स्थौल्य हर आद्य योग :
त्रिफळा अभया मुस्ता गुडूची
~न हि स्थूलस्य भेषजम्~
सही स्थूलस्य भेषजम्
*यही स्थूलस्य भेषजम्* ✅️
मधुना त्रिफलां लिह्याद्गुडूचीमभयां घनम्
अर्थात त्रिफला गुडूची हरीतकी और मुस्ता इन चार द्रव्यों का यह योग है
अष्टांगहृदय सूत्रस्थान 14 में द्विविधोपक्रमणीय में स्थौल्य चिकित्सा में सबसे आद्य योग है.
अष्टांग संग्रह मे ये योग इसी रूप मे है.
चरक मे इस योग मे *अभया उल्लेखित नही है.*
सुश्रुत मे इस प्रकार का योग उल्लेखित हि नही है.
इस योग को सप्तधा बलाधान टॅबलेट के रूप मे,
6 टॅबलेट दिन मे चार बार या तीन बार,
इस प्रकार से प्रयोग करने से,
प्रतिमाह अप टू 10% (per month upto 10%) इंच लाॅस और kg लॉस संभव होता है.
अर्थात 80kg अगर वजन है ,
तो एक महिने मे आठ किलो तक कम हो सकता है
और 40 इंच अगर पेट तोंद टमी बेली है,
तो 4 इंच तक कम हो सकता है.
और यह सुयोग्य आहार और व्यायाम नियोजन के साथ अगर सेवन किया जाये,
तो पुन्हा मेदसंचिती या भारवृद्धी नही होती है.
No recurrence!
यह टॅबलेट, *औषध अन्न विहार* इस संपूर्ण चिकित्सा उपक्रम का एक भाग है.
इन टॅबलेट के कारण मेदःक्षय होता है, ऐसा हमारा विधान नही है.
क्यू कि अगर हम टॅबलेट से मेदःक्षय करेंगे, तो जिस दिन टॅबलेट बंद ... उस दिन से फिर से मेदःसंचिती होगी.
इन टॅबलेट के सेवन का उद्देश, उस चिकित्सा उपक्रम का एक भाग है,
जिससे कि आपके शरीर मे संचित मेद, आप अपने स्वयं की हालचाल व्यायाम मूव्हमेंट एनर्जी ऊर्जा शक्ती सामर्थ्य बल के लिये, स्वयं उपयोग मे लायेंगे,
तो उसकी पुन्हा संचिती होने का संभव,
संपूर्णतः नष्ट हो जायेगा.
इस टॅबलेट के प्रयोग के समय,
किसी भी प्रकार का उपवास अनशन अल्पाशन
या
दिन मे दो बार हि खाओ,
हर दो घंटे के बाद खाते रहो,
ऐसा "अनैसर्गिक" कुछ भी आवश्यक नही होता है.
संपूर्ण सौहित्य तक (upto satiety) अर्थात पेटभर खाकर भी, मेद संचिती (inches) और भारवृद्धी(kg) इनमे अप टू टेन पर्सेंट (upto 10%) कम करना संभव होता है.
*डिनर इस द कल कल्प्रिट Dinner is the culprit.*
डिनर मे, हम जो भी पृथ्वी जल कार्बोहायड्रेट शुगर ग्लुकोज ऐसे संतर्पण करने वाले, अन्नपदार्थ रोटी चपाती भाकरी चावल = ज्वार बाजरा गेहू चावल बटाटा साबुदाणा दूध दुग्धजन्य पदार्थ फल ये लेते है और इन पदार्थों के सेवन के बाद किसी भी प्रकार का व्यायाम किये बिना हि (या उस संतर्पणकारी पृथ्वी जल प्रधान पदार्थ का ऊर्जा के लिए उपयोग किये बिना हि),
हम अगले छे सात आठ घंटे के लिए,
बेड पर, किसी भी मूव्हमेंट के बिना,
निश्चल निष्क्रिय पडे रहते है ...
और सुबह उठकर फिर किंग साइज नाश्ता करते है.
रात को छे से आठ घंटे बेड पर लेटे, पडे रहना / सोना
सुबह उठकर कमोड पर बैठना
वहा से उठकर डायनिंग टेबल पर नाष्टे के लिए बैठना
वहा से उठकर स्कूल या ऑफिस के लिए टू व्हीलर फोर व्हीलर रिक्षा बस की सीट पर बैठना
फिर स्कूल ऑफिस जाकर वहा के बेंच या चेहर पर बैठना
फिरसे वापस घर आते समय टू व्हीलर फोर व्हीलर रिक्षा बस की सीट पर बैठना
घर आकर सोफा पर बैठना
फिर खाना खाने के लिए डायनिंग चेअर पर बैठना
और फिर से जाकर बेड पर अगले छे से आठ घंटे के लिए लेटे रहना / सो जाना
ऐसी बैठी हुई / सेडेन्टरी ... बिना हालचाल व्यायाम एक्झरसाइज एक्झर्शन की हि ... बहुत सारे लोगों की जीवनी आजकल है
मुंह दिया है इसलिये खाते रहना है ... ठूसना है.
