Tuesday, 9 July 2024

*कल्पसिद्धौ च वाग्भटः* = अर्थात *औषधे वाग्भटः श्रेष्ठः* = *औषध हि आयुर्वेद है*

*कल्पसिद्धौ च वाग्भटः* = अर्थात 

*औषधे वाग्भटः श्रेष्ठः*


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*औषध हि आयुर्वेद है*

अष्टांग हृदय कल्पस्थान 6 + 

शार्ङ्गधर पूर्व खंड 1 + मध्यम खंड 1 से 9 + 

सुश्रुत चिकित्सा 31 & 

चरक कल्प 12

90+ Lectures !!!

गुरुपौर्णिमा 21 जुलै 2024 रविवार से आरंभ हुआ है ... 

एक ज्ञानयज्ञ = 90 लेक्चर 

सुस्वागतम् 🪔

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*संयोजक : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे, 

एमडी आयुर्वेद संहिता, एमए संस्कृत, 

आयुर्वेद क्लिनिक @ पुणे & नाशिक ...

 9422016871*

त्रिस्कंध आयुर्वेद मे हेतू और लक्षण यह रुग्ण संबंधित है. 

बाकी बचा अंतिम स्कंध = औषध स्कंध, 

यही वैद्य का कर्तृत्व है और 

*औषध हि आयुर्वेद की पहचान / आयडेंटिटी + अस्तित्व + प्रयोजन है*. 

_चरकोक त्रिविध औषध मे से, दैवव्यपाश्रय और सत्त्वावजय यह अन्यक्षेत्रों के तद्विद्य आचार्य का अधिकार है_ 


*आयुर्वेद का अधिकार युक्ती व्यपाश्रय चिकित्सा इतना हि है*

और वह सर्वथैव या बहुतांश रूप मे औषध पर ही निर्भर है , इसलिये ...


*औषध हि आयुर्वेद है*


कर्ता हि करणैर्युक्तः कारणं सर्वकर्मणाम् ॥

चरक संहिता


कर्ता, *योग्य "साधनों" के साथ ही* सभी कर्मों का कारण होता है. आयुर्वेदिक चिकित्सा क्षेत्र में कर्ता भिषक् अर्थात वैद्य है.


इस वैद्य का करण अर्थात साधन = *भेषज अर्थात औषध* है.


वैद्यके द्वारा आयुर्वेद का चिकित्सकीय लाभ पेशंट तक पहुंचाने का *साधन औषध ही है*. 


इस कारण से *औषध ही आयुर्वेद है*, ऐसा कहना अनुचित नही है.


समाज मे भी आयुर्वेद शास्त्र की पहचान = आयडेंटिटी यह वैद्य न होकर , *औषध ही है यह भूलना नही चाहिये* 


संहितोक्त औषध का उपयोग करके रिझल्ट नही आते है(?), इस भ्रम से, अनेक गणमान्य ज्येष्ठ एवं समकालीन यशस्वी लोकप्रिय प्रस्थापित वैद्य भी, आयुर्वेद मे है हि नहीं, ऐसे रसशास्त्र के कल्पों को अगतिक होकर शरण जाते है, और रसशास्त्र भी आयुर्वेद हि है, ऐसा स्वयं का दैन्ययुक्त समाधान false piltiful justification करने का प्रयास करते है.


उसका एकमात्र कारण संहितोक्त औषध, *संहितोक्त मात्रा मे दिये नही जाते*, इतना हि है.


*मात्राकालाश्रया युक्तिः*, सिद्धिर्युक्तौ प्रतिष्ठिता ।


औषध की सिद्धी अर्थात सुनिश्चित यश, यह युक्तीपर निर्भर है और यह युक्ती *औषध की "उचित मात्रा + योग्य औषधी काल अर्थात ड्यूरेशन" इस पर भी निर्भर है. Dose & Duration ✅️


इसी कारण से औषध को *"करण"* कहा गया है.


करणं पुनर्भेषजम् । 

भेषजं नाम तद्यदुपकरणायोपकल्पते भिषजो धातुसाम्याभिनिर्वृत्तौ प्रयतमानस्य 


औषध योजना तथा औषध निर्माण का सर्वमान्य ग्रंथ शार्ङ्गधर है, जो लघुत्रयी मे अपना सन्मानस्थान प्राप्त किया हुआ है.


शार्ङ्गधर के प्रथम अध्याय मे मान परिभाषा तथा,

शार्ङ्गधर के मध्यम खंड के प्रथम 9 अध्याय,

इनमें, मूलभूत आयुर्वेद भैषज्य कल्पना का सविस्तर वर्णन प्राप्त होता है.


