुसंगतीकरण ...
इस प्रकार से कुछ नया दृष्टिकोन प्राप्त हो सकता है.
🙏🏼
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