तो प्रतिदिन, ये रोज रात्री को डिनर के समय, अतिसंंतर्पणकारी ठूंसना इस प्रकार से,
जो पृथ्वी जल प्रधान अन्नपदार्थ का सेवन होता है,
इसी कारण से स्थौल्य अनावश्यक मेदःसंचिती भारवृद्धी ॲसिडिटी अम्लपित्त अग्निमान्द्य शोथ पीनस श्वास डिस्निया ऑन एक्झर्शन कंडू कुष्ठ त्वचारोग तथा डायबिटीस टाईप टू ये संतर्पणजन्य व्याधी निर्माण होते है.
इसी कारण से, अगर डिनर मे पूर्ण सौहित्य तक,
लघूनां नाऽतितृप्तता, इस प्रकार का भोजन किया जाए,
तो *क्षुधा का शमन तो होता है,
किंतु शरीर मे नये से*, जिसका उपयोग हो न सके, इस प्रकार का पृथ्वी जल प्रधान कफ पित्तकारी मेदोवृद्धिकर गुरु द्रव स्निग्ध गुणवर्धक संतर्पणकारी भाव पदार्थों का वर्धन संचय *नही होता है.*
अभी इसलिये, डिनर मे ,
किस प्रकार का आहार नियोजन करना उचित होगा,
ये त्रिफला गुडूची हरीतकी और मुस्ता, इन चार द्रव्यों के योग, के कार्मुकता के बाद देखते है.
जैसे आहार में अनशन उपोषण उपवास अल्पाहार की आवश्यकता नही है,
वैसेही व्यायाम का अतियोग साहस अतिरेक भी आवश्यक नही है.
केवल संपूर्ण शरीर के सभी मसल्स एक साथ गती में रहे , काम करे. इस प्रकार का सर्वांग सुंदर व्यायाम जो कम से कम सब लोग कर सकते है वो है चंक्रमण = चलना 60_70 मिनिट तक,
या मुंह से सांस लेने की क्षमता तक सूर्यनमस्कार करना , ये काफी होता है.
Spinal Twist & Air Cycling
स्पाइनल ट्विस्ट और एअर सायकलिंग ये दोनो मिलाकर शरीर के सर्व मसल्स का पर्याप्त मात्र मी व्यायाम करवाते है
ये दोनो मिलके एक अत्यंत आसान किसी भी को भी करने के लिए योग्य और सुविधा जनक इस प्रकार का व्यायाम योग है
स्पायनल ट्विस्ट में कमर के उपर के संपूर्ण मसल्स का व्यायाम होता है और
एअर सायकलिंग मे कमर के नीचे के सभी मसल्स का व्यायाम होता है
इसलिये ये दोनो मिलकर एक अत्यंत परिणामकारक सर्वांग सुंदर व्यायाम है
इन दोनों के सौ सो सेटिंग ये दिन मे पूरे करना चाहिए
दस दस के दस सेटिंग करे या पच्चीस के चार सेटिंग करे या 30 के तीन सेटिंग करे
ऐसे करने से फायनल ट्विस्ट और एअर सायकलिंग के द्वारा एक महीने में 10% किलोग्राम तथा इंचेस कम करना संभव है
जिम मे जाना रनिंग करना जॉगिंग करना वजन उठाना स्विमिंग करना योगा करना ... इससे मेदःसंचिती कम नही हो सकती.
🏊♂️🏊♀️🏊 स्विमिंग मे तो पानी आपको उपर फ्लोट float करता है, बायोन्स Buoyancy, or upthrust होता है, तो स्विमिंग से कभी भी स्थौल्य कम नही हो सकता.
हां, उससे आपकी पल्मोनरी स्टॅमिना कपॅसिटी बढ सकती है. मसल की जो वहा पर हालचाल होती है मूव्हमेंट होती है, वो बायोन्स के कारण आपका मेदःक्षय नही करती है.
यही बात 🚴🏼♂️🚵♂️🚵♀️🚵🚴♀️🚴 सायकलिंग की भी है, मेदःसंचिती प्रायः पेट पर सीट पर होती है ... और सायकलिंग करते समय, सीट और पेट यह स्थिर रूप मे अचलरूप मे गतिहीन रूप मे रहते है ...