इस सभी ज्ञान का *मूलाधार वाग्भट कल्पस्थान अध्याय 6* अर्थात *द्रव्यकल्प* अध्याय है.


इसलिये ...

*कल्पसिद्धौ च वाग्भटः* = *औषधे वाग्भटः श्रेष्ठः*

इस शीर्षक से 90 लेक्चर का ज्ञानयज्ञ गुरुपौर्णिमा से अर्थात 21 जुलै 2024 से आरंभ हुआहै.


इसमे ...

1. वाग्भट कल्पस्थान अध्याय 6 अर्थात द्रव्यकल्प अध्याय तथा 

2. शार्ङ्गधर प्रथम खंड अध्याय 1 और 

3. शारंगधर मध्यमखंड अध्याय 1 से 9 , एवं च 

4. सुश्रुत चिकित्सा 31 और 

5. चरक सिद्धी 12 ...

यहां उल्लेखित 

मान परिभाषा का तथा 

भैषज्य कल्पना के 

मूलभूत सिद्धांतों का प्रकाशन 

सुबोध रूप में किया जायेगा.


वाग्भट कल्पस्थान 6 के साथ हि,

अष्टांग हृदय के अन्य सभी स्थानों पर प्रस्तुत 90+ लेक्चर का फ्री एक्सेस भी इस उपक्रम मे प्राप्त होगा.


इस 90 lectures के ज्ञानयज्ञ मे सम्मिलित होने के पश्चात,

प्रत्येक वैद्य सन्मित्र को...

*संहितोक्त कल्पों से हि,*

_रसशास्त्र के कल्प को शरण गये बिना हि,_

अपने पेशंट को ...

सुरक्षित 

प्रामाणिक 

परिणामकारक 

शीघ्र फलदायी 

अल्पमात्रोपयोगी 

अरुचिविरहित 

सुलभ 

सुकर 

सुवाह्य (carriable पोर्टेबल)

औषध योजना करने का आत्मविश्वास प्राप्त होगा. 


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Saturday, 6 July 2024

सारिवादि/यष्टी+सारिवा Stress, Irritation & Cancer स्ट्रेस अर्थात क्षोभ उद्वेग इरिटेशन ताण तणाव टेन्शन प्रेशर दडपण दबाव ... तथा कॅन्सर

सारिवादि/यष्टी+सारिवा *Stress, Irritation & Cancer स्ट्रेस अर्थात क्षोभ उद्वेग इरिटेशन ताण तणाव टेन्शन प्रेशर दडपण दबाव ... तथा कॅन्सर*


Copyright कॉपीराइट ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. 

एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.

आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक.

9422016871

 

मनुष्य को शरीरस्तर पर या विचार भावना बुद्धी इस स्तर पर या उभयस्तर पर ,

*Stress/स्ट्रेस यह हेतु , क्षोभ = irritation उत्पादक होता है* ...


1.

जैसे की कोई *फिजिकल या मेकॅनिकल = मूर्त स्ट्रेस* होता है ...


दिनभर खडे रहना : कंडक्टर शिक्षक वॉचमन सेल्स काउंटर 

दिनभर बोलते रहना : रिसेप्शन टेलिफोन ऑपरेटर दिनभर बैठे रहना : ड्रायव्हर ऑफिस वर्कर्स स्टुडंट्स इसमे सस्पेंडेड प्रलंबौ पादौ होते है 

किचन मे हॉटेल के शेफ के रूप में या फरनेस के सामने ऐसे सातत्य से *अत्युष्ण स्थान पर काम करना* एअरपोर्ट के आसपास रहना 

रेल की पटरी के आसपास रहना 

हायवे के आसपास रहना 

गॅरेज या सिविल वर्क चलता रहता है ऐसी जगह के पास मे रहना : ध्वनी प्रदूषण एक प्रकार का स्ट्रेस है 


2.

कुछ लोगों को *केमिकल स्ट्रेस* होते है :


जैसे तंबाखू / गुटखा / स्मोकिंग / पोल्युशन वाले ट्रॅफिक मे आवागमन / कार्बन मोनॉक्साईड का सेवन या किसी केमिकल फॅक्टरी मे काम या पेंटिंग का व्यवसाय या प्रिंटिंग का व्यवसाय 


3.

कुछ लोगों को *सायकलॉजिकल इमोशनल सोशल फिनान्शियल अमूर्त स्ट्रेस* होते है


जो ईर्ष्या मत्सर असूया कम्पॅरिझन जलन जेलसी कॉम्पिटिशन डेडलाईन्स वर्क प्रेशर पियर प्रेशर अन्सर्टेनिटी अतिमहत्त्वाकांक्षा न्यूनगंड अतिगंड भयगंड स्वयंको सुपर हिरो सुपरमॅन सुपर वुमन सिद्ध करने की (क्षमता विरहित) इच्छा, स्पर्धा यह सारा भी विविध प्रकार के *अमूर्त स्ट्रेस* देने वाला है 


4.