और जहां पर मेदःसंचिती उतनी नही होती है, वे थाईज घुटने ॲन्कल और काफ (पिंडिका) मसल अनावश्यक हि काम करते है. वहां का प्रोटीन लॉस मसल वेस्टिंग होता है ...
ये तो, चोर को छोडकर संन्यासी को फांसी, इस तरह का न्याय हुआ.
मेदःसंचिती तो पेट और सीट पर है और व्यायाम तो आपके पांव पिंडिका कर रहे. उस स्थान पर अगर ताण है टेन्शन है जोर पडेगा, तो हि मेद वहां से हटेगा.
हम जिंदगीभर फॉरवर्ड बेंडिंग के रूप मे बैठे है, इस कारण से पेट tummy तोंद (रेक्टस ॲब्डाॅमिनस) यह सर्वाधिक शिथिल स्थान है, जहां पर किसी भी प्रकार का ताण टेन्शन जोर नही पडता है, यह मोस्ट रिलॅक्स जगह है शरीर मे , जहां अनायास हि मेद संचिती होती है और वहा पर मेदः संचिती होना, उसी कारण से स्वाभाविक भी है.
कुछ लोग कहते है की, स्थौल्य में पेट तोंद बेली टमी पर मेद इसलिये जमा होता है, क्योंकि मेदोवह स्रोतस का स्थान मूल वपावहन और वृक्क है.
इसलिए वपावहन पर मेदःसंचय होता है.
किंतु यह कितना खोखला और आधारहीन शास्त्रीय संदर्भ है, इसका थोडा भी चिंतन कोई करता नही है.
अगर मेदोवह स्रोतस् का स्थान वपावहन है, तो वृक्क भी है ना ...
क्या किसी को आपने देखा है कि, वो चल रहा है और उसके पीठ पीछे एल वन (L1) के लेवल पर किडनीयों के स्थान पर, मेद के दो बडे बडे गोले दिख रहे है.
नही देखा ना!?
तो ये मेदोवह स्रोत के मूलस्थान का इससे कोई संबंध नही है.
शरीर का सर्वाधिक रिलॅक्स स्थान, जिस पर किसी भी प्रकार का कष्ट/जोर/ताण/टेन्शन नही पडता है, ऐसे फॉरवर्ड बेंडिंग के कारण, मेद संचिती यह तोंद टमी पेट पर इस रूप मे होती है, तो फॉरवर्ड बेंडिंग की बजाय, बॅकवर्ड बेंडिंग हो साईड बेंडिंग हो, स्पायनल ट्विस्ट हो, इस प्रकार के उस मेद स्थान पर जोर कष्ट ताण टेन्शन पडे, ऐसे व्यायाम प्रकार करने चाहिए, जिसमे ...
1.
सूर्यनमस्कार श्रेष्ठ है.
2.
उस के साथ साथ, स्थानिक मेदःक्षय करने के लिए उपयोगी, एअर सायकलिंग = पीठ केबल सोकर, अपने कटी से नीचे का जो देह है, उन पांवों को /सक्थियोंको हवा मे उठाकर, हवा मे हि, तीन बार आगे, तीन बार पीछे, सायकलिंग करना है. ये air cycling है.
जो आदमी पाच छे सात किलोमीटर चल सकता है , जो आदमी तीस किलोमीटर सायकलिंग कर सकता है, वो दस पंधरा मिनिट भी एअर सायकल नही कर सकता.
निसर्गतः मनुष्य के लिए चलना स्वाभाविक है.
सायकलिंग मे तो आराम ही होता है, शरीर का कटी के उपर का भाग स्थिर रहता है, हाथ हॅण्डल पर स्थिर रहते है और अकारणही जहा मेदः संचिती नही है, ऐसे पांव घुटने काफ मसल ये कष्ट करते रहते है,
तो सायकलिंग जैसा भारक्षय वेटलाॅस के लिये अत्यंत विसंगत व्यायाम दूसरा कोई नही है.
इसी के साथ रनिंग जॉगिंग जम्पिंग झुंबा बॅडमिंटन क्रिकेट ये सारे जर्क देने वाले झटका देने वाले collision friction करने वाले व्यायाम है.
ये 35 40 45 50 की वय मे अच्छा व्यायाम नही है.
सूर्यनमस्कार, स्पाइनल ट्विस्ट एवं एअर सायकलिंग हि सर्वाधिक लाभदायक परिणामकारक व्यायाम है.
इसके साथ ही अगर साठ-सत्तर मिनिट तक प्रति दिन एक ही समय मे चलने का व्यायाम करे तो और भी लाभ होता है.