या किसी किसी को पडोसी या रिश्तेदार या मित्र या एम्प्लॉयर मालिक इन के द्वारा शारीरिक या आर्थिक इस प्रकार का भय शोक दैन्य यह भी; स्ट्रेस के लिए कारणीभूत हो सकता है 


5.

उसे के साथ किसी चीज का न होना/अभाव ... जिसमे वस्तू व्यक्ती रोजगार व्यवसाय इनका विरह या नाश, अपेक्षित या अनपेक्षित अपघात के रूप मे होना ...

यह भी स्ट्रेस का कारण हो सकता है 


6

तो शरीर के किसी भी अवयव स्थान संस्था धातू अर्थात ऑर्गन लोकेशन/एरिया टार्गेट सिस्टीम के ऊपर मूर्त स्वरूप मे फिजिकल केमिकल स्ट्रेस होना या बुद्धी विचार भावना इन पर स्वयं का स्वभाव या परिस्थिती या दोनों का सायकॉलॉजिकल वैचारिक भावनिक बौद्धिक स्ट्रेस होना समाज मे दिखाई देता है 


7

स्ट्रेस मूर्त हो या अमूर्त हो उभय प्रकार का स्ट्रेस मनुष्य को एक प्रकार का क्षोभ = इरिटेशन = चुभन तोद टोचणी बोच पिंचिंग प्रिकिंग पॉईंटिंग इस प्रकार का अनुभव देता है 


8

इसमे से सुबोध समझ की दृष्टि से स्ट्रेस को हम क्षोभ या इरिटेशन निर्माण करने वाला हेतू है, ऐसा समझेंगे 


9

यही क्षोभ और यही इरिटेशन,

स्थानिक या सार्वदेहिक,

निरंतर या अतियोग या मिथ्या योग के प्रमाण में होता रहेगा ...

तो वह रोग का ... विशेषतः वह कॅन्सर का कारण होता है ,

ऐसा मेरा आकलन निरीक्षण और अनुभव है.


Any type of irritation which is Long standing, continuous, large scale, huge quantity ... it can cause/trigger genetic disturbance at local level or all over the tissue, which in turn obviously or eventually may initiate mutation neoplasm malignancy carcinoma...

as per ...

👇🏼

A.

the intensity of irritation 


तदेव ह्यपथ्यं देशकालसंयोगवीर्यप्रमाणातियोगाद्भूयस्तरमपथ्यं सम्पद्यते 


B.

vulnerability of the victim tissue



शरीराणि चातिस्थूलान्यतिकृशान्यनिविष्टमांसशोणितास्थीनि दुर्बलान्यसात्म्याहारोपचितान्यल्पाहाराण्यल्पसत्त्वानि च भवन्त्यव्याधिसहानि


C.

Their interaction (interaction between irritating agent and vulnerablevictimtissue)


स एव दोषः संसृष्टयोनिर्विरुद्धोपक्रमो गम्भीरानुगतश्चिरस्थितः प्राणायतनसमुत्थो मर्मोपघाती कष्टतमः क्षिप्रकारितमश्च सम्पद्यते ।


10

किसी भी *इरिटेटिंग या क्षोभकारक हेतू के विपरीत चिकित्सा* जो है ...

वह *प्रसादन चिकित्सा* है


और प्रसादन करने की क्षमता पृथ्वी जल, स्निग्ध शीत गुरु सांद्र मधुर मृदू ऐसे *सौम्य गुणयुक्त* उपचारो मे होती है 


इसमे जो सुकर सुलभद्रव्य है उसमे एक अच्छा उपयोग करके देखा जा सकता है ऐसा द्रव्य सारिवा है 


और उससे भी सर्वश्रेष्ठ द्रव्य मधुक अर्थात यष्टी है 


इस संदर्भ में निम्नोक्त दो व्हिडिओ तथा संपूर्ण प्ले लिस्ट श्रवणीय है 


https://youtu.be/NKdUMfoFTJU?si=BlEZy9Y43tPTWHCx


&


https://youtu.be/5byKhnA-m8w?si=-2JfIQ4JfqdjlR2c


*कॅन्सर के निर्मिती का मुख्य कारण हि क्षोभ = इरिटेशन है*,

ऐसा मेरा प्राथमिक आकलन निरीक्षण और अनुभव है.