यह जो प्रस्तुत योग है,
*त्रिफला गुडूची हरितकी और मुस्ता* यह अत्यंत संतुलित योग है,
जिसमे त्रिफला और हरितकी ये विरेचक है,
मुस्ता ग्राही है तथा
गुडूची और मुस्ता दोनो शमनद्रव्य है.
संतर्पणजन्य विकारोंका सर्वार्थसिद्धिसाधक सर्वोत्तम योग जो कि वचाहरिद्रादि है, उसमें इस प्रस्तुत योग मे से दो द्रव्य सम्मिलित है जैसे की अभया व मुस्ता.
इसी के साथ हरितकी उष्ण है.
गुडूची समशीतोष्ण है.
त्रिफला समशीतोष्ण है, रसायन है.
और मुस्ता शीत वीर्य है.
सर्वाधिक उपयोगीद्रव्य है हरितकी.
स्थौल्य का चिकित्सा सूत्र है 👇🏼
*वातघ्नानि अन्नपानानि श्लेष्ममेदोहराणि* च ... ✅️
अर्थात वात को तथा कफ को कम करे ऐसे, औषध या आहार या दोनो.
कफ को जो कम करता है वो मेद को कम करेगा हि, क्यूंकि दोनों का महाभौतिक संघटन एक समान है.
पृथ्वी जल प्रधान गुरु स्निग्ध द्रव प्रधान को जो कम कर सकता है, ऐसा द्रव्य स्थौल्यहर निश्चित रूप से हो सकता है.
दीपन व मेदःशोषक होना, यह भी आवश्यक है, इसलिये इस पर चिकित्सा करने वाला द्रव्य रूक्ष उष्ण होना आवश्यक है.
और ये सारे के सारे क्रायटेरिया निकष सार्थक होते है, अभया = हरीतकी के विषय में.
अष्टांगहृदय उत्तर स्थान 40 श्लोक नंबर 48-58 में अग्रे द्रव्य लिखे गये है.
वाग्भट के द्वारा, *अनिलकफ अर्थात वातकफ मे सर्वश्रेष्ठ द्रव्य अभया* इस तरहसे उल्लेखित है
और आश्चर्य की बात है, कि इस चार घटक द्रव्य योग मे त्रिफला गुडूची मुस्ता इनका उल्लेख चरक में भी है ...
किंतु, *अभया का नही है.
किंतु वाग्भट ने *अभया अनिल कफे* इस रूप मे वातकफजन्य रोग मे अभया अग्रद्रव्य है, यह उल्लेख किया है, यही वाग्भट का श्रेष्ठत्व है* 💪🏻🙏🏼
जितना सु परिणाम वचाहरिद्रादि गणका मेदःकफ तथा मेदसाऽऽवृत वात आढ्यवात अर्थात स्थौल्य के लिए लाभकारी होता है.
उसी प्रकार से , उसी योग/गण मे थोडा अधिक स्पेसिफिकेशन किया जाये , तो यह *अभया मुस्ता गुडूची त्रिफला* यह योग अधिक पिन पॉईंट लक्ष्यगामी टारगेट ओरिएंटेड इस तरह से काम करता है.
स्थौल्य का पेशंट जो प्रायः सुकुमार होता है, उसके लिए यह योग सही होता है, सुसह्य होता है, पीडाकारक त्रासदायक नही होता है.
प्रायः जितने इंच, शरीर की दीर्घता / हाईट है, उतने kg शरीर का भार होना चाहिए, ऐसा *मेरा 33 साल के पेशंट को देखने के बाद मत हुआ है*
Those many kgs, as many inches!!!✅️
अर्थात किसी की हाईट पाच फूट पाच इंच (5'5") है, तो उसका सामान्य वजन 60+5=65 किलो होना चाहिए.
अगर वह लो/स्माॅल फ्रेम शरीर का है तो पाच किलो कम अर्थात 65-5 = 60 किलो तक होना चाहिए ,
अगर वह लार्ज फ्रेम शरीर का है, तो उसका वजन पाच किलो जादा अर्थात 65+5= 70 किलो तक होना चाहिये.
तो जितने इंच, उतने kg +/- 5 इस फॉर्मुला के साथ काम करेंगे ... Those many kgs (+ 5 / - 5), as many inches!!!✅️
तो स्थौल्य को कितने दिनो मे कम कर सकते है, इसका एक एस्टिमेट पेशंट को देना संभव होता है.
जितने इंच , उतने kg, ये रिलेशन या संबंध कैसे प्राप्त हुआ? इसका आधार क्या है ? इसका रेफरन्स क्या है?
तो इसका उत्तर है , की जितने इंच उतने kg, इसका कोई रेफरन्स नही है, किसी research में नही पढा है, ना हि ये बी एम आय से संबंधित है, ना हि किसी इंटरनॅशनल स्टॅंडर्ड से संबंधित है.
जिस क्षेत्र field मे, मैं काम करता हूं, इस भारत के महाराष्ट्र के प्रायः पश्चिम महाराष्ट्र के क्षेत्र में , मैने पिछले 35 साल मे जितने पेशंट देखे और उन पेशंट के साथ आने वाले उनके मित्र कुटुंबीय रिश्तेदार देखे, सामान्य रूप से मै लोगों को देखता रहता हूं, तो मेरा ये अनुभव/निरीक्षण हुआ है, की ...
*जितने इंच, उतने kg* यह नॉर्मल देहभार body weight है, हमारे यहाँ का !!!
थोडा बहुत कम ज्यादा ... यह पंजाब की ओर अधिक तथा दक्षिण भारत की ओर कम हो सकता है.
हर शास्त्रीय समीकरण रिलेशन के लिए अगर हम मॉडर्न के निरीक्षणों पर हि निर्भर रहेंगे, तो हम हमारे यहा का रिजनल ट्रॉपिकल निरीक्षण कब करेंगे ?
हमारा नॉर्मल/स्टॅंडर्ड उनके लिए abnormal सकता है , उनका नॉर्मल हमारे लिए abनॉर्मल हो सकता है ... यह भी संभावना हमने देखनी चाहिए.
स्थौल्य के विषय मे चरक ने लिखा है, कि मेद से आवृत होने के कारण वात कोष्ठ मे प्रकुपित होता है और वह अग्नि को बढाता है , इसलिये और आहार की इच्छा होती है ... वगैरे !!
मुझे संप्राप्ति मान्य नही है ,
ना हि वह मेरे समझ मे आती है.
मेरा स्थौल्य संप्राप्ती का आकलन थोडा अलग है, कि ...
अगर किसी व्यक्ति का वजन 80-90 किलो है और उसकी हाईट पाच फूट पाच इंच (5'5") है,
तो उसका सामान्य वजन नॉर्मल देह भार 65 किलो होना चाहिये था,
तो इस समय *यह व्यक्ती 15 से 25 किलो वजन लोड भार अपने शरीर पर ढो रहा है carry भारवहन कर रहा है*.
मसल जॉइंट्स पर सामान्य से जितना एक्स्ट्रा लोड होगा , उतना उसको वहन करने के लिए अधिक एनर्जी की आवश्यकता होगी, उतनी ही अधिक क्षुधा उसको लगेगी , उतनाही अधिक आहार वह खायेगा ...
अधिक आहार खायेगा तो, फिर से जो अनावश्यक लोड है पच्चीस किलो का , उसमे और एक दो किलो बढेगा ... फिर बढे हुए उस लोड के लिए और अधिक एनर्जी की आवश्यकता, और अधिक क्षुधा, और अधिक आहार ...
ये दुष्टचक्र है vicious सर्कल है ...
इसको हमे तोडना है.
जो मेद का संचय , मेद का अनावश्यक लोड / भारवहन उसका शरीर कर रहा है,
उसके व्यायाम के लिए दैनंदिन हालचाल मूवमेंट के लिए एनर्जी मिलनी चाहिये.
इसलिए पहले अनावश्यक इनपुट बंद करना चाहिए ...
और अनावश्यक इनपुट है , जैसे पहिले स्पष्ट किया कि ... *डिनर इस द कल्प्रिट* ...
20-25 की वय मे हमारे शरीर की वृद्धी बंद हो जाती है...
सर्वांगीण विकास पूर्ण शरीर निर्मिती हो गई होती है.
उसके आगे अगर हम डिनर मे पृथ्वीजल संतर्पण आहार लेते रहेंगे
और उसका उपयोग करने जितना हमारा शारीरिक व्यायाम हालचाल मूव्हमेंट अगर नही है ,
तो उसका रूपांतरण धीरे धीरे, शोथ पीनस स्थौल्य कोलेस्टेरॉल क्लेद कंडू त्वचारोग प्रसेक हृल्लास अग्निमान्द्य अम्लपित्त तथा डायबिटीस टाईप टू ...
इन मे होता चला जाता है.
इस कारण से, पहले डिनर का मेनू बदलना चाहिए.
खाली पेट नही रहना चाहिए.
अगर उसको starving / empty stomach करेंगे,
तो उसके शरीर की एनर्जी की आपूर्ति के लिए जो विकृत अनावश्यक मेदस संचिती है, उसका उपयोग न होते हुये,
उसका मसल वेस्टिंग प्रोटीन लॉस होता है.