यद्यपि,

*इरिटेशन या क्षोभ, कॅन्सर का कारण है* ...

ऐसा किसी भी पियर रिव्ह्यू जर्नल रिसर्च पेपर या गुगलवर ढूंढने से डॉक्युमेंटेड के रूप मे लिखा हुआ/ रेकॉर्ड किया हुआ प्राप्त नही होगा ...

तथापि अनेकविध अधिकृत कॅन्सर संबंधित शीर्षस्थ संस्थाओं के वेबसाईट पर कॉझेस ऑफ कॅन्सर causes of cancer इसका अवलोकन करने के बाद , उसका एक Gross Understanding कुल आकलन ; इरिटेशन कॉझेस कॅन्सर Irritation causes Cancer यह विधान हो सकता है


कॅन्सर के लिए किये जाने वाले मुख्य तीन उपचार = सर्जरी केमोथेरपी रेडिएशन ... 

ये तीनों उपचार 

1. स्वयं अपने स्वरूप मे तथा 

2. उपचारों के पश्चात जो परिणाम होते है और 

3. जो कालावधी पेशंट व्यतीत करता है ...

ये सभी तीनो चीजे 1.उपचार, 2.उपचार के परिणाम और 3.उपचार के पश्चात का कालावधी ,

ये तीनो भी फिरसे, इरिटेशन = क्षोभकारक है,

ऐसा मेरा वैयक्तिक मत है 


और ऐसी स्थिती मे जिनको इन 3 उपचार को झेलना है, करना हि है ...

उन पेशंट के संरक्षण की दृष्टि से ...

उनके शरीर के कॅन्सरग्रस्त स्थान अवयव संस्था धातु अर्थात ऑर्गन लोकेशन/एरिया सिस्टीम या टिशू ...

इनकी सुरक्षा की दृष्टि से अगर *इरिटेशन से विपरीत, प्रसादन उपचार* ...जो प्रायः उपरोक्त *सांद्र गुणादि प्रधान* है, जिसमे यष्टी और सारिवा इनका प्रमुख उपयोग, कार्यकारी हो सकता है.


कॅन्सर का एक बार उपचार होने के बाद,

यद्यपि पेट स्कॅन मे उस समय कुछ भी ॲबनाॅर्मल नही दिखाई दे रहा होता है,

तथापि 3/6 महिने या एक वर्ष के बाद फॉलोअप के रूप मे जो पेट स्कॅन किया जाता है ,

उसमे फिरसे या तो रिकरंस या सेकंडरी इस प्रकार का रिपोर्ट आता है,

तो ऐसी भविष्यकालीन संभावना को टालने के लिये, उस उस स्थान का इरिटेशन = क्षोभ का बचाव करना आवश्यक है 


और इस कारण से पुन्हा *प्रसादनकारी सांद्र गुणादियुक्त, यष्टी और सारिवा इनका उपयोग लाभदायक सिद्ध होता है, ऐसा मेरा *अल्पकालीन अनुभव निरीक्षण और आकलन है*


वैसे अष्टांगहृदय सूत्रस्थान 15 में, वाग्भट के गणों के अध्याय में सारिवादि गण मे प्रथम द्रव्य सारिवा और अंतिम द्रव्य यष्टी है ... 

बीच मे के जो सारे द्रव्य है ...

1.

वे प्रायः मिलते नही है या 

2.

उन पर ban में है या 

3.

उनका मार्केट मूल्य बहुत अधिक है या 

4.

मेरे आकलन से वे अनावश्यक है, 

इस कारण से तुलनात्मक दृष्ट्या, जो सुलभ प्राप्त है, उन दो *यष्टीमधु व सारिवा को सप्तधा बलाधान के रूप मे प्रयोग करता हूं*. 

जिनको संभव है, वे सारिवादि गण के सभी द्रव्यों का भी, ऐसी स्थिती मे उपयोग करके, उसके परिणाम का अनुभव प्रस्तुत कर सकते है


किंतु यष्टी और सारिवा इनके कुछ वैशिष्ट्य है.


सारिवा शुक्र व स्तन्य इन दोनों पर हितकारक परिणाम करने वाली है और 

ये दोनो शरीरस्थ भाव नवजीवनकारी है 

और कॅन्सर की संप्राप्ती मे प्रमुख दूष्य तत्तत् धातुगत स्थानगत शुक्र हि है.


इसलिये already कॅन्सर ग्रस्त या कॅन्सर ग्रस्त होने की संभावना होने वाले स्थान अवयव संस्था धातू (organ , location/area, system, tissue) इनका समधातु पारंपर्य बना रहे और कॅन्सर नामक रोग का आक्रमण से उनका संरक्षण होता रहे, इस दृष्टी से एक सुरक्षा कवच के रूप मे, सारिवा निश्चित रूप से उपयोगी हो सकती है.