इस कारण से खाली पेट नही रखना है, स्टार्विंग starving नही करना है.
उसको भर पेट भोजन/खाना खिलाना है, लेकिन उस डिनर के आहार का मेन्यू बदलना है.
उसको हमेशा की तरह दाल चावल रोटी सब्जी खाने की अनुमती न देकर,
उसको भर्जित, आकाश महाभूत प्रधान धान्य अर्थात लाजा का सेवन करवाना चाहिए.
लाजा उन भाव पदार्थ को क्षीण कर सकती है, जो क्लेदप्रधान है, द्रव प्रधान है, शिथिल है, पृथ्वी जल प्रधान है. यही मेद का भी स्वरूप है.
अगर लाजा छर्दि का अग्रे द्रव्य है (अ हृ उ 40/48-58) अर्थात लाजा, द्रवप्रधान, पृथ्वीजल प्रधान, दलदल चिखल कीचड mud = क्लेद का शोषण करने मे सक्षम है,
क्यूंकि लाजा स्वयं आकाश महाभूत प्रधान है और अगर लाजा के गुणधर्म देखे जाये, तो वह लाजा ...
लाजास्तृट्छर्द्यतीसारमेह- *मेदःकफच्छिदः* ॥
कासपित्तोपशमना दीपना लघवो हिमाः।
इसलिए डिनर का मेन्यू लाजा हि होना चाहिए और फिर से क्षुधा की अनुभूती हो, तो फिर से लाजा हि खाना चाहिए, ऐसे डिनर के समय तीन-चार बार भी भूक लगे तो, फिर से लाजा खाते रहना चाहिए.
12 घंटे मे अगर 24 बार भी भूक लगे, तो लाजा का ही सेवन करने का संयम और निर्धार होना चाहिए.
रिझल्ट चाहिये , तो प्रयत्न भी करना आवश्यक है.
सब कुछ टॅबलेट से हि होगा, ऐसे हो ही नही सकता!
औषध अन्न और विहार यही चिकित्सा की त्रिसूत्री है.
थोडी मेहनत आपको भी करनी पडेगी ...
यह पेशंट को समझाना चाहिये / कन्व्हिन्स करना चाहिए
धीरे धीरे 8-15 दिनो के बाद, बार-बार भूक लगना बंद होता है और एक विशिष्ट लाजा राशी से, उसके डिनर की क्षुधा की आपूर्ति , समाधान पूर्वक हो जाती है.
फिर भी लाजा खाने से किसी को भूक का शमन होता ही नही है तो उसे कम से कम यह पालन करने की विधा बतानी चाहिए की,
रात्री भोजन मे डिनर मे कार्बोहायड्रेट शुगर ग्लुकोज कफ मेद जल पृथ्वीकलेद बढाने वाले आहार पदार्थों को वर्ज करे ...
अर्थात गेहू चावल बाजरा अर्थात रोटी चावल भाकरी, मैदा बेकरी के पदार्थ फल फ्रूट ज्यूस मिल्क मिल्क प्रॉडक्ट्स मिल्क शेक बटाटा साबुदाणा ... ऐसे कार्बोहायड्रेट बढाने वाले अन्नपदार्थ वर्ज्य रखे.
भरपेट लाजा दो या तीन बार खाने के बाद भी, अगर भूक लगे ..
तो उस समय मूग मसूर चवळी से बना हुआ कोई व्यंजन बनाकर खाना चाहिए जैसे की धिरडे डोसे चीला उसळ इत्यादी ...
जो स्थौल्य की , मेद की, डायबेटीस टाईप टू की, शोथ की, अम्लपित्त की, संतर्पण की संप्राप्ती है, उत्पादन कारण है, उसको हम बंद करते है, उस संतान परंपरा को हम खंडित करते है ...
निष्क्रिय, बिना हालचाल, बेड पर पडे रहने के बाद, जब उठेंगे तो एक घंटा या 70 मिनिट चल कर आना है ... और उसके बाद प्रोटीन युक्त बलमांस वर्धक शिंबी धान्य युक्त मधुर कषाय रस प्रधान रूक्ष आहार लेना है.
शिंबी वर्ग का सेवन करना है.
शिंबी वर्ग मे सबसे श्रेष्ठ है मुद्ग और मसूर.
इसी के साथ अलसांद्र राजमा (चवळी) है, जो स्तन्यकर अर्थात एक जीव का संपूर्ण पोषण करने की क्षमता रखते है ...
उस राजमा अर्थात अलसांद्र चवळी इसका भी उपयोग करना चाहिए.