*मज्जा शुक्र समुत्थानाम् औषधं स्वादु+तिक्तकम्* 

ऐसे उल्लेख आता है 


इसमे स्वादु सांद्र मृदु सौम्य इस दृष्टी से सारिवा एक उत्तम द्रव्य सिद्ध होता है. 


इन्हीं सर्व वैशिष्ट्यों के कारण यष्टीमधु भी,

सारिवा के समान हि तत् तत् धातु का संरक्षण और तत् धातु गत शुक्र का प्रसादन और समधातु पारंपर्य संतानकारी है 


यष्टी यह मधुर द्रव्य मे सर्वश्रेष्ठ द्रव्य है, ऐसा मेरा वैयक्तिक मत है.

यद्यपि अष्टांग संग्रह में ,

जो छ 6 रस स्कंधों के सर्वश्रेष्ठ द्रव्य दिये है, 

उसमे मधुर रसका सर्वश्रेष्ठद्रव्य घृत है.

किंतु घृत यह एक आहार द्रव्य है और उसका ट्रान्सपोर्ट बहुत समस्या कारक तथा उसका सेवन मात्रा भी अधिक है.

इसकी तुलना मे यष्टी यह एक औषधी द्रव्य है, वीर्यवान द्रव्य है, इसकी मात्रा अल्प होते हुए भी परिणामकारक है तथा ट्रान्सपोर्ट के लिए अत्यंत सुविधा जनक है.


यष्टी चरक के महाकषाय में सर्वाधिक बार पुनरावृत्त पुनरुक्त रिपीट उल्लेखित होने वाला द्रव्य है 

तथा 

चरक सूत्र 25/40 श्लोक इसमे जो अग्रेसंग्रह है,

उसमे यष्टीमधु के सामने 7 गुण कर्म का, 7 कार्मुकताओं का उल्लेख है.


साथ ही यष्टीमधु मेध्य रसायनो मे उल्लेखित है.


यष्टी का उल्लेख उरःक्षत तथा भग्न इनमे भी होता है, इसका अर्थ यह है कि, यष्टीमधु रस से लेकर शुक्र तक सभी धातुओं का उत्तम निर्माण, संरक्षण, प्रसादन करने मे सक्षम है.


इस कारण से यष्टीमधुक और सारिवा ये दोनो द्रव्य;

1. कॅन्सर का मुख्य हेतू इरिटेशन, 

2. कॅन्सर के उपचारों का कालावधी, तथा

3. कॅन्सर के उपचारों का पश्चात परिणाम, जो पुन्हा इरिटेशन हि परिणाम देने वाला है ... 

ऐसे, कॅन्सर पूर्व , कॅन्सर उपचार समकालीन और कॅन्सर उपचार पश्चात ... ऐसे त्रिकाल मे यष्टीमधुक और सारिवा इनका शरीर धातु संरक्षण के लिये निश्चित रूप से हितकारक उपयोग सिद्ध हो सकता है


Copyright कॉपीराइट ©वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे. 

एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.

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9422016871





Thursday, 4 July 2024

कुछ अपरिचित धातुपाचक(?) = विषमज्वर✅️ शामक कषाय पंचक

कुछ अपरिचित धातुपाचक(?) = विषमज्वर✅️ शामक कषाय पंचक

लेखक : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे 9422016871 


1.

धातुपाचक इस नाम से अभी प्रसिद्ध है , ऐसे

चरक चिकित्सा 3 श्लोक क्रमांक 200-203 यहां पर उल्लेखित *विषमज्वर शामक कषाय पंचक* है

👇🏼

कलिङ्गकाः पटोलस्य पत्रं कटुकरोहिणी ॥२००॥

पटोलः सारिवा मुस्तं पाठा कटुकरोहिणी ।

निम्बः पटोलस्त्रिफला मृद्वीका मुस्तवत्सकौ ॥२०१॥

किराततिक्तममृता चन्दनं विश्वभेषजम् ।

गुडूच्यामलकं मुस्तमर्धश्लोकसमापनाः ॥२०२॥

कषायाः शमयन्त्याशु पञ्च पञ्चविधाञ्ज्वरान् ।

सन्ततं सततान्येद्युस्तृतीयकचतुर्थकान् ॥२०३॥


2.