पनीर (fat + lactose) व मटन (वसा, कोलेस्टेरॉल) में, प्रोटीन होता है, किंतु वह अत्यंत गुरु और संतर्पणकारी होने से उनका सेवन उपयोगी नही है.
चिकन अंडी मच्छी ये तो और भी वर्ज्य है,
क्योंकि चिकन और अंडे आज हार्मोन का इंजेक्शन देकर हि आते है
और सी फूड या मत्स्य मे अत्यधिक क्षार तथा पोल्युट कंटेंट होने के कारण, शरीर मे जल की संचिती होकर और क्लेद प्रधानता द्रव प्रधानता संतर्पण प्रधानता होती है.
इस कारण से शिंबी वर्ग (मूग मसूर चवळी) का सेवन करना और अपने प्रोटीन लॉस को बचाना मसल वेस्टिंग को बचाना, बल बनाये रखना संभव होता है.
नाश्ता में शिंबी धान्य का बलमांसवर्धक आहार लेने के बाद,
जब आधा दिन बीत जाये,
तो मध्याह्न के समय दोपहर एक (1pm) से पहले,
संपूर्ण भोजन करना चाहिए,
जिसमे दाल चावल सब्जी रोटी = ग्लुकोज प्रोटीन फायबर फॅट = शूक धान्य शमी धान्य शाक इनका संतुलित समावेश होना चाहिये.
उसने इसलिये दोपहर का भोजन अगर ग्लुकोज युक्त कार्बोहायड्रेट युक्त शुगर युक्त पृथ्वी जल युक्त संतर्पणकारी हो , तो भी दिन भर के उसके शारीरिक क्रियाओं के कारण हालचाल के कारण मूव्हमेंट के कारण, उसका उपयोग हो जाता है , उसका अनावश्यक शरीर मे संचय नही होता है.
इसी के साथ साथ, दिन मे सोना यह संतर्पणकारी विहार है, वह बंद करना चाहिए.
अगर दिन मे सोना अनिवार्य है, सात्म्य है, आदत है ... तो बैठकर सोना चाहिए.
आसीन प्रचलायितम् ... जैसे हम कार मे, एसटी बस मे प्रवास करते समय, बैठकर सोते है = शरीर के कटी के उपर का भाग, भूमी समांतर नही होने देना है अर्थात 180° में नही सोना है ... 120° या 135° डिग्री ने सोना.
सोफा पर या कुर्सी पर बैठकर, पीछे दीवार को सर लगाकर/सटाकर/रखकर , सामने कोई दूसरी कुर्सी टिपॉय स्टूल रखकर, उस पर भूमी समांतर होरायझोंटल पाव रखने है और ऐसे आप चाहे जितना एक या दो घंटा भी सो सकते है ... किंतु 15 मिनिट भी बेड पर लेटकर, सोना नहीं.
इस प्रकार से, अगर हम *आहार, विहार और औषध का प्रयोग* करे तो निश्चित रूप से,
*एक महिने मे अप टू टेन पर्सेंट (upto 10% per month)
या
केवल 14 दिनो मे अप टू 5% होता है*.
✅️
Kg लॉस &/or इंच लॉस दोनों संभव होता है.
Kg लॉस होते समय , शरीर के मेद के साथ साथ मांसक्षय का भी भय/संभव रहता है.
मेदक्षय हि हुआ है, ये सुनिश्चित करने के लिए, कन्फर्म करने के लिए, चिकित्सा के उपचार के पूर्व BT (BeforeTreatment) तोंद की तीन जगह पर सर्कमफरंस तथा वेस्ट सीट थाईज आर्म्स चेस्ट ब्रेस्ट इन के भी सरकम्फरन्स इंच या सेंटीमीटर मे लिखके रखने चाहिये और हर 15 दिन बाद / महिने बाद इन इंचेस को भी गिनना चाहिए.
तो ऑब्जेक्टिव्हली कितना इंच लाॅस हुआ, कितना मेदःक्षय हुआ ये पता चलता है.
वरना पेशंट का वर्तन ऐसे होता है, कि इंच नही गिनते. बताते है की पुराने कपडे आने लगे है, नये कपडे ढीले हो गये है, साईज डबल एक्सेल से मिडियम तक आयी है. पर ये सब्जेक्टिव्ह असेसमेंट है. थोडासा पेशंट को एज्युकेट करके, डिसिप्लिन लगाके, बिफोर ट्रीटमेंट (BT) ... ड्युरिंग ट्रीटमेंट और आफ्टर ट्रीटमेंट (AT) ... इंच काउंटिंग ऑफ द सर्कमफरन्स ॲट बेली टमी सीट वेस्ट आर्म चेस्ट ब्रेस्ट यहां के करके रखने चाहिये.