ये क्रमशः /यथासङ्ख्यं /रिस्पेक्टिव्हली, संततादि पाच विषमज्वरों का शमन करते है, ऐसा शिवदास सेन की टीका मे, क्षारपाणि का संदर्भ देकर, लिखा हुआ है


एते पञ्च योगाः सन्ततसततकान्येद्युष्कतृतीयचतुर्थकेषु यथासङ्ख्यं ज्ञेयाः; 

(अन्ये तु सर्व एव योगाः सर्वत्रेत्याहुः);

*तत्र यथासङ्ख्यमेव युक्तं* ✅️ , 

सततोल्लेखेन पटोलादियोगस्य, तथा निम्बादेश्चान्येद्युष्कोल्लेखेन, गुडूच्यादेश्च चातुर्थकोल्लेखेन *क्षारपाणौ दृष्टत्वात्* ...

👆🏼 इति शिवदाससेनः !


अकेली चरक संहिता हि आयुर्वेद का संपूर्ण अध्ययन है, ऐसा भ्रम आयुर्वेद जगत मे फैला हुआ होने के कारण, किसी अन्य ग्रंथ मे क्या लिखा है, इसको देखने की कोई आवश्यकता ही नही समजता है.


3.

अष्टांग संग्रह में इन्ही 5 ज्वर कषाय पंचक के बाद, 

वाग्भट ने और 5 कषाय लिखे है.

संग्रह में जो ज्वर कषाय पंचक है, उसमे चरकोक्त कषायपंचक की तुलना मे इस प्रकार से साम्य उपलब्ध होता है 


पटोलेन्द्रयवारिष्टभद्रमुस्तामृताऽभयाः| 

सारिवाद्वितयं पाठा त्रायन्ती कटुरोहिणी

पटोलारिष्टमृद्वीकाशम्याकात्रिफलावृषम्| 

चन्दनोशीरधान्याब्दगुडूचीविश्वभेषजम्

देवदारूस्थिराशुण्ठीवासाधात्रीहरीतकीः| 

पञ्च पञ्चज्वरान् घ्नन्ति योगा मधुसितोत्कटाः||३०|| 


4.

उसके साथ ही सुश्रुत मे भी उत्तर तंत्र 39 अध्याय मे पाच द्रव्य लिखे है और जिनमें से तीन चार या पाच (3/4/5) द्रव्य के संयोग विषमज्वर नाशक है, ऐसा लिखा है.


त्रिचतुर्भिः पिबेत् क्वाथं पञ्चभिर्वा समन्वितैः । 

मधुकस्य पटोलस्य रोहिण्या मुस्तकस्य च ।। 

हरीतक्याश्च सर्वोऽयं त्रिविधो योग इष्यते । 


5.

तो यह जो चरकोक्त विषमज्वर कषाय पंचक, धातुपाचक नाम से एक रूढी के रूप मे, किंतु अशास्त्रीय रूप से, प्रचलित और प्रस्थापित हुए है.


उनको एक सशक्त विकल्प/ ऑप्शन , इन दोनो ग्रंथो मे उपलब्ध होता है


मूल चरक के विषमज्वर कषाय पंचक अर्थात आज के प्रसिद्ध किंतु अशास्त्रीय धातुपाचक है 


6.

थोडासा बदलाव वाग्भट/अष्टांग संग्रह में होता है.

जहां चरक में *"गुडूच्यामलकममुस्तम्"* लिखा है वहां वाग्भट ने क्षौद्र=मधु जोड दिया है.


7.

अष्टांग संग्रह में और भी अन्य ज्वर कषाय पंचक उपलब्ध होते है, जो प्रस्थापित धातुपाचकों के विकल्प के रूप में पेशंट पर प्रयोग करके देखना उपयोगी रहेगा 


8.

मूल सुश्रुत संहिता उत्तर तंत्र 39 मे, 

पाच द्रव्यों को तीन चार या पाच के संयोग मे मिलाकर विषमज्वर नाशनाः ऐसी फलश्रुती बतायी है.

इसी श्लोक की डह्लणटीका में इन 5 द्रव्य के तीन चार पाच के संयोग से 16 अलग अलग कल्प बनते है ऐसा लिखा है 


9.

अष्टांग हृदय मे भी इन्ही पाच द्रव्यों का उल्लेख हुआ है


पटोलकटुकामुस्ताप्राणदामधुकैः कृताः। 

त्रिचतुःपञ्चशः क्वाथा विषमज्वरनाशनाः॥


10.

विषमज्वर नाशक कषाय केवल पाच ही नही हैं अपितु सोला 16 है, ऐसा सुश्रुत का अभिप्राय है


11.

और विषमज्वर भी केवल 5 न होकर ये छ 6 है,

ऐसा सुश्रुत उत्तर तंत्र 39 में दिखाई देता है 


12.

प्रसिद्ध संतत सतत अन्येद्युष्क तृतीयक चतुर्थक इन 5 के साथ *प्रलेपक ज्वर* का भी उल्लेख हुआ है.


13.

संतत रस 

सतत रक्त 

अन्येद्युष्क मांस 

तृतीयक मेद 

चतुर्थक अस्थिमज्जा 

ऐसी सामान्य मान्यता मात्र है, शास्त्रीय वस्तुस्थिती नहीं


14.

किंतु, चरक के विषमज्वर यह धातु मे दोष का प्राबल्य इस संकल्पना पर आधारित है.


इस कारण से संततादी पाच ज्वरों का निश्चित धातु अधिष्ठान वहां पर निर्धारित नही है


15.

चरक की निम्नोक्त पंक्तिया देखेंगे, तो ये पता चलता है कि कौन सा भी विषमज्वर, किसी भी धातु मे आश्रित होकर निर्माण हो सकता है.


रक्तधात्वाश्रयः प्रायो दोषः सततकं ज्वरम् 

रक्त सतत

अन्येद्युष्कं ज्वरं दोषो रुद्ध्वा मेदोवहाः सिराः ॥

अन्येद्युष्क मांस मेद

दोषोऽस्थिमज्जगः कुर्यात्तृतीयकचतुर्थकौ 

तृतीयक  = मेद अस्थि मज्जा 

अन्येद्युष्कं ज्वरं कुर्यादपि संश्रित्य शोणितम् ॥

अन्येद्युष्क मांस रक्त 

मांसस्रोतांस्यनुगतो जनयेत्तु तृतीयकम् ।

तृतीयक मेद मांस 

संश्रितो मेदसो मार्गं दोषश्चापि चतुर्थकम् 

चतुर्थक अस्थि मज्जा मेद

उपरोक्त संदर्भ से यह पता चलता है, की 5 विषमज्वरों का, क्रमशः 5 धातुओं से, "निश्चित संबंध", चरक संहिता मे, प्रस्थापित नही है


16.

सुश्रुत संहिता में 6 विषमज्वरो का, पाच कफ स्थानों के साथ, सुनिश्चित संबंध, निश्चित निर्धारित रूप में, उल्लेखित हुआ है.✅️


सततान्येद्युष्कत्र्याख्यचातुर्थान् सप्रलेपकान् । 

कफस्थानविभागेन यथासङ्ख्यं करोति हि ✅️


आमाशयस्थः सततं करोति , 

उरःस्थो अन्येद्युष्कं, 

कण्ठस्थः तृतीयकं, 

शिरस्थः चतुर्थकं, 

सन्धिस्थः प्रलेपकं, 

सर्वेषु कफस्थानेषु व्यवस्थितो दोषः सन्ततं करोतीति ज्ञातव्यम्। 


17.

इसमे सततज्वर, जो चरक मे रक्त के साथ जुडा है, ऐसा लोगों को लगता है, वह सुश्रुत मे आमाशय के साथ संलग्न है.


18.

अन्येद्युष्क मांस के साथ जुडा है, ऐसे लोगों को लगता है, वह सुश्रुत मे उरः के साथ जुडा है


19.

जो चरक मे तृतीयक मेद के साथ जुडा है, ऐसे लोगों को भ्रम है, वह सुश्रुत मे कंठ के साथ संलग्न है


20.

चरक में चतुर्थक ज्वर जो अस्थि मज्जा के साथ जुडा है, ऐसे लोगो मे भ्रम है, वह सुश्रुत मे शिरः के साथ संलग्न है...


21.

और छठा विषमज्वर, जिसका चरक मे उल्लेख हि नही है, वह प्रलेपक ज्वर, संधी के साथ संलग्न है.


22.

तो फिर संतत जो रस धातू के साथ संलग्न है, ऐसा लोग मानते है ... (शास्त्रीय सत्य कुछ अलग है), वह संतत ज्वर सुश्रुत मे सभी कफ स्थानो के साथ संलग्न है. 


23.

और तो और चरक संहिता मे भी

संततज्वर रसधात्वाश्रित न होकर,

संतत द्वादशाश्रयी ज्वर है

द्वादशाश्रयी का अर्थ केवल रसके साथ नही, 

अपितु द्वादश याने 7 धातू 2 मल 3 दोषों के साथ जुडा है ऐसे लेना चाहिए 


यथा धातूंस्तथा मूत्रं पुरीषं चानिलादयः ॥

द्वादशैते समुद्दिष्टाः सन्ततस्याश्रयास्तदा ।

✅️

द्वादशेति सप्त धातवस्त्रयो दोषा मूत्रं पुरीषं च। 


24.