और *ये इंच काउंटिंग पेशंट के पास ही रहना चाहिए*. वैद्य ने इसे अपने पास केस पेपर में रजिस्टर नही करना चाहिए. क्योंकि वह हर एक पेशंट की अपनी वैयक्तिक प्रायव्हसी है. वैद्यने केवल बीटी BT के इंचेस मे एटी AT के समय कितना अंतर पडा है, उतनाही लिखना चाहिए.
विशेषतः स्त्री रुग्ण (female patient) का शरीर के इंचेस का काउंटिंग अपने केस पेपर पर नोट करना यह नैतिकता के विरुद्ध है. पेशंट की कन्सेंट होने के बावजूद भी, किसी भी पेशंट का, विशेषतः स्त्री रुग्ण का बीटी एटी का उनके फोटोज नही लेने चाहिये. ये नैतिकता से पूर्णतः विरुद्ध है. अनावश्यक है.
इंचेस काउंटिंग मे कितना फरक पडा है, इतना फरक ही ऍक्च्युली रिझल्ट है ... उसका ही केस पेपर मे रजिस्ट्रेशन करना चाहिए. चिकित्सा के यश को सोशल मिडिया पर डिस्प्ले करने के धुन मे मोहमे, हम नैतिकता के मूल्य को अवमानित करने पर आमादा होने की संभावना होती है.
तो इस प्रकार से, *औषध अन्न और विहार का संतुलित और सामूहिक उपयोग, स्थौल्य से आपको निश्चित रूप से मुक्ती दे सकता है*✅️
शास्त्र मे देह भार का कोई प्रमाण संख्या मे नही दिया है. देह दीर्घता अंगुली प्रमाण के रूप मे दी है. किंतु, देह भार का मापन नही किया है. उस जमाने मे तुला भार कर्ष इत्यादी परिमाण उपलब्ध थे, फिर भी देह भार कितना होना चाहिये, इसे स्पष्ट रूप से कही पर भी उल्लेखित नही है. किंतु अंगुली प्रमाण का उल्लेख है, इसलिये टमी तोंद पेट इनका अंगुली प्रमाण शास्त्र मे लिखा हुआ है और वास्तविक पेशंट मे कितना है, इसका अंतर बिफोर ट्रीटमेंट आफ्टर ट्रीटमेंट लिखकर रखना उचित होता है. उसी प्रकार से सक्थि कटि नितंब बाहु उर इनका भी अंगुली प्रमाण, यह प्रति व्यक्ती चेंज हो सकता है. इसलिये एक नंबर सर्व स्वीकृत अधिक योग्य होता है, ऑब्जेक्टिव्ह असेसमेंट के लिये.
तो ...
1.
अभया मुस्ता गुडूची त्रिफला यह सप्तधा बलाधान टॅबलेट दिन मे तीन या चार बार ...उसके साथ
2.
ब्रेकफास्ट मे शिंबी वर्ग
3.
लंच मे संपूर्ण भोजन दाल चावल सब्जी रोटी और ...
4.
रात्री भोजन मे केवल लाजा ... क्यूंकि डिनर इस द कल्प्रिट.
साथ ही ...
5.दिन मे नही सोना
6.
70 मिनिट तक सामान्य गती मे चलना
7. सूर्यनमस्कार
8. एअर सायकलिंग air cycling
9. स्पायनल ट्विस्ट Spinal twist
ये व्यायाम करना ...
आहार, विहार और औषधात्मक चिकित्सासे स्थौल्य पर विजय प्राप्त हो सकता है.
न हि स्थूलस्य भेषजम् ऐसा यद्यपि वाग्भट ने कहा है,
तथापि मैं स्वयं वाग्भटीय म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda यह डंके की चोट पर स्पष्ट रूप से जोर देकर कहता हूं कि,
*यही स्थूलस्य भेषजम् ... सही स्थूलस्य भेषजम्*.
इस का अर्थ केवल दिया हुआ अभया त्रिफला मुस्ता गुडूची सप्तधा बलाधान 6 टॅबलेट 4 बार , इतना हि पर्याप्त नहीं है. We do not endorse any Drug & Disease Policy. औषध के साथ साथ, संतुलित आवश्यक आहार और विहार इनका भी उतनाही महत्व है, यह जानना चाहिए.
*औषधान्नविहाराणाम् उपयोगं सुखावहम्॥ विद्याद्*
👌☝️👏
ReplyDeleteThank you for the wonderful explanation and elaboration sir🙏
ReplyDelete👌👌
ReplyDeleteExcellent explanation Sir
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