अभी सुश्रुत के पाच द्रव्य देखेंगे ... उसमे निरीक्षण करेंगे तो ...


प्रथम द्रव्य पटोल, 

चरक के तीन कषाय प्रथम आता है ,

इसलिये पटोल को प्रथम ज्वर के साथ जोड देना चाहिए अर्थात आमाशय, रक्त व सतत के साथ


25.

दूसरा द्रव्य कटुकी ,

चरक के पहले दो कषाय में आता है, 

उसको उरस्, मांस व अन्येद्युष्क के साथ जोड देना चाहिए 


26.

मुस्ता चरक के तृतीय कषाय में है, तो कंठ, मेद व तृतीयक के साथ जोडना चाहिए.  


27.

चौथा द्रव्य प्राणदा अर्थात हरीतकी, 

यह शिरस् , अस्थि व चतुर्थक के साथ जोडना चाहिये.


28.

अंतिम द्रव्य सुश्रुत मे उल्लेखित है, वह मधुक = यष्टी है,

जिसको संधि, मज्जा व प्रलेपक के साथ जोडना चाहिए.

 

29.

और अगर सर्वांग व्यापी कोई लक्षण है, तो सुश्रुतोक्त 5 द्रव्य एक साथ देने चाहिये. और उन्हे रस तथा सभी कफ स्थानों के साथ और संतत ज्वर के साथ जोडना चाहिए


30.

पटोल = आमाशय रक्त सतत

कटुकी = उरस् मांस अन्येद्युष्क

मुस्ता = कंठ मेद तृतीयक

प्राणदा/हरीतकी = शिरस् अस्थि चतुर्थक 

मधुक/यष्टी = संधि मज्जा प्रलेपक 


सभी 5 द्रव्य = रस संतत सभी कफ स्थान 


उपरोक्त 24 से 30 ये 7 विधान एक संभावना है, न कि निश्चित ज्ञान.


31.

सबसे सुनिश्चित रूप मे, अमुक विषमज्वर के लिए अमुक क्वाथ, ऐसा स्पष्ट उल्लेख केवल शार्ङ्गधर मे उपलब्ध है ✅️


गुडूचीधान्यमुस्ताभिश्चन्दनोशीरनागरैः

कृतं क्वाथं पिबेत्क्षौद्रसितायुक्तं ज्वरातुरः तृतीयज्वरनाशाय


देवदारुशिवावासाशालिपर्णीमहौषधैः चातुर्थिकज्वरे


किंतु यह भी केवल तृतीयक और चातुर्थक के लिये है.


बाकी तीन विषमज्वरो के लिए स्पष्ट रूप से विशिष्ट कषाय उल्लेखित नही है, 

अपितु विषमज्वरो मे एकाहिक द्वितीयक ऐसे भी अपरिचित ज्वरों का उल्लेख होता है.


पटोलेन्द्रयवादारुत्रिफलामुस्तगोस्तनैः 

मधुकामृतवासानां क्वाथं क्षौद्रयुतं पिबेत्

सन्तते सतते चैव द्वितीयकतृतीयके 

एकाहिके वा विषमे


32

इस प्रकार से आयुर्वेद के किसी भी संहिता मे,

पाच विषमज्वरो के लिए यथासंख्य पाच कषायों का, 

"एक से एक संगती" इस प्रकार का संबंध 

सुनिश्चित स्पष्ट रूप से उल्लेखित नही है 


33

साथ हि, किसी भी संहिता मे, पाच विषमज्वरों का विशिष्ट धातु के साथ "एक से एक संगती" इस प्रकार का भी संबंध सुनिश्चित स्पष्ट रूप से उल्लेखित नही है 


इस कारण से विषमज्वर शामक कषाय पंचक को धातुपाचक मानना, यह मात्र प्रस्थापित रूढी है, भ्रम है, मिथक है ... यह शास्त्र कदापि नही है.


इस प्रकार से विचार करेंगे, तो हमे... 

1.

चरकोक्त ज्वर कषाय पंचक, जो अभी धातुपाचक नाम से, मात्र रूढी रूप मे, लोकप्रसिद्ध है ... वह एक !


2.

दूसरा, अष्टांग संग्रह मे उल्लेखित ज्वर कषाय पंचक और 


3.

तिसरा सुश्रुतोक्त पाच द्रव्य के या तो सोला संयोग या


4.

सुश्रुतोक्त पाच द्रव्यों का ही पाच ज्वरो के साथ ... 

एक द्रव्य का ... एक ज्वर या कफ स्थान (या धातु से?) सुसंगतीकरण ...

इस प्रकार से कुछ नया दृष्टिकोन प्राप्त हो सकता है.


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